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आज का विषय बहुत ही अच्छा रखा है अच्छा तो हर रोज होता है हर रोज ही महत्वपूर्ण होता है। आज हम बात करते हैं राहु से बनने वाले लोगों के बारे में ऊपर हमारे विद्वानों ने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है तो मैं भी एक थोड़ा सा और छोटा सा विश्लेषण दे रहा हूं। सबसे पहले मुख्य बात है राहु एक पाप ग्रह है और वह जिस स्थान में बैठता है वहां की कुछ ना कुछ हानि जरूर करता है लेकिन वह शुभ ग्रहों के साथ या शुभ राशि में या मित्र राशि में वह बैठता है तो अच्छा फल देता है। सिर्फ एक कुंडली से ही पता नहीं चलता उसे नवमांश दशांश गोचर दशा महादशा अंतर्दशा यह सभी देखकर ही सब कुछ पता लगाया जा सकता है कि यह कैसा फल देगा फिर भी कुछ योग बनते हैं। जैसे कपट योग, क्रोध योग,अष्ट लक्ष्मी योग, पिशाच बाधा योग, चांडाल योग, अंगारक योग, ग्रहण योग, सर्प शाप योग, परिभाषा योग, अरिष्ट भंग योग, लग्न कारक योग, पायालु योग, और राहु शनि की युति के योग इस तरह से कुछ लोग हैं और भी कई योग हैं।

1- कपट योग- जब कुंडली के चौथे घर में शनि हो और राहु 12 वे घर में हो तो कपट योग होता है इस योग के कारण कथनी और करनी में अंतर होता है।

2-क्रोध योग- सूर्य बुध या शुक्र के साथ राहु लग्न में हो तो क्रोध योग होता है। जिसके कारण जातक को लड़ाई झगड़ा,वाद विवाद के परिणाम स्वरूप हानि और दुख उठाना पड़ता है।

3- अष्टलक्ष्मी योग- जब राहु षष्ठम में और गुरु केंद्र (दशम) मैं हो तो अष्टलक्ष्मी योग होता है। इस योग के कारण व्यक्ति शांति के साथ यशस्वी जीवन जीता है।

4- पिशाच बाधा योग- चंद्र के साथ राहु लग्न में हो तो पिशाच बाधा योग होता है इस योग के कारण पिशाच बाधा की तकलीफ सहनी पड़ती है और व्यक्ति निराशावादी अपने को घात पहुंचाने की कोशिश करता है।

5- मेष कर्क तुला मकर लग्न में अगर चंद्र राहु की युति केंद्र में हो तो शुभ फलदायक होता है ।अगर त्रिकोण (5,9) का स्वामी चंद्र हो उन्हें मैं चंद्र राहु की युति हो तो शुभ फल देती है। अन्य भागों में चंद्र राहु की युति होने से भयंकर आरोपों के द्वारा उत्पन्न मुकदमा वाजी का सामना करना पड़ता है तथा अनेक प्रकार का दुख भोगना पड़ता है।

6- चांडाल योग- गुरु के साथ राहु की युति होने से चांडाल योग बनता है इस योग के प्रभाव से नास्तिक और पाखंडी होता है लेकिन इसमें अंशौ को देखना बहुत जरूरी है।

7- परिभाषा योग- लग्न में या 3,6,11 मैं से किसी भी स्थान में राहु हो तो परिभाषा योग होता है इस राहु पर शुभ ग्रह की दृष्टि से यह शुभ फलदायक होता है।

8- अरिष्ट भंग योग- मेष, वृष, कर्क इन तीनों राशियों में से कोई लग्न हो और राहु 9,10,11 में हो तो अरिष्ट भंग होता है और यह शुभ फलदायक होता है।

9- लग्न कारक योग- मेष वृष या कर्क लग्न हो और 2,9,10 इन स्थानों को छोड़कर अन्य किसी स्थान में राहु हो तो लगन कारक होता है। यह योग सर्वरिष्ट निवारक होता है।

10- पायालू योग- जब राहु और लग्नेश दोनों दशम भाव में हो तो जातक मां के गर्भ से पैरों की तरफ से जन्म लेता है इसे पायालु कहते हैं।

11- अंगारक योग। राहु और मंगल की युति हो तो उसे अंगारक योग कहते हैं जिसमें व्यक्ति को हानि उठानी पड़ती है और सबसे पहले यह देखना होता है कि वह किस भाव में है शुभ है या अशुभ।

