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ज्योतिष ज्ञान
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मंगल ग्रह के शुभाशुभ योग

मंगल के जन्म की कथा –देवी भागवत् पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध करने के लिए वाराह अवतार लिया। इस राक्षस का वध करने के बाद जब वाराह भगवान अपने लोक लौटने लगे तब धरती माता ने उनसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। धरती की मनोकामना पूरी करने के लिए वराह कुछ समय तक धरती के साथ रहे। धरती ने जब पुत्र को जन्म दिया, इसके बाद वराह भगवान लौटकर बैकुण्ठ चले आए। लेकिन जब धरती के पुत्र मंगल बड़े हुए तो वह इस बात से नाराज हुए कि वराह भगवान ने उनकी माता का त्याग कर दिया। इसलिए मंगल वैवाहिक जीवन में दूरियां पैदा करते हैं। दुर्घटना और रक्तपात की घटनाएं करवाते हैं।

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है जिस वजह से इसे “लाल ग्रह” के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में मंगल को अंगारका (‘जो लाल रंग का हो’) या भौम (‘भूमि पुत्र’) भी कहा जाता है। वह युद्ध के देवता है और अविवाहित है। उन्हें पृथ्वी या भूमि का पुत्र माना जाता है। वह हाथो में चार शस्त्र, एक त्रिशूल, एक गदा, एक पद्म या कमल और एक शूल थामे हुए है। उनका वाहन एक भेड़ है। वें ‘मंगला-वरम’ (मंगलवार) के अधिष्ठाता हैं। हिंदी व संस्कृत में मंगल का अर्थ होता है शुभ अथवा कल्याणकारी, देवी पृथ्वी से इनकी उत्पत्ति के कारण इन्हें भौम कहा जाता है।

परन्तु ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह कहा गया है। मंगल ग्रह उग्रता के साथ-साथ धैर्य के प्रतिनिधि माने गए हैं। मंगल जातक को दूसरों के सामने अपने को साबित करने में मदद करते हैं। अपने द्वारा निश्चित किये गए उद्देश्य के लिए जीवन में संघर्ष और तनाव का सामना करना, जीवन में संघर्ष के लिए आंतरिक अभिव्यक्ति, मानसिक परिपक्वता और उग्रता हमे मंगल से ही प्राप्त होती है। जुझारूपन एवं हार न मानने की शक्ति हमें मंगल से ही मिलती है और खून की ताक़त भी मंगल से ही मिलती है। दायें बाजू का विचार मंगल से किया जाता है हमारे समाज में भाई को दायाँ हाथ कहा जाता है इसी कारण से भाई का कारक भी मंगल देव हैं।मंगल ग्रह का विवाह में बहुत महत्व है और मंगल के शुभ प्रभाव के बिना भूमि का स्वामित्व प्राप्त होना असंभव है। कुण्डली में इसकी विशेष स्थिति दुर्घटना और परिवार में मतभेद पैदा कर देती है। मंगल को युद्ध का देवता भी कहा जाता है अन्ततः यह मतभेद और अलगाव का भी कारक हैं।सूर्य और चन्द्र केवल एक राशि के स्वामी हैं जबकि मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि सभी २-२ राशियों के स्वामी हैं। 

दो राशियों का स्वामी होने के कारण ये ग्रह अतिरिक्त उर्जा ,स्वभाव,चरित्र और व्यवहारिक क्षमता रखते हैं। इनके पूर्ण प्रभाव को हम दोनों राशियों का विचार किये बिना पूरी तरह से नहीं समझ सकते, एक राशि में वही ग्रह चमत्कारी प्रभाव देता है वहीं दूसरी राशि में ये बेहद साधारण या बुरा प्रभाव देता है।जैसा की हम जानते ही हैं कि मंगल ब्रह्माण्ड की दो महत्वपूर्ण राशियों का स्वामी है यदि हम मंगल के प्रभाव को पूर्ण रूप से जानना चाहते है तो इन राशियों का प्रभाव देखना होगा। मेष और वृश्चक की विपरीत राशियाँ तुला और वृषभ है जिन पर मादक ग्रह शुक्र का अधिकार है। मंगल और शुक्र में एक विशेष सम्बन्ध है जहाँ मंगल पौरुषता का द्योतक है वहीँ शुक्र नारित्व का द्योतक है।

ज्योतिष में मेष राशिचक्र की पहली राशि है और यह लक्ष्यहीन उर्जा को दर्शाती है मंगल अदृश्य उर्जा से ओतप्रोत है इसीलिए इस राशि में उग्रता होती है। परन्तु बिना किसी संदेह और स्वार्थ के इस राशि से प्रभावित लोग अपने लक्ष्य की और बढ़ते रहते है इनकी त्वरित निर्णय की क्षमता इन्हें अन्य लोगों से दूर भी करती है और एक सुरक्षा भी देती है।मंगल के स्वामित्व वाली दूसरी राशि है वृश्चिक, यह राशि बहुत ही जटिल स्वभाव वाली है इसीलिए इसे रहस्यमयी राशि कहते हैं। यह राशि जीवन के दो महत्वपूर्ण पक्षों (काम और मृत्यु ) पर अपना प्रभाव रखती है । उर्जा के मूल स्वभाव का दो तरह से उपयोग किया जा सकता है, पहला निर्माण और दूसरा विनाश।

