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[हीमोग्लोबिन के स्तर को सही बनाए रखने के लिए आप कुछ घरेलू उपायों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

रक्त कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन आयरन से भरपूर प्रोटीन होता है। यह प्रोटीन पूरे शरीर में ऑक्सीजन प्रवाह का काम करता है। हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य जीवित कोशिकाओं में रक्त संचार करना होता है। इसी के साथ यह शरीर और फेफड़ों से कार्बन-डाइ-ऑक्सीजन को बाहर ले जाना का काम करता है। हीमोग्लोबिन शरीर में खून के स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए भी अत्यधिक आवश्यक होता है। हीमोग्लोबिन की कमी से थकान, सांस ना आना,चक्कर आना, सिर दर्द, भूख ना लगना और दिल की धड़कने तेज होना जैसी कई समस्याएं हो सकती है। इसलिए इसके स्तर को सही रखना जरुरी होता है। विटामिन B12,विटामिन C और आयरन की कमी के कारण हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन के स्तर को सही बनाए रखने के लिए आप कुछ घरेलू उपाय कर सकते हैं।

आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ: आयरन हीमोग्लोबिन के स्तर को सही करने के लिए बेहद जरुरी होता है। इसलिए हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखने के लिए आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें। इसके लिए आप टोफू, पालक, बादाम, खजूर खा सकते हैं।स्नेहा समूह

विटामिन C: हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने का एक कारण विटामिन C की कमी होती है। इसलिए विटामिन C युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं। इसके लिए आप विटामिन C युक्त खाद्य पदार्थ जैसे पपीता, नींबू, ब्रोकली, टमाटर आदि खा सकते हैं।

फॉलिक एसिड: खून में रक्त कणिकाओं को बनाने के लिए फॉलिक एसिड जरुरी होता है। इसकी कमी से हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है।
इसलिए आप फॉलिक एसिड युक्त खाद्य पदार्थ जैसे चावल, पीनट, केला, ब्रोकली आदि का सेवन कर सकते हैं।स्नेहा समूह

आयरन को अवशोषित करने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें: शरीर में आयरन को अवशोषित कर लेने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने से आयरन की मात्रा कम हो जाती है और हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। इसलिए आप हीमोग्लोबिन की कमी होने पर इन खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें। इस दौरान चाय, कॉफी, कैल्शियम सप्लीमेंट का सेवन ना करें।
[ हाथ या पैर के तलवो मे जलन

अक्सर कई लोगो को हाथो और पैरो में जलन होती हैं, वैसे तो ये समस्या गर्मियों में अधिक होती हैं, मगर कई बार कुछ बीमारियो के कारण ये सर्दियों में भी होती हैं। आज हम आपको बताएँगे इसके कारण और इसके सरल उपचार।

तो आइये जाने।

  1. करेला :

करेले के पत्तों का रस निकालकर पैरों के तलुवों पर इसकी मालिश करने से पैरों की जलन दूर हो जाती है। करेले के पत्तों को पीसकर पैरों पर लेप करने से भी इस रोग में लाभ होता है।

  1. लौकी :

लौकी को काटकर इसके गूदे को पैरों के तलुवों पर लगाने से पैरो की गर्मी, जलन आदि दूर हो जाती है।

  1. सरसों :

हाथ-पैरों या पैरों के तलुवों में जलन होने पर सरसों का तेल लगाने से लाभ होता है। 2 गिलास गर्म पानी में 1 चम्मच सरसों का तेल मिलाकर रोजाना दोनों पैर इस पानी के अंदर रखें। 5 मिनट के बाद पैरो को किसी खुरदरी चीज से रगड़कर ठण्डे पानी से धोने से पैर साफ रहते हैं और पैरों की गर्मी दूर होती है।

  1. मेहंदी :

गर्मी के मौसम में जिन लोगों के पैरों में लगातार जलन होती रहती है उनकें पैरों में मेंहदी लगाने से उनकी जलन दूर हो जाती है।+

वैज्ञानिक भी मानते है सेहत और दिमाग के लिए नोनी जैसा कुछ नही अधिक जानकारी के लिए यहाँ click करें

  1. आम :

आम की बौर (फल लगने से पहले निकलने वाले फूल) को रगड़ने से हाथों और पैरों की जलन समाप्त हो जाती है।

  1. धनिया :

सूखे धनिये और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। फिर इसको 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना 4 बार ठंडे पानी से लेने से हाथ और पैरों की जलन दूर हो जाती है।

  1. मक्खन :

मक्खन और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने से हाथ और पैरों की जलन दूर हो जाती है।

  1. कतीरा ( कतीरा एक प्रकार का गोंद होता है) :

2 चम्मच कतीरा को रात को सोने से पहले 1 गिलास पानी में भिगों दें। सुबह कतीरा के फूल जाने इसको शक्कर के साथ मिलाकर रोजाना खाने से हाथों और पैरों की जलन दूर हो जाती है। वैसे तो यह हर मौसम में काम आता है लेकिन गर्मियों में बहुत ही लाभदायक होता है। *

  1. विटामिन

शरीर में विटामिन बी १ की कमी के कारण भी पैरो के तलुओ में जलन होती हैं इसलिए भोजन में विटामिन बी १ का इस्तेमाल करे। इसके लिए मटर, हरी सब्जिया, आलू, दूध, अंकुरित गेंहू, काजू इसके अच्छे स्त्रोत हैं।

  1. ब्लड शुगर

अपनी ब्लड शुगर की भी जांच ज़रूर करवाये, कुछ रोगियों को ब्लड शुगर के कारण ऐसी समस्याओ का सामना करना पड़त
[रोज सुबह भीगे हुए चने खाने के फायदे

  1. ताकत और एनर्जी :– भीगे चने ताकत और एनर्जी का बहुत बड़ा सोर्स हैं। रेग्युलर खाने से कमजोरी दूर होती है।
  2. कब्ज़ से राहत :– भिगोए हुए चने में ढेर सारे फाइबर्स होते हैं। ये पेट को साफ़ करते है और डाइजेशन बेहतर करते हैं।
  3. बढ़ेगा स्पर्म काउंट :– सुबह 1 चम्मच शक्कर के साथ मुट्ठी भर भीगे हुए चने खाने से स्पर्म काउंट बढ़ता है।
  4. बढ़ेगी फर्टिलिटी :– रोज़ सुबह मुट्ठी भर भीगे हुए चने शहद के साथ लेने से फर्टिलिटी बढ़ती है।
  5. यूरिन प्रॉब्लम: – भीगे चने के साथ गुड़ खाने से बार-बार यूरिन जाने की प्रॉब्लम ठीक हो जाती है। पाइल्स से भी राहत मिलती है।
  6. हेल्दी स्किन :– बगैर नमक डाले चबा-चबाकर खाने से स्किन हेल्दी और ग्लोइंग होती है। खुजली, रैशेज़, जैसी स्किन प्रॉब्लम दूर होती हैं।
  7. बढ़ेगा वजन :– चने बॉडी मास बढ़ने में भी हेल्पफुल हैं। रेग्युलर खाने से वजन बढ़ता है और मसल्स स्ट्रांग होती हैं।
  8. सर्दी-जुकाम से बचाव :– चने बॉडी की इम्युनिटी बढ़ाते हैं। सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों से बचाव होता है।
  9. किडनी डिज़ीज़ से बचाव :– चने में फॉस्फोरस होता है जो हीमोग्लोबिन का लेवल बढ़ाता है और किडनी से एक्स्ट्रा साल्ट निकालता हैं।
  10. हेल्दी हार्ट :– चना कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करता है इससे हार्ट डिज़ीज़ का खतरा कम होता है और हार्ट हेल्दी रहता है।
  11. शुगर कंट्रोल :– भीगे चने रेग्युलर खाने से मेटाबॉलिज़्म तेज़ होता है। शुगर कंट्रोल होती है और डायबिटीज़ से बचाव होता हैं।
  12. खून की कमी होगी दूर :– चने आयरन का बहुत बड़ा सोर्स हैं। ये खून की कमी तो दूर करते ही हैं, ब्लड प्यूरीफाय भी करते हैं।

ग्रहजनित दोषों को दूर करने के लिए औषधि स्नान।

-नवग्रह शांति विधान में जन्मपत्रिका के अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमन करने के लिए औषधि स्नान की प्रक्रिया है जिसमें अनिष्ट ग्रह से सम्बन्धित सामग्री के मिश्रित जल से स्नान किया जाता है। इन सामग्रियों को प्रतिदिन स्नान के जल में मिश्रित कर स्नान करने से अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव में कमी आती है। आइए जानते हैं कि नवग्रहों की शांति के लिए कौन-कौन सी सामग्रियां स्नान के जल में मिलाने से लाभ होता है-

  1. सूर्य- सूर्य के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में इलायची,केसर,रक्त-चन्दन,मुलेठी एवं लाल पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  2. चन्द्र- चन्द्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में पंचगव्य, श्वेत चन्दन एवं सफ़ेद पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  3. मंगल- मंगल के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में रक्त-चन्दन,जटामांसी,हींग व लाल पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  4. बुध- बुध के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में गोरोचन,शहद,जायफ़ल एवं अक्षत मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  5. गुरु- गुरु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में हल्दी,शहद,गिलोय,मुलेठी एवं चमेली के पुष्प मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  6. शुक्र- शुक्र के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में जायफ़ल, सफ़ेद इलायची,श्वेत चन्दन एवं दूध मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  7. शनि- शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में सौंफ़, खसखस, काले तिल एवं सुरमा मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  8. राहु- राहु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में कस्तूरी,गजदन्त,लोबान एवं दूर्वा मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
  9. केतु- केतु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिदिन स्नान के जल में रक्त चन्दन एवं कुशा मिलाकर स्नान करने से लाभ होता है।
    [04/08, 19:32] Daddy: नीच भंग और ग्रहो की प्रकृति।
    सूर्य नीच का हो भले नीच भंग में हो
    परन्तु जातक का आत्मविस्वास कमजोर होगा ही। जातक कितना भी धनवान हो कितना भी पावर में उसको एक अनजाना भय हमेशा सताएगा।
    चन्द्रमा नीच का हो भले नीच भंग में हो जातक में फीलिंग नाम की चीज़ नहीं होगी ।न कोई अपना न कोई पराया।
    हर जगह जातक को अपनी माँ की चिंता सताती है।
    मंगल नीच का हो भले नीच भंग में हो
    जातक अकेला किसी चीज़ की हिम्मत कर नहीं पाता है।
    अक्सर भाइ बहनों के कारण परेसान रहता हे।जातक में स्फूर्ति और जोश की कमी रहती है।
    बुध नीच का हो भले नीच भंग में हो
    जातक सर्वगुण सम्पन्न हो तो भी निर्णय लेने में असमर्थ होता है ।
    अक्सर ऐसे जातक अपनी शिक्षा के अनुरूप carrier नहीं बना पाते है।ऐसे लोगो की कमजोरी होती है उनकी बेटियां।
    गुरु नीच का हो भले नीच भंग हो ।
    जातक हमेशा एक हीनभावना से ग्रस्त रहता है कि मेरे साथ ऐसा क्यू होता है ।
    ऐसे जातक बहुत ज्यादा ईर्ष्यालु होते है ।खुद के दुख से ज्यादा दुसरो के सुख से परेशान होते है ।
    ऐसे लोगो की जिंदगी खुद को सुखी करने के बजाय दुसरो के सुखों को कम करने में ज्यादा बीतती हे।
    ऐसे लोगो पर बद्दुआ ,तंत्र प्रयोग बहुत जल्दी असर करती है।ऐसे लोगो को नशा नहीं करना चाहिए वर्ना नेगेटिव शक्तियों प्रकोप भी परेशान कर सकता है ।
    शुक्र नीच का हो भले नीच भंग में हो ।
    ऐसे जातक पत्नी से कभी सुखी नहीं रह सकते हे ।उनकी लाइफ की आधी से ज्यादा परेशानिया पत्नी के कारण पत्नी के आने के बाद होती है।अक्सर ऐसे जातक के पास सबकुछ हो भी जाएगा तो भी सुख बहुत कम मिल पाता है ।
    जैसे acc में करोड़ पड़े हे पर चुपड़ी खा नहीं सकता है ।जब मिठाई खानी थी तब पैसे नहीं थे जब पैसे आए तब शुगर हुई या और कारण के कारण नहीं खा पाया ।ये केवल एक उधाहरण हे जरूरी नहीं की नीच के शुक्र वाले sugr के मरीज हो।
    अब बात नीच के शनि की भले नीच भंग में हो ।
    एक बात है शनि का नीच भंग जब मंगल मकर या कुंभ राशि में हो तब ही ज्यादा प्रभावी होता है बाकी कोई खास फर्क नहीं पड़ता है शनि के नीचत्व में।यानि शनि का परिवर्तन योग में ही नीचभंग होता है बाकी में न के बराबर होता है चाहे मंगल स्वराशि में या शनि के साथ हो।
    शनि नीच का होगा भले नीच भंग में हो तो जातक का carrier बदलता रहता है।
    जातक को घर को लेकर हमेशा परेशानी बनी रहती है या छत टपकती हे या बारबार रिपेयरिंग करवांनी पड़ती हे ।या बदलना पड़ता है ।
    वक्री होने पर सारे गुणों में बदलाव असकतां हे।

ज्योतिष मे केतु ग्रह।

सभी ग्रहों में राहु-केतु मायावी ग्रह हैं इन पर सटीक फलित करना अत्यधिक जटिल है। राहु पर थोडा बहुत लिखा हुआ मिल भी जाता है, लेकिन जब केतु की बात आती हैं उस समय या तो राहु के समान उसके फल बतायें गये हैं या मंगल के गुणों की समानता दे दी जाती है। लेकिन मेरे अनुभव में केतु के बिल्कुल अलग फल है। केतु सभी ग्रहों में सबसे तीक्ष्ण व पीडा दायक ग्रह है। मायावी होने के कारण प्राय: केतु में लगभग सभी ग्रहों की झलक देखने को मिल जाती है। सूर्य के समान जलाने वाला, चंद्र के समान चंचल, मंगल के समान पीडाकारी, बुध के समान दूसरे ग्रहों से शीघ्र प्रभावित होने वाला, गुरु के समान ज्ञानी, शुक्र के समान चमकने वाला एवं शनि के समान एकांतवासी ग्रह है। केतु के कुछ अनुभव सिद्ध फल..

