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देवी काली की आराधना, पूजा इत्यादि भारत के पूर्वी प्रांतो में अधिकतर होती हैं। देवी काली समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा पूजित हैं, जनजातीय तथा युद्ध कौशल से सम्बंधित समाज की देवी अधिष्ठात्री हैं। चांडाल जो की हिन्दू धर्म के अनुसार, श्मशान में शव के दाह का कार्य करते हैं तथा अन्य शूद्र जातियों की देवी अधिष्ठात्री हैं। डकैती जैसे अमानवीय कृत्य करने वाले भी देवी की पूजा करते हैं, आदि काल में डकैत, डकैती करने हेतु जाने से पहले देवी काली की विशेष पूजा अराधना करते थे। देवी का सम्बन्ध क्रूर कृत्यों से भी हैं, परन्तु ये क्रूर कृत्य दुष्ट प्रवृति के जातको हेतु ही हैं। इस निमित्त वे देवी के भव्य मंदिरों का भी निर्माण करवाते थे तथा विधिवत पूजा अराधना की संपूर्ण व्यवस्था करते थे। आज भी भारत वर्ष के विभिन्न प्रांतो में ऐसे मंदिर विद्यमान हैं, जहा डकैत, देवी की अराधना, पूजा इत्यादि करते थे। हुगली जिले में डकैत काली बाड़ी, जलपाईगुड़ी जिले की देवी चौधरानी (डकैत) काली बाड़ी इत्यादि, प्रमुख डकैत देवी मंदिर विद्यमान हैं। स्कन्द (कार्तिक) पुराण, के अनुसार देवी की उत्पत्ति, आश्विन मास की कृष्णा चतुर्दशी तिथि, मध्य रात्रि के घोर में अंधकार से हुआ। परिणामस्वरूप अगले दिन कार्तिक अमावस्या को उन की पूजा, अराधना तीनो लोको में की जाती हैं, ये पर्व दीपावली या दिवाली नाम से विख्यात हैं तथा समस्त हिन्दू समाजों द्वारा मनाई जाती हैं। शक्ति तथा शैव समुदाय के अनुसरण करने वाले इस दिन देवी काली की पूजा करते हैं तथा वैष्णव समुदाय महा लक्ष्मी जी की, वास्तव में महा काली और महा लक्ष्मी दोनों एक ही हैं। देवी काली की अराधना भारत के पूर्वी भाग मैं अधिक होती हैं। वहाँ जहा तहा देवी काली के मंदिर देखे जा सकते हैं, प्रत्येक श्मशान घाटो में देवी, मंदिर विद्यमान हैं तथा विशेष तिथिओं में पूजा, अर्चना भी होती हैं।
दसो महाविद्याये, देवी आद्या काली के ही उग्र तथा सौम्य रूप में विद्यमान हैं, देवी काली अपने अनेक अन्य नमो से प्रसिद्ध हैं, जो की भिन्न भिन्न स्वरूप तथा गुणों वाली हैं।
देवी काली मुख्यतः आठ नमो से जानी जाती हैं और ‘अष्ट काली’, समूह का निर्माण करती हैं।
१. चिंता मणि काली
२. स्पर्श मणि काली
३. संतति प्रदा काली
४. सिद्धि काली
५. दक्षिणा काली
६. कामकला काली
७. हंस काली
८. गुह्य काली
देवी काली ‘दक्षिणा काली’ के नाम तथा स्वरूप से सर्व सदाहरण में, सर्वाधिक पूजित हैं।
देवी काली के दक्षिणा काली नाम पड़ने के विभिन्न कारण।
सर्वप्रथम दक्षिणा मूर्ति भैरव ने इन की उपासना की, परिणामस्वरूप देवी दक्षिणा काली के नाम से जाने जाने लगी।
