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🌷🌷ऊं ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷🌷
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ज्योतिर्विज्ञान एवं ज्योतिष शास्त्र
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(ग्रहण के समय क्यों नहीं खाना खाना चाहिए?)

 धर्म ग्रंथों के अनुसार जो किसी वस्तु के स्वरूप को ठीक ठीक समझा दे अर्थात जो सत्य का ज्ञान करा दे उसे शास्त्र कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र कर्मशास्त्र है, कर्तव्य शास्त्र है। हां यह अवश्य है कि इसके कर्म विश्लेषण में अतीत यानी कि पूर्व जन्म, वर्तमान अर्थात यह जन्म एवं भविष्य यानी कि भावी जन्म सभी सम्मिलित हैं।
 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सात ग्रहों का स्वरूप इस प्रकार है-

१- सूर्य-यह प्राण तत्व का अधिष्ठाता है यह हमारे जीवन में क्रियाशक्ति- प्राण शक्ति के रूप में परिलक्षित होता है।
२- चंद्रमा-यह मन का अधिष्ठाता है। यह चिंतन प्रक्रिया को प्रतिक्षण प्रभावित करता है।
३- मंगल-यह इच्छा, वासना, काम से संबंधित है।
४- बुध-बुध मन की विविध क्षमताओं से सूक्ष्म रूप से जुड़ा है।
५- बृहस्पति-यह आध्यात्मिक शक्ति, संवेदना, भावना- श्रद्धा को प्रभावित करता है।
६- शुक्र-यह अंतर्मुखी प्रकृतियों को जन्म देता है।
७- शनि-यह प्रकृति का अधिष्ठाता और पृथ्वी तत्व प्रधान ग्रह है।
८- राहु-राहु में शनि के सुक्ष्म प्रभाव अंतर्निहित है।
९- केतु-इसमें मंगल की सुक्ष्मताऐं समाहित हैं।

 पूर्णिमा के दिन जब चंद्रमा अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है तो वह मना स्थिति पर प्रभाव डालता है। लेकिन यह प्रभाव एक समान नहीं होता। कमजोर व असंतुलित मनः स्थिति के व्यक्तियों में इसकी प्रतिक्रिया अधिक दिखाई देती है, जबकि संतुलित दृढ मनः स्थित बालों में इसके प्रभाव उतने नहीं हो पाते।
 मनुष्य के शरीर और उसके विभिन्न भागों पर ग्रहों, राशियों के तारतम्य एवं प्रभाव का वर्णन इस प्रकार है-

१- मेष राशि-मेष राशि का अधिपति मंगल ग्रह शरीर के मस्तिष्क के क्रियाकलापों से संबंधित है।
२- वृष राशि-इसका अधिपति शुक्र है। इसका संबंध शरीर की ग्रीवा कंठ से है।
३- मिथुन राशि-मिथुन राशि का अधिपति बुध है। इसका संबंध छाती और पेट से है।
४- कर्क राशि-इस राशि का अधिपति चंद्रमा है। इसका संबंध शरीर के पृष्ठ भाग से है।
५- सिंह राशि-सिंह राशि का अधिपति सूर्य है। इसका संबंध शरीर के हृदय, मेरुदंड तथा कोहिनी से है।
६- कन्या राशि-कन्या राशि के अधिपति ग्रह बुध का संबंध हाथ, आंखों और विसर्जन तंत्र से है।
७- तुला राशि-तुला राशि के अधिपति शुक्र ग्रह का संबंध शरीर के पिछले भाग से तथा मूत्राशय तंत्र से है।
८- वृश्चिक राशि-इसका अधिपति ग्रह मंगल है इसका संबंध पेडू तथा जननांग से है।
९- धनु राशि-इस राशि का अधिपति बृहस्पति ग्रह है। इसका संबंध जांघ, नितंब और यकृत से है।
१०- मकर राशि-इस राशि का अधिपति ग्रह शनी है। इसका संबंध घुटनों तथा अस्थि संस्थान से है।
११- कुंभ राशि-इस राशि का अधिपति ग्रह शनि है। इसका संबंध पैर तथा टखनों से है।
१२- मीन राशि-इस राशि का अधिपति ग्रह बृहस्पति है। इसका संबंध पैर तथा नाड़ी संस्थान से है।

