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: 🌹गृहस्थ गीता के अनमोल वचन🌹

जीवन में चार का महत्व :-

१. चार बातों को याद रखे :- बड़े बूढ़ो का आदर करना, छोटों की रक्षा करना एवं उनपर स्नेह करना, बुद्धिमानो से सलाह लेना और मूर्खो के साथ कभी न उलझना !

२. चार चीजें पहले दुर्बल दिखती है परन्तु परवाह न करने पर बढ़कर दुःख का कारण बनती है :- अग्नि, रोग, ऋण और पाप !

३. चार चीजो का सदा सेवन करना चाहिए :- सत्संग, संतोष, दान और दया !

४. चार अवस्थाओ में आदमी बिगड़ता है :- जवानी, धन, अधिकार और अविवेक !

५. चार चीजे मनुष्य को बड़े भाग्य से मिलते है :- भगवान को याद रखने की लगन, संतो की संगती, चरित्र की निर्मलता और उदारता !

६. चार गुण बहुत दुर्लभ है :- धन में पवित्रता, दान में विनय, वीरता में दया और अधिकार में निराभिमानता !

७. चार चीजो पर भरोसा मत करो :- बिना जीता हुआ मन, शत्रु की प्रीति, स्वार्थी की खुशामद और बाजारू ज्योतिषियों की भविष्यवाणी !

८. चार चीजो पर भरोसा रखो :- सत्य, पुरुषार्थ, स्वार्थहीन और मित्र !

९. चार चीजे जाकर फिर नहीं लौटती :- मुह से निकली बात, कमान से निकला तीर, बीती हुई उम्र और मिटा हुआ ज्ञान !

१०. चार बातों को हमेशा याद रखे :- दूसरे के द्वारा अपने ऊपर किया गया उपकार, अपने द्वारा दूसरे पर किया गया अपकार, मृत्यु और भगवान !

११. चार के संग से बचने की चेस्टा करे :- नास्तिक, अन्याय का धन, पर(परायी) नारी और परनिन्दा !

१२. चार चीजो पर मनुष्य का बस नहीं चलता :- जीवन, मरण, यश और अपयश !

१३. चार पर परिचय चार अवस्थाओं में मिलता है :- दरिद्रता में मित्र का, निर्धनता में स्त्री का, रण में शूरवीर का और मदनामी में बंधू-बान्धवो का !

१४. चार बातों में मनुष्य का कल्याण है :- वाणी के सयं में, अल्प निद्रा में, अल्प आहार में और एकांत के भवत्स्मरण में !

१५. शुद्ध साधना के लिए चार बातो का पालन आवश्यक है :- भूख से काम खाना, लोक प्रतिष्ठा का त्याग, निर्धनता का स्वीकार और ईश्वर की इच्छा में संतोष !

१६. चार प्रकार के मनुष्य होते है : (क) मक्खीचूस – न आप खाय और न दुसरो को दे ! (ख) कंजूस – आप तो खाय पर दुसरो को न दे ! (ग) उदार – आप भी खाय और दूसरे को भी दे ! (घ) दाता – आप न खाय और दूसरे को दे ! यदि सब लोग दाता नहीं बन सकते तो कम से कम उदार तो बनना ही चाहिए !

१७. मन के चार प्रकार है :- धर्म से विमुख जीव का मन मुर्दा है, पापी का मन रोगी है, लोभी तथा स्वार्थी का मन आलसी है और भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है

जय श्री राधे कृष्ण
: मंत्र सिद्घ होते ही प्रकट होने लगते हैं यह
लक्षण
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ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए अथवा अपनी मनोकामना पूरी करने के
लिए मंत्र जप किया जाता है। मंत्र जप सफल हुआ या नहीं इसके संकेत स्वयं ही मिलने लगते हैं।
जब मंत्र, साधक के भ्रूमध्य या आज्ञा-चक्र में अग्नि-अक्षरों में लिखा दिखाई दे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ समझाना चाहिए ।
जप में चित्त की एकाग्रता ही सफलता की गारंटी है। मंत्र का सीधा सम्बन्ध ध्वनि से है। ध्वनि प्रकाश, ताप, अणु-शक्ति, विधुत -शक्ति की भांति एक प्रत्यक्ष शक्ति है।
मन्त्रों में नियत अक्षरों का एक खास क्रम, लय और आवर्तिता से उपयोग होता है। इसमें प्रयुक्त शब्द का निश्चित
भार, रूप, आकार, शक्ति, गुण और रंग होता हैं। एक निश्चित उर्जा, फ्रिक्वेन्सि और वेवलेंथ होती हैं। इन बारीकियों का धयान रखा जाए तो मंत्रों की मिट्टी से
बनायी गई आकृति से भी उसी तरह
की ध्वनी आती है। उदाहरण के लिए
गीली मिट्टी से ॐ की पोली आकृति बनाई जाए और उसके एक सिरे पर फूंक मारी जाए तो ॐ की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है जैसे पास ही कोई ओम मन्त्र का उच्चारण कर रहा हो। जप के दौरान उत्पन्न होने वाली ध्वनि एक कम्पन
लाती है। उस से सूक्ष्म ऊर्जा-गुच्छ पैदा होते है और वे ही घनी भूत होकर मन्त्र को सफल बनाते हैं।
सफलता की उस प्रक्रिया पर ज्यादा कुछ
कहना जल्दबाजी होग। सिर्फ उन
की सफलता के लक्षणों की बारे में
बताया जा सकता है। सफलता के जो लक्षण हैं उनमें कुछ इस प्रकार है।
जब बिना जाप किये साधक को लगे की मंत्र-जाप स्वतः चल रहा हैं तो मंत्र
की सिद्धि होनी अभिष्ट हैं। साधक सदैव अपने इष्ट -देव की उपस्थिति अनुभव
करे और उनके दिव्य-गुणों से अपने को भरा समझे तो मंत्र-सिद्ध हुआ जाने। शुद्धता, पवित्रता और चेतना का उर्ध्गमन
का अनुभव करे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ जानें मंत्र सिद्धि के पश्चात साधक की शुभ और सात्विक इच्छाए पूरी होने लगती हैं |
प्रातःकाल बिना किसी से बोले निम्न मंत्र का मात्र तीन बार जप कर लें तो जीवन में आश्चर्य जनक परिवर्तन अपने आप दिखेगा। इससे आपकी स्मरण शक्ति बढ़ने के साथ ही सदैव तर्क में विजय होगी और आपका एक-एक शब्द जबर्दस्त रूप से प्रभावशाली होगा । शर्त यह है कि बिस्तर से उठते ही मुख से सबसे पहले इसी मंत्र का तीन बार उच्चारण करना जरूरी है। अर्थात जगने के बाद यदि मुँह से कोई शब्द निकलेगा तो यही मंत्र निकलेगा ।

ऊँ मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमगम:शाश्वती समाः ।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काम मोहितम् ॥

