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सप्तमेश का अन्य भावों में फल
1 पहला घर -: इन जातकों में अद्भुत तार्किक क्षमता होती है एवं यह बुद्धिमान होते हैं। इनका जीवनसाथी इन्‍हीं का कोई पुराना परिचित होता है। सप्‍तमेश के पीडित होने की दशा में जातक कामातुर और घुमक्‍कड़ होता है।

2 दूसरा घर -: जातक को दहेज के रूप में अपने ससुराल से बहुत लाभ एवं धन की प्राप्ति होती है। सप्‍तमेश के पीडित होने की स्थिति में जातक देह व्‍यापार में फंस जाता है। ऐसे समय में वह अपनी पत्‍नी को भी इस व्‍यापार से दूर नहीं रख पाता। यदि द्वितीय चिह्न अस्‍थायी है तो जातक की दो शादी होने की संभावना है। नुक्सानदेह ग्रहदशा के चलते सप्‍तमेश के काल में जातक की मृत्‍यु संभव है। जातक इस समय अशांत महसूस करेगा।

3 तीसरा घर -: सप्‍तमेश की अशुभ स्थिति होने पर जातक बुरे कामों में लिप्‍त रहता है। इनके भाई-बहन भाग्‍यशाली होते हैं एवं विदेश में निवास करते हैं। इन्‍हें अपनी लाइफ में मौजूद किसी स्‍त्री के कारण हानि हो सकती है।

4 चौथा घर -: जातक पारिवारिक सुख का भरपूर आनंद लेता है एवं उसके बच्‍चे अच्‍छी शिक्षा प्राप्‍त करते हैं। सप्‍तमेश के पीडित होने की स्थिति में साथी का चरित्र संदिग्ध हो सकता है एवं आपका वैवाहिक जीवन पर संकट आ सकता है। इन्‍हें अपने वाहन के कारण भी नुकसान संभव है।

5 पांचवा घर -: जातक की काफी कम उम्र में किसी अच्‍छे परिवार की लड़की से विवाह संभव है। सप्‍तमेश के पीडित होने की दशा में जातक निसंतान रह सकता है।

6 छठा घर -: जातक की दो बार शादी हो सकती है जिसमें से एक उन्‍हीं का कोई संबंधी हो सकता है। शुक्र के साथ सप्‍तमेश के पीडित होने पर जातक नपुंसक हो सकता है। इनकी पत्‍नी ईर्षालु और क्रूर हो सकती है एवं उनकी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं भी कुछ कम नहीं होंगीं। शुक्र के अनुकूल और स्‍वामी के प्रतिकूल स्‍थान पर होने की दशा में जातक बवासीर से ग्रस्‍त हो सकता है।

7 सातवां घर -: स्‍वामी के उचित स्‍थान पर होने की स्थिति में जातक सुंदर एवं आकर्षक होता है। इनका जीवनसाथी किसी प्रतिष्‍ठित परिवार से होता है। सप्‍तमेश के पीडित होने की स्थिति में जातक हमेशा अकेला रहता है।

8 अष्‍टम् घर -: यह जातक अपने वैवाहिक जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं। अगर सप्तमेश शुभ स्थिति में है तो जातक का विवाह अपने ही किसी रिश्‍तेदार से हो सकता है। सप्तमेश के पीडित होने पर जातक को एक अच्‍छे जीवनसाथी की प्राप्‍ति नहीं हो पाती है।

9 नवम् घर -: सप्‍तमेश के उचित स्‍थान पर होने की स्‍थिति में जातक विदेश में रहता है और वहीं धन कमाता है। इनकी पत्‍नी का स्‍वभाव सभ्‍य और सरल होता है। सप्‍तमेश के पीडित होने पर जातक का अपनी पत्‍नी या जीवनसाथी की मृत्‍यु हो जाने पर अपने धर्म से विश्‍वास उठ सकता है। वह अपनी पूरी संपत्ति भी खो सकता है।

10 दसवां घर -: जातक अत्‍यधिक यात्रा करता है और विदेश से लाभ प्राप्‍त करता है। इनकी पत्‍नी इन्‍हें अत्‍यंत प्रेम करती हैं और इनका जीवन के हर पहलू में साथ निभाती हैं। सप्‍तमेश के पीडित होने पर जातक की पत्‍नी स्‍वार्थी और लालची होती है।

11 ग्‍यारहवां घर -: इन जातकों का एक से अधिक प्रेम प्रसंग या विवाह होता है। दशा की गृह स्वामी की स्थिति में जातक की पत्‍नी किसी समृद्ध परिवार से होती है।

