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मित्रो बहुत जिज्ञासा होती है, चंदन के बारे में जानने की ,क्योंकि हिन्दूधर्म में इसे बहुत पवित्र मानते हैं, पढ़े एक ज्ञानवर्धक प्रस्तुति चंदन के बारे में,,,,,

भारतीय चंदन का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा देश के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं।

तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को जड़, कुंदा, बुरादा, तथा छिलका और छीलन में विभक्त करके बेचा जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, तथा साजसज्जा के सामान बनाने में, और अन्य उत्पादनों का अगरबत्ती, हवन सामग्री, तथा सौगंधिक तेज के निर्माण में होता है।

आसवन द्वारा सुगंधित तेल निकाला जाता है। प्रत्येक वर्ष लगभग 3,000 मीटरी टन चंदन की लकड़ी से तेल निकाला जाता है। एक मीटरी टन लकड़ी से 47 से लेकर 50 किलोग्राम तक चंदन का तेल प्राप्त होता है। रसायनज्ञ इस तेल के सौगंधिक तत्व को सांश्लेषिक रीति से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।

चन्दन के अनेक प्रकार है पर लाल और सफ़ेद चन्दन ही प्रयोग में लाये जाते है जिसमे से लाल चन्दन अधिक गुणकारी है।

एसिडिटीके उपचार के लिए चन्दन द्वारा चिकित्सा युगों से चली आ रही चिकित्सा प्रणाली है। चन्दन गैस से संबधित परेशानियों को ठंडक प्रदान करता है।

इसका लेप त्वचा के लिए बहुत लाभकारी है , विशेषतः गर्मी की समस्याओं में . विभिन्न फेस पैक में चन्दन पावडर मिला कर लगाने से त्वचा सुन्दर बनती है. कील मुंहासे रूखापन दूर हो कर रंग निखरता है।

पूजन में भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है।

चंदन का तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट विकार नहीं होता।

मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है।

इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शुभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें।

चन्दन का तिलक हमें शीतलता प्रदान करता है और गर्म मौसम में भी कार्य करने की सहक्ति और ऊर्जा देता है. इससे दिमाग भी तेज होता है।

गर्मियों में ठंडक के लिए चन्दन का शरबत –
सामग्री : चंदन = 30 ग्राम मिश्री = 1 किलो
केवड़ा जल = 1 चम्मच
विधि :
सफेद चन्दन को महीन पीसकर कपड़े से छान कर लें। चूर्ण को पानी में भिगो दें। दूसरे दिन उसे कपड़े में से छानकर मिश्री के घोल में मिलाकर आग पर रख दें। जब पक कर आधा रह जाये तो उतार लें और उसमें स्वादानुसार केवड़ा डालकर मिलाएँ। शर्बत तैयार है। ठंडा करके बोतल में भर लें और जब चाहे उपयोग में लाएँ।

गंधोदक स्नान ,देवताओं को स्नान कराने की प्रक्रिया बाहरी तौर पर तो तन को स्वच्छ और ठंडा करने वाली दिखाई देती है। किंतु असल में यह मानसिक शांति और प्रसन्नता भी देती है।

स्नान का संबंध पवित्रता से भी है। स्वच्छता या पवित्रता चाहे वह शरीर, कर्म, विचार, व्यवहार या आचरण की हो, हमेशा कलह को दूर रखती है। धर्मशास्त्र भी सुखी जीवन के लिए यही सीख देते हैं।

असल में इंसान के कर्म ही सुख-दु:ख का कारण होतें हैं। चूंकि कर्म तो इंसान के हाथों में होते हैं, किंतु इंसान सहित संपूर्ण जगत काल के अधीन है, जिसके नियंत्रण परब्रह्म या ईश्वर को माना गया है, जो हिन्दू धर्म में पंचदेवों के रूप में पूजनीय है।

आस्था के साथ कण-कण में बसे ईश्वर की प्रसन्नता के लिए इंसान उन क्रियाओं द्वारा खुद को जोड़ता और शांति पाता है, जिसे वह भी दैनिक जीवन में महसूस करता और अपनाता है। देव स्नान द्वारा भी यही कामना होती है कि दु:ख और अशांति रूपी ताप से रक्षा हो और सुख और शांति रूपी शीतलता जीवन में बनी रहे। सार यही है कि इंसान अच्छे कर्म व ईश्वर का स्मरण न भूले।

देवस्नान के लिए मंत्र विशेष का महत्व बताया गया है, जो यथासंभव देवता को स्नान कराते वक्त बोलना शुभ फलदायी और सुखदायी माना गया है –

मलयाचलसम्भूतचन्दनेन विमिश्रितम्।
इदं गन्धोदकं स्नानं कुङ्कुमाक्तं नु गृह्यताम्।।

भारतीय प्राचीनतम परम्परा में शिष्य और गुरु परम्परा साधना में अपनी एक अलग जगह रखती है। माथे पर लगाया हुआ चन्दन यह बताता है कि यह व्यक्ति किस गुरू का शिष्य है? दूसरी बात जो माथे का चन्दन बताता है की यह ब्यक्ति की साधना में कौन सी स्थिति में है?

