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दमा (अस्थमा / श्वास)

कभी कहा जाता था कि दमा का रोगी कभी सुख की साँस नहीं ले सकता। यह रोग तो दम अर्थात प्राण के साथ ही जाता है। रोगी जीवनभर तड़पता रहता है। ठीक प्रकार से साँस नहीं ले पाता। उठ, चल नहीं सकता।
भोजन नहीं कर सकता। अपने कामकाज नहीं कर सकता। मगर नहीं। अब इस रोग से बचने के इतने उपाय सामने आ चुके हैं तथा अच्छी-अच्छी उपचार-विधियाँ आ गई हैं कि इस रोग को कम करना, शांत करना, ठीक करना अब कठिन नहीं रहा। थोड़ी कोशिश, थोड़ी सावधानी, थोड़ी खान-पान में नियमितता से इस रोग की उग्रता समाप्त हो सकती है।

दमा (अस्थमा / श्वास) रोग के लक्षण :

दमा रोग के लक्षण भी सर्वविदित हैं। मगर दमा का रोगी, जिस कष्टदायक स्थिति से गुजरता है, यह वही जानता है। उसे श्वास-निःश्वास की क्रिया में काफी परेशानी होती है। जब वह साँस लेता है तो शुद्ध वायु, आक्सीजन अंदर नहीं जा पाती। ऐसा इसलिए होता है कि उसका गला तथा फेफड़े बुरी तरह सँधे होते है।

• जब वह साँस बाहर निकालने लगता है तब भी बड़ी कठिनाई होती है। ऐसे में उसकी आँखें लाल हो जाती हैं। चेहरा तमतमा उठता है। उसकी साँस उखड़ जाती है।

• यदि खाँसते, हाँफते हुए बलगम आ जाए तो उसे कुछ राहत मिलती है।

• रात दो-ढाई घंटे सोने के बाद दमा के रोग में तेजी आती है। साँस उखड़ने लगती है। खाँसी काफ़ी होती है। कफ आसानी से नहीं आता। रोगी उठकर बैठ जाता है। उसका छटपटाना बढ़ जाता है। वह पसीना-पसीना हो उठता है।

• रोग पुराना होने पर रोगी नीला पड़ जाता है। उसे साँस लेने व छोड़ने में बेहद कष्ट होता है।

• यदि बलगम आ जाए तो अच्छा है, वरना उस दौरे को शांत करने के लिए सूई भी लगानी पड़ सकती है।

• रोगी की दुर्दशा इसलिए भी होती है कि दमा शुरू हो जाने पर ताज़ी हवा अंदर नहीं जाती। ऐसे में उसके शरीर को आक्सीजन भी नहीं मिल पाती।

• जब शुद्ध वायु के साथ आक्सीजन शरीर में नहीं जा पाती या बहुत कम जाती है।

है तब अंदर से दूषित हवा और कार्बन डाई-ऑक्साइड भी बाहर नहीं आ पाती। शरीर विषाक्त होता रहता है।

• रक्त भी अशुद्ध होता जाता है, क्योंकि खून को शुद्ध करने के लिए प्रर्याप्त आक्सीजन नहीं मिलती। इसीसे दमा का दारा शुरू होता है। जब दमा की तकलीफ बढ़ती है तो फेफड़ों के फैलने और सिकुड़ने में भी शिथिलता आ जाती है। रुकावट महसूस होने लगती है। इसीसे रोगी की छटपटाहट बढ़ जाती है। दम फूलने लगता है।

दमा (अस्थमा / श्वास) रोग कैसे होता है ?

