मन के हारे हार है, मन के जीते जीत यह बात कई बार आपके मुख से निकली होगी और बहुधा दूसरों के द्वारा भी सुनी होगी। जीवन का बहुत बड़ा रहस्य इस साधारण सी लोकोक्ति में छिपा है। जिसका मन हार जाता है।। फिर चाहे दुनिया के कितने भी साधन और शक्ति उसके पास क्यों ना हो वह जरूर पराजित होता है। कुछ ना होते हुए भी मनोबल जिसका बना हुआ है वह एक दिन जरूर विजयी होता है। इंसान की वास्तविक ताकत तो उसका स्वयं का आत्मबल ही है। मनोबल से हीन व्यक्ति तो निर्जीव ही है।
शरीर कितना भी हृष्ट पुष्ट हो, आसान सा कार्य हो लेकिन शरीर को कार्य करने के लिए प्रेरित करने वाला तो मन ही है।सारे कार्य मन के द्वारा ही तो संचालित होते हैं। मन से कभी भी हार मत मानना, नहीं तो आसान सा जीवन कठिन हो जाएगा। रिश्ते अगर दिल में हों तो तोड़ने से भी नहीं टूटते,और अगर दिमाग में हों तो जोड़ने से भी नहीं जुड़ते।।
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अगर कोई व्यक्ति स्वयं आनंद से भरी जिन्दगी नहीं जी नहीं पा रहा, दुखी है, वह आपके आनंद में क्या सहयोग करेगा वह आपको भी नीरसता से भर देगा।। आप मुस्कुरायेंगे तो वह आनंदित नहीं होगा। आप नाचेंगे तो भी उसे अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि वह स्वयं नहीं नाच सकता। उसके अपने हाथ-पैर खुद काट डाले हैं।। केवल वही आपके जीवन में रोशनी की किरण ला सकता है। जिसका अपना जीवन रोशनी में भरा हुआ है। हृदय में प्रेम हिलोरें ले रहा है।। जिसका हृदय करुणा से भरा हुआ है। जिसने बेशर्त जीवन जिया है।। पाप एक ऐसा प्रोडक्ट हे जो खरीदने में सस्ता लगता हे पर उसका दाम चुकाते चुकाते जन्मो जनम निकल जाते हैं।।