Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

पञ्चमुखी हनुमान मंत्र इनके मंत्रो में सबसे अद्भुत और शक्ति का परिचायक है | यह कैसा भी संकट को , उसे दूर करने की क्षमता रखता है | भगवान शिव के रूद्र अवतार श्री हनुमान की महानता और बाहुबलीपन को कौन नही जानता |

✨ पंचमुखी हनुमान रूप ✨

आठ चिरंजीवी में उन्हें माता सीता द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त है | आज हम हनुमान जी के पञ्चमुखी रूप और उससे जुड़े महाशक्तिशाली मंत्र के बारे में पढ़ेंगे। पवनपुत्र हनुमान को संकटमोचन के नाम से भी पुकारा जाता है | यह अपने भक्तो के संकट को दूर करने में देर नही लगाते | रामायण में एक प्रसंग आया है जिसमे इन्होने अपने प्रभु श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण के भी प्राण बचाए थे | इसके लिए इन्होने पंचमुखी रूप धारण किया था |

कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसे नहिं जात है टारो ।।

यह हनुमान का पञ्चमुखी मंत्र हर तरह के दुःख , कष्ट , विपदाओ का नाश करने वाला है | इसके जप से आप निरोगी शरीर , यश , वैभव की प्राप्ति करते है | जिस जगह यह मंत्र उच्चारण किया जायेगा वहा नकारात्मक शक्तियां दूर होगी |

🕉 पञ्चमुखी हनुमान मंत्र :🕉

ॐ हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा

🕉 मन्त्र की जाप विधि – 🕉

पञ्चमुखी हनुमान की फोटो लाल कपडे की चौकी पर लगाये | फिर स्नान धुप दीपक से पूजा करे | हनुमान को प्रिय चीजो को भेट करे |

अपने गुरु से दीक्षा लेकर रुद्राक्ष , लाल चन्दन या मुंगे की माला से सवा लाख जप करे | इससे यह मन्त्र सिद्ध हो जायेगा | साधना काल में ब्रहमचर्य का पालन करे | साधना काल में डरे नही और निडर होकर हनुमान जी पूजा करते रहे |

✨एक और शक्तिशाली मंत्र है जो आपको बड़ी से बड़ी बुरी शक्तियों से रक्षा करता है |✨

मंत्र 2

ऊँ ऐं श्रीं ह्रीं ह्रीं हं ह्रौं ह्रः ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत-पिशाच ब्रह्म राक्षस शाकिनी डाकिनी यक्षिणी पूतना मारीमहामारी राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकान् क्षणेन हन हन,भंजय भंजय मारय मारय,क्षय शिक्षय महामहेश्वर रुद्रावतार

मंत्र जप :

12 बार इस मंत्र को जप ले , भयानक से भयानक डर भी खत्म हो जायेगा | इसमे सभी बुरी शक्तियों से बचाव का मार्ग हनुमान जी की विनती से बताया गया है |

रक्षाबंधन का आध्यात्मिक रहस्य

क्या बहनों द्बारा भाईयों को राखी भेजना/बांधना और भाईयों द्बारा बहनों को गिफ्ट देना ही रक्षाबंधन है ? किससे किसकी रक्षा होनी है? आज कौन भाई किस बहन की रक्षा कर सकता है ?
वास्तव में मर्यादाओं के बंधन में जो सुरक्षा समाई है उसे हम रक्षाबंधन कहते हैं ।
परमात्मा बताते हैं कि सृष्टि चक्र के अंतिम प्रहर यानि कलियुग और सतयुग के संगम के समय
जब परमात्मा इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं तो वे हमें ज्ञान , प्यार व शक्ति देते हैं । परमात्मा से ज्ञान लेकर आत्मा को प्रतिज्ञा करनी होती है कि उस ज्ञान का जीवन में इस्तेमाल करना है । उस प्रतिज्ञा से हम बंधे हुए हैं , इस प्रतिज्ञा को जो आत्मा पूरा करेगी वो स्वयं की रक्षा होते हुए देख सकेगी ।
जब हम पूजा करने बैठते हैं तो हम देवी देवताओं का आह्वान करते हैं , वास्तव में इसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि आत्मा के अंदर जो दिव्यता है हम उसका आह्वान करते हैं ना कि किसी देहधारी देवी देवता का । हमारे संस्कार ही ग्रह नक्षत्रों को दर्शाते हैं । पंडित जी कहते हैं कि नक्षत्र और देवी देवता हमारी रक्षा करेंगे , इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि हमारी दिव्यता ही हमारा रक्षाकवच है ना कि कोई देहधारी नक्षत्र या देवी देवता रक्षा करने आयेंगे ।
हमारी रक्षा तभी होगी जब अपने अंदर की दिव्यता एवम दिव्य संस्कारों का आह्वान करेंगे।*
इतनी सारी आदतें हैं जिनको हम छोड़ नहीं पा रहे हैं , जैसे खाने की , पीने की , टी .वी . देखने की , कंप्यूटर पर कितनी देर बैठना है , मोबाइल पर अत्यधिक बिजी रहना ये आदतें हम छोड़ नहीं पाते क्योंकि हम अपने आपको बंधन में नहीं बांधते हैं । बंधन यानि अनुशासन ।
[🌹☘🌹☘🌹☘🌹

👉🏿इंसान बनने का काढ़ा

यदि आप अच्छे इंसान बनना चाहते है तो निम्नलिखित काढ़े का निर्माण कर स्वयं प्रयोग करे:➖👇

1. सच्चाई के पत्ते-1 ग्राम
2. ईमानदारी की जड़-3ग्राम
3. परोपकार के बीज-5 ग्राम
4. रहमदिल का छिलका-4ग्राम
5. दानशीलता का छिलका-4 ग्राम
6. स्वदेश प्रेम का रस-3 ग्राम
7. उदारता का रस-3 ग्राम
8. सतसंगत का रस-4 ग्राम

👉🏿निर्माण विधि:➖👇

उपरोक्त बताई गई समस्त वस्तुओ को परमात्मा के बर्तन में एक साथ डालकर स्नेह भाव के चूल्हे पर रख कर प्रेम की अग्नि में धीरे धीरे पकाये। अच्छी तरह पक जाने पर नीचे उतार कर ठंडा करे। फिर शुद्ध मन के कपड़े से छान कर मस्तिष्क की शीशी में भर ले।

👉🏿सेवन विधि:➖👇

इसको प्रतिदिन संतोष के गुलकंद के साथ इन्साफ के चमच्च में सुबह, दोपहर और शाम दिन में तीन बार सेवन करे।

👉🏿परहेज:➖👇

क्रोध की मिर्च, अहंकार का तेल, लोभ की मिठाई, स्वार्थ का घी, धोखे का पापड़। इन सबसे सावधान व दुराचरण की भावना से बचना है।

👉🏿नोट➖ इसका निर्माण प्रत्येक व्यक्ति द्वारा संभव है।

☘🌴🌹🌴☘🌹☘🌹पेट की अनेक समस्याओं में

🌹 जीरा, काली मिर्च, छोटी हरड़, अजवायन व सेंधा नमक समभाग लें । जीरे को थोड़ा भून लें और शेष सामग्री के साथ पीस के महीन चूर्ण बना लें । 3 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी या शहद के साथ दिन में 1-2 बार लेने से अरुचि, अफरा, पेटदर्द, हिचकी, वातविकार, अपचन आदि में लाभ होता है । (अथवा आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध संतकृपा चूर्ण सुबह-शाम 1-1 चम्मच गुनगुने पानी से लें, उपरोक्त समस्याओं में यह विशेष लाभदायी है ।)

https://t.me/AshramSwasthyaSeva
https://chat.whatsapp.com/CzleRUcojLt5nu46BGJqyM

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
: 💪🏻🌱पुराना बुखार हो तो🌱👍🏻🍎
◻◻◻◻◻◻◻◻◻◻
◻🌹अदभुत प्रयोग🌹 ◻

👉तुलसी के ताजे पत्ते 6, काली मिर्च और मिश्री 10 ग्राम ये तीनों पानी के साथ पीस कर घोल बना के बीमार व्यक्ति को पिला दें। कितना भी पुराना बुखार हो, कुछ दिन यह प्रयोग करने से सदा के लिये मिट जायेगा।

🌼🌼🌼🙏🌼🌼🌼

https://t.me/AshramSwasthyaSeva


🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
🌹मधुप्रमेह🌹

🌹प्रतिदिन सुबह मेथी की भाजी का 100 मि.ली. रस पी जायें। शक्कर की मात्रा ज्यादा हो तो सुबह शाम दो बार रस पियें। साथ ही भोजन में गेहूँ, चावल एवं चिकनी (घी-तेलयुक्त) तथा मीठी चीजों का सेवन न करने से शीघ्र लाभ होता है।

https://t.me/AshramSwasthyaSeva
https://chat.whatsapp.com/CTyQzCSXvZpKso2pTC4jDd

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉स्वास्थ्य टिप्स -अनिद्रा के रोग में:

🌹३ ग्राम तरबूज के सफ़ेद बीज पीस के उसमें ३ ग्राम खसखस पीस के सुबह अथवा शाम को १ हफ्ते तक खाएं ।

🌹६ ग्राम खसखस २५० ग्राम पानी में पीस के छान लें और उसमें २०-२५ ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह या शाम पियें । मीठे सेब का मुरब्बा खाएं । रात को दूध पियें ।

🌹रात को सोते समय ॐ का लम्बा उच्चारण १५ मिनट तक करें ।

https://t.me/AshramSwasthyaSeva


🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🌹नीम पत्ते का औषधीय प्रयोग

🌻स्वप्न दोष: 10 मि:ली नीम पत्तों का रस यानी अर्क में 2 ग्राम रसायन चूर्ण मिला लें और पी लें ।

🌻रक्त शुद्धि गर्मी शमन हेतु: सुबह खाली पेट 15-20 नीम पत्तों का रस सेवन करें।

🌻नीम तेल : चर्म रोग व पुराने घाव में नीम का तेल लगाएं व इसकी 5-10 बूंद गुनगुने पानी से दिन में 2 बार लें।

🌻गठिया व सिरदर्द में : प्रभावित अंगों पर नीम तेल की मालिश करें ।

🌻जलने पर: आग से जलने से हुए घाव पर नीम तेल लगाने से धाव शीघ्र भर जाता है ।

https://t.me/AshramSwasthyaSeva

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🌹 (Chickenpox)के कारण लक्षण घरेलू उपचार

🌹रोग के परिचय

🌻चिकनपॉक्स के रोग में बुखार के बाद शरीर पर लाल दाने निकलते हैं। ये दाने 2 से 3 दिन के बाद फफोले का रूप ले लेते हैं। 4 से 5 दिन में इन दानों में से पपड़ी जमकर नीचे गिरने लगती है। चेचक में बुखार और प्रदाह (जलन) के कारण रोगी को काफी बैचेनी होती है। इस रोग को ठीक होने में कम से कम 7 से 10 दिन तक लग जाते हैं।

🌹चिकनपॉक्स रोग के कारण

🌻चिकनपॉक्‍स एक वायरल इंफेक्‍शन है। यह रोग हवा के माध्यम से या एक संक्रमित व्यक्ति के छाले से लार, बलगम या तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैल सकता है।

🌹चिकनपॉक्स के लक्षण

🌻शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह बुखार 104 डिग्री फारेनहाइट हो जाता है। रोगी को बेचैनी होने लगती है। उसे बहुत ज्यादा प्यास लगती है और पूरे शरीर में दर्द होने लगता है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है और साथ में जुकाम भी हो जाता है। 2-3 दिन के बाद बुखार तेज होने लगता है। शरीर पर लाल-लाल दाने निकलने लगते हैं। दानों में पानी जैसी मवाद पैदा हो जाती है और 7 दिनों में दाने पकने लगते हैं (साबधान उसे नाखून से फोड़े नही इसे बीमार फैलता है ) जोकि धीरे-धीरे सूख जाते हैं। दानों पर खुरण्ड (पपड़ी) सी जम जाती है। कुछ दिनों के बाद खुरण्ड (पपड़ी) तो निकल जाती है लेकिन उसके निशान रह जाते हैं।

🌹भोजन और परहेज :

🌻छोटे बच्चों को चेचक(chicken pox)होने पर दूध, मूंग की दाल, रोटी और हरी सब्जियां तथा मौसमी फल खिलाने चाहिए या उनका जूस पिलाना चाहिए।

🌻चेचक के रोग से ग्रस्त रोगी के घर वालों को खाना बनाते समय सब्जी में छोंका नहीं लगाना चाहिए।

🌻रोगी को तली हुई चीजें, मिर्चमसाले वाला भोजन और ज्यादा ठंड़ी या ज्यादा गर्म चीजें नहीं देनी चाहिए।

दरवाजे पर नीम के पत्तों की टहनी लटका देनी चाहिए।

🌻चिकन पाक्स होने पर बाहर और भीड वाली जगह पर जाने से परहेज करें। हो सके तो इस दौरान लोगों से दूर रहें।

🌹आयुर्वेदिक उपचार

🌻नीम की पत्तियों को पानी में उबाल उस पानी से नहाने से चर्म रोग दूर होते हैं और ये खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक होता है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक होता है।

🌻एक मुट्ठी नीम की पत्तियां लेकर उनका पेस्‍ट बना लें। नीम के पानी से नहाने के बाद चिकनपॉक्‍स वाले हिस्‍से पर इस पेस्ट को लगा लें। हालांकि इससे त्वचा में खुजली हो सकती है, लेकिन त्वचा के इलाज के लिए बहुत अच्छा उपाय है।

🌻नीम के तेल में आक के पत्तों का रस मिलाकर चेचक के दानों पर लगाने से लाभ होता है।

🌹चेचक के रोगी का बिस्तर बिल्कुल साफ-सुथरा रखें और उसके बिस्तर पर नीम की पत्तियां रख दें। फिर नीम के मुलायम पत्तों को पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस 1-1 गोली को सुबह और शाम दूध के साथ रोगी को खिलायें। गर्मी का मौसम हो तो नीम की टहनी से हवा करने से चेचक के दानों में मौजूद जीवाणु जल्द ही समाप्त हो जाते हैं। तवे पर मुनक्का को भूनकर रोगी को खिलाना चाहिए।

