🕉🌞योग तत्व उपनिषद 🌞🕉
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🌞👉 भगवान श्री हरि विष्णु परमपिता ब्रह्मा जी को योग का तत्व समझाते हुए कह रहे हैं -हे ब्रह्मन! यमों के अंतर्गत अहिंसा ही प्रधान है । नियमों में सूक्ष्म आहार ही प्रमुख है। सिद्धासन, पद्मासन ,सिंहासन तथा भद्रासन ये चार मुख्य आसन है।
🌞👉 हे चतुरानन! अभ्यास के प्रारंभिक काल में ही सर्वप्रथम विघ्न उपस्थित होते है, जैसे आलस्य आना ,अपनी बड़ाई ,धूर्तपने की बातें करना तथा मंत्र आदि के साधन में कठिनाई महसूस होना।
🌞👉 श्रेष्ठ साधक को पद्मासन लगाकर प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। जिस स्थान पर साधना करें ।उस स्थान को शोभनीय बनाएं, पूर्ण पवित्र ,साफ -स्वच्छ एवं खटमल, मच्छर, मकड़ी आदि जीवों से रहित रखें।
🌞👉प्रतिदिन उस स्थान को झाड -बुहार करके स्वच्छ करता रहे एवम साथ ही उसे धूप ,गूगल आदि की धूनी देकर सुवासित भी करता रहे।
🌞👉 जो न तो बहुत अधिक ऊंचा तथा न ही अति नीचा हो, ऐसे वस्त्र ,मर्ग चर्म या कुश के आसन पर बैठकर पद्मासन लगाना चाहिए।
🌞👉 शरीर को सीधा रखकर हाथ जोड़ते हुए इष्ट देवता को प्रणाम करें, तत्पश्चात दाएं हाथ के अंगूठे से पिंगला अर्थात दाहिने नासा छिद्र को दबाकर सनै-सनै इडा अर्थात बायं नासा छिद्र से वायु को भीतर की ओर खींचे तथा उसे यथाशक्ति रोककर कुंभक करें । तत्पश्चात पिंगला द्वारा उस वायु को सामान्य गति से बाहर निकाल देना चाहिए। तत्पश्चात बाह्य कुंभक करें। इसके बाद पुनः पिंगला से वायु को पेट में भरकर शक्ति के अनुसार कुंभक क्रिया करके वायु का धीरे धीरे इड़ा से रेचन करना चाहिए।
🌞👉 साधक के दो शब्द– भगवान श्रीहरि यहां पर योग के अंगों के विषय में विस्तृत वर्णन कर रहे हैं एवं साधना का विधि विधान भी बता रहे हैं। अलग-अलग योग ग्रंथों में यम-नियम में भेद पाया जाता है किंतु सर्वमान्य रूप से 5 यम मुख्य हैं ।सत्य, अहिंसा, अस्तेय ,अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य।इन में भी भगवान श्री हरि विष्णु ने अहिंसा को सर्वप्रथम एवं मुख्य आवश्यकता बताया है अर्थात यदि अन्य यम का प्रारंभिक योगी पालन नहीं भी कर सके तो एक यम का पालन तो उसे करना ही चाहिए वह है” अहिंसा”।
👉 नियम- साधना में अलग-अलग ग्रंथों में अनेकों नियम बताए गए हैं लेकिन यहां पर भगवान श्री हरि विष्णु सूक्ष्म आहार अर्थात कम मात्रा में भोजन करना इसी को मुख्य नियम स्वीकार कर रहे हैं। इसलिए योग साधक को कभी भी अत्यधिक भोजन नहीं करना चाहिए। भूख से कम खाना चाहिए। जिन खाद्य पदार्थों से शरीर की नाड़ियां अशुद्ध होती है, प्राण का प्रवाह बाधित होता है, ऐसे खान-पान से बचना चाहिए। इसी प्रकार योग में अनेकों आसन है किंतु भगवान श्री हरि ने 4 आसनों को मुख्य माना है ।उनमें से भी आप अपनी सुविधा अनुसार चयन कर लें एवं साधना करते समय पद्मासन ,सिद्धासन वज्रासन या सुखासन, जिस किसी भी आसन में आप सुखपूर्वक बैठ सके ।कमर को सीधी करके साधना हेतु बैठे। इसी तरह प्राणायाम के भी अनेकों भेद है किंतु भगवान श्री हरि विष्णु यहां पर एक ही प्राणायाम अनुलोम विलोम नाड़ी शोधन प्राणायाम को मुख्य बता रहे है । मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है यदि व्यक्ति अन्य प्राणायामों का अभ्यास नहीं भी करता है किंतु अनुलोम विलोम प्राणायाम को अंतः कुंभक एवं बाह्य कुंभक के साथ करता है तो वह योग के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। कुंडलिनी महाशक्ति को जागृत कर सकता है , इसमें किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं। यह एकमात्र प्राणायाम संपूर्ण शरीर को दिव्यता प्रदान करने में समर्थ है। समस्त प्रकार की व्याधियों से शरीर को मुक्त करने में समर्थ है इसलिए सभी साधक बंधुओं से निवेदन है कम से कम नाड़ीशोधन अनुलोम विलोम प्राणायाम का प्रतिदिन 10 मिनट अभ्यास अवश्य करें। कुंभक क्रिया करते हुए वायु को नाभि तक अच्छी तरह से भर ले अर्थात पेट को कुंभ के समान वायु से भरलें एवं नाभि में सूर्य का ध्यान करें।
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🙏👏प्रणाम 👏🙏