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एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में
प्रयत्नशील रहता था. वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में ही लगा देता था . यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था

एक सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए. राजा ने देव को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा- “ महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?”

देव बोले- “राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी भजन करने वालों के नाम हैं.”

राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा- “कृपया देखिये तो इस किताब में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?”

देव महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ उलटने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया.

राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा- “महाराज ! आप चिंतित ना हों , आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है. वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता, और इसीलिए मेरा नाम यहाँ नहीं है.”

उस दिन राजा के मन में आत्म-ग्लानि-सी उत्पन्न हुई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे नजर-अंदाज कर दिया और पुनः परोपकार की भावना लिए दूसरों की सेवा करने में लग गए.

कुछ दिन बाद राजा फिर सुबह वन की तरफ टहलने के लिए निकले तो उन्हें वही देव महाराज के दर्शन हुए, इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी. इस पुस्तक के रंग और आकार में बहुत भेद था, और यह पहली वाली से काफी छोटी भी थी.

राजा ने फिर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछा- “महाराज ! आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है?”

देव ने कहा- “राजन! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं !”

राजा ने कहा- “कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग ? निश्चित ही वे दिन रात भगवत-भजन में लीन रहते होंगे !! क्या इस पुस्तक में कोई मेरे राज्य का भी नागरिक है ? ”

देव महाराज ने बहीखाता खोला , और ये क्या , पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था।

राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- “महाराज, मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है, मैं तो मंदिर भी कभी-कभार ही जाता हूँ ?

देव ने कहा- “राजन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है? जो लोग निष्काम होकर संसार की सेवा करते हैं, जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं. जो लोग मुक्ति का लोभ भी त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानो की सेवा-सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है. ऐ राजन! तू मत पछता कि तू पूजा-पाठ नहीं करता, लोगों की सेवा कर तू असल में भगवान की ही पूजा करता है. परोपकार और निःस्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना से बढ़कर हैं.

देव ने वेदों का उदाहरण देते हुए कहा- “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छनं समाः एवान्त्वाप नान्यतोअस्ति व कर्म लिप्यते नरे..”

अर्थात ‘कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की ईच्छा करो तो कर्मबंधन में लिप्त हो जाओगे.’ राजन! भगवान दीनदयालु हैं. उन्हें खुशामद नहीं भाती बल्कि आचरण भाता है.. सच्ची भक्ति तो यही है कि परोपकार करो. दीन-दुखियों का हित-साधन करो. अनाथ, विधवा, किसान व निर्धन आज अत्याचारियों से सताए जाते हैं इनकी यथाशक्ति सहायता और सेवा करो और यही परम भक्ति है..”

राजा को आज देव के माध्यम से बहुत बड़ा ज्ञान मिल चुका था और अब राजा भी समझ गया कि परोपकार से बड़ा कुछ भी नहीं और जो परोपकार करते हैं वही भगवान के सबसे प्रिय होते हैं।

मित्रों, जो व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने के लिए आगे आते हैं, परमात्मा हर समय उनके कल्याण के लिए यत्न करता है. हमारे पूर्वजों ने कहा भी है- “परोपकाराय पुण्याय भवति” अर्थात दूसरों के लिए जीना, दूसरों की सेवा को ही पूजा समझकर कर्म करना, परोपकार के लिए अपने जीवन को सार्थक बनाना ही सबसे बड़ा पुण्य है. और जब आप भी ऐसा करेंगे तो स्वतः ही आप वह ईश्वर के प्रिय भक्तों में शामिल हो जाएंगे.
🙏🙏🏽🙏🏻जय जय श्री राधे🙏🏿🙏🏼🙏🏾
: एक राजा के पास कई हाथी थे,
लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी,समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था।
बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था
इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था।

समय गुजरता गया ..

और एक समय ऐसा भी आया, जब वह वृद्ध दिखने लगा।

अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था।
इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।

एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया।

उस हाथी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।

उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है।

हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

                   *राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे।*

लेकिन बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नही निकला..

तभी गौतम बुद्ध मार्गभ्रमण कर रहे थे। राजा और सारा मंत्रीमंडल तथागत गौतम बुद्ध के पास गये और अनुरोध किया कि आप हमे इस बिकट परिस्थिति मे मार्गदर्शन करे. गौतम बुद्ध ने सबके घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ।

सुनने वालो को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा। जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा।

पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया।
गौतम बुद्ध ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।

जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे।
कभी – कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है.