1- केतु हमेशा अपना प्रभाव दिखाता ही है। केतु का प्रभाव जिस भाव पर होगा जातक को उस भाव से सम्बंधित अंग में किसी प्रकार की चोट या निशान, तिल, वर्ण अवश्य देगा।

2- केतु पर यदि षष्ठेश का प्रभाव हो तो पीडा दायक रोग होते हैं। यदि साथ में मारकेश का भी प्रभाव होतो ऐसा केतु ऑपरेशन आदि करवाता हैं अथवा अंगहीन बनाता है।

3- केतु का प्रभाव लग्न या तृतिय स्थान पर हो तथा कुछ क्रूर या पापी ग्रह का प्रभाव भी हो तो ऐसे जातक अत्यधिक गुस्सैल व अनियंत्रित होते हैं। ऐसे जातक जल्दबाज होते हैं जिनके कारण अधिकतर गलत निर्णय लेते हैं। यदि केतु पर पाप प्रभाव अधिक हो तो ऐसे जातक हत्या तक कर बैठते है।

4- केतु का नवम, दशम व एकादश प्रभाव शुभ होता है इसके अतिरिक्त बुध व गुरु की राशि में स्थित केतु भी मारक प्रभाव न रखकर व्यक्ति को उच्च शिक्षा देने वाला या सफल बनाने वाला होता है। ऐसे जातक प्रबुध होते है, डॉक्टर, वकील या रक्षा विभाग में प्रयास करने से सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।

5- केतु के अंदर अध्यात्मिक शक्ति होती है, शास्त्रों में वर्णित है की गुरु संग केतु की युति मोक्ष दायक होती है। अत: शुभ केतु का प्रभाव व्यक्ति को धर्म से जोडता है। लग्न या नवम भाव पर केतु का शुभ प्रभाव होतो ऐसे लोग कट्टर धर्मी होते हैं।

6- केतु का संकेत चिन्ह झंडा होता है जो की उच्चता का सूचक है। योगकारक ग्रह के संग या लग्नेश संग केतु का प्रभाव व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता हैं।
[श्वेतार्क आर्क (मदार) की जड़
✍🏻सम्भव हो तो शुभ मुहूर्त में इसको विधिनुसार सावधानी से निकाल लें। यदि गणपति जी की आकृति स्पष्ट न हो तो आकृति बनवाई भी जा सकती है। इसको अपने पूजा में रखकर नियमित पूजन- आराधना करने से त्रिसुखों की प्राप्ति होती है…!
१.-आक की जड़ रविपुष्य नक्षत्र में लाल कपड़े में या तावीज में लपेटकर घर में रख लें या गले मे धारण करे, घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहेगी।
2.-श्वेतार्क से गणपति की प्रतिमा बनाकर घर में स्थापित करें। नित्य एक दूर्वाघास अर्पण कर श्रद्धापूर्वक गणपति जी का ध्यान किया करें, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी तथा सब प्रकार के विघ्नों से आपकी रक्षा होगी।
३.-श्वेतार्क की जड़, मूंगा, फिटकरी, लहसुन तथा मोर का पंख एक थैली में सिल लें। यह एक नजरबट्टू बन जाएगा। बच्चे के सोते समय चौंकना, डरना, रोना आदि में यह बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।
४.-सफेद आक की जड़, गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नित्य ‘ऊँ गं गणपतये नमः’ मंत्र से पूजा करें, सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होगी तथा मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होंगी।
५.-श्वेतार्क की जड़ ‘ऊँ नमो अग्नि रूपाय ह्रीं नमः’ मंत्र जपकर पास रख लें, यात्रा में दुर्घटना का भय नहीं रहेगा।
६.-श्वेतार्क की समिधाओं में ‘ ऊँ जूं सः रुं रुद्राय नमः सः जूँ ऊँ’ मंत्र जपते हुए हवन सामग्री होम किया करें रोग-शोक का नाश होने लगेगा..!!
“कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-
✍🏻9839760662
: असली सुगन्ध तो हमारे अन्दर है। हम 24 घंटे बाहर की दुनिया को देखते रहते हैं हम अपने अन्तर में देखने का प्रयास नही करते। जबकी परमात्मा को पाने का सर्वोत्तम उपाय अपने अंतर में निरंतर सिमरन के अभ्यास से ही सम्भव है।
24 घंटे में एक बार ही थोड़ी देर के लिये हम अपने कानों को बंद करके शब्द धुन को सुने और ध्यान करते समय अपने अन्तर में देखने की कोशिश करो।
पहले आँखों से ही शुरु करो, क्योंकि यही सबसे महत्व पूर्ण इंद्री हैआंखे बंद करके परमेश्वर का ध्यान करे, जो हमें बाहर से जोड़े रखती है। फिर अपने भीतर में जो भी आवाज़ सुनाई पड़े, उसे सुनने की कोशिश करो। फिर ध्यान मग्न होकर खुश्बूओं को सूंघने की कोशिश भी करो। तब हमारे अन्दर चमत्कार हो उठेगा।हम परमेश्वर की, तरह तरह की सुगन्ध को अनुभव करेंगे।
पहले हम अनुभव करेंगे कि कुछ तो है फिर हमे अनुभव होगा कि बहुत कुछ है यहां। क्योंकि अपने भीतर ही सँगीत हैं और अपनी ही आवाज़ें हैं। भीतर के अपने ही रंग हैं, अपने ही स्वाद और सुगंध हैं। जिस दिन हमे अपने भीतर के रंग दिखाई देंगे, उस दिन बाहर की दुनिया के सब रंग फीके लगेंगे ।फिर हमारी इच्छाएँ समाप्त हो जायेगी। तब संतोष और तृप्ति का भंडार मिल जाएगा। फिर बाहर के सब संगीत तुम्हें शोरगुल लगेंगे। जिस दिन भीतर के प्रकाश को देख लेंगे, उस दिन बाहर भी सब प्रकाशित हो जाएगा। फिर हर इन्सान अति सुंदर नजर आने लगेगा। फिर हम अपने दिल की बात अपने परमेश्वर के साथ कर पाएंगे।
*इसके लिए हमें सुमिरन और ध्यान में अपने परमेश्वर से जुड़ना होगा। परमेश्वर से सच्चा प्रेम बढाना होगा।
: #शनिकीदृष्टि

👉शनि की तीन दृष्टि होती है। तीसरी, सातवीं और दसवीं। ऐसा माना जाता है कि शनि की दृष्टि पडऩे पर कुछ न कुछ बुरा हो ही जाता है लेकिन यकीन मानिए…. शनि की हर दृष्टि इतनी अशुभ नही होती जितनी अशुभ तीसरी होती है।

👉कुंडली के जिस भाव में शनि होता है उस घर से तीसरे घर पर शनि की दृष्टि ज्योतिष में खराब माना गया है। कुंडली में जिस घर पर शनि की ये दृष्टि होती है शनि उस भाव से संबंधित फल को कम कर देता है। इस तीसरी दृष्टि को शनि की वक्र दृष्टि भी कहा जाता है, यानी टेढ़ी नजर।

👉 शनि की यह टेढ़ी नजर सातवीं और दसवीं दृष्टि की तुलना में खराब फल देने वाली होती है। ऐसे में जरूरत से ज्यादा मेहनत करने पर ही परिणाम मिलते हैं। शनि की तीसरी दृष्टि के प्रभाव से आलस्य आता है और पुरुषार्थ में कमी होती है। निराशा, चिंता और मानसिक तनाव भी इसी दृष्टि के प्रभाव से होता है।
[ रूद्राभिषेक का औचित्य
🌻🌷🌸🍁🌿

आजकल प्रतिदिन संदेश आ रहे हैं कि महादेव को दूध की कुछ बूंदें चढाकर शेष निर्धन बच्चों को दे दिया जाए। सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन हर भारतीय त्योहार पर ऐसे संदेश पढ़कर थोड़ा दुख होता है। दीवाली पर पटाखे ना चलाएं, होली में रंग और गुलाल ना खरीदें, सावन में दूध ना चढ़ाएं, उस पैसे से गरीबों की मदद करें। लेकिन त्योहारों के पैसे से ही क्यों? ये एक साजिश है हमें अपने रीति-रिवाजों से विमुख करने की।

हम सब प्रतिदिन दूध पीते हैं तब तो हमें कभी ये ख्याल नहीं आया कि लाखों गरीब बच्चे दूध के बिना जी रहे हैं। अगर दान करना ही है तो अपने हिस्से के दूध का दान करिए और वर्ष भर करिए। कौन मना कर रहा है। शंकर जी के हिस्से का दूध ही क्यों दान करना?

अपने करीब उपलब्ध किसी आयुर्वेदाचार्य के पास जाकर पूछिये कि वर्ष के जिन दिनों में शिव जी को दूध का अभिषेक किया जाता है उन दिनों में स्वास्थ्य की दृष्टि से दूध का न्यूनतम सेवन किया जाए जिससे मौसमानुसार शरीर में वात और कफ न बढे जिससे हम निरोगी रहे ऐसा आयुर्वेद कहता है कि नहीं।

आप अपने व्यसन का दान कीजिये दिन भर में जो आप सिगरेट, पान-मसाला, शराब, मांस अथवा किसी और क्रिया में जो पैसे खर्च करते हैं उसको बंद कर के गरीब को दान कीजिये | इससे आपको दान के लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य का भी लाभ होगा।

महादेव ने जगत कल्याण हेतु विषपान किया था इसलिए उनका अभिषेक दूध से किया जाता है। जिन महानुभावों के मन में अतिशय दया उत्पन्न हो रही है उनसे मेरा अनुरोध है कि एक महीना ही क्यों, वर्ष भर गरीब बच्चों को दूध का दान दें। घर में जितना भी दूध आता हो उसमें से ज्यादा नहीं सिर्फ आधा लीटर ही किसी निर्धन परिवार को दें। महादेव को जो 50 ग्राम दूध चढ़ाते हैं वो उन्हें ही चढ़ाएं।

शिवलिंग की वैज्ञानिकता ….

भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें ! भारत सरकार के न्यूक्लिअर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।

शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।

महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है।

क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।

भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।

शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।

तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।

ध्यान दें, कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।

जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।..

अपना व्यवहार बदलो अपने धर्म को बदलने का प्रयास मत करो।

!!ॐ नम: शिवाय, हर हर महादेव !!

जय श्री राम ⛳⛳
वंदेमातरम् ⛳⛳
⚜🕉⛳🕉⚜
: #साँपकेकाटनेकाईलाजजरूरपढ़ें,
पता नहीं कब आपके काम आ जाए : दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप ये जान लीजिये । कि अपने देश भारत मे 550 किस्म के साँप है । जैसे एक #cobra है #viper है #karit है ।

ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं । इनमे से मुश्किल से 10 साँप है जो जहरीले है सिर्फ 10 । बाकी सब non poisonous है। इसका मतलब ये हुआ 540 साँप ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा ।। बिलकुल चिंता मत करिए । लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी heart attack से मर जाता है । #जहर से नहीं मरता #cardiac_arrest से मर जाता है । तो डर इतना है मन मे । तो ये डर निकलना चाहिए । वो डर कैसे निकलेगा ??? जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं । जिनके काटने से कोई मरता है । इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है ।

russell viper । उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra । king cobra जिसको आप कहते है काला नाग ।। ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी । लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप #रोगी को बचा सकते हैं

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर के मास के अंदर घुस जाते हैं । और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है । तो फिर ये जहर ऊपर की तरफ जाता है । मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा । ऐसे ही अगर पैर पर काट लिया तो फिर ऊपर की और #heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा । कहीं भी काटेगा तो दिल तक जाएगा । और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3 घंटे लगेंगे ।

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा । जब पूरे दिमाग के एक एक हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं होगी । तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ कर ले तो बहुत अच्छा है । एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है #homeopathy मे आती है । उसका नाम है #NAJA (N A J A ) । homeopathy medicine है किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी । और इसकी #potency है 200 । आप दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो । तो दुकानदार आपको दे देगा । ये 5 मिलीलीटर आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी । और इसकी कीमत सिर्फ 50 रुपए है । इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 150 से 200 रुपए की उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है जिसको कहते है क्रैक । इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है । इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है । medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे है तो घबराने की कोई बात नहीं । आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम आता है । तो ये #NAJA200 आप घर मे रख लीजिये ।अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिए 1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1 बूंद रखे ।। 3 बार डाल के छोड़ दीजिये ।बस इतना काफी है । और कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बचा लेगी । और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते । डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ उसमे ले जाओ आदि आदि ।।
और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है । और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है । कभी कभी 15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ ।। और यहाँ सिर्फ 10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं । और injection जितना effective है मैं इस दवा(NAJA) की ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना (times) ज्यादा effective है ।

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो । फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप injection वाला उपाय शुरू करे । और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे । दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है ।।

तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही जीवन मे काम आ जाए । या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए। तो first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 homeopathy दवा । 10 – 10 मिनट बाद 1 – 1 बूंद तीन बार रोगी की जान बचा सकती है
एक आयुर्वेदिक डॉक्टर के पेज़ द्वारा ली गयी जानकारी है जिसका में पुष्टि नहीं करता हूँ।
जिस किसी को भी स्टेटस पर शक हो वो एक बार आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से जानकारी ले सकते है।
[: कई नासमझ ज्योतिष ग्रहों की सत्ता को नहीं मानते हैं ना ही साढ़ेसाती का महत्व समझते हैं। जब शनि की साढ़ेसाती लगती है तब वो चाहे राजा हो या रंक किसी को भी नहीं छोड़ती। इससे न राजा नल, राजा हरीशचन्द्र और रावण भी नहीं बच पाएँ तो आम इन्सान की क्या बिसात

शनि जब मंगल की राशि वृश्चिक में, मेष में नीचस्थ या इन्हीं ग्रहों से दृष्ट हो तब अवश्य अपना दुष्प्रभाव दिखाता ही है। कहा भी है की शनि की वक्र दृष्टि जिस पर पड़ जाए उसको बर्बाद कर देती है। शनि जिस भाव को जिस निगाह से देखता है उस प्रकार फल देता हैं। शनि मित्र भाव से देखेगा तो मित्रवत व्यवहार करेगा, शत्रुवत देखेगा वैसा ही प्रभाव देगा। जब शनि की उच्च या स्वदृष्टि पड़ेगी तो उत्तम फल देगा ही। शनि वृषभ लग्न में कर्म व भाग्य का मालिक होता है। अतः साढ़ेसाती में इन भावों से संबंधित फल में अच्छे या बुरे प्रभाव डालता है

शनि इस लग्न में कन्या राशि पर साढ़ेसाती का प्रथम ढैया शनि के सिंह राशि पर आने से लगेगा। शनि सूर्य का शत्रु है जबकि सूर्य पुत्र शास्त्रों में शनि को माना गया है फिर भी यह चतुर्थ भाव पर शत्रु दृष्टि डालने से माता को कष्ट या मृत्यु तुल्य कष्ट देगा, पारिवारिक सुख में भी खलल डालेगा, राजनीती में भी बाधा का कारण बनेगा। मकान संबंधित परेशानियाँ देगा। संपत्ति के मामलों में भी बाधक बनेगा। यदि इस प्रकार परेशानी हो तो वे रात को दूध ना पिएँ। मछली को दाना डालें। शनि की उच्च दृष्टि षष्ट भाव पर पड़ने से शत्रु पक्ष प्रभावहीन होंगे। शनि की सप्तम दृष्टि कर्म भाव पर पड़ने से कर्म क्षेत्र में वृद्धि, व्यापार में उन्नति होगी। पिता से लाभ, राजकाज में सफलता, शनि का दशम मित्र दृष्टि लग्न पर पड़ने से प्रभाव में वृद्धि, भाग्योन्नति होती है

शनि की मध्य साढ़ेसाती शनि के कन्या पर आने से शुरू होगी। यह भाग्येश व कर्मेश पंचम त्रिकोण में होने से सन्तान लाभ, विद्या में प्रगति, मनोरंजन के क्षेत्र में सफलता मिलती है। लेकिन तृतीय शत्रु दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ने से पत्नी या पति को कष्ट। दैनिक व्यवसाय में बाधा, विवाह में देरी होती है। यदि अशुभ परिणम मिलते हो तो ये उपाय करें- 48 वर्ष की आयु से पहले मकान न बनाएँ। मन्दिर में बादाम चढाएँ व उनमें से आधे वापस लाकर घर में रखें। पुत्र के जन्मदिन पर मिठाई न बाटें। कुत्ता पालें। काले सुरमे को बहते जल में प्रवाहित करें। इस प्रकार से अशुभ प्रभाव कम होंगे

शनि की सप्तम गोचर दृष्टि एकादश भाव पर, सम दृष्टि पड़ने से लाभ के क्षेत्र में मिली जुली स्थिति रहेगी। शनि की दशम मित्र दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ने से धन की बचत, कुटुंब का सहयोग, वाणी से लाभ रहता है।