दक्षिण दिशा की ओर रहने वाले यम राज या धर्म राज, देवी का नाम सुनते ही भाग जाते है, परिणामस्वरूप देवी दक्षिणा काली के नाम से जानी जाती हैं। तात्पर्य है, मृत्यु के देवता यम, जिनका राज्य या याम लोक दक्षिण दिशा में विद्यमान है, ( मृत्यु पश्चात् जीव आत्मा यम दूतों द्वारा इसी लोक में लाई जाती हैं ) देवी काली के भक्तों से दूर रहते है, मृत्यु पश्चात् यम दूत उन्हें यम लोक नहीं ले जाते हैं।
समस्त प्रकार के साधनाओ का सम्पूर्ण फल दक्षिणा से ही प्राप्त होता हैं, जैसे गुरु दीक्षा तभी सफल हैं जब गुरु दक्षिणा दी गई हो। देवी काली, मनुष्य को अपने समस्त कर्मों का फल प्रदान करती हैं या सिद्धि प्रदान करती हैं, तभी देवी को दक्षिणा काली के नाम से भी जाना जाता हैं।
देवी काली वार प्रदान करने में अत्यंत चतुर हैं, यहाँ भी एक कारण हैं।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, पुरुष को दक्षिण तथा स्त्री को बामा कहा जाता हैं। वही बामा दक्षिण पर विजय पा, मोक्ष प्रदान करने वाली होती हैं। तभी देवी अपने भैरव के ऊपर खड़ी हैं।
देवी काली ही दो मुख्य स्वरूपों प्रथम रक्त तथा तथा कृष्ण वर्ण में अधिष्ठित हैं, कृष्ण या काले स्वरूप वाली ‘दक्षिणा’ नाम से तथा रक्त या लाल वर्ण वाली ‘सुंदरी’ नाम से जानी जाती हैं। देवी काली, काले वर्ण युक्त दक्षिणा नाम से जानी जाती हैं। मुख्यतः विध्वंसक प्रवृति धारण करने वाले समस्त देवियाँ कृष्ण या दक्षिणा कुल से सम्बंधित हैं। जैसे, देवी काली का घनिष्ठ सम्बन्ध विध्वंसक प्रवृति तथा तत्वों से हैं, जैसे देवी श्मशान वासी हैं, मानव शव तथा हड्डियों से सम्बद्ध हैं, भूत-प्रेत इत्यादि या प्रेत योनि को प्राप्त हुए, विध्वंसक सूक्ष्म तत्व देवी के संगी साथी, सहचरी हैं। यहाँ देवी नियंत्रक भी हैं तथा स्वामी भी, समस्त भूत-प्रेत इत्यादि इनकी आज्ञा का उलंघन कभी नहीं कर सकते। समस्त वेद इन्हीं की भद्र काली रूप में स्तुति करते हैं। वे निष्काम या निःस्वार्थ भक्तों के माया रूपी पाश को ज्ञान रूपी तलवार से काट कर मुक्त करती हैं।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी कालाष्टमी कहलाती हैं, इस दिन सामान्यतः देवी काली की पूजा, अराधना की जाती हैं या कहे तो पौराणिक काली की अराधना होती हैं, जो दुर्गा जी के नाना रूपों में से एक हैं। परन्तु तांत्रिक मतानुसार, दक्षिणा काली या आद्या काली की साधना कार्तिक अमावस्या या दीपावली के दिन होती हैं, शक्ति तथा शैव समुदाय इस दिन आद्या शक्ति काली के भिन्न भिन्न स्वरूपों की आराधना करता हैं। जबकि वैष्णव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन, धनदात्री महा लक्ष्मी की अराधना करते हैं।
जय माता की !!
