Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

🚩🕉️🪔🍁🌷💐🌞🍂🙏🌻🌺

🕉️🚩हम प्रसन्न हैं तो भगवान भी प्रसन्न हैं, अतः भगवान को प्रसन्न रखो

🌹🚩🌺🌻🙏🍂🌞💐🌷🍁🪔

🌹🚩भगवान की प्रसन्नता हमारी प्रसन्नता पर निर्भर है| हम पूर्ण हैं तो भगवान भी पूर्ण हैं| भगवान की पूर्णता भी हमारी पूर्णता पर निर्भर है| भगवान कोई बाहर से आने वाले नहीं हैं| हमें स्वयं को ही उन्हें उपलब्ध होना और व्यक्त करना होगा| वास्तव में जिन्हें हम ढूंढ रहे हैं, वे तो हम स्वयं ही हैं| सबसे अधिक कठिन कार्य है ….. इस संसार में रहते हुए परमात्मा के प्रति अभीप्सा (कभी न बुझने वाली प्यास), तड़प और प्रेम की निरंतरता को बनाए रखना| इससे अधिक कठिन कार्य और कोई दूसरा नहीं है| इस संसार में हर कदम पर माया विक्षेप उत्पन्न कर रही है जो हमें परमात्मा से दूर करती है| घर-परिवार के लोगों, सांसारिक मित्रों और जन सामान्य के नकारात्मक स्पंदन हमें निरंतर परमात्मा से दूर करते हैं|
.
🕉️🚩नकारात्मक लोगों से मिलने से तो अच्छा है किसी से भी न मिलें| मिलना भी उसी से है जो हमारे लक्ष्य में सहायक हो, चाहे किसी से भी न मिलना पड़े, बात भी वही करनी है अन्यथा बिना बात किये रहें, भोजन भी वो ही करना है जो लक्ष्य में सहायक हो, अन्यथा बिना भोजन किये रहें, हर कार्य वो ही करना है जो हमें हमारे लक्ष्य की ओर ले जाता हो| किसी भी तरह का समझौता एक धोखा है| एक साधक के लिए सबसे बड़ा धोखा हमारी तथाकथित सामाजिकता है| मैं पुनश्चः कह रहा हूँ कि सबसे बड़ी बाधा हमारी तथाकथित सामाजिकता है| धन्य हैं वे परिवार जहाँ पति-पत्नी दोनों ही प्रभुप्रेमी हो, और जिनका एक ही लक्ष्य है ….. परमात्मा की प्राप्ति|
.
🚩🕉️भगवान में श्रद्धा और विश्वास रखें| अपना पूर्ण प्रेम उन्हें दें| भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं, वह है हमारा परम प्रेम| जब हम उन्हें अपना पूर्ण प्रेम देंगे तो उनकी भी परम कृपा हम पर अवश्य ही होगी|

🚩🌹भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में वचन दिया है ….

🕉️”मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि|| १८:५८||”

🚩🌹मेरे में चित्तवाला होकर तू मेरी कृपासे सम्पूर्ण विघ्नोंको तर जायगा, और यदि तू अहंकारके कारण मेरी बात नहीं सुनेगा तो तेरा पतन हो जायगा|

🕉️🚩”सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||”

🕉️🚩संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा| मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर||
.
🕉️🚩कितना बड़ा वचन दे दिया है भगवान ने ! और क्या चाहिए? जीवन के जो भी कार्य हम करें वह भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करें, न कि अहंकार की तृप्ति के लिए| धीरे धीरे अभ्यास करते करते हम भगवान के प्रति इतने समर्पित हो जाएँ कि स्वयं भगवान ही हमारे माध्यम से कार्य करने लगें| हम उनके एक उपकरण मात्र बन जाएँ| कहीं कोई कर्ताभाव ना रहें, एक निमित्त मात्र ही रहें| यह सबसे बड़ा आध्यात्मिक रहस्य और मुक्ति का मार्ग है|

🕉️🚩”तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् || ११:३३ ||”

🚩🌹इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रुओंको जीतकर धनधान्यसे सम्पन्न राज्यको भोगो | ये सभी मेरे द्वारा पहलेसे ही मारे हुए हैं, हे सव्यसाचिन् तुम निमित्तमात्र बन जाओ ||

🚩🌹हर समय परमात्मा की स्मृति बनी रहे| उन्हें हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें| और हमारे पास देने के लिए है ही क्या? सब कुछ तो उन्हीं का है| हे भगवन, आपकी जय हो| आपका दिया हुआ यह मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार सब कुछ बापस आपको समर्पित है| मुझे आपके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|

🚩🌹हे परमब्रह्म परमात्मा परमशिव वासुदेव, आपका विस्मरण एक क्षण के लिए भी ना हो| हमें अपने मायावी आवरण और विक्षेप से मुक्त करो| हमें निरंतर सत्संग प्राप्त हों, हम सदा आपकी ही चेतना में रहें|

🚩🪔🍁🌷💐🌞🍂🙏🌺🌹🌻

Recommended Articles

Leave A Comment