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[शास्त्रो में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है, किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं।

यहां तक कि चिता में भी बांस की लकड़ी का प्रयोग वर्जित है।

अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग होता है लेकिन उसे भी नहीं जलाते

शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने से पित्र दोष लगता है

क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है?

बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते हैं
लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है , हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं।

लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता में भी नही जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हम लोग रोज अगरबत्ती में जलाते हैं।

अगरबत्ती के जलने से उत्पन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है।

यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है

यह भी स्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है

इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर में पहुंचाती है।

इसकी लेश मात्र उपस्थिति केन्सर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है।

हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।

🙏अतः कृपया सामर्थ्य अनुसार स्वच्छ धूप का ही उपयोग करे
[न ना करने क़े मन के बहाने

ध्यान मन की मौत है:- मन तुम्हे ध्यान से बचाएगा। वह हजार बहाने खोजेगा। वह कहेगा कि इतनी सुबह, इतनी सर्द सुबह, कहां उठ कर ध्यान कर रहे हो? थोड़ा विश्राम कर लो। रात भर वैसे तो नींद नहीं आई, और अब सुबह से ध्यान? वैसे तो थके हो, अब और थक जाओगे। शांत पड़े रहो। कल करना। इतनी जल्दी भी क्या है? कौन सा जीवन चूका जा रहा है? हजार बहाने मन खोजता है। कभी कहता है, शरीर ठीक नहीं, तबियत जरा ठीक कर लूँ । कभी कहता है, घर में काम है। कभी कहता बाज़ार है, दूकान है नौकरी है समय नहीं मिलता। कभी कहता अभी उम्र नहीं हुई। कभी कहता पूजा पाठ तो चल ही रहा है। ध्यान से बचने की मन पूरी कोशिश करता है। क्योंकि ध्यान सीधा रास्ता है जो मालिक तक पहुँचाता है जीवन के लक्ष्य का प्रयोजन पूरा करता है। मन सीधा चल नहीं सकता। टेड़ी चाल का नाम मन है। जैसे ही चाल सीधी हुई की मन गायब।

परमात्मा से लोग वंचित हैं – इसलिए नहीं कि वह बहुत कठिन है, इसलिए वंचित हैं कि वह बहुत सरल है; इसलिए वंचित नहीं की बहुत दूर है, इसलिए वंचित हैं की बहुत पास है… इसलिए सिर्फ सिमरन भजन ध्यान करो बाकी सब मालिक की मौज….
[‼बाहर अनेक ओर हमारे अंदर एक‼

यो वै विष्णु: स वैरुद्रो योरुद्र: स पितामहः।
एक मूर्तिस्त्रयो देवा रुद्र विष्णु पितामहः।।
जिसे विष्णु समझा जाता है वो ही रुद्र है, जो रुद्र है वही ब्रह्मा है। विष्णु और ब्रह्मा के रूप में एक ही शक्ति काम कर रही है। जब-जब भी महापुरुष साकार रूप धारण कर समाज के कल्याण के लिए धरा पर आए है तब-तब समाज के लोगों ने नए-नए धर्म बना लिए है। नए-नए पंथ बना लिए है फिर होता है मानवता का बंटवारा। कई लोग कहते है कि मैं तो भगवान कृष्ण का भक्त हूँ तो कई लोग कहते है मैं तो भगवान राम का भक्त हूँ तो कई लोग कहते है मैं भगवान महाकाल का भक्त हूँ। यही अज्ञान में मानव वास्तविकता को जानने का प्रयास नही करता है और अपने मन के अनुसार भक्ति कर अपना मानव जीवन व्यर्थ गवा देता है।
हमारे धार्मिक-ग्रन्थों में स्पष्ट लिखा है कि जो ब्रह्मा है वही विष्णु है और जो विष्णु है वही शिव है तीनो एक ही शक्ति है जो हमारे भीतर है। हम् भगवान शिव जी आरती में भी गाते है—
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
जो ब्रह्मा,विष्णु और शिव को अलग-अलग समझता है वो अविवेकी है अज्ञानी है। लेकिन अगर उसने उस शक्ति को अपने भीतर जान लिया देख लिया तो समझ में आ जाएगा कि सब एक ही है जो हमारे प्राणों को चला रहे है।
लेकिन– वो शक्ति अदृश्य है कि दृश्य है❓उसे देख सकते है कि नही देख सकते है❓ अगर उसे देख सकते है तो कैसे❓🙏🏻
बाहर के संकेत हमें अपने भीतर उतरने के लिए दिए गए है लेकिन हम् सब क्या करते है बाहर को ही सत्य समझ लेते है और भटकना शुरू कर देते है।
सत्य को स्वयं जानिए ओर समाज को भी अवगत कराए। विचार महापुरुषों का निर्णय आपका🙏🏻🚩
🚩🚩
[ 🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

स्त्रियां क्यों नहीं कर सकती साष्टांग प्रणाम

वैसे आजकल पैरों को हल्का सा स्पर्श कर लोग चरण स्पर्श की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। कभी-कभी पैरों को स्पर्श किए बिना ही चरण स्पर्श पूरा कर लिया जाता है। मंदिर में जाकर भगवान की मूर्ति के सामने माथा टेकने में भी आजकल लोग कोताही बरतते हैं। खैर ये तो सब मॉडर्न तकनीक हैं, लेकिन कभी आपने उन लोगों को देखा है जो जमीन पर पूरा लेटकर माथा टेकते हैं, इसे साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है।

यह एक आसन है जिसमें शरीर का हर भाग जमीन के साथ स्पर्श करता है, बहुत से लोगों को यह आसन आउटडेटेड लग सकता है लेकिन यह आसन इस बात का प्रतीक है व्यक्ति अपना अहंकार छोड़ चुका है। इस आसन के जरिए आप ईश्वर को यह बताते हैं कि आप उसे मदद के लिए पुकार रहे हैं। यह आसन आपको ईश्वर की शरण में ले जाता है।

इस तरह का आसन सामान्य तौर पर पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। क्या आप जानते हैं शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को यह आसन करने की मनाही है, जानना चाहते हैं क्यों?

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं। इसलिए यह आसन स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।

धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा साष्टांग प्रणाम करने के स्वास्थ्य लाभ भी बहुत ज्यादा हैं। ऐसा करने से आपकी मांसपेशियां पूरी तरह खुल जाती हैं और उन्हें मजबूती भी मिलती है।

साष्टांग प्रणाम

पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्तथा
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोऽष्टाङ्ग मुच्यते

हाथ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक, मन, वचन, और दृष्टि इन आठ अंगों से किया हुआ प्रणाम अष्टांग नमस्कार कहा जाता है।

साष्टांग आसन में शरीर के आठ अंग ज़मीन का स्पर्श करते हैं अत: इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। इस आसन में ज़मीन का स्पर्श करने वाले अंग ठोढ़ी, छाती, दोनो हाथ, दोनों घुटने और पैर हैं। आसन के क्रम में इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पेट ज़मीन का स्पर्श नहीं करे। विशेष नमस्कार मन, वचन और शरीर से हो सकता है। शारीरिक नमस्कार के छः भेद हैं-

● केवल सिर झुकाना।
● केवल हाथ जोड़ना।
● सिर झुकाना और हाथ जोड़ना।
● हाथ जोड़ना और दोनों घुटने झुकाना।
● हाथ जोड़ना, दोनों घुटने झुकाना और सिर झुकाना।
● दंडवत प्रणाम जिसमें आठ अंग (दो हाथ, दो घुटने, दो पैर, माथा और वक्ष) पृथ्वी से लगते हैं। और जिसे ‘साष्टांग प्रणाम’ भी कहा जाता है।

प्रणाम करना भक्ति का २५वां अंग है। इस प्रणाम में सर्वतो भावेन आत्मसमर्पण की भावना है। इसमें भक्त अपने को नितांत असहाय जानकार अपने शरीर इन्द्रिय मन को भगवान् के अर्पण कर देता है। जब शरीर को इसी अवस्था में मुंह के बल भूमि पर लिटा दिया जाए तो इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। शरीर की इस मुद्रा में शरीर के छ: अंगों का भूमि से सीधा स्पर्श होता है अर्थात् शरीर मे स्थित छ: महामर्मो का स्पर्श भूमि से हो जाता है जिन्हें वास्तुशास्त्र में “षण्महांति” या “छ: महामर्म” स्थान मानाजाता है। ये अंग वास्तुपुरुष के महामर्म इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ये शरीर (प्लॉट) के अतिसंवेदनशील अंग होते हैं।

योगशास्त्र में इन्हीं छ: अंगों में षड्चक्रों को लिया जाता है। षड्चक्रों का भूमि से स्पर्श होना इन चक्रों की सक्रियता और समन्वित एकाग्रता को इंगित करता है।

प्रणाम की मुद्रा में व्यक्ति सभी इंद्रियों (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँचों कर्मेद्रियाँ) को कछुए की भाँति समेटकर अपने श्रद्धेय को समर्पित होता है। उसे ऎसा आभास होता है कि अब आत्म निवेदन और मौन श्रद्धा के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं करना। इसे विपरीत श्रद्धेय जब अपने प्रेय (दंडवत प्रणाम करने वाला) को दंडवत मुद्रा में देखता है तो स्वत: ही उसके मनोविकार या किसी भी प्रकार की दूषित मानसिकता धुल जाती है और उसके पास रह जाता है केवल त्याग, बलिदान या अर्पण। यहाँ पर श्रेय और प्रेय दोनों ही पराकाष्ठा का समन्वय ‘साष्टांग प्रणाम’ के माध्यम से किया गया है।