12 बारहवां घर -: यह जातक पहली पत्‍नी के होते हुए गुपचुप तरीके से दूसरी शादी करते हैं। सप्‍तमेश के पीडित होने पर जातक अपनी पहली पत्‍नी से अलगाव या उसकी मृत्‍यु हो जाने के बाद दूसरा विवाह करता है। सप्‍तमेश के अत्‍यधिक पीडित होने की स्थिति में जातक और उनकी पत्‍नी की मृत्‍यु हो जाती है अथवा अलगाव हो जाता है। सप्‍तमेश और कारक की कमजोर स्थिति में जातक की कभी शादी नहीं होती और वह हमेशा गरीब र‍हता है।
[ज्योतिष ज्ञान
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शुक्रग्रह परिचय भावानुसार फल एवं शांत्यर्थ उपाय
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शुक्र प्रेम वासना, आकर्षण शक्ति सुंदरता आदि का कारक ग्रह है,यह शुभ ग्रह है।शुक्र जातक की जीवनी शक्ति का कारक है।इसके बली और शुभ होने से जातक प्रसन्न रहने वाला और प्रेम भावना से पूर्ण होता है।शुक्र पुरुष की कुंडली में पत्नी, प्रेमिका, दाम्पत्य जीवन, वीर्य, पुरुषार्थ, कामवासना का कारक है।इसके आलावा यह खूबसूरत वस्तुओ, अच्छे कपडे, भोगविलास,सांसारिक उपयोगो का प्रमुख कारक है।यह व्यवसाय में होटल व्यवसाय, कॉस्मेटिक, सुंदरता से सम्बन्धीय व्यवसाय का कारक है।जिन जातको का शुक्र बली होकर लग्न, पंचम भाव, पंचमेश से सम्बन्ध रखता है ऐसे जातको की ओर विपरीत लिंग के व्यक्ति बहुत जल्द आकर्षित हो जाते है।5वे भाव , भावेश से किसी पुरुष जातक की कुंडली में बलीशुक्र का सम्बन्ध होने से जातक विपरीत लिंगी के प्रेम के लिए उतावला रहता है ऐसे जातक के प्रेम प्रसंग होते भी है।पाचवे भाव, भावेश ,शुक्र पर यदि पाप ग्रहो शनि राहु में से किन्ही दो या तीनो ग्रहो का प्रभाव होने से प्रेम प्रसंग में दुःख मिलता है शनि राहु केतू ग्रह प्रेमी या प्रेमिका से जातक या जातिका को लड़ाई झगड़ा कराकर या उनके बीच गलत फेमिया कराकर या किसी अन्य तरह से अलग कर देते है।यदि ऐसी स्थिति में बली गुरु का प्रभाव् शुक्र और पंचमेश पंचम भाव पर होता है तब अलगाव नही होता।इसी तरह की स्थिति यदि सप्तम भाव भावेश, और शुक्र से बनती है तब पत्नी से अलगाव होता है।स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव, भावेश और गुरु पर शनि राहु केतु का प्रभाव, सप्तम भाव सप्तमेश पर गुरु की खुद की और अन्य शुभ ग्रहो बली शुक्र पूर्ण बली चंद्र और शुभ बुध का प्रभाव न होने से पति से अलगाव होता है। शुक्र प्रधान जातको के बाल अधिकतर घुंघराले होते है।शुक्र जातक को रोमांटिक ज्यादा बनाता है।शुक्र केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर कुंडली के केंद्र १-४-७-१० या ५-९ त्रिकोण भाव में होने पर व ६ या १२ वे भाव में बैठने पर बली शुक्र जातक को पूर्ण तरह से अपने फल देता है।यदि पीड़ित होगा तब फल में कमी और अशुभ फल भी करेगा।जिन जातको को शुक्र के अशुभ फल मिल रहे है या शुक्र के शुभ फलो में कमी आ रही है वह जातक शुक्र के मन्त्र “ॐ शुं शुक्राय नमः” का जप करे, शुक्र यदि कुंडली में योगकारक है किसी शुभ भाव का स्वामी है तब शुक्र का रत्न ओपल पहनना शुभ रहेगा।मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न के जातको को बिना कुंडली दिखाए शुक्र का रत्न नही पहनना चाहिए क्योंकि इन लग्न की कुंडलियो में शुक्र की स्थिति मारक, और नैसर्गिक रूप से योगकारक या बहुत अनुकूल नही होती जिस कारण शुक्र का रत्न बिना कुंडली दिखाए नही पहनना चाहिए।एक बात ओर भी कभी भी नीच राशि के ग्रह का रत्न नही पहनना चाहिए।इसके आलावा शुक्र के लिये लक्ष्मी पूजन, खुशबूदार वस्तुओ का उपयोग करे, अच्छे और साफ कपडे पहने, शुक्र यंत्र को सफ़ेद चन्दन से भोजपत्र पर बनाकर शुक्रवार के दिन अभिमंत्रित करके सफ़ेद धागे में बांधकर अपने गले या हाथ की बाजु पर बंधना चाहिए। गाय की सेवा करने से शुक्र के शुभ फल में वृद्धि होती है

शुक्र👉 जन्मकालीन राशि से १,२,३,४,५,८,९,११ और १२ वें भाव में सामान्यतः शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

