Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

💐#औरंगाबादबिहारदेवस्थानका
💐#पौराणिकसूर्यमन्दिर !

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय
मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

छठ पूजा में सूर्य की पूजा करने की
परम्परा इसी स्थान से आरम्भ हुई
और अन्य स्थानों पर भी इसका
पालन किया जाता है।

छठ पूजा में यहां जितनी भीड़ और
किसी स्थान पर देखने को नही मिलती।

स्वयं को बचाने के लिए सूर्य मंदिर ने बदल
ली थी दिशा !

बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित
ऎतिहासिक त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य
मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के
साथ साथ अपने इतिहास के लिए भी
विख्यात है।

कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण देवशिल्पी
भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से
किया है।

देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल मंदिर
अपने अप्रतिम सौंदर्य और शिल्प के कारण
सदियों श्रद्धालुओं,वैज्ञानिकों,मूर्ति चोरों,तस्करों
एवं आमजनों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।

डेढ़ लाख वर्ष पुराना है यह सूर्य मंदिर !

काले और भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी
से बना यह सूर्यमंदिर उड़ीसा के पुरी स्थित
जगन्नाथ मंदिर से मिलता जुलता है।

मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में उसके
बाहर ब्राह्मी लिपि में लिखित और संस्कृत में
अनुवादित एक श्लोक जड़ा है जिसके अनुसार
12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने
के बाद इलापुत्र पुरुरवा ने देव सूर्य मंदिर का
निर्माण आरंभ करवाया।

शिलालेख से पता चलता है कि सन् 2014 ईस्वी
में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक
लाख पचास हजार चौदह वर्ष पूरे हो गए हैं।

विश्व का एकमात्र पश्चिमाभिमुख सूर्यमंदिर है !
देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर
मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (प्रात:) सूर्य,
मध्याचल (दोपहर) सूर्य,और अस्ताचल (अस्त)
सूर्य के रूप में विद्यमान है।

पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो
पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।

करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर
स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।

बिना सीमेंट अथवा चूना-गारा का प्रयोग किए
आयताकार,वर्गाकार,आर्वाकार,गोलाकार,
त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों
में काटे गए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया
यह मंदिर अत्यंत आकर्षक एवं विस्मयकारी है।

जनश्रुतियों के आधार पर इस मंदिर के निर्माण
के संबंध में कई किंवदतियां प्रसिद्ध है जिससे
मंदिर के अति प्राचीन होने का स्पष्ट पता तो
चलता है।

सूर्य पुराण में भी है इस मंदिर की कहानी !

सूर्य पुराण के अनुसार ऎल एक राजा थे,जो किसी
ऋषि के शापवश श्वेत कुष्ठ रोग से पीडित थे।
वे एक बार शिकार करने देव के वनप्रांत में पहुंचने
के बाद राह भटक गए।

राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा
सरोवर दिखाई पडा जिसके किनारे वे पानी पीने
गए और अंजुरी में भरकर पानी पिया।

पानी पीने के क्रम में वे यह देखकर घोर आश्चर्य
में पड़ गए कि उनके शरीर के जिन जगहों पर
पानी का स्पर्श हुआ उन जगहों के श्वेत कुष्ठ के
दाग जाते रहे।

इससे अति प्रसन्न और आश्चर्यचकित राजा
अपने वस्त्रों की परवाह नहीं करते हुए सरोवर
के गंदे पानी में लेट गए और इससे उनका श्वेत
कुष्ठ रोग पूरी तरह जाता रहा।

शरीर में आशर्चजनक परिवर्तन देख प्रसन्नचित
राजा ऎल ने इसी वन में रात्रि विश्राम करने का
निर्णय लिया।

रात्रि में राजा को स्वप्न आया कि उसी सरोवर
में भगवान भास्कर की प्रतिमा दबी पड़ी है।
प्रतिमा को निकालकर वहीं मंदिर बनवाने और
उसमे प्रतिष्ठित करने का निर्देश उन्हें स्वप्न में
प्राप्त हुआ।

कहा जाता है कि राजा ऎल ने इसी निर्देश के
मुताबिक सरोवर से दबी मूर्ति को निकालकर
मंदिर में स्थापित कराने का काम किया और
सूर्य कुंड का निर्माण कराया लेकिन मंदिर
यथावत रहने के बावजूद उस मूर्ति का आज
तक पता नहीं है।

जो अभी वर्तमान मूर्ति है वह प्राचीन अवश्य है,
लेकिन ऎसा लगता है मानो बाद में स्थापित की
गई हो।

देवशिल्पी विश्वकर्मा ने एक ही रात में बनाया
था सूर्य मंदिर !

