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विश्व भाषा देववाणी तथा वैदिक संस्कृती के व्यापकता और प्रभाव के कुछ रोचक तथ्य :-

(१) आइए , हम अब अंगरेज़ी के ‘ #किंग ‘ ( King ) शब्द पर विचार करें । चूंकि अंगरेज़ी भाषा के ‘ सी ‘ अक्षर का उच्चारण कभी ‘ स ‘ से होता है ( जैसे सिविल और सेन्टर में ) और कई बार ‘ क ‘ होता है ( जैसे कॉट , कट , क्रिकेट में ) , अतः ‘ किंग ‘ शब्द के आदि अक्षर ‘ क ‘ के स्थान पर ‘ सी ‘ रख दें और इस ‘ किंग ‘ शब्द को ‘ सिंग ‘ लिख दें , जैसा पुरानी अंगरेज़ी में होता था।

▪️अतः आज जिसका प्रचलित रूप ‘ किंग ‘ है वह प्राचीन काल में ‘ सिंग ‘ लिखा जाता था ( और उसका उच्चारण भी ‘ सिंग ‘ ही होता था । )

▪️अब यह स्मरण करने की बात है कि वैदिक ( चक्रवर्ती ) सम्राट् अपने नामों के अन्त में ‘ सिंह ‘ प्रत्यय , जो शेर का पर्याय है , अवश्य ही जुड़ा रखते थे , जैसे मानसिंह , जगतसिंह , उदयसिंह आदि । उक्त प्रत्यय उच्चारण में पतित होता हुआ आधुनिक काल में ‘ सिंघ ‘ के रूप में ही बचा रह गया ।

▪️ भारत के पंजाब क्षेत्र में सभी सिख व्यक्ति आवश्यकीय रूप में उक्त ‘ सिंघ ‘ प्रत्यय अपने नाम के साथ जोड़कर रखते हैं , क्योंकि हिन्दुत्व की सेना के रूप में उनसे अपेक्षित था कि वे मुस्लिम आक्रान्ताओं और सुलतानों के भय , यातनाओं और अत्याचारों के विरुद्ध शेरों सिहों के समान लड़ेंगे , संघर्ष करेंगे ।

▪️ _ _ चूँकि प्राचीन #ब्रिटेन वैदिक साम्राज्य का भाग ही था , इसलिए इसके सम्राट भी उसी प्रत्यय को अपने साथ लगाए रहे । तथापि अंगरेज़ी नामों में उक्त प्रत्यय की वर्तनी का उच्चारण ‘ #सिंग ‘ रहा ‘ सिंघ ‘ की बजाय ( जैसा आधुनिक भारत में है ) ।

▪️ समय बीतने के साथ – साथ अंगरेज़ी में ‘ सिंग ‘ लिखा जाने वाला वह संस्कृत – शब्द ‘ सिंह ‘ अंगरेज़ी में ‘ किंग ‘ लिखा जाने लगा ।

▪️ इस प्रकार यह देखा जा सकता है किस प्रकार ‘ किंग ‘ शब्द वैदिक , संस्कृत – धरोहर का है।
चाहे कुछ भिन्न , विकृत उच्चारण और वर्तनी लिये हुए है।

(२) आइए , हम अब ‘ #सोवरेन ‘ ( Sovereign ) शब्द पर विचार करें । यह स्पष्टतः संस्कृत यौगिक शब्द ‘ स्व ‘ ( स्वयं या स्वयं का अपना ‘ अर्थ – द्योतक ) और ‘ रेन ‘ अर्थात् ‘ राजन ‘ अर्थात् ‘ राजा ‘ है ।
अतः यह संस्कृत यौगिक शब्द ‘ स्व – राजन ‘ है जो एक शाही , राजसी अधिपति का द्योतन करता हुआ अंगरेजी में ‘ सोवरेन ‘ उच्चारण किया जाता है ।

▪️इसी का पर्याय ‘ #सुज़रेन ‘ ( Suzerain ) भी देख लें । यह भी उसी संस्कृत यौगिक शब्द ‘ स्व – राजन ‘ का विकृत , भ्रष्ट वैकल्पिक उच्चारण ही है । । इससे व्युत्पन्न ‘ सुज़रेनटी ‘ ( Suzeranty ) शब्द में भी संस्कृत – प्रत्यय ‘ इति ‘ अर्थात् ‘ ति ‘ अर्थात् ‘ इस प्रकार है अर्थात् परम , निर्विवाद , बे – रोक सत्ता का द्योतक – यह इस शब्द का अर्थ हुआ ।

