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“नवधा भक्ति” :

“नवधा भगति” कहउं तोहि पाहीं।
सावधान सुनु धरू मन माहीं।।

“नवधा” भगति – नवधा (नौ +विधा)अर्थात् भक्ति को नौ भागों में विभक्त किया गया है और गृहस्थ तथा संन्यासी के लिए इसके भी भिन्न रूप हैं। तो आइए पहले इस पर विचार करते हैं कि –
“भक्ति” है क्या???

कई लोग भक्ति और ज्ञान में तुलना करते हैं कोई ज्ञान को श्रेष्ठ कहता है तो कोई भक्ति को, तो कोई दोनों को सम भाव से देखते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि भक्ति को ज्ञान से तुलना ही करना गलत है क्योंकि….
भगति तात “अनुपम” सुख मूला।
अनुपम अर्थात् जिसकी कोई तुलना न हो ।
और ज्ञान?
“ग्यान बिराग नयन उरगारी”
ज्ञान और वैराज्ञ दोनों दो नेत्र हैं।
अर्थात् ज्ञान की तुलना है ,
और वह भी वैराज्ञ से।
इसलिए श्रीराम जी लक्ष्मण जी से कहते हैं कि…
भगति तात अनुपम सुख मूला।
और हो भी क्यों नहीं क्योंकि जो परम स्वतंत्र हैं…
“परम स्वतंत्र न सिर पर कोई”
उन्हें ये भक्ति अपने वश में कर लेती है (भगति अबसहिं बस करि)।
तो भला जो परम ब्रह्म परमेश्वर को भी अपने वश में कर ले उसे किसी से तुलना करना बुद्धिमानी है क्या??
भगति तात “अनुपम” सुख मूला।
“सो सुतंत्र अवलंब न आना”!!!
भक्ति को अवलंब अर्थात् सहारे की आवश्यकता नहीं है बल्कि ज्ञान को अवलंब चाहिए …. ग्यान कि होइ बिराग बिनु।

भक्ति क्या है?
सच्चाई यह है कि अनेकों धर्मशास्त्रों में भक्ति की जितनी भी परिभाषा दी गई है वह भक्ति के कसौटी पर पूर्ण नहीं हैं।
क्योंकि भक्त वृन्दा जैसे भी होते हैं (यद्यपि वृन्दा श्री हरि को श्राप देती है, वह जितने क्रोधित होती है प्रभु उस पर उतना ही प्रसन्न होते हैं।
पुण्डलीक यह जानते हुए भी कि ये साक्षात् प्रभु आए हैं फिर भी वह अपने माता पिता के सेवा करने तक उन्हें ईंट पर खड़े रहने को कहते हैं। इन दोनों ने न प्रणाम किया और न भजन किया फिर भी भक्त हैं कि नहीं???
इसलिए भक्ति प्रेम रूप के बंधन से भी मुक्त है (भक्ति तु अस्मिन प्रेमरूपा)।
तो फिर भक्ति है क्या?
श्रीराम जी कहते हैं कि भक्ति मुझे तत्काल द्रवित करने , अनुकूल करने, प्रसन्न करने का अचूक , अनुपम साधन है।
“जिसे करने से प्रभु श्रीराम जी द्रवित होते हैं वह भक्ति है”।
इस साधन को वृन्दा भी प्राप्त कर सकती है तो पुण्डलीक भी, चांडाल पक्षी कौवा भी आदि आदि।
वृन्दा के पति भक्ति, पुण्डलीक के मातृ पितृ भक्ति, तो किसी की गुरु भक्ति भी ईश्वर को द्रवित करते हैं।
“नवधा भगति” कहउं तोहि पाहीं।
यहां श्रीराम जी द्वारा कही गई नौ प्रकार की भक्ति की विशेषता है कि ये नौ के नौ पूर्ण स्वतंत्र हैं और किसी एक को भी आत्मसात कर हम संसृति सागर से पार हो सकते हैं….
शुभ संध्या
जय सियाराम जय जय सियाराम
वंदे गौ मातरम्

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