मंदिर निर्माण के संबंध में एक कहानी यह भी
प्रचलित है कि इसका निर्माण एक ही रात में
देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों
किया था।

कहा जाता है कि इतना सुंदर मंदिर कोई
साधरण शिल्पी बना ही नहीं सकता।

इसके काले पत्थरों की नक्काशी अप्रतिम है
और देश में जहां भी सूर्य मंदिर है,उनका मुंह
पूर्व की ओर है,लेकिन यही एक मंदिर है जो
सूर्य मंदिर होते हुए भी प्रात:कालीन सूर्य
की रश्मियों का अभिषेक नहीं कर पाता वरन
अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें ही मंदिर का
अभिषेक करती हैं।

जनश्रुति है कि एक बार बर्बर लुटेरा काला पहाड़
मूर्तियों एवं मंदिरों को तोड़ता हुआ यहां पहुंचा तो
देव मंदिर के पुजारियों ने उससे काफी विनती की
कि इस मंदिर को न तोडें क्योंकि यहां के भगवान
का बहुत बड़ा महात्म्य है।

इस पर वह हंसा और बोला यदि सचमुच तुम्हारे
भगवान में कोई शक्ति है तो मैं रात भर का समय
देता हूं तथा यदि इसका मुंह पूरब से पश्चिम हो
जाए तो मैं इसे नहीं तोडूंगा।

पुजारियों ने सिर झुकाकर इसे स्वीकार कर लिया
और वे रातभर भगवान से प्रार्थना करते रहे।
सबेरे उठते ही हर किसी ने देखा कि सचमुच
मंदिर का मुंह पूरब से पश्चिम की ओर हो गया
था और तब से इस मंदिर का मुंह पश्चिम की
ओर ही है।

हर साल चैत्र और कार्तिक के छठ मेले में
लाखों लोग विभिन्न स्थानों से यहां आकर
भगवान भास्कर की आराधना करते हैं भगवान
भास्कर का यह त्रेतायुगीन मंदिर सदियों से लोगों
को मनोवांछित फल देने वाला पवित्र धर्मस्थल
रहा है।

मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण
प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल,मध्याचल
तथा अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं।

इसके साथ ही वहाँ अद्भुत शिल्प कला वाली
दर्जनों प्रतिमाएं हैं।

मंदिर में शिव के जांघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा है।
सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है।
इसलिए शिव पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा
श्रद्धालुओं को खासी आकर्षित करती है।

मंदिर का स्वरूप

उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर इस मंदिर
के शिल्प से मिलता जुलता है।

देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है।

पहला गर्भ गृह जिसके ऊपर कमल के
आकार का शिखर है और शिखर के
ऊपर सोने का कलश है।

दूसरा भाग मुखमंडप है जिसके ऊपर पिरामिडनुमा
छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार
पत्थरों का बना स्तम्भ है।

तमाम हिन्दू मंदिरों के विपरीत पश्चिमाभिमुख देव
सूर्य मंदिर देवार्क माना जाता है जो श्रद्धालुओं के
लिए सबसे ज्यादा फलदायी एवं मनोकामना पूर्ण
करने वाला है।

रख-रखाव;

इस मंदिर के देखभाल का दायित्व देव सूर्य मंदिर
न्यास समिति का है।

यूं तो सालों भर देश के विभिन्न जगहों से लोग
यहां मनौतियां मांगने और सूर्यदेव द्वारा उनकी
पूर्ति होने पर अर्ध्य देने आते हैं।

Recommended Articles

Leave A Comment