कामना रहित कर्म है मोक्ष का द्वार
संसार में आवागमन रोकने के लिए कर्म बीज को नष्ट करना बहुत आवश्यक है। जिसने अपने कर्मों को नष्ट कर लिया है उसका संसार में भ्रमण रुक जाता है। जिस प्रकार दग्धबीजों में पुन: अंकुर फूटने की शक्ति नहीं होती है उसी प्रकार कर्म बीजों के नष्ट हो जाने पर उनमें भव रुपी अंकुर उत्पन्न करने की शक्ति नहीं रहती। गीता में कहा गया है कि जिस व्यक्ति के सारे कर्म कामना और संकल्प से रहित होते हैं, उसी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
[ कर्म और फल का है आपस में गहरा संबंध ***
कर्मवाद के सिद्धांत के अनुसार जो प्राणी जैसा कर्म करता है उसको उसका फल अवश्य भोगना पड़ता है। कर्म जड़ होने के कारण न तो स्वयं को जानते हैं और न अपने फल को जानते हैं। किस कर्म का फल क्या होगा? कर्म फल उदय में कब आएगा इन सारी बातों की जानकारी ईश्वर को रहती है। वृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार मनुष्य अपने कर्मों एवं आचरण से अपना भविष्य बनाता है। जो जैसा आचरण करता है वह वैसा ही कल पाता है। अच्छे कर्मों वाला अच्छा जन्म पाएगा और दुष्कर्मों वाला बुरा जन्म पाएगा। अच्छे कर्मों से पुण्य और बुरे कर्मों से पाप होता है। श्वेताश्वतर उपनिषद के अनुसार शरीर रुपी वृक्ष पर ईश्वर और जीव ये दोनों सदा साथ रहने वाले दो भिन्न पक्षी हैं। इनमें जीवात्म रूप एक पक्षी सुख-दुख का अनुभव करता हुआ कर्म फल को भोगता है, दूसरा ईश्वर रूपी पक्षी कर्मफलों का भोग नहीं करता, केवल उनका साथी बना रहता है। ______
प्रश्न सत्य के मिलने या ना मिलने का नहीं है। सवाल तुम्हारे सत्य होने का है।। तुम अभी सत्य को उपलब्ध हुए या नहीं। बिना सत्य को जीये परमात्मा मिलेगा भी नहीं।। जैसे पानी-पानी चिल्लाने से किसी की प्यास नहीं बुझ सकती। बैसे ही सत्य-सत्य कहने से कोई सत्य को अनुभव नहीं कर सकता। “”प्रकाशे क्वापि पात्रे ” नारद भक्ति सूत्र में वर्णन आया है। कि वह प्रकाश किसी विरले ( पात्र ) को ही प्राप्त होता है।। तुम केवल अपने जीवन के असत्य को, गंदगी को, तमस को छोड़ने का चिंतन करो बस। सत्य खोजना नहीं है, तुम्हें सत्य होना है। तुम सत्य लेकर पैदा हुए हो, तुम उसे लिए बैठे हो।। ईश्वर कोई दृश्य, वस्तु, या पदार्थ नहीं है, जो तुरंत मिल जायेगा ईश्वर अनुभूति का विषय है। वह उन्हीं को मिलता है। जो जिन्दगी दांव पर लगाने का तैयार होते हैं।।
*जय श्री राधे कृष्णा।।*