जय श्रीराधे कृष्णा

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷. वैदिक तंत्र-ज्योतिष के रहस्य
जन्म कुंंडली में प्रारब्ध जनित भूत-प्रेत बाधा के योग एवं उपाय ज्योतिष और साधनात्मक कार्यकाल के सर्वोत्तम शोध निश्कर्ष को आप सभी के हित में प्रेसित कर रहे हैं इसमें वर्णित सूत्र अमूल्य हैं…. कृपया लेख को धैर्य एवं विवेक से अंतिम शब्द तक अवस्य पढ़ें..
कैसे समझें ऊपरी बाधाओं को :- .
1- 👍बार-बार किसी को एक ही प्रकार के स्वप्न दिखते हैं।
2- 👍एक ही प्रकार की घटना परिवार में बार-बार हो रही है।
3- 👍आस-पास किसी के उपस्थित होने का और दिखने का आभास होता है।
4-👍परिवार में कोई डरा हुआ, गुमसुम , विकल, वे बजह झगडालू , परिवार विरोधी , या निरंकुश हो रहा है।
5- 👍परिवार में निरंतर असंतुष्टी, कलह , मतभेद , मनभेद , अपमानजनक स्थिती, अशांती , तथा असगंत हालात का वातावरण बनने लगा है।
6- 👍कोई सदस्य दूसरे के बोली बोलता है, झूमने लगता है, अपने अंदर अजीब शक्ती का आभास करता है या खेलता है।
7- 👍घर में रखी वस्तुऐं गुम होती हैं, स्थान परिवर्तन करतीं हैं, या रंग-रूप परिवर्तन करतीं हैं।
8-👍 आसपास या घर आरदि में कुत्ता-बिल्ली , सियार, उल्लू , चिमगादड , टीटूरी (पंछी) आदि रोते हैं या विचित्र सी आवाजें करते हैं।।
9- 👍अचानक और अजीब-अजीब गंध फैल जाती है… या अकारण स्मैल आती है।
10- 👍घर में रखे अचार, फल-सब्जी, या अन्य खाद्यान्न जल्दी खराब होते हैं।
11-👍 कोई ना कोई बीमार रहता है बीमारी का सही कारण समझ में नहीं आता…. या दवाओं का उचित असर नहीं मिलता।।
12-👍पिछले कुछ वर्षों से जन-धन या पालतू जीवो की अकारण हानि हो रही है।
13-👍आपके परिवार में अक्सर दुर्घटनाऐं होती रही हैं…।।
14- 👍आपसी रिस्तों में अकारण तनाव या दूरिंयां पैदा होने लगी हैं।
15- 👍पूर्ण योग्यता और परिश्रम होने पर भी उचित लाभ या तरक्की में बाधाऐं आ रहीं हैं।
16-👍तरक्की के रास्ते बंद होते चले जा रहे हैं… और सही रास्ता समझ में नहीं आ रहा है।
17- 👍अपने वंश को एक सुत्र में आगे बढाने में असफलता मिल रही है कोई सदस्य निरंतर विद्रोह पर उतारू होकर अचानक मर्यादाओं को भंग करने पर आमादा हो जाता है।
18-👍 दैहिक, मानसिक, परिवारि, व्यापारिक या भौतिक संतुलन अकारण डगमगाने लगा है… और आप असहाय सा महसूस करने लगे हैं।।
20- 👍बहुत से करीबी… लोग ही शत्रू बनते जा रहे हैं… और अकारण दुख देने लगे हैं।
21-👍 ऐसा कुछ होने लगा है… जो आमतौर पर घटित नहीं होना चाहिये।
अगर इन 21 में से एकधिक घटनाक्रम आपके परिवार में है तो सतर्क हो जाइऐ …और समय रहते सही उपाय करिये…. (बरना क्या वर्षा जब कृषी सुखानी)…. ये अन्य बाधाऔं के संकेत हो सकते हैं।।👌अब कुंंडली से देखें प्रेत बाधाऐं।👌 (जीवन में कई लोग तमाम कोशिशों के बाद भी परेशान रहते हैं… और समस्या का समाधान नहीं मिलता …. अजीब-अजीब हालात सामने आते रहते है….. तो एक बार अपनी कुंंडली किसी योग्य ज्योतिर्विद से चैक करवा लें…. कहीं आपकी कुंंडली में कोई प्रेत-बाधा योग तो नहीं है।)
👌प्रेत-बाधा योग*👌
1👍 नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो।
2👍 पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।
3👍जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है।
4👍षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।
5👍 लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।
6👍 लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
7👍 निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय।
8👍 निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बाहरहवें में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय।
9👍चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।
10👍 एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह,वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि(मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो।
11👍लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों।
12👍मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्त हो।
13👍पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो।
14👍शनि राहु केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो।
15👍 जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।
16👍अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो।
17👍 राहु शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो।
18👍 लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे।
19👍 राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो।
20.👍 द्वितीय में राहु द्वादश मं शनि षष्ठ मं चंद्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।
21👍 चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो।
22👍चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो। माइंड रीडर
23👍नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नची राशि का हो।
24👍 दशमेश अगर अषटम या ऐकादश भाव में हो और इन भावपतियों से सम्बंध बना रहा हो।
25👍 यदि परिवार में एक से अधिक सदस्यों की कुंंडली में … कालशर्प, पित्रदोष, अल्पायु योग, पित्रश्राप, विषयोग, दरिद्र योग, या इस तरह के अशुभ योग स्पस्ट बन रहे हैं…. तो फिर समझो आपका परिवार पूर्व से ही… किसी बाधा से ग्रषित या श्रापित हो सकता है ।।
*जिनकी कुंंडली में ये योग बन रहे हों और सम्बंधित ग्रहों की दशा या गोचर आदि चल रहा हो….तो वो जाचक भूत-प्रेत बाधाऔं से पीडित रह सकते हैं।। ऐसे जाचक को तंत्र-ज्योतिष के योग्य विद्वान से उचित दक्षिणा देकर परामर्श अवस्य लेना चाहिये।।
भूत-प्रेत बाधा के मजबूत निदान।। अब हम आपको इन बाधाऔं के सटीक उपाय बताते हैं जो सही भाव और विधी से किये जाऐं तो किसी भी प्रेत-बाधा से शर्तिंयाँ मुक्ती पाई जा सकती है।)*
👌1- रत्न-चिकित्सा.. 👌(लाजाबर्द मणी अथवा सुलेमानी हकीक)…. को पंचघातु में निर्माण करके (तंत्र बिधी से अभिमंत्रित करके) … लौकेट में धारण करें या भवनादि स्थापित करे।।
👌ग्यारह मुखी या एक मुखी रुद्राक्ष…* (बीच में एकमुखी और साइडो़ में एक-एक ग्यारह मुखी…. ऐसे लौकेट बनाऐं) और जाप-हवन आदि विधी से अभिमंत्रित करके उपयोग करें।👌राहु और केतु के सुद्ध रत्नों का लौकेट…* पंचधातु में निर्मित (राहु, केतु, शनी तीनो के जाप और दशमांश हवन से अभिमंत्रित) धारण करने से विभिन्न बाधाऐं दूर होकर सुख- संपदाओं की बृद्धि होती है।।
(इन लौकिटों को घर, दुकान, औफिस मे स्थापित भी कर सकते हैं)
👌2- वनस्पति-तंत्र के उपाय👌नाग – जडी़…. ये जडी़ और उपयोगिता आदिवासी जंगल ज़ह रहते छत्तीसगढ़, एवं उडीसा उत्तरांचल के उच्च जंगलों के दूरांचलों में पाई जाती है 👌इसको मन्त्र विधी से सिद्ध करके रखने या इसका टुकडा धारण करके …. सभी भूतादि बाधाऔसे या तंत्र-बाधाऔ से रक्षा की जा सकती है शर्पादि भय दूर होता है।।
👌काली-हल्दी- इसको भी शक्ती-मंत्र से अभिमंत्रित करके चाँदी की डब्बी में रखा जाय या धारण किया जाऐ…. तो विभिन्न दैहिक, दैविक और भौंतिक बाधाओं से शर्तियां बचा जा सकता है।👌दक्षीणी लोंग सुपारी (जंगली लौंग)…. ये लौग भी आदिवासी जंगल में आदमी की बिसेसआदमी की ही खोज है और उनके ही मन्त्र अजीब तरीकों से सिद्धि की जाती है…. इसको जाग्रत करने बाद एक-एक जोडा मकान, दुकान, औफिस या प्रेत-बाधित स्थान पर मुख्य चारों कोंनों और मुख्य गेट पर टांग देने से… सभी नकात्मक शक्तियों का प्रभाव नष्ट हो जाता है। 👌सिद्ध काले घोड़े की नाल…👌*
आज के युग में काफी खोज के बाद ही यदा-कदा सही काले घोडे़ की नाल मिलती है।। तो पूरे नाल की जगह ये उचित होगा कि इसके छल्ले और कीले(नागफनी) सही विधान से तैयार करके अभिमंत्रित करें तो कई परिवारों को बाधा मुक्त किया जा सके।…
👌तरीका नाल की एक-कील तंत्रविधी से मकान के चारौ प्रमुख कोंनों मे तथा एक मुख्य गेट पर ठाक देने से उस घर में प्रेतादि बाधा का असर क्षीण हो जाता हैऔर वास्तुदोष और नकारात्मकता का प्रभाव कम हो जाता है।। (साथ में परिवार के मुखिया या पीडित व्यक्ति को भी इसका रिंग पहनाया जाय)
और भी कई जड़ी है… जिनका चर्चा अभी यहाँ करना संभव नहीं है… या वो अति दुर्लभ हैं ।। तो ऊपरी बाधाऔं को रोका जा सकता है।।
👌3- वैदिक और तांत्रिक उपाय..👌देवी कवच-* पूर्ण वैदिक या तंत्र विधी से पूजन हवन आदि करते हुऐ… दुर्गा, काली या भेरवी कवच का 108 दिन तक नियमित पाठ किया जाऐ अथवा योग्य विद्वानों द्वारा अनुषठान करवा कर.. उससे अभिमंत्रित यंत्र (ताबीज) को स्थापित करने और धारण करने से…. सभी प्रकार की प्रेत-बाधा , जादू-टोंने, ग्रह-बाधा एवं जीवन की रुकावटों को दूर किया सकता है।
👌 बाधाऔके अनुसार किसी सही तंत्र या वैदिक विधी के जानकार से अपने भवन, दुकान, या स्थान की बंदिश (वास्तू-पूजन जैसी ही तंत्र पूजा) करवा लें।।
👌शिव-तांड़व-स्त्रोत…* महापंडित रावण ने इस स्त्रोत के अनुषठान द्वारा प्राप्त शिव शक्ती से समस्त ग्रहों, देवों, प्रेतों, यक्षों और क्रूरतम शक्तियों को अपने आधीन चलने पर मजबूर कर दिया था।
👌विधी… नित्य पारद-शिवलिंग का शैव विधी से लघु अभिषेक (पूजन) करके… इस स्त्रोत का रुद्राक्ष की (अभिमंत्रित) माला से विधिवत 108 (कलयुग काल में सिर्फ) दिन पाठ करने वाला किसी भी भयंकर बाधाओं से मुक्त होकर मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता हैं।।
👌 भैरवी या भैरव पूजन…👌 (सावधान- इस पूजन को सिर्फ वाममार्गी (“कौल)-साधक”👌 से दीक्षित मनुष्य ही कर सकते हैं।) इस साधना की “गुरू-भेद” के कारण विभिन्न विधिंयाँ है… जिनका वर्णन यहाँ सम्भव नहीं है।👌लाभ:- ऐसा कोई लौकिक या परालौकिक लक्ष्य नहीं जो इस साधना से दुर्लभ हो।…. और कोई बाधा नहीं.. जो भैरवी साधक दूर ना कर सके…. बस मिल जाय भाग्य से सही साधक।।*👌 *श्रीमद्भागवत का अनुष्ठान यदि पूर्ण श्रद्धा और वैदिक रीती से सम्पूर्ण जीवन में मात्र एक बार भी… श्रीमद्भागवत कथा और अनुषठान करवा लिया जाय…. तो समस्त भूत-प्रेत- पिशाच-जिन्न-पित्रश्राप- ग्रहादिदोष- पापफल आदि समूल नष्ट होकर भौतिक और आलौकिक चारौ लक्ष्यों की सहज प्राप्ती होती है और सात पीढिंयों मुक्ती को प्राप्त हो जाती हैं।।
लाभ-* इन उपायों को करने से पित्रदोष, कालशर्प, श्रापदोष , विषयोग, दरिद्र योग, अवनति कारक योग, विभिन्न प्रबंधित योग (पापकर्तिकी योग) सहित कुंंडली के कई योग भी क्षीण हो जाते हैं और उनका फल भी न्यूनतम हो जाता है।
जितने भी उपाय बताऐ हैं कुछ सरल कुछ कठिन…. परन्तु असम्भव कोई नहीं हैं )*
इनमें से किसी भी वस्तू को प्राप्त किया जा सकता है या उपाय को किया जा सकता है।।*
👌 मुश्किल हो सकता है नामुमकिन कुछ भी नहीं।।
👌अगर समस्या है तो निश्चित समाधान भी है।।
👌खोजने से प्रभु मिल जाता है दवा क्यों नही।।
👌बस द्रढ़ निश्चय करिये, हालात बदल जाऐंगे।।

