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ज्योतिष ज्ञान
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जन्मकुंडली के मारक ग्रह परिचय
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मेष लग्न👉 के लिए मारकेश शुक्र, वृषभ👉 लग्न के लिये मंगल,
मिथुन👉 लगन वाले जातकों के लिए गुरु,
कर्क👉 और सिंह राशि वाले जातकों के लिए शनि मारकेश हैं।
कन्या लग्न👉 के लिए गुरु,
तुला👉 के लिए मंगल, और वृश्चिक👉 लग्न के लिए शुक्र मारकेश होते हैं, जबकि
धनु👉 लग्न के लिए बुध,
मकर👉 के लिए चंद्र,
कुंभ👉 के लिए सूर्य, और
मीन👉 लग्न के लिए बुध मारकेश नियुक्त किये गये हैं।

सूर्य जगत की आत्मा तथा चंद्रमा अमृत और मन हैं इसलिए इन्हें मारकेश होने का दोष नहीं लगता इसलिए ये दोनों अपनी दशा-अंतर्दशा में अशुभता में कमी लाते हैं। मारकेश का विचार करते समय कुण्डली के सातवें भाव के अतिरिक्त, दूसरे, आठवें, और बारहवें भाव के स्वामियों और उनकी शुभता-अशुभता का भी विचार करना आवश्यक रहता है, सातवें भाव से आठवां द्वितीय भाव होता है जो धन-कुटुंब का भी होता हैं, इसलिए सूक्ष्म विवेचन करके ही फलादेश क‌िया जाता है।

शास्त्र में शनि को मृत्यु एवं यम का सूचक माना गया है। उसके त्रिषडायाधीय या अष्टमेश होने से उसमें पापत्व तथा मारक ग्रहों से संबंध होने से उसकी मारक शक्ति चरम बिंदु पर पहुंच जाती है। तात्पर्य यह है कि शनि स्वभावतः मृत्यु का सूचक है। फिर उसका पापी होना और मारक ग्रहों से संबंध होना- वह परिस्थिति है जो उसके मारक प्रभाव को अधिकतम कर देती है।

इसीलिए मारक ग्रहों के संबंध से पापी शनि अन्य मारक ग्रहों को हटाकर स्वयं मुख्य मारक हो जाता है। इस स्थिति में उसकी दशा-अंतर्दशा मारक ग्रहों से पहले आती हो तो पहले और बाद में आती हो तो बाद में मृत्यु होती है। इस प्रकार पापी शनि अन्य मारक ग्रहों से संबंध होने पर उन मारक ग्रहों को अपना मारकफल देने का अवसर नहीं देता और जब भी उन मारक ग्रहों से आगे या पहले उसकी दशा आती है उस समय में जातक को काल के गाल में पहुंचा देता है।मारकेश अर्थात-मरणतुल्य कष्ट या मृत्यु देने वाला वह ग्रह जिसे आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं। अलग-अलग लग्न के ‘मारक’ अधिपति भी अलग-अलग होते हैं। मारकेश की दशा जातक को अनेक प्रकार की बीमारी, मानसिक परेशानी, वाहन दुर्घटना, दिल का दौरा, नई बीमारी का जन्म लेना, व्यापार में हानि, मित्रों और संबंध‌ियों से धोखा तथा अपयश जैसी परेशानियां आती हैं।

जन्मकुण्डली का सामयिक विशलेषण करने के पश्चात ही यह ज्ञात हो सकता है कि व्यक्ति विशेष की जीवन अवधि अल्प, मध्यम अथवा दीर्घ है। जन्मांग में अष्टम भाव, जीवन-अवधि के साथ-साथ जीवन के अन्त के कारण को भी प्रदर्शित करता है। अष्टम भाव एंव लग्न का बली होना अथवा लग्न या अष्टम भाव में प्रबल ग्रहों की स्थिति अथवा शुभ या योगकारक ग्रहों की दृष्टि अथवा लग्नेश का लग्नगत होना या अष्टमेश का अष्टम भावगत होना दीर्घायु का द्योतक है।

मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए||मारकेश-निर्णय के प्रसंग में यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि पापी शनि का मारक ग्रहों के साथ संबंध हो तो वह सभी मारक ग्रहों का अतिक्रमण कर स्वयं मारक हो जाता है। इसमें संदेह नहीं है।

