जन्म कुंडली से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु।
लग्न:किसी निर्धारित समय पर पूर्व दिशा में क्षितिज पर जहां सूर्योदय होता है, वहां जो राशि उदय हो रही होती है, वह राशि लग्न कहलाती है।
1- एक राशि लगभग दो घंटे तक रहती है। चौबीस घंटों में बारह राशियाँ पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेती हैं।
2- जिस राशि में सूर्य होता है, सूर्योदय के समय वही राशि उदय हो रही होती है।
3- राहू-केतू सदैव एक दूसरे से विपरीत दिशा अर्थात एक दूसरे से 180 (डिग्री) अंश पर होते हैं?
4- बुध सदैव सूर्य के साथ अथवा सूर्य से एक भाव आगे या पीछे हो सकता है।
5- शुक्र सदैव सूर्य के साथ अथवा सूर्य से दो भाव तक आगे या पीछे हो सकता है।
6- एक राशि 30 अंश की होती है।
7- एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र 13 अंश 20 कला का होता है।
8- प्रत्येक नक्षत्र में 4 चरण होते हैं। एक चरण 3 अंश 20 कला का होता है।
9- कुंडली में पहले भाव में जो राशि होती ह, वह राशि उस जातक की लग्न कहलाती है।
10- कुंडली में चंद्र जिस राशि में होता है, वह राशि उस जातक की राशि कहलाती है।
11- अमावस्या के दिन सूर्य-चंद्र एक ही राशि में एक ही भाव में होते हैं।
12- चन्द्र 24 घंटे तक एक ही नक्षत्र में रहता है।
13- सूर्य और चंद्र सदैव सीधी गति से चलते हैं।
14- मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि की गति भी सीधी है, किन्तु कभी-कभी इनमें से कोई ग्रह वक्री हो कर मार्गी हो जाता है।
15- राहू और केतू सदैव उलटी गति से ही चलते हैं।
16- राहू और केतू ठोस ग्रह नहीं हैं। यह चंद्र जहां सूर्य पथ को उत्तर तथा दक्षिण में काटता है, उन बिंदुओं को ही राहू और केतू कहते हैं। इन बिंदुओं का प्रभाव ग्रहों के प्रभाव से अधिक होने के कारण इन्हें भी ग्रह मान लिया है।
सफल व्यापार के योग
परिचय
व्यापार व्यक्ति को स्वतंत्रता और अत्यधिक समृद्धि देता हैं। व्यापार के द्वारा आप अपनी सीमा से बाहर निकल सकते हों। व्यापार ही एक ऐसा मार्ग हैं, जो आपकी बढती महत्वकांक्षाओं की पूर्ती कर सकता हैं। व्यापार के द्वारा आपकी जरुरतों को पूरा तो किया जा सकता हैं लेकिन सवाल यह हैं कि क्या व्यापार में सफलता मिल पायेगी? क्योंकि आज के समय में व्यापार करने के लिये अत्यधिक पूंजी व मेहनत की जरुरत होती हैं, उसके अलावा प्रतिस्पर्धा जैसी खाई को पार करना अत्यधिक मुश्किल हैं। इन सभी प्रश्नों का जवाब आपकी जन्म कुंडली में छुपा हुआ हैं।
योग 1
1- जन्म कुंडली के दशम भाव को कर्म स्थान कहा जाता हैं, वृष, सिंह, कन्या तथा धनु लग्न वाले जातकों का यदि धनेश या लाभेश कर्म स्थान के मालिक के साथ द्विस्वाभाव राशि में स्थित हो या एकदूसरे पर प्रभाव हो तो ऐसा जातक एक सफल व्यापारी बनता हैं। ऐसे जातक अपने परिवार में कुल दीपक होते हैं। ऊपर वर्णित ग्रह जितने बलवान होंगे उतनी ही बडी सफलता के मिलने के असार रहते हैं।
योग 2
2- व्यापार हेतु जन्म कुंडली मे धन कि स्थिती अत्यधिक मजबूत होनी चाहिये। जन्म कुंडली में धनेश या लाभेश उच्च अवस्था के हों तथा अष्टमेष व द्वादश से सम्बंध बनाते हो तो व्यक्ति का व्यापार अपने देश से बाहर तक पहुंच जाता हैं। ऐसे जातक करोडों के स्वामी होते हैं।
योग 3
3- लग्न, धन व कर्म स्थान पर एक से अधिक ग्रहों का शुभ प्रभाव हो तो जातक के पास धन एक से अधिक स्तोत्र से आता हैं। ऐसा जातक कई प्रकार के व्पापार करता हैं।
योग 4
4- बुध ग्रह को व्यापारी कहा जाता हैं। बुध की शुभ स्थिति लग्न, धन, सप्तम,दशम व एकादश स्थान पर हो तो जातक सफल व्यापारी बनता हैं। ऐसे लोग प्रेम सम्बंधो में भी व्यापार करते नजर आते हैं।
योग 5
5- तुला राशि तराजु को प्रदर्शित करती हैं। तथा द्विस्वाभाव राशियां एक से अधिक मार्ग को दर्शाते हैं। यदि जन्म कुंडली के अधिकत्तर ग्रह इन राशियों में बैठे हो तो जातक व्यापार करता हैं और सफल होता हैं।
योग 6
6- जन्म कुंडली में अगर तृतियेश बलवान हो तो ऐसा जातक किसी के अधीन कार्य नही कर पाता। अपने लिये नये मार्ग बनाता हैं। यदि धनेश व लाभेश के साथ तृतियेश शुभ सम्बंध बनाये तो जातक सफल व्यापारी होता हैं। और कई व्यापारी उसके लिये कार्य करते हैं।