शनि ग्रह

शनि को वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है। शनि का गोचर एक राशि में ढ़ाई वर्ष तक रहता है। ज्योतिषीय भाषा में इसे शनि ढैय्या कहते हैं। नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे मंद है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है।

समाज में शनि ग्रह को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है। लोग इसके नाम से भयभीत होने लगते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्योतिष में शनि ग्रह को भले एक क्रूर ग्रह माना जाता है परंतु यह पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल देता है। यदि किसी व्यक्ति का शनि उच्च हो तो वह उसे रंक से राज बना सकता है। शनि तीनों लोकों का न्यायाधीश है। अतः यह व्यक्तियों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है।

ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव
शारीरिक रूप रेखा – ज्योतिष में शनि ग्रह को लेकर ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि ग्रह लग्न भाव में होता है तो सामान्यतः अनुकूल नहीं माना जाता है। लग्न भाव में शनि जातक को आलसी, सुस्त और हीन मानसिकता का बनाता है। इसके कारण व्यक्ति का शरीर व बाल खुश्क होते हैं। शरीर का वर्ण काला होता है। हालाँकि व्यक्ति गुणवान होता है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति एकान्त में रहना पसंद करेगा।

बली शनि – ज्योतिष में शनि ग्रह बली हो तो व्यक्ति को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि तुला राशि में शनि उच्च का होता है। यहाँ शनि के उच्च होने से मतलब उसके बलवान होने से है। इस दौरान यह जातकों को कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता प्रदान मिलती है। यह व्यक्ति को धैर्यवान बनाता है और जीवन में स्थिरता बनाए रखता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है।

पीड़ित शनि – वहीं पीड़ित शनि व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की परेशानियों को पैदा करता है। यदि शनि मंगल ग्रह से पीड़ित हो तो यह जातकों के लिए दुर्घटना और कारावास जैसी परिस्थितियों का योग बनाता है। इस दौरान जातकों को शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए शनि के उपाय करना चाहिए।

रोग – ज्योतिष में शनि ग्रह को कैंसर, पैरालाइसिस, जुक़ाम, अस्थमा, चर्म रोग, फ्रैक्चर आदि बीमारियों का जिम्मेदार माना जात है।

कार्यक्षेत्र – ऑटो मोबाईल बिजनेस, धातु से संबंधित व्यापार, इंजीनियरिंग, अधिक परिश्रम करने वाले कार्य आदि कार्यक्षेत्रों को ज्योतिष में शनि ग्रह के द्वारा दर्शाया गया है।

उत्पाद – मशीन, चमड़ा, लकड़ी, आलू, काली दाल, सरसों का तेल, काली वस्तुएँ, लोहा, कैमिकल प्रॉडक्ट्स, ज्वलनशील पदार्थ, कोयला, प्राचीन वस्तुएँ आदि का संबंध ज्योतिष में शनि ग्रह से है।

स्थान – फैक्टी, कोयला की खान, पहाड़, जंगल, गुफाएँ, खण्डहर, चर्च, मंदिर, कुंआ, मलिन बस्ती और मलिन जगह का संबंध शनि ग्रह से है।

जानवर तथा पशु-पक्षी – ज्योतिष में शनि ग्रह बिल्ली, गधा, खरगोश, भेड़िया, भालू, मगरमच्छ, साँप, विषैले जीव, भैंस, ऊँट जैसे जानवरों का प्रतिनिधित्व करता है। यह समुद्री मछली, चमगादड़ और उल्लू जैसे पक्षियों का भी प्रतिनिधित्व करता है।

जड़ी – धतूरे की जड़ का संबंध शनि ग्रह से है।

रत्न – नीलम रत्न शनि ग्रह की शांति के लिए धारण किया जाता है।

रुद्राक्ष – सात मुखी रुद्राक्ष शनि ग्रह के लिए धारण किया जाता है।

यंत्र – शनि यंत्र।

मंत्र –
शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।

शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।

शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।

धार्मिक दृष्टि से शनि ग्रह का महत्व
हिन्दू धर्म में शनि ग्रह शनि देव के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक शास्त्रों में शनि को सूर्य देव का पुत्र माना गया है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि सूर्य ने श्याम वर्ण के कारण शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था। तभी से शनि सूर्य से शत्रु का भाव रखते हैं। हाथी, घोड़ा, मोर, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा, गिद्ध और काैआ शनि की सवारी हैं। शनि इस पृथ्वी में सामंजस्य को बनाए रखता है और जो व्यक्ति के बुरे कर्म करता है वह उसको दण्डित करता है। हिन्दू धर्म में शनिवार के दिन लोग शनि देव की आराधना में व्रत धारण करते हैं तथा उन्हें सरसों का तेल अर्पित करते हैं।

ज्योतिष के चमत्कारी योग।

1) लग्नेश लग्न या दूसरे भाव मे –बिना परिश्रम के धन |

2) लग्न मे सिंह का बुध या कुम्भ का गुरु-तीन पीढ़ियो हेतु धन |

3) दूसरे भाव मे लग्नेश,द्वितीयेश 11 भाव मे एकादशेश लग्न मे-गढ़ा धन मिल|

4) चन्द्र मकर राशि का अकेला –विफलता व कलंक एक बार अवश्य मिले |

5) चन्द्र (शनि राहू) संग या मंगल राहू संग-मानसिक विक्षिप्त |

6) लग्न मे तुला का शनि –प्रथम आने वाला विध्यार्थी |

7) बुध मेष का दूसरे भाव मे –पत्नी का प्रभाव रहे |

8) मेष लग्न –उतावला जातक |

9) मकर लग्न मे ही केतू-क्षय रोग 7 भाव मे पत्नी को क्षय रोग |

10) चतुर्थ भाव मे चन्द्र शनि की युति-बचपन व किशोरावस्था मे विपत्ति |

11) (बुध-शुक्र) सातवे भाव मे-पत्नी सुख नहीं |

12) कन्या लग्न के अंतिम नवांश का जन्म –नपुंशक |

13) शुक्र कन्या- मिथुन नवांश मे-पत्नी संतुष्ट नहीं |

14) (बुध–शनि)-लैंगिक विकार |

15) (सूर्य-बुध) लग्न या सप्तम भाव मे-दाम्पत्य जीवन कष्ट मे |

16) बुध सप्तमेश होकर चतुर्थ भाव मे –पत्नी आजीवन मायके मे ही रहे किसी भी कारण |

17) बुध अष्टमेश होकर सप्तम भाव मे –दो विवाह,यात्राए एवं मृत्यु |

18) लग्न मे गुरु,दूसरे भाव मे मंगल शनि बुध तथा चन्द्र –विवाह से पहले माँ की मृत्यु |

19) लग्न मे गुरु,दूसरे भाव मे मंगल शनि बुध तथा सूर्य –विवाह से पहले पिता की मृत्यु |

20) मिथुन लग्न मे बुध शनि मंगल लग्न मे-लैंगिक दोष |

21) बुध लग्नेश या सप्तमेश संग –कामासक्त ज़्यादा |

22) बुध सप्तम भाव मे-कर्कशा पत्नी एवं शीघ्रपतन की बीमारी |

23) स्त्री की कुंडली मे चार ग्रह संग –दाम्पत्य सुख नहीं |

24) भाग्य स्थान मे धनु का सूर्य –संतान कम |

25) त्रिकोण के स्वामी त्रिकोण मे-तुरंत लाभ देते हैं |

26) सूर्य चन्द्र संग-शिक्षा मे बाधा |

27) भाग्य स्थान का राहू-पिता सुख मे कमी |

28) भाग्य स्थान मे सूर्य या मंगल हो ओर नवमेश दुखस्थान मे पापकर्तरी मे हो –पिता जल्दी मर जाये |

29) मंगल शनि से सूर्य ओर चन्द्र त्रिकोण मे –बच्चा गोद दिया जाए |

30) नवमेश शनि चर राशि मे शुभ ग्रह से ना देखा जाता हो ओर सूर्य दुखस्थानों मे हो- दत्तक पुत्र बने |

31) मंगल दूसरे घर मे-बड़े भाई का कर्तव्य निभाए तथा ससुराल से लाभ प्राप्त करे |
[नवार्ण मंत्र साधना एवं महत्व
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है | नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह माता भगवती
दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है |

नवार्ण मंत्र-
🔸🔹🔸
|| ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||

नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है | जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है |

ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।

इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |

नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी
की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|

नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|

नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की
उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह
को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई
है।

नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की
उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र साधना विधी
🔸🔸🔹🔹🔸🔸
विनियोग:
🔸🔹🔸
ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य
ब्रम्हाविष्णुरुद्राऋषय:गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर
स्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: ,क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर स्वत्यो प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ll

विलोम बीज न्यास:-
🔸🔸🔹🔸🔸
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥

(विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होता
है,संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दहीने
हाथ की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)

ब्रम्हारूप न्यास:-
🔸🔸🔹🔸🔸
ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां
पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां
पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां
पातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥

( ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण
होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ
दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये )

ध्यान मंत्र:-
🔸🔹🔸
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना
सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे
महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥

माला पूजन:-
🔸🔹🔸
जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से माला का पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है.