(३)अंगरेज़ी ‘ #रीगल ‘ ( Regal ) शब्द संस्कृत के ‘ राजा ‘ शब्द से व्युत्पन्न है । इस प्रकार , अंगरेज़ी भाषा में इसका उच्चारण ‘ राजल ‘ होना चाहिए था । किन्तु अंगरेज़ी वर्णमाला में अक्षर ‘ जी ‘ व ‘ ज ‘ प्रायः भ्रष्टरूप में ही उच्चारण किए जाते हैं । अक्षर ‘ ग ‘ ( ध्वनि ) को भी ‘ जी ‘ बोलते हैं । ‘
▪️ जिनेरेटर ( Generator ) शब्द में उक्त उच्चारण कुछ अंश तक बना हुआ है । किन्तु ‘ गेदर ‘ ( gather , इकट्ठा करना ) शब्द में अक्षर ‘ जी ‘ बिल्कुल ही भिन्न उच्चारण किया जाता है । इससे व्यक्ति को यह समझने में सहायता होगी कि किस प्रकार ‘ रीगल ‘ अंगरेज़ी शब्द तथ्यतः ‘ रीजल ‘ अर्थात् ‘ राजल ‘ शब्द है जो संस्कृत ‘ राजा ‘ शब्द से ही है ।
▪️इसका पर्याय ‘ रॉयल ‘ ( Royal ) भी संस्कृत का ‘ रायल ‘ शब्द है । क्योंकि संस्कृत में शब्द ‘ राय ‘ और ‘ राजा ‘ का समान अर्थ है । यह सम्राट् के दुर्ग के द्योतक ‘ राजगढ़ ‘ और ‘ रायगढ़ ‘ शब्दों से या फिर ‘ शिवराया ‘ और ‘ शिवराजा ‘ जैसे शब्दों से स्पष्ट हो जाएगा , जहाँ शिवा अर्थात् शिवाजी सम्राट् से मतलब है । इस प्रकार संस्कृत भाषा में रायपुर ( उपनाम राजपुर ) , रायसेन ( उपनाम राजसेन ) , रायरत्न ( उपनाम राजरल ) और इसी प्रकार के शब्दों का विशाल भंडार , आधिक्य है ।

(४) गदा , चोब अंगरेज़ी परम्परा में राजसी सत्ता और अधिकार के प्रतीक के रूप में अभी तक चली आ रही है । जब राष्ट्राध्यक्ष अपने औपचारिक सम्बोधन के लिए संसद की ओर प्रस्थान करते हैं तब इस गदा को उनसे आगे लेकर चलने की प्रथा है । उक्त परम्परा सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामायण के भगवान राम के दिनों से विश्व – भर के अनेक देशों में अभी तक चली आ रही है , क्योंकि भगवान् राम को एक आदर्श कठोर , न्यायप्रिय , नेक और दयालु शासक माना जाता है जिनके आगे – आगे , सभी राजकीय समारोहों में , उनके गदाधारी हनुमान चला करते थे ।

(५) #ब्रिटेन में सम्राट या साम्राज्ञी का अंगरक्षक सैन्यदल संतरे के रंग के करते कंचुक की वस्त्र – भूषा में रहता है । इसका कारण है कि यह भारत में वैदिक रंग है । युद्ध में जानेवाले क्षत्रिय वीर योद्धा विशेष रूप में केसरिया वेशभूषा धारण करते थे , क्योंकि उक्त रंग लौकिक प्रलोभनों या आकर्षणों से विलगता और निःस्वार्थ सेवा का द्योतक है ।

(६) _ _ _ _ रोमन लोग भी जो रमण ( रामन ) हैं अर्थात् राम के अनुयायी हैं , युद्ध के लिए संतरे ( या केसरिया ) रंग की वेश – भूषा ही धारण करते थे ताकि सच्ची वैदिक क्षत्रिय योद्धाओं की परम्परा में रक्त सोखनेवाली उनकी पोशाक में रक्त सूख जाए और सत्कार्य के निमित्त किए जानेवाले संघर्ष में उनके संकल्प , मनोबल को दुर्बल , क्षीण न कर सके ।

