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             *॥संत का प्रभाव॥*

किसी गाँव में एक चोर रहता था। एक बार उसे कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला, जिससे उसके घर में खाने के लाले पड़ गये। अब मरता क्या न करता, वह रात्रि के लगभग बारह बजे गाँव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में घुस गया। वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं, अपने पास कुछ नहीं रखते फिर भी सोचा, ‘खाने पीने को ही कुछ मिल जायेगा। तो एक दो दिन का गुजारा चल जायेगा।’ जब चोर कुटिया में प्रवेश कर रहे थे, संयोगवश उसी समय साधु बाबा ध्यान से उठकर लघुशंका के निमित्त बाहर निकले। चोर से उनका सामना हो गया। साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था, पर साधु यह नहीं जानते थे कि वह चोर है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया ! साधु ने बड़े प्रेम से पूछाः “कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ?” चोर बोलाः “महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूँ। साधुः “ठीक है, आओ बैठो। मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे, वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूँ। तुम्हारा पेट भर जायेगा। शाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते। पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है। ‘यथा लाभ संतोष’ यही तो है। साधु ने दीपक जलाया। चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिये। फिर पास में बैठकर उसे इस तरह खिलाया, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को खिलाती है। साधु बाबा के सदव्यवहार से चोर निहाल हो गया, सोचने लगा, ‘एक मैं हूँ और एक ये बाबा हैं। मैं चोरी करने आया और ये इतने प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूँ। यह भी सच कहा हैः आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर। मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूँ। मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं, जो समय पाकर जाग उठती हैं। जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं। चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गये। उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृतवर्षा दृष्टि का लाभ मिला। उन ब्रह्मनिष्ठ साधुपुरुष के आधे घंटे के समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये। साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा। फिर उसे लगा कि ‘साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी ! क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया !’ लेकिन फिर सोचा, ‘साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा। इतने दयालू महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे।’ संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं। भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहाः “बेटा ! अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे, मेरे पास एक चटाई है, इसे ले लो और आराम से यहाँ सो जाओ। सुबह चले जाना।” नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था। वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा। साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछाः “बेटा ! क्या हुआ ?” रोते-रोते चोर का गला रूँध गया। उसने बड़ी कठिनाई से अपने को सँभालकर कहाः “महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूँ।” साधु बोलेः “बेटा ! भगवान तो सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं। उनकी शरण में जाने से वे बड़े-से-बड़े अपराध क्षमा कर देते हैं। तू उन्हीं की शरण में जा। चोरः “महाराज ! मेरे जैसे पापी का उद्धार नहीं हो सकता।” साधुः “अरे पगले ! भगवान ने कहा हैः यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है।” “नहीं महाराज ! मैंने बड़ी चोरियाँ की हैं। आज भी मैं भूख से व्याकुल होकर आपके यहाँ चोरी करने आया था लेकिन आपके सदव्यवहार ने तो मेरा जीवन ही पलट दिया। आज मैं आपके सामने कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा, किसी जीव को नहीं सताऊँगा। आप मुझे अपनी शरण में लेकर अपना शिष्य बना लीजिये। साधु के प्यार के जादू ने चोर को साधु बना दिया। उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके अमूल्य मानव जीवन को अमूल्य-से-अमूल्य श्री भगवान को पाने के रास्ते लगा दिया।

  

: भक्ति के दो भाव होते हैं कितने सुंदर तरह से उदाहरण देकर बताया है 👇
पहला भाव जैसे बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न… उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है……..

और ईश्वर के प्रति दूसरा भाव उस बिल्ली के बच्चे की भाँति जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है…।”
🔥चोट का फर्क🔥 “एक सुनार था, उसकी दुकान से मिली हुई एक लोहार की दुकान थी।
सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार काम करता तो उसकी दुकान से कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ सुनाई देती।
एक दिन एक सोने का कण छिटक कर लोहार की दुकान में आ गिरा। वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के साथ हुई।
सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- भाई हम दोनों का दुख एक समान है, हम दोनों को ही एक समान आग में तपाया जाता है और समान रूप ये हथौड़े की चोट सहनी पड़ती है।
मैं ये सब यातना चुपचाप सहता हूँ, पर तुम बहुत चिल्लाते हो, क्यों?
लोहे के कण ने मन भारी करते हुऐ कहा-
तुम्हारा कहना सही है, किन्तु तुम पर चोट करने वाला हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है।
मुझ पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा मेरा सगा भाई है।
परायों की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोट अधिक पीड़ा पहुचाँती है”

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: जीवन के अनमोल सत्य का ज्ञान
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हम अकेले आये हैं और अकेले ही जायेंगे। यहाँ की ना तो कोई वस्तु हमारे साथ जायेगी और न कोई आत्मीय स्वजन ही साथ जायगा। आज घर में हमारी बड़ी आवश्यकता है हम भी ऐसा मानते हैं कि मुझसे ही सारा काम चलता है मेरे न रहने पर काम कैसे चलेगा पर हमारे हटते ही कोई न कोई व्यवस्था हो जाएगी और कुछ दिनों बाद तो हमारे अभाव का स्मरण भी नहीं होगा।
🌱 ☘ 🌻 🎄 ⚡ 🍁
जैसे आज हम अपने पिता, पितामह आदि को भूल गए हैं और अपनी स्थिति में मस्त हो रहे हैं। ऐसे ही हमारे आत्मीय जन भी हमें भूल जायेंगे।
हम व्यर्थ ही आसक्ति तथा ममता के जाल में फंस रहे हैं और मानव जीवन के असली ध्येय को भूलकर, जिससे एक दिन सारा संबंध छूट जायगा और कभी उसकी याद भी नहीं आयेगी, उसी में मन को फंसाकर, जीवन को अधोगति की ओर ले जा रहे हैं।
🌿 🍂 🌾 🍃 🎍 💫
संबंध अनित्य और काल्पनिक होने पर भी जबतक हमारी इसमें ममता और आसक्ति है तबतक हमारी कामना वासना नहीं मिट सकती एवं जबतक कामना वासना रहेगी तबतक दुष्कर्म भी बनते ही रहेंगे और जबतक दुष्कर्म बनेंगे तबतक सुख का मुंह कभी भी नहीं दिखेगा।
🙏 🌹 🙏 🌹 🎋 💐
ॐ आनन्दमय भगवान् के भजन नामकीर्तन ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय में मन लगने पर संसार के बंधन स्वयमेव शिथिल हो जायेंगे। ॐ आनन्दमय भगवान् में ममता और आसक्ति हो जाएगी तब घर परिवार धन-संपत्ति यश मान आदि हथकड़ी बेड़ियां अपने आप कट जायेंगे फिर इसके लिए कोई अलग प्रयास नहीं करना पड़ेगा।
🌼 🌴 🌟 🌺 🍀 🌲
जगत से भागने की चेष्टा करोगे, इसे छोड़ने जाओगे तो और भी जकड़ोगे। इसे छोड़ने का प्रयत्न छोड़कर ॐ आनन्दमय भगवान् के विधान का पालन करने में सब प्रकार से लगने का प्रयत्न करो। जिस दिन ॐ आनन्दमय भगवान के अमृतमय ध्यान की जरा सी झांकी मिलेगी उसी क्षण भोगों के रूप, सौंदर्य का सुख विलास का स्वप्न तत्काल भंग हो जाएगा फिर उस ओर झांकने को भी हमारा मन नहीं करेगा।
।।।। जय सिया राम जी ।।।।
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पंचक विचार
भारतीय ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है,इसके अंतर्गत धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र आते हैं,पंचक के दौरान कुछ विशेष काम नहीं करते ।

पंचक के प्रकार

  1. रोग पंचक
    रविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है,इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं,इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं करने चाहिए,हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है।
  2. राज पंचक
    सोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है,ये पंचक शुभ माना जाता है,इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है,राज पंचक में संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।
  3. अग्नि पंचक
    मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है,इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले,अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं,इस पंचक में अग्नि का भय होता है,इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है,इनसे नुकसान हो सकता है।
  4. मृत्यु पंचक
    शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है,नाम से ही पता चलता है कि अशुभ दिन से शुरू होने वाला ये पंचक मृत्यु के बराबर परेशानी देने वाला होता है,इन पांच दिनों में किसी भी तरह के जोखिम भरे काम नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव से विवाद, चोट, दुर्घटना आदि होने का खतरा रहता है।
  5. चोर पंचक
    शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है.विद्वानों के अनुसार, इस पंचक में यात्रा करने की मनाही है,इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के सौदे भी नहीं करने चाहिए, मना किए गए कार्य करने से धन हानि हो सकती है।
  6. इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है,इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

पंचक में न करें ये 05 काम:-

  1. पंचक में चारपाई बनवाना भी अच्छा नहीं माना जाता,विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से कोई बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
  2. पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि जलने वाली वस्तुएं इकट्ठी नहीं करना चाहिए, इससे आग लगने का भय रहता है।
  3. पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है,इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
  4. पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का कहना है,इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
  5. पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए,यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बनाकर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है। ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है।

यह शुभ कार्य कर सकते हैं पंचक में:-
बृहत् होडाशास्त्र के अनुसार, पंचक में आने वाले नक्षत्रों में शुभ कार्य हो सकते हैं,पंचक में आने वाला उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग बनाता है, वहीं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ कार्यों में श्रेष्ठ माने गए हैं।
पंचक को भले ही अशुभ माना जाता है,लेकिन इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं,पंचक में आने वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद व रेवती रविवार को होने से आनंद आदि 28 योगों में से 3 शुभ योग बनाते हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर, स्थिर व प्रवर्ध,इन शुभ योगों से सफलता व धन लाभ का विचार किया जाता है..।

मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार पंचक के नक्षत्रों का शुभ फल:-

  1. घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं,इनमें चलित काम करना शुभ माना गया है जैसे- यात्रा करना, वाहन खरीदना, मशीनरी संबंधित काम शुरू करना शुभ माना गया है।
  2. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र माना गया है,इसमें स्थिरता वाले काम करने चाहिए जैसे- बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति पूजन और जमीन से जुड़े स्थिर कार्य करने में सफलता मिलती है।
  3. रेवती नक्षत्र मैत्री संज्ञक होने से इस नक्षत्र में कपड़े, व्यापार से संबंधित सौदे करना, किसी विवाद का निपटारा करना, गहने खरीदना आदि काम शुभ माने गए हैं।

इस तरह होता है पंचक के नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव:-
1.धनिष्ठा नक्षत्र में आग लगने का भय रहता है…..।

  1. शतभिषा नक्षत्र में वाद-विवाद होने के योग बनते हैं…।
  2. पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र है यानी इस नक्षत्र में बीमारी होने की संभावना सबसे अधिक होती है.।
  3. उत्तरा भाद्रपद में धन हानि के योग बनते हैं…।
  4. रेवती नक्षत्र में नुकसान व मानसिक तनाव होने की संभावना होती है…।

चार प्रकार के प्रबल पित्र-दोष :-

सूर्य…. आत्मा एवं पिता का कारक गृह है पित्र पक्ष का विचार सूर्य से होता है।
“चन्द्रमा” मन एवं माता पक्ष का कारक ग्रह है।
मंगल… हमारे रक्त , जीन्स, परम्परा, पौरुष और बंधुत्व पक्ष का कारक ग्रह है।
शुक्र…. भी हमारे भोग, ऐश्वर्य और स्त्री पक्ष का कारक ग्रह है।

सूर्य जब राहु- की युति में हो तो ग्रहण योग बनता है, सूर्य का ग्रहण अतः पिता या आत्मा का ग्रहण हुआ यानि पित्र-श्राप या श्रापित आत्मा। और चंद्र केतु की युति, अमावस्या दोष या चंद्र ग्रहण दोष भी एक प्रकार का पित्र दोष ही होता है क्यों कि चंद्र हमारी भोंतिक देह का कारक है।
चार अत्यंत कष्टकर पित्र-दोष :-
“सूर्य”- सूर्य राहू सूर्य शनी या सूर्य केतु की युति पित्र दोष का निर्माण करती है।
“चन्द्र”-अगर राहू, केतुु , शनी या सूर्य की युति में हो तो पित्र दोष (मात्र पक्ष) होता है।
“मंगल”- मंगल भी यदि पूर्णास्त है या इन क्रूर ग्रहों से युक्त है तो भी वंशानुगत पित्र दोष होता है।
“शुक्र” या सप्तम भाव यदि सूर्य, मंगल, शनी या राहु से युक्त हो तो भी स्त्री पक्ष से पित्र श्राप बनता है।

वैसे समस्त ग्रहों के दूषित होने से कुंंडली में विभिन्न प्रकार के अन्य पित्रादि श्राप भी बन सकते हैं….
परंतु अभी हम कुछ प्रमुख पित्र दोषों (श्रापों) को समझते हैं :-