कुंडली के १२ भावों में शुक्र ग्रह का प्रभाव
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जिन जातको के लग्न स्थान में शुक्र👉 उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी, विद्वान, कामी तथा राज कार्य में दक्ष होता है।

दूसरे स्थान पर शुक्र👉 जातक प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो जातिका सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है। जातक मिष्ठान्नभोगी, लोकप्रिय, जौहरी, कवि, दीर्घजीवी, साहसी व भाग्यवान होता है।

तीसरे भाव में शुक्र👉 ऐसा जातक स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति कृपण, आलसी, चित्रकार, विद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है।

चतुर्थ भाव में शुक्र👉 जातक उच्च पद प्राप्त करता है। इस व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, परोपकारी, आस्तिक, व्यवहारकुशल व दक्ष होता है।

पांचवें भाव में शुक्र👉 शत्रुनाशक होता है। जातक के अल्प परिश्रम से कार्य सफल होते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदय, सुखी, भोगी, न्यायप्रिय, उदार व व्यवसायी होता है।

छठे भाव मे शुक्र👉 जातक के नित नए शत्रु पैदा करता है। मित्रों द्वारा इसका आचरण नष्ट होता है और गलत कार्यों में धन व्यय कर लेता है। ऐसा व्यक्ति स्त्री सुखहीन, दुराचार, बहुमूत्र रोगी, दुखी, गुप्त रोगी तथा मितव्ययी होता है।

सातवें स्थान का शुक्र👉 खूबसूरत जीवन साथी का संकेत देता है। इस स्थान में शुक्र व्यक्ति को काम भावनाओं की ओर प्रवृत्त करता है। व्यक्ति कलाकार भी हो सकता है।

आठवें स्थान में शुक्र👉 जातक वाहनादि का पूर्ण सुख प्राप्त करता है। वह दीर्घजीवी व कटुभाषी होता है। इसके ऊपर कर्जा चढ़ा रहता है। ऐसा जातक रोगी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, दुखी, पर्यटनशील और पराई स्त्री पर धन व्यय करने वाला होता है।

नवम स्थान पर शुक्र👉 जातक अत्यंत धनवान होता है। धर्मादि कार्यों में इसकी रुचि बहुत होती है। सगे भाइयों का सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति आस्तिक, गुणी, प्रेमी, राजप्रेमी तथा मौजी स्वभाव का होता है।

दशम भाव में शुक्र👉 वह व्यक्ति लोभी व कृपण स्वभाव का होता है। इसे संतान सुख का अभाव-सा रहता है। ऐसा व्यक्ति विलासी, धनवान, विजयी, हस्त कार्यों में रुचि लेने वाला एवं शक्की स्वभाव का होता है।

ग्यारहवें स्थान पर शुक्र👉 जातक प्रत्येक कार्य में लाभ प्राप्त करता है। सुंदर, सुशील, कीर्तिमान, सत्यप्रेमी, गुणवान, भाग्यवान, धनवान, वाहन सुखी, ऐश्वर्यवान, लोकप्रिय, कामी, जौहरी तथा पुत्र सुख भोगता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन में कीर्तिमान स्थापित करता है।

बारहवें भाव में शुक्र👉 तब जातक को द्रव्यादि की कमी नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति स्‍थूल, परस्त्रीरत, आलसी, गुणज्ञ, प्रेमी, मितव्ययी तथा शत्रुनाशक होता है।

अरिष्ट शुक्र की शांति के उपाय एवं टोटके
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शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है। इस ग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए।

अथवा रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है।

शुक्र से सम्बन्धित रत्न का दान भी लाभप्रद होता है।

इन वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्या काल में किसी युवती को देना उत्तम रहता है।

शुक्र ग्रह से सम्बन्धित क्षेत्र में आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए आप शुक्रवार के दिन व्रत रखें।

मिठाईयां एवं खीर कौओं और गरीबों को दें।

ब्राह्मणों एवं गरीबों को घी भात खिलाएं।

अपने भोजन में से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं।

शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध, घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें।

काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।

शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।

किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।

किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।

अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।

किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।

शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।

शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
[अमावस्या जन्म – विश्लेषण और उपाय
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अमावस्या अथवा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को हुआ जन्म , अशुभ जन्म समझा जाता हैं । अमावस्या पर हुआ जन्म , कुण्डली में उपस्थित अनेकों शुभयोगों (जैसे राजयोग , धनयोग आदि) का नाश करनेवाला होता हैं । शास्त्रज्ञों ने अमावस्या पर हुए जन्म के अनेकानेक दुष्परिणाम गिनाये हैं ।
जब तुलाराशी के नक्षत्र/नवांशों में सूर्य-चन्द्र की युति हों तब तो यह दोष और भी अधिक विषाक्त और अशुभ फलप्रद हों जाता हैं । ऐसी स्थिति अधिकांशतः दीपावली को बनती हैं ।

