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चिर परिचित सनातन
धर्म ही हिन्दू धर्म है !

ॐ जयति सनातन !!

सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा
कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

(सभी सुखी होवें,सभी
रोगमुक्त रहें,सभी मंगलमय
घटनाओं के साक्षी बनें और
किसी को भी दुःख का
भागी न बनना पड़े।)

चिर परिचित सनातन
धर्म ही हिंदू धर्म है,,,,,

सनातन धर्म के अनुसार आचरण
करने वाले ही हिन्दू कहे जाते हैं।

भू लोक में जिसे हिन्दू धर्म के नाम
से जाना जाता है,वास्तव में वह चिर
प्राचीन सनातन धर्म ही है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब
इस धर्म की नींव डाली गई,तब इसका
लक्ष्य हिन्दू नहीं बल्कि मानव थे।

सेकड़ों वर्षों तक वनों के एकांत
वातावरण में रहकर उन प्राचीन
ऋषि -वैज्ञानिकों ने गहन
अनुसंधान किया।

इन अनुसंधानों का विषय अथवा
क्षेत्र बाहरी दुनिया न होकर मनुष्य
का मन,ह्रदय अथवा अन्त:करण
होता था।

आज हिन्दू धर्म में हम जो अपार
धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्य
देखते हैं।

वह इन ऋश्रि-मुनियों के अनुसंधानों
की ही बदोलत है।

वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथ,आरण्यक,
संहिताएं,व्याकरण…आदि के रूप में
जो आध्यात्मिक।ज्ञान आज उपलब्ध
है वह इस सनातन धर्म की ही देन है।

हिन्दू धर्म की तुलना हम उस वृक्ष से
कर सकते हैं जिससे उत्पन्न फलों को
खाकर इंसान अमर हो जाता है।

अमरता इस पंचतत्व निर्मित शरीर
की नहीं,बल्कि उस आत्म स्तर को
जान लेना है जो जन्म-मरण से परे है।

उस स्तर को प्राप्त कर लेना जो
ऊंच-नीच,स्त्री-पुरुष,अमीर-गरीब,
जात-पात ….आदि तमाम भेदभावों
से मानव को ऊंचा उठा दे।

वैसे तो हिन्दू धर्म अपनी प्राचीनता,
आध्यात्मिकता,वैज्ञानिकता एवं
व्यापकता के कारण किसी परिभाषा
या व्याख्या की क्षमता से बाहर की
बात है।

मानव अपने वास्तविक रूप
में सर्वसमर्थ,सर्वशक्तिमान,पूर्ण
पवित्र,सर्वज्ञाता एवं सृष्टि का
सर्वश्रेष्ठ सदस्य है।

लेकिन इसके उपरांत भी आज
मानव अपनी असली पहचान को
भूलकर बड़े ही निम्र स्तर की गई
बीती जिंदगी जी रहा है।

जब तक उसकी यह अज्ञानता दूर
नहीं होती वह किसी न किसी प्रकार
के दु:खों से घिरा ही रहेगा।

यही हिन्दू सनातन धर्म का लक्ष्य,
उद्देश्य अथवा एकमात्र प्रयोजन है
कि वह इंसान को उसकी खोई हुई
पहचान फिर से दिला सके।

मानव जीवन के यात्रा को यदि
चार कदमों में बांट दिया जाए तो
वे इस तरह होंगे–

—धर्म से पात्रता का विकास,

—अर्थ से कर्तव्यों का निर्वहन,

—काम से कामनाओं से मुक्ति तथा
अंत में —मोक्ष यानि पूर्ण ज्ञान जो
चिर शान्ति एवं चिर आनंद के स्तर
पर पहुंचा दे।

सनातन धर्म को समझना
आसान नहीं !

सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते
हुए कई बार इसे कठिन और समझने
में मुश्किल धर्म समझा जाता है।

हालांकि,सच्चाई तो ऐसी नहीं है,फिर
भी इसके इतने आयाम,इतने पहलू हैं
कि लोगबाग कई बार इसे लेकर
भ्रमित हो जाते हैं।

सबसे बड़ा कारण इसका यह कि
सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक,
मनीषी या ऋषि के विचारों की
उपज नहीं है।

न ही यह किसी विशेष समय
पैदा हुआ।

यह तो समय-समय पर पैदा हुए
दार्शनिकों और मनीषाओं के विचारों
का संग्रह है।

इसका सतत विकास हुआ।

समय की धारा के साथ ही यह भी
प्रवाहमान और विकासमान रहा।

साथ ही यह किसी एक द्रष्टा,
सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता
नहीं देता।