इस मंत्र का प्रभाव सप्ताह भर में दिखना आरंभ हो जाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति भाषण कला, कविता और साहित्य लेखन तथा तर्क में प्रवीण हो जाता है। पढ़ने वाले बच्चे इसका प्रयोग करें तो उनकी स्मरण शक्ति में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी होती है।
इसके साथ ही विद्या-बुद्धि और स्मरण शक्ति के लिए सरस्वती के बीज मंत्र ‘ऎं’ का जप करें । जब भी आप फुरसत में हों, इस मंत्र का जप करें। एक लाख से ज्यादा हो जाने पर इसका फायदा अपने आप लगेगा। यह जरूरी नहीं कि एक स्थान पर बैठकर ही इसका जप करें, आप जब कभी फुर्सत में हों, इसका जाप करें। आप जानते हैं,जप में माला का प्रयोग क्यों होता है ? आपने देखा होगा कि बहुत से लोग ध्यान करने के लिए और भगवान का नाम जपने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग
उंगलियों पर गिन कर भी ध्यान जप करते हैं। लेकिन शास्त्रों में माला पर जप करना अधिक शुद्घ और पुण्यदायी कहा गया है। इसके पीछे धार्मिक मान्याताओं के अलावा वैज्ञानिक कारण भी है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो अंगिरा ऋषि के
कथन पर ध्यान देना होगा। अंगिरा ऋषि के अनुसार…

“असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत ।”

अर्थात – बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है ।
इसका कारण यह है कि, जप से पहले जप की संख्या का संकल्प लेना आवश्यक होता है। संकल्प संख्या में कम ज्यादा होने पर जप निष्फल माना जाता है। इसलिए त्रुटि रहित जप के लिए माला का प्रयोग उत्तम माना गया है ।
जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से यह माना जाता है कि अंगूठे और उंगली पर माला का दबाव पड़ने से एक विद्युत तरंग उत्पन्न होती है। यह धमनी के रास्ते हृदय चक्र को प्रभावित करता है जिससे मन एकाग्र और शुद्घ होता है। तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है। मध्यमा उंगली का हृदय से सीधा संबंध होता है। हृदय में आत्मा का वास है इसलिए मध्यमा उंगली और उंगूठे से जप किया जाता है !
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ग्रहो का प्रभाव

हर इंसान के पास दिल दिमाग हाथ पैर और शरीर के हिस्से एक जैसे होते है शक्ल अलग अलग होती है। भगवान् ने सबका शरीर एक समान बनाया है पर सबकी सोच अलग अलग है। यही खेल ग्रहो का है। हर इंसान की कुंडली में ग्रहो की स्थिति अलग अलग है। कुछ लोग सात्विक है कुछ लोग तामसिक है। जैसे गृह है वैसी ही उनकी सोच है।
दोस्तों यह सारा रेडीएशन का खेल है किरणों का। गृह तो हमसे बहुत दूर है पर उनसे निकलने वाली ऊर्जा से हम प्रभावित रहते है। और उनकी यह रेडीएशन ही हमें अच्छा या बुरा सोचने पर मजबूर करती है। चंद्रमा की हर गृह का अपना एक रंग है और उनकी वही किरणे हमें प्रभावित करती है। आप देखो हम बोलते है कुंडली में सूर्य शनि शत्रु है। मतलब इनकी किरणों में मदभेद है। आप बहुत गर्मी में जाते है तो आप आँखों पर काला चश्मा पहन लेते हो तो आँखों को राहत मिलती है क्योकि काला रंग गर्मी को सोख लेता है। आप कार में काले रंग की फ़िल्म या शीशे चढ़ा लेते हो गर्मी कम हो जाती है, कार में। क्योकि यह रंग सूर्य के दुश्मन है।काला और नीला शनि उसकी किरणों को रोक लेते है। काले बादल सूर्य को ढक देते है और बारिश होती है।इस तरह से यह सब ग्रहो की किरणों का खेल है।

आपके पास मोबाइल है उसमे जो नेटवर्क आता है वो किरणों से आता है। आपको सिग्नल मिलते है और मोबाइल काम करता है पर आपको किरणे तो नहीं दिखाई दे रही है। पर आपका मोबाइल उनको लेकर काम कर रहा है।ऐसे ही हमारा मस्तिष्क एक फ़ोन समझो और यह गृह रेडीएशन है जो हमें एक सोच दे रही है। अगर अच्छे ग्रहो की किरणे हमारे शरीर पर है अच्छा सोचते है बुरे ग्रहो की किरणे बुरा सोचते है।अगर किसी बुरे इंसान पर किसी डाकू चोर बदमाश पर अच्छे गृह की दशा आता है वो भी साधू बन जाता है। जैसे गौतम बुध ने अंगुलिमार को ज्ञान दिया और वो साधू बन गया महर्षि वाल्मीकि पहले डाकू थे फिर बाद में ऋषि बन गये।

इसके विपरीत अगर किसी अच्छे महान इंसान पर बुरे गृह की दशा आ जाये जो उसकी कुंडली में खराब है तो वो भी बुरी किरणों से प्रभावित होकर बुरे काम करने लगेगा जैसे बहुत सारे साधू संत के उदहरण आपके पास है में उनके नाम नहीं लूंगा आप उनके नाम से परिचित हो।

आप एक एंटीना हो यह गृह सेटलाइट है उनकी किरणे अच्छी जब आपकी शरीर पर पड़ेगी तब आपको एक अच्छी सोच मिलेगी और आप आगे बढ़ोगे यह सारा खेल किरणों का है वो आपको एक सोच देते है।आप कितना महंगा ही मोबाइल क्यों न ले लो अगर उसमे नेटवर्क अच्छा नहीं आ रहा वो आपके लिए बेकार है।इस प्रकार शरीर का भी हाल है जब तक ग्रहो की रेडीएशन आपके शरीर पर अच्छी न पड़े आप न सोच सकते न कुछ कर सकते।यही खेल है इन ग्रहो का।
: आस्तिकता की आधारशिलाएं

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जो साधना हम करते हैं उसे हम आदर पूर्वक मन में बुद्धि में उतारने की चेष्टा करें और भगवान की ओर देखें

मनुष्य के मन में विचारों की एक लहर चलती रहती है-- एक के पीछे एक, बिल्कुल जुड़ी हुई जो ऊँचे साधक होते हैं ,उनका मन शांत रहता है --स्फुरणा से रहित ;किंतु साधारण मनुष्यों का तो मन किसी -ना -किसी उपापोह में लगा ही रहता है। जगने से सोने तक वे विचारों के भवर में पड़े रह कर नाचते रहते हैं ।उन्हें शांति की नींद भी नहीं आती ।वैसे ही विचारों से प्रभावित स्वपन के जाल में झटपट करते हुए उनकी रात कट जाती है ।बड़ी दयनीय दशा होती है उनकी।

