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: विमारियां पर दो शब्द

 किसी भी चिकित्सा को करने के पूर्व विमारीयों के कारणों को जानना वेहद जरूरी होता है । चिकित्सा से श्रेष्ठ है कारण को जानना । आजकल नगरों शहरों में डॉक्टरों की लंबी कतारें हैं , अनगिनत हॉस्पिटल हैं , सोसल मीडिया पर भी सैकड़ो लेख हैं  लेकिन क्या उनसे रोगी स्वस्थय हो रहे हैं ..?

विमारियों के प्रकार : – विमारियां दो प्रकार की होती है । जबकि आयुर्वेद दृष्टिकोण से रोगियों को तीन श्रेणी में रखा गया है । जैसे –

(१) साध्य रोग :- जो रोग होते ही हमें पता चलती है और परहेज़ ओर सावधानी से जल्दी ठीक भी हो जाती हे
(२) कष्ट साध्य रोग :- वह होती है जो सह सह के ठीक करनी पड़ती बहुत यत्न करना पड़ता है ।
(३) असाध्य रोग :- जो कुछ भी कर लो ठीक ही नहीं होती अंत में प्राण चले जाते है ।

१. इलाज योग्य – जिन विमारियों पर अब तक शोध हो चुका है उन विमारीयों का इलाज संभव है । जिन वीमारीयों की उत्पत्ति जीवाणु , वैक्टीरिया , पैथोजन , वायरस , फंगस द्वारा होती है जैसे – टी बी , टायफाइड , टिटनेस , मलेरिया , न्यूमोनिया आदि । इन विमारीयों के कारणों का पता लगने के कारण इनकी दवाएं विकसित की जा चुकी हैं इसलिए इनका इलाज स्थायी रूप से संभव है ।

२. असाध्य विमारियां – इन विमारियों की उत्पत्ति किसी जीवाणु , बैक्टीरिया , पैथोजन , फंगस , वॉयरस आदि से नहीं होती इसलिए इनके कारणों का पता नहीं लग पाया है । जब इनके कारणों का ज्ञात नहीं हुआ तो इनकी दवायें भी विकसित नहीं हो पायी हैं । जैसे – अम्लपित्त ( Stomach Acidity ) , दमा ( Asthama ), गठिया , जोड़ों का दर्द (Arthritis ) , कर्क रोग ( Cancer ) , कब्ज , मधुमेह , बबासीर , भगन्दर , रक्तार्श ( Piles , Fistula ), आधाशीशी ( Migrain ), सिर -दर्द , प्रोस्टेट आदि ।

   इसे अनेक विमारियां है जिस दिन शुरू हो गयी मरने तक दवा खाते रहो तब भी ठीक नहीं होगी , कारण कोई जीवाणु व वायरस नहीं मिला जिससे दवा बन सके । इसीलिए यह आसध्य विमारियां (Chronic , Long term , Incurable Diseases ) की संज्ञा दी गयी ।

१. पेट की अम्लता – पाचन तंत्र की अम्लता पाचन तंत्र में किसी खास विकार के कारण के कारण उत्पन्न होता है । आधुनिक विज्ञान में इसको दूर करने के लिए क्षारीय गोलियां दी जाती है । यह गोलियां जाकर पेट में अम्ल को खत्म करता है, और हम सोचते हैं हम ठीक हो गए । इसे एक वैज्ञानिक Le Chatilier’s के एक सिद्धांत से समझा जा सकता है । In a system at equilibrium , if a constraint is brought, the equilibrium shift to a direction so as to annal the effect.
यानि जैसे -जैसे आप किसी दवाई द्वारा पेट की एसिडिटी मिटायेंगे वैसे – वैसे पेट एसिड बनाता जायेगा और वीमारी को दीर्घकालिक असाध्य रूप में बदलकर अल्सर का रूप ले लेगी ।

२. दमा / उच्च रक्तचाप : – ब्लडप्रेशर हो जाने पर इसमें जो भी दवायें दी जाती है उससे रक्तवाहनियां लचीली हो जाये या उनका व्यास बढ़ जाये । जैसे व्यास बढेगा वहाँ दूसरा सिद्धांत लागू हो जायेगा इससे रक्त का दबाव तो कम हो जायेगा क्योंकि फ्लो बढ़ गया , लेकिन इस दवा से रक्तवाहनियां जो की लचीली प्रवर्ति होती हैं वह फिर उसी अवस्था में आ जाती है लिहाजा फिर गोली लो , फिर धमनियां फैलाओ इस प्रकार यह क्रम दीर्घकालिक रोग रूप ले लेता है ।

हृदय रक्त वाहनियों के अवरोध ( Coronary Artery Blockin ) : – ऐसा होने पर डॉक्टर बलून एंजियोप्लास्टी करते हैं जिसमें जिस जगह ब्लॉक रहता है उस जगह स्टेंट डालकर रक्त के परिसंचरण के लिए खोला जाता है , अब रक्त उस स्टेंट यानि स्प्रिंग के भीतर से जाना शुरू करता है । यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस ब्लॉक को दूर करने के लिए कोई भी उपचार नही किया जाता है । लिहाजा 22% लोगों के रक्त नलिकाओं में फिर से ब्लॉक आ जाता है । जो कि Wound Healing व Foreign Body के कारण होता है । जब स्प्रिंग के आगे -पीछे पुनः ब्लॉक बन गए तो डॉक्टर के पास बायपास के अलावा कोई उपचार नहीं बचता है , लेकिन समस्या का स्थाई समाधान नहीं मिलता है ।

४. बबासीर / मूल व्याधि ( Piles ) :- यहां पर भी गुदा द्वार के बाहर आये हुए मस्सों को शल्य क्रिया द्वारा काट दिया जाता है जबकि गुदाद्वार के अंदर स्थति रक्तवाहनी के नर्व का कोई भी इलाज नहीं किया जाता जिससे यह समस्या पुनः आ जाती है ।

५. गठिया / जोड़ों का दर्द ( Arthritis ) :- आधुनिक विज्ञान के पास इस वीमारी के लिये या तो पेन किलर है या फिर पें किलर काम करना बंद कर दे तो डॉक्टर स्टेराइड देना शुरू कर देते हैं । स्टेराइड खुद 20 से 25 बीमारियों को जन्म देता है । ज्यादा घुटनो के दर्द में घुटना बदलकर कृतिम घुटना लगा दिया जाता है ।
इस प्रकार आप देखेंगे कि आसध्य विमारियों के इलाज में उत्पन्न कारणों को नजर-अंदाज करके वीमारी को आसध्य बना दिया जाता है ।

ऐसी स्थति क्यों ..?

जब जो शरीर भगवान ने मनुष्य को सतयुग में दिया था वही शरीर कलियुग में भी है वही श्वसन, वही रक्तपरिसंचरण, वही हँसना -रोना, मल-मूत्र विसर्जन उस समय भी था और आज के समय में भी है कहीं कोई अंतर नहीं है।

हम जब भी कोई भी मशीन लेते हैं बिना उसका मैनुअल पढ़े उसको ऑपरेट नहीं करते फिर यह कैसी विडम्बना है कि मानव जैसी जटिल मशीन को जो अपने जैसे मशीन को जन्म देने की क्षमता रखती हो उसको बिना किसी ऑपरेटिंग मैनुअल ( गीता, आयुर्वेद ) पढ़े चलाते हैं ।

ध्यान रहे किसी कुत्ते को, गाय को, बंदर को या अपने शिशु को कोई हानिकारक चीज खिलाइये वह तुरंत थूक देता है, या जबरदस्ती से खिलाया तो उल्टी कर देगा या फिर चमड़ी रोग, फोड़ा – फुंसी, मल -मूत्र , पसीने के रास्ते बाहर आ जायेगा। लेकिन जैसे – जैसे हम बड़े हो रहे हैं अपनी जीभ के सुख के लिये नित्य-प्रति हानिकारक पदार्थ को ग्रहण करते हुये प्रकृति के नियमो की उपेक्षा करते हुए दीर्घकालिक असाध्य विमारीयों के चक्रव्यूह में स्वतः फंसते जा रहे हैं ।।
Palmistry : जीवन रेखा

हाथों की लकीरों में ही इंसान के जीवन-मरण का सारा रहस्य छुपा होता है। जीवन चक्र के इस रहस्य को बताने वाली इस रेखा को ही जीवन रेखा (Life Line in Hands/ Palm) कहा जाता है।

जीवन रेखा कहां होती है? (Life Line in Hand): जीवन रेखा का घेराव अंगुठे के निचले क्षेत्र में होता है। यह शुक्र का क्षेत्र माना जाता है। यह रेखा तर्जनी और अंगुठे के मध्य से शुरु होकर मणिबंध तक जाती है। इसका फैलाव एक आर्क की तरह होता है।

जीवन रेखा का फल (Life Line Reading in Hindi): जीवन रेखा को पढ़ने (Read Life Line in Palmistry in Hindi) से ही इंसान की आयु और उसके जीवन में रोगों आदि का पता चल पाता है।