हर रोगी के लिए दमा होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। सबके लिए एक जैसे कारण नहीं होते।

• एलर्जी होना इसका मुख्य कारण है। किसी को किसी एक चीज से एलर्जी हो जाती है तो किसी को दूसरी चीज़ से।

• किसी को किसी फूल की सुगंध से, किसी को किसी फसल से, किसी को किसी फल, सब्जी, भोजन, खाद्य पदार्थ के सेवन से तो किसी को कोई पेय पीने से। हर एक के लिए अलग-अलग अलर्जन होते हैं। इसे ढूंढ़ निकालना आसान नहीं।

• किसी को शुष्क जलवायु खराबी करती है तो किसी को तर जलवायु । कोई एक स्थान पर स्वस्थ रह सकता है तो कोई वहाँ आते ही दमा से पीड़ित हो जाता है। यह तो अपने-अपने स्वभाव व शरीर की प्रकृति पर ही निर्भर करता है। सभी के साथ एक ही जैसा नहीं होता।

• यह रोग वंशानुगत भी होता है। घर के बड़े-बजुर्ग, ननिहाल, दादा जात में से, किसी को जब यह रोग हो तो उसके बच्चे या दोहते-पोते को भी यह हो सकता है। इसके लिए कोई निश्चित फारमूला नहीं है।

• व्यक्ति का अपनी प्रकृति के विरुद्ध भोजन करना भी रोग का कारण बन सकता है।वातावरण का परिवर्तन, जलवायु का परिवर्तन, ऋतु का परिवर्तन, रहने के मकान में परिवर्तन, सुगंधों में परिवर्तन-मतलब यह कि किसी को परिवर्तन ठीक बैठता है तो किसी के लिए दमा रोग का कारण बन जाता है।

• यदि किसी के रोग का कारण कोई एलर्जी हो तो फिर वंशानुगत वाली कोई बात नहीं होती।

• दमा रोग के मानसिक कारण भी होते हैं। कोई चिंता, तनाव, क्रोध, भय आदि भी इस रोग के कारण हो सकते हैं।

• आम तौर पर, इस रोग का प्रकोप पूरे वर्ष भर रहता है। मगर वर्षा ऋतु तथा शीत ऋतु में यह अधिक परेशान करता है। इसमें दौरे भी पड़ सकते हैं।

• इस रोग का कारण जानकर, बचाव करना ही उत्तम माना गया है। दवा और परहेज़ से हालत ठीक रहती है। हानिकारक कारणों को अपनी दिनचर्या से हटा दें। रोग के कारणों को हटा देने से कई बार रोगी सदा के लिए स्वस्थ भी हो जाता है। अतः गंभीर होकर रोग के कारण ढूंढे तथा उनका निवारण करें।

शवासदमा का रामबाण इलाज :- छिलका उतारकर अदरक को खूब महीन । पीस लें और छुहारे के गूदे को बारीक पीस लें अब इन दोनों को शहद में मिलाकर किसी साफ बड़े बर्तन में अच्छी तरह से मिला लें । अब इसे मिट्टी के बर्तन में भरकर आटे से । बर्तन के मुंह को बन्द कर दें और इसे गड्ढे में रखकर मिट्टी से ढक दें । 36 घंटे बाद सावधानी से मिट्टी हटाकार बर्तन को बाहर निकल लें और मुंह के ऊपर से आटे को हटाकर रख लें । यह प्रतिदिन सुबह नाश्ते के समय तथा रात में सोने से पहले 1 चम्मच की । मात्रा में सेवन करें और ऊपर से 1 गिलास मीठा गुनगुना दूध पीएं । इससे श्वास व दमा रोग ठीक होता है ।

अस्थमा,दमा व सांस की अन्य व फेफड़े की अन्य रोग का घरेलू इलाज

देशी गौमूत्र आधा कप सुबह खाली पेट 3 महीना

1 चम्मच दालचीनी पाउडर 1 चम्मच शहद को अच्छे से मिला ले फिर चाटे बाद में सुखा नारियल चबा चबा कर खाएं फिर गुनगुना पानी पिये सुबह नाश्ते के पहले आधा घंटा या 1 घंटे बाद 3 महीना