प्रारब्धवश जब सफलता के दिन रहते हैं तो उस समय अहंकार बड़ा सुंदर रूप धारण कर पनपने लगता है, नई -नई सफलता प्राप्त करने की नई-नई योजना बनने लगती है और जब प्रारंभ दुख- विपत्ति का सृजन करने लगता है ,तब वह बढ़ा हुआ अहंकार अथवा पहले केसांचे का ही अहंकार हाय तौबा मचाने लगता है ,ठेस -पर-ठेस लग कर ऐसा व्याकुल हो जाता है कि पूछो मत ।

बीच में कुछ परमार्थ-साधक ऐसे होते हैं ,जो तोते की तरह साधना का पाठ रटते हैं ।बड़ा अच्छा है कि तोते की तरह भी भगवान की ओर बढ़ने का पाठ रटना; किंतु होना चाहिए कि यह कि जीवन में श्वास समाप्त होने से पहले बहुत पहले ही हम सत्य का साक्षात्कार कर लें। उसके लिए बहुत परिश्रम की आवश्यकता भी नहीं है ।फिर भी तोते की तरह रटने से काम नहीं चलेगा ।जो साधना हम करते हैं उसे हम मन में, बुद्धि में ,उतारने की चेष्टा करें आदर पूर्वक। यदि अपनी साधना में हमारी आदर बुद्धि होगी तो वह अपने -आप चलत-े फिरते ,खाते -पीते सब समय ही प्रधान बनने लग जाएगी ,मन ही मन उस प्रकार के विचारों की लहरों का प्रबल प्रबल होने लगेगा। बाहर की चेष्टा भी अभ्यासवश ,ऐसी होनी चाहिए, होती रहेगी और भीतर भगवान के विराजने का सुंदर स्थान निर्मित होता रहेगा ।पर यदि साधन में आदर बुद्धि नहीं रहेगी तो फिर वह साधना तोते के पाठ की तरह ही रहेगी।

जहां हमने निश्चय कर लिया कि हमें तो अपनी परमार्थ -साधना को सबसे अधिक आदर का स्थान देना है कि बस, भगवान की कृपा ही –भगवान की अनंत अपरिसीम कृपा ही -अहैतुकी कृपा ही शेष सब काम कर देगी ।विश्वास करें, हमको फिर आगे कुछ भी करना नहीं पड़ेगा ,भगवान की कृपा से सब कुछ अपने आप होकर ही रहेगा ।हमने अभी अनुभव ही नहीं किया कि भगवान की कृपा कैसी अद्भुत वस्तु होती है ।इसलिए हमारी आंखों में कभी- कभी दुख के आंसू ही आ जाते हैं।

हमें यह चाहिए कि हम निश्चय कर लें कि जो भी साधना हम करेंगे ,उसे मन लगाकर करेंगे ,सबसे अधिक आदर उसी को देंगे और भगवान की कृपा का आश्रय कर भारी- से- भारी दुख के अवसर पर आंसू ना बहा कर भगवान की और देखेंगे ।फिर हम देखेंगे क्या होता है ।जिस क्षण इस निश्चय के साथ साधना के पथ पर भगवत कृपा के भरोसे पूरे उत्साह में भरकर पहला कदम बढ़ाया कि भगवत कृपा का परिचय हमें मिलकर ही रहेगा ।ऐसा इसलिए कि करुणा वरुण आलिया भगवान हमारे साथ ही हैं ,अनंत अपरिसीम शक्ति लिए हुए हमारी सहायता के लिए तैयार खड़े हैं ,उन्हें पूरा- पूरा पता है सभी बातों का और वे हमारे अपने -से -अपने हैं ।खुशामद के टट्टू नहीं हैं ,जो प्रतीक्षा करें कि 'यह मेरी खुशामद करें तभी मैं इसकी सहायता करूंगा'। वह तो हमें अपने में मिला लेना चाह रहे हैं और अपनी परम सुखमय ,शांतिमय गोद में बिठा लेना चाह रहै हैं ।हमने साधना में मन लगाया इसका अर्थ यह हुआ कि हमने उनकी ओर चलना आरंभ कर दिया है और उनकी कृपा की ओर उन्मुख हुए ,इसका अर्थ हुआ कि हमने निराश होकर उनकी सहायता प्राप्त करने के लिए अपनी भुजा फैला दी ।बस ,यही तो अपेक्षित है ।यह हुआ कि भगवान सामने आए। यह केवल भावुकता की बात नहीं है ,यह सत्य का सत्य है ।कोई भी यह करके इस सत्य को प्रत्यक्ष अनुभव कर सकता है।


: 🌸 मर्यादा किसे कहते हैं? 🌸💐👏🏻

मित्रो मर्यादा का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। हमारे आपके विचारों में असमानता हो सकती है, लेकिन मर्यादा नही टूटनी चाहियें। जीवन निर्वाह के नियमों को संतुलन में रखने वाली निर्धारित सीमा रेखा को मर्यादा कहा जाता है, जीवन निर्वाह के सभी विषयों एवं सम्बन्धों के नियम निर्धारित होते हैं, ताकि इन्सान का जीवन सुचारू रूप से गतिमान रहे, तथा उन नियमों के द्वारा जीवन का संतुलन बनाए रखने के लिये सीमा तय होती है, ताकि जीवन में किसी प्रकार का असंतुलन ना हो ऐसे नियमों की निर्धारित रेखा को ही मर्यादा कहा गया है।

मर्यादा पालन करना इन्सान के लिए अनिवार्य है, क्योंकि मर्यादा भंग होने अर्थात सीमा रेखा को लांघकर नियमों की अनदेखी करने से इन्सान के जीवन में अनेकों प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं, जिसके कारण जीवन निर्वाह अत्यंत कठिन हो जाता है, जो इन्सान मर्यादा को भलीभांति समझते हैं, तथा पालन करते हैं, उनके जीवन से समस्यायें हमेशा दूर रहती हैं, तथा उनका जीवन आनन्द पूर्वक निर्वाह होता है।

सज्जनों! इन्सान को सर्वप्रथम अपनी मर्यादाएं समझना आवश्यक है, क्योंकि एक पूर्ण मर्यादित इन्सान ही परिवार एवं समाज में सम्मानित जीवन निर्वाह कर सकता है, इन्सान की मर्यादा स्वभाव, व्यवहार एवं आचरण पर निर्भर करती है, इन्सान का स्वभाव भाषा, शब्दों एवं वाणी द्वारा समझा जाता है, सरल भाषा, कर्ण प्रिय शब्द तथा मधुर वाणी इन्सान के स्वभाव की मर्यादा है, जिसे लांघने से इन्सान कटु स्वभाविक समझा जाता है।

दूसरों का सम्मान करने वाला समाज में व्यवहारिक माना जाता है, अधिक बहस करना, आलोचनायें या चापलूसी करना, प्रताड़ित करना, बकवास करना अथवा बात-बात पर टोकना व्यवहार की मर्यादा भंग करना है, जो समाज में इन्सान को अव्यवहारिक प्रमाणित करती है, आचरण की मर्यादा इन्सान के अपराधी होने से ही भंग नहीं होती, अपितु झूट बोलने, बुराई का साथ देने, उधार लेकर ना चुकाने, बहाने बनाने, आवश्यकता पड़ने पर गायब होने, नशा करने, जुआ, सट्टा जैसे अनुचित कार्य करने जैसे अनेकों कारण भी खराब आचरण प्रस्तुत करते हैं।