  • जीवन रेखा लंबी,पतली, साफ हो और बिना किसी रुकावट के होनी चाहिए।
  • अगर जातक के हाथों में जीवन रेखा पर कई जगह छोटी-छोटी रेखाएं कट या क्रॉस (Meaning of Cross on life line in Hindi) कर रही हैं तो यह अच्छी सूचना नहीं देते।
  • जीवन रेखा पर अगर कहीं रेखाएं स्टार का निशान बनाएं तो यह रीढ़ की हड्डी से संबंधित बिमारियों की निशानी होती है। सफेद बिंदु आंखो की समस्या को दर्शाता है। जीवन रेखा पर काला धब्बा या तिल या क्रॉस एक्सीडेंट की तरफ इशारा करते हैं। लेकिन अगर यह इन को पार कर जाए तो इसका अर्थ है कि जातक जीवन में परेशानियों से देर-सवेर उबर ही जाऐंगे ✍
    : मणिबंध रेखाएं

हाथ की सभी रेखाओं का सामुद्रिक शास्त्र में कुछ ना कुछ महत्व बताया गया है। हाथ की कलाई पर बनी मणिबंध रेखाओं (Bracelet lines) का भी भविष्यकथन में अहम स्थान है।

मणिबंध रेखाओं की पहचान (Bracelets Line on Hand): यह हाथ की कलाई पर शुरुआत में बनी होती है। यह किसी की कलाई पर तीन तो किसी की कलाई पर दो या चार भी होती हैं। यह रेखा आयु, स्वास्थ्य और संतान आदि की भविष्यवाणी करती है।

मणिबंध रेखा पढ़ने के नियम (How to read bracelet lines): मणिबंध रेखाएं आयु से जोड़कर भी देखी जाती है।

  • सामुद्रिक शास्त्र और अन्य शास्त्रों के अनुसार एक मणिबंध रेखा 25 वर्ष की आयु को दर्शाती है। इसी तरह दो हो तो जातक की आयु 50, तीन हो तो 75 और अगर चार मणिबंध रेखा हो तो जातक बेहद सफल, संपन्न और दीर्घायु होता है।
  • मणिबंध रेखा से अगर कोई रेखा निकलकर चन्द्र पर्वत की तरफ जाए जीवन में विदेश यात्रा के योग बनते हैं।
  • दो या चार मणिबंध रेखाओं (Bracelet lines in Palmistry) का होना जातक के जीवन प्रथम संतान कन्या के होने का संकेत देती हैं और विषम जैसे एक और तीन मणिबंध रेखाएं (Bracelet lines) प्रथम संतान के पुत्र होने का संकेत देती हैं।
    :  विवाह रेखा

शादी के बिना समाज में स्त्री और पुरुष का रिश्ता मान्य नहीं होता। जीवन में विवाह के बारें में सटीक भविष्यवाणी करनी हो तो ज्योतिषी हाथों की विवाह रेखा (Marriage Lines in Palm) का अध्ययन करते हैं।

कहां होती हैं विवाह रेखा?: विवाह रेखा कनिष्टका यानि सबसे छोटी ऊंगली के निचले हिस्से में जिसे बुध पर्वत कहते हैं वहां आड़ी होती हैं। यह कई जातकों के हाथों में एक तो कई के हाथों में कई भी होती है।

विवाह रेखा का फल: एक से अधिक विवाह रेखाओं के संदर्भ में वह रेखा मान्य होती है जो सबसे अधिक गहरी और स्पष्ट हो बाकि रेखा संबंधों के बिछड़ने या टूटने के संकेत देती है।

  • अधिक विवाह रेखाएं तलाक, विवाहोत्तर संबंध, बेवफा रिश्तों आदि की संकेतक होती है।
  • अगर दो विवाह रेखाएं हैं और एक स्पष्ट बेहद गहरी और दूसरी महीन लेकिन बुध पर्वत तक विकसीत है तो यह जातक के जीवन में दो शादियों की सूचना देती है।
  • अगर विवाह रेखा ऊपर की तरफ आती हुई हृदय रेखा (Marriage Line Touches Heart Line) से मिले या फिर विवाह रेखा पर तिल हो या क्रॉस का निशान हो तो शादी में बहुत कठिनाइयां होती हैं।
  • विवाह रेखा स्वास्थ्य रेखा से स्पर्श करे तो भी विवाह नहीं होता है। अगर विवाह रेखा पर एक से अधिक द्वीप हों या काला तिल हो तो यह जीवन भर अविवाहित होने का भय पैदा करता है।
    : संतान रेखा

भाग्य में संतान सुख का प्रमाण ज्योतिष के अनुसार कई चीजों में होता है जैसे कुंडली या हस्त रेखाओं में। हाथ की संतान रेखा (Santan Rekha or Kids Line in Hands) भाग्य में संतान सुख की एक बेहद अहम निशानी है।

कहां होती है संतान रेखा? (Line of Children or Santan Rekha in Palmistry in Hindi): संतान रेखाएं ठीक विवाह रेखा के ऊपर होती हैं। बुध पर्वत यानि छोटी अंगुली के ठीक नीचे के भाग में विवाह रेखा होती है| वहीं मौजुद खड़ी रेखाएं संतान रेखा कहलाती हैं। संतान प्राप्ति के योगों को कई अन्य रेखाएं भी प्रभावित करती हैं जैसे मणिबंध रेखा, अंगुठे के नीचे पाई जाने वाली छोटी रेखा आदि।

कैसे पढ़े संतान रेखा (How to Read Santan Rekha): संतान रेखा स्पष्ट हैं तो इसका अर्थ है संतान अच्छी और माता पिता का सम्मान करने वाली होगी।

  • अस्पष्ट और टूटी रेखाएं बच्चें के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
  • इसके अलावा संतान योग को मणिबंध रेखाएं भी प्रभावित करती हैं। यदि पहली मणिबंध रेखा का झुकाव कलाई की तरफ है और वह हथेली में प्रविष्ट होती दिखे तो इसका अर्थ है जातक को संतान प्राप्ति में दुख होंगे।
    : भाग्य रेखा

हस्तरेखाओं में भाग्य रेखा (Fate Line in Palmistry in Hindi) को सबसे अहम माना जाता है।

कहां होती है भाग्य रेखा ? (Where is Fate Line in Hand): भाग्य रेखा हृदय रेखा के मध्य से शुरु होकर मणिबन्ध तक जाती है। इस रेखा का उद्गम अधिकतर मध्यमा या शनि पर्वत से होता है। सीधे शब्दों में समझें तो जो रेखा मध्यमा यानि पंजे की बीच वाली लंबी उंगुली के नीचे से शुरु होकर ऊपर तक जाती है उसे ही भाग्य रेखा कहते हैं। कई जातकों के हाथों में यह मणिबंध यानि कलाई की रेखाओं तक भी जाती है।

भाग्य रेखा का फल (Fate Line Reading in Hindi): सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस जातक के हाथों में भाग्यरेखा जितनी अधिक गहरी और लंबी होती है उसका भाग्य उतना अधिक अच्छा होता है। लेकिन भाग्य रेखा का फीका या कटा होना अशुभ माना जाता है।

  • मान्यता है कि जिस बिन्दु पर भाग्य रेखा को कोई रेखा काटती है उस वर्ष मनुष्य को भाग्य या धन की हानि होती है।
  • अगर भाग्य रेखा जगह-जगह से टूटी (Broken Fate Line in Palmisty) हुई हो और शनि पर्वत से मणिबंध तक भी तो भी इसका खास महत्व नहीं होता। टूटी रेखाएं जीवन में भाग्य के समय-समय पर साथ छोड़ देने की निशानी बताएं गए हैं।🙏🙏🙏🙏🙏
    : संतान रेखा

भाग्य में संतान सुख का प्रमाण ज्योतिष के अनुसार कई चीजों में होता है जैसे कुंडली या हस्त रेखाओं में। हाथ की संतान रेखा (Santan Rekha or Kids Line in Hands) भाग्य में संतान सुख की एक बेहद अहम निशानी है।

कहां होती है संतान रेखा? (Line of Children or Santan Rekha in Palmistry in Hindi): संतान रेखाएं ठीक विवाह रेखा के ऊपर होती हैं। बुध पर्वत यानि छोटी अंगुली के ठीक नीचे के भाग में विवाह रेखा होती है| वहीं मौजुद खड़ी रेखाएं संतान रेखा कहलाती हैं। संतान प्राप्ति के योगों को कई अन्य रेखाएं भी प्रभावित करती हैं जैसे मणिबंध रेखा, अंगुठे के नीचे पाई जाने वाली छोटी रेखा आदि।

कैसे पढ़े संतान रेखा (How to Read Santan Rekha): संतान रेखा स्पष्ट हैं तो इसका अर्थ है संतान अच्छी और माता पिता का सम्मान करने वाली होगी।

