Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

आदिशक्ति माँ भुवनेश्वरी

ईश्वररात्रि में जब ईश्वर के जगद्रूप व्यवहार का लोप हो जाता है, उस समय केवल ब्रह्म अपनी अव्यक्त प्रकृति के साथ शेष रहता है, तब उस ईश्वररात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी कहलाती हैं। इनके मुख्य आयुध अंकुश और पाश हैं। अंकुश नियंत्रण का प्रतीक है और पाश राग अथवा आसक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार सर्वस्वरूपा मूल प्रकृति ही भुवनेश्वरी हैं, जो विश्व को वमन करने के कारण वामा, शिवमयी होने से ज्येष्ठा और कर्म-नियंत्रण, फलदान करने व जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री कही जाती हैं। भगवान् शिव का वाम भाग ही भुवनेश्वरी कहलाता है।

  भुवनेश्वरी के संग से ही भुवनेश्वर सदाशिव को सर्वेश होने की योग्यता प्राप्त होती है। महानिर्वाणतन्त्र के अनुसार समस्त महाविद्याएँ भगवती भुवनेश्वरी की सेवा में सदा संलग्न रहती है। सात करोड़ महामन्त्र इनकी सदा ही आराधना किया करते हैं। बृहन्नीलतन्त्र व पुराणों के अनुसार प्रकारान्तर से काली और भुवनेशी दोनों में अभेद है अर्थात् कोई अन्तर नहीं है। अव्यक्त प्रकृति भुवनेश्वरी ही रक्तवर्णा काली है।

माँ भुवनेश्वरी साधना पूजा विधान –

स्नान करके शुद्ध सफ़ेद वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की तरफ़ मुख करके सफ़ेद ऊनी आसन पर बैठ जाए ! उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर सफ़ेद रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर प्लेट रखकर रोली से त्रिकोण बनाये उसके बाद उस त्रिकोण में अखंडित चावल भर दें ! उसके बाद उन चावलों के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “भुवनेश्वरी यंत्र” को स्थापित करें ! फिर उसके बाद भुवनेश्वरी यंत्र के सामने दस चावल की ढेरियां बनाकर उस पर 10 लघु नारियल स्थापित करें ! प्रत्येक नारियल पर रोली से तिलक करें ! अगर यंत्र न हो तो माता की तस्वीर रख सकते है । उसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाकर यंत्र या तस्वीर का पूजन करें और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े :

ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी महा मन्त्रस्य सदाशिव ऋषि: त्रिष्टुपछन्द: श्री भुवनेश्वरी देवता ह्रीं बीजं ऐं शक्ति: श्रीं कीलकं श्री भुवनेश्वरी देवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ।

ऋष्यादि न्यास : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! मंत्र :

सदाशिवऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )

त्रिप्टुश्छन्दसे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )

श्रीभुवनेश्वरी देवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )

ह्रीं बीजाय नम: गुहे ( गुप्तांग को स्पर्श करें )

ऐं शक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )

श्रीं कीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )

विनियोगाय नम: सर्वांगे। ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )

कर न्यास : अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है ।

ह्राँ अंगुष्ठाभ्यां नम: ।

ह्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।

ह्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।

ह्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।

ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।

ह्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

ह्र्दयादि न्यास : पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! मंत्र :

ह्रां ह्रदयाय नम: ( ह्रदय को स्पर्श करें )

ह्रीं शिरसे स्वाहा ( सर को स्पर्श करें )

ह्रूं शिखायै वषट् ( शिखा को स्पर्श करें )

ह्रैं कवचाय हुम् ( कंधों को स्पर्श करें )

ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ( नेत्रों को स्पर्श करें )

ह्र: अस्त्राय फट् ( सर पर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं )

ध्यान : इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती भुवनेश्वरी का ध्यान करके, भुवनेश्वरी माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर भुवनेश्वरी महाविद्या मन्त्र का जाप करें !