🌻नीम के 7 से 8 मुलायम पत्तों (कोपले) और 7 कालीमिर्च को 1 महीने तक लगातार सुबह खाली पेट खाने से चेचक जैसा भयंकर रोग 1 साल तक नहीं होता।

🌻यदि चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो 1 किलो पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबालकर जब आधा पानी शेष रह जायें, तब इसे छानकर रोगी को पिला दें। इस पानी को पीने से प्यास के साथ-साथ चेचक के दाने भी सूख जाते हैं।

🌹5 नीम की कोंपल (नई पत्तियां) 2 कालीमिर्च और थोड़ी सी मिश्री लेकर सुबह-सुबह चबाने से या पीसकर पानी के साथ खाने से चेचक के रोग में लाभ होता है।

🌹जब चेचक फैल रही हो तो उस समय प्रतिदिन सुबह तुलसी के पत्तों का रस पीने से चेचक के संक्रमण से सुरक्षा बनी रहती है।

🌻सुबह के समय रोगी को तुलसी के पत्तों का आधा चम्मच रस पिलाने से चेचक के रोग में लाभ होता है।

🌻बुखार को कम करने के लिये तुलसी के बीज और धुली हुई अजवाइन को पीसकर रोगी को पानी के साथ दें।

🌼🌼🌼🙏🌼🌼

https://t.me/AshramSwasthyaSeva
https://chat.whatsapp.com/ITcKCFfBrd0JsL84Cs2DM1

🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
[अजवाइन :
अजवाइन पेट के अनेकों रोगों जैसे गैस, पेट के कीड़े या फिर एसिडिटी के लिए बेहद अच्छा उपाय है। यदि आपको पेट में दर्द हो रहा है और आपको पता है कि यह एसिडिटी या गैस है तो तुरंत गर्म पानी के साथ एक छोटी चम्मच अजवाइन की ले लीजिये। आपको एसिडिटी और गैस में तुरंत राहत मिल जाएगी।

पुदीना :
पुदीना हमारे पूरे स्वास्थ्य के लिए एक वरदान है। यह लगभग हर बीमारी में किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जा सकता है। वहीं पेट की गैस और एसिडिटी और पाचन क्रिया के लिए यह बेहद कारगार औषधि है। यदि आपको पेट में गैस, एसिडिटी जी मचलना या उलटी की समस्या हो तो पुदीने का जूस, इसकी चटनी, काढ़ा या ग्रीन टी के रूप में सेवन किया जा सकता है।

नींबू :
आकार में छोटा सा नींबू अलग-अलग गुणों से भरपूर है। यदि किसी को पेट में जलन या गैस महसूस हो रही हो तो नींबू पानी और नींबू की चाय तुरंत राहत देती है।
इसके अलावा यदि किसी को ज्यादा ही परेशानी हो रही हो तो वह एक गिलास पानी में नींबू निचोड़कर, उसमें थोड़ा सा काला नमक, चुटकी भर भुना जीरा, चुटकी भर अजवाइन, 2 चम्मच मिश्री एक चम्मच ताजे पुदीने का रस मिलाकर उसे पी जाए इस से गैस की समस्या में तुरंत राहत मिल जाएगी।

सेब का सिरका :
सेब के सिरके की दो चम्मच गुनगुने पानी में मिलाकर पीने से गैस में तुरंत राहत मिल जाती है।

छाछ :
चुटकी भर भुना जीरा, काला नमक और पुदीना छाछ में मिलाकर खाना खाने के बाद पीने से गैस की समस्या आमतौर पर नहीं उभरती।
🌷🌷🌷
[सावधान, सुंदरता के लिए नाखून बढ़ाना सेहत को पड़ सकता है महंगा

  1. लंबे नाखून ज्यादा गंदे होते है और उनमें बैक्टीरिया पैदा हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर संक्रमण हो सकता है। फिर ये बात अलग है कि नेल पेंट के पीछे छुपने से गंदगी पर आपका ध्यान कम जाता हो।
  2. लंबे नाखून संभावित रूप से संक्रमण जैसे कि पिनवर्म्स पैदा कर सकते हैं।
  3. कई अध्ययनों में सामने आया है कि नाखून में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, बच्चों में दस्त और उल्टी का कारण बनते हैं।
  4. अगर बच्चों के नाखून बड़े हो, तो वे खुद को खुजालने की कोशिश में चोटिल हो सकते हैं।
  5. छोटे बच्चों की मां को भी अपने नाखूनों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, लंबे नाखून उनकी खुद की सेहत के लिए तो खराब हैं, साथ ही बच्चे को भी वे ही ज्यादा संभालती हैं, ऐसे में बच्चे को मां के लंबे नाखून से चोट लगने की आशंका अधिक होती है।
  6. नाखूनों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए हाथों को धोते समय नाखून भी ठीक से धोना चाहिए। 
    🌷🌷
    [: गले में खराश है, तो आजमाएं यह 5 उपाय

1 खले को आराम देने का सबसे सही समय होता है रात का वक्त। रात को सोते समय दूध में आधी मात्रा में पानी मिलाकर पिएं। इससे गले की खराब कम होगी। साथ ही गर्म हल्दी वाला दूध भी बहुत फायदेमंद होगा। 
2 एक कप पानी में 4 से 5 कालीमिर्च एवं तुलसी की 5 पत्तियों को उबालकर काढ़ा बना लें और इस काढ़े को पिएं। यह रात को सोते समय पीने पर लाभ होगा। इसके अलावा भोजन में आप साधारण चीजें ही खाएं तो बेहतर होगा। 
3 गले में खराश होने पर गुनगुना पानी पिएं। गुनगुने पानी में सिरका डालकर गरारे करने से गले की खराश दूर होगी और गले का संक्रमण भी ठीक हो जाएगा। इसके अलावा गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारे करना एक अच्छा इलाज है। 
4 पालक के पत्तों को पीसकर इसकी पट्टी बनाकर गले में बांधे और 15 से 20 मिनट तक इसे बांधे रखने के बाद खोल लें। इसके अलावा धनिया के दानों को पीसकर उसका पाउडर बनाएं और उसमें गुलाब जल मिलाकर गले पर लगाएं। इससे भी आराम होगा। 
5 गले की खराश के लिए कालीमिर्च को पीसकर घी या बताशे के साथ चाटने से भी लाभ होता है। साथ ही कालीमिर्च को 2 बादाम के साथ पीसकर सेवन करने से गले के रोग दूर हो सकते हैं। गले की खराश या फिर अन्य समस्या होने पर मांसाहार, रूखा भोजन, सुपारी, खटाई, मछली, उड़द इन चीजों से परहेज ही रखें, ताकि गला जल्दी ठीक हो सके। 
🌷🌷🌷🌷
[शस्त्रों में सूतक-पातक विचार …..!

सूतक लग गया, अब मंदिर नहीं जाना तक ऐसा कहा-सुना तो बहुत बार, किन्तु अब इसका अर्थ भी समझ लेना ज़रूरी है !!!

सूतक

  • सूतक का सम्बन्ध “जन्म के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !
  • जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है !
  • जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता :-
    3 पीढ़ी तक – 10 दिन
    4 पीढ़ी तक – 10 दिन
    5 पीढ़ी तक – 6 दिन

ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती … वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है !

  • प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है !
  • प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है ! इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं !
  • अपनी पुत्री :-
    पीहर में जनै तो हमे 3 दिन का,
    ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है ! और हमे कोई सूतक नहीं रहता है !
  • नौकर-चाकर :-
    अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का,
    बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं !
  • पालतू पशुओं का :-
    घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे 1 दिन का सूतक रहता है !
    किन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता !
  • बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक “अभक्ष्य/अशुद्ध” रहता है !

पातक

  • पातक का सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !
  • मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “पातक” माना जाता है !
  • मरण के बाद हुई अशुचिता :-
    3 पीढ़ी तक – 12 दिन
    4 पीढ़ी तक – 10 दिन
    5 पीढ़ी तक – 6 दिन

ध्यान दें :- जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से !

  • यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है !

अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है !

  • किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए !
  • घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है ! किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है !
  • किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए !
  • घर में कोई आत्मघात करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए !
  • यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह/निर्मोह से जल मरे, बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर मरता है तो इनका पातक बारह पक्ष याने 6 महीने का होता है !

उसके अलावा भी कहा है कि :-

जिसके घर में इस प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है ! वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है ! (क्रियाकोष १३१९-१३२०)

  • अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है

ध्यान से पढ़िए :-

  • सूतक-पातक की अवधि में “देव-शास्त्र-गुरु” का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं !
    इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है !
    यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है !
    — किन्तु :-
    ये कहीं नहीं कहा कि सूतक-पातक में मंदिरजी जाना वर्जित है या मना है !
  • मंदिर जी में जाना, देव-दर्शन, प्रदक्षिणा , जो पहले से याद हैं वो विनती/स्तुति बोलना, भाव-पूजा करना, हाथ की अँगुलियों पर जाप देना जिनागम सम्मत है !
  • यह सूतक-पातक आर्ष-ग्रंथों से मान्य है !
  • कभी देखने में आया कि सूतक में किसी अन्य से जिनवाणी या पूजन की पुस्तक चौकी पर खुलवा कर रखवाली और स्वयं छू तो सकते नहीं तो उसमे फिर सींख, चूड़ी, बालों कि क्लिप या पेन से पृष्ठ पलट कर पढ़ने लगे … ये योग्य नहीं है !
  • कहीं कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में मंदिरजी ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मंदिरजी से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घोरंघोर पाप का बंध करते हैं !
  • इन्हे समझना इसलिए ज़रूरी है, ताकि अब आगे घर-परिवार में हुए जन्म-मरण के अवसरों पर अनजाने से भी कहीं दोष का उपार्जन न हो !
    : ज्योतिष चर्चा
    〰️〰️🌼〰️〰️
    मेष लग्न में सूर्यादि नवग्रहों का भावानुसार फल
    〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
    मेष लग्न में बुध का द्वादश भावो में फल
    〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
    प्रथम भाव👉 मेष लग्न में प्रथम भाव में मेष राशि पर बुध के होने से जातक का स्वभाव चंचल एवं स्थिर रहता है। जातक तर्क वितर्क करने वाला, धर्म के विषय में स्वच्छंद स्वतंत्र विचारों वाला, हंसमुख, मिलनसार, गणित एवं ज्योतिष विद्या का जानकार लेकिन इन्हें व्यवसाय के क्षेत्र में अत्यंत संघर्ष के बाद सफलता मिलती है। स्वास्थ्य में भी गड़बड़ एवं पत्नी के साथ किंचित वैमनस्य हो सकता है। जातक की तत्काल निर्णय करने की प्रवृत्ति होती है। जन्म स्थान की अपेक्षा विदेश में भाग्योदय की संभावना अधिक रहती है।

द्वितीय भाव👉 मेष लग्न में द्वितीय भाव में वृष राशि का बुध हो तो ऐसे जातक को व्यवसाय के क्षेत्र में अत्यधिक उतार-चढ़ाव एवं विशेष संघर्ष का सामना करना पड़ता है। जातक को भाई-बहनों के सुख के में भी कमी रहती है। काफी अड़चनों के पश्चात 33 वें वर्ष के बाद कार्य में सफलताएं एवं भाग्योदय होता है।

तृतीय भाव👉 मेष लग्न में तृतीय भाव में स्वगृही मिथुन राशि पर बुध होने से जातक तीव्र बुद्धिमान एवं अत्यंत पराक्रमी स्वभाव का होगा। जातक अपने उद्यम के बल पर धन का अर्जन करने वाला, धर्म परायण, उच्च शिक्षित, तर्क वितर्क करने वाला तथा पठन पाठन एवं लेखन कार्य में कुशल होगा। परंतु इस योग में जातक का स्वास्थ्य कुछ नरम गरम ही बना रहता।

चतुर्थ भाव👉 मेष लग्न में चतुर्थ भाव में कर्क राशि पर बुध के प्रभाव से जातक को माता भूमि एवं वाहन के सुख में कुछ बाधाओं एवं अड़चनों के बाद ही सफलता मिल पाती है। जातक कार्य क्षेत्र में भी विविध परेशानियों के बाद ही सफल हो पाता है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी अड़चनों के बाद ही सफलता मिल पाती है।

पञ्चम भाव👉 मेष लग्न में पंचम भाव में सिंह राशि पर बुध होने से जातक कल्पनाशील प्रवृत्ति का, संवेदनशील, परन्तु उच्च शिक्षा एवं संतान पक्ष में संघर्ष एवं विघ्नों के पश्चात सफलता पाने वाला होता है। जातक की अध्ययनशील प्रकृति, नई-नई योजनाओं बनाने में कुशल, एवं जातक अपने बुद्धि चातुर्य से आय के साधनों में वृद्धि करने वाला होता है।

छठा भाव👉 मेष लग्न में छठे भाव में बुध के स्वराशिगत होने से जातक का अपने निकटस्थ भाई बंधुओं से विरोध बना रहता है। व्यवसाय के क्षेत्र में भी संघर्ष के बाद सफलता मिल पाती है। जातक को मामा मामी के सुख में कमी रहती है। ऐसे जातक में कामवृत्ति कुछ अधिक होती है। इनका आकस्मिक खर्च अधिक रहता है। निजी व्यवसाय की बजाय इन्हें नौकरी करना अधिक उपयोगी रहता है।

सातवां भाव👉 मेष लग्न में सप्तम भाव में शुक्र की राशि तुला पर बुध के होने से जातक निजी पुरुषार्थ एवं उद्यम द्वारा व्यवसाय में सफलता प्राप्त कर लेता है। जातक की पत्नी सुंदर एवं सुशिक्षित होती है। जातक का भोग विलास के कार्यों पर व्यय अधिक होता है। लेकिन इनका आर्थिक पक्ष तथा स्वास्थ्य एवं शारीरिक सुख में कुछ कमी बनी रहती है।