गुनगुने पानी का सेवन करें

अजवायन ,तुलसी,लौंग,सौठ,लहसुन , मुलेठी, हल्दी पानी का सेवन समय समय पर करते रहे

एक पका केला छिला लेकर चाकू से लम्बाई में चीरा लगाकर उसमें एक छोटा चम्मच दो ग्राम कपड़छान की हुई काली मिर्च भर दें । फिर उसे बगैर छीलेही, केले के वृक्ष के पत्ते में अच्छी तरह लपेट कर डोरे से बांध कर 2-3 घंटे रख दें । बाद में केले के पत्ते सहित उसे आग में इस प्रकार भूने की उपर का पत्ता जले । ठंडा होने पर केले का छिलका निकालकर केला खा लें ।प्रतिदिन सुबह में केले में काली मिर्च का चूर्ण भरें। और शाम को पकावें । 15-20 दिन में खूब लाभ होगा ।

केला के पत्तों को सुखाकर किसी बड़े बर्तन में जला लेवें। फिर कपड़छान कर लें और इस केले के पत्ते की भस्म को एक कांच की साफ शीशी या डिब्बे में रख लें । बस, दवा तैयार है ।

सेवन विधि – एक साल पुराना गुड़ 3 ग्राम चिकनी सुपारी का आधा से थोड़ा कम वनज को 2-3 चम्मच पानी में भिगों दें । उसमें 1-4 चौथाई दवा केले के पत्ते की राख डाल दें और पांच-दस मिनट बाद ले लें । दिनभर में सिर्फ एक बार ही दवा लेनी है, कभी भी ले लेवें ।

बच्चे का असाध्य दमा – अमलतास का गूदा 15 ग्राम दो कप पानी में डालकर उबालें चौथाई भाग बचने पर छान लें और सोते समय रोगी को गरम-गरम पिला दें । फेफड़ों में जमा हुआ बलगम शौच मार्ग से निकल जाता है । लगातार तीन दिन लेने से जमा हुआ कफ निकल कर फेफड़े साफ हो जाते है । महीने भर लेने से फेफड़े कर तपेदिक ठीक हो सकती है ।

सुहागा :• भुना हुआ सुहागा लगभग 75 ग्राम और शहद 100 ग्राम को मिलाकर रख लें और रात को सोते समय यह 1 चम्मच की मात्रा में चाटें। इससे श्वास रोग (दमा) में बहुत लाभ मिलता है।

•सुहागा का फूला और मुलहठी को अलग-अलग कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और फिर इन दोनों औषधियों को बराबर मात्रा में मिलाकर किसी शीशी में सुरक्षित रख लें। यह चूर्ण आधा से 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार शहद के साथ चाटने से या गर्म जल के साथ सेवन करने से दमा रोग ठीक होता है। इससे खांसी व जुकाम भी नष्ट होता है। बच्चों के दमा रोग में यह चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में देना चाहिए। इस औषधि का सेवन करते समय दही, केला चावल तथा ठंड़े पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

गुलबनफसा अर्क या शुंठी का रस : गुलबनफसा अर्क या शुंठी का रस एक तिहाई कप पानी मिलाकर सुबह-शाम पीने से दमा रोग ठीक होता है।

अडूसा क्षार (अर्कक्षार, वासा) : • अडूसा का रस लगभग आधा ग्राम और आधा ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से दमा रोग शान्त होता है।

अडूसा के सूखे पत्ते व काले धतूरे के सूखे पत्ते को मिलाकर चूर्ण बना लें और इसका धूम्रपान करें। इससे जीर्णश्वांस (पुराना दमा रोग) को दूर होता है।

अडूसा के सूखे पत्तों का चूर्ण चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।

अडूसा लगभग आधा ग्राम, अडू़सा का रस 10 बूंद और लौंग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लेकर मिला लें और यह प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इससे दमा का दौरा शान्त होता है।

