मित्र
किसी भी व्यक्ति के जीवन को सफल और खुशनुमा बनाने में कुछ विशेष लोगों की भूमिका होती है। ऐसे लोगों में परिवार से भी सदस्य हो सकता है और परिवार के बाहर से भी। सच्चे मित्र इस सूची में सबसे ऊपर होते हैं। सच्चे मित्रों का मिल जाना अपने आप में बहुत भाग्यशाली है।
सच्चे मित्र की कुछ विशेषताएं होती हैं जिन पर चर्चा करना अपेक्षित है--
1- जो मित्र पीठ पीछे आपकी बुराई नहीं करते–
सच्चे मित्र वे हैं जो आपके साथ कोई नाटक नहीं करते, कोई छल-फरेब नहीं करते और आपकी पीठ पीछे कभी बुराई भी नहीं करते। जो आपकी पीठ पीछे बुराई करता और सामने झूठी प्रशंसा–वह मित्र पहले तो मित्र ही नहीं है, मित्र के नाम पर दिखावा है, एक छलावा है। वह तत्काल त्याग किये जाने योग्य है।
2- जो व्यक्ति आपको कभी भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करता–
मनुष्य के जीवन में ईर्ष्या-द्वेष, जलन आदि का बहुत बड़ा हाथ रहता है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। दूसरे को अपने से उच्च, श्रेष्ठ देखकर, उसकी उन्नति को देखकर मित्र के मन में यदि ईर्ष्या, द्वेष, या जलन की भावना उत्पन्न हो जाती है तो वह मित्र नहीं है, मित्र के नाम पर धोखा है। उससे बचकर रहना ही श्रेयस्कर है।
3- सच्चा मित्र बेवजह आपसे अप्रिय बहस नहीं करता..
आप जैसे हैं, उसी रूप में सच्चा मित्र आपको स्वीकार कर लेता है, बुराई और अच्छाई सभी में होती है। अगर मनुष्य में केवल अच्छाई ही अच्छाई हो, बुराई न हो तो वह देवता की श्रेणी में रखा जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है, मनुष्य अच्छाइयों और बुराइयों का मिश्रण होता है। सच्चा मित्र बुराइयों को सुधारने में सदा मदद करता है और अच्छाइयों को प्रोत्साहित करता रहता है।
4- सच्चा मित्र आपकी बातों को सुनता अधिक है और अपनी कम कहता है–
हर सच्चा मित्र दूसरे को सुनता अधिक है अपनी बातों को सुनाने की जुगाड़ में कम रहता है। वह जानता-समझता है कि जीवन में मित्रता अमूल्य वस्तु होती है, उसे हर मूल्य पर बचाये रखना है।
5–सच्चा मित्र कभी आपको हतोत्साहित नहीं करेगा..
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ लक्ष्य होते हैं, कुछ ध्येय होते हैं जो पूरे किए जाने होते हैं। सच्चा मित्र अपने मित्र को उसके ध्येय को प्राप्त करने में हतोत्साहित नहीं करता।
6- सच्चा मित्र अतीत की कटु स्मृतियों की बात नहीं करता..
मनुष्य जीवन में कभी न कभी भूल करता है, गलती करता है। उसके जीवन का कुछ अंश अप्रिय घटनाओं से भरा हो सकता है जिसकी वह न तो स्वयं चर्चा करना चाहता है और न वह यह चाहता है कि कोई दूसरा उसके जीवन की उन घटनाओं की चर्चा करे।
7- सच्चा मित्र वह है जो संकटों में कभी साथ नही छोड़ता..
जीवन सुख-दुःख, शान्ति-अशान्ति और सफलता-असफलता का मिश्रण होता है। हर मनुष्य के जीवन में कभी न कभी दुःख, कष्ट, क्लेश आते ही आते हैं, सच्चा मित्र हर क्षण ऐसे अवसर पर साथ खड़ा मिलेगा। वह संकटों में अपने साथी का साथ नहीं छोड़ता है।
अब आइए कुछ मूलभूत और गहन बातों पर विचार करें जिनके बिना उस रहस्य को समझ न सकेंगे जो सच्चे #प्रेमी और सच्चे #मित्र की पहचान कराते हैं–
सैकड़ों हज़ारों वर्षों से मनुष्य ने जीवन का आधार बना लिया है #मस्तिष्क को। सोचना-विचारना जीवन का एकमात्र आधार बन गया है। विचित्र बात है। धर्म कहता है–सोचना-विचारना जीवन का आधार नहीं, बल्कि सोचने-विचारने से मुक्त हो जाना अर्थात निर्विचार हो जाना जीवन का आधार है। लेकिन हम हैं कि सोच-विचार में ही जीते हैं और जीवन का मार्ग निर्दिष्ट करने का प्रयास करते हैं।
वास्तव में हम मार्ग से भटक गए हैं। सोचने-विचारने से भोजन नहीं पचता, नस-नाड़ियों में खून नहीं बहता, हृदय नहीं धड़कता, श्वास नहीं चलती। कहने की आवश्यकता नहीं कि जीवन की कोई भी महत्वपूर्ण क्रिया हमारे सोचने-विचारने से सम्बंधित नहीं है। यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो जीवन की समस्त क्रियाएं हमारे सोचने-विचारने से अवरुद्ध हो जाती हैं, कुंठित हो जाती हैं।
गर्भावस्था में शिशु की नाभि और माता की नाभि के मध्य एक विशेष प्रकार की विद्युतधारा प्रवाहित रहती है। वह विद्युतधारा क्या है ? आज तक कोई समझ न सका है। समझने का प्रयास भी किया गया है तो असफलता ही हाथ लगी है।
