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प्रियजनों,

        योग, साधना में चौदह प्रकार के विघ्न ऋषि पतंजलि जी ने अपने योगसूत्र में बताये हैं भगवन श्री रामचंद्रजी के 14 वर्ष का वनवास इन्हीं 14 विघ्नों को दूर करने का सूचक है. वे 14 विघ्न इस प्रकार हैं :---- 1. व्याधि :- शरीर एवं इन्द्रियों में किसी प्रकार का रोग उत्मन्न हो जाना. 2. स्त्यान :- सत्कर्म/साधना के प्रति होने वाली ढिलाई, अप्रीति, जी चुराना. 3. संशय :- अपनी शक्ति या योग प्राप्ति में संदेह उत्पन्न होना. 4.प्रमाद :- योग साधना में लापरवाही बरतना 5. आलस्य :- शरीर व मन में एक प्रकार का भारीपन आ जाने से योग साधना नहीं कर पाना. 6. अविरति :- वैराग्य की भावना को छोड़कर सांसारिक विषयों की ओर पुनः भागना. 7. भ्रान्ति दर्शन- :- योग साधना को ठीक से नहीं समझना, विपरीत अर्थ समझना. सत्य को असत्य और असत्य को सत्य समझ लेना. 8. अलब्धभूमिकत्व :- योग के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होना. योगाभ्यास के बावजूद भी साधना में विकास नहीं दिखता है । इससे उत्साह कम हो जाता है । 9. अनवस्थितत्व :- चित्त की विशेष स्थिति बन जाने पर भी उसमें स्थिर नहीं होना. दु:ख-दौर्मनस्य-अङ्गमेजयत्व-श्वास-प्रश्वासा विक्षेप सह्भुवः । प. योगसूत्र, समाधि पाद, सूत्र 31 10. दु:ख :- तीन प्रकार के दु:ख आध्यात्मिक,आधि भौतिक और आधिदैविक. 11. दौर्मनस्य :- इच्छा पूरी नहीं होने पर मन का उदास हो जाना या मन में क्षोभ उत्पन्न होना. 12. अङ्गमेजयत्व :- शरीर के अंगों का कांपना. 13. श्वास :- श्वास लेने में कठिनाई या तीव्रता होना. 14. प्रश्वास :- श्वास छोड़ने में कठिनाई या तीव्रता होना. इस प्रकार ये चौदह विघ्न होते हैं. 

ओउम

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