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शरीर, इंद्रियां, मन, बुद्धि आदि सभी पदार्थ हमें संसार से मिले हैं, यह कभी अपने नहीं हैं और अपने होंगे भी नहीं अतः इनको अपना और अपने लिए मानकर इनसे सुख भोगना ही बंधन है। इस बंधन से छूटने का यही सरल उपाय है।। कि जिनसे ये पदार्थ हमें मिले हैं, इन्हें उन्हीं का मानते हुए उन्हीं की सेवा में निष्काम भाव पूर्वक लगा दें। यही हमारा परम कर्तव्य है।साधकों के मन में प्रायः ऐसी भावना पैदा हो जाती है कि अगर हम संसार की सेवा करेंगे तो उसमें हमारी आसक्ति हो जाएगी और हम संसार में फंस जाएंगे परंतु भगवान् के वचनों से यह सिद्ध होता है।। कि फंसने का कारण सेवा नहीं है, प्रत्युत अपने लिए कुछ भी लेने का भाव ही है। इसलिए लेने का भाव छोड़कर देवताओं की तरह दूसरों को सुख पहुंचाना ही मनुष्य मात्र का परम कर्तव्य है।। दुनिया का सबसे खूबसूरत म्यूजिक अपनी हार्टबीट है, क्योकि इसे खुद भगवान ने कंपोज किया है। इसलिये हमेशा दिल की सुनें।।
[ जो नहीं देखना चाहिए उसकी तरफ से नेत्र बन्द कर लो या गर्दन झुका लो। बाह्य धन, कूटुम्ब, मान की हानि प्रसन्न्ता से सहन कर लो परन्तु अपनी वृति को क्रोध में लाकर आंतरिक हानि मत करो।। जो सतगुरु का सुमिरण करते हैं। उन्हें सतगुरु भी याद करते हैं, और कठिन समय में शीघ्र सहायता करते हैं।। आत्मिक मार्ग में यदि घर के संबंधी भी रुकावट डालते हैं तो उन्हें भी अपना मित्र न समझो। सब आश्रय छोड़ कर केवल एक सतगुरु का आश्रय लो।। जो व्यक्ति दूसरों की बातें आपसे करता है। निश्चय जानो कि वह आपकी बातें भी दूसरों से करता होगा। उनसे दिल की बात मत करो।।
[: दुःखों को समूल नष्ट करना चाहते हो तो उन्हें संतोष पूर्वक सहन किये जाओ। आँख, कान और मुख बन्द करके अंतर्धयान लगाओ तो आन्तरिक शक्ति प्रस्फुटित हो जायेगी जिससे मालिक के दर्शन कर सकोगे, उनकी आवाज सुन सकोगे और उनसे बातचीत भी कर सकोगे।।सम्भल जाओ, मन रूपी शत्रु को मित्र समझकर उससे एकरूप न हो जाओ। यदि सच्चे मित्र सतगुरु की सम्मति प्रिय नहीं लगती तो धोखा खाओगे।। मायावी वस्तुओं की प्रीत ह्रदय से निकालोगे तो मालिक का निवास होगा। जब मालिक निवास कर लेंगे तो सांसारिक वस्तुएँ तुम्हारे पीछे फिरेंगी।। भक्ति-मार्ग की सुनी-सुनाई व्याख्या तो बहुत करते हैं। परन्तु हाथ पकड़ कर तो केवल सतगुरु ही चलाते हैं।।

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