भक्ति हमें धैर्य प्रदान करती है। जिस जीवन में प्रभु की भक्ति नहीं होगी, निश्चित समझिए उस जीवन में धैर्य नहीं पनप सकता। भक्त इसलिए प्रसन्नचित्त नहीं रहते कि उनके जीवन में विषमताएं नहीं रहती हैं, अपितु इसलिए प्रसन्नचित्त रहते हैं कि उनके जीवन में धैर्य रहता है।। किसी भी प्रकार की विषमताओं से निपटने के लिए अपने इष्ट अपने आराध्य का नाम अथवा विश्वास होता है। भक्त के जीवन में परिश्रम तो बहुत होता है।। मगर परिणाम के प्रति ज्यादा उतावलापन नहीं होता है। वो इतना जरूर जानता है, कि मेरे हाथ में केवल कर्म है , उसका परिणाम नहीं। मैंने कर्म को पूरी निष्ठा से करके अपना कार्य पूरा किया अब आगे परिणाम जैसे मेरे प्रभु को अच्छा लगेगा वही आयेगा।। विपरीत से भी विपरीत परिस्थितियों में भी अगर कोई हमें मुस्कुराकर जीना सिखाता है। तो वो केवल और केवल हमारा धैर्य ही है।। धैर्य के समान आत्मबल प्रदान करने वाला कोई दूसरा मित्र नहीं। संतो की संगति का अब ये असर हुआ, पहिले हँसते हुए भी रोते थे, अब भीगे दामन में भी मुस्कुराते हैं।।
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मैने यह छोड़ दिया मैंने वह छोड़ दिया, मैंने इतना त्याग किया चलो ठीक है, अच्छा किया परंतु पाया क्या बुरी बातों को छोड़ना एक बात है।। लेकिन यह एक हिस्सा मात्र है। छोड़ने से लाभ यह हुआ कि जो बाधाएं आती, जो भूलें होती, उन से बचाव हो गया।। लेकिन यह तो सिर्फ निषेधक है। अब मुझे कुछ सकारात्मक भी करना होगा।। सदगुरु एवम वृद्धों की सेवा करना मूर्खों के संसर्ग से दूर रहना सनकी, कुतर्क करने वालों के संसर्ग से दूर दूर रहना एकाग्र चित्त से सत शास्त्रों मनन व अभ्यास उनके गंभीर अर्थों का चिन्तन चित्त में अटल शांति प्राप्त करना यही नि:श्रेयस का मार्ग है।।
[ संसार, जीव दोनों अनादि से हैं और जीव के कर्म भी अनादि से हैं। जिनके कारण जीव आज तक यह देह धरते-छोड़ते आया है। चींटी से हस्ती तक देह धरने का परिणाम केवल दुख है। भूख, प्यास, ठंडी, गर्मी, रोग, बुढ़ापा मान, अपमान, संयोग, वियोग, जन्म, मृत्यु सब दुख है। आखिर यह जीव के विभिन्न दुखों का सिलसिला कब रुकेगा जीव में दुख है ही नहीं। जगत में भी दुख नहीं है।। लेकिन जब जीव-जगत के संबंध से मन में अहंकार, कामना उत्पन्न हुई तो यहीं से दुख शुरू हुआ। अतः हे दुख ना चाहने वालों मोह का त्याग करो। पूर्ण मोह विहीन स्थिति ही मोक्ष है।।
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किसी क्षण केवल जी कर देखिये। जीवन से लड़िये मत कोई छीना झपटी न कीजिये।। केवल चुप होकर देखते रहिये क्या होता है। जो हो रहा है, उसे होने दीजिये।। जो है,उसे होने दीजिये। अपनी ओर से कोई तनाव न पैदा कीजिये।। और जीवन को बहने दीजिये। बह जाइये जहाँ आपको बहा कर ले जाये। ढीला छोड़ दीजिए स्वयं को परमात्मा के बलिष्ट, मज़बूत हाथों में जीवन को घटित होने दीजिये।। विश्वास कीजिये जो भी होगा वह आपको मुक्त कर देगा। आनंद से भर देगा।।
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