  • अस्पष्ट और टूटी रेखाएं बच्चें के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
  • इसके अलावा संतान योग को मणिबंध रेखाएं भी प्रभावित करती हैं। यदि पहली मणिबंध रेखा का झुकाव कलाई की तरफ है और वह हथेली में प्रविष्ट होती दिखे तो इसका अर्थ है जातक को संतान प्राप्ति में दुख होंगे।
    : मस्तिष्क रेखा

किसी इंसान की बुद्धिमानी, समझदारी और पढ़ाई के बारें में भविष्यवाणी करने के लिए मस्तिष्क रेखा (Head Lines Palmistry) का अध्ययन किया जाता है।

कहां होती है मस्तिष्क रेखा? (Head Line in Palmistry): हथेली के एक छोर से दूसरे छोर की तरफ जाने वाली रेखा मस्तिष्क रेखा कहलाती है। मस्तिष्क रेखा के पास से ही जीवन रेखा का उदय होता है। मस्तिषक रेखा से व्यक्ति की प्रतिभा, ऊर्जा, तर्कक्षमता आदि लक्षणों के बारें में जान सकते हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि मस्तिष्क रेखा हथेली के एक छोर से शुरु होकर दूसरे छोर तक ही जाएं। कई जातकों की हथेली (Head Line in Hand- Hindi) पर यह रेखा मध्य या हथेली के बीच तक ही सीमित होती है। या कई बार यह भाग्य रेखा से कटने के बाद क्षीण होकर खत्म हो जाती है।

मस्तिष्क रेखा का फल (Head Line Reading in Hindi): साफ, गहरी और लंबी मस्तिष्क रेखा जातक के अति कुशल और बुद्धिमान होने की निशानी है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अगर मस्तिष्क रेखा बेहद स्पष्ट, बिना किसी सहायक रेखा द्वारा क्रॉस और सीधी खत्म होने वाली हो तो यह जीवन में उच्च शिक्षा प्राप्ति के योग बनाती है।

  • हल्की और अंत में अंग्रेजी का वी आकार (Forked Head Line Meaning in Hindi) बनाने वाली मस्तिष्क रेखा विचारों के भटकाव को दर्शाती है।
  • अगर मस्तिष्क रेखा हाथ पर कहीं झुकी हुई है यानि ऊपर की बजाय नीचे की तरफ जाए तो यह पागलपन की निशानी होती है।✍✍
    : हृदय रेखा

जीवन में प्यार के सभी अहसासों और प्यार की सारी कहानी को हृदय रेखाएं अपने अंदर समा कर रहती है।

हृदय रेखा कहां होती है? (Heart Line in Hand): हथेली पर हृदय रेखा तर्जनी और मध्यमा के बीच से शुरु होकर हथेली के दूसरे छोर तक जाती है। कई जातकों की हथेली पर यह रेखा तर्जनी के निचले हिस्से से शुरु होती है तो कई जातकों की हथेली पर यह रेखा बेहद छोटी भी होती है।

हृदय रेखा का फल (Heart Line Reading in Hindi): इस रेखा का विश्लेषण (Heart Line Palmistry Meaning in Hindi) कर यह बताया जा सकता है कि जीवन में प्रेम विवाह का योग है या नहीं।

  • जिन जातकों के हाथों में गहरी और स्पष्ट हृदय रेखाएं हों जो तर्जनी या मध्यमा या गुरु या शुक्र पर्वत पर खत्म हो रही हो उन्हें जातक जीवन में अपार सफलता हासिल होती है और प्रेम संबंधों में कामयाबी मिलती है।
  • लेकिन अगर किसी जातक के हाथों में हृदय रेखा का अंत तर्जनी या मध्यमा के मूल यानि नीचे की तरफ झुका हो उनपर प्यार के मामलों में भरोसा नहीं करना चाहिए। ऐसे पुरुष या स्त्री बेहद कामुक और बेवफाई के भावों से युक्त होते हैं।

    : हस्तरेखा देखने के नियम

हर ज्योतिष शिक्षा की तरह हस्त रेखा परिक्षण (Palm Lines Reading in Hand) के लिए भी कुछ नियम हैं । अगर आप किसी का हाथ देखना या अपना हाथ दिखाना चाहते हैं तो आपको इन बातों का ज्ञान होना ही चाहिए। कुछ अन्य नियम (Rules to Read Palm Lines) इस प्रकार है:

  • सुबह के समय ही हाथ देखना चाहिए.
  • सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार हाथ दिखाने वाले जातक को अधिक खाना खाने के तुरंत बाद या भारी काम करने के बाद हाथ नहीं दिखाना चाहिए क्यूंकि ऐसे समय में हाथों में रक्त का प्रवाह भिन्न हो सकता है जिससे हथेली का रंग देखने में परेशानी आ सकती है।
  • ठंडे दिमाग और शांत चित्त होकर ही हाथ दिखाना चाहिए।
  • सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के दाएं यानि सीधे हाथ और महिलाओं के बाएं यानि उलटे हाथ को देख भविष्यवाणी करने की सलाह देते हैं।
  • दोपहर या रात्रि के समय हस्तरेखाओं का आंकलन करना वर्जित है। सबसे पहले मणिबंध फिर दोनों हाथों को जांचने के बाद ही भविष्यकथन की शुरुआत करनी चाहिए आदि।

नोट: आस्था और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है जिसे कतई पार ना करें। हस्त ज्योतिष या हस्त विज्ञान (Palmistry in Hindi) को अभी तक विज्ञान की कसौटी पर पूर्णत: खरा नहीं बताया गया है। धूर्त पंडितों और झोला छाप ज्योतिषियों से सावधान रहें। याद रखें कि कर्म ही प्रधान है, कर्म ही भूत है कर्म ही भविष्य और कर्म से ही आपका वर्तमान बन रहा है, कर्म पर ध्यान दें सब सही होगा।✍✍✍ : सूर्य रेखा

हिन्दू ज्योतिषशास्त्रानुसार कई बार लोग बड़ी-बड़ी खोजें और बेहद दुर्लभ कार्य कर जाते हैं लेकिन कोई उनकी तारीफ नहीं करता, कोई उन्हें नहीं पूछता, ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कमी यश रेखा या सूर्य रेखा की वजह से होती है।

कहां होती है सूर्य रेखा? (Surya Rekha in Hand:) सूर्य रेखा अनामिक ऊंगली यानि रिंग फिंगर के निचले क्षेत्र में होती है जो सूर्य पर्वत से शुरु होकर ऊपर की तरफ जाती है। सूर्य पर्वत से लेकर मणिबंध तक जाने वाली सूर्य रेखा को असाधारण माना जाता है। ऐसी रेखा कलाकारों, नेताओं या बड़े सितारों के हाथों में आसानी से देखी जाती है। कई लोगों के हाथों में यह रेखा होती ही नहीं है।

जानें सूर्य रेखा के बारें में विशेष बातें (Sun Line in Palmistry and its different meanings): टूटी हुई सूर्य रेखा या हथेली पर सूर्य रेखा का ना होना अशुभ माना जाता है। हालांकि यह आम बात होती है क्यूंकि जरूरी नहीं कि हर इंसान यश प्राप्त करें। कई बार तो बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के हाथ में भी यह रेखा नहीं होती।

जिन जातकों के हाथों में सूर्य रेखा ना हो उन्हें सूर्य देव का उपवास और सूर्य देवता को जल चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा शिवलिंग पर जल चढ़ाने और पीली वस्तुओं का दान देने से भी लाभ होता है। अगर सूर्य रेखा विवाह रेखा की किसी शाखा या अंगुठे की तरफ जाए तो यह विवाह के बाद भाग्योदय के संकेत देता है।
: ज्योतिष में फलकथन का आधार मुख्यतः ग्रहों, राशियों और भावों का स्वाभाव, कारकत्‍व एवं उनका आपसी संबध है।

ग्रहों को ज्योतिष में जीव की तरह माना जाता है – राशियों एवं भावों को वह क्षेत्र मान जाता है, जहाँ ग्रह विचरण करते हैं। ग्रहों का ग्रहों से संबध, राशियों से संबध, भावों से संबध आदि से फलकथन का निर्धारण होता है।
ज्योतिष में ग्रहों का एक जीव की तरह ‘स्‍वभाव’ होता है। इसके अलाव ग्रहों का ‘कारकत्‍व’ भी होता है। राशियों का केवल ‘स्‍वभाव’ एवं भावों का केवल ‘कारकत्‍व’ होता है। स्‍वभाव और कारकत्‍व में फर्क समझना बहुत जरूरी है।

सरल शब्‍दों में ‘स्‍वभाव’ ‘कैसे’ का जबाब देता है और ‘कारकत्‍व’ ‘क्‍या’ का जबाब देता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। माना की सूर्य ग्रह मंगल की मेष राशि में दशम भाव में स्थित है। ऐसी स्थिति में सूर्य क्‍या परिणाम देगा?