शनि सूर्य पुत्र है, यह सूर्य का नैसर्गिक शत्रु भी है, अतः शनि की सूर्य पर दर्ष्टि भी पित्र दोष उत्पन करती है। इसी पित्र दोष से जातक आदि-व्याधि-उपाधि तीनो प्रकार की पीड़ाओं से कष्ट उठाता है, उसके प्रत्येक कार्ये में अड़चनें आती रहती हैं, कोई भी कार्य सामान्य रूप से निर्विघ्न सम्पन्न नहीं होते है, दूसरे की दृष्टि में जातक सुखी-सम्पंन दिखाई तो पड़ता है, परन्तु जातक आंतरिक रूप से दुखी होता रहता है, जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट उठाता है, कष्ट किस प्रकार के होते है इसका विचार व निर्णय सूर्य राहु की युति अथवा सूर्य शनि की दृष्टि सम्बन्ध या युति जिस भाव में हो उसी पर निर्भर करता है, कुंडली में चतुर्थ भाव नवम भाव, तथा दशम भाव में सूर्य राहु अथवा चन्द्र राहु की युति से जो पित्र दोष उतपन्न होता उसे श्रापित पितृ दोष कहते है, इसी प्रकार पंचम भाव में राहु गुरु की युति से बना गुरु चांडाल योग भी प्रबल पितृ दोष कारक होता होता है, संतान भाव में इस दोष के कारण प्रसव कष्टकारक होते हैं, आठवे या बारहवे भाव में स्थित गुरु प्रेतात्मा से पित्र दोष करता है, यदि इन भावो में राहु बुध की युति में हो तथा सप्तम, अष्टम भाव में राहु और शुक्र की युति में हो तब भी पूर्वजो के दोष से पित्र दोष होता है, यदि राहु शुक्र की युति द्वादश भाव में हो तो पित्र दोष स्त्री जातक से होता है इसका कारण भी स्पष्ट कर दें क्योंकि बारहवाँ भाव भोग एव शैया सुख का स्थान है, अतः इस भावके दूषित होने से स्त्री जातक से दोष (श्राप) होना स्वभाविक है ये अनैतिक संबंधों का कारण भी हो सकता है।
अन्य श्रापित योग :-
1.यदि कुण्डली में अष्टमेश राहु के नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश के नक्षत्र में स्थित हो तथा लग्नेश निर्वल एवं पीड़ित हो तो जातक पित्र दोष एव भूत प्रेतादि आदि से शीघ्र प्रभावित होते हैं।
2.यदि जातक का जन्म सूर्य चन्द्र ग्रहण में हो तथा घटित होने वाले ग्रहण का सम्बन्ध जातक के लग्न, षष्ट एव अष्टम भाव से बन रहा हो तो ऐसे जातक पित्र दोष,भूत प्रेत, एव आत्माओं के प्रभाव से पीड़ित रहते हैं।
3.यदि लग्नेश जन्म कुण्डली में अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा राहु , शनि, मंगल के प्रभाव से युक्त हो तो जातक पित्र दोष, प्रेत्माओं का शिकार होता है।
4.यदि जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा चतुर्थेश षष्ठ भाव में स्थित हो और लग्न या लग्नेश पापकर्तरी (प्रतिबंधक) योग में स्थित हो तो जातक मातृ श्राप एवं अतृप्त मात्र आत्माओं से प्रभावित होता है।
5.यदि चन्द्रमा जन्म कुण्डली अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो या चन्द्र एव लग्नेश का सम्बन्ध क्रूर एव पाप ग्रहो से बन रहा हो तो जातक पित्र दोष, प्रेत-वाधा, एवं
पित्रात्माओं से प्रभावित होता है।
6.यदि कुंडली में शनि एव चन्द्रमा की युति हो अथवा चन्द्रमा शनि के नक्षत्र में, अथवा शनि चन्द्रमा के नक्षत्र में स्थित हो तो जातक पित्र दोष, एव अतृप्त आत्माओं से शीघ्र प्रभावित होता है।
7.यदि लग्नेश जन्म कुंडली में अपनी शत्रु राशि में निर्बल आव दूषित होकर स्थित हो तथा क्रूर एव पाप ग्रहो से युक्त हो तथा शुभ ग्रहो की दृष्टि लग्न भाव एव लग्नेश पर नहीं पड़ रही हो, तो जातक प्रेतात्माओं, एव पित्र दोष से पीड़ित होता है।
8.यदि जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मध्य हुआ हो और चन्द्रमा अस्त, निर्बल, एव दूषित हो, अथवा चन्द्रमा पक्षबल में निर्बल हो, तथा राहु शनि से युक्त नक्षत्र परिवर्तन योग बना रहा हो तो श्राप के कारण जातक अदृश्य रूप से मानसिक बाधाऔं का शिकार होता है।
9.यदि कुंडली में चन्द्रमा राहु के नक्षत्र में स्थित हो तथा अन्य क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव चन्द्रमा, लग्नेश, एव लग्न भाव पर हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है।
10.यदि कुंडली में गुरु का सम्बन्ध राहु से हो तथा लग्नेश एव लग्न भाव पापकर्तरी योग में हो तो जातक को अतृप्त आत्माए अधिक परेशान करती है ।
11.यदि बुध एव राहु में नक्षत्रीय परिवर्तन हो तथा लग्नेश निर्बल होकर अष्टम भाव में स्थित हो साथ ही लग्न एव लग्नेश पर क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से परेशान रहता है और मनोरोगी बन जाता है।
12.यदि कुंडली में अष्टमेश लग्न में स्थित हो (मेष लग्न को छोडकर अन्य लग्नों में) तथा लग्न भाव तथा लग्नेश पर अन्य क्रूर तथा पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृपत आत्माओं का शिकार होता है।

  1. यदि जन्म कुण्डली में राहु जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी निर्बल एव पीड़ित होकर अष्टम भाव में स्थित हो तथा लग्न एव लग्नेश पापकर्तरी योग में स्थित हो तो जातक ऊपरी हवा, प्रेत बाधित और आत्माओं से परेशान रहता है । सिर्फ इतना ही नहीं और भी दूषित ग्रहों से पित्र-ऋण (श्राप) दोष भी बनते हैं जो जीवन में बहुत ही अवरोध पैदा करके नाना भाँति के कष्ट देते हैं :-
    जैसे:-
    पित्र दोष(श्राप) के कारण व प्रकार
    1- “सूर्य” से पिता, चाचा, ताऊ, दादा, परदादा, नाना, मामा, मौसा या समतुल्य पैत्रिक (पित्रपुरुस) ऋण (श्राप)।
    2-“चंद्र” से मात्र, मात्रपक्ष या मात्रतुल्य स्त्रियों के ऋण (श्राप)।
    3-“मंगल” से भाई, मित्र, स्नेही या इनके समान पित्रों का ऋण (श्राप)।
    4-“बुध” से बहन-भांजी बुआ, साली, ननद या समतुल्य का ऋण (श्राप)।
    5-“गुरू” से गुरुदेव, ब्राह्मण, महात्मा, ज्ञानीजन, शिक्षक, विद्वान, पंडित या कुल पूज्य पुरुस आदि का ऋण (श्राप)।
    6-“शुक्र” से पत्नी, प्रेमिका अथवा शैया सुख देने वाली अन्य स्त्रियों का ऋण (श्राप)।
    7-“शनि” से सेवक, कर्मचारी, मातहत, वेटर, मजदूर, मिस्त्री, चांडाल (डोम), भिकारी, या दीन-दुखियों का ऋण (श्राप)।
    8-“राहु-केतु” से प्राकृतिक, पर्यावरण, सामाजिक, क्षेत्रपाल, देश, मात्रभूमी, सरकारी अधिकारी, कर चोरी, जाने-अन्जाने की गई हिंसा, जीवहत्या या अनैतिक व्यवहार व व्यापार के अभिश्राप (ऋण)।

पितृ दोष (श्राप) भी भांति भांति के पाऐ जाते हैं, इन्ही पित्रादि दोषो के कारण जातक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, अकस्मात दुर्घटनाओं से परेशान रहता है, और शनै-शनै जातक का जीवन नर्क बनता जाता है, एवं कई बार तो दिखने में सम्पंन व्यक्ती भी आंतरिक तौर से पीडित होकर मृतकों जैसा जीवन जीने पर मजबूर हो सकता है और दोष की सही जानकारी ना होने पर श्रापमुक्ती के लिऐ दर-दर भटकता रहता है व तमाम तंत्र, मंत्र, रत्न , व्रत, जाप या उपाय करके भी पीडित रहता है अन्ततः वैदिक तंत्र-ज्योतिषादि को ही ढ़ोंग मान बैठता है।
तब जातक करें क्या:-
एक बात ध्यान दें कि मोत के अलावा हर बीमारी का इलाज भी है हर एक श्राप, दोष, दुर्भाग्य, और पाप का प्रायश्चित कर्म-विधान व उसको करने का सही स्थान और मुहुर्त भी हमारे वैदिक शास्त्रों में बताया है एवं अत्यंत फलदायी भी होता है ये अकाट्य सत्य है वर्तमान कर्मों से … भविष्य का लेख भी बदल सकता है।
अतः जिस तरह पित्रादि-दोष (श्राप) या ऋण कई प्रकार के होते हैं….. उसी तरह इनके निदान (प्रायश्चित कर्म-विधान) भी देश, काल, परिस्थितियों के आधीन होकर विभिन्न तरीके से ही कराना उचित होता है।
इसलिऐ सर्वप्रथम जातक को… इस विषय के विषेशज्ञ व तत्वज्ञ ज्योतिषाचार्य से उचित दक्षिणा देकर सही परामर्श लेना चाहिये और तत्पश्चात उसके द्वारा बताऐ गये “स्थान व मुहुर्त” में ….. पूर्ण श्रद्धा और समर्पण भाव से इन श्रापों (दोषों) का प्रायश्चित कर्म-विधान करवाना चाहिऐ…. तथा आचार्यों द्वारा बताऐ गये नियम-संयमों का पूर्ण विस्वास से पालन करना चाहिऐ…. फिर आप देखेंगे ये दोष भी आपकी उन्नति में मील के पत्थर बन जाऐंगे।
: सामान का खोना/चोरी होना आज के समय मे सामान्य बात है।  परन्तु हमारे ऋषि मुनियों ने व पूर्वजों ने वैदिक काल में सामान्य जनमानस के लाभार्थ ऐसे कई सूत्रों को बनाया है जिससे हम लाभ ले सकते है, इसी विधा के अन्तर्गत अंक शास्त्र में वर्णित यह विधा से आप रहस्य जान सकते है |
अंक विद्या में गुम हुई वस्तु के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब बहुत हद तक सच साबित होता है। जैसे सर्व प्रथम आप 1 से 108 के बीच का एक अंक मन मे सोचे। और उस अंक को 9 से भाग दें। शेष जो अंक आये तो आगे लिखे अनुसार उसका उत्तर होगा।
शेष अंक 1 ( सूर्य का अंक है ) -पूर्व में मिलने की आशा है।
शेष अंक 2 ( चंद्र का अंक है ) -वस्तु किसी स्त्री के पास होने कीआशा है पर वापस नहीं मिलेगी।
शेष अंक 3 ( गुरु का अंक है ) वस्तु वापिस मिल जायेगी। मित्रों और परिवार के लोगों से पूछें।
शेष अंक 4 ( राहु का अंक है ) ढूढ़ने का प्रयास व्यर्थ है। वस्तु आप की लापरवाही से खोई है।
शेष अंक 5 ( बुध का अंक है ) आप धैर्य रख्खें वस्तु वापस मिलने की आशा है।
शेष अंक 6 ( शुक्र का अंक है ) वस्तु आप किसी को देकर भूल गए हैं। घर के दक्षिण पूर्व या रसोई घर में ढूंढने की कोशिश करें।
शेष अंक 7 ( केतु का अंक है ) चिंता न करें खोई वस्तु मिल जायेगी।
शेष अंक 8 ( शनि का अंक है ) खोई वस्तु मिलने की आशा नहीं है। वस्तु को भूल जाएँ तो अच्छा है।
शेष अंक 9 या 0 ( मंगल का अंक है ) यदि खोई वस्तु आज मिल गई तो ठीक अन्यथा मिलने की कोई आशा नहीं है।
उदाहरण :- के लिए अगर प्रश्नकर्ता ने 83 अंक कहा है तो 83 को 9 से भाग दें 83÷9 = 2 शेष आया 2 जो चंन्द्र का अंक है। वस्तु किसी स्त्री के पास है पर वापस प्राप्त नही होगीl

