पेट के कीड़ों को खत्म करने हेतु:-
सेंधानमक 50 ग्राम।
हरड़ का छिलका 50 ग्राम।
वायबड़िंग 50 ग्राम।
कमीला 30 ग्राम।
सभी को कूटकर चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रखलें।
मात्रा: — 5-5 ग्राम गाय के दूध की लस्सी से लेवें।
बचों को आधी मात्रा देवें।
5 दिन सेवन करे।
[प्रवाल पिष्टी के गुण और उपयोग :
★🥀 प्रवाल पिष्टी प्रवाल से बनायी जाने वाली दवा है, प्रवाल को आम बोलचाल में मूँगा के नाम से जाना जाता है, अंग्रेज़ी में इसे Coral Calcium कहते हैं|
★🍂 इसके इस्तेमाल से शरीर से कहीं से भी खून बहने, कैल्शियम की कमी, सुखी खांसी, कमज़ोरी, सर दर्द, जलन, एसिडिटी, गैस्ट्रिक, अल्सर, अल्सरेटिव कोलाइटिस, हेपेटाइटिस, जौंडिस, आँखों का लाल होना और पेशाब की जलन जैसे रोग दूर होते हैं |
★ 🌾आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्रवाल पिष्टी का उपयोग उसके चिकित्सीय लाभ और औषधीय मूल्य के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालांकि, आयुर्वेद में मूंगा कैल्शियम चूर्ण का सीधे उपयोग नहीं किया जाता है। मूंगा कैल्शियम चूर्ण को खाने योग्य गुलाब जल के साथ संसाधित किया जाता है और खरल करके महीन चूर्ण बनाया जाता है। जब मूंगा चूर्ण को गुलाब जल के साथ संसाधित किया जाता है तो उसे प्रवाल पिष्टी कहते हैं।
★ 🌸प्रवाल पिष्टी और प्रवाल भस्म रक्तस्राव विकारों, कैल्शियम की कमी, सूखी खांसी, सामान्य दुर्बलता, जलन के साथ सिरदर्द, अम्लता, जठरशोथ, व्रण, सव्रण बृहदांत्रशोथ, हेपेटाइटिस या पीलिया, खट्टी उल्टी, नेत्रश्लेष्मलाशोथ (लाल आँखें) और पेशाब में जलन में लाभदायक है।
🍂प्रवाल पिष्टी के औषधीय गुण
🥀प्रवाल पिष्टी (मूंगा कैल्शियम) में निम्नलिखित उपचार के गुण हैं।
१🍃. दाहक विरोधी (इसका प्रभाव यकृतशोथ में अधिक दिखाई देता है)
२. 🍃गठिया नाशक (प्राकृतिक कैल्शियम पूरक के रूप में)
३.🍃 पाचन उत्तेजक (जब यह अम्लता के साथ आता है)
४.🍃अम्लत्वनाशक (पेट में अम्ल उत्पादन कम कर देता है)
५.🍃 ज्वरनाशक (प्रभाव एसिटामिनोफेन के समान हैं)
🌾आयुर्वेदिक गुण :
🍃तासीर –शीत
🥀विकारों पर प्रभाव- तीनों दोषों को शांत करता हैं – वात दोष (Vata Dosha), पित्त दोष (Pitta Dosha) और कफ दोष (Kapha Dosha)
🌹प्रवाल पिष्टी के स्वास्थ्य लाभ /फायदे :
★ 🌾शरीर की गर्मी या जलन : प्रवाल पिष्टी या मूंगा कैल्शियम उन लोगों के लिए लाभदायक है जो शरीर के किसी हिस्से या पूरे शरीर में जलन या गर्मी का अनुभव करते हैं।
★ 🌾शीतलता : यह शरीर की गर्मी को कम करता है और ज्वर में बढ़े हुए तापमान को कम करता है। ज्वर में, यह एसिटामिनोफेन के समान काम करता है। यह मस्तिष्क में तापमान केंद्र पर कार्य करके ज्वर काम करता है और शरीर में शीतलता लाता है। इसकी स्वाभाविक प्रकृति शीतल है, जिसका अर्थ है की इसको खाने के बाद यह शरीर में शीतलता लाता है।
★ 🌼बुखार : बुखार में इसके इस्तेमाल से अच्छा लाभ मिलता है, बुखार में इसे गोदंती भस्म के साथ लेना चाहिए. यह बॉडी Temperature को कम करता है और कमज़ोरी नहीं होने देता |
★ 🌸कमज़ोरी : पुरानी बीमारी के बाद कमजोरी और थकावट दूर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है
★ 🌾हड्डियों की कमजोरी : प्रवाल पिष्टी हड्डियों की कमजोरी के उपचार के लिए आवश्यक खनिजों का एक प्राकृतिक स्रोत है। प्रवाल में कैल्शियम की अत्यधिक जैव उपलब्धता है। इसमें कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) के अलावा मैग्नीशियम और अन्य आवश्यक खनिज होते हैं, जो हड्डियों के गठन में मदद करते हैं
