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ईश्वर के अस्तित्व पर गौतम बुद्ध ने दिया था ये ज्ञान

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मनुष्य अक्सर इस उहापोह में लगा रहता है कि ईश्वर वास्तव में है या नहीं। कई बार हम ईश्वर को सिर्फ एक ऊर्जा मानते हैं और कई बार हम इसे सर्वोच्च मानकर पूजते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो ईश्वर के अस्तित्व पर शक करते हैं। कई विद्वानों और मनीषियों के अनुसार ईश्वर के रूप अनेक हैं लेकिन वो एक ही शक्ति है। शास्त्रों में भी ईश्वर की अस्तित्व पर मुहर लगाई गई है।

बौद्ध धर्म की स्थापना करने वाले गौतम बुद्ध ने मानव जाति को अपने ज्ञान से जीवन जीने का तरीका सिखाया था। ईश्वर के अस्तित्व पर भी बुद्ध ने ज्ञान दिया था।

एक बार बुद्ध के पास मौलुंकपुत्त नाम का एक दार्शनिक आया। उसने बुद्ध से पूछा कि क्या वाकई में ईश्वर है?

बुद्ध ने जवाब दिया, “क्या वाकई में तुम्हें जानने की इच्छा है कि ईश्वर है या नहीं या फिर तुम ऐसे ही पूछ रहे हो?”

मौलुंकपुत्त ने आश्चर्य से देखते हुए कहा कि नहीं मुझे सचमुच जानना है, मैं हजारों मील की यात्रा कर इस प्रश्न का उत्तर जानने आया हूं।

मौलुंकपुत्त को लगा कि बुद्ध उसे गंभीरता से नहीं ले रहे तो उसने गुस्से में कहा कि मैं इस सवाल के जवाब के लिए सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार हूं, हांलाकि मैं ऐसा सोचकर नहीं आया था। मुझे चुनौती मत दें। मैंने कई विद्वानों से इस प्रश्न का जवाब मांगा लेकिन कभी मिला नहीं।

बुद्ध ने कहा, मैं किसी को चुनौती नहीं देता, ये मेरा कार्य नहीं है। अगर तुम्हें अपना उत्तर चाहिए तो दो वर्षों के लिए चुपचाप मेरे पास बैठो। इन दो सालों में तुम्हें कुछ नहीं बोलना होगा, कोई प्रश्न नहीं करना है। यदि किसी तरह की जिज्ञासा भी हो तो उसका उत्तर नहीं मांगना। जब तुम्हें दो साल मौन रखे हुए हो जाएं तो उसके बाद मैं तुमसे पूछूंगा तब तक यदि तुम्हारी जिज्ञासा ऐसी ही बनी रही तो अपना सवाल पूछना।

मौलुंकपुत्त बुद्ध की ये बात सुनकर थोड़ा घबराया उसे लगा कि जान देना तो आसान है लेकिन 2 साल मौन बैठना मुश्किल है। परंतु उसने बुद्ध की इस शर्त को मंजूर कर लिया। उसने जैसे ही बुद्ध की इस शर्त को माना दूसरे वृक्ष के पास बैठा एक साधु जोर-जोर से हंसने लगा।

मौलुंकपुत्त ने फौरन पूछा, तुम क्यों हंस रहे हो? साधु ने कहा जैसे तू आज फंसा है वैसे मैं भी फंस चुका हूं। मैं भी कुछ पूछने आया लेकिन इन्होंने कहा 2 साल चुप रहो फिर जो पूछना हो पूछ लेना लेकिन 2 साल बाद मेरे पास कुछ पूछने को बचा ही नहीं इसलिए तुझे चेतावनी दे रहा हूं कि जो कुछ पूछना है अभी पूछ ले।

बुद्ध ने इन दोनों की बातें सुनकर कहा, देखो मैं 2 साल बाद भी अपने वादे पर रहूंगा, तुम जो पूछोगे मैं उसका उत्तर दूंगा अगर नहीं पूछोगे तब भी तुम्हें याद दिलाऊंगा कि कुछ पूछना है तुम्हें।

देखते-देखते 2 साल बीत गए। समय गुजरने के बाद बुद्ध ने कहा, मौलुंकपुत्त उठ तुझे जो पूछना है पूछ ले।

मौलुंकपुत्त हंसने लगा और बोला, उस साधु ने सही कहा था, दो साल तक मेरी चुप्पी में इतनी गहराई आ गई, ऐसा बोध जमा हो गया, ध्यान लगाया, विचार धीरे-धीरे खो गए। वर्तमान में डुबकी लगाई और फिर जिस ज्ञान की प्राप्ति हुई उसके लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूं। अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं है।

महान ज्ञानियों, साधु-संतों ने कहा है कि जिस सवाल का जवाब हम जीवनभर दुनिया में ढूंढते हैं वास्तव में उसका हल शून्य से मिलता है और यही उत्तर परमात्मा है। प्रत्येक मनुष्य ईश्वर का अंश है और वो हमारे अंदर ही छिपा बैठा है। जब हम खुद में झांकते हैं तब पता लगता है कि वो अंदर ही है।

मौन की अवस्था से पहले हम पूछते हैं कि परमात्मा कहां है लेकिन विचारों की शून्यता और ध्यान की गहनता के बाद हम कहते हैं कि परमात्मा कहां नहीं है।
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