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वास्तुअनुसार 8 दिशाओं के नाम

पूर्व दिशा

जहाँ से सूरज उदय होता है उसे पूर्व दिशा कहा जाता है पूर्व दिशा के देवता इंद्र माने गये हैं। इस दिशा से सकारात्मक ऊर्जा आती है जिस कारण यहां घर का मुख्य दरवाजा बनाया जा सकता है। इस दिशा से घर में खुशियां आती है.

पश्चिम दिशा

जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है या डूबता है उसे पश्चिम दिशा कहा जाता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव माने गए हैं। इस स्थान पर डायनिंग हॉल, सीढ़ियां या दर्पण लगाना भी बहुत शुभ होता है।

उत्तर दिशा

वास्तु अनुसार उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व धन के देवता कुबेर करते हैं। जिस कारण यहाँ पर नकद धन और मूल्यवान वस्तुएं रखना शुभ होता है.

दक्षिण दिशा

वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा को शुभ हीं माना जाता है इसे संकट का द्वार भी कहा जाता है। वास्तुअनुसार दक्षिण दिशा को यम की दिशा बताया गया है. यहां भारी सामान रखना चाहिए.

उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण)

उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा ईशान कोण और उत्तर-पूर्व दिशा कहलाती है उत्तर-पूर्व दिशा को दैवीय शक्तियों से निर्मित दिशा माना गया है क्योकि इस दिशा का प्रतिनिधित्व स्वयं दैवीय शक्तियां ही करती हैं।

दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण)

दक्षिण और पूर्व दिशा के बीच का स्थान आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है। दक्षिण-पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व अग्नि करती है। इसलिए इस दिशा में विशेष ऊर्जा रहती है।

दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण)

दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को नैऋत्य दिशा का नाम दिया गया है। दक्षिण-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करता है। इसीलिए यहां प्लांट रखना बहुत शुभ होता है।

उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण)

उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को वायव्य दिशा के नाम से जाना जाता है. उत्तर-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व वायु करती है। इस वजह से यहां खिड़की या रोशनदान का होना बहुत शुभ रहता है।

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