आठवां भाव👉 मेष लग्न में अष्टम भाव में वृश्चिक राशि पर बुध के होने से जातक के भाई बंधुओं के साथ वैचारिक मतभेद एवं सुख में कमी रहती है। इनके गृहस्थ जीवन एवं पारिवारिक सुख में भी अशांति का वातावरण बना रहता है। जातक को गुप्त रोग का भय, धन अर्जन करने के लिए भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।

नवां भाव👉 मेष लग्न में नवम भाव में गुरु की राशि धनु पर बुध के प्रभाव से जातक परिस्थिति अनुसार स्वयं को शीघ्र डाल लेने में कुशल होता है। परंतु युवा काल में कैरियर के संबंध में इन्हें विशेष संघर्ष करना पड़ता है। यदि सूर्य भी साथ में हो तो जातक भाग्यशाली, उच्च पद पर प्रतिष्ठित एवं भूमि संतान सवारी आदि सुखों से युक्त हो सकता है।

दसवा भाव👉 मेष लग्न में दशम भाव में मकर राशि के बुध के प्रभाव से जातक अपने पराक्रम एवं पुरुषार्थ के द्वारा जीवन में लाभ व उन्नति प्राप्त करता है। परंतु चतुर्थ भाव पर बुध की दृष्टि माता पिता को कष्ट एवं भूमि मकान आदि के संबंध में उलझने पैदा कर आती है।

ग्यारहवां भाव👉 मेष लग्न में एकादश भाव में बुध के प्रभाव से जातक को कुछ कठिनाइयों के पश्चात विद्या एवं संतान के विषय में सफलता प्राप्त हो जाती है। जातक गुप्त युक्तियों द्वारा धन का अर्जन करने वाला होता है। इन्हें भाई बहनों का सुख प्राप्त होता है। ऐसे जातक गुप्त युक्तियों से शत्रु से भी लाभ प्राप्त कर लेते हैं।

बारहवां भाव👉 द्वादश भाव में मीन राशि पर बुध के प्रभाव से जातक को भाई-बहन के सुख में कमी रहती है। आंखों में विकार का भय रहता है। अत्यंत संघर्ष के बाद ही निर्वाह योग्य आय के साधन बन पाते हैं। रोजगार एवं उन्नति के प्रयासों में विफलता तथा खर्च अधिक होते हैं।

( द्वादश भाव में सूर्य आदि ग्रहों के फल का अंतिम निर्णय करते समय जातक की ग्रह दशा तथा अन्य ग्रह योगों को भी ध्यान में रख ले तो फल अधिक सूक्ष्म)
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
[: नवरत्न की जड़े और धारण करने की सम्पूर्ण विधि
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
प्राचीन काल से नवग्रह की अनुकूलता के लिये रत्न पहनने का प्रचलन रहा है।सम्पन्न लोग महंगे से महंगे रत्न धारण करलेते है। लेकिन इन रत्नों का संबंध ग्रह के शुभाशुभ प्रभावको बढ़ाने केकारण इनकी माँग और भी ज्यादा बढ़ गई है।परन्तु सभी व्यक्ति इतने सक्षम नहीं होते कि वे ग्रह के आधिकारिकमहंगे रत्न पहन सकें।हमारे ऋषि मुनियों ने प्राचीन कालसे में ही ग्रह राशियों के आधिकारिक वृक्ष उनके गुणदेखकर निर्धारित किये थे।प्रारम्भ में सभी लोगों कोमहंगे रत्न उपलब्ध नहीं होते थे। तब वे पेड़ की जड़धारण करते थे। आज भी कुछ मूर्धन्य सज्जन वृक्ष की जड़ को रत्नों की जगह अपनाते है। रत्नों की तरह ही पेड़ की जड़ भी पूर्ण लाभ देती है।

वृक्ष की जड़ पहनने के लिए सर्वप्रथम आपको अपने जन्मनाम की राशि का पता होना चाहिए। और अपनीराशि के स्वामी ग्रह का भी ज्ञान होना चाहिए। नीचेसारणी में आपको ग्रह और राशि के साथ आधिकारिक वृक्ष की जड़ का विवरण दिया जा रहा है।

राशि —-ग्रह —- वृक्ष

 मेष ------- मंगल---खदिर

 वृष---------शुक्र ---- गूलर

 मिथुन------बुध-----अपामार्ग

 कर्क -------चंद्र -----पलाश

 सिंह--------सूर्य -----आक

 कन्या-------बुध ----अपामार्ग

 तुला--------शुक्र ----गूलर

 वृश्चिक------मंगल---खदिर

 धनु--------- गुरु ----पीपल

 मकर--------शनि---शमी

 कुम्भ--------शनि ---शमी

 मीन --------गुरु -- -पीपल

पेड़ से जड़ लेने की प्रक्रिया👉 आपको जिस ग्रह या नक्षत्र से संबंधित पेड़ की जड़ लेनी हो , उस ग्रह या नक्षत्र के आधिकारिक दिन से एक दिन पहले

अर्थात👉 मेष या वृश्चिक राशि हो तो उसके स्वामी मंगल की जड़ पहनने के लिए मंगलवार से एक दिन पहले सोमवार को

👉 वृष या तुला राशि हो तो उसके स्वामी शुक्र की जड़ पहनने के लिए शुक्रवार से एक दिन पहले गुरुवार को

👉 यदि मिथुन या कन्या राशि हो तो उसके स्वामी बुध की जड़ पहनने के लिए बुधवार से एक दिन पहले मंगलवार को

👉 यदि कर्क राशि हो तो उसके स्वामी चन्द्रमा की जड़ पहनने के लिए सोमवार से एक दिन पहले रविवार को ,

👉 यदि सिंह राशि हो तो उसके स्वामी सूर्य की जड़ पहनने के लिए रविवार से एक दिन पहले शनिवार को,

👉 यदि धनु – मीन राशि हो तो स्वामी गुरु की जड़ पहनने के लिए गुरुवार से एक दिन पहले बुधवार को ,

👉 यदि मकर – कुम्भ राशि हो तो उसके स्वामी शनि की जड़ पहनने के लिए शनिवार से एक दिन पहले शुक्रवार को ,

शुभ मुहूर्त देखकर उस वृक्ष के पास जाएँ और वृक्ष से निवेदन करें कि मैं आपके आधकारिक ग्रह की शांति और शुभ फल प्राप्ति हेतु आपकी जड़ धारण करना चाहता हूँ , जिसे कल शुभ मुहूर्त में आपसे लेने आऊंगा। इसके लिए मुझे अनुमति प्रदान करें। इसके बाद अगले दिन उस ग्रह के वार को धूपबत्ती , जल का लोटा , पुष्प , प्रसाद आदि सामग्री लेकर शुभ मुहूर्त में उस वृक्ष के पास जाएँ और हाथ जोड़कर जल चढ़ाएं। फिर धूपबत्ती जलाकर पुष्प चढ़ाएं। उसके बाद प्रसाद का भोग लगाएं। फिर प्रणाम करके उसकी जड़ खोदकर निकाल लें। और घर ले आएं।

जड़ धारण करने की विधि👉 जड़ को घर लाकर शुभ मुहूर्त में भगवान के सामने आसन पर बैठ कर उसे पंचामृत और गंगाजल से धोकर धूपबत्ती दिखाकर उसके आधिकारिक ग्रह के मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक या कम से कम एक माला का जाप करें। फिर उसे गले में पहनना हो तो ताबीज़ में डाल ले और हाथ पर बांधना हो तो कपड़े में सिलकर पुरुष दाएं हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांध ले।

धारण करते समय निम्न मंत्र बोले
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
सूर्य —– ॐ घृणि: सूर्याय नमः
चन्द्रमा -ॐ चं चन्द्रमसे नमः
मंगल – ॐ भौम भौमाय नमः
बुध —-ॐ बुं बुधाय नमः
गुरु —-ॐ गुं गुरुवे नमः
शुक्र —ॐ शुं शुक्राय नमः
शनि —ॐ शं शनये नमः
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
[Jai Shree Shani Dev
मैं शनि हूं, मैं सूर्य का पुत्र हूं ,तथा यम का बड़ा भाई हूं, यमुना एवं भद्रा मेरी बहने हैं।मेरा जन्म सौराष्ट्र गुजरात में हुआ है।मैं पश्चिम दिशा का स्वामी हूं।मैं घाटियो ं वन प्रदेशों दुर्गम गुफाओ शमशान कोयला खान बंजर भूमि मरूप्रदेश आदि में निवास करना पसंद करता हूं।
मैं इस ब्रम्हांड में बृहस्पति के बाद दूसरा बड़ा ग्रह हूं।मैं पृथ्वी से 14260000 किलोमीटर दूर हूं, मैं सूर्य की परिक्रमा 29 साल 6 महीने में पूरी करता हूं, मेरा ब्यास 120500 किलोमीटर है।
इस ब्रह्मांड में वायु से संबंधित जितने भी रोग होते हैं।सब मेरे प्रकोप से ही होते हैं।
मेरे पिता पूर्व दिशा के स्वामी है जो सूर्य भास्कर कहलाते हैं।मैं पश्चिम का स्वामी हूं तो पिताश्री पूर्व दिशा के स्वामी है। हम दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है।
मैं गोचर में सूर्य के साथ रहता हूं तो राजाओं सरकारी अफसरों की बुद्धि भ्रष्ट कर देता हूं।मेरी आदत सर्वत्र पीछा और पीड़ा पहुंचाने की रहती है।
मैं अन्न धान्य के भाव बढ़ा देता हूं ।मैं वर्षा का अभाव करा देता हूं राजाओं में युद्ध करवा देता हूं जन्म कुंडली में पिता के साथ रहने पर पिता-पुत्र की आपस में बनने नहीं देता हूं।।
मैं रोहिणी भेदन कर दूं तो पृथ्वी पर 12 वर्ष तक घोर दुर्भिक्ष पड़ता है।
मेरा शांति इंद्रनील मणि के समान है मैं सिर पर सोने का मुकुट गले में माला और शरीर पर नीले रंग के वस्त्रों से सुशोभित रहता हूं मैं अपने हाथ में धनुष बाण त्रिशूल और बार मुद्रा धारण किए होता हूं मेरा रक्षक लोहे का बना होता है तथा मेरा वाहन गिद्ध पक्षी है मेरा गोत्र कश्यप है मेरे गुरु महाकाल शिव हैं मेरे अभिन्न मित्र हैं कालभैरव बालाजी ।
Mere 3 Priya Nakshatra hai, पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र ,उत्तराभाद्रपद नक्षत्र , जब मैं तुला राशि में विचरण करता हूं तो उच्च का कहलाता हूं मेष राशि में होने पर नीच का कह लाता हूं मैं एकांत ,गंभीर, दूरदर्शी, त्यागी, तपस्वी ,स्पष्टवादी ,और न्याय प्रिय हूं मैं कलयुग में बहुत प्रभावित हूं।।
आज के युग में पेट्रोलियम पदार्थों का पेट्रोलियम पदार्थों का महत्व मेरे ही कारण है।
मैं लोहा, इस्पात ,खनिज ,फैक्ट्री, कारखाने, रसायन, चमड़ा व्यापार आदि का स्वामी हूं।
आप जो तेल खाते हो, गाड़ी वाहनों में जो तेल जलाते हो वह सब मेरी कृपा से ही आपको मिल रहा है कोई अपने घर या परिवार या समाज में किसी वृद्ध को सताता है तो समझ लो मुझे सता रहा है जब मैं सताया जाऊंगा तो समझ लो कि तुम पर आफत आने वाली है दुनिया की कोई भी ताकत तुमको इस आफत से बचा नहीं सकती इसलिए उनको ना सताओ उनकी सेवा करोगे तो मेरी सेवा अपने आप हो जाएगी मैं प्रसन्न हुआ तो तुम को रंक से राजा बना दूंगा तुमको सारे अधिकार दिलवा दूंगा तुमको सत्ता का सही सुख दिलवा दूंगा ।
मुझको तेल अति प्रिय है मैं कैसेली एवं कड़वी चीजों को बहुत पसंद करता हूं। मुझे सरसों एवं तिल का तेल बहुत पसंद है ।मेरे मंदिर या पीपल के पेड़ के नीचे 40 दिनों तक सरसों के तेल का बड़ा दीपक जलाने से मैं बहुत प्रसन्न होता हूं।41वे दिन आपकी सभी मनोकामना पूर्ण होने लगेंगी,, तथा सभी प्रकार के कष्ट भी दूर होने लगेंगे ,,मुझ पर विश्वास रखो मेरे यहां देर है, पर अंधेर नहीं जो गरीबों व अन्य विभिन्न व्यक्तियों की सेवा करेगा तथा वृद्धा आश्रम में उचित दान देगा ,उस पर मेरी कृपा हमेशा बनी रहेगी,, ऐसा व्यक्ति एक बार जो धन एकत्र कर लेगा उसका धन आसानी से खर्च नहीं होगा, वह व्यक्ति पीढ़ी-दर-पीढ़ी धनवान रहेगा, मैं शनि हूं अच्छे के लिए अच्छा तथा बुरे के लिए बहुत बुरा हूं मेरी अवेहलना जो करेगा उस का भला मैं कभी ना होने दूंगा
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[ 🌹वायरल फीवर के आयुर्वेदिक उपचार

🌻एक चम्मच काली मिर्च का चूर्ण, एक छोटी चम्मच हल्दी का चूर्ण और एक चम्मच सौंठ यानी अदरक के पाउडर को एक कप पानी और हल्की सी मिश्री डालकर गर्म कर लें. जब यह पानी उबलने के बाद आधा रह जाए तो इसे ठंडा करके पिएं. इससे वायरल फीवर से आराम मिलता है.

🌻एक चम्मच लौंग के चूर्ण और दस से पंद्रह तुलसी के ताजे पत्तों को एक लीटर पानी में डालकर इतना उबालें जब तक यह सूखकर आधा न रह जाए. इसके बाद इसे छानें और ठंडा करके हर एक घंटे में पिएं. आपको वायरल से जल्द ही आराम मिलेगा.