मंगल ग्रह अपने में प्रचंड ऊर्ज़ा का स्त्रोत है।मंगल की पहली राशि मेष में ऊर्ज़ा बहिर्मुखी दिशा में उद्यत है वहीँ दूसरी राशि वृश्चिक में वही ऊर्ज़ा अंतर्मुखी हो जाती है। मंगल की ये ही ऊर्ज़ा एक तरफ इंसान को अहंकारी और उग्र स्वभाव का बना देती है तो दूसरी तरफ दार्शनिक, वफादार, बहादुर और सामाजिक भी बना देती है।कुंडली में मंगल की अच्छी दशा बेहद कामयाब बनाती है। वहीं इस ग्रह की बुरी दशा इंसान से सब कुछ छीन भी सकती है।मंगल ग्रह के बहुत से शुभ और अशुभ योग हैं।

मंगल का पहला अशुभ योग – किसी कुंडली में मंगल और राहु एक साथ हों तो अंगारक योग बनता है, अक्सर यह योग बड़ी दुर्घटना का कारण बनता है।इसके चलते लोगों को सर्जरी और रक्त से जुड़ी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अंगारक योग इंसान का स्वभाव बहुत क्रूर और नकारात्मक बना देता है। इस योग की वजह से परिवार के साथ रिश्ते बिगड़ने लगते हैं।अंगारक योग से बचने के उपाय – अंगारक योग के चलते मंगलवार का व्रत करना शुभ होगा। मंगलवार का व्रत रखने के साथ भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की उपासना करें।

मंगल का दूसरा अशुभ योग – अंगारक योग के बाद मंगल का दूसरा अशुभ योग है मंगल दोष। यह इंसान के व्यक्तित्व और रिश्तों को नाजुक बना देता है। कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें स्थान में मंगल हो तो मंगलदोष का योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मांगलिक कहते हैं। कुंडली की यह स्थिति विवाह संबंधों के लिए बहुत संवेदनशील मानी जाती है।मंगलदोष के लिए उपाय – हनुमान जी को रोज चोला चढ़ाने से मंगल दोष से राहत मिल सकती है। मंगल दोष से पीड़ित व्यक्ति को जमीन पर ही सोना चाहिए।

मंगल का तीसरा अशुभ योग – नीचस्थ मंगल तीसरा सबसे अशुभ योग है। जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उन्हें अजीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस योग में कर्क राशि में मंगल नीच का यानी कमजोर हो जाता है। जिनकी कुंडली में नीचस्थ मंगल योग होता है, उनमें आत्मविश्वास और साहस की कमी होती है। यह योग खून की कमी का भी कारण बनता है। कभी–कभी कर्क राशि का नीचस्थ मंगल इंसान को डॉक्टर या सर्जन भी बना देता है।नीचस्थ मंगल के लिए उपाय – नीचस्थ मंगल के अशुभ योग से बचने के लिए तांबा पहनना शुभ सकता है। इस योग में गुड़ और काली मिर्च खाने से विशेष लाभ होगा।

मंगल का चौथा अशुभ योग – मंगल का एक और अशुभ योग है जो बहुत खतरनाक है। इसे शनि मंगल (अग्नि योग) कहा जाता है। इसके कारण इंसान की जिंदगी में बड़ी और जानलेवा घटनाओं का योग बनता है। ज्योतिष में शनि को हवा और मंगल को आग माना जाता है। जिनकी कुंडली में शनि मंगल (अग्नि योग) होता है उन्हें हथियार, हवाई हादसों और बड़ी दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए। हालांकि यह योग कभी–कभी बड़ी कामयाबी भी दिलाता है।

शनि मंगल (अग्नि योग) के लिए उपाय – शनि मंगल (अग्नि योग) दोष के प्रभाव को कम करने के लिए रोज सुबह माता-पिता के पैर छुएं। हर मंगलवार और शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करने से इस योग का प्रभाव कम होगा।*

मंगल का पहला शुभ योग – मंगल के शुभ योग में भाग्य चमक उठता है। लक्ष्मी योग मंगल का पहला शुभ योग है। चंद्रमा और मंगल के संयोग से लक्ष्मी योग बनता है। यह योग इंसान को धनवान बनाता है। जिनकी कुंडली में लक्ष्मी योग है, उन्हें नियमित दान करना चाहिए।

मंगल का दूसरा शुभ योग – मंगल से बनने वाले पंच- महापुरुष राज योग को रूचक योग कहते हैं। केंद्र में जब मंगल मजबूत स्थिति के साथ मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो रूचक योग बनता है। यह योग इंसान को राजा, भू-स्वामी, सेनाध्यक्ष और प्रशासक जैसे बड़े पद दिलाता है। इस योग वाले व्यक्ति को कमजोर और गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए।

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