12- राहु शनि युति योग- शनि राहु की युति लग्न में हो तो सेहत ठीक नहीं रहती व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है। चतुर्थ स्थान में होने से माता को कष्ट होता है पंचम में होने से संतति के लिए कष्ट होता है सप्तम में पति पत्नी के लिए कष्ट होता है नवम में पिता के लिए कष्ट होता है दशम में व्यापार एवं प्रतिष्ठा की हानि होती है परंतु यदि गुरु की दृष्टि हो तो प्रभाव में कमी आ जाती है।🙏
[: मंगलग्रहऔरमांगलिकयोगकासच –
मंगल ग्रह को ज्योतिष में उष्ण ग्रह माना गया है , यह मेष तथा वृश्चिक राशियों का स्वामी है , बहुत से ज्योतिषियों के मानना है कि जब मंगल लग्न अथवा चन्द्र कूण्डली में केंद्र या 2,8,12 भाव में स्थित हो जाए तो मांगलिक दोष है , तो इस प्रकार मांगलिक दोष की प्रायिकता होती है 7/12 अर्थात पृथ्वी लोक की हर सातवी कूण्डली मंगल दोष से पीड़ित है , और जब मंगल दोष से पीड़ित है तो निश्चित रूप से वह वैवाहिक बाधा, जीवन हानि, स्वास्थ्य विकार से वह व्यक्ति पीड़ित होगा। अर्थात उन्नति के सभी द्वार बंद होने चाहिए उस जातक के , परन्तु सोचिए क्या ये वास्तविक है ???? इस प्रकार कूण्डली में मांगलिक योग होना किसी जातक अथवा जातिका की कुंडली मे बहुत भयानक है, जबकि मेरे अनुभव में जो पाया आपसे बांट रहा मेरे अनुसार मांगलिक योग के साथ इस तरह का प्रभाव नगण्य है , जब मंगल किसी जातक की कुंडली मे लग्न अथवा चन्द्र से 1,4,7,8,12 भावो में स्थित होता है तो जातक मांगलिक कहा जाता है , और यहां से शुरू होता है मांगलिक योग होने का प्रकोप जैसे कि विवाह किसी मांगलिक कन्या से हो अन्यथा एक को मृत्यु प्राप्त हो सकती है आदि, जबकि वास्तविक सच है कि मंगल एक शुभ एवं उष्ण ग्रह है इस प्रकार यह पारिश्रम अधिक कराता है जो जातक मांगलिक होगा निश्चित ही वह परिश्रमिक होगा, अर्थात उसमे कार्य करने की क्षमता औसत से अधिक होगी, रही तथ्य विवाह की तो जब जातक की कुंडली मे दशा अंतर प्रत्यंतर ग्रहों सम्बन्ध 2,7,11 भावो से बन रहा होगा जातक का विवाह उसी समय काल मे होगा यह जरूरी नही की मांगलिक जातक का विवाह विलम्ब से ही होगा, अब तथ्य करते है जातक की पत्नी कैसी होगी तो यदि लग्न में स्थित ग्रह या लग्नेश सप्तम भाव में स्थित ग्रह अथवा सप्तमेश से प्रबल होंगे तो जातक स्वयं सातवे भाव अर्थात पत्नी पर हावी रहेगा क्योंकि प्रथम भाव कालपुरुष कुंडली मे स्वयं का और सप्तम भाव पत्नी का होता है , यदि यही मंगल राहु के साथ मिल जाए तो मंगल उष्ण और राहु उत्तेजक के रूप को धारण करते हुए जातक को उग्र कर देते है और अक्सर जातक लड़ाकू प्रवृत्ति को धारण किये रहता है , परन्तु जातक का स्वभाव लग्न से अधिक प्रभावित रहती है यदि ऐसी स्थिति होती है लग्न सौम्य हो तो राहु और मंगल युति पर काबू पाया जा सकता है । मंगल राहु उत्तम परिणाम भी देते है जैसे आइंस्टीन की कुंडली को गौर करे तो राहु की अंतर्दशा में मंगल राहु अष्टम भाव से सम्बंधित थे जिसके कारण उस समय काल मे आइंस्टीन ने विस्फोटक परमाणु बम का प्रयोग किया । इसके अलावा यही मंगल यदि केतु गुरु के साथ युति कर ले तो जातक को सर्जन बना देते है क्योंकि मंगल साहस , केतु नुकीला हथियार ,चीर फाड़,तथा गुरु वैध का कारक है । फिर वो किसी भाव मे क्यो न हो , परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि जातक की लगभग दशाओ में 1,5,9,11 का योग उपस्थित हो।
अतः मंगल से डरिये मत मांगलिक होना दुर्भाग्य नही सौभाग्य है , परिश्रम का सौभाग्य कर्म का सौभाग्य है ।

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