🌻तुलसी के ताजे पत्ते 6, काली मिर्च और मिश्री 10 ग्राम ये तीनों पानी के साथ पीस कर घोल बना के बीमार व्यक्ति को पिला दें। कितना भी पुराना बुखार हो, कुछ दिन यह प्रयोग करने से सदा के लिये मिट जायेगा।

🌻बुखार में दूध पीना, सांप के ज़हर के बराबर है । बुखार में दूध, घी और भारी खुराक ना खाएं ।

🌻बुखार में चाय, शराब, मांसाहारी भोजन न करे

🌻ठंडा पानी, आइस क्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स आदि का परहेज करे

🌻बुखार आने पर ज्यादा से ज्यादा आराम करे

🌻मार्किट का काम, घर से बहार न जाये

🌻बुखार में स्नान न करे

🌻समय पर बताई गई चीजे खाये

🌻नारियल पानी, ग्लूकोस का पानी, संतरे का रस ज्यादा पिए cp आरोग्यम धनसंपदा गृप
[मन ही मनुष्यों के बंधन और मुक्ति का कारण है।

राजा जनक ब्रह्म विद्या में पारंगत विद्वान माने जाते थे। दूर दूर से लोग उनके पास धर्म सम्बन्धी जिज्ञासा का समाधान करने आते थे। एक बार एक महात्मा व्यक्ति उनसे मिलने आये। उन्होंने चंचल मन के पाश से छूटने का उपाय पूछा। राजा जनक अपने स्थान से उठे और एक वृक्ष को जोर से पकड़ कर बोले- “अगर यह वृक्ष हमें छोड़ दे तो हम आपके प्रश्न का उत्तर दे पाये।” प्रश्न पूछने वाले महात्मा का दिमाग चकरा गया। उसके मन में शंका हुई क्या यही राजा जनक है जो सम्पूर्ण भूमण्डल में ब्रह्म विद्या के ज्ञाता के रूप में प्रसिद्द है और एक वृक्ष को पकड़ कर कह रहे हैं की अगर यह वृक्ष हमें छोड़ दे तो हम आपके प्रश्न का उत्तर दे पाये। महात्मा बोले- महाराज! आपको जड़ वृक्ष कैसे पकड़ सकता है? यह तो आपने स्वयं ही पकड़ा हुआ है। आप वृक्ष छोड़ दे, आप स्वयं छूट जायेंगे। महाराज जनक ने कहा- क्या आपको दृढ़ विश्वास ह की यह छूट जायेगा? महात्मा बोले महाराज यह तो बिलकुल प्रत्यक्ष है कि आप वृक्ष छोड़ दें तो आप छूट जायेंगे। महाराज जनक ने कहा ,”बस इसी भाँति आपने मन को पकड़ा हुआ है। यदि आप मन को वश में कर ले और इसके फंदे में न आयें तो मन कुछ नहीं कर सकता। आप इस जड़ मन को चाहे सुमार्ग पर चलाये, चाहे कुमार्ग पर। यह आपके अधीन है। बिना जीव कि इच्छा के मन में संकल्प नहीं हो सकते। इसलिये मन को वश में करना व्यक्ति के अधीन है।” यह सुनकर ब्राह्मण प्रश्न ह राजा जनक के ब्रह्मज्ञानी होने की प्रशंसा करने लगा।

यजुर्वेद के 34 वें अध्याय के प्रथम 6 मन्त्रों को शिवसंकल्प मन्त्रों के नाम से जाना जाता हैं। इन मन्त्रों में मन के संकल्पों को शिव अर्थात कल्याणकारी बनाने का उपदेश हैं। जिससे व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए हितकारी बने। शिवसंकल्प अपने अधिकार और कर्तव्य पालन को एक सूत्र में संयुक्त करना भी कहलाता हैं। ऐसे संकल्प मन को बनाकर अपना तथा सब का हित साधना मानवधर्म है। शिवसंकल्पन मन मानव को उठाता है और अशिवसंकल्प मन मानव को गिराता है।

शिक्षा- मन ही मनुष्यों के बंधन और मुक्ति का कारण है।


स्‍वास्‍थय चालीसा,स्‍वस्थ्‍य तन मन ही जीवन का आधार है!!!!!!!!!!!

  1. जल्दी सोवें और जल्दी उठें । प्रतिदिन सूर्योदय से डेढ़ घंटा पूर्व उठें।
  2. प्रातः उठकर 2-3 गिलास गुनगुना पानी पीयें । गुनगुना पानी में आधा नींबू का रस एवं एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से विशेष लाभ होता है । सुबह खाली पेंट चाय व कॉफी का सेवन न करें।
  3. शौच करते समय दांतों को भींचकर रखने से दांत हिलते नहीं हैं।
  4. प्रातः मुँह में पानी भरकर ठण्डे जल से ऑखों में छींटे मारें । अंगूठे से गले में स्थित तालू की सफाई करने से आंख, कान, नाक, नाक एवं गले के रोग नहीं होते हैं । दाई नासिका व बाई नासिका को प्रेशर देकर साफ करें।
  5. स्नान करने से पूर्व दोनों पैर के अंगूठे में सरसों का शुद्ध तेल मलने से वृद्धावस्था तक नेत्रों की ज्योति कमजोर नहीं होती । प्रातः नंगे पांव हरी घास पर टहले इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है सप्ताह में एक दिन पूरी शरीर की सरसों के तेल से मालिश करें, तथा पैर के अंगूठों व पैर के पंजों की दायें हाथ से बायें पंजों की तथा बायें हाथ से दायों पंजों की मालिश करें।
  6. प्रातः दांतों को साफ करने के लिए नीम या बबूल के दातून का प्रयोग करें तथा रात्रि को सोने से पहले तथा प्रत्येक भोजन लेने के बाद दांतों के बीच फंसे अन्नकणों को ब्रुश से साफ करें।
  7. नहाने के पानी में नींबू का रस मिलाकर नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है ।
  8. प्रतिदिन शौच-स्नान के पश्चात्‌ कम से कम आधा घंटा खुली हवा में सैर व हल्की कसरत, योगासन, प्राणायाम नियमित रूप से करें । हर रोज़ खिलखिला कर हसें । प्राणायाम करने से शरीर स्वस्थय व मन शांत रहता है और आत्मबल बढ़ता है ।
  9. नाश्ते में हल्का रेशेयुक्त खाद्य, अंकुरित अन्न, फलों व दलियों का इस्तेमाल करें ।
  10. दोपहर भोजन के बाद कुछ समय शवासन में लेटें । रात्रि के भोजन के उपरान्त 10 मिनट वज्रासन में बैठें ।
  11. दिन में कम से कम 8 से 12 गिलास पानी जरूर पियें ।
  12. रीढ़ को सीधे रखकर बैंठें । जमीन पर बैठकर बगैर सहारे के उठें । नाखुनों को दांतों से कभी न काटें ।
  13. दोपहर को खाने में पौष्टिक एवं रेशेयुक्त खाद्यों का प्रयोग करें ।
  14. खाने के दौरान पानी न लें । खाने के आधा घंटा पहले तथा आधा घंटा बाद पानी का सेवन करें । पानी घूंट-घूंट करके पीयें ।
  15. शाकाहारी, सुपाच्य, सात्विक खाना भूख लगने पर ही चबाचबा कर खायें । फास्ट फुड, कोल्ड ड्रिंक, धूम्रपान वा मांस-मदिरा का प्रयोग न करें ।
  16. कम खायें । जीवन जीने के लिए खाएं ना कि खाने के लिए जीयें । अपने आमाशय का आधा भाग भोजन, चौथाई भाग पानी तथा शेष चौथाई वायु के लिए रखें । देह को देवालय बनायें कब्रिस्तान नहीं ।
  17. पानी हमेशा बैठकर ही पीयें, खड़े होकर पीने से घुंटनों में दर्द होने लगता है ।
  18. भोजन हमेशा धरती पर बैठकर ही करें । खूब चबा-चबा कर खायें । भोजन करते समय मौन रहें, क्रोध न करें, पूरा ध्यान खाने पर ही रखें । भोजन करते समय टेलीविज़न न देखें ।
  19. भोजन से पूर्व भी ईश्वर का स्मरण करें तथा भोजन को ईश्वर का प्रसाद मान कर ग्रहण करें ।
  20. भोजन में मिर्च-मसालों का प्रयोग कम करें ।
  21. भोजन में हरी सब्ज़ी व सलाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें । अधिक गर्म और ठंडी वस्तुएं पाचन क्रिया के लिए हानिकारक है ।
  22. खाने के पश्चात्‌ लघुशंका अवश्य करें । केला, दूध, दही और मट्ठा एक साथ नहीं खाना चाहिए । सावन में दूध और भाद्र मास में छाछ का प्रयोग हानिकारक है ।
  23. रात का खाना सोने के 2 घंटे पहले खाएं, खाने के बाद थोड़ी चहल कदमी करें, खाने के तुरन्त बाद न लेटें । बिना तकिये के सोने से हृदय और मस्तिष्क मजबूत होता है ।
  24. प्रतिदिन मौसम के फलों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है । फलों का भोजन के साथ न लेकर अलग से भोजन से पहले खायें ।
  25. सांस हमेशा नाक से ही लें व छोड़ें । ईश्वर ने मुख खाने के लिए दिया है । मुख से सांस नहीं लेना चाहिए ।
  26. फल सब्जियों का प्रयोग छिलके सहित धोकर करें । छिलके वाली दालों का सेवन ही करें ।
  27. सप्ताह में एक दिन का उपवास अवश्य रखें । कुछ नहीं खायें, केवल पानी पीयें ।
  28. मल, मूत्र, छींक आदि के वेगों को कभी नहीं रोकना चाहिए, रोकने से रोग उत्पन्न होते हैं ।
  29. सोने के लिए सख्त विस्तर का प्रयोग करें, डनलप के गद्दे का प्रयोग हानिकारक है ।
  30. स्मरण शक्ति (मेमोरी) बढ़ाने के लिए रात में सोने से पहले पूरे दिन की दिनचर्या का आंखें बन्द कर सिंहावलोकन करें । मुंह ढक कर न सोयें । रात को कमरे में सोते समय खिड़कियां खोलकर सोयें । बाईं करवट सोने से दांयां श्वांस चलता है जो खाना हज़म करने में सहायक है ।
  31. रात को 9 से 12 बजे तक सोने से 6 घंटे की नींद पूरी हो जाती है । दिन में न सोयें ।
  32. सब्जियों में सीताफल, मिठाई में पेठा व फलों में पपीते का सेवन सर्वोंत्तम है ।
  33. उत्तर तथा पश्चिम दिशा की ओर सिर करके सोने वालों की आयु क्षीण होती है । पूर्व तथा दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोने वालों की आयु दीर्घ होती है ।
  34. कच्चे घीये का रस व कच्चे पेठे (जिसकी मिठाई बनती है) का रस में काला नमक व नींबू डालकर पीना सर्वोत्तम है ।
  35. पीने का पानी एवं अन्य खाद्य पदार्थ भी स्वच्छ होने चाहिएं क्योंकि अस्वच्छता से रोगों की उत्पित्त होती है ।
  36. नशीले पदार्थों के सेवन से धन और स्वास्थ्य दोनों से हाथ धोना पड़ता है।
  37. प्रातः एवं सायंकाल ईश्वर का स्मरण एवं धन्यवाद अवश्य करें।
  38. स्वयं पर संयम रखें । मन में बुरे विचार तथा निराशा को स्थान न दें । कम बोलें तथा क्रोध न करें।
  39. हर परिस्थिति में सदैव प्रसन्न रहें । प्रसन्नता स्वास्थ्य की सबसे बड़ी कुंजी है । हर रोज़ खुलकर खिलखिला कर हंसें । हंसना ही जीवन है ।
  40. आलस्य, भूख तथा नींद को जितना बुलाएंगे, उतना ज्यादा नज़दीक आयेंगे । इनसे दूरी बनाए रखें।

व्यस्त रहें, मस्त रहें स्वस्थ्य रहें, करे योग रहे निरोग, प्रतिदिन गीता का पाठ अवश्य करें।

🌹🙏🌹🙏🌹
[: सांस फूलने की परेशानी से राहत देगे घरेलू इलाज

परिचय-बहुत से लोग गलतफहमी के चलते डिसप्निया (सांस फूलना रोग को दमा रोग ही समझ लेते हैं। लेकिन डिसप्निया (सांस फूलना) और दमा (एस्थमा) रोग में थोड़ा सा फर्क होता है।कई लोगों को गलतफहमी होती है कि मोटा होने की वजह से ही सांस फूलती है पर ऐसा कुछ नही है,पतले लोगो की भी ऐसे ही सांस फूलती है और इसका कारण हमारे शरीर में नही अपितु पर्यावरण में बढ़ रहे प्रदूषण,अस्वच्छ हवा में सांस लेना और गलत कार्यशैली हो सकती है।

कारण-सांस फूलने का रोग 2 प्रमुख कारणों से हो सकता है :1- ज्यादा उम्र के लोगों को बारिश के मौसम में सांस की नली के पुराने जुकाम आदि रोगों के कारण 2- दिल की धड़कन का काफी तेज चलने के कारण

सांस फूलने का प्रभावी और घरेलू इलाज़ :

अंजीर :जिन लोगो की सांस फूलती है, उनके लिए अंजीर अमृत के समान है क्योंकि अंजीर छाती में जमी बलगम और सारी गंदगी को बाहर निकाल देती है। जिससे सांस नली साफ़ हो जाती है और सुचारू रूप से कार्य करती है। इसके लिए आप तीन अंजीर गरम पानी से धोकर रात को एक बर्तन में भिगोकर रख दीजिये और सुबह खाली पेट नाश्ते से पहले उन अंजीरों को खूब चबाकर खा लीजिये। उसके बाद वह पानी भी पी लें | इस का प्रयोग लगातार एक महीने तक कीजिये। इसके प्रयोग से फर्क आपको खुद ही महसूस होने लगेगा।

