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त्राटक साधना और चमत्कारिक शक्तियाँ –
किसी वस्तु को जब हम एक बार देखते हैं, तो यह देखने की क्रिया एकटक कहलाती है। उसी वस्तु को जब हम कुछ देर तक देखते हैं, तो द्वाटक कहलाती है। किन्तु जब हम किसी वस्तु को निनिर्मेष दृष्टि से निरंतर दीर्घकाल तक देखते रहते हैं, तो यह क्रिया त्राटक कहलाती है। दृष्टि की शक्ति को जाग्रत करने के लिए हठयोग में इस क्रिया का वर्णन किया गया है।
त्राटक एकटक देखने की विधि है …!
यदि आप लंबे समय तक, कुछ महीनों के लिए, प्रतिदिन एक घंटा ज्योति की लौ को अपलक देखते रहें तो आपकी तीसरी आंख पूरी तरह सक्रिय हो जाती है। आप अधिक प्रकाशपूर्ण, अधिक सजग अनुभव करते हैं।
त्राटक शब्द जिस मूल से आता है उसका अर्थ है: आंसू। तो आपको ज्योति की लौ को तब तक अपलक देखते रहना है जब तक आंखों से आंसू न बहने लगें। एकटक देखते रहें, बिना पलक झपकाए, और आपकी तीसरी आंख सक्रिय होने लगेगी।
एकटक देखने की विधि असल में किसी विषय से संबंधित नहीं है, इसका संबंध देखने मात्र से है। क्योंकि जब आप बिना पलक झपकाए एकटक देखते हैं, तो आप” एकाग्र” हो जाते हैं।
त्राटक ध्यान साधना *
त्राटक से अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं यह आपने कई बार सुना होगा ।
आइये इस बात को और अच्छी तरह समझते हैं ।
त्राटक के अभ्यास के दौरान ऊर्जा आँखों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुचती है ।
यह ऊर्जा मस्तिष्क के उन सुप्त पड़े हिस्सों को जाग्रत कर देती है जो अलौकिक शक्तियों के केंद्र है ।
आपने देखा होगा की जब आप साधारण ध्यान करते हैं तो अधिक थकान महसूस होती है । ध्यान करने के बाद नींद की अवस्था भी महसूस होती है । इसका यह कारण है कि ध्यान के दौरान मस्तिष्क अधिक से अधिक ऊर्जा कर उपयोग करता है ।
नए साधको के मस्तिष्क में यह ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती जिसकी वजह से वह ध्यान नहीं लगा पाते। यहाँ तक की कुछ साधक तो 30 मिनट बिना हिले डुले बैठ भी नहीं सकते ।
इस समस्या का समाधान त्राटक से संभव है । जैसा की मैंने ऊपर कहा कि त्राटक के माध्यम से ऊर्जा मस्तिष्क तक पहुचती है ।
यह ऊर्जा ध्यान लगाने में भी सहायक होती है ।
चूँकि मन का स्वभाव है भटकना। यदि आप बिलकुल एकटक देख रहे हैं, जरा भी हिले-डुले बिना, तो मन अवश्य ही मुश्किल में पड़ जाएगा। मन का स्वभाव है एक विषय से दूसरे विषय पर भटकने का, निरंतर भटकते रहने का। यदि आप अंधेरे को, प्रकाश को या किसी भी चीज को एकटक देख रहे हैं, यदि आप बिलकुल “एकाग्र” हैं, तो मन का भटकाव रुक जाता है। क्योंकि यदि मन भटकेगा तो आपकी दृष्टि “एकाग्र” नहीं रह पाएगी और आप विषय को चूकते रहेंगे। जब मन कहीं और चला जाएगा तो आप भूल जाएंगे, आप स्मरण नहीं रख पाएंगे कि आप क्या देख रहे थे। भौतिक रूप से विषय वहीं होगा, लेकिन आपके लिए वह विलीन हो चुका होगा, क्योंकि आप वहां नहीं हैं–आप विचारों में भटक गए हैं।
वास्तविक रूप से त्राटक का अर्थ है–अपनी चेतना को भटकने न देना। और जब आप मन को भटकने नहीं देते तो शुरू में वह संघर्ष करता है, कड़ा संघर्ष करता है, लेकिन यदि आप एकटक देखने का अभ्यास करते ही रहे तो धीरे-धीरे मन संघर्ष करना छोड़ देता है। कुछ क्षणों के लिए वह ठहर जाता है। और जब मन ठहर जाता है तो वहां अ-मन है, क्योंकि मन का अस्तित्व केवल गति में ही बना रह सकता है, विचार-प्रक्रिया केवल गति में ही बनी रह सकती है। जब कोई गति नहीं होती, तो विचार-प्रक्रिया खो जाती है, आप सोच-विचार नहीं कर सकते। क्योंकि विचार का मतलब है गति–एक विचार से दूसरे विचार की ओर गति। यह एक प्रक्रिया है।
यदि आप निरंतर एक ही चीज को एकटक देखते रहें, पूर्ण सजगता और होश से…क्योंकि आप मृतवत आंखों से भी एकटक देख सकते हैं, तब आप विचार करते रह सकते हैं–केवल आंखें, मृत आंखें, देखती हुई नहीं। मुर्दे जैसी आंखों से भी आप देख सकते हैं, लेकिन तब आपका मन चलता रहेगा। इस तरह से देखने से कुछ भी नहीं होगा।
त्राटक का अर्थ है–केवल आपकी आंखें ही नहीं बल्कि आपका पूरा अस्तित्व आंखों के द्वारा एकाग्र हो। तो कुछ भी विषय हो–यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आपको प्रकाश अच्छा लगता है, ठीक है; यदि आपको अंधेरा अच्छा लगता है, ठीक है। विषय कुछ भी हो, गहरे में यह बात गौण है, असली बात है मन को एक जगह रोकने का, उसे “एकाग्र” करने का, जिससे कि भीतरी गतियां, भीतरी कुलबुलाहट रुक सके, भीतरी कंपन रुक सके।

         

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