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परोपकार’ बहुत, विश्वसनीय कार्य है।। जिसका “ईश्वर”के अतिरिक्त, कोई ‘साक्षी’ नहीं है।। “सुलझा” हुआ “मनुष्य” वह है, जो अपने “निर्णय” स्वयं करता है। और उन “निर्णयों” के “परिणाम” के लिए किसी “दूसरे” को “दोष” नहीं देता है।। प्रेरणा के सबसे बड़े स्रोत आपके अपने विचार हैं। इसलिए बड़ा सोचो और सफल होने के लिए स्वयं को प्रेरित करो।। वो कागज की दौलत ही क्या जो पानी से गल जाये और आग से जल जाये। दौलत तो दुआओ की होती है।। न पानी से गलती है। न आग से जलती है।।. : 💐सहयोग या संग्राम💐

एक बार परमपिता परमात्मा ने सभी को भोजन के लिए निमन्त्रण दिया। भोजन में ५६ प्रकार के पकवान और १०८ प्रकार के फल आदि रखे हुए थे। जिनको निमन्त्रण मिला सारे लोग तमो गुणी संस्कार वाले व्यक्ति थे और भोजन एक नियम से खाना था। तो सभी भोजन कक्ष में जाये उसके पहले उनके दोनों हाथों में तीन फुट की लकड़ी का डण्डा बाँध दिया गया, जिससे उनके हाथ मुड़ न सके।। सभी मेहमान भोजन कक्ष में गये और इतना स्वादिष्ट भोजन और फल देख कर सब के मुँह में पानी आ गया और सब ने अपने मुख की तरफ हाथ मोड़ा तो लकड़ी के कारण हाथ नहीं मुड़ सका और भोजन पीछेवाली पंक्ति में बैठे मेहमानों के ऊपर अथवा आगे की पंक्ति में बैठे मेहमानों के ऊपर गिरा। सबके कपड़े आदि ख़राब हो गये।। जिससे वे क्रोधित होकर आपस में लड़ने लगे, एक – दूसरे को अपशब्द बोलने लगे और कोई कोई तो हाथपाई भी शुरू कर दी। भोजन कक्ष बदल कर संग्राम का मैदान हो गया था, सभी जगह भोजन बिखर गया था और सभी मेहमान भूखे ही रह गये। ये सब आत्माये तमो गुणी संस्कारवाली होने के कारण भोजन कक्ष संग्राम कक्ष बना।। अब परमात्मा ने सोचा चलो एक और बार प्रयोग करके देखते है। फिर परमात्मा ने अपने दूतों को भेज कर भोजन कक्ष खाली करवाया। और दूसरे दिन दूसरे समुदाय को बुला कर उसी तरह हाथ बाँधकर भोजन कक्ष में भेज दिया।। सुंदर स्वादिष्ट भोजन को देख कर उनको भी खाने कि इच्छा होने लगी परन्तु खाये कैसे ? इस पर सोच चलने लगा। ये सभी सतो प्रधान संस्कारों वाले व्यक्ति थे, इस लिए उन्होंने धैर्य से विचार किया। उनका हाथ अपने मुँह की तरफ तो मुड़ ही नही सकता था परन्तु दूसरे की तरफ तो बिना मोड़े ही जा सकता था।। इस लिए उन्होंने प्रेम और स्नेह से, सहयोग भावना से अपने हाथ में चम्मच लेकर एक-दूसरे को खिलाना शुरू किया और सभी ने अपने को तृप्त किया। उनकी सहयोग भावना से न तो भोजन ख़राब हुआ और न ही भोजन कक्ष खराब हुआ और सभी भोजन खाकर तृप्त भी हुए।। सीख- जीवन में सुख पाने के लिए एक दूसरे का सहयोग चाहिए और जीवन को सफल बनाने के लिए भी हम सब को एक दूसरे को सहयोग देना और लेना चाहिए।। इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है। सहयोग से होगा सर्वोदय,सहयोग करो।।

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इन्सान बनने का कढा
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यदि आप अच्छा इंसान बनना चाहते हैं तो निम्नलिखित काढे का निर्माण करके स्वयं प्रयोग करें!!
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सामग्री
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(1) सच्चाई के पत्ते ‘1’ ग्राम
(2) ईमानदारी की जड़ ‘3’ ग्राम
(3) परोपकार के बीज ‘5’ ग्राम
(4) दया का छिलका ‘4’ ग्राम
(5) दानशीलता का छिलका ‘4’ ग्राम
(6) स्वदेश प्रेम का रस ‘3’ ग्राम
(7) उदारता का रस ‘3’ ग्राम
(8) सत संगत का रस ‘4’ ग्राम

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निर्माण विधि
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उपरोक्त बताई हुई सब चीजों को एक साथ मिलाकर परमात्मा के बर्तन में डाल कर स्नेह भाव के चूल्हे पर रख कर प्रेम की अग्नि में पकायें ! अच्छी तरह पक जाने पर नीचे उतार कर ठण्डा करें ! फिर शुद्ध मन के कपडे से छानकर मस्तिष्क की शीशी में भर लें!!

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सेवन विधि
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इसको प्रति दिन संतोष के गुलकंद के साथ न्याय के चम्मच में सुबह, दोपहर, शाम दिन में तीन बार सेवन करें ।

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परहेज
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क्रोध की मिर्च, अहंकार का तेल, लोभ की मिठाई, स्वार्थ का घी, धोखे का पापड़… इन सबसे सावधान व दुराचरण की भावना से बचना है !!
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नोट
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इसका निर्माण हर व्यक्ति के द्वारा सम्भव है ।

🙏🏻🌹हरि ॐ नारायण🌹🙏🏻

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