तुलसी ( Basil )और सौंठ (dry ginger) का काढ़ा :तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है और श्वसन तंत्र पर बाहरी प्रदूषण और एलर्जी के हमले से रक्षा करने में समर्थ है। इसलिए जिनको भी सांस फूलने की या दमा की शिकायत हो उन लोगो को तुलसी से बने इस काढ़े का इस्तेमाल अवश्य ही करना चाहिए। इसके लिए आधा कप पानी में 5 तुलसी की पत्ती,एक चुटकी सौंठ पाउडर,काला नमक और काली मिर्च डालकर उबाल ले। ठंडा करके जब यह काढ़ा गुनगुना सा रह जाए तब इसका सेवन करे। नित्य प्रति इस काढ़े के सेवन से आपके सांस फूलने की समस्या जड़ से समाप्त हो जाएगी।

अजवायन (Thymes):सांस फूलने की समस्या अक्सर श्वास नली में सूजन या श्वास नली में कचरा आ जाने की वजह से ही उत्पन्न होती है। श्वास नली को साफ़ करने का सबसे प्रभावी तरीका होता है– स्टीम या भाप लेना। भाप लेने से यदि श्वास नली में सूजन है तो उसमे आराम हो जाता है और कचरा भी निकल जाता है तो इसके लिए आपको अजवायन पीसकर पानी में उबलनी है। फिर इस अजवायन वाले पानी की भाप लेनी है व इसे गुनगुना पी भी लें। क्योंकि अजवायन की भाप सूजन को खत्म और दमे और सांस फूलने की समस्या में राहत दिलाती है।

तिल का तेल (Sesame oil) :यदि ठंड की वजह से छाती जाम हो जाए या रात के समय दमे का प्रकोप बढ़ जाए और सांस ज्यादा फूलने लगे तो तिल के तेल को हल्का गर्म करके छाती और कमर पर गरम तेल की सेक करे। इस प्रकार आपकी छाती खुल जायेगी और आपको सांस फूलने की समस्या में राहत मिलेगी।

अंगूर (grapes):सांस फूलने व दमा की समस्या में अंगूर बहुत लाभदायक होता हैं | इस समस्या में आप अंगूर भी खा सकते है या अंगूर का रस का भी सेवन कर सकते हैं | कुछ चिकित्सकों का तो यह दावा है कि दमे के रोगी को अगर अंगूरों के बाग में रखा जाए तो दमा,सांस फूलने या कोई भी श्वसन सम्बन्धी समस्या में शीघ्र लाभ पहुंचता है

चौलाई (Amaranth) के पत्तों का रस :सांस फूलने की या श्वसन सम्बन्धी कोई भी समस्या हो यदि चौलाई के पत्तों का ताजा रस निकालकर और उसमे थोड़ा शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन किया जाए तो अतिशीघ्र लाभ पहुंचता है | चौलाई के पत्तो का प्रयोग आप किसी भी रूप में कर सकते है। चाहे तो चोलाई के पत्तो का साग भी खा सकते है। चोलाई के पत्ते इस समस्या में रामबाण औषधि है।

लहसुन (Garlic) :लहसुन भी सांस फूलने की समस्या में अत्यंत लाभकारी औषधि का कार्य करता है। इसके लिए लहसुन की 3 कलियों को दूध में उबालना है और फिर उस दूध को छानकर सोने से पूर्व पीना है। याद रहे इसके बाद कुछ भी न खाये या पिए। कुछ ही दिनों के निरन्तर प्रयोग से आपको इसके चमत्कारी परिणाम देखने को मिलेंगे।

सौंफ (Fennel) :सांस फूलने की या श्वसन सम्बन्धी कोई भी समस्या हो यदि सौंफ का प्रयोग दैनिक दिनचर्या में हर रोज किया जाए तो आपको कभी सांस फूलने की समस्या आएगी ही नही। क्योंकि सौंफ में बलगम को साफ करने के गुण विद्यमान होते हैं | यदि दमे के रोगी और सांस फूलने वाले रोगी नियमित रूप से इसका काढ़ा इस्तेमाल करते रहें तो निश्चित रूप इस समस्या से निजात मिल जाएगी |

लौंग (Cloves)और शहद(Honey) :लौंग और शहद का काढ़ा पीने से श्वास नली की रुकावट दूर हो जाती है और श्वसन तंत्र मजबूत बनता है। इसके लिए चार-छः लौंग को एक कप पानी में उबाल ले और फिर उसमे शहद मिलाकर दिन में तीन बार थोड़ा-थोड़ा पीने से सांस फूलने की समस्या एकदम ठीक हो जाती है |

दालचीनी और शहद(Honey) : एक चम्मच दालचीनी एक चम्मच शहद मिक्स कर सुबह शाम ले इसे लेने के बाद गुनगुना पानी जरूर पिये

गौमुत्र:- गौमुत्र या गौर्क का सेवन सुबह शाम करें

हींग (Asafoetida):सांस फूलने की या श्वसन सम्बन्धी कोई भी समस्या हो यदि हींग का प्रयोग दैनिक दिनचर्या में हर रोज किया जाए तो आपको कभी सांस फूलने की समस्या आएगी ही नही।बाजरे के दाने जितनी हींग को दो चम्मच शहद में मिला ले। इसको दिन में तीन बार थोड़ा-थोड़ा पीने से सांस फूलने की समस्या एकदम ठीक हो जाती है |

नीबू (lemon)का रस :सांस फूलने या दमा की समस्या में नीबू का रस गरम जल में मिलाकर पीते रहने से यह समस्या धीरे धीरे जड़ से खत्म हो जाती है | सांस फूलने की समस्या में केला अधिक मात्रा में नही खाना चाहिए | पानी हल्का गरम पीना चाहिए |पानी उबालकर और थोड़ा हल्का गरम पीना ही लाभकारी होता है |

सरसो तेल व पुराना गुड़ :- 10 ग्राम सरसो तेल में 10 ग्राम पुराना गुड़ मर्दन(मिक्स) कर सेवन करें

गुनगुना पानी :- हर रोग की सस्ती दवा है गुनगुना पानी नियमित सेवन करें

एसिड बनाने वाले पदार्थ न ले :दमा या सांस फूलने की समस्या होने पर भोजन में कार्बोहाइड्रेट, चिकनाई एवं प्रोटीन जैसे एसिड बनाने वाले पदार्थ कम मात्रा में ही लें क्योंकि इनसे शरीर में एसिड बनता है जिससे श्वसन में बाधा उत्पन्न होती है इसलिए ताज़े फल, हरी सब्जियां तथा अंकुरित चने जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थों का सेवन भरपूर मात्रा में करें।

जो भी उपयोग करे नियमित करें 2 से 3 माह अद्भुत परिणाम मिलेगा

मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।

वन्देमातरम

🕉पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया
और
🕉जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने समय पर क्रोध किया

🕉”परिणामस्वरुप एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की गोद_

🕉वेद कहता है– “क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है, जब वह “धर्म” और “मर्यादा” के लिए किया जाए,
और
🕉”सहनशीलता” भी तब पाप बन जाती है जब वह “धर्म” और “मर्यादा” को बचा नहीं पाती ||
🙏🏽🙏🏻🙏🏾 जय जय श्री राधे🙏🏼🙏🏿🙏

प्रभु को पाना है तो प्रेम की गली में से गुजरना है।
और प्रेम की गली इतनी पतली है कि दो उसमें चल ही नहीं सकते हमें एक होना ही है।

यह प्रसंग एक राजा की जिन्दगी का है, उसका नाम था राजा पीपा।
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
उसने दुनिया में जो कुछ इन्सान पाना चाहता है, वो सब कुछ पाया था, महल, हीरे-जवाहरात, नौकर-चाकर, सब उसका आदेश मानते थे।

इतना सब कुछ पाने के बावजूद अचानक एक दिन उसे लगा कि कुछ कमी है, कुछ ऐसा है जो नहीं है।
अंदर एक तलब-सी जग गई प्रभु को पाने की।
अब राजा कभी एक महापुरुष के पास जाएं, कभी दूसरे के पास, पर प्रभु को पाने का रास्ता मिले ही नहीं।

राजा बड़ा निराश था तब किसी ने बताया कि एक संत हैं रविदास जी महाराज! आप उनके पास जाएं।

राजा पीपा संत रविदास जी के पास पहुँचे।
वहाँ देखा कि वो एक बहुत छोटी-सी झोपड़ी में रहते थे-भयानक गरीबी, उस झोपड़ी में तो कुछ था ही नहीं।

राजा को लगा, ये तो खुद ही झोपड़ी में जी रहे हैं, यहाँ से मुझे क्या मिलेगा।

लेकिन वहाँ पहुँच ही गए थे तो अन्दर भी गए और राजा ने संत रविदास जी को प्रणाम किया।

संत रविदास जी ने पूछा, किस लिए आए हो?

राजा ने इच्छा बता दी, प्रभु को पाना चाहता हूँ।

उस समय संत रविदास महाराज एक कटोरे में चमड़ा भिगो रहे थे-मुलायम करने के लिए, तो उन्होंने कहा, ठीक है, अभी बाहर से आए हो थके होगे, प्यास लगी होगी लो तब तक यह जल पियो।

कह कर वही चमड़े वाला कटोरा राजा की ओर बढ़ा दिया।

राजा ने सोचा, ये क्या कर दिया कटोरे में पानी है, उसमें चमड़ा डला हुआ है, वो गन्दगी से भरा हुआ है, उसको कैसे पी लूँ?

फिर लगा कि अब यहाँ आ गया हूँ, सामने बैठा हूँ तो करूँ क्या?
इन संत जी का आग्रह कैसे ठुकराऊँ ?

उस समय बिजली होती नहीं थी, झोपड़ी में अन्धेरा था, सो राजा ने मुँह से लगाकर सारा पानी अपने कपडो के अन्दर उडेल दिया और पीये बगैर वहाँ से चला आया।

वापस घर आ कर उसने कपडे उतारे धोबी को बुलाया और कहा कि इसको धो दो।

धोबी ने राजा का वो कपडा अपनी लड़की को दे दिया धोने के लिए।

लड़की उसे ज्यों-ज्यों धोने लगी, उस पर प्रभु का रंग चढ़ना शुरू हो गया।

उसमें मस्ती आनी शुरू हो गई और इतनी मस्ती आनी शुरू हो गई कि आस-पास के दूसरे लोग भी उसके साथ आ कर प्रभु के भजन मे गाने-नाचने लगे।

धोबी की लड़की बड़ी मशहूर भक्तिन हो गई।

अब धीरे-धीरे खबर राजा के पास भी पहुँची। राजा उससे भी मिलने पहुँचा, बोला कि कुछ मेरी भी मदद कर दो।

धोबी की लड़की ने बताया कि जो कपडा आपने भेजा था, मैं तो उसी को साफ कर रही थी, तभी से लौ लग गई है, मेरी रूह अन्दर की ओर उड़ान कर रही है।

राजा को सारी बात याद आ गई और राजा भागा- भागा फिर संत रविदास जी महाराज के पास गया और उनके पैरों में पड़ गया।

फिर रविदास महाराज ने उसको नाम की देन दी।

जब तक इन्सान अकिंचन न बन जाए, छोटे से भी छोटा, तुच्छ से भी तुच्छ न हो जाये, तब तक नम्रता नहीं आती।
और जब तक विनम्र न हो जायें,प्रभु नहीं मिल सकते।
🙏🙏🏿🙏🏼 जय जय श्री राधे🙏🏾🙏🏻🙏🏽
[: पेड़ और ज्योतिष की जड़ें: रत्न की जगह धारण कर सकते है पेड़ों की जड़ें भी
पेड़ और हिन्दी में ज्योतिष की जड़ें: रत्न की जगह धारण कर सकते है पेड़ों की जड़ें भी – आज के दौर में काफी लोग ज्योतिष विद्या को भी एक विज्ञान ही मानते हैं । इस विद्या से भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी मिल सकती है। साथ ही, जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने के उपाय भी मालूम किए जा सकते हैं। कुंडली के 12 घरों में ग्रहों की अच्छी-बुरी स्थिति के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति का भाग्योदय नहीं पाता है हो। अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना भी एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते हैं। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।
सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव कम हो जाते हैं। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
गृह के लिए चंद्र
चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।
गृह के लिए मंगल
मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।
गृह के लिए बुध
बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं .. यहां बताई जा रही जड़ें किसी भी पूजन सामग्री या ज्योतिष संबंधी सामग्रियों की दुकान से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं …
गृह के लिए सूर्य
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
गृह के लिए गुरु
गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।
गृह के लिए शुक्र
गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
गृह के लिए शनि
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।
गृह के लिए राहु
कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।
गृह के लिए केतु
केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।
यहां बताई गईं सभी जड़े बाजार से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। सामान्यत: ज्योतिष संबंधी सामग्रियों के विक्रेताओं के यहां इस प्रकार जड़ें मिल सकती हैं। इसके अलावा कुछ वृद्ध लोगों को भी इन जड़ों की जानकारी हो सकती है। उनसे भी इस संबंध मदद प्राप्त की जा सकती है ताकि आपको ये जड़े मिल सके। साथ ही, इन जड़ों को धारण करने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
[ आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो।

     ❄स्फटिक शिवलिंग❄

🌷
स्फटिक शिवलिंग की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है।
इस शिवलिंग की अपने घर मे पूजा, प्रतिष्ठा करके नित्य गंगाजल अथवा पंचामृत से अभिषेक करके चंदन, पुष्प, विल्वपत्र आदि से पूजन करने से भगवान शिव की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है।
इनकी अनुकंपा से आयु, आरोग्यता, धन, संपत्ति, यश, मान, प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।

🌷
स्फटिक को हीरे का उपरत्न कहा जाता है।
स्फटिक को कांचमणि, बिल्लोर, बर्फ का पत्थर तथा अंग्रेजी मे रॉक क्रिस्टल कहते हैं।
यह एक पारदर्शी रत्न है।
स्फटिक बर्फ के पहाड़ों पर बर्फ के नीचे टुकड़े के रूप मे पाया जाता है।
इसे शीत वीर्य मणि माना गया है।
यह बर्फ के समान पारदर्शी और सफेद होता है।

🌷
स्फटिक शिवलिंग भी सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है।
यह शिवलिंग घर से हर प्रकार की नकारात्मकता को दूर करता है।
जिस घर मे यह शिवलिंग स्थापित कर होता है वहाँ सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है।

🌷
पूरे सावन के महीने इसका नियमित रूप से अभिषेक करने से घर से कई तरह के वास्तुदोष दूर होते हैं।
जिस घर मे ये शिवलिंग स्थापित करके एक महीने तक नियमित रूप से पंचामृत द्वारा अभिषेक किया जाता है वहां धन का अभाव नहीं रहता तथा आरोग्य रहता है।

🌷
इसके प्रभाव से शिक्षा मे उन्नति होगी, प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता मिलती है।

🌷
जो भी व्यक्ति इसे स्थापित करता है उसके जीवन मे नाम ,पैसा ,प्रसिद्धि सब कुछ प्राप्त होता है।

🌷
स्फटिक का 5 अंगुल से लेकर 11 अंगुल तक का शिवलिंग शुभ माना गया है।

” ॐ ह्रौं वं शिवाय सशक्तिकाय नम: “
अभिषेक के पश्चात उक्त मंत्र का जप करें।

ध्यान मे रखने योग्य बात है –
“मृत्तिका भूतो वा लिंगम हिम खंडं प्रति भूयताम!
नाभिषेको कान्चंरूपम रजत नवनीतम खलु!”