“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे
करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।

अब आप येसे चैतन्य माला से नवार्ण मंत्र का जाप करे-

नवार्ण मंत्र :-
🔸🔹🔸
ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll

नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर सकते है तो रोज 1,3,5,7,11,21….इत्यादि माला मंत्र जाप भी कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है,सारइ दुख समाप्त होते है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है।
हमे शास्त्र के हिसाब से यह सोलह प्रकार
के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग,सारस्वत,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और
बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से
जाने जाते है,इन सारे न्यासो का अपना एक अलग ही महत्व होता है,उदाहरण के लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती
है और जब माँ चाहे कसी भी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित ही कर देती है।
आप नवरात्री एवं अन्य दिनो मे इस मंत्र के जाप जो कर सकते है.मंत्र जाप रुद्राक्ष अथवा काली हकीक माला से ही किया करे।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
[लघु सरल अनुभूत प्रयोग।।

  1. व्यापर वृद्धि के लिए व्यक्ति को अपने व्यापर स्थान पर एक

अमरबेल लगानी चाहिए । उसे रोज पानी देना चाहिए तथा

अगरबत्ती दिखा कर कोई भी लक्ष्मी मंत्र का जाप करने पर,

उस लक्ष्मी मंत्र का प्रभाव बढ़ता है ॥

  1. किसी भी प्रकार की औषधि लेने से पूर्व उसे अपने सामने रख

कर 108 बार निम्न मंत्र का जाप कर लिया जाए और उसके बाद

उसको सेवन के लिए उपयोग किया जाए तो उसका प्रभाव बढ़ता है ।

॥ धनवन्तरि सर्वोष धि सिद्धिं कुरु कुरु नमः ॥

  1. हाथी दांत का टुकड़ा अपने आप मे महत्वपूर्ण है । किसी भी

शुक्रवार की रात्री को उस पर कुंकुम से ‘श्रीं’ लिख कर श्रीसूक्त

के यथा संभव पाठ करे । इसके बाद उसे लाल कपडे मे लपेट

कर तिजोरी मे रख देने पर निरंतर लक्ष्मी कृपा बनी रहती है ॥

  1. सूर्य को अर्ध्य देना अत्यंत ही शुभ है । अर्ध्य जल अर्पित करने

से पूर्व 7 बार गायत्री का जाप कर अर्पित करने से आतंरिक चेतना

का विकास होता है ॥

  1. घर के मुख्य द्वार के सामने सीधे ही आइना ना रखे । इससे लक्ष्मी सबंधित समस्या किसी न किसी रूप मे बनी रहती है,

अतः इस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए ॥

रत्न, रुद्राक्ष व वास्तु सलाहकार हर प्रकार की असली समग्री गिदड़ सिंधी बिल्ली की जेर काले घोड़े की नाल नव रत्न, रुद्राक्ष, शंख,हकीक, श्वेत आर्क/हल्दी गणपति, पारा शिवलिंग, तंत्र व यंत्र सामान मंगवाने के लिए हमे संपर्क करें।
जिस भवन में बिल्लियां प्राय: लड़ती रहती हैं वहां शीघ्र ही विघटन की संभावना रहती है, विवाद वृद्धि होती है, मतभेद होता है।

  • जिस भवन के द्वार पर आकर गाय जोर से रंभाए तो निश्चय ही उस घर के सुख में वृद्धि होती है।
  • भवन के सम्मुख कोई कुत्ता भवन की ओर मुख करके रोए तो निश्चय ही घर में कोई विपत्ति आने वाली है अथवा किसी की मृत्यु होने वाली है।
  • जिस घर में काली चींटियां समूहबद्ध होकर घूमती हों वहां ऐश्वर्य वृद्धि होती है, किंतु मतभेद भी होते हैं।
  • घर में प्राकृतिक रूप से कबूतरों का वास शुभ होता है।
  • घर में मकड़ी के जाले नहीं होने चाहिएं, ये शुभ नहीं होते, सकारात्मक ऊर्जा को रोकते हैं।
  • घर की सीमा में मयूर का रहना या आना शुभ होता है।
  • जिस घर में बिच्छू कतार बनाकर बाहर जाते हुए दिखाई दें तो समझ लेना चाहिए कि वहां से लक्ष्मी जाने की तैयारी कर रही हैं।
  • पीला बिच्छू माया का प्रतीक है। ऐसा बिच्छू घर में निकले तो घर में लक्ष्मी का आगमन होता है।
  • जिस घर में प्राय: बिल्लियां विष्ठा कर जाती हैं, वहां कुछ शुभत्व के लक्षण प्रकट होते हैं।
  • घर में चमगादड़ों का वास अशुभ है।
  • जिस भवन में छछूंदरें घूमती हैं वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
  • जिस घर के द्वार पर हाथी अपनी सूंड ऊंची करे वहां उन्नति, वृद्धि तथा मंगल होने की सूचना मिलती है।
  • जिस घर में काले चूहों की संख्या अधिक हो जाती है वहां किसी व्याधि के अचानक होने का अंदेशा रहता है।
  • जिस घर की छत या मुंडेर पर कोयल या सोन चिरैया चहचहाए, वहां निश्चित ही श्री वृद्धि होती है।
  • जिस घर के आंगन में कोई पक्षी घायल होकर गिरे वहां दुर्घटना होती है।
  • जिस भवन की छत पर कौए, टिटहरी अथवा उल्लू बोलने लगें तो, वहां किसी समस्या का उदय अचानक होता है।
    जय श्री महाकाल
    [🙏🏻 ज़िन्दगी में ठक-ठक तो होते रहेगी… इस खटर-पटर के बीच ही भजन करना होगा… 🙏🏻

एक आदमी घोड़े पर कहीं जा रहा था। घोड़े को जोर की प्यास लगी थी। दूर कुएं पर एक किसान बैलों से “रहट” चलाकर खेतों में पानी लगा रहा था। मुसाफिर कुएं पर आया और घोड़े को “रहट” में से पानी पिलाने लगा। पर जैसे ही घोड़ा झुककर पानी पीने की कोशिश करता, “रहट” की ठक-ठक की आवाज से डर कर पीछे हट जाता। फिर आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश करता और फिर “रहट” की ठक-ठक से डरकर हट जाता। मुसाफिर कुछ क्षण तो यह देखता रहा, फिर उसने किसान से कहा कि थोड़ी देर के लिए अपने बैलों को रोक ले ताकि रहट की ठक-ठक बन्द हो और घोड़ा पानी पी सके। किसान ने कहा कि जैसे ही बैल रूकेंगे कुएँ में से पानी आना बन्द हो जायेगा। इसलिए पानी तो इसे ठक-ठक में ही पीना पड़ेगा। ठीक ऐसे ही यदि हम सोचें कि जीवन की ठक-ठक (हलचल) बन्द हो तभी हम भजन, सन्ध्या, वन्दना आदि करेंगे तो यह हमारी भूल है। हमें भी जीवन की इस ठक-ठक (हलचल) में से ही समय निकालना होगा। तभी हम
अपना कुछ पारमार्थिक मंगल कर सकेंगे। वरना उस घोड़े की तरह हमेशा प्यासा ही रहना होगा।

सब काम करते हुए, सब दायित्व निभाते हुए प्रभु सुमिरन में भी लगे रहना होगा। जीवन में ठक-ठक चलती ही रहेगी।
: क्या आप निष्काम कर्मयोग को जान पाए❓

निष्काम कर्मयोग– ईश्वर से जुड़कर योगविधि के द्वारा कर्म करते हुए बिना किसी फल की इक्षा रखते हुए उसका लाभ यह होगा कि हम कर्म करते हुए कर्म के बंधन में नहीं बंधेंगे।
पहला– ईश्वर से जुड़ना होगा।
दूसरा– योगविधि का निरन्तर अभ्यास करना।
तीसरा– योगविधि का निरन्तर प्रयास करते हुए कर्म करना।
चौथा– बिना किसी फल की इक्षा रखते हुए कर्म करना।
पांचवा– कर्म करते हुए अच्छे या बुरे कर्म के बंधन में नहीं बंधना।
छठा– फिर जिसके लिए मानव जन्म मिला है उस लक्ष्य को प्राप्त करना।
मानव अच्छे कर्म और बुरे कर्म के चक्कर में फँस कर अपना अनमोल मानव जीवन व्यर्थ गवा देता है। अच्छे कर्म करो अच्छे कर्म करो यह कहते हुए और करते हुए सारी जीवन बिता देता है लेकिन वास्तविक कर्म को समझ नहीं पाता है इसलिए अपने मानव जीवन को व्यर्थ गवा देता है इसलिए पशु ओर मनुष्य में अंतर नहीं रह जाता है और इसलिए हमारे वेदों में लिखा है मनुर्भवः मनुर्भवः मनुष्य बनो! मनुष्य बनो ! लेकिन ये तभी सम्भव है जब हम वास्तविक निष्काम कर्मयोग को जान पाएं🚩
[ हल्दी का पानी अमृत……..

🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🥐🍹🍹🍹🍹🍹🍹🍹🍹

पानी में हल्दी मिलाकर पीने से होते है यह 7 फायदें…..
🙏👏🌹 इन्हें नोट करके अपने पास रखें! आवश्यकता पङने पर काम आएंगे।

  1. गुनगुना हल्दी वाला पानी पीने से दिमाग तेज होता है. सुबह के समय हल्दी का गुनगुना पानी पीने से दिमाग तेज और उर्जावान बनता है.
  2. रोज यदि आप हल्दी का पानी पीते हैं तो इससे खून में होने वाली गंदगी साफ होती है और खून जमता भी नहीं है. यह खून साफ करता है और दिल को बीमारियों से भी बचाता है.
    🙏👏🌹
  3. लीवर की समस्या से परेशान लोगों के लिए हल्दी का पानी किसी औषधि से कम नही है. हल्दी के पानी में टाॅक्सिस लीवर के सेल्स को फिर से ठीक करता है. हल्दी और पानी के मिले हुए गुण लीवर को संक्रमण से भी बचाते हैं.
    🙏👏🌹
  4. हार्ट की समस्या से परेशान लोगों को हल्दी वाला पानी पीना चाहिए. हल्दी खून को गाढ़ा होने से बचाती है. जिससे हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.
    🙏👏🌹
  5. जब हल्दी के पानी में शहद और नींबू मिलाया जाता है तब यह शरीर के अंदर जमे हुए विषैले पदार्थों को निकाल देता है जिसे पीने से शरीर पर बढ़ती हुई उम्र का असर नहीं पड़ता है. हल्दी में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो सेहत और सौंदर्य को बढ़ाते हैं.
    🙏👏🌹
  6. शरीर में किसी भी तरह की सजून हो और वह किसी दवाई से ना ठीक हो रही हो तो आप हल्दी वाला पानी का सेवन करें. हल्दी में करक्यूमिन तत्व होता है जो सूजन और जोड़ों में होने वाले असाहय दर्द को ठीक कर देता है. सूजन की अचूक दवा है हल्दी का पानी.
    🙏👏🌹
  7. कैंसर खत्म करती है हल्दी. हल्दी कैंसर से लड़ती है और उसे बढ़ने से भी रोक देती है. हल्दी एंटीकैंसर युक्त होती है. यदि आप सप्ताह में तीन दिन हल्दी वाला पानी पीयेंगे तो आप भविष्य में कैंसर से हमेशा बचे रहेगें.👏

निवेदन है कि इस संदेश को अधिकतम गुरुप में पोस्ट करने का कष्ट करें ।
👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
[ 🕉कर्म फल:-🕉

🐠 इन्सान जैसा कर्म करता है कुदरत या परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है।

🐠 एक बार द्रोपदी सुबह तडके स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी। साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोके से उड पानी मे चली गयी ओर बह गयी।

🐠 सँयोगवस साधु ने जो लँगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी। साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए थोडी देर मे सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड बढ जाएगी।

🐠 साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाडी मे छिप गया। द्रोपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साडी जो पहन रखी थी, उसमे आधी फाड कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साडी देते हुए बोली-तात मै आपकी परेशानी समझ गयी। इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए।

🐠 साधु ने सकुचाते हुए साडी का टुकडा ले लिया और आशीष दिया। जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएगे। और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रोपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुचायी तो भगवान ने कहा-कर्मो के बदले मेरी कृपा बरसती है क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते मे।