कोई एक विचार सर्वश्रेष्ठ इसी
वजह से कई सारे पूरक सिद्धांत
भी बने।

यही वजह है कि इसके खुलेपन
की वजह से ही कई अलग नियम
इस धर्म में हैं।

यही विशेषता इसे अधिक ग्राह्य
और सूक्ष्म बनाती है।

इसका मतलब यह है कि अधिक
सरल दिमाग वाले इसे समझने में
भूल कर सकते हैं।

अधिक सूक्ष्म होने के साथ ही
सनातन धर्म को समझने के कई
चरण और प्रक्रियाएं हैं,जो इस
सूक्ष्म सिद्धांत से पैदा होती हैं।

हालांकि इसका मतलब यह नहीं
कि सरल-सहज मस्तिष्क वाले इसे
समझ ही नहीं सकते।

पूरी गहराई में जानने के लिए भले ही
हमें गहन और गतिशील समझदारी
विकसित पड़े,लेकिन सामान्य लोगों
के लिए भी इसके सरल और सहज
सिद्धांत हैं।

सनातन धर्म कई बार भ्रमित
करने वाला लगता है और इसके
कई कारण हैं।

अगर बिना इसके गहन अध्ययन
के आप इसका विश्लेषण करना
चाहेंगे,तो कभी समझ नहीं पाएंगे।

इसका कारण यह कि सनातन धर्म
सीमित आयामों या पहलुओं वाला
धर्म नहीं है।

यह सचमुच ज्ञान का समुद्र है।
इसे समझने के लिए इसमें गहरे
उतरना ही होगा।

सनातन धर्म के विविध आयामों
को नहीं जान पाने की वजह से
ही कई लोगों को लगता है कि
सनातन धर्म के विविध मार्ग
दर्शक ग्रंथों में विरोधाभास
पाते हैं।

इस विरोधाभास का जवाब इसी
से दिया जा सकता है कि ऐसा
केवल सनातन धर्म में नहीं।

कई बार तो विज्ञान में भी ऐसी
बात आती है।

जैसे,विज्ञान हमें बताता है कि
शून्य तापमान पर पानी बर्फ
बन जाता है।

वही विज्ञान हमें यह भी बताता
है कि पानी शून्य डिग्री से भी कम
तापमान पर भी कुछ खास स्थितियों
में अपने मूल स्वरूप में रह सकता है।

इसका जो जवाब है,वही सनातन
धर्म के संदर्भ में भी है।

जैसे, विज्ञान के लिए दोनों ही तथ्य
सही है,भले ही कितूने विरोधाभासी
हों,उसी तरह सनातन धर्म भी अपने
खुलेपन की वजह से कई सारे विरोधी
विचारों को ख़ुद में समेटे रहता है।

हम पहले भी कह चुके हैं-एकं सत,
विप्रा बहुधा वदंति-उसी तरह किसी
एक सत्य के भी कई सारे पहलू हो
सकते हैं।

कुछ ग्रंथ यह कह सकते हैं कि ज्ञान
ही परम तत्व तक पहुंचने का रास्ता
है,कुछ ग्रंथ कह सकते हैं कि भक्ति
ही उस परमात्मा तक पहुंचने का
रास्ता है।

सनातन धर्म में हर उस सत्य या तथ्य
को जगह मिली है,जिनमें तनिक भी
मूल्य और महत्व हो।

इससे भ्रमित होने की ज़रूरत नहीं है।

आप उसी रास्ते को अपनाएं जो आप
के लिए सही और सहज हो।

याद रखें कि एक रास्ता अगर आपके
लिए सही है,तो दूसरे रास्ते या तथ्य
ग़लत हैं।

साथ ही, सनातन धर्म खुद को किसी
दीवार या बंधन में नहीं बांधता है।

ज़रूरी नहीं कि आप जन्म से ही
सनातनी हैं।

सनातन धर्म का ज्ञान जिस तरह
किसी बंधन में नहीं बंधा है,उसी
तरह सनातन धर्म खुद को किसी
देश,भाषा या नस्ल के बंधन में नहीं
बांधता।

सच पूछिए तो युगों से लोग सनातन
धर्म को अपना रहे हैं।

सनातन धर्म से जुड़े जितने भी धर्म
ग्रन्थ है सभी ग्रंथों में एक उपदेश
सामान है जिस पर बहुत अधिक
जोर दिया गया है वो है :-

कर्म,,,

हमारे सभी धर्म ग्रंथो में कर्म को
प्रधान बताया है यहाँ तक धर्म के
पालान हेतु ,प्रचार प्रसार विस्तार
हेतु भी “कर्म” को ही मूल मन गया है।

वेदों का सार श्रीमद भगवत गीता
है जिसमे स्वयं भगवान् श्री कृष्णा
ने कर्म को ही वरीयता दी है।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।

