लग्न दोष :-
जन्मकुंडली में सबसे महत्वपूर्ण पार्ट जन्म कुंडली का लग्न और लग्नेश होता है। अतः जन्म कुंडली में लग्न भाव का स्वामी लग्नेश का बलवान होना अति आवश्यक होता है। क्योंकि जन्म कुंडली में लग्न भाव जातक का शरीर, चरित्र, व्यक्तित्व होता है। आज की परिचर्चा में हम जातक की जन्मकुंडली में लग्न भाव के स्वामी लग्नेश की चर्चा करते हैं। जैसा कि हम जान चुके हैं कि कुंडली में लग्नेश का बलवान होना अति आवश्यक है किंतु यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्नेश बलवान नहीं हो तो वहां पर लग्न दोष का निर्माण हो जाता है। जिस कारण जातक को अपने जीवन में सभी क्षेत्रों में प्राय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तो आइए जानते हैं कि जन्म कुंडली में लग्न दोष का निर्माण किस प्रकार से होता है।
१- लग्न भाव के स्वामी का त्रिक भाव अर्थात 6 8 12 में स्थित होना।
२-लग्नेश की डिग्री का कम होना।
३- लग्नेश का पाप कर्तरी दोष में फंसना।
४- लग्नेश का सूर्य से अस्त होना।
५- लग्नेश का नीच राशि में होना।
उपर्युक्त स्थिति यदि किसी भी जातक की जन्म कुंडली में लग्नेश की हो तो उस कुंडली में लग्न दोष बनता है और लगन दोष बनने वाले जातक का जीवन कष्टमय होता है।
लग्न दोष निवारण उपाय -:
१- यदि जन्म कुंडली में लग्नेश 6,8,12 भाव में स्थित हो तो उस स्थिति में मात्र लग्नेश के बीज मंत्रों का जाप करके बीज मंत्र सिद्ध करना चाहिए। लग्नेश का रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
२- यदि लग्नेश शुभ भाव में स्थित हो किंतु डिग्री कम हो उस स्थिति में लग्नेश का रत्न धारण कर सकते हैं अथवा लग्नेश के बीज मंत्र का जाप भी करके लग्नेश को बलवान बनाया जा सकता है।
३- यदि लग्नेश के आगे और पीछे पाप ग्रह अर्थात मारक ग्रह राहु केतु या शनि स्थित हो उस स्थिति में लग्नेश के बीज मंत्र का जाप करके लग्नेश को पाप कर्तरी से मुक्त करवाया जा सकता है।
४- यदि लग्नेश अपनी नीच राशि में स्थित हो उस स्थिति में मात्र लग्नेश के बीज मंत्र का जाप किया जाना चाहिए रत्न कदापि धारण नहीं करें।
५-लग्नेश सूर्य से अस्त हो तो उस स्थिति में लग्नेश का रत्न धारण कर सकते हैं अथवा लग्नेश की बीज मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
इस प्रकार उपयुक्त उपाय करके लग्नेश को बलवान कर सकते हैं और कुंडली में बनने वाले लगन दोष से मुक्त हो होकर अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।
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