🐠 जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब मे मिला जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ गया था।

  • जिसको चुकता करने भगवान पहुच गये द्रोपदी की मदद करने, दुस्सासन चीर खीचता गया और हजारो गज कपडा बढता गया।*
  • इंसान यदि सुकर्म करे तो उसका फल सूद सहित मिलता है और दुस्कर्म करे तो सूद सहित भोगना पडता है।* *🙏🏼
    🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁
    *भक्त वाणी* *ममता दुख का कारण है*🌹

हे विश्वंभर भगवान मैं अहंता और ममता बुद्धि से भूमि भवन अन्न वस्त्र और धन आदि पदार्थों के संग्रह का त्याग करूंगा

बस्तु अवस्था पर स्थिति दुख का कारण नहीं अपितु उन वस्तुओं में जो हमारी ममता है वही दुख का कारण है 

जिस वस्तु के साथ संयोग होता है। उसका बियोग भी अवश्यं संभावी है। संसार के संयोग और वियोग वैसे ही हैं जैसे किसी मुसाफिर खाने अथवा पंथ साला में यात्रियों का एकत्रित होना तथा अलग अलग हो जाना अथवा रेलगाड़ी में मुसाफिरों का चढ़ना उतरना ।
ममता बड़ा विचित्र मानसिक रोग है यह रोग प्रतीत नहीं होता पर है बड़ा भया वह। ममता मन का दाद है ।यह ऐसा रोग है सुख भी देता है और दुख भी देता है। दाद में खजुलाहट होती हैं उसे खुजला कर आदमी सुख का अनुभव करता है बाद में जलन होने पर बहुत कष्ट का अनुभव करता है।
अज्ञानी जीव संसार में यह मेरी स्त्री है यह मेरा पुत्र है यह मेरी जमीन है यह मेरी संपत्ति है यह मेरा शरीर है इस प्रकार मेरे पन के भाव से, अपनापन के भाव से सुख का अनुभव करता है और फिर उनके बिनाश से दुखी होता है बहुत कष्ट का अनुभव करता है
भगवान के सच्चे भक्त सब कुछ भगवान का समझते हैं इसलिए वे सुख शांति आनंद का अनुभव करते हैं एक भगवान का भक्त था उसके पास एक महात्मा पहुंचे यह मकान किसका भगवान का
🥀 स्त्री किसकी? भगवान की
🥀 लड़का किसका? भगवान का
🥀 फिर घूमते घूमते बगल में बने आश्रम में पहुंचे कहा यह आश्रम किसका ?भगवान का
🥀 भगवान किसके ?हमारे
🥀आप किसके ?मैं इनका अर्थात भगवान का
हमारा इनका अर्थात प्रभु का संबंध नित्य सदा से है सदा रहेगा। यह संबंध अटूट है और सब बनावटी बात है ।आज यह हमारा लड़का हमारी स्त्री यह हमारी दादी हमारा मकान हमारी संपत्ति क्षणिक संबंध है बनावटी है। बनावटी चीज अधिक दिन तक रहने वाली नहीं है यह सब चीज है प्रभु का । यह हमें स्वीकार कर लेना चाहिए जब यहां से हम शरीर छोड़कर जाएंगे तो प्रभु ही हमारा साथ देंगे और कोई नहीं देगा। सगे संबंधी शमशान में जाकर छोड़ आएंगे फिर तुम जाओ जहन्नुम में वास्तव में संबंध हो तो टूटे ही नहीं परंतु है झूठी मान्यता । वह कैसे रहेगी । अतः जब तक हम संसार से संबंध रखेंगे तब तक कभी सुख मिलने वाला नहीं
हां सब को भगवान का रूप मानकर उनसे संबंध बनाए रखेंगे तो खुशहाल रहेंगे फिर उनके आने-जाने में हमें दुखी नहीं होना पड़ेगा
🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁🥀🍁

🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹भगवद गीता अध्याय: 13
श्लोक 9

श्लोक:
असक्तिरनभिष्वङ्‍ग: पुत्रदारगृहादिषु।
नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु॥

भावार्थ:
पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना
॥9॥

💫🌹💫🌹💫🌹🥀🌹🥀🌹🥀
[🙏🏻✨

🧘🏻‍♂🧘🏻‍♂ सोच एक शक्ति 🧘🏻‍♂🧘🏻‍♂

🍥 आज दुनिया में सम्पूर्ण सुखी ऐसा कौन है जो तन,मन,धन से सम्बन्ध रिश्तों से सन्तुष्ट हो या पूर्णतः स्वस्थ हो।❓

कोई नही!

🍥 आज कौन सा घर है जहाँ रती भर की भी किटपिट नही होती होगी।!❓

कोई नही।

🍥 हर एक कि जीवन मे अलग अलग समस्या है इसलिए कभी ऐसा नही समझना की मेरी समस्या बहुत बड़ी है या मुझे ही समस्या है ।

🍥 हर समस्या का समाधान ढूंढ सकते है अगर आप सन्तुष्टता, धीरज और सहनशीलता जैसे दिव्य गुण को अपनाते हो।

🍥 अपनी सोच को सकारात्मक बनाओ — मेरी समस्या औरों से कम ही है ।

🍥 मुझसे भी ज्यादा दुखी इस दुनिया मे बहुत है।

🍥 ईश्वर से प्रार्थना करे की कोई साथ हो न हो ,तुम मेरे साथ जरूर रहना और सही मार्गदर्शन करते रहना।
अगर ईश्वर पे विश्वास है प्यार है तो जीवन मे आपको कभी कोई कमी महसूस नही होगी।क्योकि वह ☝सर्वशक्तिमान है सर्वज्ञ है।

🍥 समस्या हमारी सोच से ही पैदा होती है।

🍥 अगर सोच को ठीक कर दो तो समस्या ,समस्या नही लगेगी ।

🍥 वह आपको आगे बढ़ने की बेहतर बनने की सीढ़ी दिखेगी।*

🍥 और दुनिया मे सबसे फ़ास्ट कुछ परिवर्तन हो सकता है तो वो है “सोच” ,सेकंड में हम बदल सकते है।

🍥 इसलिए आप नकरात्मक से सकारात्मक होने के लिए समय का या परिस्थिति का इंतजार न करें।

🍥 खुद में दिव्यता लाने की कोशिश सदा करते रहे।दूसरों को बदलना मुश्किल है खुद को बदलना आसान है क्योंकि आप सिर्फ आपके मन के मालिक है दूसरों के नही!!
[🌹 शानदार !!!!!!!!

अपने पिता की मृत्यु के बाद बेटे ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया और कभी कभार उनसे मिलने चला जाता था ।

एक शाम उसे वृद्धाश्रम से फ़ोन आया कि तुम्हारी माता जी की तबियत बहुत ख़राब है, एक बार आकर मिल लो ।

पुत्र वहाँ गया तो उसने देखा कि माँ कि हालत बहुत गंभीर और मरणासन्न है ।

उसने पूछा :- माँ मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ ?

माँ ने जवाब दिया :- कृपा करके वृद्धाश्रम में पंखे लगवा दे यहाँ एक भी नहीं है
और हाँ एक फ्रिज भी रखना देना ताकि खाना ख़राब ना हो क्योंकि कई बार मुझे बिना खाए ही सोना पड़ा ।
पुत्र ने आश्चर्यचकित होकर पूछा :- माँ, आपको यहाँ इतना समय हो गया आपने कभी शिकायत नहीं करी, अब जब आपके जीवन का कुछ ही समय बचा है तब आप मुझे यह सब बता रही हो ।क्यों ?

माँ ने जवाब दिया :- ठीक है बेटा, मैंने तो गर्मी, भूख और दर्द सब बर्दाश्त तर लिया, लेकिन…….
जब तुम्हारी औलाद तुम्हें यहाँ भेजेगी तो मुझे डर है कि तुम ये सब सह नहीं पाओगे

शानदार, अतुलनीय . 😊

गुरु की अन्य ग्रहों के साथ युति |

गुरु को जीव और वायु का रूप कहा जाता है. यें साँसों में तो निवास करता ही है साथ ही गुरु जल, थल और आकाश के जीवों में भी अपनी मान्यता सबसे पहले रखता है. जब तक जीव में गुरु है सिर्फ तभी तक ही जीवन है, जैसे ही गुरु की सीमा खत्म हो जाती है. बस उसी पल जीवों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है. जीवों की जिन्दगी गुरु के जीवन पर ही निर्भर करती है.

सूर्य से मिलकर ( When Combines with Sun ) : जहाँ सूर्य आत्मा का कारक और सूरज का तेज बल, पराक्रम और साहस का प्रतीक होता है. वहीं गुरु ज्ञान, धर्म, न्याय और महत्वाकांक्षी होता है. गुरु के साथ सूर्य के मिलने से जीव और आत्मा का मिलन हो जाता है. गुरु जीव है और सूर्य आत्मा है जिस भी इंसान की कुंडली या भाव में ये दोनों मिलकर प्रवेश करते है वे व्यक्ति धनी, न्याय और कुशल हो जाते है. विभिन्न भावों में होने से फल में भी अंतर आना स्वभाविक है. उसके अनुसार उस महीने के अंतराल में धार्मिक भावना, बड़े न्याय से जुड़े कार्यों में सफलता मिलने के योग बनते है और यह भाव जीवात्मा के रूप में माना जाता है.

चन्द्रमा से मिलने पर ( When meets with Moon ) : चन्द्रमा के नीच अथवा धीमे होने के कारण शंख का दान करना बहुत ही उत्तम माना जाता है. अगर सेवा धर्म में चन्द्रमा की दशा में सुधार लाना चाहते है. तो फिर जातक की कुंडली में माता के भाव उत्पन्न होने लगते है, वह बहुत ही शांत स्वभाव का हो जाता है और उसके मन में माता के प्रति भाव उत्पन्न होने लगते है, उसको माता पिता का साथ भी मिलता है. साल में एक बार किसी पवित्र नदी में स्नान जरूर करना चाहिए, सफेद खुशबू वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए ऐसा करने से लाभ प्राप्त होता है और जिस व्यक्ति की कुंडली में ये दोनों होते है, वो अपने शब्दों और अपनी इच्छाओं को दुनिया के सभी व्यक्तियों को बताना चाहता है.

मंगल से मिलकर ( Combines with Mangal ) : गुरु के साथ मंगल के मिलने पर घर में जो भी क़ानूनी झगड़ा चल रहा होता है, उसमे पुलिस का साथ हमारे पक्ष में हो जाता है. धर्म के कार्यों में पूजा-पाठ में मन लगने लगता है और इसी प्रकार की क्रिया हमारे जीवन में भी शामिल हो जाती है. विदेश के रहन – सहन, अच्छा खान पान और अन्य प्रकार के नये – नये खुशियों से भरे कार्य जीवनं से जुड़ जाते है. लेकिन अगर आपको कोई कमी मह्सुश हो तो आप मंगल की दशा सुधारने के लिए मंगलवार का दिन आपके लिए बहुत अच्छा होता है. जिनका मंगल भारी है उनको मंगलवार के दिन उपवास और किसी गरीब या भूखे व्यक्ति को पेट भरकर भोजन खिलाना चाहिए. ध्यान रखें कि ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाएं तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए और अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या पेड़ लगाकर उनकी अच्छे से देखभाल करनी चाहिए.

