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#Pythagorus_Theorem नही
#बोधायन_प्रमेय कहिए

एक प्रमेय (Theorem) होती है
जिसका हम नवमी-दसमी से लेकर बारह्वी कक्षा तक प्रयोग करते हैं,
जिसे हम पईथागोरस थेओरम कहते हैं|

पईथागोरस का जन्म हुआ ईसा से आठ शताब्दी पहले
और
ईसा के पंद्रहवी शताब्दी पहले के
भारत के गुरुकुलों के रिकार्ड्स बताते हैं
कि वो प्रमेय हमारे यहाँ था,
उसको हम “बोधायन प्रमेय” के रूप में पढ़ते थे|

बोधायन एक महिर्षि हुए
उनके नाम से
भारत में ये प्रमेय
ईशा के जन्म के पंद्रहवी शताब्दी पहले पढाई जाती थी

यानि आज से लगभग साढ़े तीन हज़ार साल पहले भारत में वो प्रमेय पढाई जाती थी,

बोधायन प्रमेय के नाम से
और वो प्रमेय है
– किसी आयत के विकर्ण द्वारा व्युत्पन्न क्षेत्रफल उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई द्वारा पृथक-पृथक व्युत्पन्न क्षेत्र फलों के योग के बराबर होता है।

तो ये प्रमेय महिर्षि बोधायन की देन है …
जिसे हम आज भी पढ़ते हैं
और
पईथागोरस ने बेईमानी करके उसे अपने नाम से प्रकाशित करवा लिया है

और सारी दुनिया आजतक भ्रम में है |

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शुल्ब सूत्र या शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं

जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं।

इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है।

संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है।

अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना,
उनके लिए स्थान का चुनना
तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है।

ये भारतीय ज्यामिति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं।

शुल्बसूत्र, स्रौत सूत्रों के भाग हैं ;
स्रौतसूत्र, वेदों के उपांग (appendices) हैं।

शुल्बसूत्र ही भारतीय गणित के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले प्राचीनतम स्रोत हैं।
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अपने एक सूत्र में बौधायन ने विकर्ण के वर्ग का नियम दिया है-

दीर्घचातुरास्रास्याक्ष्नाया रज्जुः पार्च्च्वमानी तिर्यङ्मानीच |
यत्पद्ययग्भूते कुरुतस्तदुभयं करोति ||

:– एक आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है …
जितने कि उसकी लम्बाई और चौड़ाई अलग-अलग बनाती हैं।
यही तो पाइथागोरस का प्रमेय है।

स्पष्ट है कि इस प्रमेय की जानकारी भारतीय गणितज्ञों को पाइथागोरस के पहले से थी।

दरअसल इस प्रमेय को बौधायन-पाइथागोरस प्रमेय कहा जाना चाहिए।

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