✡ अर्थात सफ़ेद पत्थर के शिवलिंग पर सिन्दूर,
✡ स्फटिक के शिवलिंग पर घी,
✡ काले पत्थर अर्थात ग्रेनाईट के शिवलिंग पर हल्दी और
✡ अष्ट धातु के शिव लिंग पर रक्त नहीं चढ़ाना चाहिए।
[~~~
आचार्य कुमारिल भट्ट ~~~

भारतीय वैदिक इतिहास में कुमारिल भट्ट तथा शंकराचार्य जी दोनों ही वेदों के परमोद्धारक हुए।

कुमारिल ने कर्मकांड पर किये जाने वाले आक्षेपों का मुंहतोड़ उत्तर तथा भगवान् शंकर ने ज्ञानकाण्ड के आक्षेपों का समाधान किया।

कुमारिल की जन्मभूमि के सम्बंध में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है।
तिब्बती विद्वान तारानाथ जी ने इन्हें बौद्ध पण्डित धर्मकीर्ति का चाचा बताया है।

कुछलोग कहते है इनका जन्म दक्षिण भारत के “त्रिमलयक” नामक स्थान में हुआ, किन्तु इसमें संदेह है।

आनंद गिरी जी ने अपने दिग्विजय में इनका जन्म उद्ग्देश (उत्तर भारत) में बताया है ।
उद्ग्देश कश्मीर या पंजाब हो सकता है।

पूर्व मीमांसक सालिकनाथ ने इन्हें वार्तिककार भिक्षु कहा है, यह उपाधी उत्तर भारतीय ब्राह्मणों में ही पायी जाती है।
सालिकनाथ कुमारिल से ३०० वर्ष बाद पैदा हुए।

मिथिला के लोग इन्हें मैथिल ब्राह्मण कहते हैं।

कुमारिल धनाढ्यतम गृहस्थ थे। पांच सौ दास तथा दासियां थीं। चूड़ामणि देश के राजा के कुलगुरु थे।

बौद्ध दर्शन के विद्वान धर्मकीर्ति के साथ शास्त्रार्थ तथा उनके हारने की बात आती है।
धर्मकीर्ति त्रिमलय के निवासी थे, यह कुमारिल के पास वेदाध्ययन करने गये किन्तु बौद्घ समझकर इनको नहीं पढ़ाया।

तब ये दास के रूप में उनके घर में रहने लगे। वे इनकी परम् श्रद्धा से इतनी सेवा करने लगे कि पचास आदमी मिलकर भी इतनी सेवा नहीं कर सकते थे।

कुमारिल इनकी सेवा से इतने प्रभावित हुए कि इनको ब्राह्मण विद्यार्थियों के साथ दर्शन शास्त्र सुनने की आज्ञा मिली।

इन्होंने वैदिक दर्शनों के रहस्यों को अतिशीघ्र जान लिया।
तब वह अपने वास्तविक रूप में आये और ब्राह्मणों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा। इन्होंने अनेकों दार्शनिकों को परास्त किया।

तब कुमारिल से शास्त्रार्थ किया, कुमारिल भट्ट भी परास्त हो गये।

इससे क्षुब्ध होकर कुमारिल ने बौद्धों को परास्त करने के उद्दयेश्य से बौद्ध भिक्षु का रूप धारण किया तथा बौद्ध सिद्धांतो का खंडन करने के लिए बौद्ध बनकर उनके शास्त्रों का अध्ययन करने लगे।

श्री शंकराचार्य जी से भी कुमारिल ने कहा था —- ” मैं बौद्घ धर्म की धज्जियां उड़ाना चाहता हूं इसीलिए बौद्घ भिक्षु हुआ।”

उस समय धर्मपाल नामक बौद्घ भिक्षु की कीर्ति चारों ओर फैली हुई थी, वे बौद्घ धर्म के नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्यक्ष थे।

क्षणिकविज्ञानवादी होने पर भी उन्होंने योगाचार्य तथा शून्यवाद के मौलिक ग्रन्थों पर पांडित्यपूर्ण टिकाएं लिखी है।
अतः कुमारिल ने धर्मपाल से ही बौद्ध दर्शनों का अध्ययन किया।

एक दिन धर्मपाल ने शिष्यों के प्रति बौद्ध सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए वेदों की घोर निंदा की।

इस निंदा को सुनकर बौद्ध भिक्षु के रूप में बैठे हुए कट्टर वैदिक धर्मावलम्बी कुमारिल के नेत्रों से अश्रुपात होने लगा।

निकट बैठे हुए भिक्षुओं ने देखा और धर्मपाल को बताया।

धर्मपाल एक बौद्ध भिक्षु को वेदों की निंदा सुनकर आँसू बहाते देखकर आश्चर्य में पड़ गए, तथा पूछा— “तुम क्यों रोते हो?, क्या वेदनिन्दा सुनकर रोते हो ?”

कुमारिल ने कहा—- “हाँ, यही कारण है। आप वेदों के रहस्यों को बिना जाने ही मनमानी निंदा करते हो।”

इस घटना से कुमारिल का सच्चा रूप प्रगट हुआ। धर्मपाल रुष्ट हुए, इनको हटाने के लिए कहा। परन्तु दुष्ट विद्यार्थियों ने इन्हें वैदिक ब्राह्मण समझकर नालन्दा के ऊँचे शिखर से नीचे गिरा दिया।

वेद विश्वासी कुमारिल जी ने अपने को असहाय जानकर वेदों की शरण ग्रहण की।
राजभवन से नीचे गिरते हुए वह कहने लगे—–

“पतन् पतन् सौधतलान्यरोरुहम्,
यदि प्रमाणो श्रुतयो भवन्ति ।
जीवेम यास्मिन् पतितोऽसम स्थले
मज्जीवनेतत्श्रुतिमानता गति: ।।

यदीह सन्देहपदप्रयोगाद्
व्याजेन शास्त्र श्रवणाच्च हेतो:।
ममोच्चदेशात् पतताव्यनंक्षीत्
तदेकचक्षुर्विधिकल्पना सा ।।”

(यदि श्रुतियाँ प्रमाण है तो इस विषम स्थल पर गिरने से भी मैं जीवित रहूंगा। अर्थात श्रुतियों का प्रमाण ही मेरे जीवन का एकमात्र गति है।
यदि श्रुतियां ही प्रमाण है तो मेरे जीवन की रक्षा होगी , यदि प्रमाण नहीं है तो जीवन की रक्षा नहीं होगी। इसमें संदेहसूचक “यदि” शब्द का प्रयोग करने के कारण मेरा एक नेत्र नष्ट हो गया।)

कुमारिल तथा शंकराचार्य का चार्वाक, जैन, बौद्ध आदि दर्शनों का गम्भीर अध्ययन था, इतना अन्य दार्शनिकों को नहीं था।

इन दोनों की सामर्थ्य केवल संस्कृत ग्रन्थों तक ही सीमित नहीं थी, किन्तु इन्होंने पाली के ग्रन्थों का भी अध्ययन किया था।
इन बातों की पुष्टि माधव कृत दिग्विजय के सातवें सर्ग से होती है।

भगवान शंकराचार्य के समान इन्होंने भी दिग्विजय किया था। उत्तर भारतीय पंडितों को पराजित करने के अनन्तर दक्षिण भारत गये।

कुछ लोगों के मतानुसार वहां पर सुधन्वा राजा राज्य करते थे, इनकी राजधानी उज्जैनी थी, जिसका आजकल पता नहीं चलता।

वे वैदिक धर्मानुयायी होने पर भी जैनियों के पंजे में पड़े थे। कुमारिल दिग्विजय करते हुए उनके राज-दरबार में गये।

ज्ञान के भंडार वेद कूड़े में पड़े हुए थे, वैदिक ब्राह्मणों की निंदा हो रही थी, सुधन्वा को भी वेद में अनास्था हो गई थी, परन्तु रानी की अभी भी वेदों में निष्ठा थी। खिड़की पर बैठी रानी चिंता कर रही थी—-

“किं करोमि क्व गच्छामि को वेदानुद्धरिष्यति ।”
(मैं क्या करूँ ?, कहाँ जाऊं ?, वेदों का उद्धार कौन करेगा ?)

कुमारिल मार्ग से जा रहे थे। रानी की हीनता भरी पुकार सुनकर खड़े हो गए तथा उच्च स्वर में कहा—–

“मा विषीद वरारोहे भट्टचार्योऽस्मि भूतले।।”
(हे रानी ! खेद मत करो , मैं भट्टाचार्य पृथ्वी पर विद्यमान हूँ।)

और यह कार्य उन्होंने कर दिखाया।

इन्होंने “जैमिनीय पूर्वमीमांसा” पर लिखे गए “शवरस्वामी” के सुप्रसिद्ध भाष्य पर वार्तिक लिखा है। यह तीन भागों में है—

१.. श्लोक वार्तिक—–

इसमें तीन हजार निन्यानबे अनुष्टुप्छन्द के श्लोक है। यह ग्रँथ चौखम्बा सीरीज काशी से पार्थ सारथी मिश्र की न्यायरत्नाकर टीका सहित प्रकाशित हुआ है। डॉ. गंगनाथ झा ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है, यह अंग्रेजी अनुवाद “एशियाटिक सोसायटी बंगाल” से प्रकाशित है।

२.. तंत्र वार्तिक—–

इसके प्रथम अध्याय के दूसरे पाद से लेकर तीसरे अध्याय के अंत तक गद्य व्याख्या है। इसमें भट्टपाद की तार्किकता प्रकट होती है। यह ग्रँथ “आनंदाश्रम पूना” से पांच भागों में प्रकाशित हुआ है।

३.. टुप टीका—-

यह बहुत छोटा ग्रँथ है। इसमें चौथे अध्याय से लेकर बाहरवें अध्याय तक के शवर भाष्य पर गद्यात्मक संक्षिप्त टिप्पणियां है।

कृष्णदेव ने “तंत्र चूड़ामणि” में इनकी दो अन्य टीकाओं का भी उल्लेख किया है—

१.. वृहत् टीका
२.. मध्यम टीका
३… “मानव कल्पसूत्र” पर इनकी टीका।
“शिवमहिम्न स्तोत्र” पर भी इन्होंने टीका किया है।

इनके अनेकों विद्वान मीमांसक शिष्य थे, जिनके प्रचार-प्रसार से भारत में धार्मिक क्रांति आरम्भ हुआ। जिसमें तीन प्रधान थे—-

१… प्रभाकर—— इन्होंने मीमांसा के नवीन मत को जन्म दिया, इनका मत “गुरुमत” कहा जाता है। यह कुमारिल के प्रथम शिष्य थे, गुरुजी ने प्रसन्न होकर इन्हें गुरु की उपाधि दी थी, तबसे इनका मत “गुरुमत” नाम से प्रचलित हुआ।

परन्तु आजकल के संशोधकों को इसमें संदेह है। नवीन संशोधक प्रभाकर को कुमारिल से भी प्राचीन मानते हैं। इन्होंने अपने स्वतन्त्र मत का प्रचार करने के लिए शावर भाष्य पर “वृहती” तथा “लाघ्वी” नाम की टीकाएँ की है। जो अप्रकाशित है।

२… मण्डन मिश्र—– इन्होंने भगवान् शंकराचार्य जी की शिष्यता स्वीकार किया था, इनका चरित्र इस पेज पर पोस्ट किया जा चुका है।

३… उम्बेक (भवभूति)—–

यह बात सप्रमाण सिद्ध हो चुका है कि भवभूति कुमारिल के शिष्य थे।

श्री शंकर पांडुरंग पण्डित को “मालती माधव” नाम की एक प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक मिली, जिसके तीसरे अंक के अंत में कुमारिलशिष्य द्वारा विरचित लिखा है।

तथा छठे अंक के अंत में कुमारिल के प्रसाद से वाग्वैभव को प्राप्त करने वाले उम्बेकाचार्य की कृति कही है।
इससे सिद्ध होता है कि भवभूति का एक नाम उम्बेक भी था।