शनि की अंतिम उतरती साढ़ेसाती शनि के षष्ट भाव पर आने से होगी। इस समय शत्रु नाश, कोर्ट कचहरी में विजय, मामा से सहयोग, कर्ज हो तो उतरता है। बस देने की नियत होना चाहिए। शनि की यहाँ से तृतीय दृष्टि आयु भाव अष्टम पर सम पड़ने से आयु में वृद्धि, गुप्त धन, यश लाभ रहता है। शनि की सप्तम द्वादश भाव पर नीच दृष्टि पड़ने से बाहरी संबंध खराब होते है व यात्रा में कष्ट रहता है

यदि ऐसी स्थिति हो तो ये उपाय करें- सरसों का तेल मिट्टी के बर्तन या काँच की शीशी में बन्द करके तालाब के पानी के अन्दर दबाएँ। रात के समय किया गया यह उपाय लाभदायक होगा। शनि की दशम गोचर दृष्टि तृतीय भाव पर सम पड़ने से भाई से मिलाजुला सहयोग रहता है। शत्रु नाश होकर पराक्रम में वृद्धि होती है

जय श्री कृष्णा
: रोजगार की परेशानी से जूझ रहे हैं तो यह उपाय काफी असरदार साबित होगा. उपाय के लिए 300 ग्राम काले उड़द का आटा लें और उसे बिना छाने गूंधकर खमीर उठा लें. इसके बाद एक मामूली आंच पर इसी आटे की एक रोटी बनाकर सेंक लें. इस रोटी का एक चौथाई भाग तोड़कर काले रंग के कपड़े में बांध दें. शेष रोटी की 101 छोटी-छोटी गोलियां बनाकर तैयार करें. जिसके बाद किसी मछलियों वाले जलाशय के पास जाकर उसमें सभी रोटी की गोलियों को डाल दें. इधर रोटी की गोलियां भूखी मछलियों के पेट में जाएंगी और उधर आपका काम बनना शुरू हो जाएगा

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■●◆●●●●●#आलू●●●●●◆●■
आलू को अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त है |
यह सब्जियों का राजा माना जाता है क्योंकि दुनिया भर में सब्जियों के रूप में आलू का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन-बी तथा फॉस्फोरस बहुत अधिक मात्रा में होता है।

आलू के छिलके निकाल देने पर उसके साथ कुछ पोषक तत्व भी चले जाते हैं अतः आलू का छिलके सहित सेवन अधिक लाभप्रद है।

आइए जानते हैं आलू के कुछ औषधीय गुण –

1- आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर, तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से मोटापा बढ़ता है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख पर भूनकर खाना लाभकारी है।

2- चोट लगने पर यदि शरीर में नील पड़ जाए तो उसपर कच्चा आलू पीसकर लगाने से लाभ होता है।

3- कच्चे आलू का आधा-आधा कप रस दिन में दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है।

4- शरीर के जले हुए भाग पर आलो पीस कर लगाएं। ऐसा करने से जलन ख़त्म होकर आराम आ जाता है।

5- चेहरे पर कच्चा आलू रगड़ने से झाँइयों व मुहाँसों आदि के दाग मिटकर चेहरा कान्तियुक्त बनता है।

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●●#कलयुगकीअमृत_अजवाइन●●
इसे हम काया कल्प चूर्ण में प्रयोग करते हैं…
अजवाइन औषधीय गुणों का भंडार है तभी तो रसोईघर के साथ ही आयुर्वेद में भी इसका खूब इस्तेमाल किया जाता है।
अजवाइन न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाता है बल्क‍ि यह आपको पेट से जुड़ी की बीमारि‍यों को भी दूर रखने में मदद करता है।
अजवाइन की तरह ही अगर इसका पानी रोज सुबह खाली पेट पि‍या जाए तो यह पूरे शरीर के लिए लाभदायक होता है।
अजवायन का पानी वजन कम कर सकता है।
इस रामबाण उपाय को आजमाए और मोटापे से छुटकारा पाए अजवायन का प्रयोग न सिर्फ घरों में मसालों के रूप में किया जाता है बल्कि छोटी मोटी पेट की बीमारिया भी इसके उपयोग से दूर हो जाती है।
खाना खाने के बाद हाजमा बेहतर बनाना हो तो इसका चूर्ण बना कर खाइये और फिर फायदा देखिये वैसे तो अजवायन बड़े ही काम की चीज है मगर इसका एक फायदा मोटापे को भी कम करने के काम आता है।
अजवायन का पानी हर रोज सुबह खाली पेट पीने से मोटापा प्राकृतिक रूप से कम हो जाता है।
अजवाइन औषधीय गुणों का भंडार है तभी तो रसोईघर के साथ ही आयुर्वेद में भी इसका खूब इस्तेमाल किया जाता है।
अजवाइन न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाता है बल्क‍ि यह आपको पेट से जुड़ी की बीमारि‍यों को भी दूर रखने में मदद करता है।

  1. इसे रोजाना पीने से डायबिटीज होने का खतरा कम हो जाता है।
  2. दिल की बीमारियों से बचने के लिए यह एक कारगार औषधि‍ है।
  3. मुंह से जुड़ी बीमारियों में भी यह काफी लाभदायक हैं। अगर आप रोजाना सुबह इसका पानी पीते हैं तो दांतो का दर्द और मुंह की बदबू की प्रॉब्लम दूर होती है।
  4. यह पेट की बीमारियों को दूर करता है और कब्ज से भी राहत देता है। यह खाना जल्दी पचाने में हेल्प करता है।
  5. इससे रोजाना पीने से बॉडी का मेटाबॉलिज्म को बढ़ता है जिससे वजन घटाने में मदद मिलती है। इसे दिन में दो बार पीने से डायरिया जैसी बीमारियां दूर होती हैं।
  6. यह सर्दी और कफ की प्रॉब्लम दूर करता है और इसे पीने से अस्थमा का खतरा भी टलता है।
  7. अगर आप सर्दी-खांसी से परेशान हैं तो अजवाइन के पानी में एक चुटकी काला नमक मिलाकर पीने से खांसी दूर जाएगी।
  8. सिरदर्द होना एक आम समस्या है लेकिन अगर आप हमेशा ही इससे दो-चार होते हैं तो एक कप अजवाइन का पानी पीने से सिरदर्द में राहत मिलती है।
  9. अगर आपके पेट में कीड़े हैं तो इसमें एक चुटकी काला नमक मिलाकर पीने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
  10. आजकल की लाइफस्टाइल में नींद न आना एक आम समस्या बनती जा रही है।
    अगर आप भी नींद न आने से परेशान हैं तो रोजाना सोने से पहले एक कप अजवाइन का पीने से नींद अच्छी आती है।

●●अजवायन पानी बनाने की विधि●●
5 ग्राम अजवायन ले हर रोज रात को अजवायन को एक गिलास पानी में रातभर भिगो कर छोड़ दे और फिर सुबह उस पानी को छान ले उसके बाद पानी में एक चम्मच शहद मिक्स करें और खाली पेट पीलें।
अजवायन के पानी को लगातार 45 दिन तक पिए वैसे तो आपको इसका असर 15 दिन में दिखना शुरू हो जायेगा परन्तु यदि प्रभावी परिणाम चाहिए तो 45 दिन तक इसका सेवन करें।


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🌻बारिश की हो गई है शुरुआत, कहीं मिल न जाए इन बीमारियों की सौगात

🌻तपती गर्मी के बाद ठंडक की सौगात लेकर आनेवाला बरसात का मौसम जितना सुहाना लगता है, स्वास्थ्य की दृष्टि से उतना ही संवेदनशील भी होता है. बारिश के चलते नमी बढ़ जाती है. अचानकर बारिश रुक जाने पर उमस बढ़ जाती है. इससे तापमान में उतार-चढ़ाव होते रहता है. तापमान में होनेवाला यह बदलाव मच्छरों के पनपने के लिए सबसे बढ़िया होता है. इसके अलावा बरसात के मौसम में वायरल और बैक्टीरियल इन्फ़ेक्शन्स की संभावना भी दूसरे मौसम की तुलना में काफ़ी हद तक बढ़ जाती है. आइए जानते हैं कि इस सुहाने मौसम का आनंद लेने के साथ-साथ आपको किन बीमारियों से ख़ुद को बचाने की ज़रूरत होगी.

🍃पानी के चलते होनेवाली बीमारियां
बरसात के मौसम में पानी छानकर और उबालकर पीना चाहिए, यह हमें बचपन से बताया, पढ़ाया, सिखाया जाता रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि बरसात के दौरान पानी के दूषित होने की संभावना अधिक रहती है. साथ ही पानी में पनपनेवाले बैक्टीरिया और वायरसेस के ग्रोथ के लिए भी मौसम अनुकूल होता है. ऐसे में काफ़ी हद तक संभव है कि हम पानी के चलते होनेवाली बीमारियों की चपेट में आ जाएं. इन तीन बीमारियों पर हमें ख़ास ध्यान देना चाहिए.

💐1. टायफ़ॉइड
यह ‌बीमारी सैल्मोनेला नामक बैक्टीरिया के चलते होती है. इसके बैक्टीरिया भोजन और पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचते हैं. टायफ़ॉइड में लंबे समय तक बुखार रहता है और पेट में तेज़ दर्द होता है. सिर दुखना और उल्टियां आना भी इसके लक्षण हैं. मरीज़ के ठीक होने के बाद भी इसके बैक्टीरिया गॉल ब्लैडर में बने रहते हैं.
टायफ़ॉइड के केस में मरीज़ को चाहिए को वह पर्याप्त मात्रा में लिक्विड लेता रहे, ताकि उसे डीहाइड्रेशन का सामना न करना पड़े. साफ़-सफ़ाई भी बहुत महत्वपूर्ण है. मरीज़ को बाहर के खाने से भी परहेज़ करना चाहिए. चूंकि यह एक संसर्गजन्य बीमारी है इसलिए मरीज़ को दूसरों से दूरी बनाकर रहना चाहिए. टायफ़ॉइड की वैक्सिन्स उपलब्ध हैं.

🌻2. हेपेटाइटिस ए
यह भी पानी के चलते होनेवाली बीमारी है. यह हेपेटाइटिस ए नामक वायरस के चलते होता है. इससे लिवर में सूजन आ जाती है. इस वायरस से संक्रमित पानी या भोजन का सेवन करने से हम हेपेटाइटिस ए से संक्रमित हो जाते हैं. संक्रमित व्यक्ति के मल-मूत्र के संपर्क में आने से भी वायरस हमारे अंदर आ सकता है. बुखार, बदन दर्द, भूख न लगना, जी मिचलाना इसके आम लक्षण हैं. हेपेटाइटिस ए आगे चलकर जॉन्डिस यानी ‌पीलिया में भी तब्दील हो सकता है. इसमें त्वचा और आंखों में पीलापन आ जाता है. इससे बचना है तो बारिश के मौसम में सड़क के किनारे के खोमोचों से न खाएं. पानी उबालकर पिएं और साफ़-सफ़ाई रखें.

🌸3. लेप्टोस्पाइरोसिस
यह एक बैक्टीरियल इन्फ़ेक्शन है, जो जानवरों के संपर्क में आने से होता है. लेप्टोस्पाइरोसिस के बैक्टीरिया जानवरों के किडनी में रहते हैं. उनके मूत्र द्वारा मिट्टी और पानी में मिल जाते हैं. यदि आपकी त्वचा पर खरोंच लगी हो या घाव लगा हो और आप उस मिट्टी या पानी के संपर्क में आते हैं, जहां संक्रमित जानवर में पेशाब किया है लेप्टोस्पाइरोसिस के बैक्टीरिया आपके शरीर में आ जाते हैं. इसके बैक्टीरिया नाक, मुंह या जेनाइटल के द्वारा भी हमारे शरीर में आ सकते हैं.
सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, ‌बुखार इसके आम लक्षण हैं. हालांकि लेप्टोस्पाइरोसिस तक़लीफ़ देह बीमारी है, पर जानलेवा नहीं है. इसके बैक्टीरिया हमारे शरीर में ज़्यादा से ज़्यादा एक सप्ताह तक रहते हैं. इससे बचाव के लिए आप ऐसे पानी में तैरने या हाथ-पैर धोने से बचें, जिसमें जानवरों के पेशाब मिलने की संभावना हो. नंगे पैर न चलें. ख़ासकर जहां जानवरों के मलमूत्र हों.

🌾मच्छरों के चलते होनेवाली बीमारियां
जगह-जगह पानी जमा होना बरसात की आम समस्या है. पर यह आम समस्या जन्म देती है मच्छरों के झुंड के झुंड को, जो हमारी सेहत के लिए समस्या पैदा कर देते हैं. आइए जानें, ये मच्छर हमें किन बीमारियों का तोहफ़ा दे सकते हैं.

🌼1. डेंगू
डेंगू या डेंगी बारिश में मच्छरों के चलते फैलनेवाली सबसे ख़तरनाक बीमारियों में एक है. यह टाइगर मॉस्कीटो (एडीज इजिप्टी) नामक मच्छर के काटने से होती है. डेंगू के लक्षण हैं लिम्फ़ नोड में सूजन, मसल्स और जोड़ों में भयंकर दर्द, थकान, बुखार, सिरदर्द और रैश.
डेंगू के लिए कोई विशेष ऐंटीबायोटिक या ऐंटीवायरल ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है. ख़ुद को मच्छरों के संपर्क में आने से बचाना ही इससे दूर रहने का सबसे अच्छा उपाय है. मॉस्कीटो रिपलेंट्स लगाएं, मच्छरदानी लगाकर सोएं, घर से बाहर निकलते समय फ़ुल स्लीव्स वाली ड्रेसेस पहनें. घर और ऑफ़िस के आसपास पानी न जमा होने दें. थकान महसूस होने पर पर्याप्त आराम करें और डीहाइड्रेशन से बचने के लिए फ़्लूइड का इनटेक भी पर्याप्त रखें.

🌸2. मलेरिया
मलेरिया बरसात के मौसम में मच्छरों के काटने से होनेवाली सबसे आम बीमारी है. यह गंदे पानी में पनपनेवाले एनोफ़िलीज़ नामक मच्छर के काटने से होती है. बुखार, ठंडी लगना, शरीर में अकड़न और पसीना आना मलेरिया के लक्षण हैं. यदि समय रहते मलेरिया का इलाज नहीं कराया गया तो जॉन्डिस और किडनी फ़े‌लियर जैसे कॉ‌म्प्लिकेशन्स हो सकते हैं. मलेरिया के चलते हर वर्ष भारत में हज़ारों लोग मर जाते हैं. चूंकि बरसात में पानी का जमाव अधिक होता है, जिससे मलेरिया के मच्छरों को पनपने में मदद मिलती है. इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि अपने घर या ऑफ़िस के आसपास पानी का जमाव न होने दें. मॉस्कीटो रिपलेंट्स और मच्छरदानी का इस्तेमाल करें.

🌺वायरल ‌फ़ीवर
मौसम में अचानक होनेवाले बदलाव और तापमान के कम, ज़्यादा होते रहने से हमारा शरीर बड़ी आसानी से वायरल इन्फ़ेक्शन के चपेट में आ जाता है. वायरल इन्फ़ेक्शन से सर्दी-खांसी जैसी समस्याएं होती हैं. वायरल इन्फ़ेक्शन के सामान्य लक्षण हैं-छींकें आना, गले में खराश और बुखार. यदि आप चाहते हैं कि वायरल इन्फ़ेक्शन आपको परेशान न करे तो बारिश में न भीगें. यदि भीग गए हैं तो लंबे समय तक भीगे कपड़ों में न रहें. बाहर से आने के बाद हाथ-पैर अच्छे से धोएं. गले की खराश से निजात पाने के लिए गर्म पाने के गरारे करें. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन सी की प्रचुरतावाले फल-सब्ज़ियां खाएं और ह‌री सब्ज़ियों को भी डायट में शामिल करें.

