संगति का बहुत जल्दी असर होता है। हमेशा तमोगुण और रजोगुण में रहने वाला व्यक्ति भी थोड़ी देर आकर सत्संग में बैठ जाये तो उसमें भी सकारात्मक और सात्विक ऊर्जा का संचार होने लगेगा चेतना एक गति है। वह पूरे दिन बहती रहती है। उसे जैसा माहौल मिलेगा वह उसी में ढलने के लिए तैयार होने लगती हैं। आदमी पूरे दिन बदल रहा है। अच्छे आदमी से मिलकर अच्छे होने का सोचने लगता है।। तो बुरे आदमी से मिलकर बुरे होने के बिचार आने लगते हैं। मन भिखारी की तरह है।। यह पूरे दिन भटकता रहता है। इसे सात्विक ही बने रहने देना।। रजोगुण बढ़ा तो लोभ बढ़ेगा और लोभ बढ़ा तो ज्यादा भाग दौड़ होगी। ज्यादा दौड़ने से अशांति तो फिर आएगी ही आएगी।। उम्र से “सम्मान” जरुर मिलता है। पर “आदर” तो केवल व्यवहार से ही मिलेगा।।
[ मानवीय गुणों में एक प्रमुख गुण है “क्षमा” और क्षमा जिस भी मनुष्य के अन्दर है वो किसी वीर से कम नही है। तभी तो कहा गया है कि- ” क्षमा वीरस्य भूषणं और क्षमा वाणीस्य भूषणं ” क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा वाणी का भी आभूषण है। यद्यपि किसी को दंडित करना या डाँटना आपके वाहुबल को दर्शाता है।। मगर शास्त्र का वचन है कि बलवान वो नहीं जो किसी को दण्ड देने की सामर्थ्य रखता हो अपितु बलवान वो है। जो किसी को क्षमा करने की सामर्थ्य रखता हो। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली सम्पदा के धनी हैं।। और इसी कारण आप सबके प्रिय बनते हो आजकल परिवारों में अशांति और क्लेश का एक प्रमुख कारण यह भी है। कि हमारे जीवन से और जुवान से क्षमा नाम का गुण लगभग गायब सा हो गया है।। दूसरों को क्षमा करने की आदत डाल लो जीवन की कुछ समस्याओं से बच जाओगे। निश्चित ही अगर आप जीवन में क्षमा करना सीख जाते हैं। तो आपके कई झंझटों का स्वत:निदान हो जाता है।।
[: आध्यात्मिक इतिहास साक्षी है, कि आज तक जितने भी लोगो को परमात्मा कि प्राप्ति हुई उन सभी ने परमात्मा की प्राप्ति के लिए जीवन में आनंद को मार्ग के रूप में चुना जब भी तुम्हारे जीवन में आनंद चरम तक पहुच जायेगा तभी तुम्हारे जीवन में परमात्मा अर्थात परमानन्द का मार्ग प्रसस्थ हो सकेगा जिन लोगो ने जीवन कर्म काण्ड को व् पूजा को अपनाया है।। या अपना रहे है, वे निराकार, ब्रह्म अर्थात परमात्मा की प्राप्ति हेतु प्रयत्न शील नहीं है। अर्थात बिना उद्देश्य के वे कर्मकांड या पूजा नहीं कर रहे है।। उन सभी के जीवन में इस सबको करने के पीछे एक उद्देश्य है और वह उद्देश्य है, कुछ प्राप्ति का सम्भव है। कि कुछ लोग उस उद्देश्य को समग्र रूप से या आंशिक रूप से प्राप्त कर भी सकते है।। जिसके लिए उन्होंने प्रयत्न या कार्य किया लेकिन मानव जीवन के उस उद्देश्य अर्थात परम तत्व की प्राप्ति से वंचित रह जायोगे जिसे संतो, महापुरुषो, ऋषियो, महात्माओ व् धर्म ग्रंथो ने कहा है और बार- बार चेताया भी है। कि मनुष्य जन्म अनमोल रे, माटी में न रोल रे।।