दमा से पीड़ित रोगी को अडू़सा, अंगूर व हर्रा को मिलाकर काढ़ा बना लें और इसमें शहद या गुड़ मिलाकर सेवन करें। इसका प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकलकर दमा शान्त होता है।
वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।

अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस 5-5 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर दिन में 3-3 घंटे के अन्तर पर सेवन करने से 40 दिनों में दमा ठीक हो जाता है।

अपामार्ग (चिरचिटा) : • लगभग आधा मिलीलीटर अपामार्ग का रस शहद में मिलाकर 4 चम्मच पानी के साथ भोजन के बाद सेवन करने से गले व फेफड़ों में जमा कफ निकल जाता है और दमा ठीक होता है।

•चिरचिटा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ खाने से श्वांस रोग दूर होता है। (ध्यान रखें कि चिरचिटा की जड़ को निकालते समय इसकी जड़ में लोहा न छूने पाए)।

•अपामार्ग 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ 2 किलो, जवाखार 50 ग्राम, सज्जीखार लगभग 50 ग्राम और नौसादर लगभग 125 ग्राम। इन सभी को पीसकर 1 लीटर पानी में पकाएं। जब यह पकते-पकते 5 किलो बच जाए तो इसे उतारकर डिब्बे में भरकर मुख बन्द करके 15 दिनों के लिए रख दें। 15 दिनों बाद इसे छानकर 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से श्वास और दमा रोग नष्ट हो जाता है।

•अपामार्ग के बीजों को जलाकर धूम्रपान की तरह चिलम में भरकर पीने से श्वांस रोग में आराम मिलता है।

•अपामार्ग का रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ निकलकर श्वांस रोग नष्ट होता है।

अदरक :• लगभग 1 ग्राम अदरक के रस को 1 चम्मच पानी के साथ सुबह-शाम लेने से दमा व श्वांस रोग ठीक होता है।

•अदरक के रस में शहद मिलाकर खाने से सभी प्रकार के श्वांस रोग, खांसी, जुकाम तथा अरुचि आदि ठीक होते हैं।

•अदरक के रस में कस्तूरी मिलाकर सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।

•पिप्पली तथा सैंधानमक को पीसकर चूर्ण बना लें और इसमें अदरक का रस मिलाकर रात को सोते समय सेवन करें। इससे दमा, खांसी व कफ नष्ट होता है।

•लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जस्ता के भस्म में 6 ग्राम अदरक का रस व 6 ग्राम शहद मिलाकर रोगी को देने से दमा व खांसी दूर होती है।

•अदरक का रस शहद के साथ सेवन करने से बुढ़ापे में उत्पन्न दमा ठीक होता है।

•अदरक की चासनी में तेजपात व पीपल का चूर्ण मिलाकर चाटने से श्वांसनली में जमा कफ निकल जाता है और दमा के दौरे शान्त होते हैं।

जातिफल : लगभग 1 ग्राम की मात्रा में जातिफलादि के चूर्ण को 1 ग्राम पानी के साथ सुबह-शाम लेने से दमा ठीक हो जाता है।

सोंठ :• सोंठ, सेंधानमक, जीरा, भुनी हुई हींग और तुलसी के पत्ते इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इनमें से 10 ग्राम चूर्ण 300 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से अस्थमा रोग ठीक होता है।

•सोंठ, कालानमक, भुनी हुई हींग, अनारदाना एवं अम्लबेंत बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से दुगना गुड़ लेकर मिला लें और इसकी गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली मुंह में रखकर चूसने से गले की खुश्की दूर होती और खांसी व दमा में लाभ मिलता है।

• सोंठ, हरड़ और नागरमोथा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसे छानकर दुगने गुड़ में मिलाकर गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली चूसने से दमा के दौरे व खांसी में आराम मिलता है।

• हरड़ तथा सोंठ को पानी के साथ पीस लें और यह लगभग 6 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सेवन करें। इससे हिचकी दूर होती है और दमा में आराम मिलता है।