नीचे भाव के कारकत्‍व की तालिका दी है, जिससे पता चलता है कि दशम भाव व्यवसाय एवं व्यापार का कारक है। अत: सूर्य क्‍या देगा, इसका उत्‍तर मिला की सूर्य ‘व्‍यवसाय’ देगा। वह व्‍यापार या व्‍यवसाय कैसा होगा – सूर्य के स्‍वाभाव और मेष राशि के स्‍वाभाव जैसा। सूर्य एक आक्रामक ग्रह है और मंगल की मेष राशि भी आक्रामक राशि है अत: व्‍यवसाय आक्रामक हो सकता है। दूसरे शब्‍दों में जातक सेना या खेल के व्‍यवयाय में हो सकता है, जहां आक्रामकता की जरूरत होती है। इसी तरह ग्रह, राशि, एवं भावों के स्‍वाभाव एवं कारकत्‍व को मिलाकर फलकथन किया जाता है।

दुनिया की समस्त चल एवं अचल वस्तुएं ग्रह, राशि और भाव से निर्धारित होती है। चूँकि दुनिया की सभी चल एवं अचल वस्तुओं के बारे मैं तो चर्चा नहीं की जा सकती, इसलिए सिर्फ मुख्य मुख्य कारकत्‍व के बारे में चर्चा करेंगे।

सबसे पहले हम भाव के बारे में जानते हैं। भाव के कारकत्‍व इस प्रकार हैं –

प्रथम भाव : प्रथम भाव से विचारणीय विषय हैं – जन्म, सिर, शरीर, अंग, आयु, रंग-रूप, कद, जाति आदि।

द्वितीय भाव: दूसरे भाव से विचारणीय विषय हैं – रुपया पैसा, धन, नेत्र, मुख, वाणी, आर्थिक स्थिति, कुटुंब, भोजन, जिह्य, दांत, मृत्यु, नाक आदि।

तृतीय भाव : तृतीय भाव के अंतर्गत आने वाले विषय हैं – स्वयं से छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, शक्ति, मानसिक संतुलन आदि।

चतुर्थ भाव : इस भाव के अंतर्गत प्रमुख विषय – सुख, विद्या, वाहन, ह्दय, संपत्ति, गृह, माता, संबंधी गण,पशुधन और इमारतें।

पंचव भाव : पंचम भाव के विचारणीय विषय हैं – संतान, संतान सुख, बुद्धि कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य कार्य, दान, मनोरंजन, जुआ आदि।

षष्ठ भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं – रोग, शारीरिक वक्रता, शत्रु कष्ट, चिंता, चोट, मुकदमेबाजी, मामा, अवसाद आदि।

सप्तम भाव : विवाह, पत्‍नी, यौन सुख, यात्रा, मृत्यु, पार्टनर आदि विचारणीय विषय सप्तम भाव से संबंधित हैं।

अष्टम भाव : आयु, दुर्भाग्य, पापकर्म, कर्ज, शत्रुता, अकाल मृत्यु, कठिनाइयां, सन्ताप और पिछले जन्म के कर्मों के मुताबिक सुख व दुख, परलोक गमन आदि विचारणीय विषय आठवें भाव से संबंधित हैं।

नवम भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं – पिता, भाग्य, गुरु, प्रशंसा, योग्य कार्य, धर्म, दानशीलता, पूर्वजन्मों का संचि पुण्य।

दशम भाव : दशम भाव से विचारणीय विषय हैं – उदरपालन, व्यवसाय, व्यापार, प्रतिष्ठा, श्रेणी, पद, प्रसिद्धि, अधिकार, प्रभुत्व, पैतृक व्यवसाय।

एकादश भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं – लाभ, ज्येष्ठ भ्राता, मुनाफा, आभूषण, अभिलाषा पूर्ति, धन संपत्ति की प्राप्ति, व्यापार में लाभ आदि।

द्वादश भाव : इस भाव से संबंधित विचारणीय विषय हैं – व्यय, यातना, मोक्ष, दरिद्रता, शत्रुता के कार्य, दान, चोरी से हानि, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आंख, शय्यासुख, पैर आदि।
: ग्रहो के सामान्य योग जाने
👌 एक ही ग्रह यदि केंद्र और त्रिकोण का स्वामी हो तो वो योगकारक और राजयोग दाता होता है
👌राहु और केतु हमेसा वक्री चलते है तो इनकी दशाओं की चीजें लौटाई या वापिश आ जाती है
👌लग्नेश सूर्य के साथ हो तो विशेष फल दायक होता है
👌अष्टम भाव मे सभी ग्रह कमजोर होते है पर सूर्य और चन्द्रमा को अष्टमेश का दोष नही लगता तो वो बलबान ही रहते है
👌मंगल और शुक्र योग हो तो जातक दुराचारी होता है
👌नवमेश दशम भाव मे और दसमेश नवम भाव मे हो तो सबसे श्रेष्ठ राजयोग होता है
👌 शनि पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक और मोक्ष की इच्छा रखने वाला होता है
👌कोई भी ग्रह यदि वर्गोतम हो तो वो स्वराशि के अनुसार फल करता है
👌11 भाव में सभी ग्रह शुभ फल दायक होते है
👌लग्न से 6 भाव तक को पाताल भाव कहते है यदि ज्यादा ग्रह इन भावों में हो तो मनुष्य के गुण छिपे रहते है अपनी योगिता का प्रयोग करने का कम अवसर मिलता है और 7 भाव से 12 भाव आकाश भाव होते है इन भावों में यदि ग्रह हो तो मनुष्य के गुण सब को पता होते वो और लोगो को अपनी सेवा में रखता है
: विशोंत्तरी भावेश दशा फल :

(1) लग्नेश : लग्नेश की दशा सौभाग्य सूचक रहती है। शारारिक सुख, निरोगता, धनागम, ख्याति, कठिन कार्यो के लिये उद्यत आदि फल होते है। परन्तु स्त्री कष्ट देखा जाता है। लग्नेश की दशा मे शनि की अन्तर्दशा मे धन हानि, परिवार मे झगड़ा-बटवारा, शत्रुता, कष्ट होते है।
फलदीपिका अनुसार – यदि लग्न का स्वामी बलवान हो तो विश्व गौरवशाली स्थिति, सुखी जीवन व्यापन, निरोग पुष्ट शरीर, चहरे पर लावण्य, समृद्धि मे वृद्धि, वृद्धिगत चन्द्रकला के समान जीवन उन्नतिशील होता है। यदि लग्नेश बलहीन, अशुभ स्थान या प्रतिकूल हो तो कारावास, संज्ञान मे जीवन व्यापन, भयग्रस्त, रोग, मानसिक पीड़ा, अंतिम संस्कार मे भाग लेने वाला, पद का नुकसान व अन्य दुर्भाग्य होते है।

(2) द्वितीयेश : द्वितीयेश की दशा अशुभ सूचक होती है। धनेश की दशा मे धनलाभ, शारारिक कष्ट, मानहानि, पदावनति होती है। यदि धनेश पापयुत हो तो कारावास या मृत्यु भी हो जाती है। द्वितीयेश पापग्रह हो या पापग्रह से युत या दृष्ट हो या द्वितीय स्थान मे पापग्रह बैठा हो तो इस दशा मे भीषण आर्थिक क्षति होती है, दिवालिया बनने की नौबत तक आ जाती है।
द्वितीयेश की दशा मे शनि, मंगल, सूर्य तथा राहु की अन्तर्दशाये कष्टकर, भाई-स्वजन का मरण या विछोह कारक होती है। परन्तु द्वितीयेश शुभग्रह हो या शुभग्रह से युत या दृष्ट हो तो इस दशा मे धन-धान्य की वृद्धि और सन्तान सुख भी होता है।
फलदीपिका अनुसार – यदि द्वितीय भाव के स्वामी की दशा हो तो परिवार की वृद्धि, सुकन्या की प्राप्ति, सुस्वादु भोजन का आनन्द, व्याख्यान से अर्थ, भाषण की वाग्मिता और श्रोताओ की परिणामी प्रशंसा होती है। द्वितीयेश बलहीन, अशुभ स्थान या प्रतिकूल हो तो जातक लोगो से मूर्खता पूर्ण व्यवहार करेगा, अपने वचन और परिवार पर कायम नही रहेगा, आपत्तिजनक पत्र लिखेगा, नेत्र पीड़ा से ग्रस्त होगा, कठोर वाणी होगी, अनाप-शनाप खर्च करेगा, राजा की नाराजगी सहन करेगा।