महर्षि पाराशर अपनी “बृहत् पाराशर होराशास्त्रम्” के 88वें अध्याय के प्रथम 4 श्लोकों में जिन 17 अशुभ जन्मों का उल्लेख किया हैं उनमें “दर्श जन्म” (अमावस्या का जन्म) प्रमुख और सर्वप्रथम हैं । आज अमावस्या जन्म के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करेंगे :-

1👉 अमावस्या जन्म किसे कहेंगे ?
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जब सूर्य और चन्द्र एक नक्षत्र में हों तब अमावस्या जन्म समझा जाता हैं । जब सूर्य और जन्द्र , एक नक्षत्र के साथ साथ एक ही नवांश में भी हों उस समय अमावस्या जन्म के अधिकाँश दुष्परिणाम देखने में आते हैं और जब एक नक्षत्र , एक नवांश और एक ही षष्ठ्यांश में हों तब तो अशुभ फल पूर्ण रूप से अपना रंग दिखाता हैं ।

जब-जब ऐसे जातकों के (जिनका जन्म अमावस्या को हुआ हैं) जन्म-नक्षत्रों पर ग्रहण आया करता हैं तब तब ग्रहण से लगाकर छः महीने उनके लिए भयंकर कष्ट देनेवाले होते हैं । यदि जन्मनक्षत्र के साथ ही साथ जन्मकालिक नवांश भी ग्रहण की चपेट में हुआ (जब सूर्य और चन्द्र एक ही नवांश में हों तो) तब तो जातक को मृत्यतुल्य कष्ट प्राप्त होता हैं ।

2👉 अमावस्या पर हुआ जन्म अशुभ क्यों हैं ?
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ज्योतिष-शास्त्रों में सबसे प्रमुख सूर्य और चन्द्र को माना गया हैं । सूर्य को जहां जातक की आत्मा वहीँ चन्द्र को जातक का मन/मस्तिष्क माना जाता हैं । सूर्य और चन्द्र को सदैव शुभ माना जाता हैं , यहाँ तक की अष्टमेश के दोष से भी यह दोनों मुक्त हैं ।
अमावस्या को चन्द्र पूर्ण-अस्त समझा जाता हैं । चन्द्र के पूर्णतः अस्त होने से चन्द्र का शुभत्व जातक के लिए गौण हों जाता हैं वहीँ चन्द्र के साथ होने से सूर्य के शुभ फलों का भी महत्त्वपूर्ण ह्रास होता हैं ।
मोटे तौर पर कुछ यों समझ लें की सूर्य और चन्द्र के शुभफल जातक को नगण्य अनुपात में प्राप्त होते हैं । चूँकि सारे शुभ-राज-धन योगों की पूर्णता में सूर्य और चन्द्र के शुभत्व का योगदान रहता हैं अतएव बड़े-बड़े योग कुंडली मं् उपस्थित होने पर भी उनका प्रभाव निष्फल हों जाता हैं ।

3👉 उपाय
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जिस नक्षत्र में सूर्य और चन्द्र हैं , उस नक्षत्र के मन्त्रों से (उसी नक्षत्र के आनेपर) हवनात्मक अनुष्ठान करवाना चाहिए (जन्म के दो वर्षों के भीतर) । सदैव (जीवनभर) ऐसे नक्षत्र के प्राप्त होनेपर व्रत करना चाहिए और नक्षत्र के अनुरूप सामग्री का दान देना चाहिए । नक्षत्र की शान्ति और रवि-चन्द्र योग के अशुभ्त्व के नाश के लिए अपने इष्ट के अनुष्ठान जीवनभर करना चाहिए ।

कोई भी अशुभत्व ऐसा नहीं जो प्रभुकृपा से शांत न हों सके । अतएव सदैव प्रभु का ध्यान एवम् भगवद्भक्ति श्रेयस्कर हैं ।
[: ज्योतिष चर्चा
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वृश्चिक लग्न गुण एवं विशेषताएं
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शारीरिक गठन👉 वृश्चिक लग्न राशि का स्वामी मंगल है। कुंडली में यदि मंगल शुभ अवस्था या अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक देखने में सुंदर आकृति, गेहुआ रंग, पृष्ठ एवं सुगठित शरीर तथा आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होगा। आंखें चमकीली बड़ी एवं कुछ लालिमा लिए हुए तथा कद सामान्य एवं लंबा और जांघे व पिंडलियां गोल होती है। वृश्चिक जातक का चेहरा कुछ बड़ा एवं तेजस्वी हाथ प्रायः सामान्य से अधिक लंबे होंगे। जातक चलने में तेज गति एवं सतर्क होगा।

