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#सूर्य को जल चढ़ाने से संवर जाएंगे बिगड़े काम और भी हैं चमत्कारी लाभ#

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भक्तों को देते हैं प्रत्यक्ष दर्शन

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को देवों की श्रेणी में रखा गया है। उन्हें भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाला भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य का विशेष महत्व है। इसे सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। सूर्य की किरणें शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को दूर कर निरोग बनाने का कार्य करती हैं।

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क्या कहती हैं मान्यताएं

धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्य देव को आत्मा का कारक माना गया है। इसलिए प्रात:काल सूर्य देव के दर्शन से मन को बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही ये शरीर में स्फूर्ति भी लाता है।

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भाग्य दोष होते हैं दूर

प्रत्येक सुबह सूर्य को जल चढ़ाने से भाग्य अच्छा होता है। सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते है। हर कोई आपसे खुश रहता है और आपके लिए निष्ठावान रहता है।

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मिलता है सम्मान

ज्योतिशास्त्र के मुताबिक सूर्य ही वह ग्रह है जो व्यक्ति को सम्मान दिलाता है। नियमित रूप से सूर्य देव को जल चढ़ाने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। उसे लोगों से सहयोग मिलता है व उच्च पद पर विराजित होने का भी सम्मान मिलता है। ऐसे लोग समाज में प्रतिष्ठा हासिल करते हैं।

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कार्य-कौशल में होती है वृद्धि

जो लोग रोजाना सूर्य देव को जल अर्पण करते हैं, सूर्य देव हमेशा उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। सूर्य को जल चढ़ाने से मन एकाग्रचित्त होता है। जिससे सीखने की क्षमता बढ़ती है। ऐसे व्यक्ति जटिल से जटिल समस्या का समाधान भी चुटकियों में कर देते हैं।

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साइंस से जुड़े पहलू

सूर्य को जल चढ़ाने से होने वाले फायदे के वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार सुबह के समय सूर्य को चल चढ़ाने से शरीर को विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा मिलती है। जिससे शरीर स्वस्थ्य रहता है।

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हर अंग पर पड़ता है प्रभाव

इंसान का शरीर पंच तत्वों से बना होता है। इनमें एक तत्व अग्नि भी है। सूर्य को अग्नि का कारक माना गया है। इसलिए सुबह सूर्य को जल चढ़ाने से उसकी किरणें पूरे शरीर र पड़ती है। जिससे हार्ट, त्वचा, आंखे, लीवर और दिमाग जैसे सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं।

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बढ़ता है कॉन्फिडेंस

सूर्य को जल चढ़ाने से मन में अच्छे विचार आते है। जिससे प्रसन्नता का अनुभव होता है। इससे सोचने-समझने की शक्ि भी बढ़ती है। ये व्यक्ति की इच्छाशक्ति को मजबूत करने का भी काम करता है।

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नींद न आने की समस्या को करता है दूर

रोज सुबह जल्दी उठने और रात को जल्दी सोने की प्रक्रिया से शरीर का संतुलन बना रहता है। इससे थकान, नींद न आने व सिर में दर्द जैसी समस्याओं को दूर करता है। ये दिमाग को सक्रिय बनाता है।

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सूर्य को जल चढ़ाने का तरीका

भारतीय परंपरा के अनुसार सूर्य देव को प्रात:काल नहाने के बाद जल अर्पण करना चाहिए। जल चढ़ाने के लिए तांबे के कलश का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। साथ ही जल में लाल सिंदूर व लाल फूल डालकर भी अर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा हमेशा बनी रहती है।
सूर्य नमस्‍कार की विधि और मंत्र

सूर्य नमस्‍कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्‍येक बार सूर्य मंत्रो के उच्‍चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्‍न है-

  1. ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः

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सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्‍यायाम भी कहा जाता है, समस्त यौगिक क्रियाऒं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्यनमस्कार सदैव खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये।इससे मन शान्त और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।

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प्रथम स्थिति- स्थितप्रार्थनासन
सूर्य-नमस्कार की प्रथम स्थिति स्थितप्रार्थनासन की है।सावधान की मुद्रा में खडे हो जायें।अब दोनों हथेलियों को परस्पर जोडकर प्रणाम की मुद्रा में हृदय पर रख लें।दोनों हाथों की अँगुलियाँ परस्पर सटी हों और अँगूठा छाती से चिपका हुआ हो। इस स्थिति में आपकी केहुनियाँ सामने की ऒर बाहर निकल आएँगी।अब आँखें बन्द कर दोनों हथेलियों का पारस्परिक दबाव बढाएँ । श्वास-प्रक्रिया निर्बाध चलने दें।

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द्वितीय स्थिति – हस्तोत्तानासन या अर्द्धचन्द्रासन
प्रथम स्थिति में जुडी हुई हथेलियों को खोलते हुए ऊपर की ऒर तानें तथा साँस भरते हुए कमर को पीछे की ऒर मोडें।गर्दन तथा रीढ की हड्डियों पर पडने वाले तनाव को महसूस करें।अपनी क्षमता के अनुसार ही पीछे झुकें और यथासाध्य ही कुम्भक करते हुए झुके रहें ।