“भूमा – विद्या ” के परम दाता ” भगवन श्री सनत्कुमार “

नारायण । महामुनी देवर्षि नाराद भगवान के परम भक्त एवं विद्वान होते हुये भी उस परम आनन्द का अनुभव नहीँ कर पा रहे थे । नारायण , भौतिक दृष्टि से प्रजापति ब्रह्मा के इस ‘ मानस पुत्र ‘ को कोई दुःख हो यह संभव नहीँ । पुरुषोत्तम विष्णु के सर्वोत्कृष्ट भक्त और परम कृपापात्र कौन देव आधिदैविक दुःख से पीडित करने का दुःसाहस करता । परन्तु विचारशील के आध्यात्मिक दुःख को तो उतने से शान्ति नहीँ मिलती । इसलिये भगवान सदाशिव – शंकर के पास वे जिज्ञासु बन कर गये । भगवान शंकर ने उन्हे अपने पुत्र ‘ स्कन्द ‘ के स्वरूपभूत ‘ सनत्कुमार ‘ के पास दीक्षा लेने को भेजा । नारायण, श्री सनत्कुर स्वयं शंकर के शिष्य ही नहीँ ज्येष्ट भ्राता भी हैँ । सनत्कुमार उस समय हिमालय के ” स्कन्दक्षेत्र ” मेँ ध्यानमग्न बैठे थे । देवर्षि नारद ने स्कन्दक्षेत्र मेँ जाकर जहाँ श्री सनत्कुर जी को ‘ दण्डवत् – प्रणाम ‘ किया । श्री सनत्कुमार जी जो श्री साम्ब – सदाशिव शंकर के ध्यान मेँ मग्न थे तो शिव ध्यानस्थ श्री सनत्कुमार को प्रेरणा दी तो श्री सनत्कुमार जी यह कहते हुये –

गौरीशाय शंकराय शारदायै नमः ।। “

” शिव शिवाय नमः शम्भुवल्लभायै नमः ।

समाधि से उठ गये । श्री सनत्कुमार जी को अभी तक भी उस आनन्द का मद छाया हुआ था । नारायण , अपने सामने देवर्षि नारद को देख बड़े प्रेम से आलिँगन करते हुये – पुछने लगे ” भाई ! कैसे आये । ” उस आलिँगन मात्र से मानो देवर्षि नारद के युगयुगान्तर के पाप नष्ट हो गये होँ ऐसा दिव्य हलकापना उन्हेँ अनुभव हुआ । महामुनि देवर्षि नारद को न ध्यान मेँ और न साकार दर्शन मेँ वह तृप्ति मिल पाई थी जो आज समाधिमग्न श्री सनत्कुमार जी के प्रेम से मिली । देवर्षि नारद कहने लगे – भगवन्। मुझे आप जिस तत्त्व के ध्यान मेँ मग्न थे उसका उपदेश करेँ ।

कौथुमी शाखा के -छान्दोग्योपनिषद् मेँ सप्तम अध्याय मेँ संक्षिप्तरूप से उस संवाद का निरूपण किया है । वेदान्त मेँ वह सनत्कुमार विद्या या
” भूमाविद्या ” के नाम से प्रख्यात है । सनत्कुमार – ” सन् ” अर्थात् प्यार करना । नारायण , वैदिक संस्कृति मेँ सभी शिक्षा का आधार गुरु का शिष्य के प्रति प्रेम एवं करुणा तथा शिष्य का गुरु के प्रति श्रद्धा एवं शुश्रूषा ही स्वीकारा गया । गुरु शिष्य को ” सौम्य ” आदि शब्दोँ से सम्बोधित करते हैँ । ” सनत् ” का अर्थ ब्रह्मा भी होता है । जो ब्रह्मनिष्ठ ‘ ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति ‘ के न्याय से ब्रह्मस्वरूप बन गये हैँ वे ही ” ब्रह्मविद्या ” के अधिकारी माने गये हैँ । केवल वाचिक ज्ञान या शास्त्रोँ का ज्ञान दूसरे मेँ निष्ठा उत्पन्न करने मेँ समर्थ नहीँ । गुरु शिष्य के हृदय मेँ प्रवेश करता है । अतः गुरु की निष्ठा का ही शिष्य मेँ संचार होता है । अनुभवी गुरु ही शिष्य मेँ अनुभव का संचार कर सकता है । ” कुमार ” अर्थात् खेलना । जो इस विश्व मेँ शिव शक्ति के क्रीडांगन मेँ , निरन्तर खेलता है , विलास करता है वही ” कुमार ” है । इस क्रीडांगन को जिन्होँने रोने का स्थान मान कर इससे भाग कर बचने को ही साध्य मान रखा है वे जीवन्युक्ति से अभी बहुत दूर हैँ । वेद के सिद्धान्त मेँ ” सम्पूर्णँ जगदेव नन्दनवनं ” सम्पूर्ण विश्व को देवों का उपवन बना देने का अद्भुत सामर्थ्य है ।

नारायण । वेद के सिद्धान्त मेँ ” सम्पूर्ण जगदेव नन्दनवन ” सम्पूर्ण विश्व को देवों का उपवन बना देने का अद्भुत सामर्थ्य है ।
संसार के भौतिकवादी विश्व को दुःखसमेत स्वीकारते है क्योंकि जिस प्रकार बिना काँटे के गुलाब का फूल नहीँ मिल सकता उसी प्रकार बिना दुःख के सुख प्राप्ति उन्हें असम्भव लगती है । धर्माभासी मत या मजहब और पन्थ संसार के दुःखोँ से धबराकर किसी विशेष लोकान्तर या अवस्था विशेष की कल्पना करते हैँ जिसमेँ संसार से बच जावेँगे । शुन्यवादी बौद्ध एवं न्याय वैशेषिकादि मत तो ज्ञान शुन्य एवं आनन्दशुन्य अवस्था को ही मोक्ष मान कर उसे पत्थर के समभाव को प्राप्त करा देते हैँ । ” भगवान शंकरभगवत्पादाचार्य ” तो इसीलिय इन्हेँ “वैनाशिक ” और “अर्धवैनाशिक सम्प्रदाय ” कहते हैँ । संसार के सभी धर्मोँ और दर्शनों मेँ एक मात्र वेदान्त ही विश्व को दुःखरहितपरमानन्दानुभवरूप बनाने का दावा करता है । वेदान्त का दावा है कि ” एकोमेवाद्वितीयं परमार्थता इदंबुद्धिकालेऽपि ” ( छान्दोग्योपनिषद् , श्री शांकरभाष्य ) जिस काल मेँ दुःख एवं खण्डरूप से यह विश्व सामान्य जन्तु को प्रतीत होता है उसकाल मे भी अखण्ड परमानन्द रूप से ही वह स्थित है । वैदिक ज्ञान केवल हमारी बुद्धि मेँ निर्मलता को लाकर हमेँ उसे अनुभव करने की सामर्थ्य देता है । जहाँ दुसरे मतवाले विश्व को दुःखमय बताते हैँ वेद हमारे मन के संस्कारोँ के कारण उसमेँ दुःखता की प्रतीति बताता है । स्कन्दरूप से शिवशक्ति के साक्षात् पुत्र भगवान् सनत्कुमार इसीलिये सनत् – चिरन्तन कुमार है कि वे इस आंगन मेँ सदा ही पुत्र भाव से खेलते रहते हैँ । जो भी शिवशक्ति के कृपापात्र बनकर जीवन्मुक्ति के आनन्द मेँ रहते है । वे क्रीडा करने वाले ही शिवशक्ति पुत्र ” स्कन्द ” कहे जाते है एवँ वे ही ब्रह्मविद्या के वास्तविक उपदेशक बन सकते है । परन्तु इस प्रकार वे ही खेल सकते है जो कुमार हैँ । ” कुत्सितो मारो येन स कुमारः ” अर्थात् जिसने कामनाओँ को तिरस्कृत कर दिया वही “कुमार ” है ।

नारायण । कामनाओँ का मूल भेददर्शन है । अभेददर्शी मेँ कामनाओँ का अभाव स्वतः सिद्ध है । स्वतः अपनी कामना किसी को नहीँ होती । ” सर्वैकत्वात्कामानुपपत्तेः ” ( बृहदारण्यक उपनिषद् , श्री शांकरभाष्यम् ) कामना न होने पर शरीररूपी उपाधि के द्वारा दुःख भी सम्भव नहीँ । कामना के उदय होने पर कुमारत्व नष्ट हो जाता है । चित्त मेँ व्यभिचारता आ जाती है । फिर बालक की तरह खेलना संभव नहीँ । लोक मेँ भी कुमार मेँ काम का अभाव प्रत्यक्ष है । कामुक बनने पर ही अहंकार का उदय होता है एवं तब युवा माना जाता है और माता -पिता के साथ पूर्व जैसा सहज खेलने का व्यवहार नहीँ रह जाता। विवाहोत्तर जिस प्रकार पत्नी से ही क्रीडा संभवती है उसी प्रकार अविद्या से ही जीवभाव मेँ क्रीडा करता है । इसी प्रकार शिवशक्ति के विषय मेँ समझना चाहिये । जिसकी अविद्या पत्नी नहीँ है वही जीवन्मुक्त कुमार कहा गया है । ऐसा नित्य विज्ञानानन्द मेँ स्थित ही ब्रह्मविद्या का प्रचार कर सकता है ।

नारायण । ” नारद ” शिष्य भाव के प्रतीक है । ” नार ” अर्थात् ज्ञान को जो देता है वह नारद है । शिष्य वही है जो ज्ञान प्राप्त कर के उसका विस्तार करता है । ”

आचार्यस्य प्रियं धनं आहृत्य प्रजा तन्तु मा व्यवच्छेत्सीः “
( तै ॰ उ 1 . 11 )

वेद भगवान् की आज्ञा है कि गुरु के प्रिय धन रूपी ; विद्या को ग्रहण कर के ज्ञानसन्तति का उच्छेद न होने दे । जो केवल अपने तक ही ज्ञान को सीमित रखना चाहता है वह वास्तविक शिष्य नहीँ है । केवल अन्न या वाह्य भोगों को ही विषय नहीँ करता वरन् ज्ञान को भी स्वयं अपने तक ही सीमित रखने का वेद भगवान् निषेध करते हैँ । इसलिय काठकसंहितोपनिषद् मेँ प्रार्थना की गई है –

” तेजस्वि नावधीतमस्तु ” ।

हमारा किया हुआ अध्ययन वीर्यवाला बने। जिस प्रकार वीर्यहीनसंतति कुल के लिये व्यर्थ है वैसे ही विद्या को भी समझना चाहिये । वैदिक संस्कृति के पतन काल मेँ विद्या को स्वयं अपने तक सीमित रखने के भ्रान्त स्वार्थ ने एक आदर्श का रूप ले लिया । ” गोपाय मा ” का अर्थ केवल गोपन करना नहीँ है वरन् रक्षा करना भी होता है । विद्या की रक्षा शिष्य के हृदय मेँ उसका संचार करने से ही है । वेद की रक्षा उसके ग्रंथों से नहीँ है। पुस्तकालयोँ मेँ अथवा प्रकाशकों के यहाँ रखी पोथियोँ मेँ वेद के मंत्र नहीँ रखे जा सकते । भगवान् श्री शंकरभगत्पादाचार्य कहते है – ” मनोवृत्त्युपाधिपरिच्छिन्नं मनोवृत्तिनिष्ठमात्मचैतन्यं ” अर्थात् मन की वृत्ति मेँ रहनेवाला एवं उस उपाधि से विशिष्ट आत्मा ही मंत्र शब्द का अर्थ है। पुस्तकस्य मंत्र तो केवल उस वृत्ति का प्रेरक होने से गौणरूप से मंत्र कहा जाता है । ऐसा न मानने पर वेदमंत्रों की नित्यता सिद्ध ही नहीँ हो सकती । अतः शिष्य के मन मेँ ही वेदोँ को लिखने से वेद – रक्षण संभव है । जिस शिष्य से ऐसी आशा नहीँ वह ब्रह्मविद्या का उत्तम अधिकारी भी नहीँ हो सकता ।

” नर ” अर्थात् आत्मा । उससे उत्पन्न जगत भी ” नार ” कहा जाता है । उसका जो ” द्यति ” खण्डन या बाध करता है वह ” नारद ” कहा जाता है। जगत मेँ आत्मा और अनात्मा मिले हुये हैँ । विवेक से उन्हेँ दो टुकडे करके खण्डित किया जाता है । तत्पश्चात् अनात्मा को ” द्यायति ” तिरस्कृत किया जाता है अतः विवेकी और वैराग्यवान् ही नारद पद वाच्य है । ” नार ” का अर्थ नरसमुह भी होता है । उनका तिरस्कार अर्थात् नरसमुह से अलग एकान्त मेँ रहने का स्वभाव जिसका है वह नारद है ।

नारायण । फूल खिलने पर भौँरोँ को निमन्तत्रण नहीँ देना पडता । इसी प्रकार साधक ” साधनचतुष्टय ” सिद्ध हो जाने पर ज्ञान के साधन स्वयं उपस्थित हो जाते हैँ । साधनचतुष्टय से असम्पन्न साधक मेँ न ब्रह्मविद्या उत्पन्न होगी और न स्थिर । ऐसी एक प्राचीन लोकोक्ति है कि – शेरनी का दूग्ध स्वर्णपात्र मेँ ही दुह कर इकट्ठा किया जा सकता है । वैराग्यहीन प्रथम तो भगवान् श्रीसाम्ब सदाशिव शंकर के स्वरूप को समझ ही नहीँ पायेगा और समझ भी गया तो राग से गिर जायेगा । श्रुतिभगवती स्पष्ट रूप से कहती है – ” न प्रवेदयन्ति रागात् ” ( मुण्डकोपनिषद् ) । दुःखानुभव से यद्यपि वितृष्णा उत्पन्न होती है , वैराग्य उत्पन्न नहीँ होता , नारायण । वैराग्य तो विवेक का फल है । और विवेक शब्द का अर्थ ही होता है अलग करना । विकेक के द्वारा राग से अलग होना । विवेक के तलवार के राग को काटना । नर विषयोँ को बाहिर ढुँढ कर वहाँ न पाकर , गेँद ( कन्दुक ) की दीवाल मेँ ठोकर खाकर वापिस आने की तरह , आत्मत्त्व मेँ जब लौटना है तभी वास्तविक वैराग्य माना जाता है । आज के तथाकथित छद्मवेशी वैरागीयों ने टनों स्वर्ण को रखकर बड़े बड़े ट्रस्ट बना अपने कुटुम्ब परिवारों को ट्रस्ट मेँ रखकर उसकी रखवाली करना अध्यात्म वैराग्य के नाम पर कलंक है । आज बड़ा वैरागी वही है जिनके पास ज्यादा आश्रमों का जाल, गाड़ियो और धन पर जिसका नियन्त्रण है । ऐसे तथाकथित वैरागीयो , भगवावेष , तिलक – मालाधारियों के जालमेँ आकर जो भी धन – सम्पत्ति दान करते वे दानदाता दान की परिभाषा से ईश्वर के न्यालय में निश्चित ही दण्ड के ही भागी बनेँगे । इसमें कोई संदेह नहीं ।