काली-अवतार की कथा…. 🌸 💐 👏🏼
मान्यता है कि प्राणियों का दुख दूर करने के लिए देवी भगवती निराकार होकर भी अलग-अलग रूप धारण कर अवतार लेती हैं। देवी ही सत्व, रज और तम-इन तीनों गुणों का आश्रय लेती हैं और संपूर्ण विश्व का सृजन, पालन और संहार करती हैं। काल पर भी शासन करने के कारण महाशक्ति काली कहलाती हैं।
कालिकापुराणमें काली-अवतार की कथा है। इसके अनुसार, एक बार देवगण हिमालय पर जाकर देवी की स्तुति करने लगे। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवती ने उन्हें दर्शन दिया और उनसे पूछा-तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो? तभी देवी के शरीर से काले पहाड जैसे वर्ण वाली दिव्य नारी प्रकट हो गई। उस तेजस्विनी स्त्री ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया-ये लोग मेरी ही स्तुति कर रहे हैं। उनका रंग काजल के समान काला था, इसलिए उनका नाम काली पड गया।
लगभग इसी से मिलती-जुलती कथा मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा-सप्तशती में भी मिलती है। शुम्भ-निशुम्भनामक दो दैत्य थे। उनके उपद्रव से पीडित होकर देवताओं ने महाशक्ति का आह्वान किया, तब पार्वती की देह से कौशिकीप्रकट हुई, जिनके अलग होते ही देवी का स्वरूप काला हो गया। इसलिए शिवप्रियापार्वती काली नाम से विख्यात हुई। आराधना तंत्रशास्त्रमें कहा गया है- कलौ काली कलौकाली नान्यदेव कलौयुगे।कलियुग में एकमात्र काली की आराधना ही पर्याप्त है। साथ ही, यह भी कहा गया है-कालिका मोक्षदादेवि कलौशीघ्र फलप्रदा।मोक्षदायिनीकाली की उपासना कलियुग में शीघ्र फल प्रदान करती है।
शास्त्रों में कलियुग में कृष्णवर्ण [काले रंग] के देवी-देवताओं की पूजा को ही अभीष्ट-सिद्धिदायक बताया गया है, क्योंकि कलियुग की अधिष्ठात्री महाशक्ति काली स्वयं इसी वर्ण [रंग] की हैं। माना जाता है कि काली का रूप रौद्र है। उनके दांत बडे हैं। वे अपनी चार भुजाओं में क्रम से खड्ग, मुंड, वर और अभय धारण करती हैं। शिव की पत्नी काली के गले में नरमुंडोंकी माला है। हालांकि उनका यह रूप भयानक है, लेकिन कई ग्रंथों में उनके अन्य रूप का भी वर्णन है। भक्तों को जगदंबा का जो रूप प्रिय लगे, वह उनका उसी रूप में ध्यान कर सकता है। बनें पुत्र तंत्रशास्त्रकी दस महाविद्याओंमें काली को सबसे पहला स्थान दिया गया है, लेकिन काली की साधना के नियम बहुत कठोर हैं।
इसलिए साधक पहले गुरु से दीक्षा लें और मंत्र का सविधि अनुष्ठान करें। यह सभी लोगों के लिए संभव नहीं है, इसलिए ऐसे लोग काली को माता मानकर पुत्र के रूप में उनकी शरण में चले जाएं। जो व्यक्ति जटिल मंत्रों की साधना नहीं कर पाते हों, वे सिर्फ काली नाम का जप करके उनकी अनुकंपा प्राप्त कर सकते हैं। टलते हैं संकट मान्यता है कि आज के समय में कठिन परिस्थितियों से सामना करने में काली अपने भक्तों की सहायता करती हैं। आज मनुष्य अपने को सब तरफ से असुरक्षित महसूस कर रहा है। काली माता का ध्यान करने से उनके मन में सुरक्षा का भाव आता है। उनकी अर्चना और स्मरण से बडे से बडा संकट भी टल जाता है। हम सभी मिलकर उनसे यह प्रार्थना करें कि वे अभाव और आतंक-स्वरूप असुरों का नाश कर मानवता की रक्षा करें। काली जयंती तंत्रग्रंथोंके अनुसार साधक आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन काली-जयंती मनाते हैं, लेकिन कुछ विद्वानों के विचार से जन्माष्टमी [भाद्रपद-कृष्ण-अष्टमी] काली की जयंती-तिथि है।

     

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