• लगभग 25 ग्राम सोंठ को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी 100 मिलीलीटर बच जाए तो इसे छानकर ठंड़ा करके 6 ग्राम शहद मिलाकर पीएं। इसका कुछ दिनों तक सेवन करने से सर्दी, जुकाम, खांसी और दमा रोग ठीक होता है।

दूध : अस्थमा के रोगी को प्रतिदिन दूध का सेवन करना चाहिए। दूध से कफ का बनना रुकता है। रोगी को प्रतिदिन दूध में 2 पीपल डालकर गर्म करें और फिर दूध को छानकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। इससे दमा रोग समाप्त होता है।

सैंधवादि तेल : दमा रोग से पीड़ित रोगी की छाती पर प्रतिदिन सैंधवादि तेल की मालिश करने से छाती में जमा कफ ढीला होकर निकल जाता है और दमा ठीक होता है।

तेजपात :• तेजपात और पीपल 2-2 ग्राम की मात्रा में अदरक के मुरब्बे की चाशनी में बुरककर चटाने से दमा और श्वासनली का रोग ठीक होता है।

•सूखे तेजपात के पत्तों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में 1 कप गर्म दूध के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन पीने से श्वांस व दमा रोग शान्त होता है।

ग्वारपाठा :• ग्वारपाठा के पत्ते 250 ग्राम और सेंधानमक 25 ग्राम को मिलाकर चूर्ण बना लें और इसे एक मिट्टी के बर्तन में रखकर भस्म बना लें। यह भस्म 2 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ खाने से दमा रोग समाप्त होता है

•ग्वारपाठा का एक किलो गूदा लेकर छान लें और इसे किसी कलईदार बर्तन में रखकर धीमी आंच पर पकाएं। जब यह लुबावदार हो जाए तो इसमें 36 ग्राम लाहौरी नमक खूब महीन पीसकर डाल दें और स्टील के चम्मच से खूब हिलाते रहें। जब सब पानी जलकर केवल चूर्ण शेष रह जाए तो इसे उतार लें और ठंड़ा होने पर इसे खूब बारीक चूर्ण बनाकर साफ बोतलों में रख लें। फिर इसे लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर खाने से पुरानी खांसी, काली खांसी और दमा रोग समाप्त होता है।

नींबू :• नींबू का रस 10 मिलीलीटर और अदरक का रस 5 मिलीलीटर मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ पीने से अस्थमा का रोग नष्ट होता है।

•एक नींबू का रस, 2 चम्मच शहद व 1 चम्मच अदरक का रस लेकर 1 कप गर्म पानी में डालकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।

•दमा का दौरा पड़ने पर गर्म पानी में 1 नींबू निचोड़कर पीने से लाभ मिलता है। यह हृदय रोग, ब्लड प्रेशर तथा पाचन संस्थान के लिए लाभकारी होता है।

लहसुन :• 10 ग्राम लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा में सांस लेने में होने वाली परेशानी दूर होती है

• लगभग 2 बूंद लहसुन का रस और 10 बूंदे कुठार का रस को शुद्ध शहद के साथ दिन में 4 बार दमा के रोगी को सेवन कराएं। इससे दमा व श्वास की बीमारी ठीक होती है।

• लहसुन को आग में भूनकर चूर्ण बना लें और इसमें सोमलता, कूट, बहेड़ा, मुलेहठी व अर्जुन की छाल का चूर्ण बनाकर मिला लें। यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से दमा और श्वास की बीमारी ठीक होती है।

• लगभग 15-20 बूंद लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ सुबह, दोपहर और शाम को खाने से दमा और श्वास की बीमारी दूर होती है।

• लहसुन को कुचलकर उसका रस निकालकर गुनगुना करके पीने से श्वास रोग में लाभ मिलता है।

• दमा के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन लहुसन, तुलसी के पत्ते व गुड़ को चटनी बनाकर सेवन करना चाहिए।

