Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM


इसके पहले कि आप किसी को आनंदित करें, आपको अपने भीतर आनंद की बांसुरी बजानी पड़ेगी, आनंद का झरना आपके ह्रदय से फूटना चाहिए।। आनंदित होने का एक ही उपाय है। ध्यान ध्यान के अतिरिक्त आनंदित होने का कोई उपाय नहीं है।। ध्यान करने वाला जहाँ भी है, वहीँ आनंद की वर्षा हो सकती है। वह अगर नरक में हो तो भी स्वर्ग में ही होता है।। उसे नरक भेजने का कोई उपाय नहीं है। वह जहां है, वहीं स्वर्ग है।।

      
               🙏

[ पच्चीस पैसे की भिंडी और मनुष्य के संबंधों की कीमत :-

एक-एक भिंडी को प्यार से धोते पोंछते हुये काट रहे थे। अचानक एक भिंडी के ऊपरी हिस्से में छेद दिख गया।। सोचा भिंडी खराब हो गई, फेंक दे, लेकिन नहीं। ऊपर से थोड़ा काटा। कटे हुये हिस्से को फेंक दिया। फिर ध्यान से बची भिंडी को देखा।। शायद कुछ और हिस्सा खराब था। थोड़ा और काटा और फेंक दिया। फिर तसल्ली की, बाकी भिंडी ठीक है।। कि नहीं तसल्ली होने पर काट के सब्जी बनाने के लिये रखी भिंडी में मिला दिया। वाह क्या बात है, पच्चीस पैसे की भिंडी को भी हम कितने ख्याल से, ध्यान से सुधारते हैं।। प्यार से काटते हैं। जितना हिस्सा सड़ा है।। उतना ही काट के अलग करते हैं, बाक़ी अच्छे हिस्से को स्वीकार कर लेते हैं। ये क़ाबिले तारीफ है।। लेकिन अफसोस इंसानों के लिये कठोर हो जाते हैं। एक ग़लती दिखी नहीं कि उसके पूरे व्यक्तित्व को काट के फेंक देते हैं।। उसके बरसों के अच्छे कार्यों को दरकिनार कर देते हैं। महज अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए उससे हर नाता तोड़ देते हैं।। संबंधों की बलि चढ़ा देते हैं। क्या आदमी की कीमत पच्चीस पैसे की एक भिंडी से भी कम हो गई है।।
विचार_अवश्य करें। 😊
प्रेरक-आदमी-कीमत -भिंडी-संबंध।।
[एक तौलिया से पूरा घर नहाता था, दूध का नम्बर बारी-बारी आता था। छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था।। पिताजी से मार का डर सबको सताता था। बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था।। पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था। बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था।। बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था। धन का महत्व कभी कोई सोच भी न पाता था।। बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का नाता था।। मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था। एक छोटी सी सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।। अब तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ, माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे, बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये, कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये, भाईयो से दूर हो गये, बहन से प्रेम कम हो गया, धन प्रमुख हो गया,अब सब नया चाहिये, नाना आदि औपचारिक हो गये। बटुऐ में नोट हो गये।। कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये। बहुत पाया मगर काफी कुछ खो गये।। रिश्तो के अर्थ बदल गये, हम जीते तो लगते है। पर संवेदनहीन हो गये।।

         🙏

    

कहां थे, कहां पहुँच गये।🤔❓
[: जैसे फूल में से सहज स्वभाव सुगन्ध आती है। इसी प्रकार तुम अगर अपने को अच्छा समझते हो तो तुमसे भी स्वतः अच्छाई ही प्रकट होनी चाहिये।। भला करोगे तो भला ही होगा। अच्छे व्यक्ति को सारा जग अच्छा और बुरे व्यक्ति को सारा जग बुरा दृष्टि गोचर होता है।। घृणा करोगे तो घृणा मिलेगी, प्रेम करोगे तो प्रेम मिलेगा। यदि आप दुःखी नहीं रहना चाहते तो दूसरों को दुःख क्यों पहुँचाते हो।।

Recommended Articles

Leave A Comment