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संसार में करोड़ों लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। चाहे वे ईश्वर को ठीक से जानते हैं, चाहे नहीं जानते। जैसा भी जानते हैं। फिर भी वे अपने अपने हिसाब से ईश्वर से प्रार्थना अवश्य करते हैं।
जो लोग ईश्वर को ठीक से नहीं जानते, वे अपने स्वार्थ के लिए प्रार्थना करते हैं। फिर चाहे अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हुए दूसरे की हानि हो, विनाश हो , या सर्वनाश हो ; कुछ भी हो। ऐसे लोग ऐसी प्रार्थना करते हैं, कि हे ईश्वर! मेरे सारे शत्रु मर जाएं। मैं सबसे अधिक उन्नति करूं। बाकी सब लोग मेरे नीचे दब कर रहें, मेरे आधीन रहें, इत्यादि।
ऐसी प्रार्थना अच्छी प्रार्थना नहीं है। और न ही ईश्वर ऐसी प्रार्थनाओं को सुनता है। सच्ची प्रार्थना करनी चाहिए।
पहले ईश्वर के सही स्वरूप को जान लेवें।
ईश्वर का सही स्वरूप यह है। ईश्वर एक है, वह सर्वव्यापक है, निराकार है। वह चेतन है। अर्थात न्यायकारी है। आनंद का भंडार है। सब का रक्षक है इत्यादि।
इस प्रकार सेे ईश्वर में हजारों गुण हैं। ऐसे सर्वरक्षक ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। कि हे ईश्वर! आपकी कृपा से सबकी उन्नति हो। सबका भला हो। सभी लोग अच्छे कर्म करें, और सुखी हों। कोई भी पाप कर्म न करे, और आपके न्यायालय में दंड का पात्र न बने। अर्थात दुखी ना हो.
इस तरह से सबके भले की प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसी उत्तम प्रार्थना को आपके पुरुषार्थ के अनुसार ईश्वर सुनता भी है। आपने जो प्रार्थना की। उसके अनुसार सब को सुख देने का प्रयत्न किया। इतना करने पर ईश्वर उन सबको सुख देगा, जिनके लिए अपने पुरुषार्थ किया तथा प्रार्थना भी की। –

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