(७) आज जिनको ब्रिटिश द्वीप के नाम से जाना जाता है , वहाँ की अंतिम स्मरणीय साम्राज्ञी #बोडिसिया ( Bodicia ) थी । यह वही महिला थी जिसने रोमन आक्रमणकारियों के विरुद्ध स्थानीय , देशी सैन्य टुकड़ियों का नेतृत्व किया था । वह वैदिक परम्परा में ही रथ पर आरूढ़ होती थी । उसका बोडिसिया नाम भी संस्कृत का यौगिक शब्द ‘ बुद्धि – ईशा ‘ अर्थात् ‘ दिव्य – बुद्धि ‘ है ।

(८) ब्रिटेन उपनाम ‘ #ब्रिटेनिया ‘ शब्द संस्कृत भाषा का ‘ बृहत् – स्थानीय ‘ शब्द है जो चहुँ ओर समुद्रों के मध्य कुछ बड़े द्वीपों अर्थात् भूमि का द्योतक है ।

(९) अंगरेज़ी शब्द ‘ सी ‘ ( Sea , सागर , समुद्र ) संस्कृत पर्यायवाची समुद्र अर्थात् सागर का संक्षिप्ताक्षर है ।

(१०) ‘ वैस्ट मिन्स्टर एबे ‘ ( West Minster Abbey ) में रखी हुई शाही सिंहासनी कुर्सी के चारों पैरों में चार स्वर्ण के शेरों की आकृतियाँ हैं । संस्कृत शब्दावली में राजगद्दी को सिंहासन अर्थात् शेर की बैठक कहा जाता है क्योंकि एक सिंह अर्थात् सिंघ उपनाम एक ‘ सिंग ‘ अर्थात् ‘ किंग ‘ को इस पर मुकुट धारण कराया जाता है और राजगद्दी के शेरों की आकृतियों की सहायता से सम्बल प्राप्त होता था ।

(११) #फ्रांसीसी_परम्परा में सम्राट को ‘ रोई ‘ ( उच्चारण में रुवा ) कहां जाता है जबकि साम्राज्ञी को रनि ‘ पुकारते हैं । फ्रैंच शब्द ‘ रोइ ‘ ( उपनाम रुवा ) स्पष्टतः संस्कृत शब्द ‘ राया ‘ है जबकि रनि ‘ ( रन की ध्वनि में उच्चरित ) संस्कृत – शब्द ‘ राजनी ‘ का भिन्न रूप है जो आधुनिक भारतीय भाषाओं में ( जो मान्य रूप में संस्कृत से ही व्युत्पन्न है ) ‘ रानी ‘ के रूप में अक्षण्ण है जो फ्रैंच शब्द रनि ‘ के पर्याप्त निकट है ।

(१२) फ्रांस के एक उत्तर – कालीन राज – परिवार ‘ बोरबौन ‘ ( Bourbon ) ने ‘ वीरता का शौर्य का सूर्य ‘ अर्थ – द्योतक ‘ #वीरभानु ‘ सम्मान अंगीकृत किया हुआ था । हिन्दी और बँगला जैसी आधुनिक भारतीय भाषाओं में ‘ वीरभानु ‘ ‘ बीरभानु ‘ उच्चारण किया जाता है जो फ्रैंच भाषा में ‘ बोरबौन ‘ का रूप धारण कर बैठा है ।

▪️ संस्कृत वैदिक परम्परा में सम्राट् की वीरता सूर्य की चमक – दमक , उसकी प्रकाशमयी आभा से , प्रतीक – रूप में , सादृश्य बताई जाती थी जैसा #प्रतापादित्य उपनाम #विक्रमादित्य शब्दों से स्पष्ट देखा जा सकता है जो वीरभानु के पर्यायवाची रोमन परम्परा और रोमन साम्राज्य , दोनों के नाम राम से उद्भूत हैं जो आदर्श , दन्तकथा – समूह के वैदिक शासक हुए हैं ।