माथे का चन्दन चन्दन लगानें वाले का ध्यान अपनें ऊपर रहता है अर्थात ध्यान तीसरी आँख पर हर पल रखना अपनें में स्वयं ही एक सहज ध्यान है|चन्दन जैसे-जैसे सूखता जाता है वैसे-वैसे यह वहाँ की त्वचा को सिकोड़ता रहता है और यह चन्दन लगानें वाले के ध्यान को अपनी ओर खीचता रहता है।

माथे पर लगा चन्दन अपनी ओर अर्थात तीसरी आँख पर ध्यान को खीच कर मन को विचार शून्यता की स्थिति में रखनें का प्रयाश करता है और मन की विचार शून्यता परम् ध्यान की स्थिति होती है। चन्दन चक्रों की ऊर्जा को गति देता है और ऊर्जा को निर्विकार भी बनाता है।

चन्दन लगाने के निम्न स्थान हैं और चन्दन लगानें के ढंग भी अलग,अलग हैं,ललाट का मध्य भाग,सर में जहां चोटी रखते हैं [सहस्त्रार चक्र]

दोनों आँखों की पलकों के ऊपर,दोनों कानों पर,नाक,गला ,दोनों भुजाओं का,मध्य,भाग,ह्रदय,गर्दन,नाभि,रीढ़ की हड्डी का नीचला भाग नाभि के ठीक पीछे लगभग एक इंच नीचे की ओर। इन अंगों को ठीक से देखें और इनको साधना की दृष्टि से समझें।

न्यूरोलोजी की दृष्टि से यदि इन स्थानों को देखते हैं तो चन्दन का सीधा सम्बन्ध इस तंत्र के उन भागों से हैं जो या तो सूचनाओं को एकत्रित करते हैं या उन सूचनाओं की एनेलिसिस करते हैं. विज्ञान अभीं तक यह समझता रहा है कि स्पाइनल कार्ड मात्र सूचनाओं को एकत्रित करनें के तंत्र का एक प्रमुख भाग है लेकिन अभीं हाल में पता चला है कि यह सूचनाओं की
एनेलिसिस भी कर्ता है जैसे ब्रेन करता है।

शरीर के किसी भाग पर खुजली होने पर चंदन पाउडर में हल्दी और 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर लगाने से खुजली तो दूर हो जाएगी साथ में लालपन भी कम होता है। चंदन में कीटाणुनाशक विशेषता होने की वजह से यह हर्बल एंटीसेप्टिक है, इसलिए किसी भी प्रकार के छोटे घाव और खरोंच को ठीक करता है।

यह जलने से हुए घाव को भी ठीक कर सकता है। शादी से पहले जब नववधू उबटन लगाए तो हल्दी में चंदन मिला कर लगाने से स्किन में निखार आएगा। मच्छर या खटमल के काटे पर सूजन और खुजली हो जाती है तो चंदन का लेप लगाया जा सकता है। चंदन का तेल सूखी स्किन के लिए गुणकारी होता है यह सूखी स्किन को नमी प्रदान करता है।

शरीर के किसी भाग का रंग काला पड गया हो तो 2 चम्मच बादाम का तेल, 5 चम्मच नारियल का तेल और 4 चम्मच चंदन पाउडर मिलाकर उस खुले भाग पर लगाएं। इससे कालापन तो जाएगा ही, फिर से स्किन काली नहीं होगी। किसी को अधिक पसीना आता है, तो चंदन पाउडर में पानी मिला कर बदन पर लगाने से पसीना कम होगा ।

चंदन पाचन क्रिया को ठीक करता है। चंदन का किसी भी रूप में प्रयोग गुणकारी होता है। चाहे आप इसको तेल, पाउडर, साबुन आदि किसी भी रूप में हो, चंदन शरीरिक प्रक्रिया का संतुलन बनाता है। साथ में स्त्रायुतंत्र और श्वास प्रक्रिया को मजबूत बनाता है।

चन्दन का काढा पिने से बुखार , खुनी दस्त में लाभ होता है।

यह मानसिक उन्माद को समाप्त कर देता है।
गाय के गोबर से बने कंडे या उपले को जलाएं। अब थोड़ा लोबान, कपूर, गुगल, देशी घी और चंदन उस पर रख दें। जब धुआं होने लगे तब इस धुएं को पूरे घर में फैलाएं।

इस धुएं के प्रभाव से घर के वातावरण में मौजूद सभी सुक्ष्म कीटाणु नष्ट हो जाएंगे, हवा में पवित्र सुगंध फैल जाएगी। इसके अलावा घर की सभी नेगेटिव एनर्जी निष्क्रीय हो जाएगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाएगा।

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