वक्री और मार्गी शनि

“मार्गी शनि देह कुटवावे,वक्री खुद की बुद्धि चलावे,
काम करे ना करवावन देई,केवल आवन जावन लेई.
खुद के घर में वक्री रहता,देश से जाय विदेश में रहता,
जब कभी घर आवन होई,दस पांच साल में वापिस कोई”
जब शनि कुंडली में मार्गी होता है तो शरीर से मेहनत करवाता है और जो भी काम करवाता है उसके अन्दर पसीने को निकाले बिना भोजन भी नहीं देता है और जब किया सौ का जाय तो मिलता दस ही है,इसके साथ ही शरीर के जोड़ जोड़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी की पूरी कोशिश भी करता है,रहने के लिए अगर निवास का बंदोबस्त किया जाए तो मजदूरों से काम करवाने की बजाय खुद से भी मेहनत करवाता है तब जाकर कोई छोटा सा रहने वाला मकान बनवा पाता है,जब कोई कार्य करने के लिए अपने को साधनों की तरफ ले जाता है तो साधन या तो वक्त पर खराब हो जाते है या साधन मिल ही नहीं पाते है,मान लीजिये किसी को घर बनवाने के लिए सामान लाना है,सामान लाते हुए घर के पास ही या तो साधन खराब हो जाएगा जिससे आने वाले सामान को घर तक लाना भी है और साधन भी ख़राब है या रास्ता ही खराब है उस समय मजदूरी से अगर उस सामान को लाया जाता है तो वह मजदूरी इतनी देनी पड़ती है जिससे मकान को बनवाने के लिए जो बजट है वह फेल हो रहा है इस लोभ के कारण सामान को खुद ही घर बनाने के स्थान तक ढोने के लिए मजबूर होना पड़ता है,इसके बाद अगर किसी बुद्धि का प्रयोग भी किया जाए तो कोई न कोई रोड़ा आकर अपनी कलाकारी कर जाता है,जैसे कोई आकर कह जाता है कि अमुक समय पर उसका वह काम करवा देगा लेकिन खुद भी नहीं आता है और भरोसे में रखकर काम को करने भी नहीं देता है,यह मार्गी शनि का कार्य होता है,इसी प्रकार से मार्गी शनि एक विषहीन सांप की भांति भी काम करता है,विषहीन सांप से कोई डरता नहीं है उसे लकड़ी से उछल कर हाथ से पकड़ कर शरीर को तोड़ने का काम करता है उसी जगह वक्री शनि बुद्धि से काम करने वाला होता है जैसे जातक को घर बनवाना है तो वह अपनी बुद्धि से साधनों का प्रयोग करेगा,पहले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर देगा फिर उसे अपनी बुद्धि के अनुसार किये जाने वाले काम का मेहनताना देगा,जो मेहनताना दिया जा रहा है उसकी जगह पर वह दूसरा कोई काम बुद्धि से करेगा जिससे दिया जाने वाला मेहनताना आने भी लगेगा और दिया भी जाएगा जिससे खुद के लिए भी मेहनत नहीं करनी पडी और नियुक्त किये गए व्यक्ति के द्वारा काम भी हो गया,इस प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करने के बाद जातक खुद मेहनत नहीं करता है दूसरो से बुद्धि से करवाकर धन को भी बचाता है,वक्री शनि का रूप जहरीले सांप की तरह से होता है वह पहले तो सामने आता ही नहीं है और अगर छेड़ दिया जाए तो वह अपने जहर का भी प्रयोग करता है और छेड़ने वाले व्यक्ति को हमेशा के लिए याद भी करता है,इस शनि के द्वारा मेहनत कास लोगों के लिए भी समय समय पर आराम करने और मेहनत करने के लिए अपने बल को देता है जैसे मार्गी शनि जब वक्री होता है तो मेहनत करने वाले लोग भी दिमागी काम को करने लगते है और जब वक्री शनि वाले जातको की कुंडली में वक्री होता है तो दिमागी काम की जगह पर मेहनत वाले काम करने की योजना को बनाकर परेशानी में डाल देता है.जब शनि अपने ही घर में वक्री होकर बैठा हो तो वह पैदा होने वाले स्थान से उम्र की दूसरे शनि वाले दौर में शनि का एक दौर पैंतीस साल का माना जाता है विदेश में फेंक देता है,जब कभी जातक को पैदा होने वाले स्थान में भेजता है और जल्दी ही वापस बुलाकर फिर से विदेश में अपनी जिन्दगी को जीने के लिए मजबूर कर देता है,इसके साथ ही शनि की आदत है कि वह कभी भी स्त्री जातक के साथ बुरा नहीं करता है वह हमेशा पुरुष जातक और अपने ऊपर धन बल शरीर बल बुद्धि बल रखने वाले लोगों पर बुरा असर उनके बल को घटाने और वक्त पर उनके बल को नीचा करने का काम भी करता है,घर में जितना असर पुत्र जातक को खराब देता है उतना ही अच्छा बल पुत्री जातक को देता है,लेकिन वक्री शनि से पुत्री जातक अपने देश काल और परिस्थिति से दूर रहकर विदेशी परिवेश को ही सम्मान और चलन में रखने के लिए भी माना जाता है.
: सूर्य सभी ग्रह के राजा

1)सभी ग्रह का राजा
2)राशि स्वामि सिंह
3) उच्च का10 डिग्री @ मेष राशी मे
4) नीच का10degree @ तुला राशी मे
5) मूल त्रिकोना राशि 0 डिग्री से 20 से सिंह राशि में उसके बाद 20 डिग्री से 30 डिग्री तक अपना घर
6) पूर्ण दृष्टि स्वयं से 7th भाव
7) मित्र ग्रह चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति
8)तटस्थ ग्रह बुध
9) शत्रु ग्रह शुक्र और शनि
10) तत्व – अग्नि तत्व
11) दोष-पित्त
11) प्राकृतिक कारक -पिता का
12) प्राकृतिक कारक – प्रसिद्धि, सिर, हड्डियों, स्वास्थ (तनु भाव), नवम भाव (पिता का) में,दसवा भाव (प्राधिकरण,सरकार )
13) आयु परिपक्वता-22 साल

उम्र अवधि-23 साल से 41साल,

व्यक्ति की उम्र -50 साल

14) सूर्य जैविक वस्तु पर शासन करता है ।
15) सूर्य संवेदनशील है ।
16) सूर्य चार पैर वाले वाला जीव पर शासन करता है।
17) सूर्य क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत है ।
18) सूर्य मोटा गाढ़ा वस्त्र पर शासन करता है।
19) सूर्य गहरे लाल रंग पर शासन करता है ।
20) सूर्य लाल फूल (विशेष रूप से लाल कमल) पर शासन करता है ।
21) सूर्य कड़वा स्वाद से संबंधित है।
22) सूर्य का अन्न गेंहू है।
23) सूर्य मजबूत पेड़ / विशाल पेड़ पर शासन करता है ।
24) सूर्य दिशा पूर्व है।
25) सूर्य शास्त्रीय पुस्तक के अनुसार 8 योजन(मध्यम दूरी) दर्शाता है।
26) सूर्य औसत कद का संकेत देता है।
27) सूर्य की प्रकृति क्रूर (प्राकृतिक हानिकर) है।
28) सूर्य की निती दंड निती है।
29) सूर्य का जन्मे के संकेत पैरों के माध्यम से है।
30) सूर्य ग्रिष्म मौसम पर शासन करता है ।
31) सूर्य सात्विक ग्रह है।
32) सूर्य का संकेत चतुष्कोण आकार है।
33) सूर्य का नजर उपर की तरफ है।
34) सूर्य का स्थिर स्वभाव है।
35) सूर्य का स्थान है- मंदिर,खुले क्षेत्र, रेगिस्तान, महलों, उच्चतर इमारत, सरकारी इमारतों,भव्य इमारत, बढ़िया हॉल, आधुनिक शहर है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों ।
36) जीवनवृति- प्राधिकरण नौकरियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों (बड़ी कंपनी)के रोजगार, चिकित्सा, ऊन, फलों के पेड़, मंत्रों का सस्वर पाठ, सेवा शासक या अन्य प्रमुख व्यक्ति के तहत, धोखाधड़ी, जुआ, झूठ बोलना काम, धातु का काम,
37) सूर्य के दर्शाता है- बड़प्पन, व्यक्तित्व, उदारता,गरिमा,अधिकार, नेतृत्व, रचनात्मकता, अहंकार, स्वार्थ, तानाशाही,आत्मकेन्द्रित
38)रोग- सूर्य पित्त दोष का कारक है। बुखार, नेत्र रोग, दंत समस्या, न्यूरोलॉजिकल समस्या, हड्डी की समस्या है, सिर की समस्या का संकेत देता है।
39) सूर्य का लिंग पुरुष है।
40) दसावतार- रामअवतार
41) देव- अग्नि देव

चंद्रमा ग्रहो की रानी

1)स्थिति- ग्रहो की रानी

2)राशि -कर्क राशी का स्वामी

3)पूर्ण दृष्टि- स्वयं से सप्तम भाव

4) उच्च राशी – वृषभ राशी , उच्च डिग्री 3 डिग्री

5) नीच राशी- वृश्चिक राशी, निच डिग्री 3 डिग्री

6) मूल त्रिकोना राशि 3डिग्री के बाद वृषभ में 30डिग्री तक होता है।

7) स्वयं की राशि कर्क है।

8)मित्र ग्रह -सूर्य, बुध

9) तटस्थ ग्रह -शुक्र ,शनि ,मंगल ,बृहस्पति

10) कोई ग्रह चंद्रमा के लिए शत्रु नही है।

11) दिन सोमवार है

12) मौसम वर्षा मौसम

13) चंद्रमा जलीय ग्रह है

14) चंद्रमा का गुण सतगुण है

15) चंद्रमा वैश्य वर्ण से संबंधित है

16) चंद्रमा बहुपद वश्य से संबंधित है

17) चंद्रमा कार्बनिक, वनस्पति / मूला ग्रह है

18) आयु- परिपक्वता उम्र 24 साल,

व्यक्तिगत उम्र 70 साल है

आयुअवधि- 0 – 4 साल के लिए

19)दोष- कफ और वात्त

20) शरीरांग – रक्त और चेहरा

21) चंद्रमा नया वस्त्र का संकेत देता है।

22) चंद्रमा सफेद रंग का संकेत देता है।

23) चंद्रमा दिशा उत्तर पश्चिम है

24)शास्त्रीय पुस्तक एक योजन का दूरी (कम दूरी) का संकेत देते है।

25) चंद्रमा नमकीन जायके का संकेत देता है।

26) चंद्रमा सफेद फूल, रात और पानी मे खिलने वाले फूल (जैसे लिली के फूल), तेलीय वनस्पति का संकेत देता है।

27) चंद्रमा का भोजन चावल है।

28) चंद्रमा चक्र या गोलाकार आकृति का संकेत देता है।

29) चंद्रमा कद छोटा है।

30) धातु- कांस्य, रजत और मोती

31) चंद्रमा सामने से वार करता है।

32) प्रकृति- शुभ शुक्ल पक्ष मे, कृष्ण पक्ष मे अशुभ

33)पृष्ठोदय ग्रह

34) प्राकृतिक कारक – मन, भावनाओं और माता

35)नीति -दाम नीति

36)लिंग महिला है

37) चंद्रमा उपयुक्त साथी का संकेत देता है।

39)स्वाभव -चंद्रमा अस्थिर और चंचल है।

40) स्थान -जलीय,एक्वैरियम, समुद्र तटों, सागर, नदी,नाव; हाउसबोट, जहाजों, कुओं, महिला निवास, अस्पताल, होटल, मोटल,सार्वजनिक स्थान,

41) पेशा – व्यपार ,पानी उत्पाद, मछली, मोती, मूंगा, समुद्री उत्पादों, कृषि,लाइव स्टॉक, फैशन, वस्त्र,महिलाओं से कार्य संबंधित है, यात्रा, भोजन, आतिथ्य, उद्योग,जनता से सम्बन्धित

42) मनोविज्ञान- भावनात्मक,आदरनीय, संवेदनशीलता, कल्पना शक्ति, अच्छी याददाश्त, अच्छी आदतें,अतिसंवेदनशीलता, अक्षमता, भावनाओं के साथ प्रतिक्रिया करने में कठिनाई,जलन

43)रोग – सुस्ती, उनींदापन, फेफड़े की समस्या , रक्त संबंधी बीमारी, पाचन समस्या,जलीय समस्या,मानसिक समस्या, तनाव, रक्तचाप, नकारात्मकता, अवसाद ,चेहरा से सम्बन्धित रोग, स्वाद से जुड़ी समस्या

44) दसावतार – कृष्णा अवतार

45) देवता-वरूण देव

मंगल देव सभी ग्रह के सेनापति

1)ग्रह स्थिति– सेनापति

2) राशि स्वामी – मेष और वृश्चिक

3)दृष्टि – स्वयं से सप्तम भाव से और विशेष दृष्टि स्वयं से 4th और 8th भाव

4) उच्च राशी – मंगल ग्रह 28 डिग्री @ मकर में उच्चतम होता है।

5) नीच राशी – मंगल ग्रह 28 डिग्री @ कर्क राशी में नीचतम होता है।

6) मूल त्रिकोना राशि – 0 से 12 डिग्री से मेष राशि में हाेता है। उसके बाद 30 डिग्री तक मेष राशी मे अपना राशी होता है।

7) मंगल ग्रह एक तामसिक (तमो गुण) ग्रह है।

8)मित्र ग्रह – सूर्य चंद्रमा बृहस्पति

9) तटस्थ ग्रह – शुक्र शनि

10) शत्रु ग्रह-बुध

11) मंगल ग्रह का दिन मंगलवार है।

12) मंगल ग्रह का मौसम ग्रिष्म मौसम है।

13) मंगल ग्रह एक अग्नि तत्व ग्रह है ।

14) मंगल ग्रह सूखा ग्रह पर विचार किया जाता है।

15) मंगल ग्रह पुरुष ग्रह है।

16) मंगल ग्रह क्षत्रिय वर्ण है।

17) मंगल चार पैर वाले (चौपाया)वश्य का प्रतिनिधित्व करते है।

18) मंगल अकार्बनिक पदार्थ, खनिज, अजैविक पदार्थ पर शासन करते है।

19) दोष- पित्त दोष
20) शरीर के अंग- मसल्स स्नायु छाती

21) आयु- परिपक्वता उम्र – 28 साल,
आयु अवधियों- 42-56,
व्यक्ति उम्र – युवा बच्चे जो स्कूल जाते है।

22) वस्त्र – तरह तरह रंग बिरंग

23) रंग- चमकदार लाल

24) दिशा-दक्षिण

25) दूरी- शास्त्रीय पुस्तक के अनुसार 7योजन (दूरी मध्यम)

26)स्वाद -तीखे स्वाद

27) मंगल लाल फूल, मजबूत पेड़ / कांटेदार पेड़ पर शासन करता है ।

28) मंगल ग्रह का भोजन लाल मसूर (मसूर की दाल), कॉफी, चाय, लहसुन,कड़ा शराब, कड़ा गंध का भोजन, प्रोटीन युक्त भोजन, मांस, खाद्य उत्साहित और जुनून पैदा करने वाले भोजन, धनिया, सरसो, मिर्च, मिर्च,आदि

29)आकार– बेलनाकार

30) मंगल ग्रह ऊपर की ओर नजर रखता है।

31) मंगल ग्रह का धातु ताँबा और रत्न मूंगा है।

32) कद – लघु है।

33) मंगल ग्रह पादोदय ग्रह है।

34) मंगल ग्रह प्राकृतिक क्रूर ग्रह है ।

35) नीति – मंगल दंड नीति है।

36) मंगल ग्रह शारीरिक शक्ति और भाई बहन के कारक है।

37) मंगल सिंह और कर्क राशी के लिए योगकारक है।

38)स्वाभव – हिंसक,फूर्तिला, गुस्सा, बिना समझे बुझे काम करना

39) मंगल ग्रह किसी तरह से विकृत की साथ देता हैा

40) स्थान – आग और बिजली के भारी इस्तेमाल किये जानेवाले, जैसे रसोई, उद्योग के पास आगवाले स्थानों, मशीन शॉप या यांत्रिक जगह, जला हुया क्षेत्र, युद्ध क्षेत्र, सैन्य क्षेत्र, पुलिस क्षेत्र, मुक्केबाजी और कुश्ती, लड़ाई के रूप में खेले जानेवाले क्षेत्र, शक्ति या फूर्ति की जरूरत वाले जगह , जहां लोगों को उग्रता और शारीरिक क्षमता की जरूरत हो, कसाई घर, प्रयोगशालाओ, फुटबॉल स्टेडियम, कराटे, सैन्य छावनी,