चारित्रिक विशेषताएं एवं स्वभाव👉 वृश्चिक लग्न में उत्पन्न जातक पराक्रमी, कुशाग्र बुद्धि, साहसी, परिश्रमी, स्पष्ट वक्ता, उदार हृदय, उद्यमी एवं पुरुषार्थी होता है। ऐसा जातक सत्यप्रिय, ईमानदार, परंतु अपने उद्देश्य के प्रति सतर्क, संवेदनशील व आक्रमक प्रवृत्ति तथा अपने उद्यम एवं सामर्थ्य के बल पर ही जीवन में लाभ व उन्नति प्राप्त करने वाला होता है। जातक कर्तव्यनिष्ठ माता पिता भाई बंधुओं एवं अपने परिवार में विशेष प्रेम करने वाला होता है। वृश्चिक लग्न व राशि का स्वामी मंगल अग्नि राशि एवं स्त्री संज्ञक होने से जातक स्वाभिमानी, उच्च अभिलाषी, धैर्यवान, स्वेच्छाचारी, उच्च प्रतिष्ठित एवं निश्चयी प्रकृति का होता है। यदि कुंडली में मंगल गुरु एवं सूर्य शुभस्थ हो तो जातक की संकल्प शक्ति एवं आत्मिक शक्ति विशेष प्रबल होती है। जातक श्रेष्ठ एवं चतुर बुद्धि, न्यायप्रिय, आत्मविश्वासी, मन में जिस किसी कार्य विशेष का संकल्प कर ले उसे पूरा किए बिना चैन से नहीं बैठता। ऐसा जातक धर्म परायण, परोपकारी, दयालु, स्वतंत्र चिंतन, करने वाला परंतु कई बार अपने क्रोध या स्वाभिमान के कारण एवं हट पर अडिग रहने से हानि उठाने वाला होता है। विलक्षण प्रतिभा के कारण सरलता से किसी अन्य व्यक्ति के प्रभाव व वश में नहीं आता। अपनी रुचियों एवं अरुचियों के संबंध में भी शीघ्रता से समझौता नहीं करता। यद्यपि वृश्चिक जातक जल तत्व की राशि होने से कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी स्वयं को ढाल लेने में सक्षम होते हैं। सूक्ष्म बुद्धि होने से वृश्चिक जातक रहस्यात्मक एवं गूढ़ विद्याओं जैसे धर्म, अध्यात्म, ज्योतिष, साहित्य, पौराणिक एवं काम शास्त्र में भी विशेष रुचि रखते हैं। जातक विलास प्रिय कामुक प्रवृत्ति एवं विपरीत योनि के प्रति भी विशेष आकर्षण रखते हैं।
वृश्चिक जातक प्रायः सभी कार्य बड़े आत्मविश्वास के साथ करते हैं। उनका उत्साह एवं परिश्रम लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बनते हैं। यह सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने के लिए सदा तैयार बने रहते हैं तथा उन पर विजय भी प्राप्त कर लेते हैं। कुंडली में मंगल सूर्य आदि ग्रहों के प्रभावस्वरूप वृश्चिक जातक में आत्मविश्वास, आवेश से काम करने की प्रवृत्ति, साहस, संकल्प, उत्तेजना, स्वच्छंद प्रकृति जैसे गुण प्रदान करते हैं। ऐसे जातक जिसे पसंद करते हैं पुरे हृदय से करते हैं तथा जीसे घृणा करते हैं वो भी मन से ही करते हैं वह अतिवादी होते हैं। बहुत शीघ्र आवेश में आ जाते हैं। जीवन के संग्राम में अपनी लड़ाई स्वयं लड़ना पसंद करते हैं। दूसरों का अनावश्यक हस्तक्षेप कदापि पसंद नहीं करते।
वृश्चिक जातकों में बिच्छू की भांति डंक मारने की प्रवृति होती है। ब्राह्मण राशि होने के कारण किसी को अनावश्यक रुप से तंग नहीं करते हैं। परंतु यदि कोई चोट या आघात पहुंचा है या विश्वासघात करें तो उसे आसानी से नहीं भूलते तथा पूरा प्रतिशोध लेने का प्रयास करते हैं। परंतु शत्रु द्वारा हृदय से खेद प्रकट कर देने से क्षमाशील भी हो जाते हैं। वृश्चिक जातक विघ्न-बाधाओं में भी विचलित नहीं होते बल्कि विघ्न-बाधाएं आ जाने पर अंतिम समय तक संघर्ष करते रहते हैं।

यदि कुंडली में चंद्र-गुरु या चंद्र-मंगल-गुरु का शुभ योग हो तो जातक की बौद्धिक एवं अंतः संवेदनशक्ति तथा अन्वेषण शक्ति अच्छी होती है। उनमें धर्म, यंत्र, ज्योतिष, मंत्र आदि शास्त्रों के प्रति विशेष रुचि होती है। तर्क वितर्क करने एवं किसी भी समस्या की जड़ तक पहुंचने की क्षमता होती है। यह प्रत्येक कार्य को पूरी निष्ठा जिम्मेदारी और कर्तव्य की भावना से करते हैं। सूर्य गुरु का दृष्टि आदि संबंध हो तो जातक विद्वान अनेक भाषाओं का ज्ञाता तथा प्राध्यापक आदि के क्षेत्र में सफल होता है।