(3) तृतीयेश : तृतीयेश की दशा मे निरंतर उत्थान-पतन होता रहता है। इसकी दशा कष्टकारक, चिंताजनक, साधारण आमदनी करने वाली होती है। यदि तृतीयेश शुभग्रह हो या शुभग्रह से युत हो तो दशा शुभ कारक और पापग्रह या पापग्रह से युत हो तो धनक्षय, झूठा कलंक लगना, मानहानि, शत्रु वृद्धि होती है।
अशुभ तृतीयेश की दशा मे शनि, मंगल, सूर्य तथा राहु की अन्तर्दशा हो तो भाई-बहन की मृत्यु, बन्धुजनो का विछोह, मानहानि आदि फल होते है। अधिकतर अनुभव मे आता है की तृतीयेश चाहे शुभ या अशुभ गृह हो उसकी दशा मे पापग्रह का अंतर आने पर स्वजन का विछोह होता ही है।
फलदीपिका अनुसार यदि तृतीय स्थान और उसका स्वामी बलवान है तो तृतीयेश की दशा आने पर जातक को भाइयो से पूर्ण सहयोग मिलता है। शुभ समाचार की प्राप्ति, साहस और वीरता प्रदर्शन का अवसर, सेना अध्यक्ष और सम्मान, जन सहयोग और अच्छे गुणो के लिये प्रसिद्ध होता है। यदि तृतीयेश कमजोर (बलहीन) हो तो उसकी दशा मे भाई और बहनो की हानि होगी, कार्य की आलोचना होगी और गुप्त शत्रु परेशान करेगे, जातक विपरीतता का शिकार होगा जिसके कारण अपमानित होगा और अपना गौरव खोयेगा।

(4) चतुर्थेश : चतुर्थश की दशा शुभ कारक मानी गई है। इसकी दशा मे वाहन, घर, भूमि आदि के लाभ, माता तथा मित्र व स्वयम को शारीरिक सुख होता है। चतुर्थेश सौम्यग्रह मे सौम्यग्रह की अन्तर्दशा आने पर घर, वाहन की श्री वृद्धि, मांगलिक कार्य, सर्वोतोमुखी प्रगति आदि फल होते है।
चतुर्थेश बलवान शुभग्रहो से दृष्ट हो तो नया मकान बनता है। मंगल की अन्तर्दशा आने पर गृह निर्माण, कृषि कार्यो से लाभ होता है। शुक्र की दशा आने पर वाहन लाभ लाभेश (एकादशेश) की दशा आने पर नवीन कारोबार, एकाधिक स्रोत से धनागम होता है। सूर्य की अन्तर्दशा आने पर नौकरी मे उन्नति, लाभ किन्तु पिता को धोर कष्ट होता है। लाभेश या चतुर्थेश दोनो दशम या चतुर्थ मे हो तो कारोबार करता है। लेकिन इस दशाकाल मे पिता को कष्ट होता है। विद्या लाभ, विश्विद्यालय की उच्च उपाधिया इस दशा काल मे प्राप्त होती है। यदि यह दशा विद्यार्थी कल मे नही मिले तो इस दशा कल मे विद्या विषयक उन्नति, और विद्या द्वारा यश की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश पापीग्रह हो या उसमे पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो बन्धु विरोध, बटवारा, कृषि हानि, पशु हानि, अर्थ क्षय, स्थानांतरण होता है। अस्त या वक्री ग्रह की अन्तर्दशा आने पर धोर कष्ट होता है।
फलदीपिका अनुसार – रिश्तो मे मधुर सम्बन्ध, कृषि मामलो मे सफलता, पत्नी से सुखद संबंध, वाहन, कृषि भूमि, घर तथा धन उच्च स्तर की प्राप्ति इस दशा काल मे होती है। यदि चतुर्थेश निर्बल हो तो माता, स्वजन, मित्रो को पीड़ा, घर, कृषिभूमि, मवेशियो के विनाश का खतरा और जल से खतरा होता है।

(5) पंचमेश : पंचमेश की दशा जीवन की सर्वतोमुखी उन्नति की सूचक है। इस दशा मे विद्याप्राप्ति, सम्मान प्राप्ति , सुबुद्धि, परीक्षा या प्रतियोगिता मे सफलता, मंगल कार्य, समाज व राज्य मे सम्मान, माता की मृत्यु या पीड़ा होती है। यदि संतान प्राप्ति योग हो तथा पुरुषग्रह हो तो पुत्र और स्त्रीग्रह हो तो कन्या संतति की प्राप्ति का योग रहता है। यदि पंचमेश शुभ ग्रह हो तो समस्त ऐश्वर्य और भोग, शुभग्रह की अन्तर्दशा मे ईश्वराधन, पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो पुत्रो पर विपत्ति, गृह कलह आदि होता है।
फलदीपिका अनुसार पंचम स्थान व पंचमेश बलवान हो तो पुत्र जन्म, भाइयो से खुशी सहयोग व रिश्ते, राजा का मंत्री बनना, सम्मान का सम्मान, पुण्य कार्यो मे भागीदारी और लोगो द्वारा उसकी प्रशंसा, दूसरो द्वारा अनेक प्रकार के व्यजन पांचवे भाव के स्वामी द्वारा व्युत्पन्न किये जाते है। यदि पंचमेश कम शक्ति या अशुभ स्थान मे हो तो उसकी दशा मे पुत्र हानि, दिमागी विचलितता, धोखाधड़ी से पीड़ित, उद्येश्य विहीन इधर-उधर भटकना, पेट के विकारो से पीड़ित, राजा का कोप भाजन होता है।

(6) षष्ठेश : छठे भाव के स्वामी की दशा मुख्यतः रोग वृद्धि या नवीन रोग सूचक होती है। इसकी दशा मे रोग वृद्धि, संतान को कष्ट, अधिकारियो से मतभेद, शत्रु भय, पदावनति, रोग-ऋण-रिपु होते है। यदि षष्ठेश पाप ग्रह हो तो मुक़दमेबाजी, प्लीहा, गुल्म, क्षय आदि रोगो से ग्रस्त होना पड़ता है।
फलदीपिका अनुसार यदि 6 ठा भाव व षष्ठेश बलवान है तो जातक की वीरता से शत्रु पर विजय, दशा काल मे रोग मुक्ति, उदार और शक्तिशाली, स्वस्थता का आनंद, वैभव और सृमद्धि षष्ठेश की दशा मे अनुभव मे आते है। यदि षष्ठेश बलहीन हो तो चोरी का भय, गरीबी, दूसरो के द्वारा जबर्जस्ती, रोगो से त्रस्त, नीच उपचार या अवांछनीय कार्यवाही मे शामिल, दूसरो की सेवा, अपमान, प्रतिष्ठा का ह्राष, शारीरिक क्षति होती है।

(7) सप्तमेश : जायेश या कलत्रेश की दशा कष्टकर ही होती है। इस दशा मे शोक शारीरिक कष्ट, मानसिक चिंता, आर्थिक कष्ट, अवनति, राज्य पक्ष से अपमान होता है। सप्तमेश शुभग्रह हो तो स्त्री को साधारण कष्ट और पापग्रह हो या पाप मध्यत्व मे हो तो स्त्री को विशेष शारीरिक कष्ट होता है, और पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो स्त्री, सम्बन्धी का शिकार, स्थानांतरण, गुर्दे के रोग होते है। यदि सप्तमेश क्रूर ग्रह हो और उसमे पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो स्त्री से वंचित होना पड़ता है।
फलदीपिका अनुसार यदि सप्तम भाव पूर्ण बलवान है तो सप्तमेश की दशा मे नए वस्त्र, आभूषण, प्रसन्नता से पत्नी के साथ जीवन व्यापन, विनम्रता या शारारिक शक्ति मे वृद्धि, घर मे परिणय जैसा शुभ समारोह होता है। आनंद दायक लघु यात्राये होती है। यदि सप्तमेश कमजोर हो तो जातक का दामाद (जामाता) पीड़ित होगा, विपरीत लिंग के अवांछनीय कृत्य के कारण पत्नी से तलाक या विछोह, दुष्ट महिलाओ से सम्बन्ध के कारण गुप्त रोगो का शिकार, उद्देश्य विहीन इधर-उधर भटकना होता है।

(8) अष्टमेश : रंध्रेश की दशा प्रत्येक प्रकार हानि कारक होती है। इसकी दशा मे मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट, मृत्यु भय, स्त्री मृत्यु, विवाह, स्त्री से विछोह या स्त्री चिररोगिनी होती है। यदि अष्टमेष पापग्रह हो और द्वितीयस्थ हो, तो निश्चित मृत्यु होती है। यदि अष्टमेश पापग्रह की दशा मे पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो शत्रु आघात से आहत, आर्थिक धोर कष्ट होता है।
फलदीपिका अनुसार यदि अष्टम का स्वामी पूर्ण बलवान हो तो उसकी दशा मे जातक समस्त ऋण अदा कर देता है। वह अपने व्यवसाय और अन्य कार्यो मे उन्नति करता है और जातक के समस्त विवाद समाप्त होते है। यदि बलहीन अष्टमेश की दशा हो तो महादुःख, बुद्धि का नाश, सम्भोग की तीव्र इच्छा, ईर्ष्या, मिर्गी, निर्धनता, फलहीन पर्यटन, प्रतिष्ठा खोना, अपमान, रोग होते है। यहा तक की ऐसे ग्रह की दशा मे मृत्यु भी हो सकती है।