• लहसुन की पूती को भूनकर सेंधानमक के साथ चबाकर खाने से खांसी व दमा के दौरे में आराम मिलता है।

• 10 बूंद लहसुन के रस को 1 चम्मच शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।

• लहसुन की 20 कलियां और 20 ग्राम गुड़ को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर लहसुन की कलियां खाकर पानी को हल्का ठंड़ा करके पीएं। इसका उपयोग प्रतिदिन एक बार करने से श्वास व दमा रोग में आराम मिलता है।

• लहसुन के तेल से छाती व पीठ की मालिश करनी चाहिए।

प्याज :• प्याज का रस, अदरक का रस, तुलसी के पत्तों का रस व शहद 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम खाने से अस्थमा रोग नष्ट होता है।

• सफेद प्याज का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से दमा ठीक होता है।

• प्याज को कूटकर सूंघने से खांसी, गले की खराश, टांसिल, फेफड़ों के रोग आदि में आराम मिलता है।

• प्याज के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी लाभ मिलता है।

• प्याज का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।

• सफेद प्याज के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से श्वास रोग दूर होता है।

हल्दी :• हल्दी को पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को भूनकर शीशी में बन्द करके रखें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत लाभ मिलता है।

चोबचीनी:-100 ग्राम चोबचीनी लेकर 800 मिलीलीटर पानी में डालकर आग पर चढ़ा देते हैं। जब 300 मिलीलीटर पानी शेष रह जाए तो उसे उतार लेते हैं। इसे ठण्डा करके छान लेते हैं। 25 ग्राम से 75 ग्राम तक यह काढ़ा रोजाना 3-4 बार पीने से श्वास रोग (दमा) ठीक हो जाता है

•हल्दी, कालीमिर्च, मुनक्का, रास्ना, छोटी पीपल, कचूर और पुराना गुड़ इन सभी को एक सा*

दमा (अस्थमा / श्वास) में क्या खाएं और क्या न खाएं

दमा रोग में सावधानियाँ :

• दमा के रोगी को खाली दूध कभी नहीं लेना चाहिए। उसमें कुछ न कुछ डालकर ही पीना चाहिए।

• ऐसा रोगी दही का सेवन बिल्कुल बंद कर दे। विशेषकर भैंस के दूध का दही उसके लिए अधिक हानि कारक होता है।

• दमा के रोगी को कभी भी पेट भरकर नहीं खाना चाहिए। आधा पेट भोजन से भरें । एक चौथाई पानी के लिए रखें तथा एक चौथाई वायु के लिए। ऐसा करने से साँस लेना सरल हो जाएगा। रोग शांत रहेगा।

• रात का खाना सोने से दो घंटे पूर्व करें। रात का खाना खाकर 100-150 कदम जरूर चलें।

• भोजन में खटाई, मिर्च-मसाले तथा तले पदार्थ न लें।

• बहुत ठंडे पेय, जल या अन्य पेय पदार्थ न लें।

• बासी भोजन न खाएँ।

• भारी भोजन से बचें। भोजन सुपाच्य तथा हल्का ही किया करें।

• फलों तथा सब्जी की भोजन में अधिकता रखें।

• जब खेतों में या पेड़-पौधों में बौर आ जाती है तब कुछ लोगों को ठीक नहीं लगता। एलर्जी हो जाती है। यदि इसका पता चल जाए तो महीनाभर के लिए स्थान परिवर्तन कर, बौर के प्रभाव से बचा जा सकता है।

• खाँसी नहीं होगी तो दमे का जोर भी नहीं बढ़ेगा। अतः खाँसी को पहले शांत रखें। फिर दमा शांत हो जाएगा। खाँसी का इलाज करने में कभी ढिलाई न करें। खाँसी के कारण को जरूर दूर करें।