यदि कुंडली में मंगल गुरु शनि आदि ग्रह उच्च स्थान में हो और लग्न पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो जातक स्व उपार्जित धन एवं भूमि आवास वाहन आदि सुख साधनों से संपन्न तथा सुंदर सुशील स्त्री संतान आदि सुखों से युक्त होगा। वृश्चिक जातक को भय या रौब दिखाकर कोई काम करवा लेना अत्यंत कठिन होता है। परंतु प्यार के वशीभूत होकर उनसे कठिन काम भी करवाया जा सकता है। अपने दोस्त के प्रति पूरे इमानदार एवं निष्ठावान रहते हैं। दोस्ती में अपना निजी स्वार्थ भी न्योछावर करने को तैयार हो जाते हैं। वृश्चिक जातक या तो अती प्यार करते हैं या अति घृणा करते हैं। मध्यमार्गी कम देखे जाते हैं। वृश्चिक जातक अपने कार्य क्षेत्र में वैसे जीवनपर्यंत कर्मठ एवं सक्रिय बने रहते हैं। परंतु जीवन की प्रारंभिक अवस्था में कठिन परिश्रम एवं संघर्ष अधिक रहता है।

यदि वृश्चिक लग्न में शनि राहु आदि अशुभ ग्रहों का योग या दृष्टि हो तो जातक असंयमी, झगड़ालू, कुविचारी, क्रोधी, गुप्त रूप से दुष्कर्म करने वाला एवं कामुक एवं व्यसनी स्वभाव का होता है। ऐसे जातक को गंभीर एवं क्लिष्ट रोगों का भी भय रहता है।
[वृश्चिक लग्न की कन्या (जातिकाये)
वृश्चिक लग्न की कन्या सुंदर एवं लंबे मुखाकृति वाली पुष्ट एवं संतुलित शरीर लंबे हाथ, बड़ी व चमकीली आंखें आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली होंगी चलने में तेज, चुस्त एवं शीघ्रता लिए होगी।

नारी भवेद वृश्चिक लग्न जाता सुरूप गात्रा नयनाभिराम।
सुपुण्यशीला च पतिव्रता च गुणाधिकासत्यपरा सैदेव।।

अर्थात वृश्चिक लग्न में उत्पन्न कन्या श्रेष्ठ रूप वाली, सुंदर एवं आकर्षक नेत्रो वाली, सत्यपरायणा, शुभ कर्म करने वाली, अत्यधिक गुणों से संबंधित एवं अपने पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली होती है

इस लग्न का स्वामी मंगल होने से वृश्चिक जातिका परिश्रमी, साहसी, कुशाग्र बुद्धि, उद्यमी, स्पष्टवादी, कर्तव्यपरायण, ईमानदार, उदार हृदय, परोपकारी, आत्मविश्वासी एवं परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेने में कुशल होती है। यदि जन्म कुंडली में भाग्येश चंद्र व पंचमेश गुरु और सूर्य भी शुभस्थ हो तो जातिका उच्च शिक्षित, स्वाभिमानी, दृढ़ निश्चय, अर्थात मन में जो एक बार संकल्प कर लेती है उसे हर स्थिति में पूरा करने का प्रयास करती है। जातिका माता पिता के लिए भाग्यवान, मिलनसार, परोपकारी, अधिकार पूर्ण वाणी का प्रयोग करने वाली, आतिथ्य सत्कार करने में कुशल, व्यवहार कुशल तथा अपने उद्यम पर भरोसा करने वाली होगी, अपनी प्रतिष्ठा का विशेष ध्यान रखेगी, स्वाभिमानी होते हुए भी अनुकूल आचरण करने वाली, चरित्रवान, नैतिक मूल्यों का पालन करने वाली, उच्च संस्कारों से युक्त, कुछ हठी प्रकृति तथा विशेष गुणों से युक्त होगी। अपने गुणों के कारण परिवार एवं समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाली होगी। चंद्र शुक्र के प्रभाव से जातिका भ्रमण प्रिया होगी। परंतु इसमें अवगुण भी संभव है। अशुभ मंगल व शनि के प्रभाव स्वरूप जातिका शीघ्र उत्तेजित हो जाने वाली, क्रोधी, जिद्दी, स्वार्थी एवं कुछ आक्रमक एवं मूडी प्रकृति की होगी। अपने विरुद्ध किसी भी प्रकार की आलोचना एवं नुक्ताचीनी सहन ना करने वाली तथा स्वार्थी प्रवृत्ति की होगी। इसके अतिरिक्त अशुभ ग्रहों के प्रभाव से चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या ,शंका दोष देखना आदि अवगुण भी आ सकते हैं।