ध्यान मंत्र –

उधदिनधुतिमिंदु किरीटां तुंग कुचां नयन त्रययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदांगकुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ।।

अब षोडशोपचार या पंचोपचार यथा शक्ति पूजन करे । अभिषेक , वस्त्र , धूप , दिप , पुष्प , तिलक , नैवद्य प्रसाद , आरती करें । उनके बाद अकीक , स्फटिक या रुद्राक्ष माला से भगवती के इस मंत्र की 12 माला जाप करे ।

                 ।। “ऐं ह्रीं श्रीं” ।। 

मंत्र जाप के बाद स्तोत्र , कवच , गायत्री या खड़गमाला कर सकते है । ग्यारह दिनों की साधना है ! साधना करते समय साधक पूर्ण आस्था के साथ नियमों का पालन जरुर करें ! और नित्य जाप करने से पहले ऊपर दी गई संक्षिप्त पूजन विधि जरुर करें ! साधक साधना करने की जानकारी गुप्त रखें ! ग्यारह दिनों के बाद मन्त्रों का जाप करने के बाद दिए गये मन्त्र जिसका आपने जाप किया हैं उस मन्त्र का दशांश ( 10% भाग ) हवन अवश्य करें ! हवन में कमल गट्टे, शुद्ध घी व् हवन सामग्री को मिलाकर आहुति दें ! हवन के बाद भुवनेश्वरी यंत्र या तस्वीर को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर एक साल के लिए रख दें और बाकि बची हुई पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जन कर आयें ! ऐसा करने से साधक की साधना पूर्ण हो जाती हैं ! और साधक के ऊपर माँ भुवनेश्वरी देवी की कृपा सदैव बनी रही हैं ! ये साधना करने से साधक के जीवन में ज्ञान, धन सम्मान, प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है !

माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र ||

अष्टसिद्धिरालक्ष्मी अरुणाबहुरुपिणि
त्रिशूल भुक्कुरादेवी पाशाकुशविदारिणी !!१

खड्गखेटधरादेवी घण्टनि चक्रधारिणी
षोडशी त्रिपुरादेवी त्रिरेखा परमेश्वरी !!२

कौमारी पिंगलाचैव वारीनी जगामोहिनी
दुर्गदेवी त्रिगंधाच नमस्ते शिवनायक !!३

एवंचाष्टशतनामंच श्लाके त्रिनयभावितं
भक्तये पठेन्नित्यं दारिद्रयं नास्ति निश्चितं !!४

एकः काले पठेन्नित्यं धनधान्य समाकुलं
द्विकालेयः पठेन्नित्यं सर्व शत्रुविनाशानं !!५

त्रिकालेयः पठेन्नित्यं सर्व रोग हरम परं
चतुःकाले पठेन्नित्यं प्रसन्नं भुवनेश्वरी !!६