“सकारात्मक सोच ही आदमी को “आदमी” बनाती है….
उसे अपनी मंजिल तक ले जाती है…।।
आप हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण , स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें।😊🙏🏻🌿💦💕
: ग्रह दोष के पूर्व संकेत
ग्रह अपना शुभाशुभ प्रभाव गोचर एवं दशा-अन्तर्दशा-प्रत्यन्तर्दशा में देते हैं।जिस ग्रह की दशा के प्रभाव में हम होते हैं, उसकी स्थिति के अनुसार शुभाशुभ फल हमें मिलता है ।जब भी कोई ग्रह अपना शुभ या अशुभ फल प्रबल रुप में देने वाला होता है, तो वह कुछ संकेत पहले से ही देने लगता है । ऐसे ही कुछ पूर्व संकेतों का विवरण यहाँ दृष्टव्य है।
सूर्य के अशुभ होने के पूर्व संकेत
सूर्य अशुभ फल देने वाला हो, तो घर में रोशनी देने वाली वस्तुएँ नष्ट होंगी या प्रकाश का स्रोत बंद होगा । जैसे – जलते हुए बल्ब का फ्यूज होना, तांबे की वस्तु खोना ।
किसी ऐसे स्थान पर स्थित रोशनदान का बन्द होना, जिससे सूर्योदय से दोपहर तक सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता हो । ऐसे रोशनदान के बन्द होने के अनेक कारण हो सकते हैं । जैसे – अनजाने में उसमें कोई सामान भर देना या किसी पक्षी के घोंसला बना लेने के कारण उसका बन्द हो जाना आदि ।
सूर्य के कारकत्व से जुड़े विषयों के बारे में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है । सूर्य जन्म-कुण्डली में जिस भाव में होता है, उस भाव से जुड़े फलों की हानि करता है । यदि सूर्य पंचमेश, नवमेश हो तो पुत्र एवं पिता को कष्ट देता है । सूर्य लग्नेश हो,तो जातक को सिरदर्द, ज्वर एवं पित्त रोगों से पीड़ा मिलती है । मान-प्रतिष्ठा की हानि का सामना करना पड़ता है ।
किसी अधिकारी वर्ग से तनाव, राज्य-पक्ष से परेशानी ।
यदि न्यायालय में विवाद चल रहा हो, तो प्रतिकूल परिणाम ।
शरीर के जोड़ों में अकड़न तथा दर्द ।
किसी कारण से फसल का सूख जाना ।
व्यक्ति के मुँह में अक्सर थूक आने लगता है तथा उसे बार-बार थूकना पड़ता है ।
सिर किसी वस्तु से टकरा जाता है ।
तेज धूप में चलना या खड़े रहना पड़ता है
चन्द्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत
जातक की कोई चाँदी की अंगुठी या अन्य आभूषण खो जाता है या जातक मोती पहने हो, तो खो जाता है।
जातक के पास एकदम सफेद तथा सुन्दर वस्त्र हो वह अचानक फट जाता है या खो जाता है या उस पर कोई गहरा धब्बा लगने से उसकी शोभा चली जाती है।
व्यक्ति के घर में पानी की टंकी लीक होने लगती है या नल आदि जल स्रोत के खराब होने पर वहाँ से पानी व्यर्थ बहने लगता है । पानी का घड़ा अचानक टूट जाता है ।
घर में कहीं न कहीं व्यर्थ जल एकत्रित हो जाता है तथा दुर्गन्ध देने लगता है ।
उक्त संकेतों से निम्नलिखित विषयों में अशुभ फल दे सकते हैं ।
माता को शारीरिक कष्ट हो सकता है या अन्य किसी प्रकार से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ।
नवजात कन्या संतान को किसी प्रकार से पीड़ा हो सकती है ।
मानसिक रुप से जातक बहुत परेशानी का अनुभव करता है ।
किसी महिला से वाद-विवाद हो सकता है ।
जल से जुड़े रोग एवं कफ रोगों से पीड़ा हो सकती है । जैसे – जलोदर, जुकाम, खाँसी, नजला, हेजा आदि ।
प्रेम-प्रसंग में भावनात्मक आघात लगता है ।
समाज में अपयश का सामना करना पड़ता है । मन में बहुत अशान्ति होती है ।
घर का पालतु पशु मर सकता है ।
घर में सफेद रंग वाली खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाती है या उनका नुकसान होता है । जैसे– दूध का उफन जाना ।
मानसिक रुप से असामान्य स्थिति हो जाती है
मंगल के अशुभ होने के पूर्व संकेत
भूमि का कोई भाग या सम्पत्ति का कोई भाग टूट-फूट जाता है ।
घर के किसी कोने में या स्थान में आग लग जाती है ।यह छोटे स्तर पर ही होती है ।
किसी लाल रंग की वस्तु या अन्य किसी प्रकार से मंगल के कारकत्त्व वाली वस्तु खो जाती है या नष्ट हो जाती है।
घर के किसी भाग का या ईंट का टूट जाना ।
हवन की अग्नि का अचानक बन्द हो जाना ।
अग्नि जलाने के अनेक प्रयास करने पर भी अग्नि का प्रज्वलित न होना या अचानक जलती हुई अग्नि का बन्द हो जाना ।
वात-जन्य विकार अकारण ही शरीर में प्रकट होने लगना ।
किसी प्रकार से छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है ।
बुध के अशुभ होने के पूर्व संकेत
व्यक्ति की विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है अर्थात् वह अच्छे-बुरे का निर्णय करने में असमर्थ रहता है ।
सूँघने की शक्ति कम हो जाती है ।
काम-भावना कम हो जाती है । त्वचा के संक्रमण रोग उत्पन्न होते हैं । पुस्तकें, परीक्षा ले कारण धन का अपव्यय होता है । शिक्षा में शिथिलता आती है ।
गुरु के अशुभ होने के पूर्व संकेत
अच्छे कार्य के बाद भी अपयश मिलता है ।
किसी भी प्रकार का आभूषण खो जाता है ।
व्यक्ति के द्वारा पूज्य व्यक्ति या धार्मिक क्रियाओं का अनजाने में ही अपमान हो जाता है या कोई धर्म ग्रन्थ नष्ट होता है ।
सिर के बाल कम होने लगते हैं अर्थात् व्यक्ति गंजा होने लगता है ।
दिया हुआ वचन पूरा नहीं होता है तथा असत्य बोलना पड़ता है ।
शुक्र के अशुभ होने के पूर्व संकेत
किसी प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे – दाद,खुजली आदि उत्पन्न होते हैं ।
स्वप्नदोष, धातुक्षीणता आदि रोग प्रकट होने लगते हैं ।
कामुक विचार हो जाते हैं ।
किसी महिला से विवाद होता है ।
हाथ या पैर का अंगुठा सुन्न या निष्क्रिय होने लगता है ।
शनि के अशुभ होने के पूर्व संकेत
दिन में नींद सताने लगती है ।
अकस्मात् ही किसी अपाहिज या अत्यन्त निर्धन और गन्दे व्यक्ति से वाद-विवाद हो जाता है ।
मकान का कोई हिस्सा गिर जाता है ।
लोहे से चोट आदि का आघात लगता है ।
पालतू काला जानवर जैसे- काला कुत्ता, काली गाय, काली भैंस, काली बकरी या काला मुर्गा आदि मर जाता है ।
निम्न-स्तरीय कार्य करने वाले व्यक्ति से झगड़ा या तनाव होता है ।
व्यक्ति के हाथ से तेल फैल जाता है ।
व्यक्ति के दाढ़ी-मूँछ एवं बाल बड़े हो जाते हैं ।
कपड़ों पर कोई गन्दा पदार्थ गिरता है या धब्बा लगता है या साफ-सुथरे कपड़े पहनने की जगह गन्दे वस्त्र पहनने की स्थिति बनती है ।
अँधेरे, गन्दे एवं घुटन भरी जगह में जाने का अवसर मिलता है ।
राहु के अशुभ होने के पूर्व संकेत
मरा हुआ सर्प या छिपकली दिखाई देती है ।
धुएँ में जाने या उससे गुजरने का अवसर मिलता है या व्यक्ति के पास ऐसे अनेक लोग एकत्रित हो जाते हैं, जो कि निरन्तर धूम्रपान करते हैं ।
किसी नदी या पवित्र कुण्ड के समीप जाकर भी व्यक्ति स्नान नहीं करता ।
पाला हुआ जानवर खो जाता है या मर जाता है ।
याददाश्त कमजोर होने लगती है ।
अकारण ही अनेक व्यक्ति आपके विरोध में खड़े होने लगते हैं ।
हाथ के नाखुन विकृत होने लगते हैं ।
मरे हुए पक्षी देखने को मिलते हैं ।
बँधी हुई रस्सी टूट जाती है । मार्ग भटकने की स्थिति भी सामने आती है । व्यक्ति से कोई आवश्यक चीज खो जाती है ।
केतु के अशुभ होने के पूर्व संकेत
मुँह से अनायास ही अपशब्द निकल जाते हैं ।
कोई मरणासन्न या पागल कुत्ता दिखायी देता है।
घर में आकर कोई पक्षी प्राण-त्याग देता है ।
अचानक अच्छी या बुरी खबरें सुनने को मिलती है ।
हड्डियों से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
पैर का नाखून टूटता या खराब होने लगता है ।
किसी स्थान पर गिरने एवं फिसलने की स्थिति बनती है ।
भ्रम होने के कारण व्यक्ति से हास्यास्पद गलतियाँ होती।
: झुर्रियों से बचाव वा उसका उपचार

झुर्रियां अकसर बढ़ती उम्र में सभी में होती है। विशेषकर ज्यादा गर्मी या ज्यादा सर्दी के दौरान चेहरे पर झुर्रियां यानी बूढी रेखाओं के पड़ने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.लेकिन आज की जीवनशैली में लगातार बदलाव होने के कारण अब असमय भी झुर्रियां होने लगी हैं।