(१३) राम और / या रामन / रमण शब्दों का रोम या रोमन शब्दों जैसा ‘ ओ ‘ – ध्वनि – प्रधान उच्चारण यूरोप में सामान्य , प्रचलित है । जैसा कि संस्कृत शब्द ‘ नासा ‘ का उच्चारण ‘ नोस ‘ ( नोज़ , Nose ) और ‘ गा ‘ का उच्चारण ‘ गो ‘ ( जाना ) से और ‘ पापह ‘ से ‘ पोप ‘ में परिलक्षित किया जा सकता है । स्वयं भारत में भी संस्कृत – शब्दों का बंगला उच्चारण भी यूरोपीय भाषाओं की भाँति ही , जैसा अभी दिखाया गया है , बहुत मात्रा में ‘ ओ ‘ – ध्वनि प्रधान है ।

(१४) #रोमन – राजवंश का सूर्य – चिह्न भी इसका राम – परम्परा का होने का एक अन्य संकेतक है क्योंकि राम सूर्य – वंश का एक वंशज ही था । किसी के भव्य स्वागत में लाल – दरी ( कालीन / पट्टी ) बिछाने का प्रायः वर्णन किया जाता है , क्योंकि यह वैदिक राजवंशी रंग था ।

(१५) यूरोप में शाही मानोपाधियाँ जैसे केसर / सीज़र , ( Caesar ) , कैसर ( Kaiser ) और ज़ार ( Czar ) सभी वैदिक मूलोद्भव हैं । वे संस्कृत शब्द ‘ ईश्वर ‘ या ‘ केसरी ‘ का भ्रष्ट उच्चारण हैं । संस्कृत में ‘ ईश्वर ‘ , ‘ परमशक्तिमान प्रभु ‘ या ‘ श्रेष्ठतर ‘ का द्योतक है क्योंकि ‘ ईश ‘ का अर्थ प्रभु और वर का अर्थ महान् या श्रेष्ठ होता है । इसलिए वैदिक परम्परा में सम्राट , राजाधिराज को ‘ ईश्वर ‘ पुकारते थे या उक्त शब्द से सम्बोधित करते थे ।

▪️ यदि अंगरेजी शब्दों ‘ सीज़र ‘ , ‘ कैसर ‘ और ‘ ज़ार ‘ में शुरू अक्षर ‘ सी ‘ या ‘ के ‘ निर्ध्वनि , ध्वनिहीन मान लिया जाए तो शेष शब्द संस्कृत का ‘ ईश्वर ‘ रह जाएगा ।

▪️ संस्कृत का ‘ स ‘ अक्षर ( ईश्वर में जैसे ) यूरोपीय और सेमिटिक उच्चारण में प्रायः ‘ ज़ ‘ बोला जाता है ।

▪️ उदाहरण के लिए ‘ इस्रायल ‘ ( Israel ) का उच्चारण ‘ इज़रायल ‘ किया जाता है । फ्रांसीसी पर्यटक – जौहरी टेवरनियर ( Tavernier ) ने संस्मरण में ‘ ताज ‘ ( महल ) को ‘ तास ‘ ( Tas ) कहा है ।

▪️ _ ‘ काहिरा ‘ स्थित ‘ अल – अज़र विश्वविद्यालय तथ्य रूप में अल ‘ ईश्वर ‘ अर्थात् ‘ दैवी ‘ उपनाम ‘ दिव्य ‘ शिक्षा की पीठ है । वैकल्पिक रूप में वैदिक संप्रभु सम्राट् ‘ केसरी ‘ अर्थात् सिंह , शेर भी कहलाता था ।

▪️यदि अंगरेजी शब्दों केसर , कैसर और ज़ार के प्रारंभिक ‘ सी ‘ या ‘ के ‘ अक्षरों का उच्चारण किया जाए , तो वे सभी शाही यूरोपीय मानोपाधियाँ सिंह के द्योतक संस्कृत के शब्द ‘ केसरी ‘ के रूपान्तर ही होंगे जैसा वैदिक राजाधिराज से अपेक्षित था और जो सिंह – सदृश साहस का मूर्तिमन्त रूप बनने को प्रशिक्षित किया जाता था ।

वैदिक संस्कृति का प्रभाव सभी भाषाओं में है और सभी प्राचीन सभ्यताओं के विश्व में वैदिक परंपराओं से ही मूल जड़ बसे हुए हैं।

         

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