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संसार में आपको ऐसे कई लोग मिलेंगे जो आपको बताएंगे कि “क्या करना है।” किन्तु उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात ये है कि “क्या नहीं करना?” आज मैं आपको ऐसी ही तीन बातें बताना वाला हूँ जो आपके जीवन में नहीं करनी है !

पहली बात – आनंद में कभी वचन मत दो। आनंद आपके तर्क को हर लेता है और फिर आनंद में दिया गया ये वचन बाद में गले की फास बन जाता है !

दूसरी बात – कभी भी क्रोध में उत्तर मत दो। क्रोध आपके विवेक को खा जाता है, भविष्य दृष्टि को बाधित कर देता है और फिर कुछ क्षण के लिए आया ये क्रोध, इसमें दिया गया उत्तर बाद में जीवन भर के लिए प्रश्न बन जाता है और

तीसरी बात – कभी भी दुःख में निर्णय मत लो। दुःख आपके सोचने-समझने की    क्षमता को सीमित कर देता है और दुखी मन से लिए गए निर्णय सदा दुःख ही देते है !

सच कहा जाये तो वचन, उत्तर और निर्णय कभी भी जीवन में सोच विचार करके ही लेने या देने चाहिए। सोच-विचार करके कार्य करोगे तो इस संसार में किसी भी समस्या का हल बुझना नहीं पड़ेगा !!

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जिन्दगी में मन लगाना है तो प्रभु में ही लगाना। अन्यथा तुम अपूर्ण और अधूरे ही जियोगे और अधूरे ही जाओगे। ऐसा नहीं है कि आदमी पूर्ण होकर नहीं जी सकता। जी सकता है पर वह पूर्णता प्राप्त तो परमात्मा के संग से ही होगी !

परमात्मा के संग होने से असंभव भी संभव हो जाता है और संग ना होने से संभव भी असंभव हो जाता है। अर्जुन अकेला था तो उससे युद्ध में खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था। जब श्री कृष्ण के संग होने का अहसास हुआ तो पूरा मैदान जीत लिया !

संग होने का अर्थ 24 घंटे राम-राम रटना या केवल मंदिर में जाना नहीं है। यह तो सारी दुनिया कर रही है। कौन आनन्द और पूर्णता को उपलब्ध हुआ ? भीतर ह्रदय में यह बैठ जाना कि श्री हरि ही मेरे अपने हैं संसार में बस। अर्जुन की तरह सारथि बनालो श्रीकृष्ण को , अपने आप मंजिल तक ले जायेंगे !!
व्यवहारिक नहीं अब दुनिया व्यवसायिक है ..!
संबंध उनसे ही मधुर है जिनसे मुनाफ़ा अधिक है ..!!!

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कभी-कभी आपके मन में ये प्रश्न तो उठता होगा कि ये “प्रेम” क्या है? कैसे समझा जाये इस प्रेम को? उत्तर बड़ा ही सरल है जब तक आप प्रेम करोगे नहीं तब तक आप प्रेम को समझोगे नहीं !

यदि रत्न बन कर मुकुट में सजना हो तो हीरे को तराशे जाने का दुःख तो सहना ही पड़ता है। प्रेम का उचित अर्थ समझना हो तो मोह को त्याग के समर्पण करना ही होगा !

जो प्रेम किसी को पाने के लिए  किया जाए वो प्रेम, प्रेम नहीं “मोह” है। इसलिए समर्पण कीजिये अपना, अपने अहंकार का, अपने अस्तित्व का, मोह का और देखिये आपका प्रेम स्वयं आपके साथ होगा !!

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जीवन में कभी भी लक्ष्य को प्राप्त करना हो तो व्यक्ति दो भाग साथ लेकर चलता है। पहला – अपने लक्ष्य को पाने का निश्चय और दूसरा – अपने लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग, सब यही करते है !

किन्तु सब अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते, क्यों? क्योंकि लक्ष्य ना मिल पाने की स्थिति में व्यक्ति को कुछ बदलना होता है। कुछ अपना निश्चय बदल लेते है, कुछ अपना मार्ग !

जो अपना मार्ग बदल कर प्रयास करते है उन्हें सफलता प्राप्त हो ही जाती है। किन्तु अपना निश्चय बदलने वाले सफलता का स्वाद कभी नहीं चख पाते !

इसलिए अपना निश्चय कभी मत बदलिए, क्योंकि निश्चय खो देने पर चन्द्रमा भी पूर्णिमा के दिन ग्रहण पा जाता है। अपना निश्चय बनाये रखे, आपको सफलता अवश्य मिलेगी !!

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अपने महल के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़ा व्यक्ति उसे भी एक “भय” होता ही है। भय उस महल के नींव के हिल जाने का, भय अपना पतन हो जाने का और इसी कारण से उस ऊंचाई का सम्पूर्ण आनंद वो ले नहीं पाता !

किन्तु क्या कभी आपने किसी वृक्ष की डाली पर बैठे किसी पंछी को देखा है? उस डाली के हिल जाने से उसे गिर जाने का भय नहीं होता, क्यों? क्योंकि उसे अपने पंखों पर विश्वास है !

इसी प्रकार हम में से अधिकतर लोग किसी ना किसी सहायता से ऊंचाई पर पहुंचे है। किसी की सहायता से सफलता प्राप्त करते है। किन्तु सफलता का आनंद केवल वही प्राप्त कर सकते है जिन्हें गिरने का भय ना हो !

इसीलिए किसी की सहायता पर नहीं, स्वयं के सामर्थ्य पर विश्वास कीजिये !!

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