41) पेशा – पुलिस, सेना, सैन्य, रियल एस्टेट, धातु और मशीनरी , मुक्केबाजी, कुश्ती, शारीरिक लड़ाई वाले खेल, अग्नि और ऊर्जा नौकरियां, भोजन बनाने के पेशा, फायर फाइटर, बिजली से सम्बन्धित, कसाई आदि पेशे से जुड़ी काटने या ़े हिंसा से सम्बन्धित , सर्जन , हथियार फैक्ट्री, साहसिक नौकरियों, खतरनाक काम, जासूस और चोर जैसे दुष्ट लोगों के साथ सम्बन्धित, आदि

42) मनोविज्ञान- जुनून, लक्ष्य, शक्ति, साहस, योद्धा, प्रतिस्पर्धी और लड़ाई, क्रोध, चिड़चिड़ापन, जल्दबाजी, अधीरता, सभी या कुछ भी नहीं मनोवृत्ति

43)रोग- ओवर हीटिंग, बुखार, यकृत की शिकायतों, त्वचा, अल्सर, संचालन,त्वचा से सम्बन्धित शिकायतें ,हीमोग्लोबिन की समस्या, सर्जरी,

44) दसावतार -नरसिंह अवतार

45)देवता- सुब्रमण्यम स्वामी, हनुमान जी, कार्तिकेय

बुध देव ग्रहो के युवराज

1) बुध ग्रह राजकुमार है।

2) राशि स्वामी – मिथुन और कन्या राशी

3) दृष्टि – 7th भाव पर

4)उच्च राशी -कन्या राशी उच्चतम डिग्री @15 डिग्री कन्या राशी

5) नीच राशि – मीन राशी, निचतम डिग्री 15डिग्री मीन राशी

6) बुध की मूलत्रिकोना राशि 16 से 20 डिग्री कन्या राशी है। मिथुन राशी और शेष कन्या राशी अपना राशी है।

7) बुध एक राजसिक (रजो) गुण वाला ग्रह है।

8)बुध वैश्य जाति (वर्ण )के अंतर्गत आता है।

9) बुध एक भू तत्व प्रधान ग्रह है।

10) बुध जीव के अंतर्गत आता है (पशु / जीवित चीजों)।

11) बुध पक्षी की तरह उड़ान प्राणियों (अधिक) का स्वामी है।

12) बुध भाषा, मानसिकता, त्वचा, संचार, मित्र, सोच का कारक ग्रह है।

13) बुध बुधवार दिन का स्वामी है।

14) आयु-
आयु अवधि -5 के 14 साल,
परिपक्वता आयु – 32 साल,
व्यक्तिगत आयु – युवा व्यक्ति

15) दोष- वात्त, पित्त, कफ

16) शरीर के अंग- त्वचा,कुल्हो

17) वस्त्र -स्वच्छ वस्त्र

18) रंग- घास के समान हरा

19) दिशा-उत्तर

20) दूरी- मध्यम (8 योजन)

21) स्वाद -मिश्रित स्वाद

22) पुष्प – / हरा फूल / जंगली फूल फूल-पत्तियां

23) वृक्ष – बिना फल वाले पेड़ / छोटे पेड़ / खाद्य जड़ जो फल में प्रयोग किया जाता है/ खास कर हरा दूव की घास

24) खाद्य भोजन- हरा मूंग ,और अन्य हरी खाद्य वस्तु

25) आकार – त्रिभुजाकार

26) किनारे से निकल जाने की प्रवृति

27) कद – छोटा कद

28) धातु – पीतल और रत्न- पन्ना

29) उदय विधि- सिरसोदय विधि

30) नीति – भेद नीति

31) संबधि – मामा, मित्र

32) मौसम – शरद

33) लिंग – नपुंसक

34) संगत -बुध कारीगरों / कुशल / ट्रिकी लोगों के साथ संगत देना

35) स्वाभव – अस्थिर और बहुमुखी

36) मित्र ग्रह – सूर्य और शुक्र

37) तटस्थ ग्रह -मंगल,बृहस्पति, शनि

38) शत्रु- चंद्रमा

39) रोग – मानसिक समस्या, (बुद्धि समस्या), त्वचा की समस्या, स्नायु समस्या

40) स्थान – खेल कूद की जगह, बिना हिंसा वाले खेल मैदान, पार्क, स्टेडियम, खेल का मैदान, व्यापारिक जगह, परिवहन जगह, सामुदायिक जगह, संचार से संबंधित क्षेत्र, प्रकाशन स्थान, किताब की दुकान, पुस्तकालय, सार्वजनिक विधानसभाओं, डाकघर, हवाई अड्डे, स्टेशन, टेलीग्राफ जगह, लेखा कार्यालय, बैंक कार्यालय, सार्वजनिक क्षेत्र की जगह जहां कोई हिंसा न हो

41) मनोविज्ञान- बुद्धिमानी, कौशल, चतुराई, मानसिक क्षमता, समझदारी कौशल, मौखिक क्षमता, अलगाव,अनैतिकता, अवसरवादिता, स्मार्ट

42) पेशे – ज्योतिष, कारीगर , गणितज्ञ, काव्य लेखक और ऐसे लेखांकन , प्रकाशन, पुस्तक से संबंधित काम, बैंकिंग से संबंधित नौकरियों, लिपिक नौकरियों, अध्ययन के रूप में संबंधित काम ,लेखन से संबंधित काम ,वक्ता, मास्टर ऑफ बिजनेस(M.B.A.) से संबंधित कार्य, शिक्षण, पवित्र और मौखिक ज्ञान, संख्या से सम्बन्धित,धोखाधड़ी से काम, चतुराई से सम्बन्धित काम , मंत्र की पुनरावृत्ति, संचार / भाषण / त्वचा / सोच /मन से संबंधित अन्य काम

43)देवता-महा विष्णु

44) दसावतार- बुद्ध अवतार

बृहस्पति देव गगन के देवता

1) राजदरबार मे स्थिति -मंत्री, धर्म गुरु, धर्माधिकारी,

2)राशि स्वामी – धनु और मीन राशि का

3) दृष्टि- विशेष दृष्टि के रूप में खुद की स्थिति से 5वॉ और 9वॉ भाव तथा स्वयं से सप्तम भाव

4) उच्च राशी- बृहस्पति कर्क में उच्च का हाेता है। उच्चतम डिग्री 5डिग्री है।

5) नीच राशी – बृहस्पति मकर राशी मे नीच के होते है। निचतम डिग्री 5 डिग्री है।

6) बृहस्पति की मूलत्रिकोना राशि 0 डिग्री से 10 डिग्री के बीच धनु राशी में होता है। उसके बाद अपना घर होता है।

7) बृहस्पति जीवित प्राणियों के रूप में जीव पर शासन करते है।

8)दिवस – गुरुवार

9) मौसमों- हेमंत रितु

10)वर्ण- ब्राह्मण

11) वश्य -द्विपद (मानव)

12) प्राकृतिक कारक- संतान , ज्ञान, बुद्धि, भाग्य, धन, अध्ययन, आस्था,धर्म

13) शरीरांग- पेट, वसा ऊतकों

14) तत्व – गगन, आकाश, अंतरिक्ष

15) दोष – कफ

16) कद -लंबा

17) दूरी- मध्यम (शास्त्रीय 9 योजन)

18) दिशा- पुर्बोत्तर

20) आकार- अंडाकार

21) उदय विधि – सिरसोदय

22) वार का तरीका – सामने से

23) धातु- सोना, रत्न – पुखराज

24) प्रकृति – प्राकृतिक सौम्य

25) स्वाद- मीठे स्वाद

26) खाद्य – मीठा खाना, वसायुक्त भोजन (लेकिन शुद्ध और प्राकृतिक), चना दाल, मक्खन, घी, शहद, चीनी और गुड़, क्रीम, स्क्वैश, प्राकृतिक फलों का रस (लेकिन मीठा और वसायुक्त), पीपरमेंट, पुदीना,मीठा वाइन (सोम रस),

27) फूल और पेड़- चमेली, जामुन, गन्ना, जैतून का तेल, बाग के पेड़, मीठा जड़ी बूटियों का पेड़, पीपरमेंट के पेड़, मीठे फलों के पेड़,

28) रंग- पीला

29) वस्त्र – औसत और साधारण

30) लिंग – पुरुष

31) गुण- सतगुण

32) नीति -साम(काउंसिलिंग, समझा कर, हल करने के लिए बात करते हैं)

33) संगत – उपयुक्त संगत, एक-दूसरे के संगत को समझन वालेे, विद्वान, धार्मिक

34) आयु – परिपक्वता उम्र 16 साल,
व्यक्तिगत उम्र 30 साल,
आयु अवधि -57- 68 साल

35) स्थान -भंडारगृह , बैंक,लॉकर, न्यायालय, विश्वविद्यालय क्षेत्र, सोसायटी गिल्लियां, विधानसभाओं, उच्च स्तरीय वित्तीय कंपनी या संस्थान, स्टॉक और कमोडिटी बाजार, मठों, धार्मिक महल, मिशन, किसी भी जगह जहां वित्तीय या धार्मिक या बुद्धिमानी काम

36) स्वभाव -मुलायम ,रहमदिल, कर्णप्रिय आवाज वाला जिसका आवाज दूर तक हो

37)मनोविज्ञान – विकास, आध्यात्मिक, धार्मिक, बुद्धि, विश्वास, प्रलय की क्षमता, विस्तार, मानवता, महान दृष्टिकोण, खुशी, आत्मविश्वास, भौतिकवादी दृष्टिकोण, नैतिकता, असाधारण आत्मविश्वास,

38) पेशे- धार्मिक कार्यकर्ता, शिक्षक, सलाहकार, रोजगार परामर्श, दर्शन, जज, विधायिका नौकरी, कविता पाठ और शास्त्रों, ज्योतिषी, खगोल विज्ञान के अध्ययन ,योजना बनाने वाला, अंतरिक्ष से संबंधित नौकरियों, सरकारी नौकरी, पैसा उधार देने नौकरियाँ ,हाई प्रोफाइल नौकरियां

39) रोग – शरीर में वसा समस्या (मोटापा), लसीका, संचार समस्या़, ट्यूमर, लीवर की शिकायत , कान की समस्या, पेट की समस्या, अविश्वास की मानसिकता समस्या,

40) देवता – इंद्र

41) दसावतार -वामन अवतार

शुक्र ग्रह कलियुगी धन के स्वामी

1) स्थिति – सलाहकार (आनंद और प्रमोद)

2) राशि स्वामी -वृष और तुला

3)दृष्टि – स्वयं से सातवे भाव पर

4) उच्च राशी – मीन राशी , उच्चतम डिग्री 27 डिग्री @मीन राशि

5) नीच राशी – कन्या राशी , नीचतम डिग्री 27 डिग्री @कन्या राशी

6) मूलत्रिकोना राशी – 0 से 15 डिग्री तक तुला राशी मे, तदुपरांत शुक्र का अपना घर

7) गुण -राजो गुण ग्रह है

8)प्रकृति -प्राकृतिक सौम्य ग्रह

9) तत्व – जलीय ग्रह

10)वर्ण- ब्राह्मण

11) वश्य -द्विपद (दो पैरों वाला प्राणी)

12) श्रेणी- वनस्पति, मूला

13) दिशा- दक्षिण पूर्व
14) दूरी – लंबी दूरी (शास्त्रीय 16 योजन)

15) कद – औसत (मध्यम)

16) दोष- कफ और वात

17) शरीरांग – यौन अंगों, कमर, शुक्राणु, डिंब

18) दिवस – शुक्रवार

19) सत्र- वसंत रितु

20) रंग – सफेद और तरह तरह के आकर्षक रंग

21)वस्त्र -मजबूत, टिकाऊ और अच्छी तरह से सजाया गया

22) स्वाद- खट्टा

23) आकार- अष्टकोण

24) वियत – बग़ल से निकल जाना

25) नीति – साम नीति

26) लिंग – स्त्री लिंग

27) प्राकृतिक कारक – जीवन साथी, विलीसिता, वाहन, शादी, वासना, धन (लक्ष्मी), सौंदर्य, कला, संगीत, बिस्तर की खुशी, कोई बात जो विलीसिता से सम्बन्धित हो,खाद्य स्वाद, किसी भी महिला से सम्बन्धित बात,खूबसूरती

28) आयु – परिपक्वता उम्र 25 साल,
व्यक्तिगत उम्र- किशोर ,
उम्र अवधियां-15-22 साल

29) फूल और वृक्ष – सफेद कमल, फूल के पेड़, सुगंधित पेड़, फैंसी पेड़ और फूल, सफेद चंदन, , इत्र बनाने फूल और पेड़, उद्यान फूल, कपास, रेशम

30) खाद्य -बीन्स, दही, फैंसी और विदेशी सब्जियां, फल और जामुन, बेरी, स्वाभाविक रूप मीठे और खट्टे फल का रस ,रिफाइंड स्वीटनर (कैंडी, ग्लूकोज, चीनी,आदि), शानदार भोजन और शराब, विदेशी मसाले, आटा, मानसिक खुशी औंर संतोष प्रदान करने वाले भोजन या तरल,

31)उदय विधि- सिरसोदय

32) स्वभाव -उत्तम, मिलनसार, खुश,संतुलित भावनाओं वाला

33) मित्र- शनि और बुध

34) तटस्थ- मंगल और बृहस्पति

35) शत्रु- सूर्य और चंद्रमा

36) संगत – उत्तम, महिलाओं के साथ

37) स्थान – बेडरूम, आनंदायक और मनोरंजक जगह, थियेटर, भोजनालय, ब्यूटी सैलून, आर्ट गैलरी, संगीत और नृत्य हॉल, मॉल, ओपेरा, सिम्फनी हॉल, फैशन से संबंधित क्षेत्र, क्लब, सुरुचिपूर्ण दुकानें,