• प्रातः, सूर्य का उदय होने से काफी पहले बिस्तर छोड़कर खुली हवा में निकलें। सैर को जाएँ। ताजी हवा का सेवन करें। लंबी साँस लें। गहरी साँस अंदर तक उतरकर रक्त को स्वच्छ कर देगी।

• खुली हवा में जाकर प्राणायाम कर सकें तो जरूर करें। दमा रोग को शांत करने में यह बड़ा उपयोगी रहता है।

• योगाचार्य से पूछकर, वे सब आसन अथवा क्रियाएँ करें, जिनसे फेफड़ों को फैलने का अवसर मिले। फेफड़ों का फैलना तथा सिकुड़ना रोग को शांत करने में बड़ी भूमिका अदा कर सकता है

•दमा का रोगी भारी काम न करे। अधिक परिश्रम से बचे। ऐसा कोई काम न करे जो साँस चढ़ाने, साँस फुलाने का काम करता हो। साँस फूलेगा तो रोगी की शक्ति का ह्रास होगा। रोग से लड़ने की क्षमता घटेगी।

• ऐसा रोगी बहुत लंबी, थकानेवाली सैर न करे, न ही ऐसे व्यायाम करे जो उसे थका दें। हल्की-हल्की थकावट तक की सैर, व्यायाम, योगासन ठीक रहते हैं। जब थोड़ा पसीना आने लगे तो समझ लें कि आपकी क्षमता के अनुसार व्यायाम पूरा हो गया। तब बंद कर देना चाहिए। खिलाड़ियों तथा पहलवानों की बात और है।

दमा में क्या खाना चाहिए / उचित आहार :

दमा के रोगी को अपना भोजन चुनते समय, बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। जो सब खाते हैं, वही दमा का रोगी नहीं खा सकता। फिर एक दमे का रोगी जो खाता हो, वही सभी दमा-रोगियों के लिए सुपाच्य नहीं हो सकता। अपना स्वास्थ्य, रोग की स्थिति, शारीरिक परिश्रम, आयु, स्थान आदि को ध्यान में रखकर, अपने विवेक से काम लेते हुए भोजन चुनें आपका भोजन ही आपका बचाव है, उपचार है, ठीक रहने का साधन है।

• फलों को खाने तथा इनका रस का सेवन करने के लिए उचित समय है प्रातः कालीन नाश्ता या फिर दोपहरी में।

• भोजन दोपहर का हो या रात का, फलों का सेवन भोजन के तुरंत पहले, भोजन के बीच में तथा तुरंत बाद में न लेने की सलाह है।

• जब फलों का रस लेना है तो उसे बनाते समय सब्जियाँ मत डालें। दोनों का रस अलग-अलग तैयार करें तथा अलग-अलग ही लें। दोनों रसों के रासायनिक गुण तथा उनकी प्रक्रिया एक सी नहीं होती।

• ताजे फल तथा इनका रस बहुत उपयोगी होता है।

• दमे का रोगी नींबू, पपीता, मौसमी, संतरा, मीठी खुमानी तथा अनार आदि खा सकते हैं। ये उसे ठीक रहेंगे। इनका रस भी रोगी के लिए ठीक रहता है।

• दमे का रोगी शुद्ध घी दो चम्मच कटोरी में डाले। इसमें चार साबुत काली मिर्च के दाने डाले तथा जरूरत अनुसार देशी खाँड़। यदि यह न हो तो मिसरी कुटी हुई भी डाल सकता है। उसे आँच पर गर्म करे और खा ले। मगर इसके बाद पानी तो बिल्कुल भी नहीं पीना। घी शुद्ध और असली हो।

• दमे के रोगी बेसन की रोटी बनवाकर खाएँ। इसे शुद्ध घी के साथ खाएँ। बहुत ठीक रहती है। घी थोड़ा गर्म रहे।

• बेसन में चने के छिलके नहीं होते। यह चने की धुली दाल से तैयार होता है। यदि साबुत चने का आटा पिसवाकर रोटी खाएँ, वह भी शुद्ध घी के साथ तो अधिक लाभ मिलेगा।