घरेलू उपचार जो आपके लिए बहुत ही लाभदायक हो सकते हैं।

  • अंडे के सफेद हिस्से से झुर्रियों वाले हिस्से पर मालिश करने से आप जल्दी ही इस परेशानी पर विजय प्राप्त कर लेंगे।
  • गुलाबजल को फ्रीजर में जमाकर इसे नियमित रूप से झुर्रियों वाली जगह पर मलें। त्वचा टाइट रहेगी ।
  • गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी तरह धोएं फिर उसे खुरदरे तौलिए से रगड-रगड़ कर सुखा लें। आधा चम्मच दुध की ठंडी मलाई में नींबु के रस की चार पाँच बूंदें मिलाकर झुर्रियाँ तब तक मलते रहें जब तक कि मलाई घुलकर त्वचा में समा न जाए।आधा घण्टे बाद पानी से धो डालें परन्तु साबुन का प्रयोग न करें। एक माह तक नियमित इस प्रयोग से झुर्रियाँ दुर होती हैं तथा चेहरे के दाग धब्बे भी गायब हो जाते हैं।
  • खीरे के रस या फिर खीरे के छोटे-छोटे पीस काटकर झुर्रियों वाली जगह पर लगाकर उसकी मसाज करें।
  • हल्दी या चंदन का लेप लगाने से भी झुर्रियों में लाभ मिलता हैं।
  • जब झुर्रियां पडती हैं तो त्‍वचा पर गहरे रंग के धब्‍बे दिखाई देने लगते हैं। इसका मतलब कि मृत कोशिकाएं चेहरे को बूढा बना रहीं हैं। इसको दूर करने के लिए चेहरे पर स्‍क्रबिंग करनी चाहिए जिससे डेड सेल्‍स हट जाएं और नई त्‍वचा सामने आ जाए।
  • पके हुए पपीते का एक टुकडा काटकर चेहरे पर घिसें या मसलकर चेहरे पर लगाएं। कुछ देर बाद धो लें। ऐसा लगातार करने से चेहरे की झुर्रियाँ दूर होती हैं,व चेहरे की रंगत भी निखरती है।
  • त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने के लिए आधा गिलास गाजर का रस नित्य खाली पेट कम से कम 15 दिन तक लें।
  • चेहरे की झुर्रियाँ मिटाने और युवा बनाये रखने के लिए अंकुरित चने व मूंग को सुबह शाम अवश्य ही खाएँ।
  • सर्दियों में तेल से मसाज कर करके गरम पानी से नहाएं और नहाने के बाद क्रीम से भी मसाज करें। इससे त्‍वचा टाइट रहेगी और रुखी भी नहीं होगी।
  • विटामिन सी और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर आहार जैसे की मछली आदि में होते है उसका ज्यादा से ज्यादा सेवन करें इससे त्वचा जवाँ बनी रहती है।
  • चेहरे पर कॉफी पाउडर का लेप लगाने से कॉफी पाउडर में मौजूद कैफीन की वजह से चेहरे की झुर्रियां बहुत तेजी से खत्म होती है ।
  • झुर्रियों के सफल उपचार के लिए पानी पीना बहुत जरूरी है, दिन में कम से 14 -15 गिलास पानी चाहिए ।
  • सुंदर,गोरी और टाइट त्वचा के लिए सप्ताह में 1-2 बार चंदन फेस पैक लगाना चाहिए । चंदन पाउडर का पैक चेहरे पर पड़े गहरे दाग धब्बे , झाइयां और झुर्रियों को जल्दी दूर करता है।
  • हर रात को कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें, इससे चेहरे के डार्क सर्किल और आंखें सूजी हुई नजर नहीं आएंगी। कभी भी तकिये में मुंह छिपा कर भी नहीं सोएं क्योंकि इससे भी चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं।
  • हमारी त्वचा पर तेज धूप का बहुत कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए धूप में निकलने से पहले त्वचा पर ऐसा सनस्क्रीन, जिसमें जिंक ऑक्साइड हो जरूर लगाएं।
  • एलोवेरा एवं शहद एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर हैं। त्वचा में नमी का स्तर बढ़ाने के लिए इन्हे प्रतिदिन आजमाएं इनसे भी झुर्रियां कम होंगी। * उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे शरीर में कोलाजिन बनाना बंद हो जाता है, जिससे त्वचा में लचीलापन कम हो जाता है। इस बचने के लिए नमी वाला साबुन और क्रीम का रोज़ इस्तमाल करें। नित्य विटामिन सी युक्त क्रीम प्रयोग करें और ज्यादातर समय धूप से दूर रहें।
  • अपनी त्वचा को झुर्रियों से बचाने के लिए हमें नियमित रूप से ताजे फलों जैसे आम, जामुन, संतरा, मौसम्मी, लीची, सेव, अंगूर, नाशपाती, पपीता, अनार और हरी सब्जियों पालक, बंदगोभी और दिन में कम से कम एक बार सलाद का सेवन करना चाहिए । इनमें ढेर सारे विटामिन्स एवं खनिज मसलन आयरन, विटामिन सी, विटामिन बी, फाइबर इत्यादि होते हैं । जो अत्यंत हीं लाभकारी होते हैं तथा हमारी त्वचा को जवान एवं खुबसूरत बनाये रखते हैं ।
  • नियमित व्यायाम करना बहुत जरुरी है। व्यायाम करने से हमारी हर कोशिका को ओक्सिजन एवं रक्त प्राप्त होता है जिससे आपकी त्वचा जवान रहती है तथा झुर्रियां भी दूर रहती है ।
  • पेट साफ रखने और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर कर भी आप चेहरे पर झुर्रियां पड़ने से रोक सकते हैं।
  • तनाव से यथासंभव बचे । तनाव से हमारे शरीर में एक रसायन कोरटीसोल का स्राव होता है जो हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाता है जिससे झुर्रियां शीघ्र पड़ती है ।
  • गुस्सा करने से बचे । गुस्सा करने अथवा तरह तरह से मुंह बनाने से भी चेहरे पर उम्र के पहले हीं झुर्रियां पड़ जाती हैं।
  • सिगरेट और शराब दोनों की ही वजह से झुर्रियों बहुत तेजी से पड़ती है । स्मोकिंग से हमारे होठों का रंग काला पड़ जाता है और चेहरे की त्वचा का कोलाजिन भी नष्ट होता है, जिससे चेहरे पर तेजी से झुर्रियां पड़ने लगती हैं।
    : गैस व् बदहजमी दूर करने के लिए घरेलु उपचार
    १. भोजन हमेशा समय पर करें.

२. प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें.

३. हींग, लहसुन, चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर गोली बनाकर छाँव में सुखा लें, व् प्रतिदिन एक गोली खाएं.

४. भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन का उबला पानी प्रयोग करें.

५. लहसुन, जीरा १० ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं.

६. सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं.

७. लौंग का उबला पानी रोजाना पियें.

८. जीरा, सौंफ, अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें,शहद के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें.
: दाद-खाज हो जाएगा जड़ से साफ

स्कीन से जुड़ी बीमारियां भी कई बार गंभीर समस्या बन जाती है। ऐसी ही एक समस्या है एक्जीमा या दाद पर होने वाली खुजली और जलन दाद से पीडि़त व्यक्ति का जीना मुश्किल कर देती है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही है

  • दाद पर अनार के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
  • दाद को खुजला कर दिन में चार बार नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।
  • केले के गुदे में नींबू का रस लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  • चर्म रोग में रोज बथुआ उबालकर निचोड़कर इसका रस पीएं और सब्जी खाएं।
  • गाजर का बुरादा बारीक टुकड़े कर लें। इसमें सेंधा नमक डालकर सेंके और फिर गर्म-गर्म दाद पर डाल दें।
  • कच्चे आलू का रस पीएं इससे दाद ठीक हो जाते हैं।
  • नींबू के रस में सूखे सिंघाड़े को घिस कर लगाएं। पहले तो कुछ जलन होगी फिर ठंडक मिल जाएगी, कुछ दिन बाद इसे लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  • हल्दी तीन बार दिन में एक बार रात को सोते समय हल्दी का लेप करते रहने से दाद ठीक हो जाता है।
  • दाद होने पर गर्म पानी में अजवाइन पीसकर लेप करें। एक सप्ताह में ठीक हो जाएगा।
  • अजवाइन को पानी में मिलाकर दाद धोएं।
  • दाद में नीम के पत्तों का १२ ग्राम रोज पीना चाहिए।
  • दाद होने पर गुलकंद और दूध पीने से फायदा होगा।
  • नीम के पत्ती को दही के साथ पीसकर लगाने से दाद जड़ से साफ हो जाते है।
    : 🌷मुंह की लार – सेहत का भंडार!🌷

🌷मुंह की लार के फायदे – मुंह की लार के विषय में आज हम जो बताने जा रहे हैं, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि मुंह की लार आपके जीवन को संवारने में कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
जी हां ये मैं नहीं बल्कि 3500 साल पहले जन्मे ऋषि बाग्वट जी ने लार के औषधीय गुणों के बारे में काफी कुछ बताया है, जो आपकी कई बीमारियों को खत्म कर सकता है.

🌷मुंह की लार के फायदे – जो हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसे अपना कर आप कई बीमारियों को खुद से दूर रख सकते हैं.

🌷मुंह की लार के फायदे –

🌷 दिन की शुरुआत पानी से करें🌷

सुबह उठते ही सबसे पहले उम्र के हिसाब से अगर छोटे बच्चे हैं तो एक क्लास बड़े हैं तो दो से तीन ग्लास पानी पी लें. याद रखें सुबह का पानी कुल्ला करने से भी पहले पीना चाहिए. और साथ हीं यह भी याद रखें की पानी कभी भी घूट – घूट कर धीरे-धीरे और बैठकर हीं पीना चाहिए.

🌷सुबह का लार है अनमोल🌷

कहते हैं सुबह का लार पेट के लिए बेहद लाभदायक होता है. जब आप पानी पीते हैं तो रात भर मुंह में जमा लार पानी के साथ आपके पेट के अंदर जाता है. जो पेट के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है. अगर आपका पेट अच्छा रहेगा तो और सब भी अच्छा, इसलिए सुबह की लार बेहद कीमती है. इसे यूं ही बर्बाद ना करें.

🌷– घाव भरने में मददगार🌷

सुबह की लार घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरने लगता है. यहां तक की डायबिटीज के पेशेंट के घाव पर भी रामबाण की तरह काम करता है.

🌷 चश्मा उतारने में मददगार🌷
सुबह की लार काजल की तरह आंखों में लगाने से, आंखों की रोशनी बढ़ती है. और चश्मा तक उतर जाता है.

🌷 – आंख आना 🌷 (कंजक्टिवाइटिस)
इसमें आंखें लाल हो जाती है. आंखों में काफी दर्द होता है. जलन के साथ खुजलाहट भी रहता है. आंखों से पानी आता रहता है. और आंखों में कीचड़ भी जमा होता रहता है. अगर सुबह की लार आप अपनी आंखों में लगाएंगे तो कहते हैं 24 घंटे के भीतर आंख ठीक हो जाता है.