पापी या पापकृत का अर्थ है पापफलदायक। कोई भी ग्रह तृतीय, षष्ठ, एकादश या अष्टम का स्वामी हो तो वह पापफलदायक होता है। ऐसे ग्रह को लघुपाराशरी में पापी कहा जाता है। मिथुन एवं कर्क लग्न में शनि अष्टमेश, मीन एवं मेष लग्न में वह एकादशेश, सिंह एवं कन्या लग्न में वह षष्ठेश तथा वृश्चिक एवं धनु लग्न में शनि तृतीयेश होता है। इस प्रकार मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु एवं मीन इन आठ लग्नों में उत्पन्न व्यक्ति की कुंडली में शनि पापी होता है। इस पापी शनि का अनुच्छेद 45 में बतलाये गये मारक ग्रहों से संबंध हो तो वह मुख्य मारक बन जाता है। तात्पर्य यह है कि शनि मुख्य मारक बन कर अन्य मारक ग्रहों को अमारक बना देता है और अपनी दशा में मृत्यु देता है।

मारकेश ग्रह का निर्णय करने से पूर्व योगों के द्वारा अल्पायु, मध्यायु या दीर्घायु है, यह निश्चित कर लेना चाहिए क्योंकि योगों द्वारा निर्णीत आयु का समय ही मृत्यु का संभावना-काल है और इसी संभावना काल में पूर्ववर्णित मारक ग्रहों की दशा में मनुष्य की मृत्यु होती है। इसलिए संभावना-काल में जिस मारक ग्रह की दशा आती है वह मारकेश कहलाता है। इस ग्रंथ में आयु निर्णय के लिए ग्रहों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. मारक लक्षण
  2. मारक एवं
  3. मारकेश।

जो ग्रह कभी-कभी मृत्युदायक होता है उसे मारक लक्षण कहते हैं। जिन ग्रहों में से कोई एक परिस्थितिवश मारकेश बन जाता है वह मारक ग्रह कहलाता है और योगों के द्वारा निर्णीत आयु के सम्भावना काल में जिस मारक ग्रह की दशा-अंतर्दशा में जातक की मृत्यु हो सकती है वह मारकेश कहलाता है


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नीचभंग
जातको की जन्म कुंडली में नीचभंग राजयोग होता हैं वो जातक चट्टानो से जल निकालने की क्षमता रखते हैं । ऐसे जातक बहुत अधिक मेहनती होते है, और अपने दम पर एक मुकाम हासिल करते हैं । ये जातक जिस क्षेत्र में भी जाते हैं वही अपनी अमिट छाप बना देते हैं । चाहे दुनिया इनके पक्ष में हो या विपक्ष में इनको सफलता मिलना तय होता हैं । कैसे बनते हैं ये योग इस पर चर्चा करे –

1- किसी नीच ग्रह से कोई उच्च का ग्रह जब दृष्टी सम्बंध या क्षेत्र सम्बंध बनाता हैं तो यह स्थिति नीच भंग राज योग बनाने वाली होती हैं ।
2- नीच का ग्रह अपनी उच्च राशि के स्वामी के प्रभाव में हो ( युति या दृष्टी सम्बंध हो) नीच भंग योग बनता हैं ।
3- परस्पर दो नीच ग्रहो का एक दूसरे को देखना भी नीच भंग योग होता हैं ।
4- नीच राशि के स्वामी ग्रह के साथ होना या उसके प्रभाव में होना नीच भंग होता हैं ।
5- चंद सूर्य से केंद्रगत होने पर भी नीच ग्रह का दोष समाप्त हो जाता हैं ।
6- जन्म कुंडली के योगकारक ग्रह तथा लग्नेश से सम्बंध होने पर नीच भंग राजयोग बनता हैं
7- नीच ग्रह नवांश कुंडली में उच्च का हो तो नीच भंग राजयोग बनता हैं ।
8- दो उच्च ग्रहो के मध्य स्थित नीच ग्रह भी उच्च समान फल दायी होता हैं ।
9- नीच का ग्रह वक्री हो तो नीच भंग राज योग बनता हैं ।
10- नीच राशि में स्थित ग्रह उच्च ग्रह के साथ स्थित हो तो नीच भंग राजयोग बनाता हैं ।
ज्योतिष् ज्ञान
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बुध अष्टकवर्ग
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(१) बुध अपने अष्टकवर्ग मे ८ शुभ बिंदु पाये तो जातक बुध की दशा मे राज सम्मान पद व प्रतिष्ठा दिलाता है जातक उच्चस्थ लोगो का कृपापात्र होने से धन व यश पाता है।

(२) ७ बिंदु पाने वाला बुध जातक को धन-मान व सुख प्रदान करता है।

(३) ६ बिंदु युक्त बुध सभी कार्य में सफलता का सम्मान दिलाता है।

(४) पांच बिंदु पाने वाला बुध जातक को लोकप्रिय यशस्वी व सभी का स्नेही बनाता है।

(५) चार बिंदु युक्त बुध कभी अवनति असफलता व अपयश तो कभी उन्नति सफलता व सुयश भी देता है।