🥀पेट के इन्फ़ेक्शन्स
दूषित पानी या भोजन के चलते गैस्ट्रोएन्टराइटिस (पेट और आंत में सूजन आना) और फ़ूड पॉइज़निंग जैसी समस्याएं मॉनसून में बड़ी आम हैं. इन मामलों में पेट में मरोड़, जी मिचलाना, उल्टी और डायरिया जैसे लक्षण देखे जाते हैं. इस तरह के इन्फ़ेक्शन्स से बचने के लिए बहुत ज़रूरी है कि खाने से पहले फलों और सब्ज़ियों को अच्छे से धो लें. बारिश के मौसम में कच्चा खाना और स्ट्रीट फ़ूड खाने से बचें. ख़ूब पानी पिएं. उल्टी और दस्त होने की स्थिति में ओआरएस लें. अपने खानपान में दही, चावल और केला शामिल करें. पानी उबालकर पिएं.

🌷आंखों के इन्फ़ेक्शन्स
कन्जंक्टिवाइटिस (नेत्र शोथ), आइ स्टाय (गुहेरी) और ड्राय आइज़ जैसी आंखों से जुड़ी समस्याएं बरसात के मौसम में आपको परेशान कर सकती हैं. वैसे भी यह वह समय होता है, जब वायरल और बैक्टीरियल इन्फ़ेक्शन्स को फैलने के लिए मुफ़ीद माहौल मिलता है. चूंकि आंखें बेहद संवेदनशील होती हैं, अत: उन्हें किसी भी तरह के इन्फ़ेक्शन्स से बचाने के लिए बाहर जाते समय सनग्लासेस लगाकर जाएं, ख़ासकर जब आंखों की बीमारियां फैली हों. अपने हाथों को हैंडवॉश या साबुन से धोएं. आंखों पर ठंडे पानी के छींटें मारें.

🌻स्किन इन्फ़ेक्शन्स
नमी, उमस और पसीने के चलते इस मौसम में स्किन इन्फ़ेक्शन्स होने की संभावना भी काफ़ी बढ़ जाती है. इंटरट्रिगो (दो उंगलियों के बीच सूजन आना), आर्म पिट्स और जांघों के आसपास खुजली. यीस्ट इन्फ़ेक्शन, दाद, मुहांसे, ऐथलीट्स फ़ुट (फफूंद के चलते पैरों की उंगलियों के बीच होनेवाला इन्फ़ेक्शन) आदि भी बरसात में काफ़ी परेशान करते हैं.
🌺यदि आप इन इन्फ़ेक्शन्स से बचना चाहते हैं तो बरसात में गीले कपड़े न पहनें, ख़ासकर गीले जूते और मोजे. चुस्त‌ कपड़े न पहनें. यदि अंडरगार्मेंट्स गीले हो गए हैं तो उन्हें तुरंत बदल दें. ऐंटी-बैक्टीरियल साबुन, फ़ेस वॉश और टेल्कम पाउडर का इस्तेमाल करें.
: बार-बार पेशाब आने के 5 कारण और उपाय

कई लोगों के साथ यह समस्या होती है कि उन्हें बार-बार पेशाब के लिए जाना होता है। अगर आपके साथ भी यह समस्या है तो इसका कारण और उपाय आपको जरूर पता होना चाहिए। पहले जानिए इसके यह 5 कारण –

1 बार-बार पेशाब आने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है मूत्राशय की अत्यधिक सक्रियता। ऐसी स्थिति में सामान्य रूप से व्यक्ति बार-बार पेशाब करने के लिए प्रेरित होता है।

2 मधुमेह भी बार-बार पेशाब आने का एक प्रमुख कारण है। रक्त व शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ने पर यह समस्या बढ़ जाती है।

3 अगर आपको यूरीनल ट्रैक्ट इंफेक्शन है, तो आपको इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति में बार-बार पेशाब आने के साथ ही पेशाब में जलन भी होती है।

4 प्रोटेस्ट ग्रंथि के बढ़ने पर भी यह समस्या पैदा हो सकती है।

5 किडनी में संक्रमण होने पर भी बार-बार पेशाब आना बेहद आम बात है, इसलिए अगर आपको यह परेशानी है, तो इसकी जांच जरूर कराएं।

👉🏻. उपाय –
1 भरपूर मात्रा में पानी पिएं ताकि किसी प्रकार का इंफेक्शन हो, तो वह पेशाब के माध्यम से निकल जाए और बाद में आपको इस तरह की परेशान न झेलनी पड़े।

2 दही, पालक, तिल, अलसी, मेथी की सब्जी आदि का रोजाना सेवन करना इस समस्या में फायदेमंद साबित होगा।

3 सूखे आंवले को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इसमें गुड़ मिलाकर खाएं। इससे बार-बार पेशाब आने की समस्या में लाभ होगा। विटामिन सी से भरपूर चीजों का सेवन करें।

4 अनार के छिलकों को सुखा लें और इसे पीसकर चूर्ण बना लें। अब सुबह-शाम इस चूर्ण का सेवन पानी के साथ करें। अगर चाहें तो इसका पेस्ट भी बना सकते हैं।

5 मसूर की दाल, अंकुरित अनाज, गाजर का जूस एवं अंगूर का सेवन भी इस समस्या के लिए एक कारगर उपाय है।

https://youtu.be/6tM2oMiPM4Q


👉🏻लो ब्लड प्रेशर के कारण

1) इस रोग के मुख्य कारणों में दुर्बलता, अधिक उपवास, पौष्टिक भोज्य पदार्थों तथा जल की कमी है |
2) शारीरिक व मानसिक परिश्रम की अधिकता, यक्ष्मा, मानसिक आघात, शरीर से अधिक रक्त बह जाना आदि हैं।
3) लो ब्लड प्रेशर विटामिन बी तथा सी की कमी के कारण भी हो जाता है।
4) गुर्दे तथा आंते पूरी तरह सक्षम न रहने से भी यह रोग सिर उठाने लगता है।
5) यह जीवन से रूखापन तथा परिवारिक संबंधों में आत्मीयता की कमी हो जाने से भी हो जाता है।
6) जो जीवन में निराश रहने लगे, अपने लक्ष्य में बार-बार असफल होता रहे, उसे भी निम्न रक्तचाप की तकलीफ हो सकती है।

👉🏻लो ब्लड प्रेशर(लो बीपी) के लक्षण :

1) इस रोग में रोगी की नब्ज धीमी और छोटी हो जाती है।
2) रोगी थोड़ा सा परिश्रम करने से ही थक जाता है और उसे गश (चक्कर) आ जाता है।
3) रोगी का श्वास फूलने लगता है|
4) रक्त भार मापक यन्त्र द्वारा देखने पर रक्त चाप 110 से 30 तक हो जाता है। उचित चिकित्सा से जीवन आराम से कट जाता हैl
5) रोग पुराना होने पर सदैव सिरदर्द बना रहता है तथा सिर चकराता रहता है।
6) काम में मन नहीं लगता। सब-कुछ छोड़ देने को मन करता है।
7) थोड़ी सी मेहनत से भी चिड़चिड़ा पन होना
8) याददाश्त की कमी |
9) इस रोग के रोगी का आलस्य, अनुत्साह, शरीर का दुर्बल होना प्रमुख लक्षण होते हैं।
10) मानसिक अवसाद|

👉🏻लो बीपी के घरेलू उपाय /उपचार :

रोग का मूल कारण दूर करें तथा कब्ज न होने दें। हृदय, जिगर, तिल्ली तथा आँतों को स्वस्थ रखें, मनोविकारों से बचें।

1) 5-7 बादाम व 3-4 काली मिर्ची को पीसकर एक चम्मच देसी घी में भूनें। जब भून कर लाल हो जाए तो ऊपर से 7-8 किशमिश भी घी में छोड़ दें। ऊपर से लगभग 400 ग्राम दूध बरतन में डाल दें। दस-पन्द्रह मिनट उबलने के बाद उतार लें। गुनगुना रह जाए तो पहले काली मिर्च, बादाम व किशमिश खूब चबाकर खाएं, ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग सुबह-शाम करें। पहले दिन से ही रक्तचाप सामान्य होना शुरू हो जाएगा।
2) ताजा चुकंदर का रस भी बड़ा लाभकारी रहता है। एक छोटा गिलास चुकंदर का ताजा रस प्रात: और इतना ही सायं के समय पिएं। 10 दिनों तक पीने से आप इस रोग से बच जाएंगे।
3) संतरे का रस नमक डालकर पीने से लाभ करता है।
4) आधा कप पानी में आंवले का रस तथा नमक डालकर पीने से निम्न रक्तचाप ठीक हो जाता हैं ।
5) निम्न रक्तचाप को पौष्टिक आहार लेना चाहिए। दूध, दही, मट्ठा,मक्खन, घी आदि जितना आसानी से पचा सके, सेवन करें।
6) निम्न रक्तचाप में नमक की मात्रा सामान्य से बढ़ा दें। फायदा होगा।
7) निम्न रक्तचाप में नीबू-पानी भी लाभ देता है। दिन में तीन बार एक-एक गिलास नमक मिला नीबू-पानी पीना चाहिए। रोग काबू में रहेगा।
8) मट्ठा बड़ा उपयोगी रहता है। एक भरा हुआ गिलास प्रात: और एक दोपहर बाद पीना शुरू करें। दो सप्ताह से ही इस रोग के लक्षण खत्म होने लग जाएंगे।
9) आंवलों का रस और शहद दो-दो चम्मच मिलाकर सुबह शाम चाटें।
10) 15-20 तुलसी की पत्तियों का रस व एक चम्मच शहद, एक कटोरी दही में मिलाकर लें।
11) टमाटर, अंगूर, पालक, गाजर, संतरा, चुकंदर का प्रयोग करें।

👉🏻लो ब्लड प्रेशर में क्या खाएं :

1) हृदय की अधिक कमजोरी के लिए पौष्टिक तथा लघुपाकी आहार दें।
2) कोमल शैय्या इस्तेमाल करायें तथा रोगी को पूर्ण विश्राम हेतु निर्देशित करें।
3) रोग ठीक होने के बाद शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु हल्के व्यायाम, सुबह की सैर तथा महा नारायण तैल की सम्पूर्ण शरीर पर मालिश कराना अतीव गुणकारी है।

👉🏻लो ब्लड प्रेशर होने पर क्या नहीं खाये :

1) अधिक तला हुआ, मसालेदार भोजन ना करे।
2) ज्यादा समय तक धूप में रहना आपके लिए हानिकारक हो सकता ही इससे बचें।
3) चाय या कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए।
4) एक बार में भरपेट भोजन ना करे, थोड़े-थोड़े अंतराल में भोजन करे।

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बारिश में होने वाले 5 चर्म रोगों को जड़ से खत्म कर सकते हैं ये 3 उपाय
 

मानसून में डेंगू, मलेरिया, वायरल, हैजा के अलावा खुजली, दाने, रूखापन, टैनिंग, फोड़े-फुंसी, मुंहासे, फंगल इन्फेक्शन जैसी त्वचा संबंधी समस्याओं का भी बड़ा खतरा होता है।

मानसून का मौसम जितना सुहाना होता है उतना ही खतरनाक भी होता है। इस मौसम में डेंगू, मलेरिया, वायरल, हैजा के अलावा खुजली, दाने, रूखापन, टैनिंग, फोड़े-फुंसी, मुंहासे, फंगल इन्फेक्शन जैसी त्वचा संबंधी समस्याओं का भी बड़ा खतरा होता है। एक्सपर्ट मानते हैं कि बारिश के मौसम में नमी बढ़ जाती है और त्वचा से ऑयल ज्यादा बहता है जिससे स्किन इन्फेक्शन का अधिक खतरा होता है। चलिए जानते हैं कि इस मौसम में आपको त्वचा से जुड़ीं क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं और आप उनसे कैसे राहत पा सकते हैं।  

1) खुजली वाले दाने
बारिश के दिनों पसीने वाली ग्रंथियां ब्लॉक हो जाती हैं। जब पसीना बाहर निकल पाता है, तो यह आपकी त्वचा के नीचे ही बनने लगता है जिससे त्वचा पर दाने, खुजली और छाले होने लगते हैं। इनसे बचने के लिए आप ठंडी सिकाई कर सकते हैं। इसके अलावा चने के आटे का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगा सकते हैं।

2) फोड़े-फुंसी
मानसून में त्वचा पर फुंसी होना भी आम समस्या है। रोम छिद्रों के संक्रमित होने पर फुंसी होती है। यह चेहरे, खोपड़ी, बगल, पीठ, छाती, गर्दन, जांघों और नितंबों पर कहीं भी हो सकती हैं। इससे राहत पाने के लिए आप नीम के पानी से स्नान कर सकते हैं। इसके अलावा प्रभावित हिस्से पर सेब के सिरके को पानी के साथ मिलाकर लगा सकते है

3) मुंहासे
इस मौसम में पसीना बैक्टीरिया और तेल के साथ मिलकर त्वचा पर मुंहासे पैदा करता है। ऐसा आपके छिद्रों के बंद होने से होता है। खासकर ऑयली स्किन वालों को यह समस्या बहुत होती है। इन्हें खत्म करने के लिए आपको मुल्तानी मिट्टी में एक चम्मच सेब के सिरके को डालकर पेस्ट बनाकर प्रभावित हिस्से पर लहाना चाहिए।

4) लाल या सफेद दाने
इस चिपचिपे मौसम में फोड़े होने का भी बहुत खतरा होता है। ये फोड़े मुख्य रूप से बैक्टीरिया के कारण होते हैं जो नम, पसीने वाली त्वचा पर होते हैं। कई मामलों में यह इतने पीड़ादायक हो जाते हैं कि आपको दवाओं की भी जरूरत पड़ सकती है। इनसे बचने के लिए आपको छाछ, नारियल पानी और ताजे फलों का रस और तरबूज का खूब सेवन करना चाहिए।

5) फंगल इन्फेक्शन
गर्मियों में इसका सबसे अधिक खतरा होता है। फंगस त्वचा की ऊपरी सतह पर होता है यह नमी वाले हिस्से खासकर पैरों में अधिक होता है। इसके होने पर आपको तेज खुजली हो सकती है। ऐसा होने पर आपको तुरंत डॉक्टर से मिलना चाह

त्वचा रोगों से बचने के उपाय

👉🏻 नीम का लेप
नीम में कई तरह के गुण पाये जाते हैं खास कर उसमें एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक गुण होते हैं। आप इसके पत्तों को पीस कर कुछ दिन तक इसका लेप रोजाना कुछ देर के लिए लगाएं और हल्के गुनगुने पानी से धो लें। इससे फोड़े- फुंसियों को ठीक करने में मदद मिलती है।

👉🏻 हल्दी और तेल
हल्दी में एंटी सेप्टिक गुण होते हैं जिससे की वह आपके घाव, फुंसियों को और ज्यादा फैलने भी नहीं देती है। आप उसमें सरसों का तेल गर्म करके मिलाकर उसका गाढ़ा लेप बना कर लगाएं। इससे आपको बहुत फायदा मिलेगा।

👉🏻 दाद, खाज खुजली से ऐसे करें बचाव
कम से कम साबुन, शैम्पू और डिटर्जेंट का इस्तेमाल करें। अधिक केमिकल युक्त चीज़ों का इस्तेमाल बंद कर दें। नहाने के लिए ग्लिसरीन सोप का इस्तेमाल करें। नहाने के बाद पूरे शरीर पर नारियल का तेल लगाएं। कपड़े पर साबुन और डिटर्जेंट का इस्तेमाल करने के बाद उसे अच्छी तरह से धो लें। कपड़े पर साबुन और डिटर्जेंट जमा न रहने दें। दाद में से पीप या पानी निकलने पर उसे साफ पानी से धोएं।

