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सत्य को सुनना ही पर्याप्त नहीं होता अपितु सत्य को चुनना भी जरुरी है। सत्य की चर्चा करना एक बात है और सत्य का चर्या बन जाना एक बात है। आदर्शों का वाणी का आभूषण मात्र बनने से कल्याण नहीं होता, आदर्श आचरण के रूप में घटित हों, तब कल्याण निश्चित है।

      क्या मिश्री का स्मरण करने मात्र से मुँह में मिठास घुल जायेगी ? मिश्री का आस्वादन करना पड़ेगा। प्यास तो तभी बुझती है जब कंठ में शीतल जल उतर जाए। यद्यपि परमात्मा के नाम की ऐसी दिव्य महिमा है कि वह स्मरण मात्र से भी कल्याण करने में समर्थ है। 

     भगवान राम और कृष्ण इसलिए आज तक हर घर में और ह्रदय में विराजमान हैं क्योंकि उन्होने आदर्शों को, मूल्यों को अपने जीवन में उतारा। दुनिया का सबसे प्रभावी उपदेश वही होता है जो जीभ से नहीं जीवन से दिया जाता है। सत्य से प्रेम मत करो, प्रेम ही आपके जीवन का सत्य बन जाए। 

जय महादेव
[किसी से बदला लेने का भाव/विचार हमारे ही तन/मन पर विपरीत प्रभाव डालता है और हम स्वयं भी इस आग में जलने लगते हैं। इस प्रकार की जलन/व्याकुलता में दूसरों के साथ-साथ अपना भी नुकसान करने लगते हैं, जैसे तीली दूसरे को जलाने से पूर्व खुद जलती है। दूसरा कार्य/व्यवहार के लिए अन्तत: स्वयं उतरदायी होगा। दूसरे से ‘बदला लेने के भाव’ को महत्त्व देने के बजाय, हमें ‘स्वयं में बदलाव/समझ/आत्मविश्लेषण के मार्ग की ओर अग्रसरित करना ही श्रेयस्कर होगा। सहनशीलता और समत्व के शीतल जल से जितनी जल्दी हो सके इस आग को रोकना ही बुद्धिमत्ता है। बदले की भावना हमारे समय को ही नष्ट नहीं करती, अपितु हमारे स्वास्थ्य तक को चौपट कर जाती है। दुनिया को बदल पाना बड़ा मुश्किल/असम्भव है। इसलिए स्वयं को बदलने में ऊर्जा लगाना ही सुखी/सफल होने का एक मात्र उपाय है।।
{यदि किसी से जाने अनजाने में गलती हो जाती है, और खासकर जब कोई लड़की शादी करके अपने पति के घर आती है। तो अपने ससुराल से एकदम अनजान होती है ऐसे में उसे अपने ससुराल के हर कायदे कानून नही मालूम होते है।। और घर में सामान कहा रखा गया है उसे शुरू में लोगो की सहायता लेना ही पड़ता है। ऐसे में आपकी पत्नी कोई गलती कर भी दे, तो आपका यह फर्ज बनता है।। की उसे तुरंत माफ करते हुए उसके मदद के लिए तैयार हो जाये क्यूकी माफ़ करना समझदारो की निशानी है।। किसी भी रिस्तो को बहस से कभी भी जीता नही जा सकता है। वरन बहस करने से एक दुसरे में के मन में मनमुटाव की भावना भी आ सकती है।। ऐसी स्थिति से बचने के लिए पति पत्नी को आपसी तकरार और बहस से बचना चाहिए और इसके अपेक्षा एक दुसरे को सुनने और समझने में ज्यादा दिलचस्पी होनी चाहिए ऐसा करने से हम एक दुसरे को अच्छी तरह से समझ सकते है। और फिर एक दुसरे के प्रति सहानुभूति भी रखने में सक्षम होंगे।।
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जीवन में सुख-दुःख का चक्र चलता रहता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बड़ी से बड़ी विपदा को भी हँसकर झेल जाते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक दुःख से ही इतने टूट जाते हैं कि पूरे जीवन उस दुःख से मुक्त नहीं हो पाते हैं। हमेशा अपने दुःख को सीने से लगाये घूमते रहते हैं।

जबकि हकीकत यह है कि जो बीत गया सो बीत गया। अब उसमे तो कुछ नहीं किया जा सकता पर इतना जरूर है कि उसे भुलाकर अपने भविष्य को एक नई दिशा देने के बारे में तो सोचा ही जा सकता है।

हम बच्चों को बहुत सारी बातें सिखाते हैं मगर उनसे कुछ भी नहीं सीखते। बच्चों से भूलने की कला हमको सीखनी चाहिए। हम बच्चों पर गुस्सा करते हैं, उन्हें डांटते भी है लेकिन बच्चे थोड़ी देर बाद उस बुरे अनुभव को भूल जाते हैं।

हैं सबके दुःख एक से मगर हौसले जुदा-जुदा।
कोई टूटकर बिखर गया कोई मुस्कुराकर चल दिया॥

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मात्र केवल राम-राम जपने से ही कोई श्री राम का प्रिय नहीं बन जाता श्री राम जैसा जीवन जीकर ही श्री राम का प्रिय बना जा सकता है। अयोध्या की सत्ता अगर वो स्वीकार कर लेते तो राजा राम बन जाते पर सत्ता को ठोकर मारकर वो हर दिल के राजा बन गए पूरी दुनिया में श्रीराम जैसा व्यक्तित्व आज तक नहीं हुआ। अच्छे शासक का यही तो गुण होता है दुखी – पीड़ितों के द्वार पर स्वयं पहुँच जाये। अच्छा पुत्र वही तो होता है जो पिता के सम्मान की रक्षा के लिए वन-वन जाने को तैयार हो जाता है।। अच्छे भाई का यही तो गुण होता है जो अपने भाई को सुख देंने के लिए स्वयं सुखों को छोड़ दे। एक आदर्श पुत्र, आदर्श पिता, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श शिष्य, आदर्श मित्र, आदर्श राजा सब गुण श्रीराम के भीतर थे।। उनका एक भी गुण आपके भीतर आ जाये तो समझना आपने रामायण पूरी पढ़ ली धर्म क्या है। भगवान् श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन को देख लो, समझ आ जायेगा।।

जय श्री राधे कृष्ण

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