🌷 – जलने के दाग🌷
यहां तक की सुबह – सुबह की लार जले हुए दाग पर रोज़ लगाने से 6 – 8 महीने में दाग मिटने लगते हैं.

🌷ये है मुंह की लार के फायदे – इतना ही नहीं मुंह की लार और भी बहुत सारी बीमारियां, जैसे एक्जिमा, सोरायसिस, और भेंगापन जैसी बीमारियों मे भी काफी फायदेमंद साबित होता है. तो क्यों ना आज से हीं हम अपना यह रूटीन बना लें, कि सुबह उठते हीं सबसे पहले भरपूर मात्रा में पानी पीएं, और बीमारियों को अलविदा कहें.
: 🍌अकेले केले में हैं यह 16 शानदार गुण,🍌 🍌
केला अन्य फलों की अपेक्षा अधि‍क पौष्टिक होता है, साथ ही उर्जा का अच्छा विकल्प भी। लेकिन इसके अलावा भी केले में कई गुण होते हैं, जो आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। आइए जानते हैं, केले के स्वास्थ्यवर्धक गुण –
1 केला ग्लूकोज से भरपूर होता है, जो शरीर को तुरंत उर्जा प्रदान करने में सहायक होता है। इसमें 75 प्रतिशत जल होता है, इसके अलावा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, लोहा और तांबा भी इसमें पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
2 शरीर में रक्त निर्माण और रक्त को शुद्ध करने के लिए भी केला फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद लोहा, तांबा और मैग्नीशियम रक्त निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।
3 आंतों की सफाई में भी केला बहुत लाभदायक होता है। साथ ही कब्ज की शिकायत होने पर केला बेहद कारगर होता है।
4 आंतों में किसी भी प्रकार की समस्या होने पर या दस्त, पेचिश एवं संग्रहणी रोगों में दही के साथ केले का सेवन करने से फायदा होता है।
5 पके हुए केले को काटकर, चीनी के साथ मिलाकर बर्तन में बंद कर के रख दें। इसके बाद इस बर्तन को गर्म पानी में डालकर गर्म करें। इस प्रकार बनाए गए शर्बत से, खांसी की समस्या खत्म हो जाती है।
6 जुबान पर छाले हो जाने की स्थि‍ति में गाय के दूध से बने दही के साथ केले का सेवन करना लाभदायक होता है। इससे छाले ठीक हो जाते हैं।
7 दमे के इलाज में भी केले का प्रयोग बेहद लाभकारी होता है। कई लोग इसके लिए केले को छिलके सहित सीधा या खड़ा काटकर, उसमें नमक व काली मिर्च लगाकर रातभर चांदनी में रखते हैं और सुबह इस केले को आग पर भूनकर मरीज को खि‍लाते हैं। ऐसा करने से दमा के रोगी को आराम मिलता है।
8 गर्मी के मौसम में नकसीर फूटने की समस्या होने पर एक पका केला शक्कर मिले दूध के साथ नियमित रूप से खाने पर सप्ताह भर में
लाभ होता है। इससे नकसीर आना बंद हो जाता है।
9 चोट या खरोंच आने पर केले का छिलका उस स्थान पर बांधने से सूजन नहीं होती। इसके नियमित सेवन से आतों की सूजन भी खत्म हो जाती है।
10 शरीर के किसी भी स्थान पर आग से जलने पर केले के गूदे को मरहम की तरह लगाने पर तुरंत राहत मिलती है ।
11 केले के गूदे को शहर के साथ चेहरे पर लगाने से त्वचा की झुर्रियां खत्म होती हैं, और त्वचा में कसाव आता है। इसके प्रयोग से चेरे पर प्राक़तिक चमक भी आती है।
12 महिलाओं में श्वेत प्रदर की समस्या होने पर, नियमित रूप से दो पके केलों का सेवन करना काफी लाभदायक होता है। प्रतिदिन एक केला लगभग 5 ग्राम शुद्ध देसी घी के साथ सुबह और शाम को खाने से भी प्रदर रोग दूर होता है।
13 पीलिया के इलाज में भी केले का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए केले को बगैर छीले, भीगा चूना लगाकर रातभर ओस में रखा जाता है, और सुबह छीलकर खाया जाता है। इसे खाने से पीलिया दूर हो जाता है। यह प्रयोग एक से तीन सप्ताह तक नियमित रूप से करना चाहिए।
14 वजन बढ़ाने के लिए भी केले का प्रयोग रामबाण उपाय है। प्रतिदिन एक पाव दूध के साथ दो पके केले का सेवन करने से वजन तेजी से बढ़ता है। लगभग एक महीने तक यह प्रयोग काफी लाभप्रद सिद्ध होता है।
15 आयुर्वेद के अनुसार पका केला शीतल, वीर्यवर्धक, पुष्टिकर, मांसवर्धक, भूख, प्यास, नेत्र रोगों तथा प्रमेह को नष्ट करता है। जबकि कच्चा केला पाचन के लिए भारी, वायु, कफ और कब्ज पैदा करने वाला होता है।
16 दिमागी सेहत के लिए भी केला बहुत फायदेमंद होता है। यह एक पौष्टिक और दिमागी क्षमता बढ़ाने वाला आहार है। 🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
: 🍒कच्चा केला खाने के फायदे:🍒

  1. वजन घटाने में मददगार
    वजन घटाने की कोशि‍श करने वालों को हर रोज एक केला खाने की सलाह दी जाती है. इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर्स पाए जाते हैं जो अनावश्यक फैट सेल्स और अशुद्धियों को साफ करने में मददगार होते हैं.
  2. कब्ज की समस्या में राहत
    कच्चे केले में फाइबर और हेल्दी स्टार्च होते हैं. जोकि आंतों में किसी भी तरह की अशुद्ध‍ि को जमने नहीं देते. ऐसे में अगर आपको अक्सर कब्ज की समस्या रहती है तो कच्चा केला खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा.
  3. भूख को शांत करने में
    कच्चे केले में मौजूद फाइबर्स और दूसरे कई पोषक तत्व भूख को नियंत्रित करने का काम करते हैं. कच्चा केला खाने से समय-समय पर भूख नहीं लगती है और हम जंक फूड और दूसरी अनहेल्दी चीजें खाने से बच जाते हैं.
  4. मधुमेह को कंट्रोल करने में मददगार
    अगर आपको मधुमेह की शिकायत है और ये अपने शुरुआती रूप में है तो अभी से कच्चा केला खाना शुरू कर दें. ये डायबिटीज कंट्रोल करने की अचूक औषधि है.
  5. पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मददगार
    कच्चे केले के नियमित सेवन से पाचन क्रिया बेहतर होती है. कच्चा केला खाने से पाचक रसों का स्त्रावण बेहतर तरीके से होता है.
    इसके अलावा कच्चा केला कई तरह के कैंसर से बचाव में भी सहायक है. कच्चे केले में मौजूद कैल्शियम हड्ड‍ियों को मजबूत बनाने में सहायक है और साथ ही ये मूड स्व‍िंग की समस्या में भी फायदेमंद है केला
    हजारों रूपए की दवाई खाने से बेहतर है रोज कच्चा केला
    कच्चा केला पोटैशियम का खजाना होता है जो इम्यून सिस्टम को तो मजबूत बनाता है ही साथ ही शरीर को दिनभर ऊर्जावान भी बनाए रखता है. इसमें मौजूद विटामिन बी6, विटामिन सी कोशिकाओं को पोषण देने का काम करता है.
    🍒कच्चा केला🍒
    पके हुए केले के ढ़ेरो फायदों के बारे में आपको पता होगा और हो सकता है कि आप नियम से एक केला खाते भी हो. या फिर बनाना शेक पीते हों या स्मूदी. पका हुआ केला जहां चाव से खाया जाता है वहीं कच्चे केले का इस्तेमाल सिर्फ सब्जी और कोफ्ता बनाने में ही किया जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि आमतौर पर लोगों को इसके फायदों के बारे में पता ही नहीं होता.
    कच्चा केला पोटैशियम का खजाना होता है जो इम्यून सिस्टम को तो मजबूत बनाता है ही साथ ही ये शरीर को दिनभर एक्टि‍व भी बनाए रखता है. इसमें मौजूद विटामिन बी6, विटामिन सी कोशिकाओं को पोषण देने का काम करता है. कच्चे केले में सेहतमंद स्टार्च होता है और साथ ही एंटी-ऑक्सीडेंट्स भी. ऐसे में नियमित रूप से एक कच्चा केला खाना बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है.🍌🍌🍌🍌🍌🍌🍌
    : आम फलों का राजा है आम के मौसम में हर कोई आम खाना पसंद करता है। आम हेल्थ के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है लेकिन आपने कभी आम के पत्तों का हेल्द के लिए उपयोग किया है। आयुर्वेद में आम के पत्तों से कई तरह के इलाज का उल्लेख किया गया है। आम की पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट गुण होता है। आम की पत्तियों में विटामिन ए, बी और सी पर्याप्त मात्रा में होता है। हम यहां आम के पत्तों से हेल्थ के लिए होने वाले फायदों के बारे में बात करेंगे। आम की पत्तियों से कौन-कौन सी बीमारियों पर कंट्रोल किया जा सकता है ? ये सवाल आपके मन में जरूर होगा। तो आइए जानते हैं आम के पत्ते से होने वाले फायदों के बारे में। जब आप गर्मियों में आम खाने के फायदे के बारे में सोचें तो इन बातों को जरूर जानते रहें।
    आम के पत्ते डायबिटीज कंट्रोल करते हैं
    आम की पत्तियों के सेवन से डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए आम की पत्तियों को सूखाकर पाउडर बनवा लेना चाहिए। रोजाना एक चम्मच आम की पत्तियों के पाउडर का शेवन शुगर लेवल को कम करने में सहायक होता है।
    ब्लडप्रेशर की समस्या करे दूर
    आम के पत्तों से ब्लड प्रेशर की समस्या को दूर किया जा सकता है। यह सुनकर लोग थोड़ा हैरान होते हैं लेकिन यह आयुर्वेद में आजमाया नुस्खा है। इसके लिए आम के पत्तों को उबाल ले और उबले पानी को नहाने वाले पानी में मिलाकर नहायें।