38) पेशा- महिलाओं से संबंधित नौकरियों, पशु (जैसे गाय, घोड़ा)से सम्बन्धित, कृषि नौकरियों से संबंधित नौकरियों , अभिनय, मॉडलिंग, नृत्य, संगीतकार, लेखक या किसी भी अन्य कला से संबंधित नौकरियों, काव्य, फैशन डिजाइनर, आभूषण डिजाइनर, सलाहकार, परामर्शदातां, रोमांस और सौंदर्य से संबंधित नौकरियों, इत्र उद्योग, रजत, कपास और रेशम से संबंधित नौकरियों, ग्लैमर, आकर्षक प्रतिनिधि नौकरियां

39) मनोविज्ञान – विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, प्रेम, सुशीलता, नम्रता, सद्भाव, रोमांस, भावुकता, मित्रता, लालित्य कला प्रेम , आलस्य, यौन भ्रष्ट, स्वादाभाव, स्नेह, आकर्षण

40) रोग – यौन अंगों में विकार, यौन समस्या, सेक्स या विपरीत लिंग के सपना देखना, मूत्र समस्या से संबंधित रोग, मनोवैज्ञानिक समस्या, स्वाद के नुकसान से संबंधित, शरीर आकर्षण हानि के लिए, नेत्र से संबंधित रोग

41) दशावतार -परशुराम अवतार

42) देवता- शची देवी,

शनि देव न्याय और दुर्भाग्य के स्वामी

1) ग्रहो के राजदरबार मे स्थान – कर्मचारी, शनि हमारे कर्मो का न्यायधिश हैं ।

2) ऱाशीआधिपत्य -मकर और कुंभ राशि

3)दृष्टि- स्वयं से 7वां औंर स्वयं से 3rd औंर 10th भाव

4) उच्च राशी – तुला (तुला) राशि तथा उच्चतम डिग्री 20 डिग्री

5) नीच राशी – मेष राशि और नीचतम डिग्री 20 डिग्री

6) मूलत्रिकोना राशि 0 से 20 डिग्री तक कुंभ राशी में

7) तत्व – वायु तत्व

8)वर्ण (जाति) – शुद्र

9)वश्य – आकाश मे विचरण करने वाले जीव

10) श्रेणी – धातु (खनिज, अकार्बनिक पदार्थ)

11)नीति -भेद नीति

12) प्रकृति- स्वाभाविक रूप क्रूर

13) दोष- वात्त

14) कद -लंबा

15)दूरी- बहुत लंबी दूरी( शास्त्रीय 20 योजन)

16) रंग -काला, नीला

17) वस्त्र – पुराने और बदसूरत

18) दिशा – पश्चिम

19) गुण -तमसिक (तमो) गुण

20) आकार- खिड़की के आकार

21) झलक – नीचे की ओर

22) उदय विधी- पादोदय

23) धातु- लोहा और रत्न – नीलम

24) दिवस – शनिवार

25) मौसमों -शिशिर रितु

26) लिंग -नपुंसक

27) प्राकृतिक कारक- दुर्भाग्य, नौकर, आयु (जीवन काल), व्यय, कर्मकारक, पुरानी परंपरा

28) संगत – उम्रदराज साथी, निम्न वर्ग, बीमार, कुरूप

29) आयु- परिपक्वता उम्र – 36 वर्ष
व्यक्तिगत उम्र – लंबी आयु लगभग 100 वर्ष,
आयु अवधि- 69 to108 वर्ष

30) स्वाद -कसैला

31) फूल / पेड़ – नीला फूल, बदसूरत पेड़ ,सूखा पेड़

32) खाद्य- उड़द दाल ,भारी भोजन,देर से पचने वाला भोजन, फलियां, अल्फला, मटर के दाने, मूंगफली, सोयाबीन, काले रंग के भोजन, अचार, राई, पुरानी परंपरा के भोजन, अशुद्ध भोजन, जंक फूड, कड़वी जड़ी बूटी, जड़ें , नमक, सिरका, कड़ी शराब, विदेशी भोजन

33)स्वाभव – कठोर हृदय, क्रूर, रुखा

34) मित्र ग्रह- शुक्र, बुध

35) तटस्थ ग्रह – बृहस्पति

36) शत्रु ग्रह- सूर्य, चंद्रमा, मंगल

37) स्थान- पुरानी जगह, गंदे स्थान पर, मलिन बस्तियों, गटर, नाली, कचरा, तहखाने, खान, कब्र, एकांत, उपेक्षित जगह, पुराने पारंपरिक जगह, पुराने ऐतिहासिक जगह है,

38) पेशा -नीच वर्ग के कर्मचारी (जैसे कुली, चपरासी, ऐसे वर्ग के अंतर्गत आने वाले है अन्य कार्य), शारीरिक श्रम, निम्न वर्ग के नौकरियां के साथ उद्योग, कर्मचारी से काम कराने वाले, कंदमूल का व्यापार करने वाले, स्टोन और खान सहित पृथ्वी के नीचे खनन, लकड़ी प्रकार की सामग्री का काम, कसाई सेवा, मूर्तिकला, कठिन शारीरिक काम करने वाले, कानूनी काम करने वाले , वकील

39)स्वाभव—प्रभुत्वहीन, अनुसासन, जिम्मेदारी, अनुकूलनशीलता, उदासी ,विश्वास की कमी, संदेह, नीचता, अकेलापन, अवसाद, इस्तिफा, अड़ियल

40) रोग – गठिया, लकवा, नसों विकार, गठिया, दुर्बलता, शरीर की शीतलता, कार्निकल शिकायते, वात संबंधित रोग

41) सत्तारूढ़ देवता- ब्रह्मा

42)दसावतार -कूर्मावतार

राहु देव कल्पना लोक के स्वामी

1) स्थिति -असुर

2)राशी स्वामी- किसी भी राशि का स्वामी नही है।लेकिन वह खुद की दशा मे भाव स्वामी की तरह व्यवहार करता है। राहु को छद्म ग्रह माना जाता है।

3)दृष्टि – 5th और 9th भाव स्वयं से

4) उच्च राशी – वृष राशि (या मिथुन राशी)

5) नीच राशी – वृश्चिक राशि( या धनु राशी),

6) मूलत्रिकोना राशी- कन्या राशी , अपना घर – कुम्भ राशी

7) मित्रता- शनि के समान क्याेंकि राहु शनि के समान व्यवहार करता है। राहु का मुख्य शत्रु चंद्रमा और सूर्य है ।

8)दिवस -अमावस्या और शनिवार को

9 ) प्रकृति- कार्बनिक पदार्थ, खनिज

10)वर्ण -मल्लेचछ

11)वश्य – बहुपद

12) दिशा -दक्षिण पश्चिम दिशा

13) दूरी- लंबी दूरी में श्रेणी- शास्त्रीय 20 योजन

14) आकार- रेखा

15)कद -लंबा

16)झलक -नीचे की और

17) प्रकृति- स्वाभाविक रूप क्रूर

18)उदयविधी – सिरसोदय

19) गुण – तामसिक (तमो)गुण

20)लिंग – स्त्री (महिला)

21) रंग- काला

22) धातु- सीसा और रत्न – गोमेद

23)संगत -राहु विधवा और तलाकशुदा साथी का संगत देता है।

24)स्वाभव – विस्फोटक, गुप्त, छद्म,अफवाह, कल्पना शक्ति, असमाजिक, छलिया, मिलनसार(अपना मतलब का यार)

25)आयु – परिपक्वता उम्र – 48 वर्ष ,
व्यक्तिगत आयु – बुजुर्ग आयु
आयु अवधि – 69 से 108 वर्ष

26)स्थान – विदेशी भूमि, मादक जगह, धोखाधड़ी वाली जगह, अवैध गतिविधियों वाली जगह, शनि से संबंधित स्थान

27)मनोविज्ञान – काल्पनिक ,स्मार्ट,अफवाहबाज, गुप्त, छल,अंदरूणि जानकारी, स्वछन्दता , बरहरूपिया, अस्थिर चित्त वाला, अनिश्चितता, भागने वाला, शराबी, लत या आदत,

28) पेशा – शनि के समान , विदेशी नौकरिया, आप्रवासन नौकरियों के रूप में, शराब से संबंधित नौकरियां, मादक पदार्थों से संबंधित नौकरिया, कल्पनासील नौकरियों, ज्योतिष, करतब दिखाने, धोखाधड़ी वाली नौकरी, सर्जन, संचार नौकरियों, मीडिया, फिल्म, मॉडलिंग

29) रोग – अंदरूणि शरीर के रोग, हिस्टीरिया, पागलपन, मिर्गी, त्वचा रोग, विष के कारण सभी प्रकार से उत्पन्न रोग

30) संबधि -राहु नाना – नानी

31) राहु कालपुरुष का अंदरुणि मुख है।

32) राहु असुर का सिर है जो सभी दिशाओं मे घुमता है।

33) राहु मोह माया निर्माता के रूप में विचार करते है।

34)राहु कुशल और मीठा वक्ता है जो अपनी वाणी से सामने वाले को छलने की क्षमता रखता है। झूठ की सारी हदें पार कर देगा पर सामने वाले को उसकी असत्यता का पता नही चलेगा। साधरण बोलचाल की भाषा मे बंडलवाज है।

35) राहु भौतिकवादी दुनिया के प्रति लगाव देता है।

36) राहु किसी भी बात की अंतर्दृष्टि देखने के लिए शक्ति देता है, तो यह दुनिया से छिपे हुए राज खोज करने के लिए शक्ति देता है।

37) राहु की दंड विधि मीठा जहर की तरह है जो बहुत खतरनाक है। राहु अचानक और बिना दर्द के दंड देते है।

38) दसावतार – वराह अवतार

केतु देव आध्यात्मिकता के कारक

1) स्थिति – असुर

2) दृष्टि – खुद की स्थिति से 5 वीं 7 वीं 9 वीं भाव।

3) किसी भी राशि का स्वामी नहीं है। लेकिन वह खुद की दशा के दौरान भाव जहां बैठते हैं, उस भाव के स्वामी की तरह व्यवहार करते हैं।

4) उच्च राशी – धनु राशि

5) मूल त्रिकोना राशि – मीन राशि और वृश्चिक अपना घर है।

6) मित्रता – मंगल ग्रह के समान है। लेकिन सूर्य और चंद्रमा केतु का शत्रु विचार है।

7) वश्य -बहुपद प्राणी

8)वर्ण- मल्लेचछ

9) दिशा-दक्षिण पश्चिम

10) दूरी- कम दूरी( सात योजन)

11) शरीर के अंग- पैर

12) आकार| – पोल पर एक ध्वज की तरह

13) प्रकृति- स्वाभाविक रूप क्रूर

14) हाइट्स – लंबा

15) उदय विधि- पृष्ठोदय

16) झलक – ऊपर की ओर नजर

17) गुण – तामसिक (तमो)

18) लिंग – नपुंसक

20) संबंध – पैतृक दादा- दादी

21)आयु- परिपक्वता उम्र 48 साल,
आयु अवधियों-69-108,
व्यक्तिगत आयु- वृद्ध पुरुष लगभग100 वर्ष का

22)मनोविज्ञान – सार्वभौमिक,अड़ियल, सनकी, कट्टरता, विस्फोटकता, हिंसा, भावनात्मक तनाव, अनैतिकता,आवेग,आध्यात्मिकता,त्याग, धोखाधड़ी से पीड़ित,दर्द ,दिमाग को केन्द्रित करना

23) स्थान- मंगल के समान , आध्यात्मिक जगह, जलीय जगह, भावनात्मक जगह, मानसिक उपचार केजगह,

24) पेशा- मंगल के समान, आध्यात्मिक ज्ञान से संबंधित नौकरियों, दार्शनिक, मंदिर और अन्य काम में पुजारी के रूप में, तथा अपने भाव जहाँ पर विराजमान हों

25) केतु भीतर के सत्य को पता उजागर करने वाले ग्रह है।

26) केतु कड़वे/कठोर सच्चाई का प्रतिक है।

27) केतु अध्यात्म का प्राकृतिक कारक हैं।

28) केतु भौतिकवादी (संसारिक सुख) दुनिया से अलगाववाद का प्रतिनिधित्व करते है।

29) केतु मे भीतरी की आत्म ज्ञान में वृद्धि करने की शक्ति है।

30) केतु किसी भी बात की ओर एकाग्रता की शक्ति देने वाला ग्रह है।

31) यह हमेशा बोला जाता है कि केतु मंगल ग्रह जैसे है इस का मुख्य उद्देश्य केतु के क्रूर व्यवहार को मंगल ग्रह के समान प्रदर्शित करना है।

32) दंड विधी – केतु विधि बहुत ही खतरनाक है। भयानक कष्ट जो दर्द से भरपूर होता है।

33) केतु अपने परिणामों को बहुत जल्द देता है।

34) रोगों – हिस्टीरिया, महामारी, त्वचा की समस्या, बहुत उच्च मानसिक तनाव, दुर्घटना का मूल कारक हैं जिसमे कट या फट जाय

35) दसावतार – मत्स्य अवतार
: सपने तथा संभावित फल,,,, 😳🤔
1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
44- चांदी देखना- धन लाभ होना
45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
46- कैंची देखना- घर में कलह होना
47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
48- लाठी देखना- यश बढऩा
49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश
57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
70- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना
101- गुरु दिखाई देना- सफलता मिलना
102- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ
103- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति
104- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना
105- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति
106- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति
107- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि
108- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि
109- जाल देखना- मुकद्में में हानि
110- जेब काटना- व्यापार में घाटा
111- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना
112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ
113- आकाश देखना- पुत्र प्राप्ति
114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
115- इंद्रधनुष देखना- उत्तम स्वास्थ्य
116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा
121- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
122- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
123- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
124- अर्थी देखना- बीमारी से छुटकारा
125- झरना देखना- दु:खों का अंत होना
126- बिजली गिरना- संकट में फंसना
127- चादर देखना- बदनामी के योग
128- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि
129- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ
130- रत्न देखना- व्यय एवं दुख
131- चंदन देखना- शुभ समाचार मिलना
132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय की शुरुआत
133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान की प्राप्ति
134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना
135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत
136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि
137- डाकघर देखना- व्यापार में उन्नति
138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या
139- ढोल दिखाई देना- किसी दुर्घटना की आशंका
140- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना
141- तपस्वी दिखाई- देना दान करना
142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में किसी बुर्जुग की मृत्यु
143- डाकिया देखना- दूर के रिश्तेदार से मिलना
144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय
145- विवाह होते हुए देखना- शोक होना
146- दवात दिखाई देना- धन आगमन
147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता
148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ
149- कचहरी देखना- विवाद में पडऩा
150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण
151- आंख खुजाना- धन लाभ
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जय श्री राम🙏🏻🙏🏻
: जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म किसे कहते हैं?