इन्सान के जीवन में परिवार की मर्यादा बनायें रखना भी अत्यंत आवश्यक होता है, परिवार से जितना अधिकार प्राप्ति का होता है उतना ही कर्तव्य परिवार को प्रदान करने का भी होता है, परिवार द्वारा शिक्षा, परवरिश, गृहस्थ जीवन एवं सुरक्षा प्राप्त होती है तो परिवार की सेवा तथा सुखों का ध्यान रखना भी इन्सान का कर्तव्य है, कोई भी ऐसा कार्य जिससे परिवार के सम्मान में हानि पहुँचे परिवार की मर्यादा भंग करना होता है, जिसके कारण परिवार उसे दोषी समझता है।

इन्सान की परिवार के प्रति कर्तव्य परायणता एवं सम्मान में वृद्धि आवश्यक मर्यादा है, जिसे पूर्ण करने पर ही परिवार में सम्मान प्राप्त होता है, रिश्तों एवं सम्बन्धों की मर्यादा निभाने पर ही रिश्ते कायम रहते हैं, रिश्तों को समय ना देना अथवा रिश्तों पर आवश्यकता से अधिक समय बर्बाद करना रिश्तों को खोखला करना है, इसलिये रिश्तों की मर्यादा बनाए रखना आवश्यक होता है, रिश्ता कितना भी प्रिय हो निजी कार्यों में दखल देना रिश्ते की मर्यादा भंग करना है।

क्योंकि इन्सान के निजी एवं गुप्त कार्यों में बिना अनुमति किर्याशील होना दखल समझा जाता है, तथा समाज ने किसी को भी किसी के जीवन में अनुचित दखल देने की अनुमति नहीं दी है, रिश्ते बुरे समय में सर्वाधिक सहायक होते हैं, परन्तु नित्य रिश्तों से सहायता की आशा रखना भी रिश्तों की मर्यादा भंग करना है, क्योंकि रिश्ते सहायक अवश्य हैं उन्हें व्यापार बनाने से उनका अंत निश्चित होता है।

सज्जनों! इन्सान के परिवारिक सम्बन्धों के अतिरिक्त समाज में सबसे प्रिय सम्बन्ध मित्रता का होता है, जो कभी-कभी परिवारिक रिश्तों से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, मित्रता वैचारिक सम्बन्ध है, अर्थात जिससे विचार मिलते हैं इन्सान उसे मित्र बना लेता है, मित्र कितना भी प्रिय हो यदि वह मर्यादा लांघने की धृष्टता करता है तो सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं, मित्रता में आयु, शिक्षा एवं धन की समानता आवश्यक नहीं होती सिर्फ विचार समान होने पर ही मित्रता कायम रह सकती है।

मित्र का अधिक समय नष्ट करना, बार-बार व असमय घर जाना, निजी जीवन में दखल देना, नित्य सहायता की अपेक्षा करना, अनावश्यक खर्च करवाना, अनुचित शब्दों का उपयोग करना, अधिक परिहास करना जैसे कार्य मित्रता की मर्यादा भंग करते हैं जिसके कारण मित्रता में कटुता उत्पन्न हो जाती है, सम्बन्ध कितना भी प्रिय हो मर्यादाओं का पालन ही उसे सुरक्षित रख सकता है।

इंसानों की तरह विषयों की भी अपनी मर्यादायें होती हैं, जिनका पालन करने से जीवन निर्वाह सरल एवं आनन्दमय हो जाता है, इन्सान के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव विश्वास का होता है, क्योंकि विश्वास के बगैर किसी भी इन्सान से सम्बन्ध या कार्य असंभव हो जाता है, विश्वास के कारण ही धोखे का आरम्भ है, तथा अन्धविश्वास हो तो धोखा निश्चित होता है, इसलिये विश्वास की मर्यादा सावधानी पूर्वक विश्वास करना है सावधानी की मर्यादा लांघते ही विश्वास का विश्वासघात बन जाता है।

इन्सान का शक करना जब तक मर्यादा में होता है वह इन्सान को सतर्क रखता है परन्तु मर्यादा लांघते ही शक सनक बन जाता है जो प्रेम, विश्वास, श्रद्धा का अंत कर देता है, मोह, लोभ, काम, क्रोध, अहंकार, ईर्षा, घृणा, कुंठा, निराशा, आक्रोश, प्रेम, श्रद्धा, शक, विश्वास, ईमानदारी, परोपकार, दान, भीख, चंदा, स्वार्थ, चापलूसी, आलोचना, बहस, तर्क, कोई भी विषय हो जब तक मर्यादा में रहता है कभी हानिप्रद नहीं होता, परन्तु मर्यादा भंग होते ही समस्या अथवा मुसीबत बन जाता है।

अग्नि, जल एवं वायु संसार को जीवन प्रदान करते हैं, परन्तु अपनी मर्यादा लांघते ही प्रलयंकारी बन जाते हैं, जिसका परिणाम सिर्फ तबाही होता है, इन्सान जब तक मर्यादाओं का पालन करता है वह सुखी एवं संतुलित जीवन निर्वाह करता है, भाई-बहनों! किसी भी प्रकार की मर्यादा भंग करने से किसी ना किसी इन्सान से द्वेष आरम्भ हो जाता है तथा समस्यायें उत्पन्न होना आरम्भ हो जाती
।।आध्यात्मिक शिक्षाप्रद कथा,।।

    " करे कोई-भरे कोई "

किसी वृक्ष पर एक कौए और बटेर का बसेरा था । एक बार पक्षियों को जानकारी मिली कि उनके राजा गरुड़ सागर किनारे आने वाले है। सभी पक्षी एकत्रित होकर उनके दर्शनार्थ सागर किनारे की ओर चल पड़े । कौआ और बटेर भी गए।

जिस रास्ते से वो दोनों जा रहे थे, उसी राह में उन्हें एक ग्वाला मिला। उसके सिर पर दही का मटका था । कौए ने ग्वाले के सिर पर दही का मटका देखा तो उसके मुहँ में पानी भर आया । वह दही खाने के लोभ में नीचे उतरा । वह यह भी भूल गया कि वह इस समय गरुड़जी के दर्शन करने ले लिए जा रहा है ।

कौआ मटके पर बैठकर बड़े मजे से दही खाने लगा ।

ग्वाले को इस बात की भनक लग चुकी थी । लेकिन चतुर कौआ तब तक न जाने कितनी ही बार उसके मटके से दही खा चुका था । वह दो चोंच मारता और उड़ जाता । ऐसा उसने कितनी ही बार किया ।

बटेर ने कौए को ऐसा करने से मना भी किया, परंतु कौआ कहाँ मानने वाला था । वह अपने सामने किसी को बुद्धिमान समझता ही नही था ।