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[ लेमन ग्रास के 5 फायदे, जरूर जानें

लेमनग्रास यानि नींबू घास, मुख्य रूप से उत्तर भारत में उगाई जाने वाली घास है, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है। अगर आप नहीं जानते इसके बेहतरीन सेहत लाभ के बारे में, तो जरूर जान लीजिए…
1 लेमनग्रास एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लामेंटरी और एंटीसेप्ट‍िक गुणों से भरपूर होती है, जो कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से आपको बचाए रखने में मददगार होती है। वहीं दिमाग तेज करने के लिए भी यह बेहतरीन है।

2 शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाले दर्द को समाप्त करने के लिए लेमनग्रास की चाय पीना काफी लाभकारी हो सकता है। खास तौर से सिरदर्द और जोड़ों के दर्द में यह बेहद फायदेमंद है।

3 पेट से संबंधित समस्याएं जैसे पेट दर्द, गैस, पेट फूलना, कब्ज, अपच, जी मिचलाना या उल्टी आना जैसी समस्याओं में भी यह असरकार औषधि है। इसके अलावा यह पेट में होने वाली ऐंठन में भी फायदेमंद है।
4 आयरन से भरपूर होने के कारण लेमनग्रास का उपयोग एनीमिया के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। इसके नियमित सेवन से शरीर में आयरन की कमी को पूरा किया जा सकता है।
5 मानसि‍क समस्याओं में तो यह फायदेमंद है ही, शरीर के आंतरिक भागों की सफाई में मदद करती है। इतना ही नहीं कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लड़ने में भी लेमनग्रास बेहद मददगार है।

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: जरूर जानिए मानसून में नाशपाती खाने के 5 अनमोल फायदे

1 नाशपाती खाने का सबसे अच्छा फायदा य है कि इसे रोजाना अपननी डाइट में शामिल करके आप अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बहुत आसानी से बढ़ा सकते हैं और प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत कर सकते हैं।
2 दूसरा फायदा यह है कि पाचन क्रिया को बेहतर बनाने के लिए यह बेहतरीन है। यह न केवल पाचक रसों को सक्रिय करता है बल्कि आंतों की क्रियाविधि को बेहतर बनाता है। 
3 अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो इससे बेहतर कोई फल नहीं है आपके लिए। विटामिन सी से भरपूर नाशपाती वजन कम करने में मददगार है।
4 शुगर के मरीजों, घेंघा रोग से पीड़ित होने पर, एनीमिया, गठिया आदि में नाशपाती का सेवन काफी लाभप्रद साबित होता है। इसमें आयोडीन भी भरपूर मात्रा में होता है और यह घाव को जल्दी भरने में सहायक है।
5 कैंसर से बचाव में सहायक होने के साथ-साथ हृदय के लिए यह लाभदायक है और आपकी त्वचा एवं आंखों को भी फायदा पहुंचाता है। त्वचा की समस्याओं को खत्म करने में यह लाभकारी रहेगा।
: आंखों की रोशनी बढ़ाकर, शरीर की दुर्बलता कम करनी है तो घी के ये नुस्खे पढ़ें

घी के इन नुस्खों को अपनाकर कई सेहत समस्याओं में राहत पाया जा सकता है। आइए, आपको बताते हैं कि आंखों की ज्योति बढ़ाना हो, हड्डियों को मजबूत बनाना हो, शरीर की दुर्बलता कम करनी हो, तो घी को कैसे इस्तेमाल करना चाहिए –
1 एक चम्मच शुद्ध घी, एक चम्मच पिसी शकर, चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाटकर गर्म मीठा दूध पीने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
2 रात को सोते समय एक गिलास मीठे दूध में एक चम्मच घी डालकर पीने से शरीर की खुश्की और दुर्बलता दूर होती है, नींद गहरी आती है, हड्डी बलवान होती है और सुबह शौच साफ आता है।
3 शीतकाल के दिनों में यह प्रयोग करने से शरीर में बलवीर्य बढ़ता है और दुबलापन दूर होता है।
4 घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शकर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बांध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूंट-घूंट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है। 
: सेहत और सुंदरता से जुड़ीं कई समस्याओं में कारगर है लौकी के छिलके, आप भी जानिए कैसे?

लौकी की सब्जी चाहे आपको खाने में पसंद नहीं हो, लेकिन इसके छिलके में सेहत और सौन्दर्य समस्याओं से राहत देने वाले गुण मौजूद होते हैं, उन्हें जानने के बाद जब भी आप बाजार जाएंगे, लौकी जरूर खरीद कर लाएंगे। आइए, जानते हैं लौकी के छिलके में कौन से 3 औषधीय गुण होते है –
1 सनबर्न या टैनिंग – आपको यह जानकर हैरानी होगी, लेकिन लौकी के छिलके का प्रयोग धूप से झुलसी एवं काली हो चुकी त्वचा के लिए बेहद फायदमंद साबित हो सकता है। इसके लिए बस इन छिलकों का पेस्ट बनाना है, और त्वचा पर लगाकर रखना है और फिर धो लेना है।
2 गर्माहट व जलन – अधिक गर्मी के कारण त्वचा एवं पैर के तलवों में जलन होने लगती है, जिससे बचने के लिए लौकी के छिलकों का प्रयोग किया जा सकता है। इन छिलकों को त्वचा पर रगड़ने से राहत मिलती है।
3 बवासीर – बवासीर या पाइल्स की समस्या होने पर भी लौकी के छिलके फायदेमंद है। इन छिलकों को सुखाकर पाउडर बना लें और इसे रोजाना ठंडे पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करें। जल्द राहत मिलेगी।

🚩🚩 जय श्री राम 🚩🚩
: 🌝चंद्र🌝

चंद्र :-चन्द्रमा माँ का सूचक है और मनं का करक है |शास्त्र कहता है की “चंद्रमा मनसो जात:” | इसकी कर्क राशि है | कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर। माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएँ आदि सूख जाते हैं मानसिक तनाव,मन में घबराहट,तरह तरह की शंका मनं में आती है औरमनं में अनिश्चित भय व शंका रहती है और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।*

👉उपाय : सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चाँदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा दें तथा दूसरे को अपने पास रखें। कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है। यदि चंद्र बारहवाँ हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएँ और ना ही दूध पिलाएँ। सोमवार को सफ़ेद वास्तु जैसे दही,चीनी, चावल,सफ़ेद वस्त्र, १ जोड़ा जनेऊ,दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है |
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#ईश्वरगत/इसरगत/इस्सर्गत…..
सही वर्तनी आज तक नहीं खोजी लेकिन हर बार नागपंचमी आते ही ये शब्द आता है और याद आते हैं #नानाजी। सावन आने से पहले ही एक खास तिथि को नानाजी इसकी लकड़ी की छोटी सी टुकड़ी (शायद जड़ की) जनेऊ के धागे या किसी सूती धागे की मदद से कलाई पर बांध दिया करते थे। अपने घर ही नहीं बल्कि टोले-मोहल्ले में सबको वे यह उपलब्ध कराते थे। #मिथिला में यह एक परंपरा सी थी। इधर कई वर्षों से खोज करने के बाद भी इस पौधे के बारे में जानकारी नहीं मिल रही। गाँव में तांत्रिक जी नाम से प्रसिद्ध एक चाचाजी यह बांटा करते थे।

इस लकड़ी की विशेषता यह बताई जाती थी कि इसकी एक विशेष गंध के कारण #सांप इसके नजदीक नहीं आता है, इसलिए बांधने वाला व्यक्ति सुरक्षित रहता है। एक बार मैंने इसकी प्रामाणिकता पर सवाल कर दिया था तो बस इतना पता चला था कि ऐसा कोई मामला कभी देखा नहीं गया कि इसे प्रयोग करने वाला व्यक्ति सर्पदंश का शिकार हुआ हो।

स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई से मिले संस्कार के प्रभाव में मैं इसे अन्धविश्वास मान चुका था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में रवि शंकर जी और DrAbhilasha P. Dwivedi जैसों के सान्निध्य में जब से भारतीय परंपरा के ज्ञान को ढूंढने-समझने में दिलचस्पी आयी है, इसके बारे में यदा-कदा कुछ लोगों से पूछा है, समाधान नहीं मिला। हालाँकि मैंने कोई गंभीर खोज की भी नहीं है।

तथापि, #बराक घाटी में प्रवास ने इस पौधे के प्रति दिलचस्पी फिर जगायी है। यहां हर माह ब्लीचिंग पाउडर और फिनायल के ऊपर हजारेक रुपये का खर्च इसकी याद दिलाता है और कल की एक घटना ने इस जिज्ञासा को फिर कुरेदा। कल अनजाने में एक छोटा #अलोध (#कोबरा की एक बेहद खतरनाक प्रजाति, कहा जाता है कि यह उछलकर वार करता है) मेरे हाथों चोटिल हो गया। दरवाजे में कुंडी लगाने वाले छेद में यह डेढ़-दो फिट का सांप घुसकर कैसे बैठा, यह एक पहेली है मेरे लिए। यह स्थिति तब है जब हर दूसरे दिन हर दरवाजे के आसपास काला फिनायल डाला जाता है। दरवाजा बंद करने के लिए कुण्डी लगाने मैंने जितना जोर लगाया होगा, शायद उस चोट की वजह से यह कुछ देर तक हिल नहीं रहा था। हमारे एक मित्र ने लगभग 100 मिली फिनायल जब छिद्र की फेंका तो सांप फुर्ती से बाहर आ गिरा। उन्होंने फिर किसी तरह उसे बड़े फट्ठे के सहारे घर के बाहर ले जाकर फेंका।

इस घटना के विषय में जानने के बाद स्थानीय लोगों की सलाह है कि #लहसन को पीसकर उसके घोल का छिड़काव किया जाए। बराक घाटी में सांप, ख़ासकर अलोध, को दूर रखने के लिए यह घोल सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। यहां लोग सांप को आम तौर पर मारते नहीं हैं, विषहरा देवी और मनसा देवी की पूजा बड़े स्तर पर होती है। केवल सांप ही नहीं, चूहे को मारने के लिए दवा का प्रयोग यहाँ सामान्य नहीं है। बल्कि तेजपत्ता जलाकर धुंआ किया जाता है। इस धुएं से चूहा भाग जाता है। धुएं का प्रयोग देखकर गाँव में सांप भगाने के लिए खरी/पुराने कपडे/मिर्च जलाने की बात याद आयी। यहाँ कुत्तों को रोकने के लिए भी दरवाजे/बाउंड्री पर पानी की बोतल में नील भरकर रखे गए दृश्य भी आम हैं।

गंध का यह अनु प्रयोग #इसरगत की याद बरबस दिला गया, संयोग से #नागपंचमी का समय भी है। #चंदन में विषधर लिपटने को तो साहित्यकारों ने भी खूब रेखांकित किया है लेकिन विषधरों को दूर रखने वाले पेड़/पौधे का सहज उल्लेख उपलब्ध नहीं है। कुछ स्थानीय मित्र बताते हैं कि इस क्षेत्र में भी एक ख़ास पौधे की उपस्थिति विषधरों को दूर रखती है, लेकिन इसका नाम आदि कोई ठीक से बता नहीं पा रहा।

नाग पञ्चमी की हार्दिक शुभ कामनाएं !
ऊँ अष्टकुल नागनागेभ्यो नम:’ मंत्र के द्वारा आज भी सर्प पूज्यनीय देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। शिवजी के मुख्य गणों में सर्प भी पूज्यनीय देव हैं।भगवान श्रीकृष्ण के चरणों को चिन्ह धारण करता कालिया नाग अपने परिवार सहित कृष्ण
आज्ञा से अन्यत्र चला गया था। भीम सेन को विष देकर जब नदी में फेंक दिया था तो नागलोक के राजा ने भीम के प्राणों की रक्षा की। ध्रुव को नागों व सर्पों के बीच फेंक दिया था परंतु विष्णु भक्त ध्रुव के ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्रोच्चारण से नागों ने ध्रुव के प्राणों की रक्षा की। ऊँ आस्तिकाय नम: यह मंत्र सर्पों से
रक्षा कराता है। परीक्षत के पुत्र जनमत्रेय ने पिता की हत्या का बदला लेने के लिये ‘सर्पयज्ञ’
का ऋषियों द्वारा आयोजन किया गया था। उस सर्प विध्वंस यज्ञ को रोकने के लिये ‘आस्तीक’ नाथ
ऋषि की सलाह पर सर्प यज्ञ रोक दिया था। तभी से सर्प व नाग जाति के करबद्ध हो प्रार्थना की थी कि सर्पभय उपस्थित होने पर यदि ऋषि ‘आस्तिक’ का नाम सर्प के आगे लिया जाएगा तो सर्प तत्काल वापिस चला जायेगा, परंतु यदि वापिस न जाय तो उस सर्प के सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।
नमोSस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवी मनुयेSन्तरिक्षे ये
दिवि तेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।
आदि अनेक ऋचाओं द्वारा नागों की पूजा व स्तुति का विधान पाया जाता है। अग्नि पुराण में 80
प्रकार के विभिन्न नाग कुलों का वर्णन मिलता है। जिनमें 1. अनंत, 2. वासुकी, 3. पघ, 4. महापघ, 5.तक्षक, 6. कुलीर, 7. कर्कोटक, 8. धृतराष्ट्र, 9.कम्बलकम् और 10 शंख ये प्रमुख हैं। नागों के पृथक लोक ‘नागलोक’ का वर्णन भी पुराणों में मिलता है।
कथा सरित्सागर में नागों के संबंध में विशद वर्णन मिलता है। कालसर्प दोष में नागों की पूजा का विशेष विधान प्रसिद्ध है। ‘ऊँ अष्टकुल नाग नागेभ्यो नम:’। यह मंत्र नागों की पूजा का रहस्य बताता है। दक्षिण भारत में कनाड़ा जिले में नागमूर्ति, जिसका निर्माण ईसवी सन से भी पूर्व हुआ था, जनमानस की असीम श्रद्धा की प्रतीक है। अजन्ता गुफा में चित्रित नागपूजा के चरित्र व चित्र नाग पूजा की पूजा प्राचीनता के पुष्ट प्रमाण है।अबुल फजल के लेखानुसार अकबर कालीन भारत में
अकेले कश्मीर में 700 से अधिक स्थानों पर सर्प-मूर्तियों की पूजा होती थी। हरिद्वार में मनसा माता की पूजा आज भी भक्तों के मनोभावों को, इच्छाओं को पूरा करती है। असम प्रांत की ‘नागा’
जाति में नाग देवता समुद्रभूत होने का गर्व पाया जाता है।