अधिकतर लोगों को यह प्रश्न कठिन या धार्मिक लग सकते हैं क्योंकि उन्होंने वेद, उपनिषद या गीता को नहीं पढ़ा है। उसमें शाश्वत प्रश्नों के शाश्वत उत्तर है।

जैसे कोई पूछ सकता है कि जन्म क्या है? हो सकता है कि आपके पास उत्तर हो कि किसी आत्मा का किसी शरीर में प्रवेश करना जन्म है, लेकिन यह सही उत्तर नहीं है।

आत्मा का भी सूक्ष्म शरीर होता ‌‌है। इसीलिए कहते हैं कि आत्मा के सूक्ष्म शरीर को लेकर स्थूल शरीर से संबंध स्थापित हो जाना ही जन्म है। अब सवाल यह उठता है कि यह संबंध कैसे स्थापित होता है?

दरअसल, प्राणों के द्वारा यह संबंध स्थापित होता है। सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच प्राण प्राण सेतु की तरह या रस्सी के बंधन की तरह है। जन्म को जाति भी कहा जाता है। जैसे उदाहरणार्थ.: वनस्पति जाति, पशु जाति, पक्षी जाति और मनुष्य जाति। जन्म को जाति कहते हैं। कर्मों के अनुसार जीवात्मा जिस शरीर को प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है।

जन्म के बाद मृत्यु क्या है?
इसका उत्तर जन्म के उत्तर में ही छिपा हुआ है। दरअसल, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच जो प्राणों का संबंध स्थापित है उसका संबंध टूट जाना ही मृत्यु है। प्रश्न यह भी है कि प्राण क्या है? आपके भीतर जो वायु का आवागमन हो रहा है वह प्राण है। प्राण को प्राणायाम से सेहतमंद बनाए रखा जा सकता है। प्राण के निकल जाने से व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है। यदि प्राणायाम द्वारा प्राण को शुद्ध और दीर्घ किया जा सके तो व्यक्ति की आयु भी दीर्घ हो जाती है।

जिस तरह हमारे शरीर के बाहर कई तरह की वायु विचरण कर रही है उसी तरह हमारे शरीर में भी कई तरह की वायु विचरण कर रही है। वायु है तो ही प्राण है। अत: वायु को प्राण भी कहा जाता है। वैदिक ऋषि विज्ञान के अनुसार कुल 28 तरह के प्राण होते हैं। प्रत्येक लोक में 7-7 प्राण होते हैं। जिस तरह ब्राह्माण में कई लोकों की स्थिति है जैसे स्वर्ग लोक (सूर्य या आदित्य लोक), अं‍तरिक्ष लोक (चंद्र या वायु लोक), पृथिवि (अग्नि लोक) लोक आदि, उसी तरह शरीर में भी कई लोकों की स्थिति है।

मृत्यु के बाद पुनर्जन्म क्या है?
उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है।

यह सबसे कम समयावधि है। सबसे ज्यादा समायावधि है 30 सेकंड। सूक्ष्म शरीर को धारण किए हुए आत्मा का स्थूल शरीर के साथ बार-बार संबंध टूटने और बनने को पुनर्जन्म कहते हैं।

कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है।
: पूजा कब ” आडम्बर ” मे परिवर्तित हो जाती है इसका हमे भान नहीं रहता।पूजा को ठीक से समझने के लिये हमे ” समर्पण ” को समझना आवश्यक है क्योंकि समर्पण के बिना पूजा संभव नहीं है ।भक्त एवं ज्ञानी दोनो समर्पण करते हैं लेकिन दोनो के समर्पण मे थोड़ा किन्तु मूलभूत अन्तर होता है।भक्त जब समर्पण करता है तो उसका समर्पण ” परमात्मा ” के प्रति होता है।उसमे परमात्मा का पता है लेकिन ज्ञानी जब समर्पण करता है तो वह शुद्ध समर्पण होता है, वह किसी के प्रति नही होता ,बस समर्पण की प्रक्रिया घटती है।जबतक भक्त का समर्पण ज्ञानी के समर्पण मे रूपान्तरित न हो जाय ,बात नही बनती है ।आरम्भ में भक्त के समर्पण में परमात्मा मौजूद रहता है जिसके प्रति वह समर्पण करता है किन्तु बाद में ऐसी घड़ी भी आती है जब भक्त व भगवान एक दूसरे मे लीन हो जाते है तब शुद्ध समर्पण रह जाता है और पूजा पूर्णता को प्राप्त होती है।एक तो भक्त का समर्पण है जो ” प्रेम” से उत्पन्न होता है और दूसरा ज्ञानी का समर्पण है जो ” बोध ” से पैदा होता है इसीलिए ज्ञानी भक्त के समर्पण को समझ नही पाता ।हमारे देश मे किसी भी स्थान पर वृक्ष आदि के नीचे किसी अनगढ़ अमूर्त पत्थर को रखकर रंग दिया जाता है ,सिन्दूर लगा दिया जाता है और उसके सामने बैठकर पुष्प चढाकर भक्त पूजा शुरु कर देता है ।ज्ञानी को इस प्रक्रिया पर हंसी आती है लेकिन भक्त कहता है कि बिना सहारे के कैसे पूजा करें? कोई आलंबन चाहिए, कोई बहाना चाहिए ।मूल बात तो पूजा का भाव है लेकिन पत्थर के सहारे पूजा आसान हो जाती है ।जैसे हम छोटे बच्चे को सिखाते है ” ग” से गणेश या ” ग” से गदहा ।यह तो बहाना है , सहारा है उसे भाषा सिखाने का ।बच्चा एक बार सीख – समझ जायेगा तो फिर इस सहारे को छोड़ देगा ,बार- बार “ग” से गणेश थोड़े ही दोहरायेगा ।इसी तरह पूजा के लिये प्रारंभिक स्थिति में सहारा चाहिये होता है ,भक्त को पत्थर का सहारा मिलता है जिसपर वह अपना प्रेम उड़ेल देता है और पत्थर ही उसके लिये परमात्मा हो जाता है।समस्या तो तब उत्पन्न होती है जब हम इस सहारे पर ही अटक जाते हैं, “ग” गणेश से आगे नही बढते और पूजा अधूरी रह जाती है और उसकी जगह आडंबर ले लेता है ।भक्त की पूजा तब तक पूर्ण नही होती जब तक वह सहारे को नही छोड़ता यानी जब भक्त और परमात्मा एक हो जाते हैं और शुद्ध समर्पण शेष रह जाता है ।दरअसल पूजा सिर्फ कर्मकांड ही नही बल्कि ” भावावस्था ” का नाम है।
: पेड़ो के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी।
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♡. पेड़ धरती पर सबसे पुरानें living organism हैं, और ये कभी भी ज्यादा उम्र की वजह से नही मरते.
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♡. हर साल 5 अऱब पेड़ लगाए जा रहे है लेकिन हर साल 10 अऱब पेड़ काटे भी जा रहे हैं.
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♡. एक पेड़ दिन में इतनी ऑक्सीजन देता है कि 4 आदमी जिंदा रह सकें.
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♡.देशों की बात करें, तो दुनिया में सबसे ज्यादा पेड़ रूस में है उसके बाद कनाडा में उसके बाद ब्राज़ील में फिर अमेरिका में और उसके बाद भारत में केवल 35 अऱब पेड़ बचे हैं.
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♡.दुनिया की बात करें, तो 1 इंसान के लिए 422 पेड़ बचे है. लेकिन अगर भारत की बात करें,तो 1 हिंदुस्तानी के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं.
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♡. पेड़ो की कतार धूल-मिट्टी के स्तर को 75% तक कम कर देती है. और 50% तक शोर को कम करती हैं.
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♡. एक पेड़ इतनी ठंड पैदा करता है जितनी 1 A.C 10 कमरों में 20 घंटो तक चलने पर करता है. जो इलाका पेड़ो से घिरा होता है वह दूसरे इलाकों की तुलना में 9 डिग्री ठंडा रहता हैं.
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♡. पेड़ अपनी 10% खुराक मिट्टी से और 90% खुराक हवा से लेते है. एक पेड़ में एक साल में2,000 लीटरपानीधरती से चूस लेता हैं.
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♡. एक एकड़ में लगे हुए पेड़ 1 साल में इतनीCo2सोख लेते है जितनीएक कार 41,000 km चलने परछोड़ती हैं.
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♡. दुनिया की 20% oxygen अमेजन के जंगलो द्वारा पैदा की जाती हैं. ये जंगल 8 करोड़ 15लाख एकड़ में फैले हुए हैं.
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♡. इंसानो की तरह पेड़ो को भी कैंसर होती है.कैंसर होने के बाद पेड़ कम ऑक्सीजन देने लगते हैं.
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♡. पेड़ की जड़े बहुत नीचे तक जा सकती है. दक्षिण अफ्रिका में एक अंजीर के पेड़ की जड़े 400 फीट नीचे तक पाई गई थी.
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♡. दुनिया का सबसे पुराना पेड़स्वीडन के डलारना प्रांतमें है.टीजिक्कोनाम का यह पेड़ 9,550 साल पुराना है. इसकी लंबाई करीब 13 फीट हैं.
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♡.किसी एक पेड़ का नाम लेना मुश्किल है लेकिन तुलसी, पीपल, नीम और बरगद दूसरों के मुकाबले ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते हैं.

🙏इस बरसात में कम से कम एक पेड़ अवश्य लगायें🙏
स्वयं जगें लोगों को जगाएं…मिलकर पर्यावरण बचाएँ
🙏 जय प्रकृति.🙏🏻
: 💝Asli charann vandna essey hoti hai 💝🙏🙏 एकअनोखा मुकदमा
न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया !अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था!
एक 60 साल के व्यक्ति ने ,अपने 75 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था!
मुकदमा कुछ यूं था कि “मेरा 75 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 95 साल की मां की देखभाल कर रहा है !
मैं अभी ठीक हूं, सक्षम हू। इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय”।
न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो!
मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ ! अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।
छोटा भाई कहता कि पिछले 35 साल से,जब से मै नौकरी मे बाहर हू अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।जबकि आज मै स्थायी हूं,बेटा बहू सब है,तो मां भी चाहिए।
परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला!
आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है!
मां कुल 30-35 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी |उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती!
आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।
आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।
फैसला सुनकर बड़े भाई ने छोटे को गले लगाकर रोने लगा !
यह सब देख अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी के आंसू छलक पडे।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो!
ये क्या बात है कि ‘माँ तेरी है’ की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं यह पाप है।
धन दौलत गाडी बंगला सब होकर भी यदि मा बाप सुखी नही तो आप से बडा कोई जीरो(0)नही।
निवेदन है इस पोस्ट को शेयर जरूर करें,ताकि मां बाप को हर जगह सम्मान मिले ….🙏💐🙏♥🌺🌸💐🌺
जानिए आपके प्राण कहाँ से निकलेंगे…

प्रत्येक व्यक्ति अलग इंद्रिय से मरता है।किसी की मौत आंख से होती है, तो आंख खुली रह जाती है—हंस आंख से उड़ा। किसी की मृत्यु कान से होती है। किसी की मृत्यु मुंह से होती है, तो मुंह खुला रह जाता है।

अधिक लोगों की मृत्यु जननेंद्रिय से होती है, क्योंकि अधिक लोग जीवन में जननेंद्रिय के आसपास ही भटकते रहते हैं, उसके ऊपर नहीं जा पाते।

आपकी जिंदगी जिस इंद्रिय के पास जीयी गई है, उसी इंद्रिय से मौत होगी। औपचारिक रूप से हम मृतक को जब मरघट ले जाते हैं तो उसकी कपाल—क्रिया करते हैं, उसका सिर तोड़ते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है। पर समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु उस तरह होती है। समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु सहस्रार से होती है।

जननेंद्रिय सबसे नीचा द्वार है। जैसे कोई अपने घर की नाली में से प्रवेश करके बाहर निकले। सहस्रार, जो तुम्हारे मस्तिष्क में है द्वार, वह श्रेष्ठतम द्वार है।

जननेंद्रिय पृथ्वी से जोड़ती है, सहस्रार आकाश से। जननेंद्रिय देह से जोड़ती है, सहस्रार आत्मा से। जो लोग समाधिस्थ हो गए हैं, जिन्होंने ध्यान को अनुभव किया है, जो बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं, उनकी मृत्यु सहस्रार से होती है।

उस प्रतीक में हम अभी भी कपाल—क्रिया करते हैं। मरघट ले जाते हैं, बाप मर जाता है, तो बेटा लकड़ी मारकर सिर तोड़ देता है। मरे—मराए का सिर तोड़ रहे हो!