(9) नवमेश : भाग्येश की दशा बिरले जातक को ही मिलती है क्योकि इसकी दशा मे जातक अत्यंत उच्च स्तर पर जाने मे समर्थ होता है। इसकी दशा मे तीर्थ यात्रा, भाग्योदय, दान-पुण्य, विद्या द्वारा उन्नति, भाग्यवृद्धि, सम्मान, राज्य से लाभ और किसी महान कार्य की पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। सभी अभावगत वस्तुऐ प्राप्त होती है। आर्थिक लाभ, राज्य सेवा मे उन्नति, योजना की आपूर्ति से यश, मान, धन, कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है। कहावत है कि ‘ वारे न्यारे ‘ इसकी दशा मे होते है। यदि नवमेश पापग्रह हो और उसमे पापग्रह की अन्तर्दशा या राहु शनि मंगल सूर्य की अंतर दशा हो तो विदेश यात्रा होती है।
फलदीपिका अनुसार यदि नवम का स्वामी बलवान हो तो जातक उसकी दशा मे समृद्धि, ख़ुशी धन का अपनी पत्नी, बच्चो, पोते, रिश्तेदारो के साथ लगातार आनंद लेगा, मेघावी कर्म करेगा, शाही पक्ष प्राप्त करेगा और देवताओ, ब्राह्मणो का सम्मान करेगा। यदि नवमेश कमजोर हो तो पत्नी और बच्चो को कष्ट, अपने पूर्व के इष्ट की नाराजी से अनेक प्रकार के कष्ट होते है। जातक कई अवांछनीय कार्यो मे सलग्न, पिता और भाई की मृत्यु और स्वयं दरिद्रता से पीड़ित होता है।

(10) दशमेश : कर्मेश या राज्येश की दशा भी उन्नति कारक होती है। इस दशा मे राज्याश्रय की प्राप्ति, धन लाभ, सम्मान वृद्धि, सुखोदय, पदोन्नति, शासकीय सेवा, उच्चपद प्राप्त होता है। इसकी दशा मे माता को कष्ट होता है। दशमेश की दशा मे पापग्रह की अन्तर्दशा आने पर मित्रो से विछोह, द्रव्यहानि, अपमान होता है। दशमेश नीचग्रह मे पापग्रह की दशा आने पर मातृ विछोह, यशहानि, वित्तक्षय आदि झंझटे झेलनी पड़ती है।
फलदीपिका अनुसार दशम का स्वामी बलवान हो तो उसकी दशा मे सभी उद्यमो मे सफलता, आरामदायक जीवन, नाम और प्रसिद्धि, अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जातक अपने को ऐसे कार्यो मे शामिल करता है जिससे वह अपमानित होता है। दशमेश बलहीन हो तो सभी उद्यमो में असफलता, दुष्ट कार्यो मे शामिल, मातृभूमि से दूर रहना जिससे परेशानी, अवांछित घटनाओ का सामना और सम्मान मे क्षति होती है।

(11) एकादशेश : लाभेश की दशा साधारणतया शुभ फल दायक होती है। इसकी दशा मे धन लाभ, ख्याति, व्यापार मे प्रचुर लाभ, आय के नए स्रोत, पिता की मृत्यु होती है। यदि एकादशेश क्रूर ग्रह से दृष्ट हो तो रोगोत्पादक, यदि पापग्रह या शनि, राहु, मंगल, सूर्य की अन्तर्दशा हो तो कृषि कार्यों से हानि, धनहानि, सम्मान हानि उठानी पड़ती है।
फलदीपिका अनुसार लाभेश बलवान हो तो समृद्धि मे लगातार वृद्धि, निकट सम्बन्धी से मिलन, अनेक नौकरो से सेवाशुश्रा, पारवारिक ख़ुशी और महान सपन्नता होती है। यदि एकादश भाव का स्वामी प्रतिकूल व अशुभ स्थान मे हो तो उसकी दशा मे जातक के बड़े भाई को कष्ट, बेटा बीमार, स्वयं दुर्गति और धोखे का शिकार व कान के रोग से पीड़ित होता है।

(12) द्वादशेश : व्ययेश की दशा अशुभ होती है। इसमे चिंताए, धन हानि, शारीरिक कष्ट, विपत्तिया, व्याधिया, कुटम्बियो को कष्ट होता है। द्वादशेश की दशा मे पापग्रह की अन्तर्दशा आने पर कुटम्बियो से मतभेद. पुरुषार्थ की क्षति, अपमान होता है। द्वादशेश की दशा मे अष्टमेश की अन्तर्दशा आने पर विदेश यात्राऐ और विदेश के कार्य, विदेश निवास होता है।
फलदीपिका अनुसार व्यय भाव के स्वामी की दशा मे जातक अच्छे कारणो से असाधारण खर्च करेगा। जातक मेघावी कृत्य करेगा और पापो के प्रभाव से मुक्त होगा। जातक शाही सम्मान से सम्मानित किया जायेगा। बाहरवे स्थान का स्वामी कमजोर हो तो उसकी दशा मे अनेक रोग, अपमान, गुलामी होती है। जातक की सारी संपत्ति चन्द्रमा के अंधेर पक्ष की तरह गायब हो जाती है।

➧ फलदीपिका अनुसार दशा के अच्छे प्रभाव जब दशा स्वामी 6, 8 12 भाव मे नही हो, वह स्वग्रही, या उच्च या वक्री हो। शत्रु राशि या नीच या अस्त ग्रह की दशा मे बुरे प्रभाव होते है।
➧ फलदीपिका अनुसार ग्रहो द्वारा इंगित प्रभाव अच्छे या बुरे उनकी दशा, अन्तर्दशा मे देखे जाते है। केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी योगकारक कहलाते है।
➧ फलदीपिका अनुसार वर्गोत्तमी ग्रह बहुत अच्छे प्रभाव देता है। ग्रह की नीच राशि मे वर्गोत्तमी ग्रह या अस्त ग्रह मिश्रित प्रभाव देता है। 6, 8, 12 भाव के स्वामी की दशा मे उनकी अंतर दशा आने पर विपरीत प्रभाव होते है। इसी प्रकार 6, 8, 12 भाव मे स्थित ग्रहो की दशा, अन्तर्दशा मे भी विपरीत प्रभाव होते है।
➧ फलदीपिका अनुसार क्रूर (हानिकारक) ग्रहो की दशा मे घर मे चोरी, शत्रुओ द्वारा कष्ट, महादुःख होता है। जन्म नक्षत्र से 3, 5, 7 नक्षत्र के स्वामी की अंतर दशा मे चोरी, शत्रु द्वारा कष्ट, महादुःख होता है। इसी प्रकार अशुभ (हानिकारक) ग्रह की दशा, चंद्र राशि स्वामी या अष्ठम के स्वामी की अंतर दशा मे जातक के घर मे चोरी, शत्रु से कष्ट और महादुःख होता है।
➧ फलदीपिका अनुसार जन्म समय की दशा से शनि की दशा चौथी, गुरु की दशा छठी, मंगल और राहु की दशा पांचवी तथा राशि के अंतिम अंशो मे ग्रह की दशा, 6, 8, 12 भाव के स्वामी की दशा दुर्भाग्य और पीड़ा दायक होती है। (नोट : कोई मंगल की दशा मे जन्मा है तो शनि की दशा चौथी, शुक्र दशा मे जन्मा है तो राहु की दशा पांचवी, गुरु की दशा छठी और केतु मे जन्मा है तो मंगल की दशा पांचवी होगी।)

बृहत्पाराशर होरा शास्त्र अनुसार भावेश दशा फल :
● यदि कर्म भाव का स्वामी शुभ भाव, उच्च राशि आदि मे अपनी दशा मे अनुकूल प्रभाव देता है वही कर्म भाव का स्वामी अशुभ भाव, नीच राशि मे प्रतिकूल प्रभाव देता है। यह सिद्ध करता है कि अशुभ ग्रह उच्च राशि, शुभ भाव मे प्रतिकूल प्रभाव नही देगा और शुभ ग्रह अशुभ भाव, नीच राशि मे प्रतिकूल प्रभाव देगा।

● लग्न के स्वामी की दशा मे तंदुरुस्ती; धन भाव के स्वामी की दशा मे दुर्गति या मृत्यु की सम्भावना; सहज भाव के स्वामी की दशा प्रतिकूल; बंधु भाव के स्वामी की दशा मे गृह और भूमि का अधिग्रहण; पुत्र भाव के स्वामी की दशा मे शिक्षा के क्षेत्र मे प्रग्रति, बच्चो से ख़ुशी; अरि स्वामी की दशा मे शत्रु से खतरा, ख़राब स्वास्थ्य होता है। युवती भाव के स्वामी की दशा मे जातक की मृत्यु, जातक की पत्नी को संकट; रंध्र के स्वामी की दशा मे मृत्यु, वित्तीय घाटा; धर्म भाव के स्वामी की दशा मे शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति, धर्मान्धता, अप्रत्यशित आर्थिक लाभ; कर्म भाव के स्वामी की दशा मे सरकार से मान्यता और सम्मान; लाभ भाव के स्वामी की दशा मे धनार्जन मे बाधा, संभवतया रोग; व्यय भाव के स्वामी की दशा मे रोगो से कष्ट और खतरा होता है।

