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  1. अन्तर त्राटक –
    छत पर जाएं सुबह 4-5 बजे , दरी बिछाकर बैठ जाएं आलथी पालथी में ।
    पहले कपालभाति करें 5 मिनट । फिर आँखें बन्द कर के शान्तिः से बैठो , साँसो को सामान्य होने दो । अन्धेरो में देखते रहो बस , कुछ भी नहीं सोचना है , कहीं भी ध्यान नहीं लगाना है, बस अन्धेरे में देखो । यह सबसे सरल है ।
    10-15 दिन में ही तुम्हारा ध्यान अन्धेरो से हटकर आज्ञा चक्र पर आ जाएगा स्वतः ही ।
    कोई जोर जबरदस्ती नहीं , आज्ञा चक्र पर अपने आप ध्यान चला जाएगा।
    बस फिर उसी क्रम में बढते रहो , उन्हीं अन्धेरो में एक बिन्दु रोशनी की नजर आने लगेगी ।
    यही अन्तर त्राटक है , जो कि एक अन्धा व्यक्ति भी कर सकता है विचारों पर नियंत्रण कर के ।
    अब कोई कहे कि किसी गुरु देवता वगैरह की फोटो को देखो पहले और फिर आँख बन्द करके उस चित्र का स्मरण करो ,
    अगर ध्यान उसी चित्र पर लाना है तो आँखे बन्द क्यों करते हो , खुली आँखो से ही ध्यान कर लो उस चित्र पर ।
    मुख्य क्या है विचारों को रोकना , अब चाहे बिन्दु त्राटक से रोको या चित्र पर ध्यान करके या दीपक पर ।
    इन सबसे एकाग्रता बनेगी , और फिर आखिर में आना है आज्ञा चक्र पर ही , तो फिर बेहतर है अन्तर त्राटक करो सीधे ही आज्ञा चक्र पर ध्यान जमने लगेगा ।
    त्राटक का अभ्यास समाप्त करने के उपरान्त साधना के कारण बढ़ी हुई मानसिक गर्मी के समाधान के लिए दूध, दही, लस्सी, मक्ख्न, मिश्री, फल, शर्बत, ठण्डाई आदि कोई ठण्डी पौष्टिक चीजें, ऋतु का ध्यान रखते हुए सेवन करनी चाहिए।
    2 . त्राटक ध्यान विधि :-
    अपने कमरे के दरवाजे बंद कर लें, और एक बड़ा दर्पण अपने सामने रख लें। कमरे में अंधेरा होना चाहिए। और फिर दर्पण के बगल में एक छोटी सी लौ–दीपक, मोमबत्ती या लैंप की–इस प्रकार रखें कि वह सीधे दर्पण में प्रतिबिंबित न हो। सिर्फ आपका चेहरा ही दर्पण में प्रतिबिंबित हो, न कि दीपक की लौ। फिर लगातार दर्पण में अपनी स्वयं की आंखों में देखें। पलक न झपकाएं। यह चालीस मिनट का प्रयोग है, और दो या तीन दिन में ही आप अपनी आंखों को बिना पलक झपकाए देखने में समर्थ हो जाएंगे। यदि आंसू आएं तो उन्हें आने दें, लेकिन दृढ़ रहें कि पलक न झपके और लगातार अपनी आंखों में देखते रहें। दृष्टि का कोण न बदलें।
    आंखों में देखते रहें, अपनी ही आंखों में। और दो या तीन दिन में ही आप एक बहुत ही विचित्र घटना से अवगत होंगे। आपका चेहरा नये रूप लेने लगेगा। आप घबरा भी सकते हैं। दर्पण में आपका चेहरा बदलने लगेगा। कभी- कभी बिलकुल ही भिन्न चेहरा वहां होगा, जिसे आपने कभी नहीं जाना है कि वह आपका है। पर असल में ये सभी चेहरे आपके हैं। अब अचेतन मन का विस्फोट होना प्रारंभ हो रहा है। ये चेहरे, ये मुखौटे आपके हैं। कभी-कभी कोई ऐसा चेहरा भी आ सकता है जो कि पिछले जन्म से संबंधित हो। एक सप्ताह लगातार चालीस मिनट तक देखते रहने के बाद आपका चेहरा एक प्रवाह, एक फिल्म की भांति हो जाएगा। बहुत से चेहरे जल्दी- जल्दी आते-जाते रहेंगे। तीन सप्ताह के बाद, आपको स्मरण भी नहीं रह पाएगा कि आपका चेहरा कौन सा है। आप अपना ही चेहरा स्मरण नहीं रख पाएंगे, क्योंकि आपने इतने चेहरों को आते-जाते देखा है। यदि आपने इसे जारी रखा, तो तीन सप्ताह के बाद, किसी भी दिन, सबसे विचित्र घटना घटेगी: अचानक दर्पण में कोई भी चेहरा नहीं है। दर्पण खाली है, आप शून्य में झांक रहे हैं। वहां कोई भी चेहरा नहीं है। बस …
    यही क्षण है: अपनी आंखें बंद कर लें, और अचेतन का सामना करें। जब दर्पण में कोई चेहरा न हो, बस आंखें बंद कर लें–यही सबसे महत्वपूर्ण क्षण है–आंखें बंद कर लें, भीतर देखें, और आप अचेतन का साक्षात करेंगे। आप नग्न होंगे–बिलकुल नग्न, जैसे आप हैं। सारे धोखे तिरोहित हो जाएंगे।
    यही सच्चाई है, पर समाज ने बहुत सी पर्तें निर्मित कर दी हैं ताकि आप उससे अवगत न हो पाएं। एक बार आप अपने को अपनी नग्नता में, अपनी संपूर्ण नग्नता में जान लेते हैं, तो आप दूसरे ही व्यक्ति होने शुरू हो जाते हैं। तब आप अपने को धोखा नहीं दे सकते। तब आप जानते हैं कि आप क्या हैं। और जब तक आप यह नहीं जानते कि आप क्या हैं, आप कभी रूपांतरित नहीं हो सकते, क्योंकि कोई भी रूपांतरण केवल इसी नग्न वास्तविकता में ही संभव है; यह नग्न वास्तविकता किसी भी रूपांतरण के लिए बीज-रूप है। कोई प्रवंचना रूपांतरित नहीं हो सकती। आपका मूल चेहरा अब आपके सामने है और आप इसे रूपांतरित कर सकते हैं। और असल में, ऐसे क्षण में रूपांतरण की इच्छा मात्र से रूपांतरण घटित हो जाएगा।

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