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केवल ऐसी बातें सुनो और बोलो जिससे सदगुरु की प्रीति दृढ़ हो।। ऐ प्रभु आप ही मेरे सच्चे हितैषी हैं क्योंकि आप त्रिकालदर्शी हैं और अन्तर्यामी हैं। इसलिए आपकी सम्मति से कदापि हानि नहीं होगी।। हे क्षमाशील पिता! मुझे ऐसी क्षमता प्रदान करो ताकि अत्यन्त लगन से आपके गुण गाता रहूँ और आपसे विलग रूहों को आपके साथ मिलाने का यत्न दिन-रात करता रहूँ। इस सेवा के परिणाम स्वरूप जो बड़ाई और धन-पदार्थ आवे उधर बिल्कुल मुँह न करूँ–आलसी न बनूँ। देखता हूँ कि सन्सार में जितने भी कष्ट व क्लेश हैं वे सब आपकी आज्ञा का उल्लंघन करने से आते हैं। आपके वचन उनके कानों तक पहुँचाऊँ जो लोग सांसारिक बातें सुनने में व्यर्थ समय गंवाते हैं और अपने मन को चंचल बनाते हैं। कितनी ही आपकी पुरानी रूहें हैं जो मेरे आलस्य और लापरवाही के कारण परम सुख की खान आपसे विलग पड़ी हैं। कृपा करके ऐसा संयोग मिलाओ कि आपके पुराने प्रेमियों के सम्पर्क में बैठकर आपका यश गायन करूँ तथा अपना अमूल्य समय सार्थक करूँ।। ऐसा कभी न कहो कि भगवान आपने ऐसा क्यों किया है, ऐसा होता तो अच्छा था। यह सब कुछ भगवान ही जानते हैं कि जीव की भलाई किस में है इसलिए तुम्हें उसकी मौज में चलना चाहिये।। कई लोग चंचलता और अनीति को स्वन्त्रता समझते हैं परन्तु सच्ची स्वतंत्रता सदगुरु की आज्ञा में चले बिना कदापि प्राप्त नहीं हो सकती।।
[: सुख का सदुपयोग उदारता और दुःख का सदुपयोग विरक्ति है। उदारता आ जाने पर प्राणी सुख-भोग के बन्धन से मुक्त हो जाता है।। और विरक्ति आ जाने पर आत्मानुरक्ति अथवा परम-प्रेम की जागृति स्वतः होती है, जिसके होने से जीवन अनन्त, नित्य-सौन्दर्य से सम्पन्न हो जाता है। अथवा यों कहो कि सब प्रकारके अभावों का अभाव होकर पूर्ण हो जाता है।। अथवा कहो कि जीवन जड़ता, पराधीनता, शक्ति-हीनता आदि दोषों से रहित होकर अनन्त, नित्य, चिन्मय परम-तत्त्व से अभिन्न हो जाता है, जो मानव का उद्देश्य है। अतः चरित्र-निर्माण करने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना चाहिए, क्योंकि चरित्र-निर्माण के लिए ही मानव-जीवन मिला है।।
[कुछ कर्म बदले जा सकते हैं, और कुछ नहीं जैसे हलवा बनाते समय चीनी या घी की मात्रा यदि कम हो, पानी अधिक या कम हो, उसे ठीक किया जा सकता है। पर हलवा पक जाने पर उसे फिर से सूजी में नहीं बदला जा सकता। मट्ठा यदि अधिक खट्टा हो, उसमें दूध या नमक मिलाकर पीने लायक बनाया जा सकता है। पर उसे वापस दूध में बदला नहीं जा सकता है।। इसु प्रकार प्रारब्ध कर्म बदले नहीं जा सकते। संचित कर्म को आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा ही बदला जा सकता है। सत्संग सभी बुरे कर्मों के बीज को ख़त्म करता है जब हम किसी की प्रशंसा करते है, तो हम उसके अच्छे कर्म ले लेते है, और जब हम किसी की बुराई करते है, तो हम उसके बुरे कर्म के भी भागीदार बनते है। इसे जानें, और अपने अच्छे और बुरे, दोनों ही कर्मो को ईश्वर को समर्पित करके स्वयं मुक्त हो जाएँ।।
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तीन तरह के संबंध मनुष्य के जीवन में होते हैं, बुद्धि के संबंध जो बहुत गहरे नहीं हो सकते। प्रेम के संबंध बुद्धि से गहरे होते हैं।। हृदय के संबंध,जो हृदय से उठते हैं। इनसे भी गहरे होते हैं मित्रता के संबंध जो नाभि केंद्र से उठते हैं।। इसीलिए मित्रता का दर्जा सबसे ऊपर होता है। प्रेम किसी को बांध सकता है।। मित्रता बांधती नहीं, मुक्त करती है। इसलिए यह परमात्मा तक जाने वाला सबसे बड़ा मार्ग है।। जो सबका मित्र है। वह आज नहीं कल परमात्मा तक पहुंच जाता है।।

      
               🙏

मानवीय गुणों में एक प्रमुख गुण है “क्षमा” और क्षमा जिस भी मनुष्य के अन्दर है वो किसी वीर से कम नही है। तभी तो कहा गया है कि- ” क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा वाणी का भी आभूषण है। यद्यपि किसी को दंडित करना या डाँटना आपके वाहुबल को दर्शाता है।। मगर शास्त्र का वचन है कि बलवान वो नहीं जो किसी को दण्ड देने की सामर्थ्य रखता हो अपितु बलवान वो है जो किसी को क्षमा करने की सामर्थ्य रखता हो। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली सम्पदा के धनी हैं और इसी कारण आप सबके प्रिय बनते हो। चर्चा और निन्दा केवल सफल व्यक्तियों के भाग्य में होती है।।

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