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🌹दुर्बल विचारों को हटाने के लिए प्रयोग

*🌹मैं शरीर को जानता हूँ, मन को जानता हूँ, इन्द्रियों को जानता हूँ, मन में आये हुए काम, क्रोध, भय आदि के विचारों को जानता हूँ। इसलिए शरीर की अवस्था और मन के सुख-दुःख मुझे स्पर्श नहीं कर सकते….।’ ऐसे विचार बार-बार करो। हो सके तो कभी-कभी किसी कमरे में या एकांत स्थान पर अकेले बैठकर अपने आप से पूछोः ‘क्या मैं शरीर हूँ ?’ खूब गहराई से पूछो। जब तक भीतर से उत्तर न मिले तब तक बार बार पूछते रहो। भीतर से उत्तर मिलेगाः ‘नहीं, मैं वह शरीर नहीं हूँ।’ तो फिर शरीर के सुख दुःख और उसके सम्बन्धियों के शरीर के सुख-दुःख क्या मेरे सुख-दुःख हैं ?’ उत्तर मिलेगाः ‘नहीं…. मैं शरीर नहीं तो शरीर के सुख-दुःख और उसके सम्बन्धियों के शरीर के सुख-दुःख मेरे कैसे हो सकते हैं ?’ फिर पूछोः ‘ तो क्या मैं मन या बुद्धि हूँ? इसका बार-बार चिन्तन करना दुर्बल विचारों और दुर्भाग्य को निकालने का एक अनुभवसिद्ध इलाज है। इसका प्रयोग अवश्य करना। ‘ॐ’ का पावन जप करते जाना और आगे बढ़ते जाना। प्रभु के नाम का स्मरण और परमात्मा से प्रेम करते रहना।
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🙏🌹जय हो🌹🙏
मनुष्य यदि अपने आप को निर्बल और भयभीत मानेगा, तो वह स्वयं ही अपनी उन्नति के रास्ते में बाधा बनेगा।
अपनी सोच को सकरात्मक रखने की आवश्यकता होती है, जिस से कि हम बहादुरी से हर परिस्थिति का सामना डटकर करने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
जैसा भी समय आए ,हमें अपना हौसला बुलंद रखना चाहिए। कभी विचलित होकर, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
आत्मविश्वास, शुद्ध विचार,सदव्यवहार, हमारे मन की दशा को बदलकर जीवन की दिशा को बदलने की ताकत रखते हैं।

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🚩🕉️भौतिक अस्तित्व को भूलते हुए केवल साक्षी भाव रखें

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🚩🕉️सिर्फ दो चीजों का अस्तित्व मौजूद है. एक वो जो हो रहा है। इसे हम भौतिक रचना के रूप में देखते हैं. और दूसरा है वह समय . जिसके अंतर्गत वह रचना हो रही है। जो होना है. भले ही वह अच्छा-बुरा, छोटा-बड़ा. कैसा भी हो.

🚩🕉️वह होगा तो अपने समय से ही। भौतिक रचनाएं या स्थितियां समय पर निर्भर करती हैं और ये सभी अस्थायी होती हैं, और अस्थायी रचनाओं का उत्त्थान और पतन तो लगा ही रहता है। एक समय बाद “जो हो रहा है”. वह “जो हो चुका है” में तब्दील हो जाता है। महत्वपूर्ण चीज वह यात्रा या समय है, जिसके अंतर्गत वह अस्थायी भौतिक घटना घटित हुई है। यौगिक विद्या में इसे वास्तविकता, चेतना और सत्यता कहा गया है.

🚩🕉️सामान्य भाषा में इसे “साक्षी” कहा जा सकता है, जिसने स्वयं हर चीज का अनुभव किया हो, उसे प्रमाणित किया हो। यह साक्षी भाव भौतिक नहीं होता, इसलिए यह समय का हिस्सा भी नहीं है। साक्षी, सिनेमा की उस स्क्रीन की तरह है, जिस पर हर रचना हाजिर होती है और फिर गायब हो जाती है। इस बदलाव का उस स्क्रीन पर कोई असर नहीं पड़ता, वैसे ही साक्षी भी किसी प्रभाव से मुक्त रहती है। वह केवल भौतिक अस्तित्व की तरह आती-जाती नहीं है, वह स्थिर है. स्थायी है।

🚩🕉️आध्यात्मिकता का अर्थ भौतिकता के पार है, क्योंकि अगर आप भौतिक दुनिया में खो गए तो आप इस दुनियावी जंजाल में फंसकर गोल-गोल घूमते रहेंगे, किसी स्थान पर पहुंच नहीं पाएंगे। जबकि साक्षी होने का अर्थ.

🚩🕉️उस स्क्रीन जैसा होना है जिस पर सब कुछ हो तो रहा है, लेकिन उन घटनाओं का उस पर कोई प्रभाव नहीं है. वह पूरी तरह से उन सभी से मुक्त है।

🚩🕉️आध्यात्मिक रूप से जागृत व्यक्ति इस वास्तविकता को समझता है और हमेशा साक्षी भाव के साथ जुड़ा रहता है। मुक्ति.

🚩🕉️यह यौगिक बुद्धिमत्ता का उदाहरण है. यह मुक्ति भौतिक अस्तित्व से है। जो तभी मुमकिन है जब आप भौतिक दुनिया में एक साक्षी की तरह जीवन का निर्वाह करेंगे। अगर आप वाकई जीवन जीने की इस शैली के लिए गंभीर हैं तो ध्यान इसमें आपकी सहायता कर सकता है। .

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