नाग पञ्चमी के कुछ अर्थ-वेद का सर्पविद्या अंग लुप्त होने के कारण इसे ठीक से समझना सम्भव नहीं है। पर नीचे दिये कुछ उद्धरणों के आधार पर इसके कुछ अर्थ दिये जा रहे हैं।
रज्जुरिव हि सर्पाः कूपा इव हि सर्पाणां आयतनानि अस्ति वै मनुष्याणां च सर्पाणां च विभ्रातृव्यम् (शतपथ ब्राह्मण, ४/४/५/३)
नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। येऽन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः॥ (यजु, वाजसनेयि १३/६)
ते (देवाः) एतानि सर्पनामान्यपश्यन्। तैरुपातिष्ठन्त तैरस्माऽइमांल्लोकानस्थापयम्स्तैरनमयन्यदनमयंस्तस्मात् सर्पनामानि। (शतपथ ब्राह्मण, ७/४/१/२६)
इयं वै पृथिवी सर्पराज्ञी (ऐतरेय ब्राह्मण ५/३३, तैत्तिरीय ब्राह्मण, १/४/६/६, शतपथ ब्राह्मण २/१/४/३०, ४/६/९/१७)
देव वै सर्पाः। तेषामियं (पृथिवी) राज्ञी। (तैत्तिरीय ब्राह्मण २/२/६/२)
सर्पराज्ञा ऋग्भिः स्तुवन्ति। अर्ब्बुदः सर्प एताभिर्मृतां त्वचमपाहत मृतामेवैताभिस्त्वचमपघ्नते। (ताण्ड्य महाब्राह्मण, ९/८/७-८)
अर्बुदः काद्रवेयो राजेत्याह तस्य सर्पा विशः… सर्पविद्या वेदः… सर्पव्द्याया एकं पर्व व्याचक्षाण इवानुद्रवेत्। (शतपथ ब्राह्मण, १३/४/३/९)
ते देवाः सर्पेभ्य आश्रेषाभ्य आज्ये करंभं निरवपन्। तान् (असुरान्) एताभिरेव देवताभिरुपानयन्। (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/१/४/७)
सर्प के वेद में कई अर्थ हैं-(१) आकाश का ८वां आयाम। इसको वृत्र, अहि, नाग भी कहा गया है। इस अर्थ में नाग, अहि, सर्प आदि का ८ संख्या के लिये व्यवहार होता है। यान्त्रिक विश्व के ५ आयाम हैं-रेखा, पृष्ठ, आयतन, पदार्थ, काल। चेतना या चिति करने वाला पुरुष तत्त्व ६ठा आयाम है। दो पिण्डों या कणों के बीच सम्बन्ध ऋषि (रस्सी) ७वां आयाम है। पिण्डों को सीमा के भीतर घेरने वाला वृत्र या अहि है।
वृत्रो ह वाऽ इदं सर्वं वृत्वा शिश्ये। यदिदमन्तरेण द्यावापृथिवी स यदिदं सर्वं वृत्वा शिश्ये तस्माद् वृत्रो नाम। (शतपथ ब्राह्मण, १/१/३/४) स यद्वर्त्तमानः समभवत्। तस्माद् वृत्रः (शतपथ ब्राह्मण, १/६/३/९)
(२) आकाश गंगा (ब्रह्माण्ड) की सर्पाकार भुजा अहिर्बुध्न्य (बुध्न्य = बाढ़, ब्रह्माण्ड का द्रव जैसा फैला पदार्थ, अप्; उसमें सर्प जैसी भुजा अहिः, पुराण का शेषनाग), इसमें सूर्य के चारों तरफ भुजा की मोटाई का गोला महर्लोक है जिसके १००० तारा शेष के १००० सिर हैं जिनमें एक पर कण के समान पृथ्वी स्थित है। (३) पृथ्वी की वक्र परिधि सतह सर्पराज्ञी है। ७ द्वीपों को जोड़ने वाले ८ दिङ्नाग हैं। (४) समुद्री यात्रा मार्ग मुख्यतः उत्तर गोलार्ध में था। पृथ्वी पर वह मार्ग तथा उसके समान्तर आकाश का मार्ग नाग वीथी है। (५) व्यापार के लिये वस्तुओं का परिवहन करने वाले नाग हैं जो पूरे विश्व में फैले हैं। केन्द्रीय वितरक माहेश्वरी हैं। यह अग्रवालों में बड़े माने जाते हैं। (६) नाग पूजा पृथ्वी तथा उसके ऊपर मनुष्य रूप नागों के कार्य में सहयोग के लिये शक्ति देना है जिससे वे विश्व का भरण पोषण कर सकें। इसे देवों द्वारा दिया गया आज्य कहा है। आज्य का स्रोत दूध है जो प्रतीक रूप में दिया जाता है। इसकी व्याख्या वेदों की सर्पविद्या में थी जो लुप्त है। (७) आश्लेषा (तैत्तिरीय में आश्रेषा भी) के देवता सर्प हैं। यह नक्षत्र मुख्यतः ब्रह्माण्ड की सर्पिल भुज के मध्य में है। श्रावण मास में सूर्य आश्लेषा नक्षत्र में रहता है, मुख्यतः शुक्ल पञ्चमी तिथि के निकट। पूर्णिमा को चन्द्रमा इसके विपरीत श्रवण नक्षत्र में रहेगा जिसका देवता सर्प का विपरीत गरुड़ है। अतः इस समय नाग पूजा होती है।
वृत्रशङ्कुं दक्षिणतोऽधस्यैवानत्ययाय। (शतपथ ब्राह्मण, १३/८/४/१)
सूर्य जब पृथ्वी सतह पर सबसे दक्षिण रहता है तब वह श्रवण (३ तारा, तार्क्ष्य = गरुड़) नक्षत्र में होता है। उसके बाद उत्तरायण होने पर उत्तरी गोलार्ध में वृत्र = रात्रि का मान कम होने लगता है। अतः श्रवन का देवता गरुड़ है।
(८) पृथ्वी की नाग (गोलाकार पृष्ठ) सीमा के भीतर रहने वाले सर्पाकार जीव भी सर्प हैं।
[: बिहार के प्राचीन नाम