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तृतीय स्थिति – हस्तपादासन या पादहस्तासन
दूसरी स्थिति से सीधे होते हुए रेचक (निःश्वास) करें तथा उसी प्रवाह में सामने की ऒर झुकते चले जाएँ । दोनों हथेलियों को दोनों पँजों के पास जमीन पर जमा दें। घुटने सीधे रखें तथा मस्तक को घुटनों से चिपका दें यथाशक्ति बाह्य-कुम्भक करें। नव प्रशिक्षु धीरे-धीरे इस अभ्यास को करें और प्रारम्भ में केवल हथेलियों को जमीन से स्पर्श कराने की ही कोशिश करें।

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चतुर्थ स्थिति- एकपादप्रसारणासन
तीसरी स्थिति से भूमि पर दोनों हथेलियाँ जमाये हुए अपना दायाँ पाँव पीछे की ऒर फेंके।इसप्रयास में आपका बायाँ पाँव आपकी छाती केनीचे घुटनों से मुड जाएगा,जिसे अपनी छाती से दबाते हुए गर्दनपीछे की ऒर मोडकर ऊपर आसमान कीऒर देखें।दायाँ घुटना जमीन पर सटा हुआ तथा पँजा अँगुलियों पर खडा होगा। ध्यान रखें, हथेलियाँ जमीन से उठने न पायें।श्वास-प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहे।

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पंचम स्थिति- भूधरासन या दण्डासन
एकपादप्रसारणासन की दशा से अपने बाएँ पैर को भी पीछे ले जाएँ और दाएँ पैर के साथ मिला लें ।हाथों को कन्धोंतक सीधा रखें । इस स्थिति में आपका शरीर भूमि पर त्रिभुज बनाता है , जिसमें आपके हाथ लम्बवत् और शरीर कर्णवत् होते हैं।पूरा भार हथेलियों और पँजों पर होता है। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रहनी चाहिये अथवा केहुनियों को मोडकर पूरे शरीर को भूमि पर समानान्तर रखना चाहिये। यह दण्डासन है।

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षष्ठ स्थिति – साष्टाङ्ग प्रणिपात
पंचम अवस्था यानि भूधरासन से साँस छोडते हुए अपने शरीर को शनैःशनैः नीचे झुकायें। केहुनियाँ मुडकर बगलों में चिपक जानी चाहिये। दोनों पँजे, घुटने, छाती, हथेलियाँ तथा ठोढी जमीन पर एवं कमर तथा नितम्ब उपर उठा होना चाहिये । इस समय ‘ॐ पूष्णे नमः ‘ इस मन्त्र का जप करना चाहिये । कुछ योगी मस्तक को भी भूमि पर टिका देने को कहते हैं ।

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सप्तम स्थिति – सर्पासन या भुजङ्गासन

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छठी स्थिति में थॊडा सा परिवर्तन करते हुए नाभि से नीचे के भाग को भूमि पर लिटा कर तान दें। अब हाथों
को सीधा करते हुए नाभि से उपरी हिस्से को ऊपर उठाएँ। श्वास भरते हुए सामने देखें या गरदन पीछे मोडकर
ऊपर आसमान की ऒर देखने की चेष्टा करें । ध्यान रखें, आपके हाथ पूरी तरह सीधे हों या यदि केहुनी से मुडे
हों तो केहुनियाँ आपकी बगलों से चिपकी हों ।

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अष्टम स्थिति- पर्वतासन
सप्तम स्थिति से अपनी कमर और पीठ को ऊपर उठाएँ, दोनों पँजों और हथेलियों पर पूरा वजन डालकर नितम्बों को पर्वतशृङ्ग की भाँति ऊपर उठा दें तथा गरदन को नीचे झुकाते हुए अपनी नाभि को देखें ।

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नवम स्थिति – एकपादप्रसारणासन (चतुर्थ स्थिति)
आठवीं स्थिति से निकलते हुए अपना दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच दाहिनी हथेली के पास लाकर जमा दें। कमर को नीचे दबाते हुए गरदन पीछे की ऒर मोडकर आसमान की ऒर देखें ।बायाँ घुटना जमीन पर टिका होगा ।

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दशम स्थिति – हस्तपादासन
नवम स्थिति के बाद अपने बाएँ पैर को भी आगे दाहिने पैर के पास ले आएँ । हथेलियाँ जमीन पर टिकी रहने दें । साँस बाहर निकालकर अपने मस्तक को घुटनों से सटा दें । ध्यान रखें, घुटने मुडें नहीं, भले ही आपका मस्तक उन्हें स्पर्श न करता हो ।

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एकादश स्थिति – ( हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन )
दशम स्थिति से श्वास भरते हुए सीधे खडे हों। दोनों हाथों की खुली हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाते हुए पीछे की ऒर तान दें ।यथासम्भव कमर को भी पीछे की ऒर मोडें।

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द्वादश स्थिति -स्थित प्रार्थनासन ( प्रथम स्थिति )
ग्यारहवीं स्थिति से हाथों को आगे लाते हुए सीधे हो जाएँ । दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में वक्षःस्थल पर जोड लें । सभी उँगलियाँ परस्पर जुडी हुईं तथा अँगूठा छाती से सटा हुआ । कोहुनियों को बाहर की तरफ निकालते हुए दोनों हथेलियों पर पारस्परिक दबाव दें।

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सूर्य नमस्‍कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्‍येक बार सूर्य मंत्रो के उच्‍चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्‍न है

  1. ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ

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