इति श्री रुद्रयावले ईश्वरपार्वति संवादे
श्री भुवनेश्वरी स्तोत्र संपूर्णं ।।

माँ भुवनेश्वरी कवच –

ह्रीं बीजं मे शिर: पातु भुवनेश्वरी ललाटकम् ।
ऐं पातु दक्षनेत्रं मे ह्रीं पातु वामलोचनम् ।।
श्रीं पातु दक्षकणर्ण मे त्रिवर्णात्मा महेश्वरी ।
वामकर्ण सदा पातु ऐं घ्राणं पातु मे सदा ।।
ह्रीं पातु वदनं देवी ऐं पातु रसनां मम ।
श्रीं स्कन्धौ पातु नियतं ह्रीं भुजौ पातु सर्वदा ।।
क्लीं करौ त्रिपुरेशानी त्रिपुरैश्वर्यदायिनी।।
ॐ पातु ह्रदयं ह्रीं मे मध्यदेशं सदाऽवतु ।
क्री पातु नाभिदेशं सा त्र्यक्षरी भुवनेश्वरी ।।
सर्वबीजप्रदा पृष्ठं पातु सर्ववशंकरी ।
ह्रीं पातु गुदे शं मे नमो भगवती कटिम् ।।
माहेश्वरी सदा पातु सक्थिनी जानुयुग्मकम् ।
अन्नपूर्णा सदा पातु स्वाहा पातु पदद्वयम् ।।
सप्तदशाक्षरी पायाद्न्नपूर्णात्मिका परा ।
तारं माया रमा काम: षोडशार्णा तत: परम् ।।
शिरस्स्था सर्वदा पातु विंशत्यर्नात्मिका परा ।
तारदुर्गे युगं रक्षिणी स्वाहेति दशाक्षरी ।।
जयदुर्गा धनश्यामा पातु मां पूर्वतो मुदा ।
मायावीजादिका चैषा दशार्णा च परा तथा ।।
उत्तप्तकांचनाभासा जयदुर्गाननेऽवतु ।
तारं ह्रीं दुं दुर्गायै नमोऽष्टार्णात्मिका परा ।।
शंखचक्रधनुर्बाणधरा मां दक्षिणेऽवतु ।
महिषामर्दिनी स्वाहा वसुवर्णात्मिका परा ।।
नैऋत्यां सर्वदा पातु महिषासुरनाशिनी ।
माया पद्धावती स्वाहा सप्तार्ना परिकीर्तिता ।।
पद्धावती पद्धसंस्था पश्चिमे मां सदावतु ।
पाशानकुशपुटा माये हि परमेश्वरि स्वाहा ।।
त्रयोदशार्णा भुवनेश्वरीधया अश्वारुढ़ाननेवतु ।
सरस्वती पञ्चशरे नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ।।
स्वाहा रव्यक्षरी विद्या मामुत्तरे सदावतु ।
तारं माया तु कवचं खं रक्षेत् सदा वधू: ।।
हूँ क्षे फट् महाविद्या द्वाद्शार्णाखिलप्रदा ।
त्वरिताष्टाहिभि: पायाच्छिवकोणे सदा च माम् ।।
ऐं क्लीं सौ: सा ततो वाला मामूधर्वदेशतोऽवतु ।
बिन्द्वन्ता भैरवी बाला भूमौ च मां सदावतु ।।

भुवनेश्वरी गायत्री –

॥ॐ नारायण्यै विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥

श्री भुवनेश्वरी-शुद्धशक्ति-खड्गमाला मन्त्र –

भुवनेश्वरी महाविद्या का खड्गमाला मन्त्र आपके समक्ष प्रस्तुत है, इस एक मन्त्र के पढ़ने से भुवनेश्वरी माँ के यन्त्र स्थित सभी आवरण देवताओं/शक्तियों का स्मरण हो जाता है, इसे पढ़कर माँ के चित्र मूर्ति या यन्त्र को पुष्प चढा़ने से उनकी आवरण पूजा सम्पन्न हो जाती है। नित्य सुबह/शाम एक पाठ ही पर्याप्त है।

विनियोग — ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी-खड्ग-माला-मन्त्रस्य श्री प्रकाशात्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री भुवनेश्वरी देवता, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, श्रीभुवनेश्वरी-पराम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास — श्री प्रकाशात्मा-ऋषये नमः शिरसि, (सिर का स्पर्श करे)
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,(मुख का स्पर्श करे)
श्री भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदि, (हृदय का स्पर्श करे)
हं बीजाय नमः गुह्ये, (बाये हाथ से नितम्ब का स्पर्श करे और हाथ धोले)
ईं शक्तये नमः पादयोः,(पैरों का स्पर्श करे)
रं कीलकाय नमः नाभौ, (नाभि का स्पर्श करे)
श्री भुवनेश्वरी पराम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे (समस्त अंगों का स्पर्श करे)

ध्यान
स्मरेद् रवीन्द्वग्नि-विलोचनां तां, सत् पुस्तकां जाप्य-वटीं दधानाम्।
सिंहासनां मध्यम पत्र संस्थां, श्रीतत्त्व-विद्यां परमा पराम्बां भजामि ॥

(सूर्य, चंद्र व अग्नि जिनके नेत्र स्वरूप हैं, पुस्तक और जपमाला धारण करके सिंहासन के मध्य में विराजमान उन परमतत्व-विद्या पराम्बा को स्मरण करके मैं उनकी उपासना करता हूँ)