जानिये क्या है हमारा कर्त्तव्य
अर्थात कर्म :-

दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु पाने का
सर्वोत्तम मार्ग साधना है,साधना
अर्थात कर्म।

परमपिता का स्नेह और करुणा
प्राप्त करने का एक मात्र मार्ग
भक्ति है।

भक्ति अर्थात तप-कर्म।

धन की प्राप्ति का मार्ग परिश्रम
है परिश्रम अर्थात सद्कर्म।

ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग गुरु है
गुरु अर्थात पुण्य-कर्म।

विपत्तियों से निकलने का मार्ग
धैर्य एवं साहस का संतुलन है।
संतुलन अर्थात परा-कर्म
(पराक्रम,भुजाओं का श्रम )

मुक्ति प्राप्ति हेतु मार्ग प्रशस्त करने
के लिए इन्द्रियों का संयम ,प्रभु भक्ति,
साधना एवं तप से मिश्रित योग की
आवश्यकता है,योग अर्थात ब्रह्म-कर्म।

सांसारिक सुखों की प्राप्ति हेतु
संघर्ष की आवश्यकता होती है।
संघर्ष अर्थात गृहस्थ-कर्म।

जीत के लिए कौशल की
आवश्यकता होती है।

कौशल अर्थात देह-कर्म।

पिशाचिक शक्तियों के अंत के
लिए यंत्र की आवश्यकता होती
है यंत्र अर्थात तंत्र-कर्म।
(तांत्रिक क्रियाये जो सुचिता से
जुडी हो बलि से नहीं)

मनुष्य,समाज,संसार के नष्ट होने
का कारण अहंकार,अत्याचार होगा
अहंकार अत्याचार अर्थात दुष्ट कर्म।

धर्म के अद्भुत ज्ञान का अनमोल
खजाना भारतीय सनातन धर्म और
संस्कृति को आज निर्विवाद रूप से
प्राचीनतम माना जाता है।

सनातन धर्म और संस्कृति को विश्व
में सर्वाधिक प्राचीन होने का गौरव
और प्रमाण दिलाते हैं ये बहुमूल्य ग्रन्थ।

इन ग्रंथों में समाया हुआ अनमोल
और अद्वितीय ज्ञान विश्व भर में
अनूठा है और अपनी अलग
पहचान रखता है।

वास्तव में ये ग्रंथ ही भारतीय
सनातन धर्म के संवाहक हैं।

इन अद्भुत और विलक्षण ग्रंथों
के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें
इस प्रकार हैं-

वेद- इसका अर्थ है ज्ञान।
ये प्राचीनतम् भारतीय ग्रंथ हैं।
रचनाकाल 7000 साल पुराना है।
संख्या चार हैं।

उपनिषद- वेदों के ज्ञान की विस्तृत
चर्चा (डिटेलिंग) उपनिषदों में है।

इनकी संख्या 108 मानी जाती है।

पुराण- पुराणों का संपादन महर्षि
वेद व्यास ने किया।
प्रमुख पुराण 18 हैं।

रामायण- महर्षि वाल्मीकि ने लिखी।
उपलब्ध कई रामकथाओं में रामायण
एकमात्र ऐसा ग्रंथ है,जिसके लिखने
वाले भगवान राम के समकालीन
माने जाते हैं।

भागवत- महापुराण है।

इसमें भगवान विष्णु
के 24 अवतारों की कथा है।
मुख्य रूप से कृष्ण चरित्र का
वर्णन है।

गीता- गीता महाभारत का हिस्सा है।
18 अध्यायों वाली गीता भगवान
कृष्ण की वाणी है।

महाभारत-कौरवों और पांडवों की
कथा है।
इसे वेद व्यास ने लिखा।
इसमें एक लाख श्लोक माने गए हैं।

रामचरितमानस- इसकी रचना करीब
500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास
जी ने की।

इसमें भगवान राम का जीवन चरित्र है।

फहरती रहे फहरती रहे सनातन
धर्म पताका !

फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका।
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का।।

भगवा रंग पताका लगती हम सबको मनभावन।
भक्ति रस उर में भर देती निर्मल है अति पावन।।
मध्य में अंकित ॐ का दर्शन सारे पाप मिटाता।
फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका।
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का।।

सारी वसुधा एक कुटुंब है ये सन्देश फैलाती।
सत्यमेव जयते की जोत हर ह्रदय में ये है जगाती।।

झुकाती रहे झुकाती रहे शीश हर रावण का।
फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका।
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का।।

कण कण में भगवान बसे हैं सबको है बतलाती।
प्रेम-अहिंसा करुणा का है नैतिक पाठ पद्धति।।

भर्ती रहे भरती रहे मानव में ये नैतिकता।
फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका।
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का।।

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