🌻जय माँ भगवती 🌻
विनियोग क्या है?
वास्तव मे तंत्र विनियोग एक गम्भीर विषय है ।तंत्र का मूल स्रोत वेद है ।ऋग्वेद यजुर्वेद और सामवेद ।इन तीनो वेदो मे क्रमशः तीन तंत्रो का आविर्भाव हुआ है ।ऋग्वेद से शाक्त तंत्र, यजुर्वेद से शैव तंत्र और सामवेद से वैष्णव तंत्र ।कालांतर मे प्रत्येक तंत्र से सोलह सोलह शाखाये प्रादुर्भूत हुई ।इस प्रकार कुल 64 तंत्र है ।प्रत्येक तंत्र की अधिष्ठाती को योगिनी कहते ।इस प्रकार 64 योगिनी है ।जिनका साधना मे विशेष महत्व और कार्य है ।महाकाली महालक्ष्मी और महासरस्ती का सम्बन्ध क्रमशः ऋग्वेद यजुर्वेद और सामवेद से है ।तीनो वेद तीनो महाशक्तियो के स्वरूप है ।शाक्त तंत्र शैव तंत्र और वैष्णव तंत्र उन तीनो स्वरूप की अभिव्यक्ति है इस प्रकार दुर्गा सप्तशती के तीनो चरित्र तीनो वेदो का प्रतिनिधित्व करते है ।
प्रत्येक देवी का अपना वेद स्वरूप, अपना छंद और अपनी शक्ति का नाम, अपना तत्व और अपना बीज है इनके संयोजन को विनियोग कहते है ।उन सबका समन्वय स्वरूप ही उनका अपना अपना विनियोग है वास्तव मे दुर्गा सप्तशती अद्भुत ग्रंथ है ।इसकी मूलभित्ति और उनमे निसृत होने वाले तंत्र का आश्रय लेकर सात सौ स्लोको की रचना की गयी जो अपने आप मे एक एक मंत्र स्वयं सिद्ध है ।इन स्लोको का अपना अलग अलग बीज मंत्र है ।जिसको जानना अत्यंत दुर्लभ है
निवेदन —ग्रहस्थ साधक को जादा गहराई मे नही जानना चाहिए ।
यदि ग्रहस्थ साधक शारदीय नवरात्र से प्रारंभ वासंतीय नवरात्र तक रात्रि के समय नियमित ध्यान विनियोग कै साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ करे तो सबकुछ संभव है ।