य एवं-सचिन्तयेन्मन्त्री, सर्व-कामार्थ-सिद्धिदाम् । तस्य हस्ते सदैवास्ति, सर्व-सिद्धिर्न संशयः ॥
तादृशं खड्गमाप्नोति, येन हस्त-स्थितेन वै । अष्टादश-महा-द्वीपे सम्राट् भोक्ता भविष्यति ॥

खड़गमाला मन्त्र –

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं श्रीभुवनेश्वरी-हृदय-देवि शिरोदेवि शिखा-देवि कवच-देवि नेत्र-देव्यस्त्र-देवि कराले विकराले उमे सरस्वति श्रीदुर्गे उषे लक्ष्मि श्रुति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कान्ति आर्ये श्रीभुवनेश्वरि दिव्यौघ-गुरु-रूपिणि सिद्धौघ-गुरु-रूपिणि मानवौघ-गुरु-रूपिणि श्री-गुरु-रूपिणि परम-गुरु-रूपिणि परापर-गुरु-रूपिणि परमेष्ठी-गुरु-रूपिणि अमृतभैरव-सहित-श्रीभुवनेश्वरि हृदय-शक्ति शिरः-शक्ति शिखा-शक्ति कवच-शक्ति नेत्र-शक्त्यस्त्र-शक्ति हृल्लेखे गगने रक्ते करालिके महोच्छूष्मे सर्वानन्द-मयचक्र-स्वामिनि!
गायत्री-सहित-ब्रह्म-मयि सावित्री-सहित-विष्णु-मयि सरस्वती-सहित-रुद्र-मयि लक्ष्मी-सहित-कुबेर-मयि रति-सहित काम-मयि पुष्टि-सहित-विघ्न-राज-मयि शङ्ख-निधि-सहित-वसुधा-मयि पद्म-निधि-सहित-वसुमति-मयि गायत्र्यादि-सह-श्रीभुवनेश्वरि ह्रां हृदय-देवि ह्रीं शिरो-देवि ह्रूं शिखा-देवि ह्रैं कवच-देवि ह्रौं नेत्र-देवि ह्रः अस्त्र-देवि सर्व-सिद्धि-प्रद-चक्र-स्वामिनि!
अनङ्ग-कुसुमे अनङ्ग-कुसुमातुरे अनङ्ग-मदने अनङ्ग-मदनातुरे भुवन-पाले गगन-वेगे शशि-रेखे अनङ्ग-वेगे सर्व-रोग-हर-चक्र-स्वामिनि!
कराले विकराले उमे सरस्वति श्रीदुर्गे उषे लक्ष्मि श्रुति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कान्ति आर्ये सर्व-संक्षोभण-चक्र-स्वामिनि!
ब्राह्मि माहेश्वरि कौमारि वैष्णवि वाराहि इन्द्राणि चामुण्डे महा-लक्ष्म्य-नङ्ग-रूपेऽनङ्ग-कुसुमे मदनातुरे भुवन-वेगे भुवन-पालिके सर्व-शिशिरेऽनङ्ग मदनेऽनङ्ग-मेखले सर्वाशा-परिपूरक-चक्र-स्वामिनि!
इन्द्र-मय्यग्नि-मयि यम-मयि निर्ऋति-मयि वरुण-मयि वायु मयि सोम-मयीशान-मयि ब्रह्म-मय्यनन्त-मयि वज्र-मय्यग्नि-मयि दण्ड-मयि खड्ग-मयि पाश-मय्यंकुश-मयि गदा-मयि त्रिशूल-मयि पद्म-मयि चक्र-मयि वर-मय्यंकुश-मयि पाश मय्यभय-मयि बटुक-मयि योगिनी-मयि क्षेत्रपाल-मयि गण-पति-मय्यष्ट-वसु-मयि द्वादशादित्य-मय्येकादश- रुद्र-मयि सर्व-भूत-मय्यमृतेश्वर-सहित श्री भुवनेश्वरि त्रैलोक्य-मोहन-चक्र-स्वामिनि नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा श्रीं ह्रीं श्रीं ।।

ये एक दिव्य विधान है । अगर समय हो और पूर्ण भाव है तो ये अचूक फलदायी अनुष्ठान है । 

             

Recommended Articles

Leave A Comment