अपने जीवन में वह शिशु जब भी किसी ऐसी स्त्री के निकट पहुंचेगा जिसमें वैसी ही विद्युतधारा प्रवाहित हो रही होती है, जैसी उसकी माँ से प्रवाहित होती थी तो बिल्कुल अनजाने में ही एक ऐसे सम्बन्ध से जुड़ जाएगा जो उसकी समझ से परे होगा। उसकी यह समझ में ही नहीं आएगा कि उस स्त्री के साथ कौन-से सम्बन्ध के बन्धन में बंधता जा रहा है वह ? वह सम्बन्ध क्या है ? वह नाता-रिश्ता कैसा है ? कौन-सी वह वस्तु है जो दोनों को एक दूसरे से बांधती जा रही है ? सच पूछा जाए तो उस अनजाने और अनदेखे सम्बन्ध का नाम ही #प्रेम है। उसे हम #प्रेम कहते हैं। यह हमारी समझ में नहीं आता। यह हमारी पहचान में भी नहीं आता। इसलिए हम उसे अंधा कह देते हैं। निश्चय ही #प्रेम #अंधा #होता #है–इसमें संदेह नहीं।
प्रेम का तल अत्यंत गहरा है। हमारे लिए यह समझना कठिन है कि प्रेम क्यों उत्पन्न होता है ? क्या कारण है प्रेम के उत्पन्न होने का ? दो लोगों के बीच अचानक आकर्षण उत्पन्न हो जाता तो कभी दो लोगों के बीच विकर्षण उत्पन्न हो जाता है लेकिन उन दोनों को यह समझ में नहीं आता कि दोनों एक दूसरे से क्यों हटना चाहते हैं ? दूर हटने का क्या कारण है ? किसी को समझ में नहीं आता।
इसी प्रकार दो लोगों के बीच एकाएक तीव्र गति से आकर्षण उत्पन्न होता है। उस आकर्षण का कारण भी समझ में नहीं आता है। दोनों एक दूसरे के प्रति क्यों आकर्षित हो रहे हैं ? इसका उत्तर खोजने पर भी नहीं मिलता दोनों को।
नाभि को प्रभावित करने वाली जो अज्ञात और रहस्यमयी विद्युतधारा यदि #सजातीय है तो दोनों में अपने आप बिना किसी कारण के एक दूसरे के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो जाएगा। वह आकर्षण स्वाभाविक और नैसर्गिक होगा और जिसके गर्भ से शुद्ध प्रेम का जन्म होगा जिसमें न कामना रहती है और न रहती है कोई वासना ही। निश्चय ही वह शरीर के तल का नहीं, #आत्मा #के #तल #का #होता #है। वह रहस्यमयी धारा यदि सजातीय नहीं है, विरोधाभासी है तो दो के बीच भयंकर विकर्षण उत्पन्न होगा। प्रेम की बात तो छोड़िए, जो जन्म लेगी, वह होगी वासना, जिसे हम वासनाजन्य प्रेम भी कह सकते हैं जिसका परिणाम होगा–कलह, अशान्ति, क्लेश और विद्रोह का भाव।
मनुष्य के जीवन में तीन प्रकार के सम्बन्ध होते हैं–#बुद्धि के सम्बन्ध जो बहुत गहरे नहीं होते, बुद्धि के स्वार्थी होने से उसके सम्बन्ध शीघ्र टूट जाते हैं। प्रेम के सम्बन्ध जो बुद्धि से अधिक गहरे होते हैं, #हृदय के होते हैं। हृदय के सम्बन्ध में माता-पुत्र में, पति-पत्नी में इसी प्रकार के सम्बन्ध होते हैं जो हृदय से उठते हैं। इन सबसे अधिक गहरे सम्बन्ध होते हैं जो #नाभि से उठते हैं। नाभि से उठने वाले सम्बन्ध को हम #मित्रता कहते हैं। मैत्री या मित्रता प्रेम से भी अधिक गहरी होती है। प्रेम कभी भी टूट सकता है। लेकिन मित्रता किसी भी स्थिति में, किसी भी अवस्था में टूट नहीं सकती। आज जिसे हम प्रेम कहते हैं, कल उससे हम घृणा भी कर सकते हैं। लेकिन जो सच्चा मित्र है, वह कभी भी शत्रु नहीं हो सकता। मित्रता का सम्बन्ध नाभि से है जो सर्वाधिक गहरा है। इसलिए भगवान बुद्ध ने कभी भी अपने शिष्यों से यह नहीं कहा कि #प्रेम #करो, बल्कि यह कहा–#मैत्री #होनी #चाहिए, #मैत्री #करो। मित्रता प्रेम से भी अधिक गहरी है। प्रेम भंग हो सकता है, लेकिन मैत्री नहीं। प्रेम बांधता है, लेकिन मैत्री मुक्त करती है। यदि मित्रता किसी भी प्रकार से टूट जाय तो समझ लेना कि मित्रता थी ही नहीं।
एक व्यक्ति के हज़ारों मित्र हो सकते हैं, क्योंकि मित्रता बड़ी व्यापक और गहरी अनुभूति है। मित्रता हमें परमात्मा की ओर ले जाती है जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण मार्ग है। प्रेमी की पहली शर्त होती है कि जिससे वह प्रेम करे, उससे कोई और प्रेम न करे। केवल वही प्रेम करे, कोई दूसरा नहीं। प्रेम हमें सीमित और संकुचित करता है, बांधता है, जबकि मित्रता हमें असीम बनाती है, बन्धन मुक्त करती है। सच्चे मित्र का यही गुण होता है कि वह हमें भी असीम बनने के लिए प्रेरित करता है। हमें विराट बनने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।