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अगर कोई बात आपकी समझ में नहीं आती है तो इसका मतलब कभी भी ये नहीं कि वो गलत गलत ही हो।

कोई बात अगर आपके अनुरूप न हो तो उसका केवल इतना ही अर्थ नहीं होता है कि वो एकदम गलत है अपितु उसका एक अर्थ यह भी है, कि हो सके उस बात को समझने के लायक आपकी बुद्धि का स्तर ही न हो।

दुनियाँ की प्रतिस्पर्धाएं कुछ इस तरह की हो गयी हैं कि , जिसमें एक आदमी कहता है कि दिन के बाद रात होती है तो दूसरा आदमी पहली बात का खंडन करते हुए कहता है कि नहीं – नहीं दिन के बाद रात नहीं बल्कि रात के बाद दिन होता है। सत्य तो यही है कि दोनों अपनी अपनी जगह बिल्कुल सही हैं। बस थोड़ा समझने का फेर है।

इस थोड़े से समझने के फेर में मनुष्य अपनी बहुमूल्य जीवन ऊर्जा का अपव्यय एक गलत दिशा में कर बैठता है। हो सके जिस हिमालय के दर्शन को आप सुबह की सुनहरी धूप में करने के कारण सुनहरा बता रहे हो वही दर्शन दूसरे को रात की धवल चाँदनी में करने कारण रजत सदृश मालूम पड़ेगा।

दोनों अपनी – अपनी जगह सही होते हुए भी न पहले का कथन झूठा है और न दूसरे का।इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने अपने अनेकांतवाद में कहा कि परम सत्य केवल एक होने पर भी वह अलग – अलग कोणों से देखने पर अलग – अलग ही नजर आयेगा।

तुम सत्य हो सकते हो ये बात बिल्कुल सही है लेकिन केवल तुम ही सत्य हो सकते हो ये कदापि संभव ही नहीं।

🙏 चेतना की गहराइयों में उतारने का नाम जागरण है। 🙏

       संसार आपको सपने दे सकता है संतुष्टि नही। संतुष्टि के लिए हमे सपनो से जागना होगा। जागरण एक आंतरिक प्रक्रिया है। यदि आप ध्यान से अपने अंदर झांके तो आप आश्चर्य से भर जायेगे, आप पाएंगे कि आपके भीतर आपका अपना कुछ भी नही है। आपके विचार भी आपके अपने नही है। ये विचार, धारणाएं आपके अंदर ठूसी गयी है। आपके परिवार, समाज, धर्म गुरुओं, राजनेताओ के द्वारा। 

   जागरण स्वय को जानने की प्रक्रिया है। चेतना की गहराइयों में उतारने का नाम जागरण है। ओर इस बेहोसी से हम केवल मनुष्य जन्म में ही बाहर आ सकते है। क्यों कि मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह विवेक का उपयोग करके जीवन में परिवर्तन ला सकता है। समय सीमित है ओर प्रक्रिया थोड़ी जटिल नजर आती है इसलिए समय का सदुपयोग करे।


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हम आज बात करेंगे संबंधो पर क्योंकि जगत का सारा व्यवहार संबंधो पर ही टिका है । कहीं पारिवारिक संबंध होता है तो कहीं कारोबार का संबंध होता है । पिता पुत्र के संबंध और पति पत्नी के संबंध में अंतर प्रतीत होता है । मित्रों के संबंध में और कारोबार के संबंध में भी भेद दिखाई देता है । और फिर भी सभी संबंधो में एक समानता है । पहले मधुर और प्रिय लगने वाले संबंध बहुत जल्दी कड़वे प्रतीत होने लगते हैं । क्या ऐसा नहीं होता ? क्या हमारे अधिकतर संबंध बोझ नहीं बन जाते जीवन में । पर ऐसा होता क्यों है ? संबंध वास्तव में क्या है ? कुछ संबंधो का आधार प्रेम होता है तो कुछ संबंधो का आधार लाभ होता है । फिर भी सारे संबंध अंत में टूटने क्यों लगते हैं । एक व्यक्ति जब दूसरे से बंध जाता है तो उसे बंधन कहते हैं किन्तु दो व्यक्ति जब दूसरे से बंधे होते हैं तो उसे संबंध कहते हैं । सम अर्थात समान बंध अर्थात बंधन । घोड़े और उसके सवार के बीच संबंध नहीं वहां केवल घोड़ा बंधन में है, सवार तो मुक्त है । संबंध में दो व्यक्ति एक ही प्रकार से बंधे होते हैं । अर्थात प्रत्येक संबंध में दोनों व्यक्ति कुछ प्राप्त करते हैं । पिता यदि पुत्र को परवरिश देता है तो पुत्र भी पिता को प्रेम देता है बड़े होकर यदि पुत्र पिता को संभालता है तो बदले में वृध्द पिता उसे मार्ग दर्शन और अनुभव की पूरी पूंजी देता है । ऐसा ही प्रत्येक संबंध में होता है ना । आदान अर्थात प्राप्त करना और प्रदान का मतलब होता है कुछ देना । वैसे आदान प्रदान की असमानता दिखाई दे तो वह भ्रम है । वास्तव में जहां असमानता नहीं होती वहीं संबंध है । और संबंध में कड़वाहट का कारण भी उसी से समझ में आ जाता है । जब भी दो में से कोई एक व्यक्ति अपने प्रदान का महत्व अधिक मानने लगता है । तो संबंध वहीं से कच्चा हो जाता है । अपने सारे संबंधों को देखिए और उन्हें परखिए , यदि हमें कड़वाहट की अनुभूति होती है तो आप अवश्य ही पायेंगे कि हमारा अंहकार बढ़ गया है । जब भी संबंध में किसी एक का अहंकार बढ़ जाता है तो कदाचित वह संबंध दूसरों के लिए बोझ बन जाता है । जैसे प्रेम के लिए किसी प्रकार की मांग विष है वैसे ही अंहकार किसी भी संबंध के लिए जहर है । आशा करते हैं कि हमारा ये विषय हमारे जीवन में कुछ संबंधो को चरितार्थ करने के लिए अर्थ भरेगा ।। विचार स्वयं कीजियेगा ।।

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