आम के पत्ते अस्थमा से दिलाएं राहत
जो लोग अस्थमा की बीमारी से परेशान हैं उनके लिए आम रामबाण औषधि है। आम के पत्तों से काढ़ा बनाकर रोजाना सेवन अस्थमा रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।
किडनी की पत्थरी
किडनी में पथरी की समस्या बहुद दर्दनाक होती है। आम की पत्तियों से किडनी की पथरी को दूर किया जा सकता है। इसके लिए पत्तियों से बने पाउडर का रोजाना पानी के साथ सेवन करने से आराम मिलता है। किडनी में पथरी होने से पहले अगर आम के पत्ते का सेवन किया जाय तो यह समस्या होती ही नहीं है।
: फ्रीज़ किए गए नींबू के आश्चर्यजनक परिणाम
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सबसे पहले नींबू को धोकर फ्रीज़र में रखिए । ८ से १० घंटे बाद वह बर्फ़ जैसा ठंडा तथा कड़ा हो जाएगा । अब उपयोग मे लाने के लिए उसे कद्दूकस कर लें ।
इसे आप जो भी खाएँ उस पर डाल कर इसे खा सकते हैं ।
इससे खाद्य पदार्थ में एक अलग ही टेस्ट आऐगा ।
नीबू के रस में विटामिन सी होता है। ये आप जानते हैं
आइये देखें इसके और क्या-क्या फायदे हैं ।
🍋नीबू के छिलके में ५ से १० गुना अधिक विटामिन सी होता है और वही हम फेंक देते हैं ।
🍋नींबू के छिलके में शरीर कॆ सभी विषेले द्रव्यों को बाहर निकालने कि क्षमता होती है ।
🍋नींबू का छिलका कैंसर का नाश करता है ।इसका छिलका कैमोथेरेपी से १०,००० गुना ज्यादा प्रभावी है ।
🍋यह बैक्टेरियल इन्फेक्शन, फंगस आदि पर भी प्रभावी है ।
🍋नींबू का रस विशेषत: छिलका, रक्तदाब तथा मानसिक दबाव को नियंत्रित करता है ।
🍋नींबू का छिलका १२ से ज्यादा प्रकार के कैंसर में पूर्ण प्रभावी है और वो भी बिना किसी साईड इफेक्ट के ।
🍋इसलिये आप अच्छे पके हुए तथा स्वच्छ नींबू फ्रीज़र में रखें और कद्दूकस कर प्रतिदिन अपने आहार के साथ प्रयोग करें ।
( कृपया इस मैसेज को जन हितार्थ ज्यादा सॆ ज्यादा फॉरवर्ड करें )

