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🕉सनातन धर्म का इतिहास जानो🕉

🚩पीसा विश्व धरोहर से भी ज्यादा झुका है वाराणसी का यह मंदिर

🛕रत्नेश्वर महादेव मंदिर (मातृऋण मंदिर) , काशी

♦️अहिल्याबाई के कार्यकाल में उनकी दासी ने बनवाया था यह मंदिर | इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसे लेकर भी अलग-अलग दावे हैं। रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक इसका निर्माण 1825 से 1830 के बीच हुआ। वहीं रीजनल आर्कियोलॉजी ऑफिसर के मुताबिक यह 18वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुआ था। घाट के आसपास बसे लोगों का मानना है कि रत्नेश्वर महादेव की स्थापना 15वीं सदी में हुई थी।

♦️इटली की लीनिंग टावर ऑफ पीसा वास्तुशिल्प का अदभुत नमूना है। नींव से यह 4 डिग्री झुकी है। इसकी ऊंचाई 54 मीटर है। पीसा की मीनार अपने झुकने की वजह से ही दुनिया भर में मशहूर है, और वल्र्ड हेरिटेज में शामिल है।जबकि, पीसा की मीनार से भी खूबसूरत वास्तुशिल्प का नमूना काशी में मौजूद है। मणिकर्णिका घाट के नजदीक “रत्नेश्वर मंदिर” जिसे मातृऋण मंदिर भी कहते हैं। यह अपनी नींव से 9 डिग्री झुका हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 40 फीट है। लेकिन इसकी इस विशिष्टता से काशी के ही बहुत कम लोग परिचित हैं।

♦️मणिकर्णिका घाट पर मणिकर्णिका कुंड के ठीक सामने स्थित “रत्नेश्वर महादेव मंदिर” की वास्तुकला अलौकिक है। यह मंदिर सैकड़ों सालों से एक तरफ काफी झुका हुआ है। इसके झुके होने को लेकर कई तरह की दंत कथाएं प्रचलित हैं। फिर भी यह रहस्य ही है कि पत्थरों से बना वजनी मंदिर टेढ़ा होकर भी आखिरकार सैकड़ों सालों से खड़ा कैसे है।

♦️मणिकर्णिका घाट के अन्य मंदिरों की तरह रत्नेश्वर महादेव मंदिर भी काफी प्राचीन है। गंगा घाट पर जहां सारे मंदिर घाट के ऊपर बने हैं वहीं यह अकेला ऐसा मंदिर है जो घाट के नीचे बना है। इस वजह से यह छह से आठ महीनों तक पानी में डूबा रहता है। गुजरात शैली में बना यह मंदिर करीब 40 फीट ऊंचा है।

♦️बाढ़ में गंगा का पानी मंदिर के शिखर तक पहुंच जाता है। पानी उतरने के बाद मंदिर का पूरा गर्भगृह बालू और सिल्ट से भरा जाता है। इस वजह से बाकी मंदिरों की तरह यहां पूजा नहीं होती। स्थानीय पुजारी बताते हैं दो-तीन महीने में कुछ ही दिन साफ सफाई के बाद यहां पूजा होती है।

🟧इतिहास

♦️स्थानीय तीर्थ पुरोहित श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं, महारानी अहिल्याबाई होलकर ने काशी में कई मंदिरों और कुंडों का निर्माण कराया। उनके शासन काल में उनकी रत्ना बाई नाम की एक दासी ने मणिकर्णिका कुंड के सामने शिव मंदिर निर्माण की इच्छा जताई और यह मंदिर बनवाया। उसी के नाम पर इसे रत्नेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है। जनश्रुति है कि मंदिर बनने के कुछ समय बाद ही टेढ़ा हो गया। मंदिर के साथ पूरा घाट ही झुक गया था। राज्यपाल मोतीलाल वोरा की पहल पर घाट फिर से बनवाया गया, लेकिन मंदिर सीधा नहीं किया जा सका।

🟧पौराणिक मान्यता

♦️मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का कर्ण फूल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढने का काम भगवान शंकर जी द्वारा किया गया, जिस कारण इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी द्वारा माता पार्वती जी के पार्थीव शरीर का अग्नि संस्कार किया गया, जिस कारण इसे महाश्मसान भी कहते हैं। आज भी अहर्निश यहाँ दाह संस्कार होते हैं। नजदीक में काशी की आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर विराजमान है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं ,ऐवं मोक्ष प्रदान करते हैं ।

🚩सत्य सनातन धर्म🚩

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