➤ ग्रह शुभ भाव मे स्थित हो तो उसकी दशा आने पर दशा मे अनुकूल फल देता है। ग्रह जो अरि, रंध्र, व्यय स्थान मे हो तो अपनी दशा मे प्रतिकूल फल देता है। इसलिए यह आवश्यक है कि जन्म के समय और दशा के प्रारंभ मे एक ग्रह की स्थिति को दशा प्रभावो के आकलन के लिए ध्यान मे रखा जाना चाहिये।

● अरि, रन्ध्र, व्यय भाव के स्वामियो की दशा अनुकूल हो सकती है यदि वे त्रिकोण के स्वामी से जुड़े हो या यदि केंद्र का स्वामी त्रिकोण या त्रिकोण का स्वामी केंद्र मे हो से युति हो। जिस ग्रह पर केंद्र अथवा त्रिकोण के स्वामियो की दृष्टि हो उसकी दशा भी अनुकूल होती है। यदि धर्म भाव का स्वामी लग्न मे हो या लग्नेश धर्म भाव मे हो तो दोनो की दशा अत्यंत लाभकारी, अनुकूल, शुभ, राज्य अधिग्रहण कारक होती है।

● सहज, अरि, लाभ भाव के स्वामी और इन तीनो भावो मे स्थित ग्रह, और इनसे युत ग्रह की दशा प्रतिकूल होती है। मारक भाव (धन, युवती) के स्वामियो से सम्बंधित ग्रह और धन, युवती, रंध्र भावो मे स्थित ग्रहो की दशा प्रतिकूल प्रभाव देती है। इस प्रकार दशा को एक ग्रह की स्थिति और दूसरे के साथ एक ग्रह के रिश्ते को ध्यान मे रखते हुए अनुकूल या प्रतिकूल माना जाना चाहिये।
: जई की दलिया खाने के सेहतमंद फायदे

क्या है ओटमील ? :

✻ जई के दलिया को ओटमील कहा जाता है

✻ यह फाइबर और कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट्स का अच्छा स्रोत है.

✻ इसमें घुलनशील व अघुलनशील दोनों तरह के फाइबर होते हैं.

✻ फॉलिक एसिड से भरपूर ओट्स बढ़ते बच्चों के लिए एक हेल्दी आहार है

✻ ओट्स में कैल्शियम, ओमेगा ३-फैटी एसिड, फोलेट, पोटैशियम, जिंक, मैग्नीज़, आयरन, विटामिन बी व ई भरपूर मात्रा में होते हैं.

ओटमील की खासियत :

✻ ओटमील को बनाने में समय कम लगता है और ये आसानी से पक जाता है.

✻ इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर की वजह से देर तक पेट भरा रहता है.

सेहतमंद ओटमील(जई की दलिया) :

✻ ओटमील बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, जिससे हृदय स्वस्थ रहता है. इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर बीटा ग्लूकॉन तत्व की वजह से बैड कोलेस्ट्रॉल जमा नहीं हो पाता है, एक रिसर्च के मुताबिक़ अगर रोज़ाना ओट्स का सेवन किया जाए, तो बैड कोलेस्ट्रॉल ७ फ़ीसदी तक कम हो सकता है.

✻ इसके सेवन से आंतों की सफ़ाई ठीक से होती है और क़ब्ज़ की समस्या भी नहीं होती है.

✻ वज़न कम करना है, तो ओट्स खाएं. इसमें कैलोरी कम होती है. एक कप ओट्स में केवल १३० कैलोरी होती है.

✻ इसे खाने से पेट देर तक भरा रहता है.

✻ डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए ओटमीट बेहद फ़ायदेमंद होता है. इसके सेवन से टाइप २ डायबिटीज़ होने का ख़तरा कम हो जाता है. इसमें मौजूद हाई फाइबर और कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट्स पूरे आहार को शर्करा में बदलने की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं, जिसकी वजह से रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ता नहीं है.

✻ ओटमील खाने से ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है.

✻ ओट्स इम्युनिटी को मज़बूत करने में भी सहायक होता है.

✻ ओट्स पाचनतंत्र के लिए अच्छा होता है. इसमें मौजूद फाइबर पाचनतंत्र को स्ट्रॉन्ग बनाते हैं और इसे खाने से एसिडिटी, पेट में जलन और अपच नहीं होती है.

✻ ओट्स में लिगनन और एन्टेरोलैक्टोन जैसे फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं, जो स्तन व दूसरे हार्मोनल कैंसर के ख़तरे को कम करता है.

✻ इसे खाने से स्ट्रेस भी कम होता है. फाइबर और मैग्नीशियम की वजह से मस्तिष्क में सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ जाती है, जिसकी वजह से मूड अच्छा हो जाता है.

जई की दलिया(ओटमील) को पकाने के कुछ तरीके :

✻ ओटमील को पानी और दूध दोनों में पकाया जा सकता है. दूध में पकाने से इसमें प्रोटीन और कैल्शियम और बढ़ जाते हैं.

✻ ओटमील से बनी खीर में फाइबर, विटामिन्स व मिनरल्स बढ़ाने के लिए इसमें स्ट्रॉबेरीज़, ब्लूबेरीज़, सेब, केला जैसे फल भी डाल सकते हैं.

✻ इसे सूखा भी खाया जा सकता है. अगर इसे सूखा खाना थोड़ा बोरिंग लगे, तो इसमें काजू, बादाम, किशमिश मिलाकर खाएं. मीठा अगर पसंद नहीं, तो आप इसे पोहा की तरह भी पका सकते हैं. पोहा की जगह ओट्स का इस्तेमाल करें.

✻ ओट्स को दही में मिलाकर भी खाया जा सकता है.

✻ ओट्स की चाट भी बनाई जा सकती है. चाट बनाने के लिए ओटमील में बारीक़ कटे हुए टमाटर, प्याज़, हरी मिर्च, हरा धनिया मिलाकर ऊपर से नींबू निचोड़ कर खाएं.

वंदेमातरम
: थायराइड दूर करने के 7 अचूक आयुर्वेदिक उपाय

टेंशन, खाने में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल, दवाओं के साइड इफेक्ट के अलावा अगर परिवार में किसी को पहले से थायराइड की समस्या है तो भी इसके होने की संभावना ज्यादा रहती है। पुरूषों से ज्यादा महिलाएं इस रोग का शिकार होती हैं। जिसकी वजह से कई तरह की दूसरी बीमारियों के होने का भी खतरा बना रहता है। तो इस बीमारी को आयुर्वेदिक उपायों द्वारा कैसे दूर किया जा सकता है जानेंगे

थायराइड ठीक करने के आयुर्वेदिक उपाय

  1. इसमें हम शिग्रु पत्र, कांचनार, पुनर्नवा के काढ़ों का प्रयोग कर सकते हैं। काढ़ों का प्रयोग करने के लिए हमें 30 से 50 मिली काढ़ा खाली पेट लेना चाहिए।
  2. जलकुंभी, अश्वगंधा या विभीतकी का पेस्ट ग्वाटर के ऊपर लगाएं। पेस्ट को तब तक लगाना है जब तक की सूजन कम न हो जाए। रोग से पीड़ित इन्हीं पौधों के स्वरस का प्रयोग भी कर सकते हैं।
  3. अलसी के 1 चम्मच चूर्ण का प्रयोग इस बीमारी में कर सकते हैं।
  4. इस बीमारी में नारियल के तेल का प्रयोग भी कर सकते हैं । 1 से 2 चम्मच नारियल का तेल गुनगुने दूध के साथ में खाली पेट सुबह-शाम लेने से भी इस रोग में फायदा होता है।
  5. इस बीमारी में विभीतिका का चूर्ण, अश्वगंधा का चूर्ण और पुश्करबून का चूर्ण भी 3 ग्राम शहद के साथ में या गुनगुने पानी के साथ में दिन में दो बार प्रयोग कर सकते हैं।
  6. इस बीमारी में धनिये का पानी पी सकते हैं। धनिये के पानी को बनाने के लिए शाम को तांबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें 1 से 2 चम्मच धनिये को भिगो दें और सुबह इसे अच्छी तरह से मसल कर छान कर धीरे-धीरे पीने से फायदा होगा।
  7. इस बीमारी में पंचकर्मा की क्रियाएं जिसमें शिरो अभ्यंगम, पाद अभ्यंगम, शिरोधारा, वस्ति, विरेचन, उद्वर्तन और गले के क्षेत्र या थायराइड ग्रंथि पर हम धारा कर सकते हैं। इसमें नस्यम को हम घर पर कर सकते हैं। नस्यम करने के लिए गाय के घी को दो-दो बूंद पिघला के हम नाक में डालने से इस बीमारी में लाभ मिलता है।
    थायराइड में क्या करें
  8. इन रोगियों को नियमित रूप से 1 गिलास दूध का सेवन करना चाहिए। इन रोगियों को अगर फल खाने हैं तो आम, शहतूत, तरबूज़ और खरबूज का सेवन कर सकते हैं।
  9. खाने में दालचीनी, अदरक, लहसुन, सफेद प्याज, थाइम और स्ट्रॉबेरी की पत्तियों का प्रयोग बढ़ा देना चाहिए। इन रोगियों को खाना पकाने के लिए नारियल तेल का प्रयोग करना चाहिए। इन रोगियों को लघु और सुपाच्य भोजन करना चाहिए, खिचड़ी का प्रयोग कर सकते हैं।
  10. ऐसे रोगियों को सुबह 10 से 15 मिनट गुनगुनी धूप भी लेनी चाहिए। इस बीमारी में खासौतर से सूर्य नमस्कार, सर्वांगासन, मत्स्यासन, नौकासन का प्रयोग कर सकते हैं और प्रायाणाम में अनुलोम-विलोम और उज्जायी का प्रयोग करें।