जय श्री श्याम🙏
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: कोई भी व्यक्ति जन्म से विद्वान नहीं होता। सब कुछ उसे सीखना पड़ता है । बचपन से ही घर में माता-पिता बड़े भाई-बहन और अन्य भी संबंधी लोग उसे कुछ कुछ सिखाते रहते हैं । जब थोड़ा-थोड़ा सीख जाता है , तब उसे स्कूल कॉलेज गुरुकुल आदि संस्थाओं में विशेष अध्ययन के लिए भेजा जाता है ।
घर में और शिक्षा संस्थाओं में जैसा जैसा उसको प्रशिक्षण मिलता है , वैसा वैसा उसका जीवन बनता जाता है । उसकी भाषा और उसका आचरण भी वैसा ही बनता जाता है। यदि उसकी भाषा और आचरण उत्तम हो , तो बहुत से लोग उसको पसंद करते हैं , उससे मित्रता बनाना चाहते हैं। यदि उस व्यक्ति की भाषा और आचरण अच्छा नहीं है , धर्म न्याय कानून या संविधान के अनुकूल नहीं है , तो लोग उसे पसंद नहीं करते।
परिणाम यह होता है कि फिर लोग उससे मित्रता नहीं करना चाहते। उससे दूर रहना चाहते हैं। और शत्रु भी बन जाते हैं।
इसलिए सावधान रहें, अपनी भाषा और व्यवहार को उत्तम बनाएं। इसी के कारण आपके मित्र या शत्रु बनेंगे. : सत्य मीठा भी होता है , और कड़वा भी ।
बहुत से लोग कहते हैं , सत्य हमेशा कड़वा ही होता है। लोगों का यह कथन झूठ है। क्योंकि मनु आदि ऋषियों ने वेदों के आधार पर बताया है कि सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। अर्थात सत्य बोलो , मीठा बोलो। कड़वा सत्य मत बोलो।
इसका अर्थ हुआ कि सत्य मीठा भी होता है और कड़वा भी। यह तो बोलने वाले पर निर्भर करता है कि वह सत्य को मीठा बनाकर बोले या कड़वा बना कर।
जैसे यदि कोई कहे सूरदास जी , आप यहां बैठ जाइए. तो यह मीठा सत्य है ।
और यदि कोई कहे कि ओ अंधे , यहां बैठ जा . तो यह कड़वा सत्य है ।
इसलिए सत्य मीठा और कड़वा दोनों प्रकार का होता है । सभ्यता की बात यह है कि सत्य बोलें, परंतु मीठा बोलें।
अनेक लोग सत्य में श्रद्धा रखते हैं , और सत्य बोलते भी हैं । परंतु यहां पर वे लोग भूल कर जाते हैं , उस सत्य को अनेक बार कड़वा बनाकर बोलते हैं। ऐसे लोग अपनी भूल का सुधार करें । हम यह मानते हैं , कि उनका हृदय शुद्ध है , सत्य से परिपूर्ण है । यह उनका गुण है । परंतु वे लोग अपने इस दोष का भी सुधार करें । सत्य जब भी बोलें, मीठा बनाकर ही बोलें, कड़वा सत्य बोलने से बचें। इससे सत्य की महिमा भी बढ़ेगी । तथा उन सत्यवादियों का सम्मान भी बढ़ेगा –
: व्यक्ति के सम्मान के लिए अनेक कारण हैं। कहीं विद्या के कारण व्यक्ति का सम्मान होता है ; कहीं अनुभव के कारण ; कहीं धन के कारण ; कहीं किसी अन्य कला के कारण इत्यादि ।
जितने भी सम्मान के कारण हैं उनमें सबसे बड़ा कारण विद्या है। यदि किसी व्यक्ति के पास धन कम हो और विद्या अधिक हो, तो धनवान व्यक्ति को भी उस विद्वान का सम्मान करना चाहिए। इसी प्रकार से आयु भी सम्मान देने का एक कारण है । बड़ी आयु वाले के साथ भी सभ्यता पूर्वक व्यवहार करना चाहिए , अपमान तो उसका भी नहीं करना चाहिए।
फिर भी संसार में ऐसा देखा जाता है कि बहुत से धनवान लोग , धन के नशे में इन नियमों को भूल जाते हैं । और वे धन को ही सबसे ऊंचा कारण मानते हैं । जिसके पास धन अधिक हो , उसका तो सम्मान करते हैं। परंतु धन कम होने पर , भले ही विद्या अधिक हो या उम्र अधिक हो , उस व्यक्ति का सम्मान सभ्यता पूर्वक नहीं करते ; यह उचित नहीं है।
इन सम्मान के कारणों का क्रम इस प्रकार से जानना चाहिए।
सबसे अधिक सम्मान का कारण विद्या है। जिसके पास विद्या ऊंची हो , सर्वप्रथम उसका सम्मान करना चाहिए ।
उसके बाद जो परोपकारी हो उसका सम्मान करना चाहिए । उसके बाद बड़ी उम्र वाले का सम्मान करना चाहिए । चौथे नंबर पर, जिसके मित्र संबंधी अधिक हों, उसका सम्मान करना चाहिए । और सबसे अंत में धनवान का सम्मान करना चाहिए । ऐसा महर्षि मनु जी का संदेश है –
: संसार में दो प्रकार के पदार्थ हैं । एक जड़ पदार्थ और दूसरे चेतन पदार्थ ।
इन में यह अंतर है कि जड़ पदार्थ – इच्छा, ज्ञान , प्रयत्न (स्वयं क्रिया करना) आदि गुणों से रहित होते हैं । जबकि चेतन पदार्थ इच्छा, ज्ञान, प्रयत्न (स्वयं क्रिया करना) आदि गुणों से युक्त होते हैं । तथा अन्य जड़ पदार्थों में क्रिया को उत्पन्न करके उन्हें संचालित भी करते हैं । जैसे स्कूटर कार आदि जड़ पदार्थ हैं। इनमें कोई इच्छा नहीं है। ये स्वयं नहीं चलते । इनको चलाने वाला ड्राइवर चेतन है। उसमें इच्छा भी है ज्ञान भी है और वह इन स्कूटर कार आदि जड़ पदार्थों का संचालन भी करता है ।
अब जो शरीर मन इंद्रियां बुद्धि इत्यादि पदार्थ हैं, ये भी जड़ हैं। इनमें भी कोई अपनी इच्छाएं ज्ञान तथा स्वयं क्रियाएं नहीं हैं।
इन सब जड़ पदार्थों का संचालन चेतन आत्मा करता है । चेतन आत्मा में इच्छा ज्ञान और प्रयत्न (स्वयं क्रिया करना) इत्यादि गुण हैं ।
फिर भी जो आजकल के चेतन मनुष्य हैं, वे स्कूटर कार आदि जड़ पदार्थों को चलाना तो सीख लेते हैं , और बहुत सीमा तक इनका सफल संचालन भी कर लेते हैं । परंतु जो शरीर मन इंद्रियां आदि जड़ पदार्थ हैं, इनका संचालन करना तथा नियंत्रण करना नहीं सीखते। परिणाम यह होता है कि मन बुद्धि शरीर इंद्रियों पर आजकल के मनुष्यों का ठीक नियंत्रण नहीं हो पाता , जिसके कारण उनका चिंतन आचार विचार व्यवहार सब बिगड़ जाता है । वे मन इंद्रियों पर नियंत्रण न कर पाने के कारण , अवसाद क्रोध ईर्ष्या अभिमान आदि दोषों के शिकार हो जाते हैं। जिससे उनका जीवन दुखमय हो जाता है। इसलिये आप मन इंद्रियों का भी संचालन करना सीखें। इन पर नियंत्रण करना सीखें। अपने जीवन की रक्षा करें । आनंद से जिएं, तथा दूसरों को भी आनंदित करें । महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग ही इसका उपाय है
: ।।त्रिपुण्ड का महत्त्व भारतीय परम्परा एवं विधि।।
भगवान शिव को गंगाजल, रूद्राक्ष और भष्म अति प्रिय है। भस्म तो महदेव को इतना पसंद है कि पूरे शरीर पर लगाये घुमते रहते हैं, यही कारण है कि महादेव भस्मांग भी कहलाते हैं। शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति नियमित अपने माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड यानी तीन रेखाएं सिर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक धारण करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति शिव कृपा का पात्र बन जाता है।

शिव पुराण में बताया गया है कि त्रिपुण्ड की हर रेखा में नौ देवताओं का वास होता है। इसलिए जो व्यक्ति त्रिपुण्ड भस्म धारण करते हैं उनसे 27 देवता प्रसन्न रहते हैं। भस्म धारण के विषय में बताया गया है कि मोक्ष और भोग यानी धन वैभव की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को अपने शरीर के 32अंगों में भस्म लगाना चाहिए।
यह विचार मन में न रखें कि त्रिपुण्ड केवल माथे पर ही लगाया जाता है। त्रिपुण्ड हमारे शरीर के कुल 32 अंगों पर लगाया जाता है। इन अंगों में मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों अरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर शामिल हैं। इनमें अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु, दस दिक्प्रदेश, दस दिक्पाल और आठ वसुओं वास करते हैं। सभी अंगों का नाम लेकर इनके उचित स्थानों में ही त्रिपुण्ड लगना उचित होता है।

सभी अंगों पर अलग-अलग देवताओं का वास होता है। जैसे- मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा, मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषिकन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं।
कही-कही सोलह स्थानों में एवं आठ स्थानों में त्रिपुण्ड लगाने का भी विधान प्राप्त होता है वे स्थान है
मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनियों, दोनों कलाईयों, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों एवं पीठ यह सोलह स्थान हैं जहां भस्म लगाना चाहिए। इन सभी अंगों पर अलग-अलग देवताओं का वास होता है।
ललाट पर लगा त्रिपुंड की पहली रेखा में नौ देवताओं का नाम इस प्रकार है। अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रिया शक्ति, प्रात:स्वन, महादेव। इसी प्रकार त्रिपुंड की दूसरी रेखा में, ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा, महेश्वर जी का नाम आता है. अंत में त्रिपुंड की तीसरी रेखा में मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन, शिव जी वास करते हैं। भस्म धारण करते समय व्यक्ति को भगवान शिव का ध्यान करते हुए ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जप करना चाहिए। जो लोग नियमित ललाट पर भस्म लगाते हैं उनका आज्ञाचक्र जागृत होता है और बौद्घिक एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।

कैसा भस्म प्रयोग करें?
भस्म जली हुई वस्तुओं का राख होता है। लेकिन सभी राख भस्म के रूप में प्रयोग करने योग्य नहीं होता है। भस्म के तौर पर उन्हीं राख का प्रयोग करना चाहिए जो पवित्र कार्य के लिए किये गये हवन अथवा यज्ञ से प्राप्त होती है।
साधू-संतों, तपस्वियों और पंडितों के माथे पर चन्दन या भस्म से बना तीन रेखाएं कोई साधारण रेखाएं नहीं होती है। ललाट पर बना तीन रेखाओं को त्रिपुण्ड कहते है। हथेली पर चन्दन या भस्म को रखकर तीन उंगुलियों की मदद से माथे पर त्रिपुण्ड को लगाई जाती है।
शिवसाधक गण स्मशान की भस्म को धो के ,साफ़ करके एकबार सुखा कर उसमे कपूर,मक्खन इत्यादि द्रव्य का मिश्रण कर एक पिंड का निर्माण कर ,पुनः उसे शुद्ध गोबर के कंडो पे पकाकर प्राप्त हुई शुद्ध भस्म को धारण करते ।कुछ साधक सीधा स्मशान भस्म छान कर धारण किया करते है।
।।वैज्ञानिक की नजर में त्रिपुण्ड।।

विज्ञान ने त्रिपुण्ड को लगाने या धारण करने के लाभ बताएं हैं। विज्ञान कहता है कि त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है। चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है। अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है। ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट विकार नहीं होता।

मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें ।
।।भगवान को चंदन अर्पण ।।

भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है। चंदन का तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है।
।।तिलक का महत्व।।
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।
।।चन्दन लगाने के प्रकार।।
स्नान एवं धौत वस्त्र धारण करने के उपरान्त वैष्णव ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैव त्रिपुण्ड, गाणपत्य रोली या सिन्दूर का तिलक शाक्त एवं जैन क्रमशः लाल और केसरिया बिन्दु लगाते हैं। धार्मिक तिलक स्वयं के द्वारा लगाया जाता है, जबकि सांस्कृतिक तिलक दूसरा लगाता है।

