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सोलह श्रृंगार और उनके महत्व

भारतीय साहित्य में सोलह श्रृंगारी (षोडश श्रृंगार) की प्राचीन परंपरा रही हैं. आदि काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों प्रसाधन करते आए हैं और इस कला का यहाँ इतना व्यापक प्रचार था कि प्रसाधक और प्रसाधिकाओं का एक अलग वर्ग ही बन गया था. इनमें से प्राय: सभी श्रृंगारों के दृश्य हमें प्राचीन वास्तु की रेलिंग या द्वार स्तंभों पर अंकित मिलते हैं.

अंगशुची, मंजन, वसन, माँग, महावर, केश.

तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश..

मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध.

अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, माँग भरना, महावर लगाना, बाल सँवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दाँतों में मिस्सी, आँखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना.

प्राचीन संस्कृत साहित्य में षोडश श्रृंगार की गणना अज्ञात प्रतीत होती है. अनुमानतः यह गणना वल्लभदेव की सुभाषितावली (15वीं शती या 12वीं शती) में प्रथम बार आती है. उनके अनुसार वे इस प्रकार हैं—

आदौ मज्जनचीरहारतिलकं नेत्राञ्जनं कुडले,

नासामौक्तिककेशपाशरचना सत्कंचुकं नूपुरौ .

सौगन्ध्य करकङ्कणं चरणयो रागो रणन्मेखला,

ताम्बूलं करदर्पण चतुरता श्रृंगारका षोडण . .

अर्थात् (1) मज्जन, (2) चीर, (3) हार, (4) तिलक, (5) अंजन, (6) कुंडल, (7) नासामुक्ता, (8) केशविन्यास, (9) चोली (कंचुक), (10) नूपुर, (11) अंगराग (सुगंध), (12) कंकण, (13) चरणराग, (14) करधनी, (15) तांबूल तथा (16) करदर्पण (आरसो नामक अंगूठी).

आधुनिक युग के प्रचलित 16 श्रृंगार

1) बिन्दी – सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिन्दुर से अपने ललाट पर लाल बिन्दी

जरूर लगाती है और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.

2) सिंदूर – सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है.

3) नथ – विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने के बाद में देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है.

4) कर्ण फूल – कान में जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जूडे़ में बांधा जाता है.

5) हार – गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है.

6) बाजूबन्द – कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चान्दी का होता है. यह बांहो में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द कहा जाता है.

7) कंगण और चूडिय़ाँ – हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास अपनी बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने दिए थे. पारम्परिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से भरी रहनी चाहिए.

8) अंगूठी – शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने की परम्परा बहुत पुरानी है. अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है.

9) कमरबन्द – कमरबन्द कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है. इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है. कमरबन्द इस बात का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर की स्वामिनी है. कमरबन्द में प्राय: औरतें चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है.

10) बिछुआ – पैरें के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है. पारम्परिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के अलावा स्त्रियां कनिष्ठिका को

छोडकर तीनों उंगलियों में बिछुआ पहनती है.

11) पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है.

12) मांग टीका- सुंदरता में चार चांद लगाता है मांग में टीका.

13) मंगल सूत्र- वधू के गले में वर द्वारा मंगलसूत्र से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है.

14) जूड़ा बंद – कमरबन्द और बाजूबंद की तरह जूड़ाबंद भी सोलह श्रृंगार के अंतर्गत आता है.

15) काजल – काजल आंखों को और गहरा और काला बनाने के लिए लगाया जाता है.

16) उबटन – स्नान के पहले उबटन का बहुत प्रचार था. इसका दूसरा नाम अंगराग है. अनेक प्रकार के चंदन, कालीयक, अगरु और सुगंध मिलाकर इसे बनाते थे. जाड़े और गर्मी में प्रयोग के हेतु यह अलग अलग प्रकार का बनाया जाता था. सुगंध और शीतलता के लिए स्त्री पुरुष दोनों ही इसका प्रयोग करते थे.

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