दुःखानुभव काल मेँ श्मशान वैराग्य उत्पन्न होता है । पर भोग की पूर्णता मेँ जो वितृष्णा है वही उत्तम है । श्मशान वैराग्य दुःखनिवृत होनेपर निवृत हो जाता है ।माता कुन्ती के पास श्रीकृष्ण महाभारत विजय के पश्चात् अनेको वषों तक नहीँ गये । जब हस्तिनापुर पहुँच कर सभी से मिले तो सभी प्रसन्न थे । केवल माता कुन्ती ने कहा –

” विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्रता जगद्गुरो ।
भवतो दर्शनं यत् स्याद् अपुनर्भवदर्शनम ।।”

जब आपके दर्शन मिलते थे वही समय विपत्ति का होने पर भी मुझे प्रिय था । ऐसी विपत्ति बराबर बनी रहे तो अच्छा । धन्य हैँ श्री कुन्ती माँ ! माता श्री कुन्ती जी वैराग्यवती थी अतः दुःखोँ के निवृत होने पर भी श्रीकृष्ण को चाहती थी । अन्य लोग केवल विपत्ति निवृत्यर्थ भगवान् श्रीकृष्ण को चाहते थे । इसी प्रकार सुख हो या दुःख संसार मेँ राग न हो तभी वैराग्य समझना चाहिये । प्रायः लोग दुःख की महिमा बताते हैँ –

” सुख के माथे सिल पडो जो नाम हृदय से जाये ।
बलिहारी वा दुःख की जो पल – पल नाम रटाय ।। “

पर यह वैराग्य के स्वरूप को न समझने का फल है । दुःख मेँ चाहे नाम रटे पर वह काम्य विषय प्राप्ति के लिये होता है । विषय प्राप्ति के बाद हट जाता है । सुख मेँ भी जो विषय को नहीँ ” शिव ” को ही काम्य माने वही वैराग्य है । अतः वैराग्य की परीक्षा सुख मेँ है ।
नारायण स्मृतिः

त्रिषडाय व उपचय भाव।

कुंड‌‌ली में 12 भाव , 12 राशियां, 9 ग्रह व 27 नक्षत्र होते हैं । यह ज्योतिष की परिधि है । यह फलित ज्योतिष का आधार है। जब हम जन्म कुंडली की बात करते हैं तो सर्वप्रथम इन्ही विषयों पर पहले ध्यान केंद्रित करते हैं।

यह जन्म कुंडली हमारे वर्तमान जन्म के अतिरिक्त पूर्व जन्म के विषय में भी संकेत देती है तथा हमारे कर्मों के
अनुसार हमारे प्रारब्ध को भी बताती है । कहने का अर्थ है कि कुंडली का लग्न व लग्नेश हम स्वयं हैं इसलिये जब
भी किसी भाव/ भावेश से लग्न / लग्नेश का सम्बंध बन जाता है तो जातक स्वयं उस भाव/ भावेश से जुड जाता है।

जन्म कुंड्ली में कुछ भाव शुभ माने जाते हैं तथा कुछ भाव अशुभ माने जाते हैं । जैसे कुंडली का लग्न तथा बाकी तीनों केंद्र तथा त्रिकोण भाव व लाभ भाव शुभ माने जाते है तथा इनके भावेश भी अत्यंत शुभ माने जाते हैं ।

इसके विपरीत कुंडली के त्रिषडाय भाव , उपचय भाव तथा त्रिक भाव अशुभ माने जाते हैं । परंतु क्या यह सच में अशुभ भाव हैं ? क्या यह भाव और सम्बंधित भावेश जातक को अशुभ फल ही देते हैं ?

हम बात करते हैं त्रिषडाय भाव की…….

कुंडली में त्रिषडाय भाव कौन –कौन से हैं ?

जन्म कुंडली का तृतीय भाव, छटा भाव तथा एकादश भाव त्रिषडाय भाव होते हैं ।

तृतीय भाव से हम छोटे भाई – बहन , शौक , संचार , लेखन कार्य , छोटी यात्रायें , पराक्रम आदि देखते हैं । इससे दायां कंधा, बाजु , नौकर भी देखे जाते हैं । तृतीये भाव का कारक ग्रह मंगल है ।

षष्टम भाव रोग ,शत्रु तथा ऋण का भाव है । इस भाव से हम कोर्ट – कचहरी , लडाई –झगडा , लोन ,हिंसा , चोर, संघर्ष, प्रतियोगिता , नौकर – चाकर ,ईर्ष्या , कमर से नीचे बस्ति, मामा ,मौसी आदि देखते हैं । षष्टम भाव के कारक ग्रह शनि और मंगल हैं ।

इसी प्रकार एकादश भाव लाभ भाव होता है । इसी भाव से जातक को प्राप्ती होती है चाहे वह लाभ की प्राप्ती हो या ज्येष्ठ भ्राता , मनोकामना पूर्ति , मान- सम्मान की प्राप्ती , बायां कंधा, बायां कान, मित्रता , अपने बच्चों के
जीवन साथी , सुख – समृधि आदि इसी भाव से विचार किये जाते हैं । एकादश भाव में स्थित सभी ग्रह जातक
को लाभ देते हैं । यहां तक के इस भाव में वक्री ग्रह भी शुभ फल देते हैं । गुरु इस भाव के लिये कारक ग्रह है ।

त्रिषडाय भाव का प्रथम त्रिषडाय भाव तृतीय भाव है ।यह प्रथम काम भाव भी है । काम अर्थात इच्छा पूर्ति की
चेष्टा तथा इसका कारक मंगल जैसा कि बताया जा चुका है । तृतीय भाव का सम्बंध जातक में प्राप्ती की चेष्टा
उत्पन्न करताहै । मंगल जातक में साहस देता है कि वह इस पथ पर आगे बढे । शायद इसी कारण से तृतीय भाव
का कारक ग्रह मंगल जैसा तीव्र तथा पापी ग्रह है तथा इसीलिय यह कहा जाता है कि तृतीय भाव में पापी ग्रह
स्थित हो तो जातक में ऊर्जा और साहस का संचार करते हैं।

षष्टम भाव अर्थ त्रिकोण का दूसरा त्रिकोण है । जहां प्रतिस्पर्धा भी है , लडाई –झगडा भी है, शत्रु भी है । कहने का अर्थ यह है कि षष्टम भाव तथा षष्ठेश भी धन से सम्बंध रखता है परंतु लडाई ‌झगडे से प्राप्त धन, लोन या ऋण से प्राप्त धन । शायद इसी कारण इसके कारक ग्रह मंगल अर्थात लडाई –झगडा व शनि अर्थात कोर्ट –
कचहरी है । यदि षष्टम भाव / षष्ठेश का सम्बंध दशम भाव / दशमेश से हो जाये तो जातक दूसरों के लडाई-
झगडे से फायदा उठाता है क्योकि छटा भाव दशम भाव से नवम है तथा दशम भाव छटे भाव से पंचम भाव है।

इसी प्रकार यदि तृतीय भाव / भावेश का सम्बन्ध छटे भाव से हो जाता है तो जातक की ऊर्जा , हिम्मत , पराक्रम, जातक की संघर्ष शक्ति , प्रतियोगिता क्षमता से साथ जुड जातीहै तो जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत से काम लेता है। उसमें लक्ष्य तक पहुंचने की लगन होती है । जिसके लिये वह सदैव प्रयासरत रहता है ।

एकादश भाव काम त्रिकोण का अंतिम त्रिकोण भाव है । अत: इस भाव में इच्छायें हैं मनोकामनायें हैं। इस त्रिकोण
के साथ जिस भी त्रिकोण अर्थात धर्म ,अर्थ , काम या मोक्ष का सम्बंध बनता है उससे सम्बंधित लाभ , हानि,
इच्छापूर्ति होती है । इसलिये इस अंतिम काम त्रिकोण मे सभी ग्रह प्राप्ति तक पहुचाते हैं ।

त्रिषडाय भावों को शुभ नहीं माना जाता इसका कारण है ! शायद इसमें दो काम त्रिकोण भाव हैं तथा एक अर्थ
त्रिकोण भाव है । इन तीनों का सम्बंध जातक को लाभ प्राप्ति के लिये प्रेरित करता है ! फिर चाहे वो जैसे भी
प्राप्त हो । व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा होती है ,दूसरों को पीछे छोड कर आगे पडने की प्रवृति होती है । उसके लिये वो
नैतिक अनैतिक कैसे भी कदम उठा सकता है। उसमें ऊर्जा होती है परंतु उसमें कर्म नहीं होता । जातक को बिना मेहनत के , चोरी से , दूसरों से लडाई – झगडे से, लोन से तथा ऋण आदि से लाभ की प्राप्ति होती है ।

त्रिषडाय भाव में यदि दशम भाव भी जोड दिया जाये तो यह उपचय भाव बन जाता है । दशम भाव जातक का कर्म स्थान होता है । इससे हम नौकरी / व्यवसाय, उच्च पद, अधिकार आदि देखते हैं । त्रिषडाय भाव में दशम भाव जुडने से अब यह उतना अशुभ नहीं रह जाता । इसमें जातक का पुरूषार्थ जुड गया । यदि किसी जातक की जन्म कुंड्ली में उपचय भावों अर्थात तृतीय भाव,षष्टम भाव , दशम भाव तथा एकादश भाव का सम्बंध आ जाता है तो ऐसा जातक “ फर्श से अर्श तक ” पहुंच जाता है । वह ना खुद आराम से बैठता है और ना ही किसी को बैठने देता है । जातक जब अपने संघर्ष में , प्रतिस्पर्धा मे अपने कर्मों को साहसपूर्ण व ऊर्जापूर्ण रूप से जोडता है तो उसको श्रेष्ठ की प्राप्ति होती है ।
[ ब्रह्म-तत्व सर्वव्यापी है और निरंतर विस्तृत हो रहा है| सारी सृष्टि उसमें समाहित है और वह भी सम्पूर्ण सृष्टि में समाहित है| ब्रह्मतत्व प्रत्यक्ष अनुभूति से समझ में आता है, बुद्धि से नहीं| सहस्त्रार में गुरु प्रदत्त विधि से श्रीगुरुचरणों का ध्यान करते करते गुरुकृपा से चेतना जब ब्रह्मरंध्र को भेद कर अनंत में चली जाती है, और उस दिव्य अनंतता का दीर्घ दिव्य अनुभव कई बार प्राप्त कर के देह में बापस लौटती है, तब ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध सद्गुरु की कृपा और आशीर्वाद से वह अनुभूति ही “परमशिव” और “पारब्रह्म” का बोध करा देती है, अन्यथा नहीं| तब ही हम कह सकते हैं ….. “शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि”, अन्यथा नहीं|
[ गायत्री गुप्त मन्त्र और सम्पुट
〰〰🌼〰〰🌼〰〰
गायत्री मन्त्र के साथ कौन सा सम्पुट लगाने पर क्या फल मिलता है!!

ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ
श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ऐं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं भर्गो देवस्य
धीमहि ॐ सौ: धियो यो न: प्रचोदयात
ॐ नम:! ॐ श्रीं ह्रीं ॐ भूर्भुव:
स्व: ॐ ऐं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ सौ: ॐ धियो यो न: प्रचोदयात ॐ ह्रीं श्रीं ॐ!!

गायत्री जपने का अधिकार जिसे नहीं है वे निचे लिखे मन्त्र का जप करें!

ह्रीं यो देव: सविताSस्माकं मन: प्राणेन्द्रियक्रिया:!
प्रचोदयति तदभर्गं वरेण्यं समुपास्महे !!

सम्पुट प्रयोग
〰〰〰〰
गायत्री मन्त्र के आसपास कुछ बीज
मन्त्रों का सम्पुट लगाने का भी विधान है जिनसे विशिष्ट कार्यों की सिद्धि होती है ! बीज मन्त्र इस प्रकार हैं—-

१- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं — का सम्पुट लगाने से
लक्ष्मी की प्राप्ति होती है!

२- ॐ ऐं क्लीं सौ:– का सम्पुट लगाने से
विद्या प्राप्ति होती है!

३– ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं —
का सम्पुट लगाने से संतान प्राप्ति, वशीकरण और मोहन होता है!

४– ॐ ऐं ह्रीं क्लीं — का सम्पुट के
प्रयोग से शत्रु उपद्रव, समस्त विघ्न बाधाएं और संकट दूर होकर भाग्योदय होता है!

५– ॐ ह्रीं — इस सम्पुट के प्रयोग से रोग नाश होकर सब प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है!

६– ॐ आँ ह्रीं क्लीं — इस सम्पुट
के प्रयोग से पास के द्रव्य की रक्षा होकर
उसकी वृद्धि होती है तथा इच्छित वस्तु
की प्राप्ति होती है! इसी प्रकार किसी भी मन्त्र की सिद्धि और विशिष्ट कार्य
की शीघ्र सिद्धि के लिए भी दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों के साथ सम्पुट
देने का भी विधान है! गायत्री मन्त्र समस्त मन्त्रों का मूल है तथा यह आध्यात्मिक शान्ति देने वाले हैं!!

गायत्री शताक्षरी मन्त्र
〰〰〰〰〰〰
” ॐ भूर्भुव: स्व : तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि! धियो यो न: प्रचोदयात! ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममराती यतो निदहाति वेद:! स न: पर्षदतिदुर्गाणि
विश्वानावेव सिंधु दुरितात्यग्नि:!
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम! उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात !!”

शास्त्र में कहा गया है कि गायत्री मन्त्र जपने से पहले गायत्री शताक्षरी मन्त्र
की एक माला अवश्य कर लेनी चाहीये! माला करने पर मन्त्र में चेतना आ जाती है!!
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

Recommended Articles

Leave A Comment