ग्वाले ने कई बार चलते-चलते हाथ उठाकर दही चोर कौए को पकड़ने की चेष्टा भी की, किन्तु कौआ उसके हाथ नही आया ।

जब ग्वाला परेशान हो गया तो उसने दही का मटका सिर से उतारकर नीचे रख दिया । फिर वही एक ओर छिपकर बैठ गया और कौए का इंतजार करने लगा ।

उसने देखा कि ऊपर वृक्ष पर कौआ और बटेर दोनों ही बैठे है ।

क्रोधित ग्वाले ने आव देखा न ताव एक पत्थर उठाकर उन पर खींच मारा ।

जैसे ही कौए ने ग्वाले को पत्थर उठाते देखा तो झट से उड़ गया । मगर बेचारा बटेर न उड़ सका और वह पत्थर उसी को जाकर लगा ।

पत्थर लगते ही बटेर के मुहँ से एक दर्दभरी चीख निकली और वह धरती पर गिर पड़ा ।

अपने जीवन की अंतिम साँस लेते हुए वह बोला, ‘पापी कौए! तूने मुझे व्यर्थ ही मरवा डाला।’

    (कथा-सार)

नीच व दुष्ट का संग सदा हानिकारक होता है। अतः कुसंग से यथासम्भव बचना चाहिए। कौए की करतूत का फल उसके साथी बटेर को भुगतना पड़ा, जबकि उसे प्रारंभ में ही कौए की कुचेष्टा को देखकर उससे किनारा कर लेना चाहिए था ।
: किन अवस्थाओं से गुजर कर हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं

  1. जागृत अवस्था
    अभी यह आलेख पढ़ रहे हो तो जागृत अवस्था में ही पढ़ रहे हो? ठीक-ठीक वर्तमान में रहना ही चेतना की जागृत अवस्था है लेकिन अधिकतर लोग ठीक-ठीक वर्तमान में भी नहीं रहते। जागते हुए कल्पना और विचार में खोए रहना ही तो स्वप्न की अवस्था है।
    जब हम भविष्य की कोई योजना बना रहे होते हैं, तो वर्तमान में नहीं रहकर कल्पना-लोक में चले जाते हैं। कल्पना का यह लोक यथार्थ नहीं एक प्रकार का स्वप्न-लोक होता है। जब हम अतीत की किसी याद में खो जाते हैं, तो हम स्मृति-लोक में चले जाते हैं। यह भी एक-दूसरे प्रकार का स्वप्न-लोक ही है।
    अधिकतर लोग स्वप्‍न लोक में जीकर ही मर जाते हैं, वे वर्तमान में अपने जीवन का सिर्फ 10 प्रतिशत ही जी पाते हैं, तो ठीक-ठीक वर्तमान में रहना ही चेतना की जागृत अवस्था है।
  2. स्वप्न अवस्था
    जागृति और निद्रा के बीच की अवस्था को स्वप्न अवस्था कहते हैं। निद्रा में डूब जाना अर्थात सुषुप्ति अवस्था कहलाती है। स्वप्न में व्यक्ति थोड़ा जागा और थोड़ा सोया रहता है। इसमें अस्पष्ट अनुभवों और भावों का घालमेल रहता है इसलिए व्यक्ति कब कैसे स्वप्न देख ले कोई भरोसा नहीं।
    यह ऐसा है कि भीड़भरे इलाके से सारी ट्रेफिक लाइटें और पुलिस को हटाकर स्ट्रीट लाइटें बंद कर देना। ऐसे में व्यक्ति को झाड़ का ‍हिलना भी भूत के होने को दर्शाएगा या रस्सी का हिलना सांप के पीछे लगने जैसा होगा। हमारे स्वप्न दिनभर के हमारे जीवन, विचार, भाव और सुख-दुख पर आधारित होते हैं। यह किसी भी तरह का संसार रच सकते हैं।
  3. सुषुप्ति अवस्था
    गहरी नींद को सु‍षुप्ति कहते हैं। इस अवस्था में पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां सहित चेतना (हम स्वयं) विश्राम करते हैं। पांच ज्ञानेंद्रियां- चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण और त्वचा। पांच कर्मेंन्द्रियां- वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ और पायु।
    सुषुप्ति की अवस्था चेतना की निष्क्रिय अवस्था है। यह अवस्था सुख-दुःख के अनुभवों से मुक्त होती है। इस अवस्था में किसी प्रकार के कष्ट या किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं होता। इस अवस्था में न तो क्रिया होती है, न क्रिया की संभावना। मृत्यु काल में अधिकतर लोग इससे और गहरी अवस्था में चले जाते हैं।
  4. तुरीय अवस्था
    चेतना की चौथी अवस्था को तुरीय चेतना कहते हैं। यह अवस्था व्यक्ति के प्रयासों से प्राप्त होती है। चेतना की इस अवस्था का न तो कोई गुण है, न ही कोई रूप। यह निर्गुण है, निराकार है। इसमें न जागृति है, न स्वप्न और न सुषुप्ति। यह निर्विचार और अतीत व भविष्य की कल्पना से परे पूर्ण जागृति है।
    यह उस साफ और शांत जल की तरह है जिसका तल दिखाई देता है। तुरीय का अर्थ होता है चौथी। इसके बारे में कुछ कहने की सुविधा के लिए इसे संख्या से संबोधित करते हैं। यह पारदर्शी कांच या सिनेमा के सफेद पर्दे की तरह है जिसके ऊपर कुछ भी प्रोजेक्ट नहीं हो रहा।
    जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि चेतनाएं तुरीय के पर्दे पर ही घटित होती हैं और जैसी घटित होती हैं, तुरीय चेतना उन्हें हू-ब-हू हमारे अनुभव को प्रक्षेपित कर देती है। यह आधार-चेतना है। यहीं से शुरू होती है आध्यात्मिक यात्रा, क्योंकि तुरीय के इस पार संसार के दुःख तो उस पार मोक्ष का आनंद होता है। बस, छलांग लगाने की जरूरत है।
  5. तुरीयातीत अवस्था
    तुरीय अवस्था के पार पहला कदम तुरीयातीत अनुभव का। यह अवस्था तुरीय का अनुभव स्थाई हो जाने के बाद आती है। चेतना की इसी अवस्था को प्राप्त व्यक्ति को योगी या योगस्थ कहा जाता है।
    इस अवस्था में अधिष्ठित व्यक्ति निरंतर कर्म करते हुए भी थकता नहीं। इस अवस्था में काम और आराम एक ही बिंदु पर मिल जाते हैं। इस अवस्था को प्राप्त कर लिया, तो हो गए जीवन रहते जीवन-मुक्त। इस अवस्था में व्यक्ति को स्थूल शरीर या इंद्रियों की आवश्यकता नहीं रहती। वह इनके बगैर भी सबकुछ कर सकता है। चेतना की तुरीयातीत अवस्था को ही सहज-समाधि भी कहते हैं।
  6. भगवत चेतना
    तुरीयातीत की अवस्था में रहते-रहते भगवत चेतना की अवस्था बिना किसी साधना के प्राप्त हो जाती है। इसके बाद का विकास सहज, स्वाभाविक और निस्प्रयास हो जाता है।
    इस अवस्था में व्यक्ति से कुछ भी छुपा नहीं रहता और वह संपूर्ण जगत को भगवान की सत्ता मानने लगता है। यह एक महान सि‍द्ध योगी की अवस्था है।
  7. ब्राह्मी चेतना
    भगवत चेतना के बाद व्यक्ति में ब्राह्मी चेतना का उदय होता है अर्थात कमल का पूर्ण रूप से खिल जाना। भक्त और भगवान का भेद मिट जाना। अहम् ब्रह्मास्मि और तत्वमसि अर्थात मैं ही ब्रह्म हूं और यह संपूर्ण जगत ही मुझे ब्रह्म नजर आता है।
    इस अवस्था को ही योग में समाधि की अवस्था कहा गया है। जीते-जी मोक्ष।
    : सुबह सुबह का आज सभी को प्रणाम ज्योतिष गणना के अनुसार फलित आपका सही होना चाहिए जैसे किसी की कुंडली देखते हैं तो लग्न कुंडली चलित कुंडली नवांश कुंडली एवं सुदर्शन चक्र यह राजनीतिक लोगों के लिए देखना परम आवश्यक है इसको नहीं देखोगे तो राजनीतिक विश्लेषण सही नहीं होगा जिसके कारण ज्योतिष का फलित सही नहीं होने के कारण ज्योतिष जगत को लोग बदनाम करते : 🙏🌹हे गोविन्द हे गोपाल🌹🙏