(६) तीन बिंदु वाला बुध धन संपदा की हानि का भय चिंता दिया करता है जातक कभी धन भाव के कारण कष्ट पाता है।

(७) दो बिंदु पाने वाला बुध अपनी दशा भुक्ति अनिष्ट गोचर में उद्विग्नता क्षोभ ,मति भ्रम तो कभी गलतफहमी के कारण परिवार में कलह क्लेश दिया करता है।

(८) एक बिंदु वाला बुध सभी प्रकार की हानि व क्षति देता है जातक धन_मान व यश की हानि पता है।

(९) ०बिंदु पाने वाला बुध अपनी दशा भुक्ति मे जातक को मृत्यु भय व शत्रु भय दिया करता है।

विशेष 👉 मुख्यतः बुध के अष्टकवर्ग से उन्नति ,उपलब्धि ,विद्या ,लेख ,उपन्यास व कथा साहित्य ,बुद्धिमत्ता का विचार बुध के अष्टकवर्ग से किया जाता है।

बुध और प्रतिभा
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(१) वेदों का ज्ञाता ;- पांच बिंदु युक्त बुध केंद्र त्रिकोण में यदि गुरु अथवा शनि की दृष्टि यूति पाए तो जातक वेदों का अर्थ जाने वाला बहुत विद्वान व्यक्ति होता है।

(२) तर्क निपूर्ण ;- ५ बिंदु पाने वाला बुध यदि गुरु और मंगल की दृष्टि युति पाए तो जातक तर्क निपूर्ण तर्कशास्त्री होता है।

(३) साहित्यकार ;- मंगल की राशि और शुक्र के नवांश में बैठा बुध मात्र चार बिंदु पाकर भी अगर गुरु की दृष्टि पाए तो जातक साहित्यकार होता है।

(४) ज्योतिषी ;- बुध के अष्टक वर्ग में यदि केतु युक्त राशि को 3 या अधिक बिंदु मिले तथा केतु पंचम भाव में पंचमेश से संबंध करें तो जातक काफी अच्छा ज्योतिषी होता है।

(५) नृत्य नाट्य संगीत ;- चार बिंदु पाने वाला बुध यदि पाप ग्रह की युति पाकर अपनी नीच राशि अर्थात मीन के नवांश में हो तो जातक के नृत्य नाटक व संगीत में विशेष दक्षता पाता है।

(६) भविष्यवक्ता;- पांच बिंदु युक्त बुध यदि शनि तथा गुरु से चतुर्थ या ६,८भाव में बैठ कर दूसरे भाव को देखे तो जातक स्टिक भविष्य करने वाला भविष्यवक्ता होता है| गुरु और शनि की युति पंचम भाव में हो तो तथा बुध अष्टम भाव में हो तब भी यह योग बनेगा।

(७) उच्च शिक्षित ;-बुध नियंत्रक ग्रह केंद्र या त्रिकोण भाव में बैठे व बुधके अष्टक वर्ग में यदि 4 से अधिक बिंदु पाए तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर विद्वान व धनी-मानी व्यक्ति बनता है।

(८) शिक्षा में बाधा;- तीन या कम बिंदु प्राप्त बुध यदि 6 8 12 में शुक्र से युति करें तो जातक शिक्षा में बाधा पता है ऐसा जातक अल्पशिक्षित या अशिक्षित होता है।

(९)गूंगा या सभामूक ;- बुध से २सरा भाव यदि 0 बिंदु पाए तो जातक मूक या अपने भाव की अभिव्यक्ति में अकुशल होता है।

(१) बुध के अष्टक वर्ग मे यदि सूर्य द्वारा बुध या बुध से दूसरेभाव को शुभ बिंदु मिलें तो जातक देश भक्ति की बातो करता है।

(२) शुभ चंद्रमा से बुध को मिला शुभ बिंदु वाणी को साफ व आकर्षक बनाता है किंतु पाप पीडित चंद्रमा से बिंदु वाणी को खराब व गंदी बनाता है।

(३) बुध से प्राप्त शुभ बिंदु वाणी को सुंदर व रूचिकर बनाते है।

(४) मंगल से प्राप्त शुभ बिंदु वाणी को भडकाऊ या क्रूर बाते कहने वाला बनाते है।

(५) बुध को यदि गुरू से शुभ बिंदु मिले तो जातक के विचार साफ ,धर्मपरक व विद्वता पूर्ण होते है|।

(६) बुध को शुक्र द्वारा प्राप्त शुभ बिंदु जातक की वाणी को सार गर्भित रोचक व शिष्ट बनातो है|।

(७) बुध को शनि से प्राप्त शुभ बिंदु जातक को कपटपूर्ण व झूठी बात कहने वाला बनाते है।


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