शिक्षा एवं कैरियर👉 वृश्चिक जातिका कुशाग्र बुद्धि परिश्रमी एवं क्रियात्मक प्रवृत्ति की होने से अपनी शिक्षा एवं कैरियर के प्रति विशेष गंभीर एवं सतर्क होगी। कुंडली में सूर्य चंद्र गुरु आदि ग्रह शुभस्थ (केंद्र त्रिकोण) में हो तो जातिका चिकित्सा क्षेत्र, विज्ञान, अध्यापन, वकालत, कानून, सरकारी विभाग, एकाउंट्स, इंजीनियरिंग, रसायन, ड्रेस डिजाइनिंग, ब्यूटी पार्लर, पुलिस, कंप्यूटर डिजाइनिंग, घरेलू साज सज्जा, ऑफिस क्लर्क एवं कंपनी प्रबंधक, टूरिज्म आदि कार्य जिसमें शारीरिक श्रम के साथ बौद्धिक योग्यता का भी उपयोग हो आदि में सफल हो सकती हैं।

आर्थिक स्थिति👉 वृश्चिक लग्न की जातिकऔए भी जातको की ही भांति अत्यंत पराक्रमी और परिश्रमी, बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी तथा अपने लक्ष्य के प्रति सतर्क रहने के कारण व्यवसाय के किसी भी क्षेत्र में जहां परिश्रम उत्साह एवं जोखिम के कार्य हो वहां लाभ व उन्नति प्राप्त कर लेते हैं।

स्वास्थ्य एवं रोग👉 वृश्चिक जातिका का स्वास्थ्य बाहरी तौर पर प्राय अच्छा ही रहता है। छोटी मोटी बीमारी को यह स्वीकार ही नहीं करती। परंतु कुंडली में मंगल, चंद्र, गुरु, शनि आदि ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो तो जातिका को रक्त विकार जननेंद्रिय संबंधी गुप्त एवं यौन रोग, अनियमित मासिक धर्म, फोड़े-फुंसी, पथरी, नजला जुकाम, उदर विकार, सिर पीड़ा, नेत्र आदि रोगों की संभावना होती है।

सावधानी👉 वृश्चिक जातिका को अत्याधिक प्रतिक्रियावादी नहीं होना चाहिए. क्रोध और उतावलेपन से भी परहेज करना चाहिए तथा अत्यधिक हठी और कटु आलोचना के स्वभाव को त्याग कर जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इसके अतिरिक्त अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित भोजन व्यायाम तथा ईश्वर भक्ति की ओर ध्यान देना चाहिए।

प्रेम और वैवाहिक सुख👉 वृश्चिक पुरुष जातक की भांति वृश्चिक जातिका भी प्रेम और रोमांस के संबंध में अपने पार्टनर के प्रति अत्यंत गंभीर निष्ठावान एवं इमानदार होती हैं। अन्य कर्मों की भांति प्रेम में जल्दबाजी नहीं करती बल्कि पार्टनर का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं बौद्धिक स्तर देख कर ही प्रेम आकर्षण में समर्पित होती हैं। इनकी कुंडली में मंगल, गुरु, शुक्र एवं चंद्र की स्थिति अच्छी हो तो जातिका को उच्च शिक्षित सुंदर व्यक्तित्व संपन्न श्रेष्ठ गुणों से युक्त पति की प्राप्ति होती है। विवाह के उपरांत दांपत्य जीवन संतान आदि सुखों एवं सुख साधनों से संपन्न होगा। तथा जातिका स्वयं भी पति के परिवारिक जीवन में सब प्रकार से सहायता होती है। यदि कुंडली में सप्तम भाव एवं सप्तमेश शनि, सूर्य, केतु आदि क्रूर एवं अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातिका वैवाहिक जीवन में दुखी असंतुष्ट एवं परेशान रहती है।

अनुकूल जीवन साथी का चुनाव👉 वृश्चिक कन्या जातिका को मेष, वृष, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर ,मीन लग्न राशि वालों के साथ मैत्री एवं दांपत्य संबंध शुभ एवं लाभप्रद होंगे तथा वैवाहिक संबंध सुखद करने से पूर्व जन्म पत्रिका में पारस्परिक गुण मिलान अवश्य करवा लेना चाहिए।
[श्रीमद् भागवत में लिखी ये 10 भयंकर बातें कलयुग में जो आज हो रही हैं सच,…

1.ततश्चानुदिनं धर्मः
सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन्
नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥

कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.

2.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां
कारणं बलमेव हि ॥

कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा !

  1. दाम्पत्येऽभिरुचि र्हेतुः
    मायैव व्यावहारिके ।
    स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः
    विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥

कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.
व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.

  1. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
    अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं
    पाण्डित्ये चापलं वचः ॥

घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जायेगा.

  1. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव
    संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
    त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः
    कलौ नृणाम.

कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ 20-30 साल की रह जाएगी.

  1. दूरे वार्ययनं तीर्थं
    लावण्यं केशधारणम् ।
    उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे
    धार्ष्ट्यमेव हि॥

लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे लेकिन अपनी ही माता पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे.

  1. अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः । शीतवातातपप्रावृड्
    हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥

कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा.मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा. कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी. कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्तिथियों से लोग परेशान रहेंगे.