विज्ञान ने कैसे माना भारतीय अध्यात्म का लोहा?
16 फरवरी 1980 के पूर्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर वैज्ञानिकों ने पाया कि वायुमंडल में बैक्टीरिया,फंजाई एवं घातक जीवाणु प्रचुर मात्रा में पाए गए थे। सूर्य ग्रहण से पहले और उसके बाद विभिन्न जीवाणुओं का अध्ययन करने पर पाया गया कि सूर्य ग्रहण के समय ना केवल इनकी संख्या में वृद्धि हुई बल्कि इनकी मारक क्षमता भी पहले से अधिक थी। वैज्ञानिकों ने देखा कि सूर्य ग्रहण के अवसर पर पानी को खुला छोड़ देने पर उसमें विभिन्न प्रकार के विषाणु और जीवाणु आकर उसे विषाक्त कर देते हैं।
इस तथ्य से प्राचीन भारतीय ऋषि भली प्रकार सुपरिचित थे।तभी उन्होंने निर्देश दिया था कि सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय किसी भी प्रकार का अन्न अथवा आहार ग्रहण न किया जाए। उन्होंने उस दिन उपवास करने की परंपरा स्थापित की। तत्व वेत्ता ऋषि ग्रहण काल में पृथ्वी पर पड़ने वाले अंतर्ग्रहीय दुष्प्रभावों से परिचित थे।वे यह भी जानते थे कि ग्रहण के समय खानपान का शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के अवसर पर नदियों आदि में स्नान की परंपरा है। इस संबंध में वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रभावित जल में प्राण ऊर्जा की प्रचुरता होती है।
इस अवसर पर उपवास, स्नान, उपासना को कुछ लोग महत्वपूर्ण नहीं मानते, पर नवीन वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि सभी क्रियाएं वैज्ञानिक हैं जो शरीर सुरक्षा व उपचार के सशक्त एवं सक्षम माध्यम है।
इस महान विज्ञान के संबंध में यहां यह भी कहना है कि ज्योतिष शास्त्र में वर्णित ग्रह नक्षत्र किसी के सुख- दुख का कारण नहीं है यह तो बस इनकी सूचना देते हैं इस संबंध में भगवती पार्वती के प्रश्न पूछने पर स्वयं भगवान शिव ने उनके संशय का निवारण किया यह आख्यान महाभारत के अनुशासन पर्व में इस तरह दिया गया है-
भगवान शिव कहते हैं-हे देवी तुम्हारा संशय व प्रश्न उचित है। इस विषय में जो ज्योतिष का सिद्धांत है उसे सुनो। महाभागे! ग्रह और नक्षत्र मनुष्यों के शुभ और अशुभ की सूचना भर देते हैं, वे स्वयं कुछ नहीं करते। मनुष्यों के हित के लिए ज्योतिष चक्र द्वारा भूत और भविष्य के शुभ अशुभ कर्म फल का बोध कराया जाता है। उनके शुभ कर्मों की सूचना शुभ ग्रहों के द्वारा होती है, और बुरे कर्मों के फल की सूचना अशुभ ग्रहों के द्वारा। ग्रह नक्षत्र किसी को शुभ या अशुभ फल नहीं देते सारा अपना ही किया हुआ कर्म, शुभ व अशुभ फल का उत्पादक होता है। ग्रहों ने कुछ किया है- यह कथन तो लोगों का मिथ्याप्रवाद है। ऐसा निश्चित जानकर ज्योतिष के प्रकाश में सदैव शुभ कर्मों के लिए तत्पर रहना चाहिए।
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🌷🌷जय मां पीताम्बरा🌷🌷

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