बुध के होने से ( When Mercury Joins ) : बुध ग्रह तो वैसे ही ज्ञान का देवता होता है और फिर बुध का गुरु के साथ होना जातक के अन्दर समझदारी का संकेत है. वह धर्म और न्याय का आदि हो जाता है. उसके अन्दर भाव के अनुसार क़ानूनी दावपेच समझने की गति तीव्र हो जाती है और वह हर फैसले पर सोच समझकर विचार करता है. बुध की दशा में सुधार के लिए बुधवार के दिन उपवास रखें. गाय को हरी सब्जी खिलाएं, साथ ही रविवार को छोडकर अन्य किसी भी दिन रोज़ाना तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार आता है. आपको अनाथों व गरीबों की मदद करने से भी बहुत फायदा मिलता है.

शुक्र के साथ मिलकर ( When Combines with Shukra ) : शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है. किसी भी जातक की कुंडली में अगर शुक्र गुरु के साथ मिल जाता है तो उसकी स्थिति आध्यात्मिकता से भौतिकता की तरफ होनी शुरू हो जाती है. कानून के बारे में तो पहले से ही जानता है, लेकिन वो कानून को भी भौतिक रूप में देखना चाहता है. वह धर्म, पूजा – पाठ को तो मानता है ही साथ ही वो तीर्थ स्थानों पर जाता है, लेकिन इनको भी भौतिक रूप में देखने की इच्छा रखता है और अपने भगवान को भी सजावट आदि के द्वारा देखना चाहता है. किसी कारण से अगर कुछ परेशानी आ रही है तो शुक्रवार के दिन उपवास रखें और गरीबों व कौओं को मिठाई खाने के लिए दें. अगर किसी कन्या के विवाह में दान का अवसर मिलें तो उसे हाथ से बिल्कुल भी न निकलने दें और अपने घर में सफेद रंग का पत्थर लगवाएं.

शनि के साथ ( When Saturn Joins ) : शनि से मिलने पर मनुष्य के अन्दर किसी प्रकार की ठंडी हवा का संचार शुरू हो जाता है. मनुष्य धर्म से जुड़े हुए कार्य करने वाला हो जाता है लेकिन जो कार्य करता है, उसके फल के लिए अपनी तरफ से उन इच्छाओं को सबके सामने बोल नहीं पाता है. जिसको जो कुछ भी दे देता है वापस नही ले पाता है. उसका यही स्वभाव बन जाता है, जिसके कारण उसको दुख – दर्द सहन करने की आदत हो जाती है. ऐसे व्यक्ति शनिवार के दिन उपवास रखें और लोहे के बर्तन में दही, चावल और नमक मिलाकर भिखारियों को खाने के लिए दें. जिस व्यक्ति पर शनि की दशा ज्यादा खराब है उन्हें हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए.

राहू के साथ ( When Raahu Comes ) : राहू का साथ होने से जातक धर्म और न्याय आदि के मामले में अपनी वाह – वाह खुद ही करने लगता है. वो कानून की जानकारी तो रखता है लेकिन उसके अन्दर झूठ बोलने की आदत भी होती है. वह ऊपरी मन से धर्म और भगवान को मानता तो है लेकिन भीतर से पाखंड और धोखे का काम करता रहता है. इस दुष्प्रभाव से बचने के लिए उन्हें ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल दान देने चाहियें. किसी भी व्यक्ति जो कष्ट में है उसकी मदद करनी चाहिए, किसी भी गरीब व्यक्ति की लड़की की शादी में मदद करनी चाहिए. यदि किसी व्यक्ति के पास पैसा फंस गया है, तो उसको निकलवाने के लिए रोज सुबह पक्षियों को दाना खाने के लिए डालें.

केतु के साथ मिलकर ( When Ketu Joins ) : केतु के साथ मिलते ही वह न्याय और धर्म का अधिकारी बनकर कार्य करने लग जाता है. कानून को जानते हुए वह कानून का अधिकारी बन जाता है. अगर मंगल युक्ति दे तो जातक कानून और धर्म के साथ में दंड देने का अधिकारी भी बन जाता है. जिनकी कुंडली में केतु की दशा ठीक नहीं रहती है वो व्यक्ति बकरे, कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल और भूरे रंग की वस्तु दान में दें. अगर केतु की दशा का फल संतान को भुगतना पड़ रहा है. तो मंदिर में कम्बल दान करें. शनिवार व मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है.
[: ज्योतिष के अद्भुत फलित सूत्र।

  1. यदि किसी जातक के जन्मलग्न को एक से अधिक शुभ ग्रह एवं केन्द्र-त्रिकोणादि के स्वामी (1, 4, 7, 10, 9, 5) होकर देख रहे हों, तो उसके व्यक्तित्व में सौम्यता, आकर्षण इत्यादि की अभिवृद्धि में सहायक होते हैं| दूसरी ओर यदि एक से अधिक पापग्रह लग्न भाव को देख रहे हों, तो ऐसी स्थिति में जातक उग्र स्वभाव वाला, तामसिक विचारों वाला तथा दु:खी होता है एवं कुछ न कुछ मानसिक, शारीरिक पीड़ा से भी व्यथित रहता है|
  2. नीच राशिगत ग्रह भी अपना विशेष प्रभाव नकारात्मक एवं सकारात्मक रूप से जातक के व्यक्तित्व तथा उसके जीवन पर डालते हैं, जो द्रष्टव्य है| अनुभव के आधार पर नीच राशिगत मङ्गल व्यक्ति को ठण्डे स्वभाव का बनाता है, तो उसके आत्मविश्‍वास, साहस में न्यूनता की प्रवृत्ति भी दर्शाता है| दूसरी ओर नीचराशिस्थ गुरु वाला जातक 31वें वर्ष के उपरान्त निजार्थिक, सामाजिक उत्थान का भोक्ता होता है, लेकिन सन्तान, और शिक्षा से जुड़ी जटिल समस्याओं का उसे जीवन में एक बार अवश्य सामना करना पड़ता है|
  3. सिंह राशि में गुरु एवं मकर राशि में मङ्गल हो, तो व्यक्ति स्वभाव से दम्भी एवं कट्टर होता है| सूर्य चन्द्र की युति वाला व्यक्ति अविनयी, हठी, दृढ़ प्रतिज्ञ होता है| बशर्ते कि इस युति पर मङ्गल की पूर्ण दृष्टि हो|
  4. लग्नस्थ बली (स्वगृही, उच्च) मङ्गल अथवा बुध जातक को अपनी वास्तविक उम्र से छोटी उम्र का दर्शाते हैं अर्थात् यदि वह वृद्धावस्था में हो, तो भी नौजवान युवक की भॉंति प्रतीत होगा|
  5. लग्नेश छठे भाव में हो, तो जातक को विरोधी प्रवृत्ति वाला एवं दबंग बनाता है और इस भाव में यदि शनि स्थित हो, तो पैरों में दर्द विकार अथवा सूजन का सामना करना पड़ता है|
  6. लग्न, सूर्य एवं चन्द्रमा बली होकर केन्द्र त्रिकोणादि भावों में हो साथ ही ये जिन राशियों में स्थित हों, उनके स्वामी भी षड्‌बल में बली होकर उक्त शुभ भावों में ही हो, तो व्यक्ति नि:संदेह प्रभावशाली, दीर्घायु, ख्यातिवान् एवं समाज में पूज्य होता है|
  7. यदि किसी राशि में कोई ग्रह उच्च का होकर स्थित हो, लेकिन उस राशि का स्वामी नीच अथवा अस्त होकर छठे, आठवें बारहवें भावों में से कहीं भी स्थित हो, तो ऐसी स्थिति में उच्चराशिस्थ ग्रह अपना पूर्ण प्रभाव दिखाने में असमर्थ होता है, जैसे यदि मेष राशि में सूर्य भले ही अपने परमोच्च अंश (10) में क्यों न हो? इसका राशिश (मेष का स्वामी मङ्गल ) मङ्गल नीच राशि कर्क में हो या अस्त हो, तो निश्‍चित रूप से उच्चस्थ सूर्य अपना भावजन्य एवं राशिजन्य पूर्ण प्रभाव अभिव्यक्त करने में असमर्थ होगा|
  8. लग्नस्थ मेष, सिंह, धनु, कर्क राशि मेंे स्थित गुरु व्यक्ति को अहंकारी एवं गंभीर प्रकृति का बनाता है|
  9. दशम भाव में स्थित शनि (स्वगृही, उच्च एवं वक्री) 36वें वर्ष से विशेष व्यावसायिक उत्थान देता है एवं आकस्मिक गिरावट भी करता है| दूसरी ओर इस भाव में स्थित बली मङ्गल जातक को अपने व्यवसाय में कीर्तिवान् बनाते हुए अनायास उसे विवादों के घेरे में भी उलझाता है|
  10. जातक के सिंहस्थ सूर्य, मेष राशिस्थ मङ्गल उसके आत्मप्रभाव में वृद्धिकारक होते हैं और वह स्वत: प्रेरणा से समाज में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करता है|
  11. आधुनिक युग में तुला राशिस्थ सूर्य वाले व्यक्ति राजनीति एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते हुए देखे जा सकते हैं|
  12. किसी जातक के यदि वृषभ राशि में चन्द्रमा केन्द्र त्रिकोणादि भावों में से कहीं भी पक्ष बल से परिपूर्ण होकर पापग्रहों की दृष्टि, युति से मुक्त हो, तो उसे (जातक को) राजपक्ष से पद प्राप्ति के सुअवसर मिलते हैं| ऐसा जातक उदार एवं व्यावहारिक भी होता है|
  13. जन्म लग्न कुण्डली के अन्तर्गत जातक के दाम्पत्य सुख के सन्दर्भ में सप्तम भाव स्थित अकेला शुक्र बाधाएँ एवं रूकावटें पैदा करता है, तो दूसरी ओर इस भाव में स्थित सूर्य जीवनसाथी से मतभेद पैदा करता है| स्थिति यहॉं तक आ जाती है कि गृहस्थ जीवन में घुटन एवं अलगाव की सम्भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, लेकिन यदि शुक्र या सूर्य स्वगृही, उच्चराशि में स्थित होकर अथवा एक से अधिक शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट होकर सप्तम भाव में स्थित हो, तो इस भाव से उपर्युक्त वर्णित दुष्परिणाम जातक को अत्यल्प मात्रा में ही प्राप्त होंगे|
  14. शुभ भावों के स्वामी (1, 4, 7, 10, 5, 9 भावों के) होकर तीन अथवा इसे अधिक अस्त ग्रह जातक के राजयोग एवं उत्तम स्वास्थ्य में क्षीणता को दर्शाते हैं, ऐसा जातक साधारण व्यक्तित्व का एवं कोई न कोई आधि-व्याधि से ग्रसित रहता है|
  15. जातक की कुण्डली में एक से अधिक नीच राशिस्थ ग्रहों का नीचभङ्ग राजयोग उसे सामान्य स्थिति से काफी उच्च स्तर का बनाता है और अपने कार्य व्यवसाय में विशिष्ट मुकाम पर पहुँचाता है|
  16. जातक की जन्म कुण्डली में लग्न भाव छठे भाव की अपेक्षा पूर्ण बली हो और एकादश भाव द्वादश भाव की अपेक्षा पूर्ण बली हो, तब वह जीवन में मनवांछित यश, धन, उत्थान, उच्च सफलता की सहज प्राप्ति करता है|
    [ज्योतिष में फलकथन का आधार मुख्यतः ग्रहों, राशियों और भावों का स्वाभाव, कारकत्‍व एवं उनका आपसी संबध है।

