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ध्यान का उद्देश्य क्या है?????

ध्यान का उद्देश्य मन को प्रशिक्षित करके हमारे सक्रिय विचारों और चेतना को सकारात्मक दिशा देना है। मन की स्थिति को नियंत्रित करने और सकारात्मक दिशा प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से बदलने की जरूरत है। ध्यान अपने अपने, अपनी अंतरात्मा के बारे में जानना है।

ध्यान वो जो आत्मा और परमात्मा के बीच दूरी समाप्त कर सके, ध्यान वो जो जीवों को दिव्य धारणा प्रदान कर सकें, ध्यान वो जो वाह्य जगत से अन्दर की ओर प्रवेश करा सकें, ध्यान परमात्मा और आत्मा के बीच में आंशिक रूप से भी जगत प्रवेश न कर सकें, आत्मा और परमात्मा का मिलन हैं योग, जीव और ब्रह्म का एक होना ही योग है।

शिष्य का पूर्णतः गुरु में समाहित हो जाना, संसार में रहते हुये संसार से पार होना व प्रभु को प्राप्त करना, सज्जनों! साधना का अभिप्राय अपने तन-मन-प्राण स्वांस, ज्ञानेन्द्रिय इन सभी को अपने बस में कर जीवन को गतिशील करना, साधना स्व को अपने में साध लेना यह है साधना, गुरु को बोध करानें का यह हैं पहला चरण।

यदि कोई साधक सच्चे मन से अपने आपको, अपने तन-मन, स्वांस और प्राण को, अपने ज्ञानेन्द्रियों को भली-भांति साध लेता है वही ध्यान के माध्यम से योग में उतर कर गुरु को अर्थात परमात्मा को प्राप्त कर पाता है, साधना पहला चरण हैं, ध्यान दूसरा चरण हैं, और तीसरा चरण है योग, फिर इसके बाद चौथा चरण आता है उपासना का और फिर शक्ति-चैतन्य।

तटस्थ का पूर्णतः जीव में समावेश और पूर्णतः आनंदमय होकर, पूर्णता के साथ संसार और प्रभु को जीते, संसार सागर में रहते हुये संसार से पार हो जाना, पर जीवों को उपलब्धि तथा पूर्णता का आभास तभी हो सकता है, जब जीव इन चरणों में समर्पण करे, साधना, ध्यान, योग, उपासना और परमात्मा को नाम से हर जीव जानता है।

सज्जनों! उसे कैसे जाना जायें? उस परम-सत्ता को कैसे जिया जायें? कैसे अपने रोम-रोम में बसाया जायें? और कैसे उस परम-प्रभु में पूर्णतः विलीन हो जीवन को गतिशील किया जायें? ये युक्ति जीव साधारणतः नहीं जान पाता है, इसके लिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है, कही-कही भावना प्रबल होती है।

प्रार्थना, दिव्यता और पवित्रता को धारण किये रहती है तो सदगुरु स्वयं ह्रदय में स्थापित हो जीव को जाग्रत कर अपना बोध करा देता है, पर यह परमात्मा का स्वरुप अति ही सरल पर दुर्लभ है, इसलिये परमात्मा किसी न किसी मानव के रूप में, इस पृथ्वी पर आकर मानव को कई-कई युक्तियों के माध्यम से अपनी ओर गतिशील करता है।

जय श्री कृष्ण!
हरि ओऊम् तत्सत्!

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