थायराइड में क्या न करें

  1. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को खाने में उन चीज़ों का परहेज करना चाहिए जिसे पचाने में परेशानी होती हो।
  2. बहुत ज़्यादा ठंडे, खुष्क पदार्थो का सेवन नहीं करना है।
  3. बहुत ज़्यादा मिर्च-मसालेदार, तैलीय, खट्टे पदार्थों का प्रयोग नहीं करना है।
  4. दही का प्रयोग नहीं करना है।
  5. बासी खाद्य-पदार्थ या जिनमें एडेड शुगर है उनका प्रयोग नहीं करना है।
  6. इस बीमारी में हमें पालक, शकरकंदी, बंदगोभी, फूलगोभी, मूली, शलजम, मक्का, सोया, रेड मीट, कैफ़ीन और रिफाइंड ऑयल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. बहुत ज़्यादा शारीरिक परिश्रम नहीं करना चाहिए और बहुत ज़्यादा यौन क्रिया में सम्मिलत नहीं होना चाहिए।
    इन सभी चीज़ों को फॉलो करके आप हाइपर थायराइड को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं।
    : रसोई में रखी ये चीजें दूर करेंगी इन 5 तरह के दर्द को, आप भी जानिए

1 हींग – यह पेट दर्द के लिए अचूक दवा है। न केवल पेट दर्द, बल्कि गैस, बदहजमी और पेट फूलने की समस्या में भी इसका सेवन लाभकारी है। दर्द होने पर हींग का घोल पेट पर लगाना भी असरकारी होता है।
2 अदरक – गर्म प्रकृति होने के कारण यह सर्दी जनित दर्द में फायदेमंद है। सर्दी खांसी से उपजा दर्द या फिर सांस संबंधी तकलीफ, जोड़ों के दर्द, ऐंठन और सूजन में यह लाभकारी है।
3 ऐलोवेरा – जोड़ों के दर्द, चोट लगने, सूजन, घाव एवं त्वचा संबंधी समस्याओं से होने वाले दर्द में एलोवेरा का गूदा, हल्दी के साथ हल्का गर्म करके बांधने पर लाभ होता है।
4 सरसों – सरसों का तेल शारीरिक दर्द, घुटनों के दर्द, सर्दी जनित दर्द में बेहद लाभकारी है। सिर्फ इसकी मसाज करने से दर्द में आराम होता है और त्वचा में गर्माहट पैदा होती है।
5 लौंग – दांत व मसूड़ों के दर्द, सूजन आदि में लौंग काफी लाभदायक है। दर्द वाली जगह पर लौंग का पाउडर या लौंग के तेल में भीगा रूई का फोहा रखना बेहद असरकारक होगा।
: ☑​ कृष्ण ने एक सच्चाई बताई थी:-​​मरना सभी को है…​​लेकिन मरना कोई नहीं चाहता…​​आज परिस्थिति और भी विषम हैं​​भोजन सभी को चाहिए लेकिन..​​खेती करना कोई नहीं चाहता​​पानी सभी को चाहिए लेकिन..​​पानी बचाना कोई नहीं चाहता..​​दूध सभी को चाहिए लेकिन …​​गाय पालना कोई नहीं चाहता…​​छाया सभी को चाहिए लेकिन…​​पेड़ लगाना और उसे​​जिन्दा रखना कोई नहीं चाहता…​​बहु सभी को चाहिए पर…​​बेटी बचाना कोई नहीं चाहता…​​मेसेज पढ़कर वाह वाह करना सभी जानते हैं​​लेकिन जागरूकता फैलाने के लिए फॉरवर्ड करना कोई नहीं चाहता…​

   *जिम्मेदार नागरिक बने।

: ज्योतिष मंथन

शीर्षक:- वक्री ग्रह

ज्योतिष में ग्रहों के तमाम स्थितियां होती हैं, ग्रहों के गति के आधार पर तीन तरह की स्थिति पाई जाती है- 1:-मार्गी 2:-वक्री 3:-अतिचारी।।

मार्गी:- जो ग्रह अपनी गति से सीधा चल रहा हो उसे मार्गी कहते हैं।।

वक्री:- ग्रहों का उल्टा चलना है सीधे चलते चलते अपोजिट चलना उसे वक्री कहते हैं ।।

अतिचारी:- सामान्य गति से ज्यादा गति में चलना अतिचारी कहते हैं, वास्तव में ग्रह कभी उल्टे या पीछे नहीं चलते, उनकी गति के कारण एक आभास होता है, जिन्हें वक्री होना कहते हैं, ग्रहों का वक्री होना एक प्रक्रिया है, ग्रहों का वक्री होना जिंदगी में बहुत बड़ा असर डालता है।।

वक्री ग्रहों के परिणाम:- कुंडली में जो ग्रह मार्गी हैं (सामान्य चाल के) उनके परिणाम अलग होते हैं ,लेकिन अगर कोई ग्रह आपकी कुंडली में या ब्रह्मांड में वक्री हो जाए तो उसके परिणाम निश्चित रूप से आपके जिंदगी में बदल जाएंगे ऐसा माना जाता है कुंडली में कोई ग्रह वक्री हो तो उसके परिणाम उल्टे हो जाते हैं।।

जैसे वो निगेटिव है तो वह पॉजिटिव हो जाता है व पॉजिटिव है तो नेगेटिव हो जाता है, ऐसा ठीक ठीक नहीं कह सकते, जब कोई ग्रह वक्री होता है तो एक साथ वह दो भावों को प्रभावित करता है जैसे वह जिस भाव में है, उसको प्रभावित करेगा व उसके पहले भाव को भी प्रभावित करेगा।।

जब कोई ग्रह वक्री हो जाता है तो उसकी दृष्टि भी ज्यादा हो जाती है, ऐसे में उसकी दृष्टि काफी सारे भावों पर पड़ने लगती है ,इसलिए ग्रह अत्यधिक शक्तिशाली हो जाते हैं, जब वो ग्रह वक्री हो जाते हैं,सूर्य चंद्र कभी वक्री नही होते, राहु केतु सदा वक्री रहते हैं।।


: ग्रहो के सामान्य योग जाने
👌 एक ही ग्रह यदि केंद्र और त्रिकोण का स्वामी हो तो वो योगकारक और राजयोग दाता होता है
👌राहु और केतु हमेसा वक्री चलते है तो इनकी दशाओं की चीजें लौटाई या वापिश आ जाती है
👌लग्नेश सूर्य के साथ हो तो विशेष फल दायक होता है
👌अष्टम भाव मे सभी ग्रह कमजोर होते है पर सूर्य और चन्द्रमा को अष्टमेश का दोष नही लगता तो वो बलबान ही रहते है
👌मंगल और शुक्र योग हो तो जातक दुराचारी होता है
👌नवमेश दशम भाव मे और दसमेश नवम भाव मे हो तो सबसे श्रेष्ठ राजयोग होता है
👌 शनि पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक और मोक्ष की इच्छा रखने वाला होता है
👌कोई भी ग्रह यदि वर्गोतम हो तो वो स्वराशि के अनुसार फल करता है
👌11 भाव में सभी ग्रह शुभ फल दायक होते है
👌लग्न से 6 भाव तक को पाताल भाव कहते है यदि ज्यादा ग्रह इन भावों में हो तो मनुष्य के गुण छिपे रहते है अपनी योगिता का प्रयोग करने का कम अवसर मिलता है और 7 भाव से 12 भाव आकाश भाव होते है इन भावों में यदि ग्रह हो तो मनुष्य के गुण सब को पता होते वो और लोगो को अपनी सेवा में रखता है

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