प्राण तो निकल ही चुके, अब काहे के लिए दरवाजा खोल रहे हो? अब निकलने को वहां कोई है ही नहीं। मगर प्रतीक, औपचारिक, आशा कर रहा है बेटा कि बाप सहस्रार से मरे; मगर बाप तो मर ही चुका है।

यह दरवाजा मरने के बाद नहीं खोला जाता, यह दरवाजा जिंदगी में खोलना पड़ता है। इसी दरवाजे की तलाश में सारे योग, तंत्र की विद्याओं का जन्म हुआ। इसी दरवाजे को खोलने की कुंजियां हैं योग में, तंत्र में।

इसी दरवाजे को जिसने खोल लिया, वह परमात्मा को जानकर मरता है। उसकी मृत्यु समाधि हो जाती है। इसलिए हम साधारण आदमी की कब्र को कब्र कहते हैं, फकीर की कब्र को समाधि कहते हैं—समाधिस्थ होकर जो मरा है।

प्रत्येक व्यक्ति उस इंद्रिय से मरता है, जिस इंद्रिय के पास जीया। जो लोग रूप के दीवाने हैं, वे आंख से मरेंगे; इसलिए चित्रकार, मूर्तिकार आंख से मरते हैं। उनकी आंख खुली रह जाती है। जिंदगी—भर उन्होंने रूप और रंग में ही अपने को तलाशा, अपनी खोज की। संगीतज्ञ कान से मरते हैं। उनका जीवन कान के पास ही था।

उनकी सारी संवेदनशीलता वहीं संगृहीत हो गई थी। मृत्यु देखकर कहा जा सकता है—आदमी का पूरा जीवन कैसा बीता। अगर तुम्हें मृत्यु को पढ़ने का ज्ञान हो, तो मृत्यु पूरी जिंदगी के बाबत खबर दे जाती है कि आदमी कैसे जीया; क्योंकि मृत्यु सूचक है, सारी जिंदगी का सार—निचोड़ है—आदमी कहां जीया।

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मृत्यु के समय जीव के साथ क्या घटित हो रहा होता है उसका वहां अन्य लोगों को अंदाज़ नही हो पाता । लेकिन घटनाएं तेज़ी से घटती हैं । मृत्यु के समय व्यक्ति की सबसे पहले वाक उसके मन में विलीन हो जाती है ।उसकी बोलने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

उस समय वह मन ही मन विचार कर सकता है लेकिन कुछ बोल नहीं सकता । उसके बाद दृष्टिऔर फिरश्रवण इन्द्रिय मन में विलीन हो जाती हैं । उस समय वह न देख पाता है, न बोल पाता है और न ही सुन पाता है ।/

उसके बाद मन इन इंद्रियों के साथ प्राण में विलीन हो जाता है उस समय सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है, केवल श्वास-प्रश्वास चलती रहती है ।

इसके बाद सबके साथ प्राण सूक्ष्म शरीर मे प्रवेश करता है । फिर जीव सूक्ष्म रूप से पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश (पञ्च तन्मात्राओं) का आश्रय लेकर हृदय देश से निकलने वाली 101 नाड़ियों में से किसी एक में प्रवेश करता है ।

हृदय देश से जो 101 नाड़ियां निकली हुई है, मृत्यु के समय जीव इन्हीं में से किसी एक नाड़ी में प्रवेश कर देह-त्याग करता है । मोक्ष प्राप्त करने वाला जीव जिस नाड़ी में प्रवेश करता है, वह नाड़ी हृदय से मस्तिष्क तक फैली हुई है । जो मृत्यु के समय आवागमन से मुक्त नहीं हो रहे होते वे जीव किसी दूसरी नाड़ी में प्रवेश करते हैं ।

जीव जब तक नाड़ी में प्रवेश नही करता तब तक ज्ञानी और मूर्ख दोनों की एक गति एक ही तरह की होती है । नाड़ी में प्रवेश करने के बाद जीवन की अलग अलग गतियां होती हैं।

श्री आदि शंकराचार्य जी का कथन है कि ‘जो लोग ब्रह्मविद्या की प्राप्ति करते हैं वो मृत्यु के बाद देह ग्रहण नही करते, बल्कि मृत्यु के बाद उनको मोक्ष प्राप्त हो जाता है’ । श्री रामानुज स्वामी का कहना है ‘ब्रह्मविद्या प्राप्त होने के बाद भी जीव जीव देवयान पथ पर गमन करने के बाद ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है, उसके बाद मुक्त हो जाता है’ ।

देवयान पथ के संदर्भ में श्री आदि शंकराचार्य जी ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि ‘जो सगुण ब्रह्म की उपासना करते हैं वे ही सगुण ब्रह्म को प्राप्त होते हैं और जो निर्गुण ब्रह्म की उपासना कर ब्रह्मविद्या प्राप्त करते हैं वे लोग देवयान पथ से नहीं जाते’।

अग्नि के सहयोग से जब स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, उस समय सूक्ष्म शरीर नष्ट नहीं हुआ करता ।

मृत्यु के बाद शरीर का जो भाग गर्म महसूस होता है, वास्तव में उसी स्थान से सूक्ष्म शरीर देह त्याग करता है । इसलिए वह स्थान थोड़ा गर्म महसूस होता है ।

गीता के अनुसार जो लोग मृत्यु के अनंतर देवयान पथ से गति करते हैं उनको ‘अग्नि’ और ‘ज्योति’ नाम के देवता अपने अपने अधिकृत स्थानों के द्वारा ले जाते हैं । उसके बाद ‘अह:’ अथवा दिवस के अभिमानी देवता ले जाते हैं । उसके बाद शुक्ल-पक्ष व उत्तरायण के देवता ले जाते हैं ।

थोड़ा स्पष्ट शब्दों में कहे तो देवयान पथ में सबसे पहले अग्नि-देवता का देश आता है फिर दिवस-देवता, शुक्ल-पक्ष, उत्तरायण, वत्सर और फिर आदित्य देवता का देश आता है । देवयान मार्ग इन्हीं देवताओं के अधिकृत मार्ग से ही होकर गुजरता है ।

उसके बाद चन्द्र, विद्युत, वरुण, इन्द्र, प्रजापति तथा ब्रह्मा, क्रमशः आदि के देश पड़ते हैं । जो ईश्वर की पूजा-पाठ करते हैं, भक्ति करते हैं वो इस मार्ग से जाते हैं और उनका पुनर्जन्म नहीं होता तथा वो अपने अभीष्ट के अविनाशी धाम चले जाते हैं ।

पितृयान मार्ग से भी चन्द्रलोक जाना पड़ता है, लेकिन वो मार्ग थोड़ा अलग होता है । उस पथ पर धूम, रात्रि, कृष्ण-पक्ष, दक्षिणायन आदि के अधिकृत देश पड़ते हैं। अर्थात ये सब देवता उस जीव को अपने देश के अधिकृत स्थान के मध्य से ले जाते हैं।

चन्द्रलोक कभी अधिक गर्म तो कभी अतरिक्त शीतल हो जाता है । वहां अपने स्थूल शरीर के साथ कोई नहीं रह सकता, लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर (जो मृत्यु के बाद मिलता है) कि साथ चन्द्रलोक में रह सकता है ।

जो ईश्वर पूजा नहीं करते, परोपकार नही करते, हर समय केवल इन्द्रिय सुख-भोग में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वे लोग मृत्यु के बाद न तो देवयान पथ से और न ही पितृयान पथ से जाते है बल्कि वे पशु योनि
(जैसी उनकी आसक्ति या वासना हो) में बार बार यही जन्म लेकर यही मरते रहते हैं ।

जो लोग अत्यधिक पाप करते है, निरीह और असहायों को सताने में जिनको आनंद आता है, ऐसे नराधमों की गति (मृत्य के बाद) निम्न लोकों में यानी कि नरक में होती है । यहां ये जिस स्तर का कष्ट दूसरों को दिए होते हैं उसका दस गुणा कष्ट पाते हैं । विभिन्न प्रकार के नरकों का वर्णन भारतीय ग्रंथों में दिया गया है ।

अतः नारायण का स्मरण सदैव करें।समय बीतता जा रहा है।जीवन क्षणभंगुर है।

🙏🙏
🕉🕉🕉🕉🕉सौभाग्यलक्ष्मी प्रयोग 🕉🕉🕉🕉

अगर साधक नित्य प्रातः उठ कर स्नान आदि सी निवृत हो कर कमलगट्टे की माला से उत्तर दिशा की तरफ मुह कर निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जाप करे तो साधक का भाग्योदय होने लगता है तथा उसे सभी क्षेत्रो मे अनुकूलता प्राप्त होने लगती है. साधक इसमें किसी भी वस्त्र का प्रयोग कर सकता है. इस प्रयोग को शुक्रवार से शुरू करना चाहिए

📿ॐ श्रीं सौभाग्यलक्ष्मी भाग्योदय सिद्धिं श्रीं नमः 📿

साधक इस मंत्र का १ महीने तक नियमित जाप करे तो उत्तम है. वैसे साधक जितने दिन तक चाहे इस मंत्र की १ माला जाप सुबह कर सकता है
🙏🙏🔱🔱📿📿🕉🕉
नाथपंथ और शाबरी विद्या क्या है (संक्षिप्त परिचय) |

सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश!

                जन सामान्य का मानना है किनाथ संप्रदाय का जन्म सातवी सताब्दी केआसपास हुआ है, यह बात एक दम झूठहै ! नाथ संप्रदाय तो सतयुग से चला आरहा है! यह जरूर कहा जा सकता है किनाथ संप्रदाय सातवी सताब्दी में बहुतफला फूला और इस सारे विश्व में सूर्य कीतरह चमकने लगा !

नाथ संप्रदाय के संस्थापक स्वयंभगवान आदिनाथ शिव है! उन्ही से प्रेरितहोकर भगवान दत्तात्रेय ने जन कल्याण केलिए नाथ संप्रदाय की रचना की. प्रथमनाथ सहस्त्रार्जुन थे ! सहस्त्रार्जुन भगवानदत्तात्रेय के प्रथम शिष्य थे और वो प्रथमनाथ थे ! मेरे मित्र सिद्ध श्री. विक्रांतनाथजी के गुरूदेव सिद्ध श्री. रक्खारामजी कहते थे कि नाथ का अर्थहोता है न अथ अर्थात जिस से ऊपर कुछन हो पर लोग नाथ का अर्थ स्वामी के रूपमें मान लेते है!

सतयुग में नवनाथ इस प्रकार थे :

१. आदिनाथ

२. दत्तात्रेय

३. सहस्त्रार्जुन

४. देवदत

५. जड्भरत

६. नागार्जुन

७. मत्स्येन्द्रनाथ

८. जालंधरनाथ

९. गोरक्षनाथ

      स्कंदपुराण और नारदपुराण में नारदब्रह्म संवाद में लिखा है कि एक बार माँपार्वती ने शिव से कहा जिस जगह आप हैउस जगह मै भी हूँ ! मेरे बिना आप कुछभी नहीं इस लिए मेरी सत्ता ही प्रधान है !भगवान शिव ने कहा देवी जिस जगहघड़ा होता है उस जगह मृतिका होती हैपर जिस जगह मृतिका हो उस जगह घड़ाभी हो ये जरूरी तो नहीं पर माँ पार्वतीनहीं मानी !

     माँ पार्वती के घमंड का नाश करने केलिए भगवान शिव ने गोरक्षनाथ के रूप मेंअवतार लिया और योग विद्या का प्रचारकिया ! योग विद्या भगवान गोरक्षनाथ कीविद्या मानी जाती है ! अघोर विद्याभगवान शिव की विद्या मानी जाती है !योनि साधना माँ भगवती की विद्या मानीजाती है ! इन तीनो विद्याओ का मिश्रण हीनाथ संप्रदाय है ! नाथ संप्रदाय की श्रेष्ठताइसी बात से सिद्ध होती है कि सतयुग मेंराक्षसराज रावण को नाथ योगीसहस्त्रार्जुन ने ६ महीने तक अपनी बगलमें दबाकर शिव की तपस्या की थी औरबाद में सहस्त्रार्जुन की क़ैद से उन्हेंभगवान परशुराम ने छुडाया था !

कलयुग में भगवान दत्तात्रेय नेदोबारा नाथ पंथ का गठन किया औरनवनाथों का संघ स्थापित किया ! आगेचलकर नवनाथो में ८४ सिद्ध हुए ! ८४सिद्धो के माध्यम से नाथ पंथ का बहुतप्रचार हुआ ! नवनाथो में १२ पंथ हुए है !प्रत्येक पंथ में नवनाथों की प्रणाली अलगअलग है ! 

नवनाथों के नाम इस प्रकार है :

१.आदिनाथ

२.उदयनाथ

३.सत्यनाथ

४.संतोषनाथ

५.अचम्भेनाथ

६.गज कंथडनाथ

७.चौरंगीनाथ

८.मत्स्येन्द्रनाथ

९.गोरक्षनाथ

हमारे महाराष्ट्र में प्रचलित नवनाथ इस प्रकार है :

१.गोरक्षनाथ

२.जालिंदरनाथ

३.चर्पटीनाथ

४.अडबंगनाथ

५.कानिफनाथ

६.मच्छिंद्रनाथ

७.चौरंगीनाथ

८.रेवणनाथ

९.भर्तुहरीनाथ

नाथ सम्प्रदाय में १२ पंथ हुए जो इसप्रकार है :

१. सत्यनाथी (सतनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन उत्तरांचल में निवास करते है !

२. रामनाथी (राम के ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन हरियाणा और नेपाल में निवासकरते है !

३.पागलपंथी ( पाकल ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन पाकिस्तान और हरियाणा मेंनिवास करते है !

४.पाव पंथ (पावक ) – इनके मूल प्रवर्तकभगवान शिव है और इस पंथ के योगीजनराजस्थान में निवास करते है ! इनकासम्बन्ध जालंधरनाथ से बताया जाता है !

५. धर्मनाथ ( धर्मनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन नेपाल और उत्तरप्रदेश में निवासकरते है !

६. माननाथी ( मानोनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन राजस्थान में निवास करते है !

७.कपलानी (कपिलपंथ ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन बंगाल और हरियाणा में निवासकरते है !

८.गंगानाथी ( गंगनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन बंगाल और पंजाब में निवासकरते है !

९.नटेश्वरी ( दरयानाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन कश्मीर , पंजाब और पाकिस्तानमें निवास करते है !