• यह सत्य है कि दमा या खाँसी चिकनाई की कमी के कारण होती व बढ़ती हैं। यदि चिकनाई युक्त भोजन करेंगे तो दमा शांत रहेगा। कफ बाहर आएगा तथा साँस सरल हो जाएगी।

• यदि शुद्ध असली घी की बनाई जलेबी प्राप्त हो सके तो उसे दूध में डालकर रोगी खाए। फायदा मिलेगा।

• सेवियों (सिवइयों) को पानी में उबालकर, निकालकर देशी घी और खाँड के साथ खाना भी हितकर होता है।

• दमा को शांत करने के लिए खजूर को दूध में उबालकर लें। यदि खजूर उपलब्ध न हों तो छुहारा उबालकर भी ले सकते हैं। दमा काबू में आ जाएगा।

• जो खजूर को या छुहारे को दूध में उबालकर लेता है, उसके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। प्रतिरक्षा शक्ति आ जाती है। आराम मिलता है। पेट भी साफ़ रहने लगता है।जिसका पेट साफ़ रहेगा, उसे इस रोग के अधिक बढ़ने का भय नहीं रहेगा।

• कभी खजूर, कभी छुहारा, तो कभी मुनक्का-दाख दूध में उबालकर लें और रोग को शांत रखें।

•पेट साफ़ रहे।रक्त में वृद्धि हो। लाल रक्तकण निर्मित हों। शरीर में चुस्ती आए। पुष्टि आए। जीने का मन करे। सुस्ती बिल्कुल न रहे। यह ऐसी स्थिति है जिसे प्राप्त करने के लिए दाख-मुनक्का, खजूर व छुहारे का दूध के साथ सेवन ठीक रहता है। न कठिन, न बहुत महँगा ही। दमे के रोगी के अतिरिक्त अन्य लोग भी इसे लेकर अपने शरीर में नवजीवन का संचार कर सकते हैं।

• जिस वातावरण में आप रहते हों, उसीमें तैयार हुआ शहद यदि मिल जाए तो उसका सेवन साँस के रोगी के लिए ठीक रहेगा। दमा के रोगी को यदि किसी भी पदार्थ से एलर्जी होती हो तो उससे दूर रहे और भूल से भी उसका सेवन नहीं करे।

• दमा के रोगी के लिए शतावर का चूर्ण, किसी भी रूप में लेना बहुत आरामदायक होता है। यदि शतावरी चूर्ण गर्म दूध के साथ रोज लें तो ज्यादा लाभ होगा।

• कोई भी हरी सब्जी तथा ताजा फल सेवन करने से लाभ होता है। ज्यादा हरी सब्जियों के पत्तों (मूली के पत्ते, गाजर के पत्ते, पालक, पत्ता गोभी) इन सब का सेवन करें। अदरक ठीक रहेगा। नींबू, काला नमक व जीरा डालकर फल, सलाद आदि खाएँ।

• चोकरयुक्त रोटी जरूरी है। मैदे के पदार्थ न लें।

• सर्दी से बचकर रहें।

यदि इन बातों को ध्यान में रखेंगे तो दमे का तेज दौरा नहीं पड़ेगा। बल्कि धीरेधीरे शांत होकर रोगी ठीक हो सकेगा।

दमा में क्या नहीं खाना चाहिए (परहेज) :

1. भैंस का दूध, 2. इससे बनी दही, 3. चावल, 4. आलू, 5. कोई भी ठंडा पेय, 6, आइसक्रीम, 7, चाट, 8. चटनी, 9. टिक्कियाँ-समोसे आदि, 10. धूम्रपान, 11. शराब, 12, बासी भोजन, 13.अधिक मिर्च-मसाले, 14. भारी भोजन। ठंडे पानी से स्नान भी न करें।

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