सत्य है कि लोहे से ही लोहे को काटा जा सकता है और पत्थर से ही पत्थर को तोडा जा सकता है। मगर ह्रदय चाहे कितना भी कठोर क्यों ना हो उसको पिघलने के लिए कभी भी कठोर वाणी कारगर नहीं हो सकती क्योंकि वह केवल और केवल नरम वाणी से ही पिघल सकता है।

क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, बोध से जीता जा सकता है। अग्नि अग्नि से नहीं बुझती जल से बुझती है। समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम रखो, संयम ही आपको क्लेशों से बचा सकता है।

आँखों में शर्म रहे और वाणी नरम रहे तो समझ लेना परम सुख आपसे दूर नहीं।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

अनेक नास्तिक लोग धर्म की खिल्ली उड़ाते हैं , पुण्य कर्मों की खिल्ली उड़ाते हैं । उनका विचार है कि ना कोई धर्म है ना अधर्म । न कोई पाप है, न कोई पुण्य ।
ऐसे लोग स्वयं भटके हुए हैं और दूसरों को जीवन में भटकाते हैं । स्वयं दिन-रात पापों में लगे रहते हैं और दूसरों को भी पापी बनाते हैं ।
ऊपर से भले ही ये लोग धनवान दिखते हों, लेकिन अंदर से यह ईश्वरीय दंड को भोगते रहते हैं । वह दंड है तनाव आशंका भय आदि। उनकी यह मानसिक स्थिति सबको दिखाई नहीं देती । इसलिये दूसरे साधारण लोग भी उनकी ही नकल करने लगते हैं।

हरी बोलो बन्धन खोलो।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏: 🌷ॐ ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷
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जानिए आरोग्य और शुभता के सरल उपाय !! 🍹🍹
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🍱 कभी भी दोनों हाथो से आपको अपना सिर नहीं खुजाना चाहियें।

🍱 बिना किसी कारण के तिनको को तोडना और मिट्टी के ढेले को फोड़ना नहीं चाहियें।

🍱 कभी भी दांतो से नाखूनों और बालो को नहीं चबाना चाहियें।

🍱 आसन को पैर से खींचकर नहीं बैठना चाहियें।

🍱 कभी भी नाखूनों को नाखूनों से को ना काटे।

🍱 उस व्यक्ति का बुरा होता होता है जो दूसरों की निंदा करता है और अशुद्ध रहता है।

🍱 कभी भी पैर से पैर नहीं धोने चाहियें।

🍱 कभी भी कांसे के बर्तन का प्रयोग कुल्ला करने के लिए और पैर धोने के लिए ना करे।

🍱 दांतो से दांतो से को नहीं रगड़ना चाहियें।

🍱 सिर हाथ पैर को हिलाना नहीं चाहियें।

🍱 पैर के ऊपर पैर रखे और पैर को पैर से ना दबाएं।

🍱 सिर के बालो को खींचना और सिर पर चोट करना मना है।

🍱 कुछ विशेष कार्य जैसे भोजन , स्नान , जप , पूजा, होम , पितृतर्पण इत्यादि करते समय शरीर को अकड़ कर नहीं बैठना चाहियें।

🍱 मनुष्य को मल, मूत्र , डकार , अपानवायु , वमन , छींक , जम्हाई , भूख , प्यास , आंसू , निद्रा , शुक और तेज सॉंसों को नहीं रोकना चाहियें। ऐसा करने से शरीर में कई रोग उत्पन्न होते होते है।

🍱 भोजन ,पूजा ,किसी शुभ कार्य और जप के दौरान या फिर किसी श्रेष्ठ व्यक्ति के सामने छींकना या थूकना नहीं चाहियें।

🍱 जहां जनसमूह एकत्रित हो वहां भोजन के लिए समय से पहुंचे .

🍱 किसी शुभ कार्य के दौरान मुख या नाक से कफ का त्याग नहीं करना चाहिए।

🍱 बहुत जोरो से ना हंसे।

🍱 यदि आप किसी सभा में उपस्थित है तो मुख को ढंके बिना जम्हाई , खांसी , डकार और छींके ना।

🍱 बिना किसी कारण के थूकना वर्जित है।

🍱 कभी भी अपने गुरु , देवता और अग्नि के सामने पैर फैलाकर नहीं बैठना चाहियें।

🍱 अपने दोनों हाथो को पीठ(पूजा स्थल) के पीछे जोड़कर ना बैठे।
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🌷 जय मां पीताम्बरा🌷
: कुंडली की चाबी:-
हर कुंडली में नौ ग्रह और बारह राशियों का अध्ययन किया जाता है परन्तु कुंडली केवल इन्ही पर निर्भर नहीं करती. कुंडली में एक विशेष ग्रह होता है जो कुंडली का प्राण होता है. वह विशेष ग्रह कुंडली की चाबी है. अगर यह ग्रह कमजोर है तो कुंडली में कोई सफलता नहीं मिलती. अगर केवल वही ग्रह मजबूत है तो व्यक्ति जीवन में खूब सफलता पाता है.