ग्रहों को ज्योतिष में जीव की तरह माना जाता है – राशियों एवं भावों को वह क्षेत्र मान जाता है, जहाँ ग्रह विचरण करते हैं। ग्रहों का ग्रहों से संबध, राशियों से संबध, भावों से संबध आदि से फलकथन का निर्धारण होता है।
ज्योतिष में ग्रहों का एक जीव की तरह ‘स्‍वभाव’ होता है। इसके अलाव ग्रहों का ‘कारकत्‍व’ भी होता है। राशियों का केवल ‘स्‍वभाव’ एवं भावों का केवल ‘कारकत्‍व’ होता है। स्‍वभाव और कारकत्‍व में फर्क समझना बहुत जरूरी है।

सरल शब्‍दों में ‘स्‍वभाव’ ‘कैसे’ का जबाब देता है और ‘कारकत्‍व’ ‘क्‍या’ का जबाब देता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। माना की सूर्य ग्रह मंगल की मेष राशि में दशम भाव में स्थित है। ऐसी स्थिति में सूर्य क्‍या परिणाम देगा?

नीचे भाव के कारकत्‍व की तालिका दी है, जिससे पता चलता है कि दशम भाव व्यवसाय एवं व्यापार का कारक है। अत: सूर्य क्‍या देगा, इसका उत्‍तर मिला की सूर्य ‘व्‍यवसाय’ देगा। वह व्‍यापार या व्‍यवसाय कैसा होगा – सूर्य के स्‍वाभाव और मेष राशि के स्‍वाभाव जैसा। सूर्य एक आक्रामक ग्रह है और मंगल की मेष राशि भी आक्रामक राशि है अत: व्‍यवसाय आक्रामक हो सकता है। दूसरे शब्‍दों में जातक सेना या खेल के व्‍यवयाय में हो सकता है, जहां आक्रामकता की जरूरत होती है। इसी तरह ग्रह, राशि, एवं भावों के स्‍वाभाव एवं कारकत्‍व को मिलाकर फलकथन किया जाता है।

दुनिया की समस्त चल एवं अचल वस्तुएं ग्रह, राशि और भाव से निर्धारित होती है। चूँकि दुनिया की सभी चल एवं अचल वस्तुओं के बारे मैं तो चर्चा नहीं की जा सकती, इसलिए सिर्फ मुख्य मुख्य कारकत्‍व के बारे में चर्चा करेंगे।

सबसे पहले हम भाव के बारे में जानते हैं। भाव के कारकत्‍व इस प्रकार हैं –

प्रथम भाव : प्रथम भाव से विचारणीय विषय हैं – जन्म, सिर, शरीर, अंग, आयु, रंग-रूप, कद, जाति आदि।

द्वितीय भाव: दूसरे भाव से विचारणीय विषय हैं – रुपया पैसा, धन, नेत्र, मुख, वाणी, आर्थिक स्थिति, कुटुंब, भोजन, जिह्य, दांत, मृत्यु, नाक आदि।

तृतीय भाव : तृतीय भाव के अंतर्गत आने वाले विषय हैं – स्वयं से छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, शक्ति, मानसिक संतुलन आदि।

चतुर्थ भाव : इस भाव के अंतर्गत प्रमुख विषय – सुख, विद्या, वाहन, ह्दय, संपत्ति, गृह, माता, संबंधी गण,पशुधन और इमारतें।

पंचव भाव : पंचम भाव के विचारणीय विषय हैं – संतान, संतान सुख, बुद्धि कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य कार्य, दान, मनोरंजन, जुआ आदि।

षष्ठ भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं – रोग, शारीरिक वक्रता, शत्रु कष्ट, चिंता, चोट, मुकदमेबाजी, मामा, अवसाद आदि।

सप्तम भाव : विवाह, पत्‍नी, यौन सुख, यात्रा, मृत्यु, पार्टनर आदि विचारणीय विषय सप्तम भाव से संबंधित हैं।

अष्टम भाव : आयु, दुर्भाग्य, पापकर्म, कर्ज, शत्रुता, अकाल मृत्यु, कठिनाइयां, सन्ताप और पिछले जन्म के कर्मों के मुताबिक सुख व दुख, परलोक गमन आदि विचारणीय विषय आठवें भाव से संबंधित हैं।

नवम भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं – पिता, भाग्य, गुरु, प्रशंसा, योग्य कार्य, धर्म, दानशीलता, पूर्वजन्मों का संचि पुण्य।

दशम भाव : दशम भाव से विचारणीय विषय हैं – उदरपालन, व्यवसाय, व्यापार, प्रतिष्ठा, श्रेणी, पद, प्रसिद्धि, अधिकार, प्रभुत्व, पैतृक व्यवसाय।

एकादश भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं – लाभ, ज्येष्ठ भ्राता, मुनाफा, आभूषण, अभिलाषा पूर्ति, धन संपत्ति की प्राप्ति, व्यापार में लाभ आदि।

द्वादश भाव : इस भाव से संबंधित विचारणीय विषय हैं – व्यय, यातना, मोक्ष, दरिद्रता, शत्रुता के कार्य, दान, चोरी से हानि, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आंख, शय्यासुख, पैर आदि।
[रूसी?
डैंड्रफ या वैज्ञानिक रूप से सेबोरहाइक डर्मेटाइटिस के रूप में जाना जाता है जो कई खोपड़ी विकारों में से एक है और काफी आम है। डैंड्रफ अक्सर खोपड़ी की सनसनी के साथ होता है। रूसी के कारण एक से दूसरे में भिन्न हो सकते हैं यह सूखी या तैलीय और चिढ़ त्वचा से लेकर खोपड़ी पर कवक या बैक्टीरिया के विकास के साथ-साथ भड़काऊ त्वचा की स्थिति तक हो सकता है। तेल और ड्राई स्कैल्प के अलावा, तनाव, आहार, हार्मोन और एलर्जी की असमानता भी रूसी का कारण बनती है। सौभाग्य से, आपको पता चल जाएगा कि रूसी के साथ रूसी से कैसे छुटकारा पाया जाए। जरा देखो तो!

नमक और फिटकरी
यह रूसी के लिए सबसे अच्छा घरेलू उपचारों में से एक है। नमक में जीवाणुनाशक और सफाई प्रभाव होता है, जबकि फिटकरी खोपड़ी के पीएच को बेअसर करने में मदद करती है। दो अवयवों को मिलाएं और आपके पास बहुत समय तक खर्च किए बिना एक शानदार रूसी उपचार है। ऐसे 2 तरीके हैं जो आप कर सकते हैं: नमक को फिटकरी में घोलें और फिर दैनिक शैम्पू के रूप में उपयोग करें। नमक को फिटकरी में घोलें, फिर कपास झाड़ू को भिगोएँ और इसे लगभग 30 मिनट के लिए खोपड़ी पर रखें और फिर साफ पानी से कुल्ला कर लें।

जैतून का तेल
यह अक्सर रूसी के लिए सस्ते अभी तक प्रभावी घरेलू उपचारों में से एक के रूप में अनुशंसित है। जैतून के तेल की संरचना में नमी और तरल होता है जो न केवल अंतहीन रूसी है, बल्कि आपके बालों को चिकना बनाता है। लगभग 20 सेकंड के लिए माइक्रोवेव में जैतून के तेल के कुछ बड़े चम्मच को गर्म करें। तापमान को समायोजित करें ताकि जैतून का तेल बहुत गर्म हो। फिर, अपने हेयरलाइन और स्कैल्प पर ऑलिव ऑयल लगाएं और धीरे से मसाज करें, फिर लगभग एक घंटे तक सेते रहें। अंत में, आप हमेशा की तरह अपने सिर को शैम्पू से धोएं। अधिक दक्षता के लिए, आप अपने बालों को सेते हैं।

सिरका और पानी
आप अपनी खोपड़ी पर लगाने के लिए 1: 3 के अनुपात में पानी से पतला करने के लिए नींबू के रस या सिरके का उपयोग कर सकते हैं। फिर रात भर इनक्यूबेट करें और अगले दिन धो लें। यह सरल लग सकता है; हालांकि, इसकी प्रभावशीलता के साथ-साथ सस्ती लागत और सरल प्रक्रिया यह है कि यह रूसी के लिए शीर्ष 3 घरेलू उपचारों में शामिल होने में क्या मदद करती है।

नींबू
नींबू को रूसी का “अभिलेखीय” माना जाता है क्योंकि वे खोपड़ी पर सीधे रूसी, संतुलन पीएच और तेल के साथ सामना कर सकते हैं और इसमें एक बहुत ही सुखद सुगंध है। नीचे दी गई प्रक्रिया आपको बताएगी कि नींबू को रूसी के घरेलू उपचार की सूची से क्यों नहीं छोड़ा जा सकता है। गर्म पानी के साथ मिश्रण करने के लिए एक नींबू निचोड़ें। अपने स्कैल्प पर रगड़ने के लिए नींबू के छिलके का इस्तेमाल करें और 2 मिनट तक धीरे-धीरे मसाज करें। खोपड़ी पर 2 चम्मच नींबू का रस लें और मालिश करें। अपने बालों और खोपड़ी पर रगड़ने के लिए एक कप गर्म पानी में नींबू का रस मिलाएं और फिर साफ पानी से धो लें। वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रति सप्ताह एक बार करें।

नारियल का तेल
जब यह सामान्य रूप से त्वचा और बालों की देखभाल करने के लिए आता है, और विशेष रूप से रूसी के लिए घरेलू उपचार, नारियल तेल हमेशा एक अद्भुत समाधान के रूप में जाना जाता है। यह बालों को चिकना करने और आपकी त्वचा की देखभाल करने का काम करता है। 3-5 चम्मच नारियल के तेल का उपयोग करें और अपनी खोपड़ी पर लागू करें और बाद में शैम्पू से धो लें। आपको शैम्पू का उपयोग करने की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि नारियल का तेल आपको उत्कृष्ट और पौष्टिक प्रभाव प्रदान करता है। आप अपने खोपड़ी पर रगड़ने के लिए 5 चम्मच नारियल के तेल के साथ 1 चम्मच नींबू का रस मिला सकते हैं और एक घंटे के बाद अपने बालों को धो सकते हैं।