नारद पुराण में उल्लेख आया है-
१. ब्राह्मण को ऊर्ध्वपुण्ड्र,
२. क्षत्रिय को त्रिपुण्ड,
३. वैश्य को अर्धचन्द्र,
४. शुद्र को वर्तुलाकार चन्दन से ललाट को अंकित करना चाहिये।

योगी सन्यासी ऋषि साधकों तथा इस विषय से सम्बन्धित ग्रन्थों के अनुसार भृकुटि के मध्य भाग देदीप्यमान है।

१.ऊर्ध्वपुण्ड्र चन्दन – वैष्णव सम्प्रदायों का कलात्मक भाल तिलक ऊर्ध्वपुण्ड्र कहलाता है। चन्दन, गोपीचन्दन, हरिचन्दन या रोली से भृकुटि के मध्य में नासाग्र या नासामूल से ललाट पर केश पर्यन्त अंकित खड़ी दो रेखाएं ऊर्ध्वपुण्ड्र कही जाती हैं। |

वैष्णव ऊर्ध्वपुण्ड्र के विषय में पुराणों में दो प्रकार की मान्यताएं मिलती हैं।
नारद पुराण में – इसे विष्णु की गदा का द्योतक माना गया है.
ऊर्ध्वपुण्ड्रोपनिषद में – ऊर्ध्वपुण्ड्र को विष्णु के चरण पाद का प्रतीक बताकर विस्तार से इसकी व्याख्या की है। |
पुराणों में – ऊर्ध्वपुण्ड्र की दक्षिण रेखा को विष्णु अवतार राम या कृष्ण के “दक्षिण चरण तल” का प्रतिबिम्ब माना गया है, जिसमें वज्र, अंकुश, अंबर, कमल, यव, अष्टकोण, ध्वजा, चक्र, स्वास्तिक तथा ऊर्ध्वरेख है.
तथा ऊर्ध्वपुण्ड्र की बायीं केश पर्यन्त रेखा विष्णु का “बायाँ चरण तल” है जो गोपद, शंख, जम्बूफल, कलश, सुधाकुण्ड, अर्धचन्द्र, षटकोण, मीन, बिन्दु, त्रिकोण तथा इन्द्रधनुष के मंगलकारी चिन्हों से युक्त है।
इन मंगलकारी चिन्हों के धारण करने से वज्र से – बल तथा पाप संहार, अंकुश से – मनानिग्रह, अम्बर से – भय विनाश, कमल से – भक्ति, अष्टकोण से – अष्टसिद्धि, ध्वजा से – ऊर्ध्व गति, चक्र से – शत्रुदमन, स्वास्तिक से- कल्याण, ऊर्ध्वरेखा से – भवसागर तरण, पुरूष से – शक्ति और सात्त्विक गुणों की प्राप्ति, गोपद से – भक्ति, शंख से – विजय और बुद्धि से – पुरूषार्थ, त्रिकोण से – योग्य, अर्धचन्द्र से – शक्ति, इन्द्रधनुष से – मृत्यु भय निवारण होता है।

  1. त्रिपुण्ड चन्दन – विष्णु उपासक वैष्णवों के समान ही शिव उपासक ललाट पर भस्म या केसर युक्त चन्दन द्वारा भौहों के मध्य भाग से लेकर जहाँ तक भौहों का अन्त है उतना बड़ा त्रिपुण्ड और ठीक नाक के ऊपर लाल रोली का बिन्दु या तिलक धारण करते हैं। मध्यमा, अनामिका और तर्जनी से तीन रेखाएँ तथा बीच में रोली का अंगुष्ठ द्वारा प्रतिलोम भाव से की गई रेखा त्रिपुण्ड कहलाती है।
    शिवपुराण में त्रिपुण्ड को योग और मोक्ष दायक बताया गया है। शिव साहित्य में त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं के नौ-नौ के क्रम में सत्ताईस देवता बताए गये हैं। वैष्णव द्वादय तिलक के समान ही त्रिपुण्ड धारण करने के लिये बत्तीस या सोलह अथवा शरीर के आठ अंगों में लगाने का आदेश है तथा स्थानों एवं अवयवों के देवों का अलग-अलग विवेचन किया गया है। शैव ग्रन्थों में विधिवत त्रिपुण्ड धारण कर रूद्राक्ष से महामृत्युजंय का जप करने वाले साधक के दर्शन को साक्षात रूद्र के दर्शन का फल बताया गया है।
    अप्रकाशिता उपनिषद के बहिवत्रयं तच्च जगत् त्रय, तच्च शक्तित्रर्य स्यात् द्वारा तीन अग्नि, तीन जगत और तीन शक्ति ज्ञान इच्छा और क्रिया का द्योतक बताकर कहा है कि जिसने त्रिपुण्ड धारण कर रखा है, उसे देवात् कोई देख ले तो वह सभी बाधाओं से विमुक्त हो जाता है। त्रिपुण्ड के बीच लाल तिलक या बिन्दु कारण तत्त्व बिन्दु माना जाता है। गणेश भक्त गाणपत्य अपनी भुजाओं पर गणेश के एक दाँत की तप्त मुद्रा दागते हैं तथा गणपति मुख की छाप लगाकर मस्तक पर लाल रोली या सिन्दूर का तिलक धारण कर गजवदन की उपासना करते हैं।
    ।।चन्दन के प्रकार।।
    १. हरि चन्दन – पद्मपुराण के अनुसार तुलसी के काष्ठ को घिसकर उसमें कपूर, अररू या केसर के मिलाने से हरिचन्दन बनता है।
    २. गोपीचन्दन- गोपीचन्दन द्वारका के पास स्थित गोपी सरोवर की रज है, जिसे वैष्णवों में परम पवित्र माना जाता है। स्कन्द पुराण में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों की भक्ति से प्रभावित होकर द्वारका में गोपी सरोवर का निर्माण किया था, जिसमें स्नान करने से उनको सुन्दर का सदा सर्वदा के लिये स्नेह प्राप्त हुआ था। इसी भाव से अनुप्रेरित होकर वैष्णवों में गोपी चन्दन का ऊर्ध्वपुण्ड्र मस्तक पर लगाया जाता है।
    इसी पुराण के पाताल खण्ड में कहा गया है कि गोपीचन्दन का तिलक धारण करने मात्र से ब्राह्मण से लेकर चांडाल तक पवित्र हो जाता है। जिसे वैष्णव सम्प्रदाय में गोपी चन्दन के समान पवित्र माना गया है.
    स्कन्दपुराण में गोमती, गोकुल और गोपीचन्दन को पवित्र और दुर्लभ बताया गया है तथा कहा गया है कि जिसके घर में गोपीचन्दन की मृत्तिका विराजमान हैं, वहाँ श्रीकृष्ण सहित द्वारिकापुरी स्थित है।
    ।।सामान्य तिलक का आकार।।
    धार्मिक तिलक के समान ही हमारे पारिवारिक या सामाजिक चर्या में तिलक इतना समाया हुआ है कि इसके अभाव में हमारा कोई भी मंगलमय कार्य हो ही नहीं सकता। इसका रूप या आकार दीपक की ज्याति, बाँस की पत्ती, कमल, कली, मछली या शंख के समान होना चाहिए। धर्म शास्त्र के ग्रन्थों के अनुसार इसका आकार दो से दस अंगुल तक हो सकता है। तिलक से पूर्व ‘श्री’ स्वरूपा बिन्दी लगानी चाहिये उसके पश्चात् अंगुठे से विलोम भाव से तिलक लगाने का विधान है। अंगुठा दो बार फेरा जाता है।
    ।।किस उँगली से लगाना चाहिये।।
    ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार तिलक में “अंगुठे के प्रयोग से – शक्ति, मध्यमा के प्रयोग से – दीर्घायु, अनामिका के प्रयोग से- समृद्धि तथा तर्जनी से लगाने पर – मुक्ति प्राप्त होती है” तिलक विज्ञान विषयक समस्त ग्रन्थ तिलक अंकन में नाखून स्पर्श तथा लगे तिलक को पौंछना अनिष्टकारी बतलाते हैं।