★ 🌷इसके प्रयोग से सामान्य कमज़ोरी, डिप्रेशन, तनाव, चिंता, बेचैनी, दिल का ज़्यादा धड़कना, सुखी, खाँसी, अल्सर, अल्सरेटिव कोलाइटिस, ब्लीडिंग पाइल्स, हड्डियों की कमज़ोरी, Osteoporosis, पेशाब की जलन, बॉडी की जलन, पीरियड के दर्द, Heavy Menstrual Bleeding जैसे रोगों में दूसरी दवाओं के साथ इस्तेमाल किया जाता है
🌹प्रवाल पिष्टी के चिकित्सीय उपयोग :
प्रवाल पिष्टी (मूंगा कैल्शियम) स्वास्थ्य की निम्नलिखित स्थितियों में लाभदायक है।
• 🍂कैल्शियम की कमी
🍂• ज्वर
•🍂 सामान्य दुर्बलता
•🍂 अवसाद
•🍂🍂🍂 बेचैनी और चिंता के साथ व्यग्रता
• 🍂ह्रदय में घबराहट
• 🍂हृदक्षिपता
• 🍂सूखी खाँसी
•🍂 बाल झड़ना
• 🍂त्वचा में जलन या गर्मी की सनसनी
• 🍂सूर्या अनावरण के बाद त्वचा में चुभन
•🍂 सूर्यदाह
• 🍂रजोनिवृत्ति के बाद ऑस्टियोपोरोसिस रोकथाम
•🍂 गर्भाशय से अत्यधिक रक्तस्राव
•🍂 मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्राव
•🍂 कष्टदायक मासिक धर्म अवधियां (विशेषकर झिल्लीदार डाइस्मानोरेरा)
• 🍂स्तन मृदुता
• 🍂अल्पशुक्राणुता (अगर व्यक्ति अम्लता और जलन का सामना कर रहा है, अन्यथा यह काम नहीं करेगा।)
• 🍂खांसते समय बलगम ना निकलने की कठिनाई वाला दमा
• 🍂अम्लता
•🍂 व्रण
🍂🍂• सव्रण बृहदांत्रशोथ
🍂• गुदा विदर
• 🍂रक्त बहने वाला बवासीर
•🍂🍂 कैल्शियम पूरक
•🍂 अस्थिसंधिशोथ
• 🍂ऑस्टियोपोरोसिस
• 🍂निम्न अस्थि खनिज घनत्व
• 🍂समयपूर्व बालों का सफ़ेद होना
🌺प्रवाल पिष्टी सेवन विधि :
प्रवाल पिष्टी की खुराक दिन में दो या तीन बार 125 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम तक है। प्रवाल पिष्टी की अधिकतम खुराक प्रति दिन 2500 मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।
🌺सावधानी और दुष्प्रभाव :
★🥀 विपरीत संकेत – रक्त में बढ़ा हुआ कैल्शियम स्तर प्रवाल पिष्टी या मूंगा कैल्शियम का प्रमुख विपरीत संकेत है।
★ 🥀औषधियों से परस्पर क्रिया – यह कुछ औषधियों के साथ क्रिया कर सकता है, इसलिए यदि आप कोई औषधि पहले से ही ले रहे हैं तो इसका उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
★🥀 गर्भावस्था (praval pishti in pregnancy)और स्तनपान- आयुर्वेदिक चिकित्सक नियमित रूप से संसाधित मूंगा कैल्शियम या प्रवाल पिष्टी का उपयोग गर्भावस्था और स्तनपान में करते हैं। यह चिकित्सीय देखरेख में संभवतः सुरक्षित है।
★ 🥀इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
: 🥀🥀तोरई (Luffa Acutangula) के विभिन्न भाषाओं के नाम
💐हिन्दी- तोरई, तरोई, तोरी, झिंगा । संस्कृतं- घामार्गव, राजकोशातकी, धाराफल । तमिल- दोड़की, शिराली । गुजराती- तुरिया । बंगला- घोषालता । अंग्रेजी- रिब्डलूफा (Ribbed luffa), टाबेलगार्ड (Towel gourd) । लेटिन- लूफा, एक्युटेंगुला (Luffa Acutangula) ।
🌹तोरई के औषधीय गुण और उपयोग :
✥ यह मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य, पित्तशामक, कफवात-वर्द्धक, हृद्य, मृदुरेचन, दीपन, मूत्रल, कृमिनाशक, रक्तपित्त, ज्वर, कुष्ठादि-विकारों में पथ्यकर व उपयोगी है।
✥ उष्ण प्रकृति वालों को एवं पित्तजव्याधियों में, तथा सुजाक, श्वास, रक्तमूत्र, अर्श आदि में इसका शाक विशेष पथ्यकर एवं हितकर है।
✥ घिया तोरई की अपेक्षा यह शीघ्र-पाकी होती है।