मेष लग्न:-

  • इस लग्न के लिए सूर्य चमत्कारी परिणाम देता है
  • सूर्य को मजबूत करके हर तरह की सफलता पायी जा सकती है
  • साथ ही हमेशा स्वास्थ्य को अच्छा रक्खा जा सकता है
  • नित्य प्रातः सूर्य को जल अर्पित करना बेहद लाभकारी होता है

वृष लग्न:-

  • इस लग्न के लिए सब कुछ शनि ही है।
  • शनि मजबूत रहे तो हर समस्या का समाधान हो जाता है।
  • शनि को ठीक रखकर धन और सेहत की समस्या से बच सकते हैं ।
  • शनि को मजबूत करके वैभव और रिश्तों का वरदान मिलेगा ।
  • कोई भी बीमारी बड़ा रूप धारण नही कर पायेगी।
  • हर शनिवार को पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं ।

मिथुन लग्न:-

  • इस लग्न का कर्म और कर्म का फल दोनों बुध पर निर्भर है
  • बुध को ठीक रखकर अपनी सोच को ठीक रख सकते हैं
  • साथ ही आर्थिक मजबूती पा सकते हैं
  • बुध के कमजोर होने पर बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है
  • नित्य प्रातः भगवान गणेश की उपासना सर्वोत्तम होगी

कर्क लग्न:-

  • इस लग्न के पास सबसे बड़ी शक्ति मंगल है।
  • मंगल ठीक रहे तो सब ठीक रहता है।
  • ख़ास तौर से दुर्घटनाओं और सेहत की समस्या से रक्षा होती है।
  • व्यक्ति जीवन में कम प्रयास करके भी सफलता पाता है
  • हनुमान जी की उपासना खूब लाभकारी होती है ।

सिंह लग्न:-

  • इस लग्न की ताकत बृहस्पति और मंगल हैं
  • यह हर तरह के उतार चढ़ाव से बचाएंगे ।
  • इससे आपके जीवन में संघर्ष कम होता जाएगा ।
  • साथ ही साथ आपका प्रभाव बढ़ता जाएगा ।
  • सूर्य की उपासना सदैव लाभकारी होगी ।

कन्या लग्न:-

  • इस लग्न के लिए शुक्र सबसे ज्यादा बेहतरीन परिणाम देता है
  • शुक्र को मजबूत करके वैभव और रिश्तों का वरदान मिलेगा।
  • साथ ही व्यक्ति व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है
  • व्यक्ति जीवन में बहुत विलास और ग्लैमर प्राप्त करता है
  • शिव जी की उपासना करना विशेष लाभकारी होता है

तुला लग्न:-

  • इस लग्न की चाभी शनि के पास है
  • शनि अगर बेहतर हो तो व्यक्ति अपूर्व सफलता प्राप्त करता है
  • जीवन में कभी भी किसी चीज़ का अभाव नहीं होता
  • व्यक्ति समाज में हमेशा एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करता है
  • शनिवार को अन्न या भोजन का दान करना लाभकारी होगा ।

वृश्चिक लग्न:-

  • वृश्चिक लग्न के लिए बृहस्पति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है
  • बृहस्पति को ठीक रखकर धन, संतान और ज्ञान का वरदान मिल सकता है
  • बृहस्पति को ठीक रखने से लाभ ही लाभ होगा
  • एक पीला पुखराज, स्वर्ण या पीतल में पहनें
  • इसे तर्जनी अंगुली में, बृहस्पतिवार प्रातः धारण करें

धनु लग्न:-

  • इस लग्न की शक्ति मंगल के पास है
  • मंगल को ठीक रखकर संघर्ष कम होगा
  • मुकदमों और विवादों से छुटकारा मिलेगा
  • शनि के हर दुष्प्रभाव से रक्षा होगी
  • यथाशक्ति हनुमान जी की उपासना करें।

मकर लग्न:-

  • इस लग्न के लिए शुक्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है
  • शुक्र से ही इनको विद्या, बुद्धि, करियर और धन की प्राप्ति होती है
  • शुक्र ही इनका स्वास्थ्य ठीक रखेगा और संतान की समस्या दूर करेगा
  • एक हीरा अथवा जरकन धारण करना लाभकारी होगा
  • जहाँ तक हो सके शराब और नशे से परहेज करें।

कुम्भ लग्न:-

  • हालांकि इस लग्न के लिए बुध और शुक्र दोनों अनुकूल होते हैं
  • फिर भी आपके लिए शुक्र ज्यादा महत्वपूर्ण है
  • शुक्र के कारण ये करियर की ऊंचाइयों को छू पाएंगे।
  • और हर तरह की मानसिक समस्याओं से बचे रहेंगे।
  • ज्यादा से ज्यादा सफ़ेद वस्त्र धारण करें ।
  • यथाशक्ति शिव जी की उपासना करें ।

मीन लग्न:-

  • मीन लग्न की ताकत चन्द्रमा में छिपी होती है
  • चन्द्रमा के कारण ही ये ज्ञानी, शानदार और सफल हो पाते हैं
  • चन्द्रमा से आप अच्छा करियर और संपत्ति पा सकेंगे।
  • एक मोती चांदी में अवश्य धारण करें
  • इसे सोमवार रात्रि को, कनिष्ठा अंगुली में पहनें।