१०.आई-पंथ ( आई के ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन बंगाल, हरियाणा और पंजाब मेंनिवास करते है !

११. वैराग पंथ ( भर्तृहरि वैराग ) – इनकेमूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इसपंथ का सम्बन्ध योगी भर्तृहरि जी के साथबताया जाता है ! इस पंथ के योगीजनराजस्थान में निवास करते है !

१२. रावलपंथी – इनके मूल प्रवर्तक गुरुगोरक्षनाथ है और इनका सम्बन्ध सिद्धरावलनाथ से बताया जाता है ! इस पंथ केयोगीजन पाकिस्तान और अफगानिस्थानमें निवास करते है !

इन १२ पंथो के अलावा भी नाथपंथ में कुछ पंथ पाए जाते है जिनमें सेकुछ मुख्य पंथ इस प्रकार है – कंथडपंथी, बन पंथ, ध्वज पंथ, पंख पंथ,वारकरी पंथ, कायिक नाथी, तारक नाथी ,पायल नाथी आदि ऐसे अनेक पंथ है जोनाथ सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है ! यहअपने आप को शिव पंथ और गोरक्ष पंथके अनुयायी बताते है, वास्तव में यह पंथ१२ पंथो के ही उप पंथ है जिन में औघडसेवडा और कुछ सूफी पंथ भी है जिनकाप्रसार मुस्लिम योगियो में हुआ है ! नाथपंथ मांस मदिरा का विरोध करता है परकुछ अघोर संत है जो मांस मदिरा काप्रयोग करते है जो अघोर संतो के लिएवर्जित नहीं है क्यूंकि वे स्वयं शिव कास्वरुप है और पाप पुण्य से ऊपर उठ जातेहै !

इस प्रकार गुरु शिष्य परम्परा सेअनेक पंथ बन गए है , कुछ पंथ गुप्त हुएऔर कुछ प्रकट है ! नाथ पंथ में कुछ योगीगृहस्थ होते है और कुछ ब्रह्मचारी रहते है !अतः नाथ पंथ का पूरा विवरण माँसरस्वती के लेखन से भी परे की बात है !१२ पंथो में आई पंथ को श्रेष्ठ माना गया हैऔर सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ “ गुरु ग्रन्थसाहिब “ जी के जपुजी साहिब में भी आईपंथ की प्रशंसा की गयी है और १२ पंथोमें श्रेष्ठ माना गया है ! “ जपुजी साहिब ”में लिखा है – “ मुंदा संतोख सरम पटझोली ध्यान की करे भिभूत, किन्था कालकुआरी काया जुगत धंधा परतीत, आईपंथी सगल जमाती मन जीते जगजीत,आदेश तीसे आदेश, आद अनिल अनादअनाहद जुग जुग इको भेस ”

अब बात करते है शाबर मंत्रोंकी. हर कोई संस्कृत मंत्रोंका उच्चारण ठीक तरह से नहीं कर पाता और संस्कृत मन्त्रोंको सिद्ध करते वक्त बहुत सारे कठोर नियमोंका पालन करना होता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए जनकल्याण हेतु नवनाथ और चौरासी सिद्धोंद्वारा आम बोलचाल की भाषाओमे शाबर मंत्रोंका निर्माण किया गया. ये मंत्र लगभग सभी भाषाओमे पाए जाते है. शाबर मन्त्रोंको किसीभी जाती या धर्म के स्त्री पुरुष गुरुदेवकीकृपासे बड़ी आसानीसे सिद्ध कर सकते है.

ईश्वर आप सब पर अपनी कृपा दृष्टी बनाएं रखे 
: जन्मपत्री के सभी द्वादश भावों में शनि, भू संपत्ति से संबंधित क्या-क्या अच्छे बुरे परिणाम देता हैं जानिये👇
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प्रथम 👉 भाव में शनि के होने पर तथा साथ ही शनि के मंदे होने पर गरीबी एवं चारों तरफ बर्बादी होती है। इसके साथ ही यदि मंगल भी चतुर्थ खाने में हो तो जमीन-जायदाद भी नष्ट करते हैं।

द्वितीय 👉 भाव में होने पर मकान जब भी बने और जैसा भी बने, बनने देना चाहिये क्योंकि इसे इखाली हो तो मकान शुभ फल देता है। सी स्थिति में शुभ माना गया है नहीं तो नुकसान करते हैं।

तृतीय 👉 खाने में होने पर भूखंड पर तीन कुत्ते पालने चाहिए, ऐसा करने से मकान बनने की संभावना काफी बढ़ जाती है और परिणाम भी शुभ मिलते हैं।

चतुर्थ 👉 खाने में होने पर मकान अपने नाम का नहीं बनवाना चाहिये, ऐसा करना शुभ रहता है नहीं तो बर्बादी शुरू कर देता है।

पांचवें 👉 भाव का शनि संतान हानि देता है। अतः शुभ परिणाम के लिए ऐसे लोगों को भैंसा आदि दान करने के पश्चात ही मकान की नींव डालनी चाहिए तथा यदि हो सके तो 48 वर्ष की उम्र के पश्चात ही मकान बनवाना शुभ रहता है।

छठे 👉 भाव में होने पर लड़कियों के रिश्तेदारों को परेशानी पैदा करता है। अतः उम्र के 36 या 39 वर्ष के पश्चात् ही मकान बनवाना शुभ रहता है।

सप्तम 👉 भाव में होने पर अशुभ परिणाम मिलते हैं। अतः लाभ हेतु पुश्तैनी या बने-बनाये मकान में ही रहना चाहिये।

अष्टम 👉 भाव में होने पर तथा राहु-केतु के अनुकूल होने पर मकान बनवाना शुभ रहता है। यदि राहु-केतु मंदे हों तो अपना मकान नहीं बनवाना चाहिये अन्यथा कर्ज के साथ सम्पति हानि होती है।

नवम 👉 भाव में हो तो तीन से अधिक मकान नहीं बनाने चाहिए।

दसवें भाव 👉 का शनि मकान का काम पूरा होते ही धन हानि शुरू कर देता है। अतः ऐसे जातकों को मकान का कार्य पूरा ही नहीं होने देना चाहिये अर्थात् मकान में कोई-न-कोई काम अधूरा रखना चाहिए ताकि धन हानि न हो।

एकादश 👉 भाव का शनि शुभ परिणाम दे, इसके लिए उम्र के 55 वें वर्ष के पश्चात मकान बनवाना चाहिये।

द्वादश 👉 भाव में होने पर मकान तो आसानी से बनता है, लेकिन ऐसे जातकों को यह ध्यान में रखना चाहिये कि मकान का कार्य आरंभ होने के पश्चात् कार्य को बीच में रोकना शुभ नहीं है, मकान का कार्य पूरा करके छोड़ें। इसके अलावा चार कोने वाला (वर्गाकार/आयताकार) मकान लेना/ बनवाना ही शुभ रहता है।
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“मार्गी शनि देह कुटवावे,वक्री खुद की बुद्धि चलावे,
काम करे ना करवावन देई,केवल आवन जावन लेई.
खुद के घर में वक्री रहता,देश से जाय विदेश में रहता,
जब कभी घर आवन होई,दस पांच साल में वापिस कोई”
जब शनि कुंडली में मार्गी होता है तो शरीर से मेहनत करवाता है और जो भी काम करवाता है उसके अन्दर पसीने को निकाले बिना भोजन भी नहीं देता है और जब किया सौ का जाय तो मिलता दस ही है,इसके साथ ही शरीर के जोड़ जोड़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी की पूरी कोशिश भी करता है,रहने के लिए अगर निवास का बंदोबस्त किया जाए तो मजदूरों से काम करवाने की बजाय खुद से भी मेहनत करवाता है तब जाकर कोई छोटा सा रहने वाला मकान बनवा पाता है,जब कोई कार्य करने के लिए अपने को साधनों की तरफ ले जाता है तो साधन या तो वक्त पर खराब हो जाते है या साधन मिल ही नहीं पाते है,मान लीजिये किसी को घर बनवाने के लिए सामान लाना है,सामान लाते हुए घर के पास ही या तो साधन खराब हो जाएगा जिससे आने वाले सामान को घर तक लाना भी है और साधन भी ख़राब है या रास्ता ही खराब है उस समय मजदूरी से अगर उस सामान को लाया जाता है तो वह मजदूरी इतनी देनी पड़ती है जिससे मकान को बनवाने के लिए जो बजट है वह फेल हो रहा है इस लोभ के कारण सामान को खुद ही घर बनाने के स्थान तक ढोने के लिए मजबूर होना पड़ता है,इसके बाद अगर किसी बुद्धि का प्रयोग भी किया जाए तो कोई न कोई रोड़ा आकर अपनी कलाकारी कर जाता है,जैसे कोई आकर कह जाता है कि अमुक समय पर उसका वह काम करवा देगा लेकिन खुद भी नहीं आता है और भरोसे में रखकर काम को करने भी नहीं देता है,यह मार्गी शनि का कार्य होता है,इसी प्रकार से मार्गी शनि एक विषहीन सांप की भांति भी काम करता है,विषहीन सांप से कोई डरता नहीं है उसे लकड़ी से उछल कर हाथ से पकड़ कर शरीर को तोड़ने का काम करता है उसी जगह वक्री शनि बुद्धि से काम करने वाला होता है जैसे जातक को घर बनवाना है तो वह अपनी बुद्धि से साधनों का प्रयोग करेगा,पहले किसी व्यक्ति को नियुक्त कर देगा फिर उसे अपनी बुद्धि के अनुसार किये जाने वाले काम का मेहनताना देगा,जो मेहनताना दिया जा रहा है उसकी जगह पर वह दूसरा कोई काम बुद्धि से करेगा जिससे दिया जाने वाला मेहनताना आने भी लगेगा और दिया भी जाएगा जिससे खुद के लिए भी मेहनत नहीं करनी पडी और नियुक्त किये गए व्यक्ति के द्वारा काम भी हो गया,इस प्रकार से बुद्धि का प्रयोग करने के बाद जातक खुद मेहनत नहीं करता है दूसरो से बुद्धि से करवाकर धन को भी बचाता है,वक्री शनि का रूप जहरीले सांप की तरह से होता है वह पहले तो सामने आता ही नहीं है और अगर छेड़ दिया जाए तो वह अपने जहर का भी प्रयोग करता है और छेड़ने वाले व्यक्ति को हमेशा के लिए याद भी करता है,इस शनि के द्वारा मेहनत कास लोगों के लिए भी समय समय पर आराम करने और मेहनत करने के लिए अपने बल को देता है जैसे मार्गी शनि जब वक्री होता है तो मेहनत करने वाले लोग भी दिमागी काम को करने लगते है और जब वक्री शनि वाले जातको की कुंडली में वक्री होता है तो दिमागी काम की जगह पर मेहनत वाले काम करने की योजना को बनाकर परेशानी में डाल देता है.जब शनि अपने ही घर में वक्री होकर बैठा हो तो वह पैदा होने वाले स्थान से उम्र की दूसरे शनि वाले दौर में शनि का एक दौर पैंतीस साल का माना जाता है विदेश में फेंक देता है,जब कभी जातक को पैदा होने वाले स्थान में भेजता है और जल्दी ही वापस बुलाकर फिर से विदेश में अपनी जिन्दगी को जीने के लिए मजबूर कर देता है,इसके साथ ही शनि की आदत है कि वह कभी भी स्त्री जातक के साथ बुरा नहीं करता है वह हमेशा पुरुष जातक और अपने ऊपर धन बल शरीर बल बुद्धि बल रखने वाले लोगों पर बुरा असर उनके बल को घटाने और वक्त पर उनके बल को नीचा करने का काम भी करता है,घर में जितना असर पुत्र जातक को खराब देता है उतना ही अच्छा बल पुत्री जातक को देता है,लेकिन वक्री शनि से पुत्री जातक अपने देश काल और परिस्थिति से दूर रहकर विदेशी परिवेश को ही सम्मान और चलन में रखने के लिए भी माना जाता है.
: प्रतिवर्ष 31 मार्च को आपको अपनी वार्षिक आय व्यय का विवरण, आयकर विभाग को देना होता है । जैसे आपको प्रतिवर्ष अपना आय व्यय का हिसाब देना होता है , उसी प्रकार से आपने अपने जीवन में कितने शुभ कर्म किए और कितने अशुभ कर्म किए, इन कर्मों का भी हिसाब आपको ईश्वर को देना होता है।
वैसे तो प्रतिदिन हर क्षण ईश्वर हमारे कर्मों को देखता है , उनका हिसाब रखता है । फिर भी मोटी भाषा में संसार में ऐसा बोला जाता है, कि आपको जीवन की समाप्ति पर अपने कर्मों का हिसाब ईश्वर को देना है।
हमारे इस जीवन के कर्मों में से कुछ कर्मों का फल, ईश्वर हमें इसी जन्म में देता है । और जिन कर्मों का फल हमें इस जन्म में नहीं मिल पाया, उनका फल अगले जन्म में देता है।
अब जो भी व्यवस्था हो, आखिर हमारे कर्मों का हिसाब तो होगा ही । इस व्यवस्था के मुख्य मुख्य 3 नियम जान लीजिये।
1- यदि आपने अपने जीवन में अच्छे कर्म अधिक किए हैं , तो अगला जन्म उत्तम विद्वानों , बुद्धिमानों, धनवानों आदि के घर में मिलेगा ।
2- यदि अच्छे बुरे कर्म समान मात्रा में किए हैं, तो सामान्यमनुष्य के घर में, अर्थात किसी मजदूर परिवार में जन्म मिलेगा ।
3- यदि आपने अशुभ कर्म अधिक कर दिए, तो फिर अगले जन्म में पशु पक्षी कीड़ा मकौड़ा, वृक्ष आदि योनि में जाकर दंड भोगना पड़ेगा।
इसलिए अच्छी प्रकार से विचार करें , कि किस प्रकार के कर्म करने चाहिएँ, ताकि भविष्य में अगले जन्मों में दुख न भोगना पड़े और सुख ही मिले –

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