✥ शाक बनाते समय इसके ऊपर का मुलायम छिल्का नहीं निकालना चाहिये तथा वाष्प पर उबाल कर इसे बनाना अत्यन्त उत्तम होता है।
🌻तोरई के फायदे इन हिंदी :
1-🌾पथरी में तोरई के फायदे :
तोरई की बेल के मूल को गाय के दूध या ठण्डे पानी में घिसकर प्रतिदिन सुबह को 3 दिन तक पीने से पथरी मिटती है।
2🌹-बद की गाँठ में तोरई के फायदे :
तोरई की बेल के मूल को ठण्डे पानी में घिसकर ‘बद’ पर लगाने से 4 प्रहर में बद की गाँठ दूर हो जाती है।
3-🌻गर्मी के चकत्ते तोरई के फायदे :
तोरई की बेल के मूल को गाय के मक्खन में अथवा एरण्ड तेल में घिसकर 2-3 बार चुपड़ने से गर्मी के कारण बगल अथवा जाँघ के मोड़ में पड़ने वाले चकत्ते मिटते हैं।
4-💐बबासीर में तोरई के फायदे :
✦तोरई बबासीर को ठीक करती है । इसकी सब्जी खाएँ क्योंकि यह कब्ज दूर करती है।स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप
✦कडवी तोरई को उबाल कर उसके पानी में बैंगन को पका लें। बैंगन को घी में भूनकर गुड़ के साथ भर पेट खाने से दर्द तथा पीड़ा युक्त मस्से झड़ जाते हैं।
5🍂-पेशाब की जलन में तोरई के फायदे :
इस कष्ट को तोरई ठीक करती है और पेशाब खुलकर लाती है।
6- अरूंषिका (वराही) में तोरई के फायदे :
कड़ती तोरई, चित्रक की जड़ और दन्ती की जड़ को एक साथ पीसकर तेल में पका लें, फिर अब इस तेल को सिर में लगाने से अरुंषिका रोग खत्म हो जाता है।
7-🌼 योनिकंद (योनिरोग) में तोरई के फायदे :
कड़वी तोरई के रस में दही का खट्टा पानी मिलाकर पीने से योनिकंद के रोग में लाभ मिलता हैं।
8-🍃 गठिया (घुटनों के दर्द में) रोग में तोरई के फायदे :
पालक, मेथी, तोरई, टिण्डा, परवल आदि सब्जियों का सेवन करने से घुटने का दर्द दूर होता है। स्नेहा समूह
9-🌻 पीलिया में तोरई के फायदे :
कड़वी तोरई का रस दो-तीन बूंद नाक में डालने से नाक द्वारा पीले रंग का पानी झड़ने लगेगा और एक ही दिन में पीलिया नष्ट हो जाएगा।
10-🌹 कुष्ठ (कोढ़) में तोरई के फायदे :
✦तोरई के पत्तों को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को कुष्ठ पर लगाने से लाभ मिलने लगता है।
✦ तोरई के बीजों को पीसकर कुष्ठ पर लगाने से यह रोग ठीक हो जाता है।
11- 🌸गले के रोग में तोरई के फायदे :
कड़वी तोरई को तम्बाकू की तरह चिल्म में भरकर उसका धुंआ गले में लेने से गले की सूजन दूर होती है।
12- 🌺बालों को काला करना में तोरई के फायदे :
तुरई के टुकड़ों को छाया में सुखाकर कूट लें। इसके बाद इसे नारियल के तेल में मिलाकर 4 दिन तक रखे और फिर इसे उबालें और छानकर बोतल में भर लें। इस तेल को बालों पर लगाने और इससे सिर की मालिश करने से बाल काले हो जाते हैं।
13🌼- फोड़े की गांठ में तोरई के फायदे :
तोरई की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर फोड़ें की गांठ पर लगाने से 1 दिन में फोड़ें की गांठ खत्म होने लगता है।
14- 🌹आंखों के रोहे तथा फूले में तोरई के फायदे :
आंखों में रोहे (पोथकी) हो जाने पर तोरई (झिगनी) के ताजे पत्तों का रस को निकालकर रोजाना 2 से 3 बूंद दिन में 3 से 4 बार आंखों में डालने से लाभ मिलता है।
🥀तोरई के नुकसान : t
✱ तोरई कफकारक और वातल है । वर्षा ऋतु में यदि इसका अत्यधिक सेवन किया जाए तो वायु प्रकोप होने में देर नहीं लगती ।स्नेहा समूह
✱तोरई पचने में भारी और आमकारक है । अतः वर्षा ऋतु में तोरई का साग रोगी व्यक्तियों के लिए हितकारी नहीं है। वर्षा ऋतु का सस्ता साग बीमारों को कदापि न खिलाएँ।