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏: नवग्रहों के वृक्ष और जड़े धारण करने की सम्पूर्ण विधि
प्राचीन काल से नवग्रह की अनुकूलता के लिये रत्न पहनने का प्रचलन रहा है।सम्पन्न लोग महंगे से महंगे रत्न धारण करलेते है। लेकिन इन रत्नों का संबंध ग्रह के शुभाशुभ प्रभावको बढ़ाने केकारण इनकी माँग और भी ज्यादा बढ़ गई है।परन्तु सभी व्यक्ति इतने सक्षम नहीं होते कि वे ग्रह के आधिकारिकमहंगे रत्न पहन सकें।हमारे ऋषि मुनियों ने प्राचीन कालसे में ही ग्रह राशियों के आधिकारिक वृक्ष उनके गुणदेखकर निर्धारित किये थे।प्रारम्भ में सभी लोगों कोमहंगे रत्न उपलब्ध नहीं होते थे। तब वे पेड़ की जड़धारण करते थे। आज भी कुछ मूर्धन्य सज्जन वृक्ष की जड़ को रत्नों की जगह अपनाते है। रत्नों की तरह ही पेड़ की जड़ भी पूर्ण लाभ देती है।
वृक्ष की जड़ पहनने के लिए सर्वप्रथम आपको अपने जन्मनाम की राशि का पता होना चाहिए। और अपनीराशि के स्वामी ग्रह का भी ज्ञान होना चाहिए। नीचेसारणी में आपको ग्रह और राशि के साथ आधिकारिक वृक्ष की जड़ का विवरण दिया जा रहा है।
राशि —-ग्रह —- वृक्ष
मेष ——- मंगल—खदिर
वृष———शुक्र —- गूलर
मिथुन——बुध—–अपामार्ग
कर्क ——-चंद्र —–पलाश
सिंह——–सूर्य —–आक
कन्या——-बुध —-अपामार्ग
तुला——–शुक्र —-गूलर
वृश्चिक——मंगल—खदिर
धनु——— गुरु —-पीपल
मकर——–शनि—शमी
कुम्भ——–शनि —शमी
मीन ——–गुरु — -पीपल
पेड़ से जड़ लेने की प्रक्रिया आपको जिस ग्रह या नक्षत्र से संबंधित पेड़ की जड़ लेनी हो , उस ग्रह या नक्षत्र के आधिकारिक दिन से एक दिन पहले
अर्थात मेष या वृश्चिक राशि हो तो उसके स्वामी मंगल की जड़ पहनने के लिए मंगलवार से एक दिन पहले सोमवार को
वृष या तुला राशि हो तो उसके स्वामी शुक्र की जड़ पहनने के लिए शुक्रवार से एक दिन पहले गुरुवार को
यदि मिथुन या कन्या राशि हो तो उसके स्वामी बुध की जड़ पहनने के लिए बुधवार से एक दिन पहले मंगलवार को
यदि कर्क राशि हो तो उसके स्वामी चन्द्रमा की जड़ पहनने के लिए सोमवार से एक दिन पहले रविवार को ,
यदि सिंह राशि हो तो उसके स्वामी सूर्य की जड़ पहनने के लिए रविवार से एक दिन पहले शनिवार को,
यदि धनु – मीन राशि हो तो स्वामी गुरु की जड़ पहनने के लिए गुरुवार से एक दिन पहले बुधवार को ,
यदि मकर – कुम्भ राशि हो तो उसके स्वामी शनि की जड़ पहनने के लिए शनिवार से एक दिन पहले शुक्रवार को ,
शुभ मुहूर्त देखकर उस वृक्ष के पास जाएँ और वृक्ष से निवेदन करें कि मैं आपके आधकारिक ग्रह की शांति और शुभ फल प्राप्ति हेतु आपकी जड़ धारण करना चाहता हूँ , जिसे कल शुभ मुहूर्त में आपसे लेने आऊंगा। इसके लिए मुझे अनुमति प्रदान करें। इसके बाद अगले दिन उस ग्रह के वार को धूपबत्ती , जल का लोटा , पुष्प , प्रसाद आदि सामग्री लेकर शुभ मुहूर्त में उस वृक्ष के पास जाएँ और हाथ जोड़कर जल चढ़ाएं। फिर धूपबत्ती जलाकर पुष्प चढ़ाएं। उसके बाद प्रसाद का भोग लगाएं। फिर प्रणाम करके उसकी जड़ खोदकर निकाल लें। और घर ले आएं।
जड़ धारण करने की विधि जड़ को घर लाकर शुभ मुहूर्त में भगवान के सामने आसन पर बैठ कर उसे पंचामृत और गंगाजल से धोकर धूपबत्ती दिखाकर उसके आधिकारिक ग्रह के मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक या कम से कम एक माला का जाप करें। फिर उसे गले में पहनना हो तो ताबीज़ में डाल ले और हाथ पर बांधना हो तो कपड़े में सिलकर पुरुष दाएं हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांध ले।
धारण करते समय निम्न मंत्र बोले
सूर्य —– ॐ घृणि: सूर्याय नमः
चन्द्रमा -ॐ चं चन्द्रमसे नमः
मंगल – ॐ भौम भौमाय नमः
बुध —-ॐ बुं बुधाय नमः
गुरु —-ॐ गुं गुरुवे नमः
शुक्र —ॐ शुं शुक्राय नमः
शनि —ॐ शं शनये नमः
🔱⚜🕉🙏🛐🙏🕉⚜🔱💐
: 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

💎 आत्मविश्वास के दुश्मन 💧

😓  आलस्य
           
            आत्मविश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन हमारा आलस्य हैं| अगर हम हर कार्य को करते समय आलसी बने रहेंगे तो हम कभी अपना आत्मविश्वास नहीं बढ़ा पाएंगे।

😡  क्रोध
           
            कहते हैं क्रोध इन्सान की अक्ल को खा जाता हैं। जब किसी व्यक्ति को क्रोध आता हैं तो वह अपने आपे से बाहर हो जाता हैं और अपने कार्य में गलती करने लगता हैं और अपने कार्य को पूर्ण नहीं कर पाता हैं। जिससे उसके आत्मविश्वास में कमी आ जाती हैं।

🤔  चिंता
           
            अगर हम किसी कार्य के पूर्ण होने के बारे में बहुत अधिक चिंता करते हैं तो हम उस को पूर्ण आत्मविश्वास से नहीं कर पाते हैं।

तनाव😠
           
            अगर हम हर समय किसी तनाव को झेलते रहते हैं तो हमारा मन नहीं लगता है। और कार्य को पूर्ण करने का कौशल हम खो देते हैं| और बेमन से किया कार्य कभी भी सफल नहीं हो सकता हैं।

😊 इस दुनिया में नामुनकिन कुछ भी नहीं है (नथिंग इज इम्पॉसिबल इन दिस वर्ल्ड)
        आत्मविश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन किसी भी कार्य को करने में असफलता होने का डर है एंव डर को हटाना है तो वह कार्य अवश्य करें। जिसमें आपको डर लगता है। डर के आगे जीत है

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: संतों ने कहा है कि हमें तीन प्रकार की दृष्टियाँ प्राप्त हैं।
पहली दृष्टि
में सूर्यके प्रकाश में हमारी आंखें देखती हैंl
दूसरी दृष्टि में हमारे ग्यान के प्रकाश में हमारी बुद्धि देखती है,
तीसरी दृष्टि में गुरु या ईश्वर के प्रकाश में हमारी आत्मा देखती है।

प्राकृतिक नेत्र तो सभी को प्राप्त हैं,

दूसरी बुद्धि की दृष्टि भी हम अपने प्रयास से प्राप्त कर लेते हैं
लेकिन
तीसरी दृष्टि को हम अपने प्रयास से कभी भी प्राप्त नहीं कर सकते।

तीसरी दृष्टि तो एकमात्र किसी आत्मज्ञानी पुरूष के आशीर्वाद से ही प्राप्त हो सकती है।
संतों का ऐसा मत है,कि किसी जीव पर जब ईश्वर द्रवित होता है,
अत्यन्त प्रसन्न होता है तब उसे यह तीसरी दृष्टि (आत्मज्ञान) प्राप्त करा देता है।
अन्य कोई भी मार्ग या साधना इसे प्राप्त करने की नहीं है।

जिसे यह दृष्टि मिल जाती है उसकी अवस्था बदल जाती है,उसका व्यवहार बदल जाता है।
पहली स्थूल दृष्टि से तो वह यहाँ सभी को मनुष्य या प्राणी ही देखता है,
दूसरी दृष्टि से ग्यानी या अज्ञानी देखता है
लेकिन
तीसरी दृष्टि से वह यहाँ सर्वत्र ईश्वर ही देखता है।
उसकी दृष्टि के दोष मिट जाते हैं। अब उसे सबमें गुण दिखलाई देते हैं। अपने अवगुण दिखलाई देने लगते हैं।
“मो सम कौन कुटिल खल कामी” उस पूर्ण परमात्मा के प्रकाश में अपने विकार दिखलाई देने लगते हैं।
आत्मदृष्टि प्राप्त करने का स्रोत गुरु चरणों में ही है।

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