देवताओं पर केवल अनामिका से तिलक बिन्दु लगाया जाता है। तिलक की विधि सांस्कृतिक सौन्दर्य सहित जीवन की मंगल दृष्टि को मनुष्य के सर्वाधिक मूल्यवान् तथा ज्ञान विज्ञान के प्रमुख केन्द्र मस्तक पर अंकित करती है।
।।तिलक के मध्य में चावल।।
तिलक के मध्य में चावल लगाये जाते हैं। तिलक के चावल शिव के परिचायक हैं। शिव कल्याण के देवता हैं जिनका वर्ण शुक्ल है। लाल तिलक पर सफेद चावल धारण कर हम जीवन में शिव व शक्ति के साम्य का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। इच्छा और क्रिया के साथ ज्ञान का समावेश हो। सफेद गोपी चन्दन तथा लाल बिन्दु इसी सत्य के साम्य का सूचक है। शव के मस्तक पर रोली तिलक के मध्य चावल नहीं लगाते, क्योंकि शव में शिव तत्त्व तिरोहित है
: भगवान कहां रहता है बताती है ये कहानी
महर्षि दधिचि के पुत्र का नाम था पिप्लाद, क्योंकि वह सिर्फ पीपल का फल ही खाया करते थे। इसलिए उन्हें पिप्लाद के नाम से पुकारा जाता था। दरअसल, अपने पिता की तरह पिप्लाद भी बहुत तेजवान और तपस्वी थे। जब पिप्लाद को यह पता चला कि देवताओं को अस्थि-दान देने के कारण उनके पिता की मृत्यु हो गई , तो उन्हें बहुत दुख हुआ। आगबबूला होकर उन्होंने देवताओं से बदला लेने का निश्चय किया। यही सोचकर वह शंकर भगवान को खुश करने के लिए उनकी तपस्या करने लगा। उनकी तपस्या से आखिर शंकर भगवान खुश हुए और पिप्लाद से वरदान मांगने को कहा। पिप्लाद ने कहा – भगवन मुझे ऐसी शक्ति दो , जिससे मैं देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला ले सकूं। भगवान शंकर तथास्तु कहकर अंर्तध्यान हो गए।
उनके अंर्तध्यान होने के तुरंत बाद वहां एक काली कलूटी लाल-लाल आंखों वाली राक्षसी प्रकट हुई। उसने पिप्लाद से पूछा , स्वामी आज्ञा दीजिए मुझे क्या करना है। पिप्लाद ने गुस्से में कहा, सभी देवताओं को मार डालो। आदेश मिलते ही राक्षसी पिप्लाद की तरफ झपट पड़ी। पिप्लाद अचंभित हो चीख पड़े, यह क्या कर रही हो। इस पर राक्षसी ने कहा , स्वामी अभी-अभी आपने ही तो मुझे आदेश दिया है कि सभी देवताओं को मार डालो। मुझे तो सृष्टि के हर कण में किसी-न-किसी का वास नजर आता है। सच तो यह है कि आपके शरीर के हर अंग में भी कई देवता दिख रहे हैं मुझे। और इसीलिए मैंने सोचा कि क्यों न शुरुआत आपसे ही करूं। ‘

पिप्लाद भयभीत हो उठे। उन्होंने फिर से शंकर भगवान की तपस्या की। भगवान फिर प्रकट हुए। पिप्लाद के भय को समझकर उन्होंने पिप्लाद को समझाया । उन्होंने कहा पिप्लाद गुस्से में आकर लिया गया हर निर्णय भविष्य में गलत ही साबित होता है। पिता की मौत का बदला लेने की धुन में तुम यह भी भूल गए कि दुनिया के कण-कण में भगवान का वास है। तुम उस दानी के पुत्र हो , जिसके आगे देवता भी भीख मांगने को मजबूर हो गए थे। इतने बड़े दानी के पुत्र होकर भी तुम भिक्षुकों पर क्रोध करते हो। यह सुनते ही पिप्लाद का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। इस तरह एक बार फिर देवत्व की रक्षा हुई।
सीख: 1.गुस्से में लिया गया निर्णय कभी सही नहीं हो सकता।
2.ऐसी कोई जगह नहीं है जहां ईश्वर का निवास न हो।: बीज मंत्र क्या है आइए जानते हैं

परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो या फिर मनुष्य योनी | बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है | बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है | हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है | सभी वैदिक मंत्रो का सार बीज मंत्रो को माना गया है | हिन्दू धरम में सबसे बड़ा बीज मंत्र ” ॐ ” है | अन्य शब्दों में बीज मंत्र किसी भी वैदिक मंत्र का वह लघु रूप है जिसे मंत्र के साथ प्रयोग करने पर वह उत्प्रेरक का कार्य करता है | बीज मंत्रों को सभी मन्त्रों के प्राण के रूप में जाना जा सकता है जिनके प्रयोग से मन्त्रों में प्रबलता और अधिक हो जाती है |
बीज मंत्र कुछ इस प्रकार होते है :- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, हलीं, त्रीं, क्ष्रौं, धं, हं, रां, यं, क्षं, तं , ये दिखने में छोटे से बीज मंत्र अपने अन्दर बहुत से शब्दों को समाये हुए है | उपरोत्क सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी है जो अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिनिधत्व करते है |

बीज मंत्र जप के लाभ :-

बीज मंत्रों के जप से देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त का उद्धार करते है | बीज मंत्रों का उच्चारण आपके आस-पास एक सकारात्मक उर्जा का संचार करता है | जीवन में आने वाले घोर से घोर संकट भी बीज मंत्रों के उच्चारण से दूर हो जाते है | किसी भी प्रकार के असाध्य रोग की गिरफ्त में आने पर , आर्थिक संकट आने पर, इनके अतिरिक्त समस्या कोई भी हो, बीज मंत्रों के जप से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है व अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है |

बीज मंत्र :-
भगवान श्री गणेश का बीज मंत्र :-
सभी देवों में सबसे पहले पूजे जाने वाले देव श्री गणेश का बीज मंत्र ” गं ” है | इस बीज मंत्र के नियमित जप से बुद्धि का विकास होता है और घर में धन संपदा की वृद्धि होती है |
भगवान शिव का बीज मंत्र :-
भगवान शिव का बीज मंत्र है : – ” ह्रौं ” भगवान शिव के इस बीज मंत्र के जप से भोलेनाथ अतिशीघ्र प्रसन्न होते है | इस बीज मंत्र के प्रभाव से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है व रोग आदि से छुटकारा मिलता है |

भगवान श्री विष्णु का बीज मंत्र :-
भगवान श्री विष्णु का बीज मंत्र ” दं ” है | जीवन में हर प्रकार के सुख और एश्वर्य की प्राप्ति हेतु इस बीज मंत्र द्वारा भगवान श्री विष्णु की आराधना करनी चाहिए
भगवान श्री राम का बीज मंत्र :-
भगवान श्री राम का बीज मंत्र ” रीं ” है जिसे भगवान श्री राम के मंत्र के शुरू में प्रयोग करने से मंत्र की प्रबलता और भी अधिक हो जाती है भगवान श्री राम के बीज मंत्र को इस प्रकार से प्रयोग कर सकते है : रीं रामाय नमः
हनुमान जी का बीज मंत्र :-
भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी आराधना कलियुग के समय में शीघ्र फल प्रदान करने वाली है | ऐसे में बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना आपके सभी दुखों को हरने में सक्षम है | हनुमान जी का बीज मंत्र है : ” हं ” |
भगवान श्री कृष्ण का बीज मंत्र :
भगवान श्री कृष्ण का बीज मंत्र “ क्लीं ” है जिसका उच्चारण अकेले भी किया जा सकता है व भगवान श्री कृष्ण के वैदिक मंत्र के साथ भी | इस बीज मंत्र का प्रयोग इस प्रकार से करें : ” क्लीं कृष्णाय नमः ” |
माँ दुर्गा का बीज मंत्र :-
शक्ति स्वरुप माँ दुर्गा का बीज मंत्र ” दूं ” जिसका अर्थ है : हे माँ, मेरे सभी दुखों को दूर कर मेरी रक्षा करो |
माँ काली का बीज मंत्र :-
जीवन से सभी भय , ऊपरी बाधाओं , शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में माँ काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है | माँ काली का बीज मंत्र है : ” क्रीं ” |
देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र :-
देवी लक्ष्मी को स्वाभाव से चंचल माना गया है इसलिए वे अधिक समय के लिए एक स्थान पर नहीं रूकती | घर में धन-सम्पति की वृद्धि हेतु माँ लक्ष्मी के इस बीज मंत्र द्वारा आराधना से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र है : ” श्रीं ” |
देवी सरस्वती का बीज मंत्र : –
माँ सरस्वती विद्या को देने वाली देवी है जिनका बीज मंत्र ” ऐं ” है | परीक्षा में सफलता के लिए व हर प्रकार के बौद्धिक कार्यों में सफलता हेतु माँ सरस्वती के इस बीज मंत् का जप प्रभावी सिद्ध होता है |

       


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