१. पौराणिक इतिहास भूगोल-(१) कालमान (क) ज्योतिषीय काल-बिहार के प्राचीन नामों को जानने के लिये पुराणों का प्राचीन इतिहास भूगोल समझना पड़ेगा। अभी २ प्रकार से ब्रह्मा का तृतीय दिन चल रहा है। ज्योतिष में १००० युगों का एक कल्प है जो ब्रह्मा का एक दिन है। यहां युग का अर्थ है सूर्य से उसके १००० व्यास दूरी (सहस्राक्ष क्षेत्र) तक के ग्रहों (शनि) का चक्र, अर्थात् १ युग में इनकी पूर्ण परिक्रमायें होती हैं। आधुनिक ज्योतिष में भी पृथ्वी गति का सूक्ष्म विचलन जानने के लिये शनि तक के ही प्रभाव की गणना की जाती है। भागवत स्कन्ध ५ में नेपचून तक के ग्रहों का वर्णन है जिसे १०० कोटि योजन व्यास की चक्राकार पृथ्वी कहा गया है। इसका भीतरी ५० कोटि योजन का भाग लोक = प्रकाशित है, बाहरी अलोक भाग है। इसमें पृथ्वी के चारों तरफ ग्रह-गति से बनने वाले क्षेत्रों को द्वीप कहा गया है जिनके नाम वही हैं जो पृथ्वी के द्वीपों के हैं। पृथ्वीके द्वीप अनियमित आकार के हैं, सौर-पृथ्वी के द्वीप चक्राकार (वलयाकार) हैं। द्वीपों के बीच के भागों को समुद्र कहा गया है। पृथ्वी का गुरुत्व क्षेत्र जम्बूद्वीप, मंगल तक के ठोस ग्रहों का क्षेत्र दधि समुद्र आदि हैं। १००० युगों के समय में प्रकाश जितनी दूर तक जा सकता है वह तप लोक है तथा वह समय (८६४ कोटि वर्ष) ब्रह्मा का दिन रात है। इस दिन से अभी तीसरा दिन चल रहा है अर्थात् १७२८ कोटि वर्ष के २ दिन-रात बीत चुके हैं तथा तीसरे दिन के १४ मन्वन्तरों (मन्वन्तर = ब्रह्माण्ड या आकाश गंगा का अक्षभ्रमण काल) में ६ बीतचुके हैं, ७वें मन्वन्तर के ७१ युगों में २७ बीत चुके हैं तथा २८ वें युग के ४ खण्डों में ३ बीत चुके हैं-सत्य, त्रेता, द्वापर (ये ४३२,००० वर्ष के कलि के ४, ३, २ गुणा हैं)। चतुर्थ पाद युग कलि १७-२-३१०२ ई.पू. से चल रहा है।
(ख) ऐतिहासिक काल-ऐतिहासिक युग चक्र ध्रुवीय जल प्रलय के कारण होता है जो १९२३ के मिलांकोविच सिद्धान्त के अनुसार २१६०० वर्षों का चक्र है। यह २ गतियों का संयुक्त प्रभाव है-१ लाख वर्षों में पृथ्वी की मन्दोच्च गति तथा विपरीत दिशा में २६,००० वर्ष में अयन गति (पृथ्वी अक्ष की शंकु आकार में गति-ब्रह्माण्ड पुराण का ऐतिहासिक मन्वन्तर-स्वायम्भुव मनु से कलि आरम्भ तक )। भारत में मन्दोच्च गति के दीर्घकालिक अंश ३१२,००० वर्ष चक्र को लिया गया है। इसमें २४,००० वर्षों का चक्र होता है, जिसमें १२-१२ हजार वर्षों का अवसर्पिणी (सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि क्रम में) तथा उत्सर्पिणी (विपरीत क्रम में युग खण्ड) भाग हैं। प्रति अवसर्पिणी त्रेता में जल प्रलय तथा उत्सर्पिणी त्रेता में हिम युग आता है। तृतीय ब्रह्माब्द का अवसर्पिणी वैवस्वत मनु काल से आरम्भ हुआ, जिसके बाद ४८०० वर्ष का सत्य युग, ३६०० वष का त्रेता तथा २४०० वर्ष का द्वापर १७-२-३१०२ ई.पू में समाप्त हुये। अर्थात् वैवस्वत मनु का काल १३९०२ ई.पू. था। अवसर्पिणी कलि १२०० वर्ष बाद १९०२ ई.पू. में समाप्त हुआ। उसके बाद उत्सर्पिणी का कलि ७०२ ई.पू. में, द्वापर १६९९ ई. में पूर्ण हुआ। अभी १९९९ ई. तक उत्सर्पिणी त्रेता की सन्धि थी अभी मुख्य त्रेता चलरहा है। त्रेता को यज्ञ अर्थात् वैज्ञानिक उत्पादन का युग कहा गया है। १७०० ई. से औद्योगिक क्रान्ति आरम्भ हुयी, अभी सूचना विज्ञान का युग चल रहा है। इसी त्रेता में हिमयुग आयेगा। विश्व का ताप बढ़ना तात्कालिक घटना है, दीर्घकालिक परिवर्तन ज्योतिषीय कारणों से ही होगा।
(२) आकाश के लोक-आकाश में सृष्टि के ५ पर्व हैं-१०० अरब ब्रह्माण्डों का स्वयम्भू मण्डल, १०० अरब तारों का हमारा ब्रह्माण्ड, सौरमण्डल, चन्द्रमण्डल (चन्द्रकक्षा का गोल) तथा पृथ्वी। किन्तु लोक ७ हैं-भू (पृथ्वी), भुवः (नेपचून तक के ग्रह) स्वः (सौरमण्डल १५७ कोटि व्यास, अर्थात् पृथ्वी व्यास को ३० बार २ गुणा करने पर), महः (आकाशगंगा की सर्पिल भुजा में सूर्य के चतुर्दिक् भुजा की मोटाई के बराबर गोला जिसके १००० तारों को शेषनाग का १००० सिर कहते हैं), जनः (ब्रह्माण्ड), तपः लोक (दृश्य जगत्) तथा अनन्त सत्य लोक।
(३) पृथ्वी के तल और द्वीप-इसी के अनुरूप पृथ्वी पर भी ७ तल तथा ७ लोक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध का नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है, अतः नक्शा) ४ भागों में बनता था। इसके ४ रंगों को मेरु के ४ पार्श्वों का रंग कहा गया है। ९०-९० अंश देशान्तर के विषुव वृत्त से ध्रुव तक के ४ खण्डों में मुख्य है भारत, पश्चिम में केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व, तथा विपरीत दिशा में उत्तर कुरु। इनको पुराणों में भूपद्म के ४ पटल कहा गया है। ब्रह्मा के काल (२९१०२ ई.पू.) में इनके ४ नगर परस्पर ९० अंश देशान्तर दूरी पर थे-पूर्व भारत में इन्द्र की अमरावती, पश्चिम में यम की संयमनी (यमन, अम्मान, सना), पूर्व में वरुण की सुखा तथा विपरीत में चन्द्र की विभावरी। वैवस्वत मनु काल के सन्दर्भ नगर थे, शून्य अंश पर लंका (लंका नष्ट होने पर उसी देशान्तर रेखा पर उज्जैन), पश्चिम में रोमकपत्तन, पूर्व में यमकोटिपत्तन तथा विपरीत दिशा में सिद्धपुर। दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इन खण्डों के ठीक दक्षिण ४ भाग थे। अतः पृथ्वी अष्ट-दल कमल थी, अर्थात् ८ समतल नक्शे में पूरी पृथ्वी का मानचित्र होता था। गोल पृथ्वी का समतल नक्शा बनाने पर ध्रुव दिशा में आकार बढ़ता जाता है और ठीक ध्रुव पर अनन्त हो जायेगा। उत्तरी ध्रुव जल भाग में है (आर्यभट आदि) अतः वहां कोई समस्या नहीं है। पर दक्षिणी ध्रुव में २ भूखण्ड हैं-जोड़ा होने के कारण इसे यमल या यम भूमि भी कहते हैं और यम को दक्षिण दिशा का स्वामी कहा गया है। इसका ८ भाग के नक्शे में अनन्त आकार हो जायेगा अतः इसे अनन्त द्वीप (अण्टार्कटिका) कहते थे। ८ नक्शों से बचे भाग के कारण यह शेष है।
भारत भाग में आकाश के ७ लोकों की तरह ७ लोक थे। बाकी ७ खण्ड ७ तल थे-अतल, सुतल, वितल, तलातल, महातल, पाताल, रसातल।
वास्तविक भूखण्डों के हिसाब से ७ द्वीप थे-जम्बू (एसिया), शक (अंग द्वीप, आस्ट्रेलिया), कुश (उत्तर अफ्रीका), शाल्मलि (विषुव के दक्षिण अफ्रीका), प्लक्ष (यूरोप), क्रौञ्च (उत्तर अमेरिका), पुष्कर (दक्षिण अमेरिका)। इनके विभाजक ७ समुद्र हैं।
(४) धाम-आकाश के ४ धाम हैं-अवम (नीचा) = क्रन्दसी-सौरमण्डल, मध्यम = रोदसी-ब्रह्माण्ड, उत्तम या परम (संयती)-स्वयम्भू मण्डल, परात्पर-सम्पूर्ण जगत् का अव्यक्त मूल। इनके जल हैं-मर, अप् या अम्भ, सलिल (सरिर), रस। इनके ४ समुद्र हैं-विवस्वान्, सरस्वान्, नभस्वान्, परात्पर। इनके आदित्य (आदि = मूल रूप) अभी अन्तरिक्ष (प्रायः खाली स्थान) में दीखते हैं-मित्र, वरुण, अर्यमा, परात्पर ब्रह्म। इसी के अनुरूप पृथ्वी के ४ समुद्र गौ के ४ स्तनों की तरह हैं जो विभिन्न उत्पाद देते हैं-स्थल मण्डल, जल मण्डल, जीव मण्डल, वायुमण्डल। इनको आजकल ग्रीक में लिथो, हाइड्रो, बायो और ऐटमो-स्फियर कहा जाता है। शंकराचार्य ने ४८३ ई.पू. में इसके अनुरूप ४ धाम बनाये थे-पुरी, शृङ्गेरी, द्वारका, बदरी। ७०० ई. में गोरखनाथ ने भी ४ तान्त्रिक धाम बनाये-कामाख्या, याजपुर (ओडिशा), पूर्णा (महाराष्ट्र), जालन्धर (पंजाब) जिसके निकट गुरुगोविन्द सिंह जी ने अमृतसर बनाया।
(५) भारत के लोक-भारत नक्शे के ७ लोक हैं-भू (विन्ध्य से दक्षिण), भुवः (विन्ध्य-हिमालय के बीच), स्वः (त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम, हिमालय), महः (चीन के लोगों का महान् = हान नाम था), जनः (मंगोलिया, अरबी में मुकुल = पितर), तपः (स्टेपीज, साइबेरिया), सत्य (ध्रुव वृत) इन्द्र के ३ लोक थे-भारत, चीन, रूस। आकाश में विष्णु के ३ पद हैं-१०० व्यास तक ताप क्षेत्र, १००० व्यास तक तेज और उसके बाद प्रकाश (जहां तक ब्रह्माण्ड से अधिक है) क्षेत्र। विष्णु का परमपद ब्रह्माण्ड है जो सूर्य किरणों की सीमा कही जाती है अर्थात् उतनी दूरी पर सूर्य विन्दुमात्र दीखेगा, उसके बाद ब्रह्माण्ड ही विन्दु जैसा दीखेगा। पृथ्वी पर सूर्य की गति विषुव से उत्तर कर्क रेखा तक है, यह उत्तर में प्रथम पद है। विषुव वृत्त तक इसके २ ही पद पूरे होते हैं, तीसरा ध्रुव-वृत्त अर्थात् बलि के सिर पर है।
२. भारत के नाम-(१) भारत-इन्द्र के ३ लोकों में भारत का प्रमुख अग्रि (अग्रणी) होने के कारण अग्नि कहा जाता था। इसी को लोकभाषा में अग्रसेन कहते हैं। प्रायः १० युग (३६०० वर्षों) तक इन्द्र का काल था जिसमें १४ प्रमुख इन्द्रों ने प्रायः १००-१०० वर्ष शासन किया। इसी प्रकार अग्रि = अग्नि भी कई थे। अन्न उत्पादन द्वारा भारत का अग्नि पूरे विश्व का भरण करता था, अतः इसे भरत कहते थे। देवयुग के बाद ३ भरत और थे-ऋषभ पुत्र भरत (प्रायः ९५०० ई.पू.), दुष्यन्त पुत्र भरत (७५०० ई.पू.) तथा राम के भाई भरत जिन्होंने १४ वर्ष (४४०८-४३९४ ई.पू.) शासन सम्भाला था।
(२) अजनाभ-विश्व सभ्यता के केन्द्र रूप में इसे अजनाभ वर्ष कहते थे। इसके शासक को जम्बूद्वीप के राजा अग्नीध्र (स्वयम्भू मनु पुत्र प्रियव्रत की सन्तान) का पुत्र नाभि कहा गया है।
(३) भौगोलिक खण्ड के रूप में इसे हिमवत वर्ष कहा गया है क्योंकि यह जम्बू द्वीप में हिमालय से दक्षिण समुद्र तक का भाग है। अलबरूनी ने इसे हिमयार देश कहा है (प्राचीन देशों के कैलेण्डर में उज्जैन के विक्रमादित्य को हिमयार का राजा कहा है जिसने मक्का मन्दिर की मरम्मत कराई थी)
(४) इन्दु-आकाश में सृष्टि विन्दु से हुयी, उसका पुरुष-प्रकृति रूप में २ विसर्ग हुआ-जिसका चिह्न २ विन्दु हैं। विसर्ग का व्यक्त रूप २ विन्दुओं के मिलन से बना ’ह’ है। इसी प्रकार भारत की आत्मा उत्तरी खण्ड हिमालय में है जिसका केन्द्र कैलास विन्दु है। यह ३ विटप (वृक्ष, जल ग्रहण क्षेत्र) का केन्द्र है-विष्णु विटप से सिन्धु, शिव विटप (शिव जटा) से गंगा) तथा ब्रह्म विटप से ब्रह्मपुत्र। इनको मिलाकर त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम है। इनका विसर्ग २ समुद्रों में होता है-सिन्धु का सिन्धु समुद्र (अरब सागर) तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र का गंगा-सागर (बंगाल की खाड़ी) में होता है। हुएनसांग ने लिखा है कि ३ कारणों से भारत को इन्दु कहते हैं-(क) उत्तर से देखने पर अर्द्ध-चन्द्राकार हिमालय भारत की सीमा है, चन्द्र या उसका कटा भाग = इन्दु। (ख) हिमालय चन्द्र जैसा ठण्ढा है। (ग) जैसे चन्द्र पूरे विश्व को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार भारत पूरे विश्व को ज्ञान का प्रकाश देता है। ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते थे जिससे इण्डिया शब्द बना है।
(५) हिन्दुस्थान-ज्ञान केन्द्र के रूप में इन्दु और हिन्दु दोनों शब्द हैं-हीनं दूषयति = हिन्दु। १८ ई. में उज्जैन के विक्रमादित्य के मरने के बाद उनका राज्य १८ खण्डों में भंट गया और चीन, तातार, तुर्क, खुरज (कुर्द) बाह्लीक (बल्ख) और रोमन आदि शक जातियां। उनको ७८ ई. में विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने पराजित कर सिन्धु नदी को भारत की पश्चिमी सीमा निर्धारित की। उसके बाद सिन्धुस्थान या हिन्दुस्थान नाम अधिक प्रचलित हुआ। देवयुग में भी सिधु से पूर्व वियतनाम तक इन्द्र का भाग था, उनके सहयोगी थे-अफगानिस्तान-किर्गिज के मरुत्, इरान मे मित्र और अरब के वरुण तथा यमन के यम।
(६) कुमारिका-अरब से वियतनाम तक के भारत के ९ प्राकृतिक खण्ड थे, जिनमें केन्द्रीय खण्ड को कुमारिका कहते थे। दक्षिण समुद्र की तरफ से देखने पर यह अधोमुख त्रिकोण है जिसे शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति (स्त्री) का मूल रूप कुमारी होने के कारण इसे कुमारिका खण्ड कहते हैं। इसके दक्षिण का महासागर भी कुमारिका खण्ड ही है जिसका उल्लेख तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है। आज भी इसे हिन्द महासागर ही कहते हैं।
(७) लोकपाल संस्था-२९१०२ ई.पू. में ब्रह्मा ने ८ लोकपाल बनाये थे। यह उनके स्थान पुष्कर (उज्जैन से १२ अंश पश्चिम बुखारा) से ८ दिशाओं में थे। यहां से पूर्व उत्तर में (चीन, जापान) ऊपर से नीचे, दक्षिण पश्चिम (भारत) में बायें से दाहिने तथा पश्चिम में दाहिने से बांये लिखते थे जो आज भी चल रहा है। बाद के ब्रह्मा स्वायम्भुव मनु की राजधानी अयोध्या थी, और लोकपालों का निर्धारण भारत के केन्द्र से हुआ। पूर्व से दाहिनी तरफ बढ़ने पर ८ दिशाओं (कोण दिशा सहित) के लोकपाल हैं-इन्द्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, मरुत्, कुबेर, ईश। इनके नाम पर ही कोण दिशाओं के नाम हैं-अग्नि, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान। अतः बिहार से वियतनाम और इण्डोनेसिया तक इन्द्र के वैदिक शब्द आज भी प्रचलित हैं। इनमें ओड़िशा में विष्णु और जगन्नाथ सम्बन्धी, काशी (भोजपुरी) में शिव, मिथिला में शक्ति, गया (मगध) में विष्णु के शब्द हैं। शिव-शक्ति (हर) तथा विष्णु (हरि) क्षेत्र तथा इनकी भाषाओं की सीमा आज भी हरिहर-क्षेत्र है। इन्द्र को अच्युत-च्युत कहते थे, अतः आज भी असम में राजा को चुतिया (च्युत) कहते हैं। इनका नाग क्षेत्र चुतिया-नागपुर था जो अंग्रेजी माध्यम से चुटिया तथा छोटा-नागपुर हो गया। ऐरावत और ईशान सम्बन्धी शब्द असम से थाइलैण्ड तक, अग्नि सम्बन्धी शब्द वियतनाम. इण्डोनेसिया में हैं। दक्षिण भारत में भी भाषा क्षेत्रों की सीमा कर्णाटक का हरिहर क्षेत्र है। उत्तर में गणेश की मराठी, उत्तर पूर्व के वराह क्षेत्र में तेलुगु, पूर्व में कार्त्तिकेय की सुब्रह्मण्य लिपि तमिल, कर्णाटक में शारदा की कन्नड़, तथा पश्चिम में हरिहर-पुत्र की मलयालम।
३. बिहार नाम का मूल-सामान्यतः कहा जाता है कि यहां बौद्ध विहार अधिक थे अतः इसका नाम बिहार पड़ा। यह स्पष्ट रूप से गलत है और केवल बौद्ध भक्ति में लिखा गया है। जब सिद्धार्थ बुद्ध (१८८७-१९०७ ई.पू.) या गौतम बुद्ध (५६३ ई.पू जन्म) जीवित थे तब भी इसे बिहार नहीं, मगध कहते थे। बौद्ध विहार केवल बिहार में ही नहीं, भारत के सभी भागों में थे। मुख्यतः कश्मीर में अशोक के समकालीन गोनन्द वंशी अशोक के समय सबसे अधिक बौद्ध विहार बने थे जिसमें मध्य एसिया के बौद्धों का प्रवेश होने से उन्होंने कश्मीर का राज्य नष्ट-भ्रष्ट कर दिया (राजतरंगिणी, तरंग १)। यह भारत के प्राकृतिक विभाजन के कारण नाम है। आज भी हिमाचल प्रदेश में पहाड़ की ऊपरी भूमि (अधित्यका) को खनेर और घाटी की समतल भूमि (उपत्यका) को बहाल या बिहाल कहते हैं। इसका मूल शब्द है बहल (बह्+क्लच्, नलोपश्च) = प्रचुर, बली, महान्। यथा-असावस्याः स्पर्शो वपुषि बहलश्चन्दनरसः (उत्तररामचरित१/३८), प्रहारैरुद्रच्छ्द्दहनबहलोद्गारगुरुभि (भर्तृहरि, शृङ्गार शतक, ३६)। बहल एक प्रकार की ईख का भी नाम है। खनेर का मूल शब्द है-खण्डल-भूखण्ड, या उसका पालन कर्त्ता। आखण्डल -सभी भूखण्डों का स्वामी इन्द्र। भारत में विन्ध्य और हिमालय के बीच खेती का मुख्य क्षेत्र था। उसमें भी बिहार भाग सबसे चौड़ा और अधिक नदियों (विशेषकर उत्तर बिहार) से सिञ्चित था। अधिक विस्तृत समतल भाग के अर्थ में इसे बहल या विहार (रमणीय) कहते हैं। सबसे अधिक कृषि का क्षेत्र मिथिला था जहां के राजा जनक भी हल चलाते थे। खेती में मुख्यतः घास जाति के धान और गेहूं रोपे जाते हैं, जो एक प्रकार के दर्भ हैं। दर्भ क्षेत्र को दरभंगा कहते हैं। भूमि से उत्पन्न सम्पत्ति सीता है, इसका एक भाग राजा रूप में इन्द्र को मिलता है। अतः यह शक्ति क्षेत्र हुआ। दर्भंगा के विशेष शब्द वही होंगे जो अथर्ववेद के दर्भ तथा कृषि सूक्तों में हैं। यहां केवल खेती है, कोई वन नहीं है। इसके विपरीत विदर्भ में दर्भ बिल्कुल नहीं है, केवल वन हैं। इसका पश्चिमी भाग रीगा ऋग्वेद का केन्द्र था जहां से ज्ञान संस्थायें शुरु हुयीं। ज्ञान का केन्द्र काशी शिव का स्थान हुआ। कर्क रेखा पर गया विष्णुपद तीर्थ या विष्णु खेत्र हुआ। दरभंगा के चारों तरफ अरण्य क्षेत्र हैं-अरण्य (आरा-आयरन देवी), सारण (अरण्य सहित) चम्पारण, पूर्ण-अरण्य (पूर्णिया)। गंगा के दक्षिण छोटे आकार के वृक्ष हैं अतः मगध को कीकट भी कहते थे। कीकट का अर्थ सामान्यतः बबूल करते हैं, पर यह किसी भी छोटे आकार के बृक्ष के लिये प्रयुक्त होता है जिसे आजकल कोकाठ कहते हैं।