  1. अनाढ्यतैव असाधुत्वे
    साधुत्वे दंभ एव तु ।
    स्वीकार एव चोद्वाहे
    स्नानमेव प्रसाधनम् ॥

कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा उसे लोग अपवित्र, बेकार और अधर्मी मानेंगे. विवाह के नाम पे सिर्फ समझौता होगा और लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे.

  1. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं
    यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
    एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः
    आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥

लोग सिर्फ दूसरो के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भृष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे. लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.

  1. आच्छिन्नदारद्रविणा
    यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
    शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥

पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर और सूखे के वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जायेंगे. कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे.

श्रीमद भागवतम मे लिखी ये बातें इस कलयुग में सच होती दिखाई दे रही है.


: ज्योतिष में बुध और जातक = बुध दिमाग है, चालाकी है, चतुराई है, पैसा है, सामाजिक तालमेल है, गणितबाज़ी है, वाणी है, घुटन देने वाला ज़हर है, शरीर को सुखा देने वाला है, कमज़ोर कर देने वाला है और वित्त मंत्री है |

कुण्डली में जब बुध शत्रु ग्रह या उनकी राशी ( सुर्य, चन्द्रमा, ब्रहसपति, मंगल ) में होता है तो जातक को दिक्कत देता है, बेवझा धन हानि या फ़िर ओवर कान्फ़िडेन्स के कारण जातक को नुकसान होता है |

जब बुध सुर्य के साथ होता है तो जातक को जलदी सफ़लता देता है, खास कर 21-22 से ही जातक किसी ना किसी रूप में धन कमाना शुरु कर देता है,लेकिन उसके बाद जब जातक को लगे कि सब कुछ सैट है, जहाँ पर जातक रिसक लेता है लालच करता है, 30-32 तक पहुँच कर जातक को नीचे गिराना शुरु कर देता है |

जब कुण्डली में बुध चन्द्रमा के साथ होता है, तो भी धन तो देता है लेकिन रिश्ते के मामले में धोखा देता है, कम उम्र में ही जातक के चरित्र का पतन होना शुरू हो जाता है, जातक प्रेम सम्बन्ध की तरफ़ और खुद की खुबसुरती की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देने लग जाता है और पढाई से जातक का मन भटक जाता है, हर समय जातक के मन में कोई ना कोई फ़ितूर चलता रहता है, जातक कभी शान्त नहीं रह पाता |

कुण्डली में जब मंगल बुध के साथ होता है तो यही बुध जातक के जोश, जुनुन और जुररत को बांध देता है, जातक के दोस्त ही उसके सामने उसका उपहास करते हैं और जातक को इस मानहानी के घूट पीने पडते हैं, वह अन्दर ही अन्दर घुटता रहता है | और यही बुध मंगल के कारण ही जातक का शरीर कमज़ोर होता है, पतला होता है, जातक में खून की कमी या फ़िर हृदय से सम्बन्ध रोग होते हैं, हर छोटी छोटी बात पर जातक घबराता है, एग्ज़ेम है उस से पहले जातक का मन घबराता है, कोई इन्ट्रवियु है उस से पहले जातक को घबराहट शुरु हो जाती है, कलास में प्रिंसिपल ने आना है ये सुन कर ही जातक घबरा जाता है |

और जब कुण्डली में बुध गुरू के साथ होता है, तो जातक अपने ही बडो का सम्मान नहीं करता, जातक एक अच्छा शिष्य नही बन सकता क्युकि वो चीज़ो को बारीकी से समझने की कोशिश नहीं करता | जातक को अपने ही माता पिता की सलाह पर चलना पसंद नहीं होता, हालकि माता पिता से सम्बन्ध अच्छे रहते हैं लेकिन कुछ ना कुछ वैचारिक मत भेद चलते रहते हैं | जातक का अपने ही पिता के साथ दोस्ताना सम्बन्ध नहीं होता, जातक अपने पिता के साथ फ़ुरसत के पल नहीं बिता सकता, जातक अपने ही पिता के साथ खरीदारी करने नही जा सकता, और अगर कर भी आये तो घर आकर बहस और नोक झोक शुरु हो जाती है | ऐसा बुध कभी भी जातक को बडो के सानिधय में रहने नहीं देता, जातक को उस के टीचर्स से बात चीत करने नहीं देगा, टीचर्स से सवाल करने नहीं देगा, चीज़ो को समझने नहीं देगा, सिर्फ़ किताबी रट्टा मारने की आदत बना देता है | जातक खुद को दूसरो से ज़्यादा बुधीमान और चतुर समझने लगता है | और जातक धर्म से विमुख होता चला जाता है, सन्सकार और रिवाजो से दूर होता चला जाता है | और एक समय ऐसा आ जाता है कि जातक के पास धन तो होता है लेकिन रिश्ते नहीं होते, रिश्तो का सुख नहीं होता | जातक के खुद बच्चे उस का बुढापे में साथ नहीं देते उसका हाल नहीं पुछते |

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