मुसब्बर वेरा
अपनी खोपड़ी पर रगड़ने के लिए एलो वेरा जेल से कुछ लें। इसे लगभग 10 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर कुल्ला करें। आपको अपने बालों को हर्बल या लो पीएच शैम्पू से धोना चाहिए और फिर अपने स्कैल्प पर एलो वेरा जेल लगाना चाहिए। एलो वेरा के घटकों में प्रोस्टाग्लैंडिन्स होते हैं जिनमें जीवाणुरोधी और विरोधी भड़काऊ प्रभाव होते हैं। विटामिन बी जैसे बी 1, बी 5, बी 6, बी 12 और फोलिक एसिड विशेष रूप से और साथ ही साथ एमिनो एसिड सभी आपको उम्र बढ़ने सेल से लड़ने में मदद कर सकते हैं। मुसब्बर वेरा अक्सर त्वचा की समस्याओं के लिए सिफारिश की जाती है; हालांकि, बहुत से लोग डैंड्रफ के लिए शीर्ष घरेलू उपचार में से एक के रूप में इसकी प्रभावशीलता के बारे में नहीं जानते हैं कि यह त्वचा की स्थिति के खिलाफ कैसे काम करता है

प्याज
एक प्याज को काट लें या काट लें, फिर इसे पीसकर अपने स्कैल्प पर रगड़ें। अंत में पानी और शैम्पू से धो लें। एक और तरीका यह है कि प्याज से रस लें और 1-2 बड़े चम्मच शहद, 1: 2 (1 चम्मच शहद और 2 बड़े चम्मच प्याज के रस) का अनुपात या 1: 3 के साथ मिलाएं। अपनी खोपड़ी को रगड़ें, एक कपास की गेंद को भिगोएँ और लगभग 30-45 मिनट के लिए अपनी खोपड़ी पर लागू करें और फिर साफ पानी से कुल्ला करें। यह रूसी के सबसे आसान घरेलू उपचारों में से एक है।
बादाम तेल:
एक आधा नींबू, एक चम्मच बादाम का तेल, एक चम्मच अरंडी का तेल लें। नींबू का रस निचोड़ें और बादाम के तेल के साथ मिलाएं। बादाम के तेल को नींबू के साथ मिलाने से और भी बेहतर एंटी-डैंड्रफ प्रॉपर्टी मिलेगी। बालों को गीला करना सुनिश्चित करें, अपने बालों पर मिश्रण लागू करें, धीरे से अपने खोपड़ी की मालिश करें, अपने बालों को 20 मिनट के लिए एक तौलिया के साथ सेते हैं, फिर गर्म पानी से कुल्ला।

दही और काली मिर्च
यह रूसी के लिए अचूक इलाज है जो खमीर अतिवृद्धि के कारण होता है। दही प्रोबायोटिक्स में समृद्ध है। इसलिए, यह खमीर के विकास को रोकने के लिए हमेशा एक बढ़िया विकल्प है। कुछ काली मिर्च पाउडर, दही का एक बड़ा चमचा लें और एक साथ मिलाएं। अपने खोपड़ी पर मिश्रण को लागू करें और कम से कम 1 घंटे के लिए छोड़ दें। हल्के शैम्पू के साथ कुल्ला। अगली बार जब आप फंगस या यीस्ट के कारण डैंड्रफ हो जाए तो डैंड्रफ के घरेलू उपचार के बीच चयन करते समय आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

सेब
सेब में प्रोसीएनिडिन्स बी -2 होता है जो बालों को बढ़ने और रूसी के हानिकारक प्रभावों को रोकने में मदद करता है। दो सेब लें, उन्हें छोटे स्लाइस में काटें और रस में मिलाएं और इसे अपने खोपड़ी पर लागू करें। हालांकि यह अजीब लगता है, यह एक उपाय है जो आपकी खोपड़ी को खुजली और परतदार नहीं होने में मदद कर सकता है।

चाय के पेड़ की तेल
एक अध्ययन से पता चला है कि 5% चाय के पेड़ के तेल के साथ अपने बालों को शैम्पू करने से रूसी की गंभीरता में काफी सुधार हो सकता है। आप शैम्पू में चाय के पेड़ के तेल की कुछ बूँदें भी जोड़ सकते हैं।

लहसुन
लहसुन के एंटी-फंगल गुण बैक्टीरिया को हटाने के लिए एकदम सही हैं जो रूसी का कारण बनते हैं। लहसुन को कुचलकर अपने स्कैल्प पर रगड़ें। इसकी गंध से बचने के लिए, आप शहद के साथ मिलाकर अपने स्कैल्प पर मालिश कर सकते हैं।

रूसी से छुटकारा पाने और प्राकृतिक रूप से इसे रोकने के लिए कुछ अन्य उपयोगी टिप्स:

संतुलित जीवनशैली की जरूरत है, पौष्टिक आहार लें और तनाव कम करें क्योंकि ये शरीर में हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं।
अपनी खोपड़ी को नम बनाने से बचें
रूसी को रोकने के लिए नियमित रूप से अपने बालों को कंघी करें। हमेशा सुनिश्चित करें कि आपके बाल साफ रहें। अपनी खोपड़ी को खरोंचने से बचें क्योंकि इससे लाल डॉट्स हो सकते हैं। हमेशा बालों को बांधने से पहले पूरी तरह से सुखा लें।
अपने बालों को धूप में उजागर करने से भी रूसी को रोका जा सकता है। धूप आपके शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। यह खमीर को मारने में मदद करता है। हालांकि, आपको यूवी किरणों के संपर्क में नहीं आना चाहिए, क्योंकि यह आपके बालों को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके अलावा, आपको सिर पर बहुत अधिक हेयरस्प्रे और जेल का उपयोग नहीं करना चाहिए, जटिल हेयर स्टाइल से बचा जाना चाहिए। प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ खाने से खोपड़ी को पर्याप्त पोषण मिल सकता है। जिंक, विटामिन बी 3 और ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर खाद्य पदार्थ रूसी के उपचार के लिए आवश्यक हैं।
यदि घरेलू उपचार का उपयोग करने के पहले समय में रूसी बहुत अधिक दिखाई देती है, तो आपको त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए क्योंकि यह त्वचा रोगों का संकेत हो सकता है।
[कौन-से पेड़-पौधे की जड़ किस ग्रह को प्रसन्न करने के काम आती है और उसका उपयोग कैसे करें।

सूर्य के लिए
बेलमूल की जड़ को रविवार के दिन पिंक कपड़े में बांधकर दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए।
मंत्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः

चंद्र के लिए
चंद्रमा से संबंधित बुरे प्रभाव कम करने के लिए खिरनी की जड़ को सोमवार के दिन सफेद कपड़े में हाथ में बांधने पर इसके शुभ प्रभाव मिलना प्रारंभ हो जाते हैं।
मंत्र – ‘ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः

मंगल के लिए
अनंतमूल की जड़ में मंगल ग्रह का वास होता है। यह जड़ मंगल के बुरे प्रभाव को कम करके, उससे संबंधित जो परेशानियां आ रही होती हैं उन्हें दूर करती है। इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर सीधे हाथ में बांधा जाता है। इसे पहनने का सबसे अच्छा दिन मंगलवार है।
मंत्र – ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः

बुध के लिए
विधारा मूल की जड़ को बुधवार के दिन हरे रंग के कपड़े में बांधकर सीधे हाथ में उपर की ओर बांधा जाता है।
मंत्र – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

गुरु के लिए
गुरुवार के दिन पीले कपड़े में हल्दी की गांठ या केले की जड़ दाहिने हाथ में बाँधने से गुरू वलवान होकर शुभ फल देने लगते है
मंत्र – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः

शुक्र के लिए
शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम करने के लिए अरंडमूल की जड़ का उपयोग किया जाता है। शुक्रवार के दिन सफेद कपड़े में इसकी जड़ को बांधकर दाहिनी भुजा पर बांधे।
मंत्र – ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः

शनि के लिए
शनि के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए धतूरे की जड़ बांधी जाती है। इसे पहनने से सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बनता है।इस की जड़ को शनिवार के दिन काले कपड़े में बांधकर दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए।
मंत्र – ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

राहु
राहु ग्रह के बुरे प्रभाव कम करने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा या इस पेड़ की जड़ का उपयोग किया जाता है। शनिवार या सोमवार को सफेद या भूरे रंग के कपड़े में इसे बांधकर पास रखा जाता है।
मंत्र – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः

केतु
केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि करने के लिए अश्वगंधा की जड़ को नीले रंग के कपड़े में बांधकर शनिवार को सीधे हाथ में बांधा जाता है।
मंत्र – ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः

ध्यान रखने योग्य बातें

  1. प्रत्येक पेड़ या पौधे की जड़ को शुभ मुहूर्त जैसे रवि पुष्य, गुरु पुष्य या अन्य शुभ मुहूर्त से एक दिन पहले रात को निमंत्रण दिया जाता है। उसके बाद अगले दिन शुभ मुहूर्त या शुभ चौघडि़या देखकर घर लाना चाहिए।
  2. जड़ को कच्चे दूध और गंगाजल से धोकर पूजा स्थान में रखना चाहिए। इसके बाद उससे संबंधित ग्रह के मंत्र की एक माला जाप करें।
  3. सुगंधित घूप लगाने के बाद अपनी मनोकामना पूरी करने का संकल्प लें और उसे बांध लें।
    : झाड़ू रखने का सही तरीका क्या है-

शास्त्रों में झाड़ू को देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है, अत: किसी भी प्रकार से इसका अनादर नहीं होना चाहिए। घर में यदि झाड़ू सबके सामने रखी जाती है तो कई बार अन्य लोगों के पैर उस पर लगते हैं जो कि अशुभ है। इसी वजह से झाड़ू को किसी स्थान पर छिपाकर रखना चाहिए।
झाड़ू को दरवाजे के पीछे रखना काफी शुभ माना गया है। झाड़ू को कभी भी खड़ी करके नहीं रखना चाहिए। यह अपशकुन माना गया है।

आज भी अधिकांश बुजूर्ग लोग झाड़ू पर पैर लगने के बाद क्षमा याचना करते हुए उसे प्रणाम करते हैं। हम जब भी किसी नए घर में प्रवेश करें, उस समय नई झाड़ू लेकर ही घर के अंदर जाना चाहिए। यह शुभ शकुन माना जाता है। इससे नए घर में सुख-समृद्धि और बरकत बनी रहेगी।
यदि घर में कोई छोटा बच्चा है और वो अचानक झाड़ू निकलने लगे तो समझना चाहिए कि आपके यहां कोई मेहमान आने वाला है।

हमेशा ध्यान रखें कि ठीक सूर्यास्त के समय झाड़ू नहीं निकालना चाहिए। यह अपशकुन है। झाड़ू को कभी भी घर से बाहर या छत पर नहीं रखना चाहिए। यह अशुभ माना जाता है। ऐसा करने पर आपके घर में चोरी होने का भय बना रहता है।

कभी भी गाय या अन्य जानवर को झाड़ू से नहीं मारना चाहिए। यह भयंकर अपशकुन माना गया है। कोई भी सदस्य किसी खास कार्य के लिए घर से निकला हो तो उसके जाने के तुरंत बाद घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर उस व्यक्ति को असफलता का सामना करना पड़ सकता है।

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