उसके दक्षिण में पर्वतीय क्षेत्र को नागपुर (पर्वतीय नगर) कहते थे। इन्द्र का नागपुर होने से इसे चुतिया (अच्युत-च्युत) नागपुर कहते थे। आज भी रांची में चुतिया मोड़ है। घने जंगल का क्षेत्र झारखण्ड है। इनके मूल संस्कृत शब्द हैं-झाटः (झट् + णिच+ अच्)-घना जंगल, निकुञ्ज, कान्तार। झुण्टः =झाड़ी। झिण्टी = एक प्रकार की झाड़ी। झट संहतौ-केश का जूड़ा, झोंटा, गाली झांट।
गंगा नदी पर्वतीय क्षेत्र से निकलने पर कई धारायें मिल कर नदी बनती है। जहां से मुख्य धारा शुरु होती है उस गांगेय भाग के शासक गंगा पुत्र भीष्म थे। जहां से उसका डेल्टा भाग आरम्भ होता है अर्थात् धारा का विभाजन होता है वह राधा है। वहां का शासक राधा-नन्दन कर्ण था। यह क्षेत्र फरक्का से पहले है।
४. राजनीतिक भाग-(१) मल्ल-गण्डक और राप्ती गंगा के बीच।
(२) विदेह-गंगा के उत्तर गण्डक अओर कोसी नदी के बीच, हिमालय के दक्षिण। राजधानी मिथिला वैशाली से ५६ किमी. उत्तर-पश्चिम।
(३) मगध-सोन नद के पूर्व, गंगा के दक्षिण, मुंगेर के पश्चिम, हजारीबाग से उत्तर। प्राचीन काल में सोन-गंगा संगम पर पटना था। आज भी राचीन सोन के पश्चिम पटना जिले का भाग भोजपुरी भाषी है। नदी की धारा बदल गयी पर भाषा क्षेत्र नहीं बदला। राजधानी राजगीर (राजगृह)।
(४) काशी-यह प्रयाग में गंगा यमुना संगम से गंगा सोन संगम तक था, दक्षिण में विन्ध्य से हिमालय तक। इसके पश्चिम कोसल (अयोध्या इसी आकार का महा जनपद था। इसका पूर्वी भाग अभी बिहार में है पुराना शाहाबाद अभी ४ भागों में है भोजपुर, बक्सर, रोहतास, भभुआ।
(५) अंग-मोकामा से पूर्व मन्दारगिरि से पश्चिम, गंगा के दक्षिण, राजमहल के उत्तर। राजधानी चम्पा (मुंगेर के निकट, भागलपुर) । मन्दार पर्वत समुद्र मन्थन अर्थात् झारखण्ड में देव और अफ्रीका के असुरों द्वारा सम्मिलित खनन का केन्द्र था। इसके अधीक्षक वासुकि नाग थे, जिनका स्थन वासुकिनाथ है। कर्ण यहां का राजा था।
(६) पुण्ड्र-मिथिला से पूर्व, वर्तमान सहर्षा और पूर्णिया (कोसी प्रमण्डल) तथा उत्तर बंगाल का सिलीगुड़ी। कोसी (कौशिकी) से दुआर (कूचबिहार) तक। राजधानी महास्थान बोग्रा से १० किमी. उत्तर।
पर्वतीय भाग-(१) मुद्गार्क-राजमहल का पूर्वोत्तर भाग, सन्थाल परगना का पूर्व भाग, भागलपुर और दक्षिण मुंगेर (मुख्यतः अंग के भाग)। मुद्गगिरि = मुंगेर।
(२) अन्तर्गिरि-राजमहल से हजारीबाग तक।
(३) बहिर्गिरि-हजारीबाग से दामोदर घाटी तक।
(४) करूष-विन्ध्य का पूर्वोत्तर भाग, कैमूर पर्वत का उत्तरी भाग, केन (कर्मनाशा) से पश्चिम।
(५) मालवा-मध्य और उत्तरी कर्मनाशा (केन नदी)।
५. विशिष्ट वैदिक शब्द-(१) भोजपुरी-यह प्राचीन काशी राज्य था। काशी अव्यक्त शिव का स्थान था जिसके चतुर्दिक् अग्नि रूप में शिव के ८ रूप प्रकट हुये (८ वसु), इनके स्थान अग्नि-ग्राम (अगियांव) हैं। मूल काशी के चारों तरफ ८ अन्य पुरी थी, कुल ९ पुरियों के लोग नवपुरिया कहलाते थे जो सरयूपारीण (सरयू के पूर्व) ब्राह्मणों का अन्य नाम है। ज्ञान परम्परा के आदिनाथ शिव और यज्ञ भूमि के कारण शिव और यज्ञ से सम्बन्धित शब्द भोजपुरी में अधिक हैं। प्रायः ५० विशिष्ट वैदिक शब्दों में कुछ उदाहरण दिये जाए हैं-
(क) रवा-यज्ञ द्वारा जरूरी चीजों का उत्पादन होता है। जो व्यक्ती उपयोगी काम में सक्षम है उसमें महादेव का यज्ञ वृषभ रव कर रहा है, अतः वह महादेव जैसापूजनीय है। सबसे पहले पुरु ने प्रयाग में यज्ञ-संस्था बनायी थी (विष्णु पुराण, ४/६/३-४)। अतः उनको सम्मान के लिये पुरुरवा कहा गया। अतः प्रयाग से सोन-संगम तक आज भी सम्मान के लिये रवा कहते हैं। जो आदमी किसी काम लायक नहीं है, वह अन-रवा = अनेरिया (बेकार) है।
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः। अनेन प्रसविष्यध्वमेषवोऽस्त्विष्टकामधुक्। (गीता ३/१०)
चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति, महोदेवो मर्त्यां आविवेश॥ (ऋक् ४/५८/३)
पुरुरवा बहुधा रोरूयते (यास्क का निरुक्त १०/४६-४७)।
महे यत्त्वा पुरूरवो रणायावर्धयन्दस्यु- हत्याय देवाः। (ऋक् १०/९५/७)
(ख) बाटे (वर्त्तते)-केवल भोजपुरी में वर्त्तते (बाटे) का प्रयोग होता है, बाकी भारत में अस्ति। पश्चिम में अस्ति से ’आहे, है’ हो गया। पूर्व में अस्ति का अछि हो गया। अंग्रेजी में अस्ति से इस्ट (इज) हुआ। इसका कारण है कि जैसे आकाश में हिरण्यगभ से ५ महाभूत और जीवन का विकास हुआ, उसी प्रकार पृथ्वी पर ज्ञान का केन्द्र भारत था और भारत की राजधानी दिवोदास काल में काशी थी। इसका प्रतीक पूजा में कलश होता है जो ५ महाभूत रूप में पूर्ण विश्व है। जीवन आरम्भ रूप में आम के पल्लव हैं तथा हिरण्यगर्भ के प्रतीक रूप में स्वर्ण (या ताम्र) पैसा डालकर इसका मन्त्र पढ़ते हैं-
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ (ऋक् १०/१२१/१, वाजसनेयी यजुर्वेद १३/४, २३/१, अथर्व ४/२/७)
हिरण्य गर्भ क्षेत्र के रूप में काशी है (काश = दीप्ति), परिधि से बाहर निकलने पर प्रकाश। इसकी पूर्व सीमा पर सोन नद का नाम हिरण्यबाहु। यहां समवर्तत हुआ था अतः वर्तते का प्रयोग, भूतों के पति शिव का केन्द्रीय आम्नाय।
(ग) भोजपुरी-किसी स्थान में अन्न आदि के उत्पादन द्वारा पालन करने वाला भोज है। पूरे भारत पर शासन करने वाला सम्राट् है, संचार बाधा दूर करने वाला चक्रवर्त्ती है। उसके ऊपर कई देशों में प्रभुत्व वाला इन्द्र तथा महाद्वीप पर प्रभुत्व वाला महेन्द्र है। विश्व प्रभुत्व वाला विराट् है, ज्ञान का प्रभाव ब्रह्मा, बल का प्रभाव विष्णु। यहां का दिवोदास भोज्य राजा था, अतः यह भोजपुर था। महाभारत में भी यादवों के ५ गणों में एक भोज है, कंस को भी भोजराज कहा गया है। यह सदा से अन्न से सम्पन्न था।
भागवत पुराण, स्कन्ध १०, अध्याय १-श्लाघ्नीय गुणः शूरैर्भवान्भोजयशस्करः॥३७॥
उग्रसेनं च पितरं यदु-भोजान्धकाधिपम्॥६९॥
इमे भोजा अङ्गिरसो विरूपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः।
विश्वामित्राय ददतो मघानि सहस्रसावे प्रतिरन्तआयुः॥ (ऋक्३ /५३/७)
नभो जामम्रुर्नन्यर्थमीयुर्नरिष्यन्ति न व्यथन्ते ह भोजाः।
इदं यद्विश्वं भुवनं स्वश्चैतत्सर्वं दक्षिणैभ्योददाति॥ (ऋक् १०/१०७/८)
(इसी भाव में-आरा जिला घर बा कौन बात के डर बा?)
(घ) कठोपनिषद्-अन्न क्षेत्र होने से यहां के ऋषि को वाजश्रवा कहा है (वाज = अन्न, बल, घोड़ा), श्रवा = उत्पादन। वे दान में बूढ़ी गायें दे रहे थे जिसका उनके पुत्र नचिकेता ने विरोध किया। चिकेत = स्पष्ट, जिसे स्पष्ट ज्ञान नहीं है और उसकी खोज में लगा है वह नचिकेता है। या ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में सम्बन्ध जानने वाला। वह ज्ञान के लिये वैवस्वत यम के पास संयमनी पुरी (यमन, अम्मान, मृत सागर, राजधानी सना) गये थे। मनुष्य के २ लक्ष्य हैं प्रेय (तात्कालिक लाभ) और श्रेय (स्थायी लाभ)। भारत में श्रेय आदर्श है अतः सम्मान के लिये श्री कहते हैं। पश्चिम एसिया में प्रेय आदर्श था अतः वहां पूज्य को पीर कहते हैं जो हमारा प्रेय दे सके। नचिकेता पीर से मिलने गया था जो उसे सोना-चान्दी आदि देना चाहते थे, अतः उसके स्थान का नाम पीरो हुआ। वहां की मुद्रा दीनार थी (दीनता दूर करने के लिये), भारत में इस शब्द का प्रयोग मुस्लिम शासन में भी नहीं हुआ है, पर यहां से नचिकेता पीर के पास गया था, अतः यहां का मुख्य बाजार दिनारा कहलाता है। प्रेय को छोड़ कर श्रेय मार्ग लेना धीर के लिये ही सम्भव है, जिसे भोजपुरी में कहते हैं ’संपरता’ जो कठोपनिषद् से आया है-श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतत्, तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरः॥ (कठोपनिषद् १/२/२)
(२) मैथिली-इसमें भी प्रायः ५० विशिष्ट वैदिक शब्द हैं जिनमें खोज की जरूरत है। कृषि सूक्त से सम्बन्धित शब्द इसमें हैं-
(क) अहां के-शक्ति रूप में देवनागरी के ५० वर्ण ही मातृका हैं क्योंकि इनसे वाङ्मय रूप विश्व उत्पन्न होता है। मातृ-पूजा में इन्हीं वर्णों का न्यास शरीर के विभिन्न विन्दुओं पर किया जात है। असे ह तक शरीर है, उसे जानने वाला आत्मा क्षेत्रज्ञ है (गीत अध्याय १३), अतः क्ष, त्र, ज्ञ-ये ३ अक्षर बाद में जोड़ते हैं। मातृका रूप शक्ति का स्वरूप होने के कारण मनुष्य को सम्मान के लिये अहं (अहां) कहते हैं अथात् अ से ह तक मातृका।
(ख) सबसे अधिक खेती का विकास मिथिला में हुआ, अतः वहां के शासक को जनक (उत्पादक, पिता) कहते थे। वह स्वयं भी खेती करते थे। वहां केवल खेती थी, वन नहीं था। खेती में सभी वृक्ष घास या दर्भ हैं, अतः इस क्षेत्र को दर्भङ्गा कहते हैं। भूमि से उत्पादित वस्तु सीता है, अतः जनक की पुत्री को भूमि-सुता तथा सीता कहा गया। इसका भाग लेकर इन्द्र (राजा) प्रजा का पालन तथा रक्षण करता है। इसका विस्तृत वर्णन अथर्ववेद के कृषि (३/१७) तथा दर्भ (१९/२८-३०,३२-३३) सूक्तों में है-
अथर्व (३/१७)-इन्द्रः सीतां निगृह्णातु तां पूषाभिरक्षतु। सा नः पयस्वती दुहामुत्तरमुत्तरां समाम्॥४॥
शुनं सुफाला वितुदन्तु भूमिं शुनं कीनाशा अनुयन्तु वाहान्।
शुनासीरा (इन्द्र) हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तमस्मै॥५॥
सीते वन्दामहे त्वार्वाची सुभगे भव। यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भवः॥८॥
घृतेन सीता मधुना समक्ता विश्वैर्देवैरनुमतामरुद्भिः।
सा नः सीता पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत्पिन्वमाना॥९॥
अथर्व (१९/२८)-घर्म (घाम = धूप) इवाभि तपन्दर्भ द्विषतो नितपन्मणे।
अथर्व (१९/२८)-तीक्ष्णो राजा विषासही रक्षोहा विश्व चर्षणिः॥४॥
= राजा रक्षा तथा चर्षण (चास = खेती) करता है।
(ग) झा-शक्ति के ९ रूपों की दुर्गा रूप में पूजा होती है। नव दुर्गा पूजक को झा कहते हैं क्योंकि झ नवम व्यञ्जन वर्ण है।
(३) मगही के शब्द विष्णु सूक्त में अंगिका के शब्द सूर्य सूक्त में होने चाहिए। इनकी खोज बाकी है।
(४) खनिज सम्बन्धी शब्द स्वभावतः वहीं होंगे जहां खनिज मिलते हैं। बलि ने युद्ध के डर से वामन विष्णु को इन्द्र की त्रिलोकी लौटा दी थी। पर कई असुर सन्तुष्ट नहीं थे और युद्ध चलते रहे। कूर्म अवतार विष्णु ने समझाया कि यदि उत्पादन नहीं हो तो युद्ध से कुछ लूट नहीं सकते अतः देव-असुर दोनों खनिज सम्पत्ति के दोहन के लिये राजी हो गये (१६०० ई.पू.)। असुर भूमि के भीतर खोदने में कुशल थे अतः खान के नीचे वे गये जिसको वासुकि का गर्म मुख कहा गया है। देव लोग विरल धातुओं के निष्कासन में कुशल थे अतः जिम्बाबवे का सोना (जाम्बूनद स्वर्ण) तथा मेक्सिको की चान्दी (माक्षिकः = चान्दी) निकालने के लिये देवता गये। बाद में इसी असुर इलाके के यवनों ने भारत पर आक्रमण कर राजा बाहु को मार दिया (मेगास्थनीज के अनुसार ६७७७ ई.पू.)। प्रायः १५ वर्ष बाद सगर ने आक्रमणकारी बाकस (डायोनिसस) को भगाया और यवनों को ग्रीस जा पड़ा जिसके बाद उसका नाम यूनान हुआ। अतः आज भी खनिज कर्म वाले असुरों की कई उपाधि वही हैं जो ग्रीक भाषा में खनिजों के नाम हैं-
(क) मुण्डा-मुण्ड लौह खनिज (पिण्ड) है और उसका चूर्ण रूप मुर (मुर्रम) है। पश्चिम में नरकासुर की राजधानी लोहे से घिरी थी अतः उसे मुर कहते थे। वाल्मीकि रामायण (किष्किन्धा काण्ड, अध्याय ३९) के अनुसार यहीं पर विष्णु का सुदर्शन चक्र बना था। आज भी यहां के लोगों को मूर ही कहते हैं। लोहे की खान में काम करने वालों को मुण्डा कहते हैं। मुण्ड भाग में अथर्व वेद की शाखा मुण्डक थी जिसे पढ़ने वाले ब्राह्मणों की उपाधि भी मुण्ड है। )
(ख) हंसदा-हंस-पद का अर्थ पारद का चूर्ण या सिन्दूर है। पारद के शोधन में लगे व्यक्ति या खनिज से मिट्टी आदि साफ करने वाले हंसदा हैं।
(ग) खालको-ग्रीक में खालको का अर्थ ताम्बा है। आज भी ताम्बा का मुख्य अयस्क खालको (चालको) पाइराइट कहलाता है।
(घ) ओराम-ग्रीक में औरम का अर्थ सोना है।
(ङ) कर्कटा-ज्यामिति में चित्र बनाने के कम्पास को कर्कट कहते थे। इसका नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है) बनाने में प्रयोग है, अतः नकशा बना कर कहां खनिज मिल सकता है उसका निर्धारण करने वाले को करकटा कहते थे। पूरे झारखण्ड प्रदेश को ही कर्क-खण्ड कहते थे (महाभारत, ३/२५५/७)। कर्क रेखा इसकी उत्तरी सीमा पर है, पाकिस्तान के करांची का नाम भी इसी कारण है।
(च) किस्कू-कौटिल्य के अर्थशास्त्र में यह वजन की एक माप है। भरद्वाज के वैमानिक रहस्य में यह ताप की इकाई है। यह् उसी प्रकार है जैसे आधुनिक विज्ञान में ताप की इकाई मात्रा की इकाई से सम्बन्धित है (१ ग्राम जल ताप १० सेल्सिअस बढ़ाने के लिये आवश्यक ताप कैलोरी है)। लोहा बनाने के लिये धमन भट्टी को भी किस्कू कहते थे, तथा इसमें काम करने वाले भी किस्कू हुए।
(छ) टोप्पो-टोपाज रत्न निकालनेवाले।
(ज) सिंकू-टिन को ग्रीक में स्टैनम तथा उसके भस्म को स्टैनिक कहते हैं।
(झ) मिंज-मीन सदा जल में रहती है। अयस्क धोकर साफ करनेवाले को मीन (मिंज) कहते थे-दोनों का अर्थ मछली है।
(ञ) कण्डूलना-ऊपर दिखाया गया है कि पत्थर से सोना खोदकर निकालने वाले कण्डूलना हैं। उस से धातु निकालने वाले ओराम हैं।
(ट) हेम्ब्रम-संस्कृत में हेम का अर्थ है सोना, विशेषकर उससे बने गहने। हिम के विशेषण रूप में हेम या हैम का अर्थ बर्फ़ भी है। हेमसार तूतिया है। किसी भी सुनहरे रंग की चीज को हेम या हैम कहते हैं। सिन्दूर भी हैम है, इसकी मूल धातु को ग्रीक में हाईग्रेरिअम कहते हैं जो सम्भवतः हेम्ब्रम का मूल है।
(ठ) एक्का या कच्छप-दोनों का अर्थ कछुआ है। वैसे तो पूरे खनिज क्षेत्र का ही आकार कछुए जैसा है, जिसके कारण समुद्र मन्थन का आधार कूर्म कहा गया। पर खान के भीतर गुफा को बचाने के लिये ऊपर आधार दिया जाता है, नहीं तो मिट्टी गिरने से वह बन्द हो जायेगा। खान गुफा की दीवाल तथा छत बनाने वाले एक्का या कच्छप हैं।

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